अधूरे सपनों की दास्तान-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

अधूरे सपनों की दास्तान-2

अधूरे सपनों की दास्तान-4

मेरी सेक्स स्टोरी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मेरे दोस्त की बीवी मुझे अपने सेक्स जीवन के बारे में बता रही थी फोन पर… कैसे उसने अपने कुनबे में ही सेक्स से भरे कारनामे सुने और देखे.
अब आगे:

फिर एक दिन बारिश के मौसम में…
रात में हम सब नीचे ही लेटते थे लेकिन कभी ठन्डे मौसम या बारिश का लुत्फ़ लेने के लिये कोई ऊपर भी जा के सो जाता था। ऊपर तिमंजिले पर बड़ा सा बरामदा था और तीन कमरे भी बने थे, जिसमें दो कमरे रहने सोने लायक थे तो एक कमरा स्टोर रूम की तरह यूज़ होता था।
अहाना मेरे साथ ही सोती थी, जबकि अप्पी को अम्मी शाहिद भाई वाले केस के बाद से ही अपने साथ सुलाने लगी थीं और सुहैल अलग अकेला कमरे में सोता था।

रात बारिश हो रही थी और मौसम काफी सर्द था जब करीब एक बजे मेरी नींद खुल गयी। अहाना अपनी जगह से गायब थी.. मुझे लगा बाथरूम गयी होगी पेशाब करने के लिये, लेकिन काफी देर के इंतज़ार के बाद भी जब वापस न लौटी तो मुझे फ़िक्र हुई।

मैंने उठ कर बाथरूम टॉयलेट चेक किया.. वह वहां नहीं थी। तो कहाँ गयी होगी.. अम्मी और सुहैल के कमरे में देखा.. वहां भी नहीं थी। पहले सोचा कि अम्मी को उठाऊं या जोर से आवाज़ देके देखू, लेकिन फिर सोचा क्यों किसी की नींद खराब करनी, खुद ही देख लेती हूँ पहले।

ऊपर दूसरी मंजिल पे भी बड़ा बरामदा और दो कमरे बने थे लेकिन वह खाली ही रहते थे और कभी कभार मेहमान आने पर ही आबाद होते थे.. अहाना वहां भी कहीं नहीं थी।

फिर ज़रूर बारिश का मौसम एन्जॉय करने ऊपर ही गयी होगी।

ऊपर बड़े से हिस्से में छत बारिश के पानी से भीग रही थी। जिधर सीढियां खुलती थीं, उधर ही बरामदा और तीनों कमरे थे। दोनों कमरे देखे लेकिन वह वहां भी नहीं नज़र आई तो मुझे फ़िक्र हुई.. कहाँ चली गयी थी? क्या चाचा की तरफ या बड़े अब्बू की तरफ चली गयी थी?

मैं अभी खड़ी-खड़ी सोच ही रही थी कि ऐसी आवाज़ हुई जैसे कोई कराहा हो.. मैं चौंक गयी। धड़कनें बेतरतीब हो गयीं। स्टोर रूम के सिवा कोई और जगह वहां ऐसी नहीं थी, जहाँ से यह आवाज़ आ सकती थी।
मैंने दरवाज़े पर जोर दिया.. पर वह अन्दर से बंद था। मतलब कोई अंदर था। मैंने कान लगा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की लेकिन बारिश के शोर की वजह से यह मुमकिन न हुआ।

खिड़की भी बंद थी.. क्या किया जा सकता था। मैंने वहां पड़े प्लास्टिक के ड्रम को देखा जो टांड़ पर चढ़ने के लिये वहां रखा रहता था.. उसे खिड़की के पास लगा कर ऊपर रोशनदान से अन्दर देखा जा सकता था।

वह कोई ख़ास वजनी नहीं था, मैंने उसे गोल घुमाते हुए खिड़की के पास एडजस्ट कर लिया और ऊपर चढ़ गयी.. हालाँकि किसी अनजानी आशंका से मेरा दिल कांप रहा था और मैं डर भी रही थी लेकिन इतना यकीन था कि यहाँ कोई बाहर वाला नहीं आ सकता था, जो भी था घर का ही था कोई।

लेकिन खिड़की दरवाज़ा बंद करके अन्दर कर क्या रहा था?

ऊपर से अंदर का दृश्य तो दिखा लेकिन कुछ खास नहीं.. हालाँकि परली साइड की खिड़की खुली हुई थी उस वक़्त और उससे बाहर की कुछ रोशनी तो अंदर आ रही थी लेकिन वहीँ खिड़की से सटे पड़े तख्त पर दो परछाईं के सिवा और कुछ देख पाना संभव नहीं था।

थोड़ी देर तक देखती, समझने की कोशिश में लगी रही लेकिन समझ में नहीं आया, दिल जोर-जोर से धड़कता रहा।

लेकिन इत्तेफाक से एकदम बिजली कड़की और कुछ पल के लिये एकदम दिन जैसी रोशनी हो गयी जिसमे सबकुछ साफ़-साफ़ देखा जा सकता था और मैंने देखा भी।

वह राशिद और अहाना थे और यह काफी नहीं था, खतरनाक यह था कि वे दोनों ही मादरज़ात नग्न थे और अहाना तख़्त पर चित लेती हुई थी अपनी दोनों टांगें फैलाए और राशिद उसके ऊपर लदा हुआ उसके वक्ष चूस रहा था और उसके नितम्ब ऊपर नीचे हो रहे थे जैसे वो अहाना के पेडू को दबा रहा हो।

उस कुछ पल की रोशनी में सिर्फ मैंने ही उन्हें नहीं देखा था, बल्कि मेरी दिशा में मुंह किये अहाना ने भी मुझे देख लिया था और जब अगली बार कुछ पल बाद बिजली चमकी तो मैंने दोनों को ही फक् चेहरा लिये अपनी ओर देखते पाया था।

मुझे वहां खड़े रहना ठीक न लगा और मैं नीचे उतर आई, लेकिन मैं अगले कदम का फैसला न कर पाई.. मेरे दिमाग में वही पुरानी बात हथौड़े की तरह बज रही थी कि शाहिद भाई और शाजिया अप्पी इसी जगह नंगे पकड़े गये थे।

और आज मैंने राशिद और अहाना को पकड़ा था.. क्या मुझे घर के बाकी लोगों को बुलाना चाहिये?

लेकिन इससे ज्यादा मुझ पर यह उत्कंठा भारी पड़ रही थी कि आखिर पहले या अब ये भाई बहन नंगे होकर क्या रहे थे?

इस कशमकश में कम से कम इतना वक्त तो गुजर गया कि राशिद अपनी लोअर पहनता बाहर निकल आया और बाहर अकेले मुझे देख ऐसा लगा जैसे उसकी जान में जान आई हो।

“तुम यहां क्या कर रही हो?” उसने धीरे से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।
“अहाना को ढूंढ रही थी, पर तुम लोग कर क्या रहे थे.. क्या हो रहा है यह सब?” मैंने हाथ छुड़ाते हुए थोड़े तेज स्वर में कहा।

उसने घबरा कर इधर-उधर देखा.. बारिश और बादल का शोर बदस्तूर था। फिर उसने जीने के दरवाजे को बंद करके नीचे वहीं पड़ा अद्धा इस तरह फंसा दिया कि कोई उधर से खोलना चाहे भी तो खुल न सके।

“यह क्या कर रहे हो?”
“बताता हूँ।” उसने थोड़े इत्मीनान से कहा और फिर दूसरी साईड के जीने के दरवाजे के साथ भी यही किया.. फिर मुझे देखते हुए बोला- पहले ही कर लेना चाहिये था, लेकिन कई बार जल्दबाजी भारी पड़ जाती है। यहां आओ।

फिर वह मुझे पकड़ कर अंदर घसीट लाया जहां अहाना तख्त पर अब बैठ गयी थी और कपड़े भी उसने पहन लिये थे और डरी सहमी मुझे देख रही थी।
राशिद ने परली साईड की खिड़की बंद की, दरवाजा वापस बंद किया और बत्ती जला दी। मैं उन दोनों को ही घूरे जा रही थी.. उसने मुझे कंधे से पकड़ कर तख्त पर बिठा दिया और देखने लगा।

“अब पूछो.. क्या पूछना चाहती हो?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
“आखिर तुम लोग यहां नंगे हो कर यह कर क्या रहे थे?”
“तुम्हें नहीं पता? तुम सच में जानना चाहती हो या घर में दूसरों को बता कर हमारी पिटाई कराना चाहती हो.. पहले यह फैसला कर लो।”

मैं सोच में पड़ गयी.. पिटाई का अंदेशा था तो जो वह कर रहे थे, जरूर वह गलत ही था, क्योंकि पहले शाहिद शाजिया के केस में भी इसीलिये तमाशा हुआ था।
लेकिन उस तमाशे से भी उसे उसके सवाल का जवाब कभी मिल नहीं पाया था और इस बार भी उम्मीद नहीं कि मिल जाये.. तब फिर?

“बताओ.. क्या कर रहे थे?” अंततः मैंने जानने में दिलचस्पी दिखाई।
“प्रॉमिस करती हो कि कभी किसी को कहोगी नहीं। न कहने और चुप रहने के और भी फायदे हैं जो बाद में सामने आयेंगे।”
“ओके.. नहीं कहूंगी। अब बताओ।”

“देखो.. तुम्हें पता है, जो तुम्हारी टांगों के बीच में जो सुसू करने के लिये मुनिया होती है, उसे पुसी कहते हैं।”
“तो?”
“जब लड़की जवान हो जाती है.. तो किसी-किसी टाईम उसकी मुनिया में अंदर की तरफ बड़े जोर की खुजली मचती है, इतनी तेज कि लड़की परेशान हो जाती है।”
“भक्क.. उल्लू न बनाओ, मुझे तो न हुई कभी ऐसी खुजली?”

“नहीं हुई तो होयेगी।” इतनी देर में पहली बार अहाना बोली, जिसके चेहरे पर अब राहत के भाव दिखने लगे थे- पर यह सबको ही होती है।
“लड़कों को भी?” मैंने सख्त हैरानी से कहा।

“और क्या.. लड़कों को भी। लड़कों की मुनिया बाहर निकली होती है तो वह उसे रगड़ कर खुजला सकते हैं लेकिन लड़की की मुनिया तो अंदर की तरफ होती है तो वह लड़कों की तरह नहीं खुजा सकती न।” राशिद ने आगे कहा।
“तत… तो क्या.. उस दिन सुहैल को भी वह खुजली हो रही थी जब..”
“और क्या.. वह खामखाह में अपनी मुनिया थोड़े रगड़ रहा था।” इस बार अहाना ने कहा।
“लल… लेकिन तब पूछा था तो क्यों नहीं बताया था।”

“क्योंकि तब ठीक से समझा नहीं सकती थी.. अब राशिद हैं तो डेमो दे के समझा सकते हैं।”
“हां क्यों नहीं.. देखो।”

और राशिद ने अपनी इलास्टिक वाली लोअर नीचे खिसका कर अपना लिंग बाहर निकाल लिया.. ठीक मेरे सामने और मैं बड़े गौर से उसे देखने लगी।
वह भी उस पागल की तरह अर्धउत्तेजित अवस्था में था.. लेकिन राशिद ने उसे हाथ से सहलाया तो वह एकदम टाईट हो गया। डेढ़ इंच की मोटाई रही होगी और छः से सात इंच के करीब लंबाई थी।

“देखो.. यह खुजली ऊपर मुनिया की टोपी से ले कर नीचे जड़ तक मचती है और यूँ हाथ से इसे ऊपर नीचे रगड़ना पड़ता है।” राशिद ने दो तीन बार हाथ चला के दिखाया।
“लेकिन सुहैल के जो सफेद-सफेद निकला था, वह क्या था?” मेरी उलझन अभी खत्म नहीं हुई थी- मुनिया से तो पानी जैसी पेशाब ही निकलती है, पर वह तो गाढ़ा सफेद?
“खुजली की जड़ तो वही होता है। देखो, जब हम जवान हो जाते हैं तब वह सफेदा हमारी मुनिया के अंदर बनने लगता है और जैसे ही वह थोड़ा सा इकट्ठा होता है, हमारी मुनिया में भयंकर खुजली पैदा होती है और जब तक हम उसे निकाल नहीं देते, हमें चैन नहीं पड़ता।”

“तुम भी निकालती हो?” मैंने ताज्जुब से अहाना को देखा।
“और क्या.. जिस दिन तुम्हें खुजली होनी शुरू होगी, तुम भी निकालोगी। तुम्हारे दिन भी आ गये अब।” उसने जैसे मजे लेते हुए कहा।
“तुम कैसे निकालती हो.. सुहैल तो अपने हाथ से अपनी मुनिया रगड़ रहा था, तुम कैसे रगड़ती हो?”

“यही तो परेशानी है कि लड़की कैसे रगड़े। ऐसे में उसे लड़के की जरूरत पड़ती है जिसकी मुनिया में भी खुजली हो रही हो।”
“फिर?” मैंने अविश्वास से दोनों को देखा।
“फिर क्या.. लड़का अपनी मुनिया लड़की की मुनिया में घुसा कर रगड़ता है, और फिर दोनों का सफेदा निकल पाता है, तब कहीं जा कर राहत मिलती है।”

“भक्क.. गंदे! उल्लू न बनाओ.. यह सब झूठ बक रहे हो। ऐसा हो ही नहीं सकता.. लड़की की मुनिया क्या मैंने देखी नहीं। मेरे पास भी है.. उसमें इतनी जगह ही नहीं होती कि लड़के की इतनी बड़ी सी मुनिया उसमें घुस जाये। तुम दोनों झूठ बोल रहे हो।”

कहानी जारी रहेगी.
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