अन्तर्वासना: बहिन की चुदाई-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

अन्तर्वासना: बहिन की चुदाई-2

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मेरी बहन की चुदाई कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि की मैंने अपनी बहन को बताया कि उसके आशिक ने मुझे अपना लंड चुसवाया. मेरी बहन को यह बात सामान्य लगी, उसने कहा कि उसके लिए लंड आकर्षण की चीज है.

मैं बड़े ताज्जुब से उसे देखने लगा और वह मुस्करा रही थी… मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी बहन और बड़ी हो गयी हो। अपना अच्छा बुरा मुझसे कहीं बेहतर समझती हो और उसे अपने शरीर को इस्तेमाल करने की भी पूरी आजादी है, जिसकी चिंता में मैं दुबला हुआ जा रहा हूँ।

अब आगे:

खैर… उस बात को कई दिन गुजर गये और यूं ही जनवरी निकल गयी। फिर फरवरी के पहले हफ्ते में ही राकेश ने एक रात मुझे अकेले में धर लिया कि संडे दोपहर मुझे रुबीना को ले के एक जगह आना है, चाहे जो भी बहाना बनाना पड़े।

मतलब यह कोई फरियाद नहीं थी बल्कि हुक्म था जो मुझे मानना ही था। मैंने बहन से बताया तो वह उसे पहले ही बता चुका था। वह समझ सकती थी, मैं समझ सकता था कि क्यों बुलाया था। संडे मतलब दो दिन बाद और इन दो दिनों तक लगातार मेरी आंखों के आगे मेरी नाजुक सी बहन और राकेश का लंबा मोटा लिंग नाचते रहे और मैं मन ही मन बुरी तरह बेचैन होता रहा।

जैसे तैसे संडे भी आ ही गया। संडे को कोचिंग की छुट्टी होती थी और अब्बू भी घर ही होते थे तो कालेज की किसी लड़की से मुलाकात के बहाने मुझे साथ ले कर उनकी ही स्कूटी से घर से निकलना न बहुत मुश्किल था और न ही अम्मी अब्बू के लिये किसी किस्म की शक शुब्हे वाली बात ही थी।

जो पता राकेश ने बताया था वह शहर के किनारे नये बसते मुहल्ले में एक बनते हुए मकान का था जहां एक ही कमरा रिहाइश के काबिल था और वहां दो तख्त मिला कर बिस्तर बना लिया गया था और उसी कमरे में एक प्लास्टिक टेबल सहित चार कुर्सियां मौजूद थीं जिन पर वह अपने जैसे दिखने वाले दो दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था।

हमें देखते ही उनकी आंखों में भेड़िये जैसी चमक आ गयी थी और मैं सहम गया था। राकेश के सिर्फ इशारे पर रुबीना ने नकाब उतार दिया था और वह तीनों इस तरह से उसे निहारने लगे थे जैसे कसाई बकरे का मुआयना कर रहा हो कि कहां कितना गोश्त निकलेगा।

राकेश के संकेत पर वह तख्त पर बैठ गयी और वह खुद भी उठ कर उससे चिपक कर बैठ गया, जबकि वह बाकी दोनों वैसे ही बैठे रहे।

उनकी बातों से अंदाजा हुआ कि वे तीनों ही किसी कॉमन केस में आरोपी थे, जिसकी कल सुनवाई होनी थी और उन्हें इस बात की पूरी आशंका थी कि कल उनकी आजादी खत्म हो सकती थी और वे लंबे नप सकते थे… तो आज मौज मेला कर लेना चाहते थे।

लेकिन राकेश तक तो ठीक था, पर यह दोनों क्यों थे … क्या तीनों ही रुबीना के साथ करने वाले थे? क्या उसे यह स्थिति पता थी? क्योंकि जैसा ताज्जुब वहां राकेश के दोनों साथियों को देख कर मुझे हुआ था, वैसा उसे होता मुझे नहीं लगा था।

उसके दोस्तों, जिनके नाम बाद में पता चले जिंकू और गुड्डा थे… ने इच्छा प्रकट की थी कि मुझे इस बीच टहलने के लिये बाहर भेज दिया जाये लेकिन खुद रुबीना ने ही मना कर दिया। यह मेरे लिये और ताज्जुब की बात थी कि क्या वह इन लोगों के साथ संभोग के दौरान मेरी मौजूदगी में सहज रह पायेगी।

लेकिन इसकी एक बड़ी वजह मेरी समझ में यही आई कि वह राकेश को जानती थी जबकि बाकी दोनों उसके लिये अजनबी थे, जिन्हें ले कर उसके मन में डर रहा होगा और वह भी कोई इस चीज की आदी तो थी नहीं, यह पहली बार ही हो रहा था तो ऐसी स्थिति में शायद मोरल सपोर्ट चाहती हो। वैसे भी जब हमारे बीच यह सब बातें ओपन थी ही तो एक कदम और आगे बढ़ जाने से क्या बिगड़ जाना था।

लेकिन यह मेरे लिये भी कम तकलीफ की बात तो नहीं होती कि मैं अपने सामने उन तीनों से अपनी बहन को चुदते देखता। मैं वहां से हट जाना चाहता था लेकिन मेरी निगाहें रुबीना से मिलीं तो वह याचना करती लगी। शायद भरोसा नहीं कर पा रही थी उन लोगों पर … वैसे भी वह नशे में थे।

उसकी हालत देखते हुए मैं चुपचाप बैठ गया और लाचारी और बेचारगी से उन्हें देखने लगा।

राकेश उसका चेहरा पकड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा था। उसके मुंह से छूटते शराब के भभूके रुबीना को भारी पड़ रहे होंगे लेकिन बर्दाश्त करना ही था। फिर राकेश ने मेरे देखते उसकी जम्पर पकड़ कर ऊपर उठा दी कि उसकी पहनी काली ब्रा बाहर आ गयी।

कुछ पल तो वह एक हाथ से ऊपर से ही दोनों दूध दबाता रहा, फिर उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया और पीठ पर ब्रा के हुक खोलते हुए उसे ऊपर उठा कर रुबीना के दोनों दूध बाहर निकाल लिये और दोनों हाथों से दोनों दूध दबाने लगा।

भले वह मेरी बहन हो, हम एक घर में रहते हों और बचपन में मैंने उसे बिना कपड़े भी देखा हो लेकिन उसके विकसित दूध पहली बार देख रहा था। जैसी वह गोरी चिट्टी थी वैसे ही उसके दूध भी एकदम झक सफेद थे राकेश की भाषा में और उन पर उभरे आधा इंच के चुचुक गुलाबी थे, जिन्हें वह मसल रहा था।

अब मेरी कैफियत अजीब हो रही थी … मतलब कुछ भी हो लेकिन मैं पुरुष ही साबित हो रहा था। मुझे इस हालत में गुस्सा आना चाहिये था लेकिन मैं उस आक्रोश को महसूस ही नहीं कर पा रहा था।

राकेश ने दोनों दूध छोड़ के उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खड़ी करके एकदम सफेद रंग की पैंटी समेत घुटनों तक नीचे खिसका दिया। एकदम से उसकी योनि का ऊपरी हिस्सा अनावृत हो गया जो अस्पष्ट तो था लेकिन ऊपर चार पांच दिन पहले के शेव किये काले बाल साफ देखे जा सकते थे।

फिर उसकी कमर में हाथ डालते राकेश ने उसे बिस्तर में गिरा लिया और उल्टा कर दिया जिससे उसके चांद जैसे उज्ज्वल सफेद चिकने नितंब आंखों के सामने आ गये। राकेश ने अपनी पैंट भी अंडरवियर समेत घुटनों तक सरका दी जिससे उसका बड़ा सा झूलता हुआ लिंग आजाद हो गया। वह अपने लिंग को रुबीना के चूतड़ों की दरार में टिका कर उसे रगड़ने लगा और हाथों से उसकी पीठ और कमर मसलने लगा।

मैं देख सकता था उसका लिंग रुबीना के चूतड़ों को पार कर रहा था और मैं सोच रहा था कि यह जब अंदर डालेगा तो बेचारी का क्या हाल होगा… और यह सोच-सोच कर मेरा हलक सूखने लगा था।

जबकि इस रगड़ाई ने राकेश के दोनों साथियों जिंकू और गुड्डा को भी उकसा दिया था और वे दोनों भी अपनी पतलूनें जांघियों समेत घुटनों तक उतार कर अपने लिंग हाथ से सहलाते हुए बिस्तर पर पहुंच गये थे। उनके लिंग देख कर मुझे राहत हुई कि वे पांच से छः इंच तक के सामान्य लिंग ही थे न कि राकेश जैसे।

अब राकेश हटा तो जिंकू लद गया… वह रुबीना के होंठ चूस रहा था, दूध मसल रहा था, घुंडिया चूस रहा था और उसके चूतड़ों पर अपना लिंग रगड़ रहा था। ऐसा तो खैर मुझे नहीं लगा कि उसका यूँ रगड़ना रुबीना को कहीं से बुरा लग रहा हो और न ही ऐसा लग रहा था जैसे वह इस घर्षण को एंजाय कर रही हो। शायद वह खुद ही कशमकश में होगी अपनी शारीरिक अनुभूतियों को ले कर।

जिंकू हटा और गुड्डा तो और आक्रामक अंदाज में उसे रगड़ने लगा।

इस बीच राकेश ने कपड़ों से पूरी तरह आजादी पा ली थी और नंगा हो गया था। जबकि जिंकू अब अपने कपड़े उतारने लगा था। राकेश ने रुबीना की सलवार भी पैंटी समेत उतार कर मेरे मुंह पर फेंक दी, जैसे कह रहा हो कि बहन के कपड़े हैं तू संभाल। फिर उसका कुर्ता और ब्रेसरी भी उसके शरीर से निकाल कर मेरी तरफ उछाल दी।

गुड्डा अच्छे से रगड़ चुका तो हट कर कपड़े उतारने लगा और जिंकू जो कपड़े उतार चुका था, अब रुबीना के दोनों दूधों को मसल मसल कर पीने लगा था… राकेश घुटनों के बल रुबाना के मुंह के पास पहुंच गया था और एक हाथ से उसके सर को सपोर्ट देते दूसरे हाथ से लिंग को पकड़ कर उसके होंठों पर रगड़ने लगा।

पता नहीं क्यों मुझे लगा कि वह मना कर देगी और राकेश शायद मान भी जाये … लेकिन मुझे यह देख कर निराशा हाथ लगी कि उसने मुंह खोल कर राकेश का लिंग अंदर ले लिया और उसे चूसने लगी। मैंने अपने चूसने से उसकी तुलना की … उसने सही कहा था कि विपरीतलिंगी आकर्षण अलग होता है। उसके चूसने का अंदाज अलग था और जहां मुझे जबरदस्ती जैसा लग रहा था, वहीं वह मजा लेती लग रही थी।

गुड्डा कपड़े उतार चुका तो उसने पैरों की तरफ आ कर रुबीना के दोनों पैर इस तरह फैला दिये कि उसकी योनि पूरी तरह खुल कर सामने आ गयी और इस तरह वह मुझे भी दिख गयी। गोरी, गुदाज, फूली हुई जिसके गहरे रंग के उभरे हुए किनारे जैसे उसे घेरे हुए हों। उसने उंगली और अंगूठे से उसे फैलाया… अंदर ऊपर से नीचे तक सुर्ख गोश्त। जो छेद था भी वह इतना संकुचित होगा कि दूर से देखने पर दिख तक नहीं रहा था।

“उस्ताद, यह तो कच्ची है यार।” वह मजे लेते हुए बोला।

“हां बे पता है… पता है, इसने मेरे लंड के लिये ही झिल्ली बचा कर रखी हुई थी। आज मैं ही सील तोड़ूंगा इसकी।” राकेश अपना लिंग चुसाता हुआ बोला।

गुड्डा अपना मुंह उसकी योनि तक ले जा कर सूंघने लगा और अच्छे से सूंघने के बाद अपनी जीभ से उसकी योनि के उभरे गहरे किनारों को छेड़ने चुभलाने लगा। जिंकू ऊपर उसके वक्षों का बुरी तरह मर्दन किये दे रहा था और राकेश अपने लिंग को चुसाते हुए एकदम कठोर किये ले रहा था।

फिर वे एकसाथ तीनों मिल कर उसे रगड़ने लगे। राकेश ने भी लिंग निकाल लिया और उसके होंठ चूसने लगा। तीनों ही उसे बुरी तरह रगड़ रहे थे, चाट रहे थे और चूस रहे थे… उसके होंठ, वक्ष, चुचुक, योनि और नितंब कुछ भी महरूम न रहा और बार-बार तीनों में से कोई न कोई अपना लिंग उसके मुंह में दे देता, जिसे वह चपड़-चपड़ कर चूसने लगती।

अब देख के लग रहा था कि शरीर को मिलते घर्षण का आनंद अब उसे उत्तेजित कर चुका था और वह सिर्फ एक चीज को छोड़ कर बाकी सब भूल गयी थी कि वह स्त्री थी और कुछ पुरुष उसे यूँ शारीरिक सुख दे रहे थे, जो कि उसका हक था।

कहानी जारी रहेगी.
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