यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
शरीर में थोड़ी ताकत आने के बाद मैंने सायरा को एक बार फिर से अपनी बांहों में कसकर जकड़ लिया, ताकि मुझे उसके गर्म जिस्म से गर्मी मिल सके। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिपकी रही, लेकिन फिर वो कसमसाने लगी और अपने आपको मुझसे छुड़ाने की कोशिश करती रही.
लेकिन वो जितना मुझसे अपने को छुड़ाती, उतना ही मैं सायरा को जकड़ लेता।
मेरी बहू कसमसाते हुए बोली- पापा जी, प्लीज अब छोड़ दीजिए ना!
“क्या हुआ? पसंद नहीं आ रहा है क्या?”
“नहीं यह बात नहीं है, लेकिन …”
“लेकिन क्या?”
“जी पेशाब आ रही है।”
बस इतना सुनना था कि मैंने सायरा को और जकड़ लिया।
“पापा, प्लीज छोड़ दीजिए … नहीं तो बिस्तर पर ही निकल जायेगी।”
मैंने सायरा को छोड़ दिया, वो चादर से अपने नंगे जिस्म को ढकने लगी, मैंने तुरन्त चादर पकड़ ली और बोला- इसे क्यों ओढ़ रही हो?
वो अपने पैरों को चिपका कर उछलते हुए बोली- शर्म आ रही है।
“अब क्या शर्माना … अब हम तुम पति-पत्नी भी हैं. और तुमको पेशाब करने जाना है तो नंगी ही जाओ!” कहकर मैंने चादर खींच ली।
वो चादर छोड़ कर लंगड़ाती हुए बाथरूम की तरफ भागी। भागते समय सायरा के कूल्हे ऊपर नीचे हो रहे थे।
काफी देर बाद सायरा पेशाब करके बाहर आयी तो मैंने पूछा- अन्दर देर क्यों लगा दी?
तो वो बोली- पापा, पेशाब करते समय मुझे जलन महसूस हुयी तो मैंने देखा तो पेशाब के साथ-साथ हल्का-हल्का खून भी आ रहा था.
वो अपनी ताजी चुदी चूत की तरफ इशारा करते हुए बोली- मैं बस इसे साफ कर रही थी।
अपनी बात खत्म करने के बाद सायरा मेरे पास आकर मेरे सीने में मुक्के बरसाते हुए बोली- पापा, आप बड़े वो हैं।
मैंने उसके हाथ पकड़कर चिपका लिया और बोला- अगर मैं बड़ा वो नहीं होता तो तुमको मजा नहीं आता।
मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी और फिर बोली- पापा, अन्दर अब भी बड़ी जलन हो रही है।
मुझे इसका अंदाजा पहले से ही था, मैंने क्रीम लाकर रखी हुई थी, उसे निकाली और उंगली में लेकर सायरा की चूत के अन्दर अच्छे से लगा दिया।
यह सब करने के बाद मैंने सायरा से पूछा- कैसा लगा बेटी?
“पापा बहुत अच्छा लगा, मैं जिस उम्मीद से आपके साथ आयी थी, वो पूरी हुयी। और आपने तो कमाल ही कर दिया. मैं आपको बताऊं … मेरा पानी दो बार निकल चुका था लेकिन आप तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे।”
“चलो अच्छा है. अब हमारी सुहागरात हो चुकी है, इसलिये आज के बाद जब भी तुम चाहोगी, मैं तुम्हें सुख दे दिया करूँगा।”
“थैक्यूं पापा।”
“अब ये बताओ कि सुहागरात के समय सोनू ने क्या किया था?”
“कुछ नहीं, कमरे में आने के तुरन्त बाद उसने जल्दी-जल्दी मेरे और अपने कपड़े उतारे और मुझे यहां वहां चूमने चाटने लगा, इससे पहले मैं कुछ समझ पाती, मुझे अपने नीचे कुछ गीला लगा, मेरा ध्यान जब तक वहां से हटता, तब तक सोनू बगल में लेटकर सो चुका था, मैं अपनी उंगलियों के बीच सोनू के पानी को मल रही थी और सोते हुए सोनू को देख रही थी, पूरी रात मेरी रोते रोते बीती।
“चलो कोई बात नहीं, आज भी तुम्हारी पूरी रात रोते रोते ही बीतेगी लेकिन तुम्हें उसका सुखद एहसास होगा।”
“अच्छा जरा नीचे उतरकर कमरे की पूरी लाईट जला कर मेरे पास आओ।”
मेरी बहू लाईट जलाकर मेरे पास आयी, हम दोनों की नजर खून से सनी हुई चादर पर पड़ी तो सायरा ने शर्माकर अपनी नजरें झुका ली।
मैं उसके पास खड़ा होकर उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला- चादर पर यह खून बता रहा है कि तुम्हारी सील टूट गयी है।
तभी सायरा मेरे लंड की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली- पापा जी, मेरा खून इस पर भी लग गया है।
“कोई बात नहीं।” कहकर मैं बाथरूम में घुसा और अपने लंड को साफ किया.
इधर सायरा ने भी पलंग का चादर बदल कर, उस चादर को लाकर बाल्टी में डालकर उसे गीला कर दिया।
उसके बाद मैं और सायरा वापिस पलंग पर आकर बैठ गये।
थोड़ी देर बाद मैंने सायरा को बिस्तर पर ही खड़े होने के लिये कहा. मेरी बात को मानते हुए सायरा बिस्तर पर खड़ी हो गयी। सायरा का जिस्म दूध जैसा था। जांघ के पास एक तिल था।
मैं सायरा को लगातार घूरे जा रहा था, मुझे इस तरह घूरते देखकर बोली- पापा, आप मुझे इस तरह क्यों देख रहे है?
“कुछ खास नहीं, तुम्हारे दूध जैसे उजले जिस्म को देख रहा हूं। ऊपर वाले ने तुम्हारे जिस्म को बहुत ही फुरसत से ढाला है।”
“नहीं पापा, अभी अभी आपकी वजह से मेरा जिस्म खूबसूरत हुआ है, नहीं तो मुझे मेरा यह जिस्म बोझ ही लग रहा था।” सायरा के चेहरे पर सकून के साथ-साथ एक अलग सी खुशी थी।
एक बार फिर मैंने सायरा के हाथों को पकड़कर और उसकी नाभि के पास एक हल्का सा चुंबन दिया और बोला- मुझे माफ करना सायरा जो मेरे वजह से तुम्हें सोनू जैसा पति मिला।
“आप जैसा ससुर भी तो मिला जिसने मेरे सभी दुखों को एक बार में ही दूर कर दिया।” इतना कहते ही सायरा मेरी गोदी में बैठ गयी और एक बार फिर मेरे हाथ धीरे-धीरे उसकी चूत पर चलने लगे.
मैं बार-बार उसकी गर्दन को चूमता और कानों के चबा लेता या फिर जीभ से गीली करता।
मेरे द्वारा उसकी चूत में इस तरह सहलाने के कारण सायरा को भी अपनी टांगों को फैलाने में मजबूर कर दिया। मेरे हाथ अभी तक सायरा के चूत को ऊपर ही ऊपर सहला रहे थे, सायरा के टांगों को फैलाने के कारण अब उंगली भी अन्दर जाने लगी।
सायरा ने मेरे दूसरे हाथ को पकड़ा और अपने चूची पर रख दी। अब मेरे दोनों हाथ व्यस्त हो चुके थे। एक हाथ चूत की सेवा कर रहा था तो दूसरा हाथ उसकी चूची की! इसके अलावा मेरे होंठ और दांत उसकी गर्दन और कान की सेवा कर रहे थे।
सायरा ने भी मेरे हाथों को पकड़ रखा था।
कुछ देर बाद सायरा बोली- पापा, एक बार फिर खुजली शुरू हो चुकी है।
मैंने सायरा को लेटाया और लंड चूत के अन्दर पेवस्त कर दिया। हालाँकि इस बार भी थोड़ा ताकत लगानी पड़ी, पर पहले से अराम से मेरा लौड़ा अन्दर जा चुका था।
सायरा ने अपनी टांगें और चौड़ी कर ली। मैं पोजिशन लेकर चूत चोद रहा था और सायरा का जिस्म हिल रहा था।
इस बार मैं सायरा को और मजा देना चाहता था, इसलिये मैंने अपने लंड को बाहर निकाला, सायरा की टांगें हवा में उठायी और फिर लंड को चूत के मुहाने में रख कर अन्दर डाला लेकिन इस पोजिशन से उसकी चूत थोड़ी और टाईट हो गयी और सायरा को एक बार फिर दर्द का अहसास हुआ।
इस पोजिशन की चुदाई से मुझे भी बहुत मजा आ रहा था लेकिन एक बार फिर मैं थकने लगा। इस बार मैंने नीचे होकर सायरा को अपने ऊपर ले लिया और लंड को सायरा की चूत के अन्दर पेल दिया।
थोड़ी देर तक मैं अपनी कमर को उठा-उठाकर सायरा को चोद रहा था, फिर सायरा खुद ही वो सीधी होकर उछालें मार रही थी।
काफी देर हो चुकी थी और अब मेरा निकलने वाला था. इधर मेरी बहू मेरे लंड पर बैठ कर लगातार उछाले मारे जा रही थी, बीच-बीच में अपनी कमर को गोल-गोल घुमाते हुए मुझे चोद रही थी।
तभी सायरा चीखी- पापा, मेरा दूसरी बार निकलने वाला है!
“मुझे चोदती रहो सायरा बेटी … मेरा लंड भी पिचकारी छोड़ने वाला है।”
मेरे कहते ही दूसरे पल मेरी पिचकारी छुट गयी और साथ ही सायरा भी मेरे ऊपर धड़ाम से गिर पड़ी। फिर अपनी सांसों पर काबू पाने के बाद मुझसे अलग हुई।
“सायरा, इस बार भी मजा आया न?”
“हाँ पापा, आपने इस बार भी मेरी भूख को शांत कर दिया।”
थोड़ी देर तक तो हम दोनों के बीच खामोशी रही।
फिर कुछ देर बाद मैं बोला- सायरा!
“हाँ पापा?”
“सारी मर्यादा हम दोनों के बीच की टूट चुकी है।”
“हाँ पापा! लेकिन पापा, जो भी मर्यादा, सीमाएँ हैं वो हमारे और आपके जिस्म जब बिस्तर पर मिलेंगे तब ही टूटेंगी, बाकी कभी भी आपकी इस बहू बेटी से आपको कभी भी कोई शिकायत नहीं होगी।”
मुझे नींद आने लगी थी, मैंने ऊंघते हुए कहा- सायरा बेटी, मुझे नींद आ रही है।
“पापा, आप सो जाइए!”
मैंने करवट बदली और अपनी आंखें बन्द कर ली। सायरा ने भी तुरन्त करवट बदली और अपने चूतड़ों को मेरी जांघों के बीच फंसा कर मेरे हाथ को अपने मुलायम उरोज पर रख दिया।
अभी मैंने अपनी आँखें सोने के लिये बन्द की थी, वो सायरा की गांड की गर्मी और उसके नर्म गर्म चूची की वजह से खुल गयी।
फिर भी मैंने अपनी आँखें सोने के लिये जबरदस्ती बन्द की, लेकिन अब आँखों से एक बार फिर नींद गायब हो गयी।
किसी तरह मैंने थोड़ा वक्त बिताया लेकिन जब मैं हार गया तो खुद को सायरा से अलग किया और सीधा होकर लेट कर अपनी आँखें बन्द कर ली. सायरा के गर्म जिस्म का अहसास अभी भी मेरे दिमाग में चल रहा था।
तो दोस्तो, मेरी कहानी कैसी लग रही है? आप सभी के मेल के इंतजार में आपका अपना शरद सक्सेना।
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कहानी जारी रहेगी.