मेरा नाम विक्रम सिंह है. मुझे लोग प्यार से विन्नी बुलाते हैं. मैं हरियाणा के रोहतक ज़िले के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ.
अभी मैं गुड़गांव में अपना गेस्ट हाउस का काम करता हूँ.
मैं पिछले चार साल से नियमित रूप से सेक्स कहानी पढ़ रहा हूँ.
इन्हीं कहानियों से मुझे अपना सच लिखने की हिम्मत हुई और मैंने अपनी सेक्स कहानी आप सबके साथ साझा करने का तय कर लिया.
ये आंटी चुदाई कहानी मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है.
इसमें मेरी तरफ़ से कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर नहीं लिखा गया है.
ये कहानी उस समय की है जब मैं अपने गांव से रोहतक स्कूल में पढ़ाई करने के लिए जाता था.
अभी मेरी उम्र तीस साल है. ये कहानी आज से लगभग 10-11 साल पहले की है.
मैं रोहतक के एक बहुत ही प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई कर रहा था.
उधर जाने के लिए मैं रोज़ सुबह क़रीब साढ़े छह बजे अपने गांव से बस पकड़ कर रोहतक निकल जाता था.
सुबह जल्दी जाने की वजह से बस में भीड़ नहीं होती थी और उसमें जितनी भी सवारियां जाती थीं, सबसे मेरी अच्छी जान पहचान हो गयी थी.
उसी बस में मेरे से पहले वाले गांव से एक तीस वर्ष की आंटी हमेशा आती थीं.
उनसे मेरी अच्छी जान पहचान हो गयी थी.
उस समय मोबाइल तो ज़्यादा होते नहीं थे, पर जब मैं बारहवीं कक्षा में आया, तो मेरे घर वालों ने फ़ाइनल परीक्षा से तीन महीने पहले मेरी ट्यूशन लगवा दी, जिसकी वजह से अब मैं शाम को लेट घर जाने लगा.
उसी बात का फ़ायदा मुझे सेक्स के रूप में मिला.
पहले ही दिन मैं पढ़ाई करके घर लौट रहा था.
मैंने देखा कि जो आंटी सुबह बस में मिलती हैं, वो शाम को छह बजे वाली बस से वापिस घर जाती हैं.
चूंकि मेरी उनसे जान पहचान अच्छी थी, तो मैं बस में उनके साथ ही बैठ गया और वो भी मुझे देख कर ख़ुश हो गईं.
फिर उन्होंने मेरे लेट आने का कारण पूछा तो मैंने बता दिया कि अच्छा रिज़ल्ट लाने के लिए घर वालों ने मेरी ट्यूशन लगवा दी है.
उस दिन पहली बार आंटी ने मुझसे थोड़ा खुल कर बात की.
उस दिन ज़्यादातर बातें मेरी पढ़ाई और फ़्यूचर को लेकर ही हो रही थीं. अब चूँकि आंटी को मालूम चल गया था कि मेरी वापसी का समय शाम का हो गया है तो आंटी मेरी सीट बुक करके रखती थीं.
अब हम दोनों सुबह शाम साथ में आते जाते थे.
मेरे साथ अब वो हंसी मज़ाक़ भी करने लग गई थीं.
कभी कभी आंटी मुझसे पूछती भी थीं कि तेरी कोई गर्लफ्रेंड तो नहीं है, इसी लिए ध्यान लगा कर पढ़ाई नहीं करते हो, बस हमेशा शरारत ही करते रहते हो.
मैं भी मज़ाक़ मज़ाक़ में बोल देता था कि आंटी आपके जैसे कोई मिली ही नहीं, जो मुझे अच्छी लगे.
मेरी इस बात पर आंटी हमेशा मुस्कुरा देती थीं और मुझे प्यार से डांट देती थीं.
बातों बातों में मैं आपको आंटी के फ़िगर के बारे में बताना ही भूल गया.
आंटी हमेशा फ़िटिंग के सूट सलवार पहन कर रहती थीं, जिससे वो हमेशा कांटा माल लगती थीं.
वो बिल्कुल हल्का सा मेकअप करती थीं, जिससे उनकी ख़ूबसूरती और भी ज़्यादा बढ़ जाती थी.
उनके बदन से हमेशा एक मीठी सी महक आती रहती थी, जिसकी वजह से मैं हमेशा उत्तेजित हो जाता था.
उनके बदन में सबसे ख़ास उनकी 34 साइज़ की चूचियां और 38 की गांड थी. उनका हल्का सा पेट भी था, जो उनकी ख़ूबसूरती को कम करने की जगह बढ़ा देता था.
उनका रंग बिल्कुल साफ़ था और उनके प्यारे गुलाबी होंठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था, जो मुझे बहुत ही प्यारा लगता था.
जैसा कि मैंने बताया कि दिसंबर का महीना आ गया था और ठंड बहुत ही ज़्यादा हो चुकी थी.
ये बात बीस दिसंबर की है, जब मेरी सर्दियों की छुट्टी हो गयी थीं.
मैं बस से सुबह नहीं गया था पर जब शाम को ट्यूशन क्लास से वापिस आया तो आंटी मुझे देख कर एकदम खुश हो गईं और मुझसे सुबह ना आने का कारण पूछने लगीं.
मैंने उनको बता दिया.
फिर मैंने उनसे उनकी फ़ैमिली के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनकी शादी को आठ साल हो चुके हैं और घर में उनकी सास, उनके पति और वो ही रहती हैं.
मैंने उनसे पूछा कि और आपके बच्चे?
मेरे ये पूछते ही वो परेशान हो गईं और उन्होंने मुझे बताया कि उनके बच्चे नहीं हो सकते.
ये सुन कर मैं बहुत ही सकुचा गया और मैंने उनको सॉरी बोला.
चूंकि आंटी दुखी दिखने लगी थीं तो मैं उनको वापस हंसाने की कोशिश करने लगा.
मैंने अगले दिन ये सारी बात मेरे एक ठरकी दोस्त हितेश को बताई.
उसने मुझसे कहा- बेटा लोहा गर्म है, इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता.
जैसा कि कमीने दोस्त ज्ञान पेलते हैं, वैसे ही उसने मुझे पूरा ज्ञान दे दिया था.
उस दिन जब मैं बस में गया तो मैं उनके पास जाकर बैठ गया.
आप सब लोगों को तो पता होगा कि सर्दियों में छह बजे के बाद अंधेरा होना शुरू हो जाता है.
उस दिन आंटी ने शॉल ले रखी थी.
सर्दी की वजह से मैं उनके बग़ल में बैठा था और थोड़ी ज़्यादा सर्दी लगने का नाटक करने लगा.
आंटी ने मुझसे पूछा कि आज बात क्यों नहीं कर रहे हो?
मैंने बताया कि आज थोड़ी तबियत खराब है, सर्दी लग रही है.
ये सुन कर आंटी ने मुझे अपनी शॉल उतार कर दे दी.
मैंने उनसे बोला कि आप भी आगे से डाल लो.
हमने जैसे ही आगे से शॉल डाली, मेरा हाथ जल्दबाज़ी में आंटी के मम्मों पर टच हो गया, जिसे मैंने जल्दी से हटा लिया.
उसी समय मैंने नोट किया कि आंटी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गयी.
मुझे हितेश की सारी बातें और सारा ज्ञान याद आ गया.
अब मैं सोने की ऐक्टिंग करने लगा और आंटी के कंधे पर सिर रख दिया.
आंटी ने मुझे जगाने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि थोड़ी देर बाद उनका हाथ हलचल करने लगा.
उन्होंने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया और हल्के से मसलने लगीं, जिससे मेरा लंड खड़ा हो गया.
कुछ तो मैं उनके बालों की महक से उत्तेजित था, कुछ उनकी हरकत की वजह से. अब मेरा पूरा शरीर तपने लगा था. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मुझे बुख़ार आ गया हो.
दूसरी तरफ मेरी हालत देख कर आंटी मुस्कुरा रही थीं.
धीरे धीरे उनका हाथ मेरे लंड के क़रीब आता जा रहा था.
उत्तेजना की वजह से मेरा बुरा हाल हो रहा था.
जैसे ही आंटी ने अपना हाथ मेरी ज़िप के ऊपर किया, मैंने भी शॉल के अन्दर से अपना हाथ उनके मम्मों पर रख दिया और एक को सहलाने लगा.
आंटी ज़ोर से हंसने लगीं और उन्होंने मेरे कान में बोला- इतने दिन तो विश्वामित्र ने भी नहीं लगाए थे, जितने तुमने लगा दिए.
ये सुन कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही ना रहा और मैं उनके मम्मों को प्यार से सहलाने लगा.
आंटी ने भी ज़िप खोल कर मेरे लंड को बाहर निकाल लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगीं.
उनके नर्म नर्म हाथ मुझे लंड पर बहुत सुकून दे रहे थे.
अब बस में इससे ज़्यादा कुछ हो भी नहीं सकता था.
थोड़ी देर में ही मेरे लंड ने अपना लावा उगल दिया, जिसे उन्होंने अपने रूमाल से साफ़ कर दिया.
हम लोग बस में ऐसे ही मज़े करने लगे.
आंटी हमेशा ही शॉल लेकर आने लगीं.
अब हमें कोई फ़िक्र भी नहीं होती थी और हमारी हरकतें भी धीरे धीरे बढ़ती जा रही थीं.
एक बार बस में भीड़ कम थी, तो आंटी उस दिन कुछ ज़्यादा ही मूड में थीं.
आंटी ने पीछे वाली सीट घेर रखी थी.
जैसे ही मैं पहुंचा, आंटी ने सीधा शॉल के अन्दर मुँह डाल कर बोला कि कोई इधर आए तो मुझे बता देना और वो नीचे होकर मेरे लंड को चूसने में लग गईं.
उनके चूसने का अन्दाज़ बहुत ही अच्छा था.
पांच मिनट में ही मेरा काम हो गया और उन्होंने मेरा लंड चाट चाट कर साफ़ कर दिया.
ऐसे ही हमारे दिन मज़े में कट रहे थे, पर हमें पूरी चुदाई करने का मौक़ा नहीं मिल रहा था.
मैं भी हाथ से आंटी को झाड़ देता था और आंटी कभी हाथ से कभी मुँह से मेरा काम कर देती थीं.
फिर एक दिन आंटी ने बताया कि उनकी सास बीमार हैं जिस वजह से उनके पति रात में और वो दिन में हॉस्पिटल में रहेंगी.
ये बात सुन कर मैं बहुत ही ख़ुश हो गया और मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं आपके घर आ सकता हूँ?
उन्होंने बोला- आ तो सकते हो, पर ये रिस्क वाला काम होगा. अगर पकड़े गए तो अच्छे से कुटाई होगी. और तुम घर पर क्या बहाना बनाओगे?
मैंने कहा कि वो आप मेरे ऊपर छोड़ दो.
मैं घर पर हितेश के घर ग्रुप स्टडी की बोल कर बाइक लेकर आंटी के घर पहुंच गया.
बाइक मैंने थोड़ी दूर खड़ी कर दी और जैसे ही मैं उनके घर पर पहुंचा.
आंटी से झट से मुझे अन्दर लेकर गेट बंद कर दिया.
अभी मेरी फट रही थी.
रात के क़रीब दस बजे हुए थे. मुझे और आंटी को नॉर्मल होने में थोड़ा टाइम लगा.
उन्होंने मुझे चाय के लिए ऑफ़र किया.
मैंने हंसते हुए कहा कि मुझे तो दूध पीना है.
उन्होंने बोला कि मना किसने किया है.
आज बहुत दिनों के बाद ये मौक़ा मिला था और हम इसका जी भरके मज़ा लूटना चाहते थे.
एक एक करके आंटी ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मैंने भी किस करते करते आंटी के सब कपड़े उतार दिए.
उनके शरीर पर सिर्फ़ एक पैंटी बची हुई थी और आंटी चुदाई के तैयार थी, बहुत ही ज़्यादा कामुक नज़र आ रही थीं.
मैं उनको खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था और आंटी भी मेरे हथियार को देख कर खुश हो रही थीं.
मैं आंटी को बहुत देर तक किस करता रहा और उनके चूचों से रस पीता रहा.
मेरा लंड भी उनकी पैंटी के ऊपर से ही उनकी चूत पर दस्तक दे रहा था.
आंटी भी बार बार मुझसे लंड चूत में डालने की कह रही थीं, पर मुझे उनको अभी और तड़पाना था.
मैंने सुन रखा था कि पहली बार में काम जल्दी हो जाता है.
तो मैंने आंटी से कहा कि आज पहले मुँह से कर दो, फिर नीचे डालूँगा.
आंटी बिल्कुल पागल हो चुकी थीं. वो बहुत ही वहशीपने से मेरा लंड चूसने लगीं.
दो मिनट में ही मेरे लंड ने पानी निकाल दिया और आंटी ने लंड को चूस चूस कर साफ़ कर दिया.
लंड झड़ जाने के बाद भी आंटी ने लंड चूसना बंद नहीं किया और मेरे लंड को दोबारा चाट चाट कर खड़ा करने लगीं.
उनकी मेहनत रंग लाई और थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया.
मैंने आंटी की पैंटी निकाल दी और दोनों टांगें अपने हाथों से फैला दीं.
जैसे ही मैंने उनकी चूत पर हाथ लगाया, मुझे उनकी चूत तपती हुई सी लगी.
फिर मैंने जैसे ही चूत को चूमा, आंटी की आह निकल गयी और वो मुझसे रिक्वेस्ट करती हुई बोलीं- विन्नी प्लीज़, अभी ज्यादा न सताओ … जल्दी से अन्दर डाल दो.
मैं आंटी के ऊपर आ गया और उनको किस करते हुए उनकी चूत में डालने लगा.
मैंने आंटी को बताया कि ये मेरा फ़र्स्ट टाइम है.
आंटी ये सुन कर खुश हो गईं कि कुंवारा लंड मिला.
उन्होंने अपने हाथ से मेरे लंड पकड़ कर अपनी चूत पर सैट कर दिया और हल्के से अपनी गांड उठा कर मुझे हरी झंडी दे दी.
मैंने भी धीरे धीरे अपना लंड अन्दर डाल दिया, जिससे आंटी के चेहरे पर थोड़ा सा दर्द और हल्के से मज़े के भाव आ गए.
जैसे ही आंटी अपनी गांड उठाने लगीं, मुझे लगने लगा कि अब सब सही है.
आंटी मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने को कहने लगीं, मैं भी पिल पड़ा.
पांच मिनट के बाद ही उनका शरीर अकड़ गया और वो आह आह करती हुई झड़ गईं.
थोड़ी देर बाद वो फिर से साथ देने लगीं और दस मिनट के बाद हम दोनों साथ में झड़ गए.
उस रात हम दोनों ने कई बार सेक्स किया.
सुबह चार बजे मैं आंटी के घर से निकल कर प्लेग्राउंड में आ गया.
वहां से सुबह पांच बजे घर आकर सो गया.
आंटी की सास आठ दिन बीमार रहीं और मैंने और आंटी ने उन आठों दिन आंटी चुदाई की.
उसके बाद मुझे आंटी ने ख़ुशख़बरी दी कि इस बार उनकी माहवारी नहीं आई.
उसके बाद मैंने उनके मायके में जाकर उनकी और उनकी बहन की चुदाई की. वो सेक्स कहानी बाद में बताऊंगा, पहले आप इस सेक्स कहानी पर कमेंट करके बताएं कि आपको ये कैसी लगी. मैं आशा करता हूँ कि आपको आंटी चुदाई कहानी अच्छी लगी होगी.