यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्ते दोस्तों, मेरा नाम सीमा है. मैं एक घर के साहब के घर की केयर टेकर. दसवीं फेल हूँ. पर उससे पहले हर कक्षा में काफी मेहनत से पढ़ाई करती थी … मतलब दो साल या तीन साल में एक कक्षा पास कर लेती थी. मेरी उम्र लगभग 45 वर्ष है. मेरा साइज देखने में ऐसा लगता है जैसे मैं खाते पीते घर की लुगाई हूँ.
इन साहब के घर में जब से हूँ, तब से इनकी प्रेरणा से कम्प्यूटर चलाना सीख लिया था. साहब हमेशा कहते रहते थे कि खाली समय में इस कम्प्यूटर पर टपर टपर करो, खराब तो होगा नहीं … हां कुछ सीख ही जाओगी. साहब कहते थे कि इस पर टाइपिंग सीख लोगी, तो आगे काम भी देने लगेंगे. नेट के कारण टाइपिंग तो सीखी ही … और साहब की संगत में भी बहुत कुछ सीख लिया.
मेरे पिताजी, जिन्हें मैं बाबू कहती हूँ, उनका रोड साइड होटल या ढाबा कह लीजिये, है. चलता तो बहुत बढ़िया है, पर दारू के ऐब ने घर को बर्बाद कर दिया था. बाबू जो भी कमाते, दारू में उड़ा देते.
मां, मेरे लिए माई, दो घर दाई का काम करती थीं. उन्हीं के पैसे से घर चलता था. ऐसा कोई दिन नहीं बीतता था, जब बाबू माई से झगड़ा न करते. जिसके चलते मैं पढ़ नहीं पाती थी. कभी कभी तो बाबू अपने होटल से ही खाकर आ जाया करते और धड़ाम से चौकी पर सो जाते.
एक बार नानी की तबीयत खराब होने के कारण माई को 10-12 दिनों के लिए अपने मायके जाना पड़ा. वो शाम को निकली थीं, तब कह कर गयी थीं कि बाबू आएं, तो कह देना. मैं जाने के लिए पूछूँगी, तो मुझे मना कर देंगे.
माई के जाते ही घर पूरा खाली था, सो मैं माई का साड़ी ब्लाउज पहन कर इतरा रही थी. ख्यालों में बाबू के होटल में काम करने वाले एक लौंडे के बारे में सोच सोच कर पिघल रही थी. उस वक्त मैं चुदासी हो रही थी और ख्यालों में इतना खोयी हुई थी कि अगर उस समय कोई कुत्ता भी दिख जाता, तो उससे भी पेलवा लेती … चुत में इतनी ज्यादा खुजली मची हुई थी. सोचते सोचते समय का ख्याल ही नहीं रहा और मैं खाना बनाना ही भूल गयी.
बाबू आए, तो देखते ही समझ गए कि खाना नहीं बना है. मैं साड़ी में लिपटी पड़ी थी, लाइट भी नहीं जला सकी थी.
बाबू ने केवल चिल्ला कर पूछा- क्या महारानी … आज खाना भी नसीब नहीं होगा क्या?
मेरी तो घिग्गी बंधी हुई थी. मैं उठने को हुयी, तो बाबू ने हमें माई समझ कर हाथ खींचा और अपने बगल में लिटा लिया.
वो मेरे पीठ के पीछे लेटे थे, पर दारू की बास मेरे नाक में आ रही थी. वे हाथ को आगे लाकर मेरे पेट को सहला रहे थे, तो मैं उनके अहिस्ता अहिस्ता खड़े हो रहे लौड़े को अपने चूतड़ वाली खाई में महसूस कर रही थी.
मैं तो वैसे भी चुदासी थी, पर मन में जबरदस्त द्वंद्व मचा हुआ था. मेरा मन कह रहा था कि ये तुम्हारे बाबू हैं, यह गलत हो रहा है … पर शरीर साथ नहीं दे रहा था. मेरे चूतड़ लौड़े को और दाब कर ललकार रहे थे.
बाबू ने अपने हाथों को ब्लाउज में घुसाते हुए मेरी ब्रा को चूचियों के ऊपर सरका दिया. माई के कपड़े पहने होने के कारण सब कुछ ढीला था, सो सब जगह हाथ आसानी से जा रहा था.
मेरे बालों को सूंघते हुए कहने लगे- छम्मक छल्लो … आज नहा धो कर बैठी हो … क्या बात है और सब दिन तो बास मारती थी, साला खड़ा लंड भी औंधे मुँह गिर जाता था. आज रंडी को जबरदस्त चुदवाने का मन है क्या?
ये शब्द मैंने बाबू के मुँह से कभी नहीं सुने थे. माई से झगड़े में भी शब्दों के चयन में बाबू का कोई सानी नहीं था, मगर आज बात कुछ अलग थी, सो मैं बस हंस दी.
बाबू तपाक से बोले- रुक भोसड़ी वाली … हंस रही है, तेरी चूत के साथ आज तेरी गांड का बाजा न बजाया तो कहना.
अपने एक हाथ से बाबू मेरे चूचियों के काले काले अंगूर सहला रहे थे, तो वो भी पूरा तन गए. बालों को हटा कर गर्दन पर ली गयी चुम्मियां, मेरे पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर रही थीं.
पहले मर्द का स्पर्श … वो भी बाबू का, ये तो मैंने सोचा भी नहीं था कि पहली चुदायी बाबू से होने वाली है. मैं दुगुनी रफ्तार से पिघल रही थी. मैं सारे ख्यालातों को झटकते हुए अभी के क्षणों का पूरा लुत्फ लेने के लिए पूरे शरीर को ढीला छोड़े हुए थी. हर पल की खुशी महसूस कर रही थी.
बाबू ने मेरे ब्लाउज और ब्रा को निकाल कर चौकी के नीचे गिरा दिया. वो नशे में धुत्त मेरी चूचियों को सहला सहला कर पी रहे थे, दूसरे हाथ से चूचियों को सहलाते हुए पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया था … तथा उसके साथ पैंटी को भी उतार दिया था.
बाबू क्या चूची पीते हैं … पूरी की पूरी चूची मुँह में घुसेड़ कर चूस रहे थे. पहले निप्पल चूसते, उसके बाद पूरा दूध मुँह में भर कर चूसते, तो मजा आ जा रहा था.
फिर नीचे हाथ ले जाकर जैसे ही बाबू ने हरा भरा जंगली प्रदेश साफ सुथरा पाया, तो बोल पड़े- साली चुदक्कड़ … आज अपने चूत का संभाल कर रख … इसका दही बना कर रख दूंगा.
वे हौले हौले नीचे आ रहे थे. नाभि के चारों तरफ जीभ से चाटने लगे. चाटते चाटते चूत पर अपने मुँह को रख कर बोले- अरे कल तक यहां संड़ाध मारता था … आज खुशबू … माशाअल्लाह आज तो मजा आ गया.
मेरा हाल तो एकदम से पतली हो रही थी. पर चूत महारानी का हाल था कि वो पिघल पिघल कर रो रही थी. जितना बाबू चूत और दाने को चूसते, वो उतनी ही तेज पिघलती जा रही थी.
बाबू अपनी एक उंगली को मेरी चूत में घुसाते हुए किसी एक जगह पर ले जाते, तो मैं चिहुँक जाती, वे उसी जगह पर सहलाने लगते. साथ में जीभ से चूत के दाने को सहलाते रहे, चूसते रहे, हल्के होंठों से दबाते भी रहे.
मुझे ऐसी आग लग चुकी थी कि लग रहा था कि अगर थोड़ा देर और बाबू मेरी चूत को चूसते रहे, तो मैं पक्का झड़ जाती.
दारू के नशे में बाबू रुक रुक कर खूब बहकी बहकी बातें कर रहे थे जो मुझे और गर्म कर रही थीं.
अभी तक वो मुझे माई ही समझ रहे थे.
बाबू अपने लंड को साधते हुए मेरी चूत पर रखकर चुत को गर्मी देने लगे. फिर पहले अपने लंड को चूत की दरार पर ऊपर नीचे करते रहे, जब चूत रस से उनका लंड पूरा भीग गया, तो उन्होंने मेरे छेद के ऊपर लंड रख कर एक करारा झटका दे मारा.
इस तेज झटके से उनका आधा लंड धरधराते हुए चूत के अन्दर घुसता चला गया. जबरदस्त दर्द का एहसास हुआ, पर मैं होंठों को दाबे हुए, आंखों में आंसू ला कर तड़फ गई.
मैं कुंवारी तो नहीं थी, पर मर्द का लंड लेने का पहला अनुभव था. पहले अपने उंगलियों से गाजर मूली से अपनी कुंवारी चूत को शांत कर लेती थी, पर लंड … उफ कितना मजा आया. मेरी चुत में पहला लंड … वो भी बाबू का, मैं तो हद से ज्यादा उन्मादित हो उठी थी.
फिर थोड़ा सा लंड बाहर खींच कर बाबू ने एक और धक्का दे मारा.
आह मजा आ गया!
मैंने लंड को अन्दर तक महसूस किया. अब बस एक या दो धक्का और लगता तो मैं निकल जाती. इस पूरी चुदाई में मैं कुछ नहीं बोल रही थी.
तभी पता नहीं क्या हुआ, बाबू ने एकदम से अपना लंड निकाल लिया और पीठ के बल लेट गए. मैं ऊपर आने को हुई, तो उन्होंने रोक दिया. मुझे अपने वक्षस्थल से सटाते हुए सो गए. उनका लंड अभी भी खड़ा था. चाँद की रोशनी खिड़की से आ रही थी, जिसमें उनका लंड साफ साफ चमकता दिख रहा था.
थोड़े देर में उनका लंड थड़थड़ाया और पिचकारी मार दी. लंड से वीर्य का गाढ़ा लेप सा चारों तरफ फैल गया. वो खर्राटे मार कर सो रहे थे, पर आंसू की धारा आंखों से निकल रही थी.
मैंने उनके वीर्य को हाथों में लेकर देखा, तो चिकना चिकना फिसलन भरा सा लगा.
सुबह जब उठी तो मैं पूरी नंगी थी पर एक चादर मेरे ऊपर थी जो पूरे शरीर को ढके हुए थी. रसोई से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, लगता था बाबू खाना बना चुके थे. वे बहुत अच्छे रसोइया हैं.
बाबू ने चाय की दो प्याली लाकर बगल में रख दीं. मेरे बालों को सहलाते रहे, फिर उनकी आंखों में आंसू छलक आए. मेरे माथे पर चुम्मी लेकर वो हटने ही वाले थे कि मैं उनकी गर्दन में लटक गयी. उनके चेहरे पर चुम्मियों की झड़ी लगा दी.
मैं हर बार ‘थैंक्यू बाबू … थैंक्यू बाबू..’ कह रही थी.
उनके चेहरे पर एक प्यारी मुस्कान तैर गयी. मैं उसी तरह उठ बैठी और अपने बाबू के सामने नंगी बैठ करके चाय पीने लगी.
फिर उठ कर उनकी गोद में बैठ कर उनकी गर्दन में लिपटते हुए बोली- बाबू आप बड़े गंदे हो.
बाबू सिर हिला कर बोले- हां बेटा जी गलती हो गयी. पर तुम भी तो माई के कपड़े पहने हुए थी, जिसके चलते यह गड़बड़ी हुयी. शक तब हुआ जब मेरा लंड तेरी चूत में आराम से नहीं घुसा, तब लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. जब गौर से देखा तो तुम थीं.
मैंने उनके होंठों पर अपना होंठों रखते हुए कहा- नहीं बाबू, आप गलत सोच रहे हैं … आप किसी लड़की को तड़पता हुआ नहीं छोड़ सकते. मुझे कोई अफसोस नहीं है … आप अधूरा काम पूरा करें.
बाबू- हट पगली यह गलत है.
मैं- अब गलत हो या सही. जो हो गया अब उसे पूरा करो बाबू … नहीं तो जान दे दूंगी.
मैं लुंगी के नीचे उनका लंड खोज कर सहलाने लगी. बाबू जितना तर्क देते, उतना कुतर्क से उनको निरुत्तर कर देती.
अंततः वही हुआ, जो मैं चाहती थी. बाबू का लंड उफान मारने लगा. रात का अधूरी चुदाई के कारण मेरी चूत में सैलाब आया हुआ था.
मैं- बाबू वहीं से शुरू करो न … जहां छोड़ दिया था. अभी चूचियों को मत मथो. सीधे चुदायी करो न!
वो हंसकर बोले- अरे वाह बेटी, तुम तो एक ही रात में चुदक्कड़ बन गईं.
बाबू ने मुझे गोद से नीचे उतारते हुए चौकी पर लिटा दिया. मेरी चूत पर चुम्मी लेते हुए बोले- पहला रूल ये कि चुदायी में जज्बात पर रोक नहीं लगाना, जो मुँह में आए बोल देना. इससे चुदायी में मजा आता है.
मैं- ठीक है बाबू.
बिना लंड को दरार में ऊपर नीचे किए बाबू ने मेरे छेद के ऊपर सैट किया और जोर का झटका दे मारा.
बाबू का सूखा लंड मेरी चूत पूरी तरह से गीली नहीं रहने के कारण अन्दर घुसा ही नहीं. बाबू ने मेरी चूत को जीभ से सहलाना शुरू कर दिया, तो मेरी चूत का रस बहने लगा.
बाबू ने एक बार फिर से लंड सैट करके थोड़ा जोर देकर धक्का मारा. पर उनका लंड सूखा होने के कारण रगड़ खाते हुए थोड़ा ही अन्दर जा सका. साथ ही दर्द के एक झटके ने मेरे शरीर को झकझोर कर रख दिया.
मैं बोल पड़ी- साले माई का भतार … थोड़ा धीरे नहीं कर सकता था … साले चूत की नस को भी तहस नहस करके छोड़ दिया … माई का बदला बेटी से काहे ले रहा है.
तब तक बाबू ने दूसरा धक्का दे मारा और उनका लंड पूरा अन्दर घुस गया. मैं दर्द से कलप गई. बाबू ने थोड़ा रुक कर लंड बाहर निकाला, फिर पूरी ताकत से अन्दर घप्प से पेल दिया.
मैं अकड़ कर रह गयी.
बाबू- साली जोरू की बेटी … तू तो उससे भी ज्यादा चुदक्कड़ी निकली. आज तेरी चूत की सारी गर्मी निकाल देता हूँ … सारी जिंदगी सोचेगी कि किस बाप से पाला पड़ा था.
मैं- हां तो निकाल न … देखती हूँ तेरे लंड में कितना दम है. माई को तो कभी पूरा चोद नहीं सका … आया है बड़ा बेटी को अजमाने … चोद भोसड़ी के … देखती हूँ कौन पहले झड़ता है.
बाप बेटी में संवाद भी चलता रहा और लंड चुत की घपाघप भी बदस्तूर जारी रही. थप थप, छप छप के साथ साथ चौकी की चर्र चर्र … पूरे घर में गुंजायमान हो रहा था.
मेरे मुंह से भी सिसकारियां निकल रही थी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…
इससे पहले भी मैं चौकी की चर्र चर्र की आवाज सुनती थी और अनुमान करती कि बाबू माई को धनाधन चोद रहे होंगे. उस समय मैं चूत को उंगली कर शांत कर लेती. आज साक्षात लंड ले रही थी.
जब मेरी चूत का दर्द कुछ कम हुआ, तो मैं उचक उचक कर अपने बाप का लंड घपाघप लेने लगी थी.
आप चुदक्कड़ सीमा की चुदाई की कहानी का मजा ले रह हैं … अभी ये सेक्स कहानी शुरू हुई है. पूरा मजा लेने के लिए अन्तर्वासना से जुड़े रहिए. मुझे मेल भेजना न भूलें.
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कहानी जारी है.