यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मेरे इशारे को समझते हुए वो मेरी बांहों की कैद में आ गयी और अपने दोनों पैरों को फैलाते हुए बैठने लगी.
“अहं अहं … अभी मत बैठो, ऐसे ही खड़ी रहो!” कहते हुए मैंने उसके तौलिये के अन्दर हाथ डाला और चूत के अन्दर उंगली डाल दी।
मेरी बहू की चूत गीली हो चुकी थी।
मैंने अपनी उंगली बाहर निकाली और सायरा को दिखाते हुए कहा- तुमने तो काफी पानी छोड़ दिया।
“धत्त!” शर्माते हुए वो बोली।
मैंने इस बीच दो-तीन बार उसकी चूत के पानी से अपने लंड की मालिश की और फिर सायरा को बैठने के लिये बोला।
सायरा जब बैठने को हुई तो एक हाथ से उसकी कमर को पकड़कर अपनी तरफ हल्का सा खींचा, इस तरह सायरा के बैठते ही मेरा लंड उसकी गीली चूत के अन्दर चला गया।
थोड़ा बनावटी गुस्से के साथ बोली- पापा, आपने मजा खराब कर दिया।
“क्या हुआ मेरी प्यारी सायरा?”
“पापा, आप तो सीधे ही शुरू हो गये।”
मैंने अपने हाथ को बाहर किया और हाथ को देखते हुए सायरा से कहा- अपने ससुर पर भरोसा रखो, जब मजा न मिले तो कहना!
कहते हुए उसके पानी से गीले हो चुके अपनी उंगलियों को सूंघने लगा और फिर सायरा को दिखाते हुए उन उंगलियों को चाट कर साफ कर दिया।
फिर सायरा की कमर को पकड़ते हुए कहा- आओ, जीभ लड़ायें!
कह कर मैंने अपनी जीभ बाहर की और सायरा ने भी अपनी जीभ बाहर की. दोनों एक-दूसरे की जीभ को चाटने की कोशिश कर रहे थे और बीच-बीच में मैं सायरा की जीभ को मुंह के अन्दर ले लेता तो सायरा मेरी जीभ को मुंह के अन्दर ले लेती।
पता नहीं कब जीभ लड़ाते-लड़ाते दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे, पता भी नहीं चला। दोनों एक दूसरे के अन्दर समा जाने की होड़ लगाने लगे।
मैं उसकी चूचियों को कस-कस कर मल रहा था. तो सायरा भी पीछे नहीं रहने वाली थी, वो भी मेरे निप्पल को मसल रही थी और इसी मदहोशी में सायरा मेरे निप्पल को दांतों से काटती तो कभी उसको पीने की कोशिश करती.
इस तरह करते-करते वो कब मेरे ऊपर से हट गयी और कब हम दोनों का तौलिया भी हमारे जिस्म से अलग हो चुका था, पता ही नहीं चला।
मजे की बात तो यह थी कि दोनों तौलिये भी एक दूसरे के ऊपर ही थे तो मेरी हल्की सी हँसी छूट गयी।
इस बीच सायरा मेरे लंड से खेलने लगी, कभी वो मेरे लंड को मुंह के अन्दर तक भर लेती, तो कभी सुपारे पर अपनी जीभ चलाती, तो मेरे अंडों को कस-कस कर मसल देती. मेरी जाँघों पर अपनी जीभ चलाती, वो इतनी मदहोश हो चुकी थी, कि उसे मालूम ही नहीं चल रहा था कि वो क्या कर रही है.
इसी मदहोशी के आलम में उसने मेरे अण्डों को गीला करते-करते उसने जीभ से मेरी गुदा (गांड) को गीला करना शुरू कर दिया. जब मुझे भी मेरी गांड में जीभ चलने अहसास हुआ तो मैं चिहुंका, मेरे चिहुंकने से मेरी नजरो से बचती हुई सायरा फिर से मेरे लंड और अण्डों के साथ खेलने लगी. नई उमर की लड़की थी, सब कुछ जानती थी, और शायद इस पल में वो कोई मुरव्वत नहीं बरतना चाहती थी।
मैंने भी उसकी उलझन न बढ़ाते हुए अपनी आँखें बन्द रखी और जो वो सुख मुझे इतने वर्षों के बाद दे रही थी, उसी अहसास में मैं डुबा हुआ था।
सायरा काफी देर तक मेरे जिस्म से खेलती रही और अब मेरी बारी थी. मैंने सायरा की बांहों को पकड़ते हुए उसे कुर्सी पर बैठाया, उसकी टांगों को फैलाया और उसकी चूत के गुलाबी मुहाने पर अपनी जीभ चलाने लगा.
शायद काफी देर से वो इस बात को चाह रही थी कि मैं भी उसकी चूत चाटूं. जैसे ही मेरी जीभ उसकी चूत के मुहाने से टच हुई, उसके मुख से ‘शाआआअ’ की आवाज आयी और फिर जैसे-जैसे मैं उसकी चूत को चाटता, वैसे-वैसे वो लम्बी-लम्बी सांसें लेती।
मैं उसकी भगनासा को अपने दांतों से काटता, उसकी चूची को बारी-बारी से मसलता, वो आह-ओह करती जाती।
मैं धीरे-धीरे होश खोते हुए मदहोशी के आलम में जकड़े जा रहा था। मैं उसकी चूत के अन्दर फांकों के बीच अपनी जीभ घुसेड़ देता तो कभी उसकी फांकों पर अपने दांत कचकचा कर चला देता. या फिर अपनी उंगली उसकी चूत के अन्दर डाल कर चलाता और उसकी चूत का जो रस मेरी उंगली में लगता, उसको मैं कुल्फी समझ कर चाट जाता. उसके मजे को और बढ़ाते हुए बीच-बीच में उसकी गांड के मुहाने पर अपनी जीभ चला देता या फिर उसके भगान्कुर को अपने मुंह के अन्दर लेकर आईसक्रीम की तरह चूस रहा था.
सायरा ‘ओह पापाजी, ओह पापाजी’ कहती जाती।
मेरा लंड भी अब फड़फड़ाने लगा था.
मैं चूत चाटना छोड़ खड़ा हुआ और सायरा की टांगों को पकड़कर उसकी कमर को अपनी उंचाई तक लाया और लंड को उसकी चूत के अन्दर डाल दिया. सायरा ने गिरने के डर के मारे कुर्सी पकड़ ली.
उसके बाद ससुर के लंड ने बहू की चूत के अन्दर अपना जलवा दिखाना शुरू किया। थप थप की आवाज और सायरा के उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाज से कमरा गूंजने लगा।
थोड़ा सा खुलापन हम दोनों के बीच हो चुका था।
कुछ देर बाद मैंने सायरा को गोद में लेकर धक्का लगाने लगा, मैं धीरे-धीरे मजे का डोज बढ़ाने लगा।
“पापा … बहुत मजा आ रहा है.” सायरा बोली।
मेरा निकलने वाला था, सायरा को उसी पोजिशन में लेकर कमरे में आया और पलंग पर लिटाते हुए उसको चोदने लगा।
आठ-दस धक्कों के बाद मेरा निकलने लगा तो मैंने लंड को बाहर निकाला और उसकी चूत के ऊपर ही सायरा माल गिरा दिया और उसके बगल में पसर गया।
सायरा ने अपनी उंगलियों के बीच मेरे वीर्य को कैद किया और मलने लगी. फिर बहू ने मेरी तरफ देखा, उठी और बाथरूम के अन्दर घुस गयी।
उसके अन्दर जाते मैं भी दीवार की आड़ लेते हुए अर्ध खुले दरवाजे की से सायरा को देखने लगा जो अपनी चूत के ऊपर पड़ी मेरी मलाई को अपनी उंगलियों में लेती और फिर अपनी जीभ से टच करती.
दो-तीन बार उसने ऐसा ही किया और वो चूत पर लगी मेरी मलाई को साफ कर गयी।
फिर सायरा ने अपनी गीली पैन्टी को एक बार फिर उठाया और बाहर आयी.
इससे पहले वो बाहर आती, मैं जल्दी से पलंग पर आकर लेट गया। मैं इस बात को समझ चुका था कि वो अभी इस तरह मेरे सामने नहीं करना चाहती. शायद सोच रही हो कि मैं बुरा न मान जाऊँ.
और मैं इस उपापोह में था कि सायरा न जाने मेरे बारे में क्या सोचेगी।
पर ठीक था … सायरा को उसमें मजा था और मुझे इसमें मजा था।
इसी बीच सायरा ने उस गीली पैन्टी से मेरे लंड को साफ किया और मुझे झकझोरते हुए बोली- पापा, क्या सोचने लगे? कुछ नही। आपको कुछ चाहिये तो नहीं?
“नहीं बेटा!”
“तो मैं कपड़े धोने जा रही हूं।”
“हाँ हाँ … तुम जाओ।”
मैं बिस्तर पर लेटकर सोचने लगा कि क्या मेरी किस्मत है, जिससे मुझे दूर रहना चाहिये मैं उसी के जिस्म से खेल रहा हूं।
पर जो होनी थी, वो हो रही थी।
एक बार फिर मैंने बाथरूम में झांककर देखा तो नंगी बहू सायरा बड़ी तल्लीनता के साथ कपड़े धो रही थी।
इधर बीच में क्या करूँ?
तभी मेरे दिमाग में आया कि सोनू की मम्मी मेरे सामने कपड़े पहनती थी और मैं उसे बड़े ही शौक के साथ कपड़े पहनते हुए देखता था। उसके इस संसार से जाने के बाद मैंने उस शौक को पूरा नहीं किया.
जैसे ही मेरे दिमाग में यह ख्याल आया, मैं उठा और सायरा के बेड रूम से उसके लिये उसकी साड़ी-ब्लाउज के साथ मैचिंग ब्रा-पैन्टी लाकर अपने बेड पर रख दिये और वही आराम कुर्सी पर आंख मूंद कर बैठ गया।
थोड़ी देर के बाद सायरा की पायल की झंकार मेरे कानों में पड़ने से मेरी आँखें खुल गयी.
नंगी सायरा ने अपने कपड़े मेरे बेड पर देखे तो वो ठिठक गयी और मुझे देखने लगी।
उसके मन के संशय को मिटाने के लिये मैं बोला- मैं ही लाया हूं।
हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसने बेड पर ही पड़े मेरे तौलिये को लिया और अपने जिस्म को अच्छे से पौंछने लगी. उसके बाद बड़ी इत्मीनान के साथ उसने अपने कपड़े पहनने शुरू किया और फिर बाल्टी उठाकर कपड़े सुखाने के लिये बारजे पर आ गयी।
फिर रसोई में आकर दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी।
इस बीच मैं भी बाहर टहलने के लिये चला गया क्योंकि मैं घर में रहता तो उसको देख-देख कर या तो लंड को मरोड़ता या फिर उसको काम से रोककर चुदाई करता. क्योंकि नई और गर्म चूत जब तक सामने रहती है, लंड महराज शांत से नहीं बैठने देते।
पर क्या करूँ … मन तो बाहर भी नहीं लग रहा था. अगर कामकाजी होता तो नौकरी कर रहा होता या फिर पूरी फैमली होती तो फिर अपने में कंट्रोल करता.
लेकिन इन दोनों चीज की कमी के वजह से मुझे नई उमर की फसल को काटने का मौका मिला।
मैं फिर जल्दी से घर आया, सीधा रसोई में गया और सायरा को पकड़ लिया।
“क्या हुआ पापा जी, मन नहीं लग रहा है?”
“हां, मन तो नहीं लग रहा है।”
वो हंसते हुए बोली- हाँ पापा, आपका दोस्त मेरे पीछे दस्तक देकर बता रहा है कि अभी उसका और आपका मन भरा नहीं है।
“बेटी, क्या बताऊं, कामकाजी होता तो काम पर होता तो तुम्हें परेशान नहीं करता लेकिन अब इस उम्र में कोई काम तो है नहीं … तो मेरे लंड महाराज उत्पात मचाये हुए हैं.”
“क्या पापा आप भी?”
“सही कह रहा हूं, इसमें गलती इस साले लंड की है जो मुझे बैचेन किये जा रहा है।”
सायरा मेरी तरफ घूमते हुए बोली- पापा, आप अपने उत्पाती लंड को कभी भी शांत कर सकते हैं. पर अगर आप खाना नहीं खायेंगे और आपका लंड हर बार अपना माल निकालने के बाद शांत होगा, इसलिये पहले खाना खा लीजिये, फिर अपने उत्पाती लंड के उत्पात को शांत कीजिए।
“ठीक है, तो चलो मेरी प्यारी बहू, पहले खाना खा ही लेते हैं।”
“ये लो 10 रूपये!”
“ये क्यों?”
“तुमने अपनी मधुर वाणी से मेरे लंड का नाम लिया, उसी का इनाम है.”
“ये तो मैं तब बोली, जब आप कई बार लंड लंड बोल चुके थे. तो आपको खुश करने के लिये बोल दिया. पर आप मत सोचना कि मैं आगे बोलूंगी।”
“अरे बेटा, तुम्हारे मुंह से सुनना अच्छा लग रहा है, तुम कुछ भी बोलो, मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।”
मेरे शब्द सुनकर सायरा हँस दी।
फिर दोनों ने मिलकर खाना खाया। एक बार फिर अच्छी बहू की तरह उसने बर्तन समेटे और किचन में जाकर मुझे तड़पाने के लिये (मैं खुद समझ रहा हूं वो ऐसा कर रही थी कि नहीं मैं नहीं बता सकता) अपना पल्लू और साड़ी को चढ़ाकर कमर में खोंस दिया।
मैं कुछ देर तक तो ऐसे ही देखता रहा, पर जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं भी किचन में घुस गया और हल्की सी चिकोटी उसकी कमर पर काट ली।
“उफ्फ पापाजी, क्या कर रहे हैं।” घूमते ही जैसे सायरा ने यह शब्द बोले, मैंने तुरन्त ही उसके होंठों पर एक किस कर दिया।
“पापा जी, आप भी ना!”
अरे पगली … इस लुक में तुम इतनी सेक्सी लग रही हो कि मेरी नीयत डोल गयी।”
“चलिये जब आपने मेरी तारीफ कर ही दी है तो थोड़ा इनाम तो आपका भी बनता है।” कहते हुए मुझसे चिपक गयी. मेरी कमर के चारों ओर अपनी बांहों का घेरा बना दिया और मेरे होंठ चूमने के लिये अपने होंठों को गोल कर लिया.
मैंने अपनी बहू के गोल होंठ को चूमा.
और फिर वो मुझसे अलग हो गयी और बोली- पापा, अब आप जाओ, नहीं तो मैं काम नहीं कर पाऊँगी और आपका इंतजार लम्बा होता जायेगा।
“ठीक है, काम खत्म करके कमरे में आ जाना।”
सर हिला कर सायरा ने अपनी सहमति दी।
मैं अपने कमरे में आकर आँखें मूंद कर सायरा का इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद मुझे मेरे होंठों पर चुंबन का अहसास हुआ. बस फिर क्या था, मैंने सायरा को अपनी बांहों में भरा और अपने ऊपर गिराते हुए पलटी मारी और उसके ऊपर आ गया और उसके पूरे चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर दी।
जब मैं अच्छे से उसके चेहरे को चूम चुका तो बोला- जो तुमने मुझे इंतजार कराकर तड़पाया है, ये उसकी सजा है।
“पापाजी, तब तो मैं रोज आपको तड़पाऊंगी, आपकी सजा मेरा ईनाम होगा।”
अच्छा, कहते हुए मैंने उसकी नाक काट ली।
नाक को सहलाते हुए वो बोली- पापा जी, आप मम्मी जी को भी ऐसे ही सजा देते होंगे।
“नहीं बेटा, भरा पूरा परिवार था, मौका ही कहां लगता था। रात को जब सब सो जाते थे, उसी वक्त थोड़ा बहुत हो जाये तो हो जाये … नहीं तो जल्दी से चुदाई करके फुरसत हो जाता था।”
“आप झूठ बोल रहे हैं, जिस तरह आप मेरे को प्यार कर रहे है, ऐसा तो नहीं लगता कि आप इतनी जल्दी चोदने के मूड में आ जाते हो।”
मैंने उसकी बात काटते हुए कहा- तुम चाहे जो सोचो. लेकिन जो मैं करने जा रहा हूं वो तो मैं करके ही रहूंगा.
कहते हुए उसकी बलाउज के बीच फंसी चूचियों की घाटी के दरार पर अपनी जीभ चलाने लगा।
अभी इतना ही कर पाया था कि सायरा बोली- पापा जी मान गये आपको! कोई औरत अगर आपके नीचे आ जाये तो बार-बार आना चाहे।
“नहीं बेटा, मेरी जिंदगी में पहली औरत तुम्हारी सास थी और दूसरी तुम हो, वो भी मजबूरी में!”
कहते हुए मैंने उसकी ब्लाउज का ऊपर का हुक खोला, घाटी थोड़ी और खुलकर सामने आ गयी, अब घाटी और गहरी हो गयी, मैंने अपनी जीभ उसकी घाटी के बीच फंसा दी, फिर एक हुक खोला और 4-5 राउण्ड उसकी घाटी के बीच में अपनी जीभ चलाता रहा।
पर अब उसकी ब्रा बीच में आ रही थी। मैंने उसकी ब्लाउज को पूरा खोल दिया और उसकी काली रंग की ब्रा के ऊपर से ही उसके मम्मों को मुंह में भरने लगा और दबाने लगा।
मेरी बढ़ती उत्तेजना से उसके चूचे मुझसे बहुत-बहुत तेज दब रहे थे, थोड़ी देर तक सायरा ने बर्दाश्त किया फिर बोली- पापा जी, दर्द हो रहा है, थोड़ा धीरे-धीरे दबाओ।
उसकी बात को सुनकर मैंने अपना हाथ उसके उरोजों से हटाया और ब्रा का भी हुक खोलकर ब्लाउज और ब्रा को उससे अलग किया और फिर सायरा की दोनों हथेलियों को अपनी हथेली में फंसाकर उसके पीछे की तरफ ले गया और अपना वजन सायरा की जांघ के ऊपर देकर सायरा के होंठों को चूसते हुए उसकी कान और गर्दन पर चुम्मे की बरसात कर दी।
अब बारी थी उसके कांख की, जैसे ही मैंने उसकी कांख पर अपनी जीभ फेरना शुरू किया, बोबोलने लगी- उईईई पापाजी, बहुत गुदगुदी हो रही है।
उसकी बातों को अनसुना करते हुए मैं उसकी कांख पर जीभ चलाता रहा.
फिर मैं उसके तन चुके निप्पल को बारी-बारी मुंह में लेकर चूसता या सायरा के चूची का हिस्सा जितना मेरे मुंह में भर सकता, मैं उतना ही भर लेता. ऐसे करते-करते मैं उसकी नाभि पर अपनी जीभ चलाता जा रहा था और उसकी पनिया चुकी चूत को हाथ से मसले जा रहा था.
सायरा कसमसा जा रही थी; उसने खुद ही अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया था, बाकी उतारने का काम मैंने कर दिया और उसकी पनियाई चूत में मुंह लगा दिया।
“उफ्फ पापा, मुझे भी तो कुछ करने दीजिये।”
मैंने उसके भाव को समझते हुए 69 की पोजिशन में आते हुए मेरा लंड चूसने का ऑफर दिया। मैं उसकी चूत चाट रहा था और वो मेरे लंड को चूसते हुए मेरे अण्डों से खेल रही थी।
थोड़ी देर तक यह राउन्ड चला और फिर मैंने उसकी चूत को चोदना शुरू किया। सायरा भी अपनी कमर उठा-उठा कर मेरा साथ दे रही थी। कभी वो मेरे ऊपर होती, कभी मैं उसके ऊपर होते हुए चुदाई कर रहे थे।
फिर लंड घिसते-घिसते अपने अन्तिम पड़ाव में आ गया, मैंने एक बार फिर अपना माल उसकी चूत के ऊपर निकाला और उससे अलग हो गया।
उसके बाद सायरा उठी और बाथरूम में चली गयी.
एक बार फिर सायरा ने मेरी मलाई चाटकर अपनी चूत साफ की और फिर गीले कपड़े से मेरे लंड को।
उसके बाद वो मुझसे चिपक कर सो गयी.
शाम को काफी देर में नींद खुली, सोनू के आने का टाईम हो रहा था, हम दोनों ने अपने-अपने को अच्छे से तैयार किया.
उसके बाद सायरा रात के खाने की तैयारी करने लगी लेकिन इस समय वो पूरी तरह से एक संस्कारी बहू की तरह पेश आ रही थी।
कोई आधे घंटे के बाद सोनू भी आ गया. काफी थका लग रहा था, सायरा ने उसकी खूब आवभगत की.
फिर हम तीनों ने साथ खाना खाया, सोनू थका होने के कारण जल्दी कमरे में चला गया. इधर सायरा ने सारे काम को समेटा और मेरे को नाईट किस करने के बाद अपने बेड रूम में चली गयी।
अब हमारा यही रूटीन हो चुका था। दिन में सायरा मेरे साथ दो राउण्ड चुदाई का करती और रात में सोनू का ध्यान रखती. उन दोनों के बीच कभी किसी बात की तल्खी नहीं देखी.
मैं सायरा की तारीफ़ करूंगा कि उसने किस तरह हम दोनों को एडजस्ट किया था।
फिर एक दौर आया, जब सायरा ने माँ बनने की इच्छा जतायी और अपनी इच्छा के अनुसार मेरे बीज को अपने अन्दर लेकर मातृ्त्व का आनन्द लिया.
बच्चा होने के बाद हम दोनों ने सहमति से एक-दूसरे से दूरी बना ली और हँसी खुशी रहने लगे।
लेकिन जब मेरा पोता स्कूल जाने लगा तो सायरा की वासना पुनः सर उठाने लगी और मुझे उसकी मदद करनी पड़ी.
तो दोस्तो, मेरी कहानी कैसी लगी, आप सभी के मेल के इंतजार में आपका अपना शरद सक्सेना।
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