यह कहानी मेरी और मेरी रिश्तेदारी में हुई मेरी पहली चुदाई के बारे में है.
बात उन दिनों की है जब मैं 18 साल का हो चुका था. मैं अपने मामा के घर पला बड़ा हुआ हूँ, मेरी मामी के मायके में मैं बचपन से ही जाता था, उनका गाँव मुझे बहुत अच्छा लगता था, गाँव बहुत सुंदर था. तो हमेशा की तरह छुट्टियों में उनके गाँव गया. गाँव में मामीजी की छोटी बहन शीतल, उम्र लगभग 38 साल होगी, वह भी आई हुई थी, उनके भी तीन बच्चे, मामीजी दो बच्चे, मामी जी के भाई जिनको मैं चाचा बोलता हूँ, उनके भी तीन बच्चे… इन सब बच्चों के साथ खेलने में बड़ा मजा आता था. इन सब बच्चों में मैं सबसे बड़ा था.
एक दिन मामीजी के भाई जिनको मैं चाचा बोलता हूँ, उनके पैर में मोच आई थी, घर के लिये पास वाले शहर से कुछ सामान लाना था जो गाँव से 25 किलोमीटर दूर है. तो उन्होंने मुझे बाईक की चाबी देते हुए मामी जी बहन और उऩकी बीवी यानी चाची, जिनकी उमर 35 के आसपास थी, दोनों के साथ सामान लाने भेजा.
हम दोपहर में गाँव से निकले पास के शहर में पहुंचे. सामान लेते लेते शाम के छह बज गये. हम वहाँ से निकले, अभी थोड़ी दूर ही हम आये थे कि अचानक जोरदार बारिश शुरू हो गई तो हम एक पेड़ के नीचे रुक गये. काफी देर हो गई, फिर भी बारीश रूकने का नाम नहीं ले रही थी. हम तीनों पूरे भीग चुके थे.
बच्चों की चिंता में भरी बरसात में हम भीगते हुए निकल पड़े. अब तो अंधेरा भी छाने लगा था. कुछ 10 किलोमीटर की दूरी पर हमें ट्रैफिक जाम मिला, बहुत सी गाड़ियां खड़ी थी. पूछताछ करने पर पता चला कि नदी के ऊपर बना हुआ पुल पानी के बहाव से टूट गया था.
हे भगवान, अब इतनी बरसात में दूसरा रास्ता भी नहीं था, हम बहुत परेशान हो रहे थे. अब यह बात घर तक कैसे पहुंचायें! उऩ दिनों में मोबाईल भी इतने नहीं थे.
किसी ने हमें बताया कि पास के गाँव में फोन है, वहां से कर के यह बात घर वालों को बता दो.
हमारे घर पर फोन था तो फोन करने के लिये हम पास के गाँव गये, वहाँ से घर पर फोऩ करके चाचाजी को यह बात बताई.
चाचा जी बोले- घबराने की बात नहीं है, तुम जिस गाँव में हो, मेरे एक मित्र भी इसी गाँव में रहते हैं, तुम लोग उनके घर चले जाओ.
हम लोग चाचा के मित्र के यहाँ गये पर उऩके मित्र घऱ पर ताला लगा कर चार पाँच दिन के लिये किसी की शादी में गये हुए थे.
हे भगवान… अब क्या करें… अब रात कहाँ गुजारेंगे? हमारे पास पैसे भी ज्यादा नहीं थे, कुछ 300 रूपए बचे थे तो हम किसी होटल में भी नहीं रह सकते थे.
फिर हमें एक छोटा सा लॉज मिला, उसने हमें 400/- किराया बताया. हमने हमारी तकलीफ उन्हें बताई कि हम केवल 200 रूपये ही दे सकते हैं.
वह मान गया लेकिन उसके बदले में सिंगल चारपाई वाला गंदा सा छोटा कमरा हमें दिया उसने…
बचे हुए पैसों से मैं कुछ खाने का सामान लेकर रुम में आया. पूरे रूम में पानी ही पानी था, जमीन से पानी आ रहा था. हम तीनों पूरे भीग चुके थे. हमने खाना खाया, बहुत ठण्ड लग रही थी.
पर अब सोयेंगे कैसे… हमारे कपड़े गीले थे. मैंने उन दोनों से कहा- गीले कपड़ों के साथ आप सोयेंगी तो बिस्तर पूरा गीला हो जाएगा. आप एक काम करो, मैं बाहर कहीं सोता हूँ, आप कपड़े उतार कर यहाँ सो जाओ.
यह सुनकर दोनों हंस पड़ी, मामी की बहन शीतल बोली- अरे पगले, तू हमारे बच्चों की तरह है, ऐसी हालत में हम तुझे बाहर भजेंगी? हम तीनों इसी बिस्तर पर एडजस्ट करते हैं.
और वो दोनों मेरे साथ मजाक करने लगी, मस्ती में उन्होंने कहा- अब तू जवान होने लगा है, कुछ नई चीज देखने मिलेगी तुझे.
यह बात सुनकर मैं बहुत शर्मा गया.
मैंने कपड़े उतारे देखा तो मेरी अण्डरवीयर भी भीग चुकी थी. मैंने उन्हें बोला- आप पीछे घूम जाओ!
जैसे वो दोनों पीछे घूमी, मैं अपना अण्डरवीयर उतार कर बिस्तर में घुस गया, उन्हें बोला- अब आप घूम सकती हो.
उन दोनों ने मेरी ओर देखा और हंसने लगी.
अब दोनों ने अपने कपड़े उतारना शुरू किया. मुझे अजीब महसूस होने लगा. उन्होंने अपनी साड़ी उतारी, ब्लाउज उतारा, अपना पेटीकोट उतारा.
वे दोनों दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी थी, उनकी पीठ मेरी तरफ थी, अब दोनों केवल पेंटी में थी. किसी औरत की ऐसी अवस्था मैंने केवल तस्वीरों में देखी थी.
यह देखकर मुझे अलग सा ऩशा छा गया, मुझे लगा कि मुझे बुखार आ गया हो! मेरा लंड खड़ा होकर फड़फड़ाने लगा. मेरा हाथ लंड की तरफ कब गया, मुझे ही पता नहीं चला.
अब उन्होंने पेंटी भी उतार दी. पहली बार मैं ऐसे गोल गोल भरे हुए पिछवाड़े देख रहा था. इधर मेरा हाथ लंड को मसल रहा था.
अचानक लंड ने अपना पानी छोड़ दिया, मुझे राहत महसूस हुई, मैं अपने सर तक चादर ओढ़ कर सो गया. मुझे तुरंत नींद लग गई.
आधी रात को मेरी नींद खुल गई, मैं चारपाई पर उठ कर बैठा, मैंने देखा कि दोनों औरतें मेरे दोनों बाजू सोई हुई हैं, पीठ के बल लेटी हुई हैं.
जिंदगी में पहली बार मैंने चूत देखी… वो भी दो दो एक साथ!
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लंड महाराज फिर से खड़े हो गये. मैंने देखा मामीजी की बहन हिल रही थी, मैं तुरंत लेट गया पर नींद कहाँ से आयेगी, दो भट्टियाँ जो बाजू में थी.
अब मामी की बहन ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा, खुद मेरी तरफ मुँह करके सोई, उनका एक पैर मेरे पैर उपर था.
अचानक उन्होंने मुझे अपऩी तरफ खींचा, उनके ओंठ मेरे ओंठ के पास थे, मेरा लंड उनके पेट को छू रहा था, हम दोनों की गर्म सांसें चल रही थी. शीतल मेरे ओंठ अपने मुंह में लेकर चूसने लगी, मैं भी उनका साथ देने लगा.
शीतल मेरे लंड को अपना हाथ में पकड़ कर खेलने लगी और मैं अपना हाथ उसकी गीली चूत पर घुमाता रहा, बीच बीच में उंगली भी डालता था.
अब मुझे उसने अपने ऊपर खींच लिया, मेरा लंड अपनी चूत पर सेट करके दोनों हाथों से कमर पकड़ कर लंड चूत में घुसेड़ लिया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… उसकी चूत अंदर गरम भट्टी की तरह थी.
मैंने धक्के देना शुरू किया तो चारपाई धक्कों के साथ हिल रही थी.
थोड़े समय के लिए मैं तो भूल ही गया था कि चारपाई पर चाची भी है. मैंने उनकी तरफ देखा तो वो सो रही थी.
यहाँ मेरे धक्के चालू थे.
दस मिनट बाद वो अकड़ने लगी और मेरी पीठ पर नाखून गड़ाती हुई झड गई. साथ में मुझे भी कुछ हुआ, ऐसा लगा मानो मैं चूत में रूक रूक कर मूत रहा हूँ. मैं भी चूत में ही झड़ गया.
फिर उनके शऱीर से नीचे उतर कर फिर से अपनी जगह सो गया.
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