मेरी बंगाली सेक्स कहानी में पढ़ें कि कैसे मैंने एक बंगालन को चुदाई के लिए पटाया …
नमस्ते दोस्तों, मेरा नाम राजेश्वर शर्मा है. मेरी सेक्स स्टोरीज को आप ‘राजू शर्मा जी’ के नाम से पढ़ते आये हैं.
मेरी पिछली कहानी थी: माँ को चोद कर बेटी की फैंटसी पूरी की माँ चुदवाने की बेटी की फैंटसी-1
पेश है सच्ची घटना पर आधारित मेरी एक और नई बंगाली सेक्स कहानी.
ये घटना कुछ समय पहले की है. मैं एक सोसाइटी के 3 बेडरूम फ्लैट के एक कमरे में रहता था. फ्लैट का मालिक विदेश में रहता था और उसने मुझे ही फ्लैट की देख रेख करने और बाकी के दो कमरों और ड्राइंगरूम को किराए पर देने हेतु पावर ऑफ आटोरनी देकर इंचार्ज बना रखा था.
मैं उन दिनों एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम करता था. जब भी कोई फ्लैट को खाली करता था तो मैं दोबारा उस पर टू-लेट (किराये के लिए खाली) लिख कर लगा देता था. मैं अन्य किसी को भी उस फ्लैट को उस फ्लैट के मालिक द्वारा बताए गए किराये पर चढ़ा देता था.
अभी जो लोग फ्लैट खाली करके गए थे वे दो बुजुर्ग पति पत्नी थे, जो रिटायरमेंट के बाद अपने शहर चले गए थे. किराया हर महीने फ्लैट के मालिक के खाते में जमा करवा देते थे.
दो चार लोग किराये पर लेने आये परंतु वे मुझे जमे नहीं. जिस सोसाइटी में मैं रहता था वह उस शहर की प्राइम सोसाइटी थी और वहाँ पर सभी 3 बीएचके के फ्लैट थे जिनका किराया 18000 से 20000 तक था.
दो कमरे वाला सेट तो कोई था ही नहीं, इसलिए जिसको भी लेना होता था वह तीन कमरों का ही लेता था और 18-20 हज़ार रुपये देता था, चाहे उसे तीन कमरों की जरूरत हो या नहीं.
एक संडे के रोज मैं किसी काम से नीचे गया तो मुझे एक बंगाली सा दिखने वाला कपल दिखाई दिया. आदमी तो बिल्कुल साधारण था लेकिन उसके साथ जो लेडी थी वह बला की सुन्दर, दूध जैसी गौरी, हसीन और गजब की सेक्सी लेडी थी.
उसकी लम्बी सुराहीदार सेक्सी गर्दन, बहुत ही सुन्दर नयन नक्श, बड़े बड़े मम्मे, गदराया शरीर, नशीली आंखें यानि कि हर लिहाज से सुंदरता में लाजवाब थी. उसका साइज 38-34-36 के करीब का रहा होगा.
उसने जबरदस्त अच्छे तरीके से बहुत ही नीची अर्थात् नाभि से काफी नीची साड़ी पहन रखी थी. साड़ी इतनी कसी थी कि उसकी गांड बिल्कुल बाहर निकलने को होकर उठी हुई दिखाई दे रही थी.
साड़ी के ऊपर स्लीवलेस ब्लाउज पहना था जिसमें उसकी 38 के साइज की चूचियाँ ब्लाउज फाड़ कर बाहर निकलने को हो रही थीं. लेडी ने बालों के ऊपर पर बहुत ही सुंदर काला चश्मा लगा रखा था.
आदमी मरियल सा था. उसकी आंखों पर चश्मा, मुँह पिचका हुआ, लगभग 5 फुट 5 इंच का होगा जो उस लेडी के साथ चलता हुआ भी अजीब लग रहा था. मैं मन ही मन सोच रहा था कि फ्लैट को किराए पर कोई इस तरह का कपल लेने आ जाये तो मजा आ जाये लेकिन वे आगे निकल गए.
फिर मैं अपने फ्लैट में अंदर आ गया. करीब आधे घण्टे बाद मेरे कमरे की बैल बजी, मैंने दरवाजा खोला तो देखा वही कपल बाहर खड़ा था. मैं उन्हें देखकर खुश हो गया.
आदमी ने पूछा- आपके पास किराये के लिए फ्लैट खाली है?
मैं- जी हाँ, है.
आदमी- किराये पर दोगे?
मैंने कहा- सर, आप अंदर आ जाएं, आराम से बैठकर बातें करते हैं.
आदमी- नहीं, आप खड़े खड़े ही बताएं, देना है या नहीं?
मैंने फिर कहा- सर आप अंदर तो आइए?
आदमी- नहीं, पहले आप मकान दिखाओ.
लेडी बहुत ही सॉफ्ट आवाज़ में बोली- जब वो कह रहे हैं कि अंदर आओ तो हम बैठ जाते हैं.
आदमी- तुम्हें बीच में बोलने को किसने कहा? जब कुछ नहीं पता हो तो बेवकूफों की तरह नहीं बोलते.
वो लेडी बेचारी चुप रह गई परंतु मुझे यह बहुत बुरा लगा.
मैंने अपने आपको रोकते हुए उनसे कहा- कोई बात नहीं, आप पहले फ्लैट देख लीजिए.
फिर मैंने पूरा फ्लैट खोल कर दिखा दिया. उस फ्लैट में तीन बेडरूम, एक ड्राइंगरूम, एक किचन था. फ्लैट में एंट्री के लिए दो दरवाजे थे. एक तरफ राइट साइड में मेरा रूम था जिसमें अटैच्ड बाथरूम था.
लेफ्ट साइड के गेट में अंदर जाने के बाद ड्राइंगरूम से होते हुए दो बेडरूम थे. उस फ्लैट में दो बड़ी बड़ी बालकॉनी थी. एक बालकॉनी तो ड्राइंगरूम और एक बेड रूम के साथ लगती थी. वह सोसाइटी के अंदर की तरफ थी जिससे दूसरे फ्लैट और ब्लॉक दिखाई देते थे.
एक बालकॉनी पीछे की तरफ थी जो मेरे और बचे पोर्शन के मास्टर बेडरूम के लिए इकट्ठी थी. मैंने बड़े रूखेपन से उनको पूरा फ्लैट दिखा दिया और बोल दिया कि पीछे की बालकॉनी मेरी है, किराएदार का उस पर कोई हक नहीं होगा.
मेरी बालकॉनी से बहुत ही सुन्दर हरा भरा व्यू था. उसके पीछे की ओर गोल्फ रेंज थी. एक ग्रीन पार्क था और दूर पहाड़ियाँ दिखाई देती थीं. मेरी बालकॉनी के सामने पूरा खुला दृश्य होने के कारण पूरी प्राइवेसी भी थी.
फ्लैट उनको बहुत पसंद आया. आदमी ने मुझसे पूछा- इसका किराया कितना है?
मैंने कहा- 10000 रुपये महीना.
दस हज़ार सुनते ही आदमी की बांछें खिल गईं और बोला- हमें ये फ्लैट पसन्द है, आप दे दीजिए.
तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजी तो मैं उनसे थोड़ा दूर हट कर पिछली बालकॉनी में जा कर मोबाइल सुनने लगा. वे कमरे में खड़े आपस में खुसर फुसर करते रहे. कुछ देर बातें करने के बाद मैंने फोन बंद किया और उनके पास गया.
आदमी बोला- ठीक है, हम तैयार हैं.
अब मेरी बारी थी.
मुझे एक शरारत सूझी और मैंने कहा- देखिये, आपको तो पसन्द है, लेकिन यह फ्लैट तो मैंने किसी और को दे दिया. आपसे पहले वो लोग ये फ्लैट कल देखने आये थे और टोकन के तौर पर कुछ पैसे भी दे गये थे. अभी उन्हीं का कॉल था.
यह सुनकर वे दोनों एकदम परेशान हो गए और आदमी बोला- ये कैसे हो सकता है? अभी तो हमने हाँ की है.
मैंने कहा- देखिये भाई साहब, आप कोई और फ्लैट देख लें. दरअसल मुझे आप कुछ जंचे नहीं.
आदमी- क्या मतलब जंचे नहीं? हमने क्या किया है?
मैंने कहा- भाई साहब, जब आप अपनी बीवी से इतनी बुरी तरह से पेश आ रहे हैं तो आप मेरे साथ भी ऐसा ही बर्ताव करेंगे, इसलिए मेरी ओर से आपके पहले ही सॉरी.
वह सफाई देते हुए आगे बोलने लगा तो मैंने बीच में टोक कर कहा- अब आप प्लीज जाइये।
ऐसा बोलकर मैं अपने कमरे के अंदर चला गया और दरवाजा बंद कर लिया.
उनका मुंह देखने लायक था. वे मायूस हो कर नीचे चले गए. मैंने थोड़ा सा पर्दा हटा कर नीचे देखा तो वे आपस में बहस कर रहे थे. लेडी उस आदमी से झगड़ रही थी.
मैं यह भी नहीं चाहता था कि इतनी शानदार हसीना हाथ से निकल जाए लेकिन उनके लिए उस सोसाइटी में दस हजार में वह सेट बहुत ही ज्यादा सस्ता था. मैंने देखा उन्होंने कुछ बात की और लेडी अकेली ऊपर आने लगी.
कुछ ही देर बाद मेरे रूम की बेल बजी, मैंने दरवाजा खोला.
लेडी कहने लगी- सर, मैं अंदर आ सकती हूँ?
मैंने कहा- आइये.
लेडी अंदर आई और बोली- सर, मुझे ये फ्लैट चाहिए और उसने दोनों हाथ जोड़ दिए. मैं कुछ सोचने का नाटक करने लगा.
वो बोली- सर, भगवान ने मुझे पति तो ढंग का नहीं दिया, क्या मेरी किस्मत में अच्छा पड़ोसी भी नहीं है?
उसने मायूस सा चेहरा बनाया और उसकी आंखें नम हो गईं.
मैंने उठकर उसके नर्म हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और उसकी ओर देखते हुए कहा- आप ऐसा न कहें, अब ये फ्लैट आपका हुआ.
उसने पर्स से दस हजार रुपये निकाल कर मेरी ओर बढ़ाये तो मैंने कहा- कोई बात नहीं, आप पहले एक बार अपने हस्बैंड को बुलाओ.
वह खुश हो कर बोली- थैंक्स। मैं अभी बुलाती हूं.
वो बंगालन जल्दी से नीचे जा कर अपने हस्बैंड को बुला लाई. उसका हस्बैंड चुपचाप बैठ गया. लेडी ने मुझे एडवांस दिया. मैंने उन्हें टर्म्स एन्ड कंडीशन्स समझा दीं और दोबारा कहा कि पीछे वाली बालकॉनी पर उनका कोई अधिकार नहीं होगा.
आदमी कहने लगा- ठीक है, जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा. हम अपना पीछे का दरवाजा हमेशा बन्द रखेंगे और यदि मेरी वाइफ उधर आये तो आप मुझसे शिकायत कर देना, मैं इसकी टांगें तोड़ दूंगा.
मैं हंसने लगा और बोला- भाई साहब, अच्छा रहेगा यदि आप कुछ न ही बोलें.
मैंने कहा- आप लोग अपना परिचय देना चाहेंगे?
आदमी अपनी बीवी से कहने लगा- दीपिका आप ही बोलो, क्योंकि मैं बोलूंगा तो हो सकता है सर नाराज हो जाएं।
लेडी बोली- ये मेरे हस्बैंड हैं मि. सुभेन्दु घोष और मैं इनकी बीवी दीपिका घोष. हम कोलकाता से हैं और अभी 10 महीने पहले हमारी शादी हुई है. इस शहर में एक कॉल सेंटर में इन्हें नौकरी मिली है.
उस बंगालन ने बताया कि वह पढ़ी लिखी तो है परंतु हाउस वाइफ ही है, कोई अच्छी जॉब मिली तो कर लेगी.
अपने परिचय में मैंने अपना नाम राजेश्वर शर्मा बताया और संक्षिप्त में अपना परिचय उनको दे दिया.
मैंने कहा- मैं आपके लिए चाय बना देता हूँ.
घोष बाबू मना करने लगे तो दीपिका ने उन्हें इशारे से चुप करवा दिया और कहने लगी- जी सर, हम चाय पीकर ही जाएंगे.
फिर वो कहने लगी- आप मुझे किचन बता दें, मैं खुद बना लूंगी.
मैंने कहा- नहीं दीपिका जी, आज तो आप मेरे मेहमान हैं. चाय तो मैं ही बनाऊंगा, आप बैठें.
मैं डिप डिप वाली तीन चाय बना लाया और कुछ बिस्कुट साथ में रख दिये. हम तीनों चाय पीते हुए बातें करने लगे.
घोष बाबू मुझसे बोले- मि. राज, आपकी उम्र क्या है?
जवाब में मैंने कहा- 30 साल.
घोष कहने लगा- फिर तो मैं आपको छोटा भाई कह सकता हूँ, क्योंकि मैं 35 का हूँ.
मैंने कहा- ठीक है, आप कह सकते हैं.
घोष- फिर तो दीपिका को आप भाभी बुला सकते हैं. वैसे ये आपसे भी पांच साल छोटी हैं.
मैंने दीपिका की ओर हसरत भरी निगाह से देखा और बोल दिया- यदि दीपिका जी को कोई एतराज़ न हो तो मैं इन्हें भाभी जी बुलाऊंगा.
दीपिका ने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी दोनों आंखें बंद करके सहमति दे दी.
जब हम चाय पी रहे थे तो मैंने देखा घोष बाबू की टांगें और कमर बिल्कुल पतली सी लकड़ी जैसी लग रही थीं.
मैंने लोअर और बहुत ही सुंदर टी शर्ट पहन रखी थी. जैसा कि मैं हर बार बताता हूँ कि घर पर मैं कपड़ों के नीचे बनियान और अंडरवियर नहीं पहनता हूँ जिससे हर वक्त मेरा लण्ड कुछ उभरा हुआ दिखाई देता रहता है.
दीपिका कभी मेरे शरीर और सुडौल पटों को निहारती तो कभी घोष की टाँगों को देखती. मैं भाभी की कामुक निगाहों को पहचान गया था. दीपिका के हाथों और पैरों की उंगलियां बहुत ही नाजुक, गोरी और गुदाज थी.
नाखूनों पर दीपिका ने बहुत सुंदर नेल पॉलिश लगा रखी थी. बैठे हुए दीपिका की साड़ी में से उसके सुडौल पट और भरी हुई जाँघें और उसका सुन्दर चिकना, सेक्सी पेट दिखाई दे रहा था.
कुछ देर बाद बैठे हुए दीपिका ने अपनी एक टांग को दूसरी पर चढ़ा लिया जिससे उसकी ऊपर और नीचे वाली टांगों से साड़ी पीछे खिसक गई और उसकी मोटी, सुंदर, गुदाज़, गोरी पिंडली देखकर मेरे लण्ड में कसाव आना शुरू हो गया था.
मैं सोच रहा था कि जिसकी पिंडलियाँ इतनी सुंदर हैं तो पट और जाँघें कितनी सेक्सी होंगी? मेरा ध्यान दीपिका के सेक्सी शरीर की जांच करने में लगा हुआ था जिसे दीपिका अच्छी प्रकार से समझ रही थी.
तभी घोष बाबू कहने लगे- मुझे बाथरूम जाना है.
मैंने उन्हें उनके पोर्शन की चाबी दे दी और कहा- आज से घर आपका है, जो मर्जी करो.
घोष उठकर चला गया.
मैं जब चाय के कपों की ट्रे उठाने लगा तो दीपिका ने मेरे हाथ से ट्रे छीन ली. ट्रे लेते समय मेरे हाथ दीपिका के नर्म हाथों से अच्छी तरह से टच हो गए और हम दोनों के शरीर झनझना उठे.
दीपिका को किचन दिखाने के बहाने मैं उठकर अपनी किचन में जाने लगा तो दीपिका मेरे पीछे आ गई और जब उसने पीछे की बालकॉनी देखी तो बोली- सर, ये तो बहुत ही शानदार बालकॉनी है. मन मोह लिया इस नजारे ने मेरा।
मगर जल्दी ही उसका चेहरा मायूस सा हो गया और वो बोली- लेकिन हम लोग तो यहां पर ये नजारा देखने के लिए आ भी नहीं सकते हैं. आपने सख्त मना किया है हमारे लिये।
मैंने धीरे से कहा- दीपिका जी, आपके लिए कोई भी मनाही नहीं है, आप जहां चाहें वहाँ बैठ सकती हैं, घूम सकती हैं, बालकॉनी तो क्या आप मेरे कमरे को भी अपना ही समझें, लेकिन घोष बाबू?
इतने में ही वो हंसने लगी और बोली- थैंक्स, मुझे आप बहुत अच्छे लगे.
मैंने कहा- लेकिन ये बात आप घोष बाबू को मत बताना.
दीपिका ने मेरी ओर शोखी से देखा और धीरे से बोली- ठीक है, हम दोनों की बात हम तक ही रहेगी.
दीपिका मेरी बालकॉनी के एक कॉर्नर में बने छोटे से किचन में चली गई और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा हो गया.
जैसे ही मैं कुछ बोलने लगा तभी दीपिका धीरे से बोली- वो आ रहे हैं.
फिर मैं बोलते बोलते मैं चुप हो गया.
दीपिका की इतनी सी बात ने मुझे अन्दर तक रोमांचित कर दिया क्योंकि इसी इशारे से हमारे आगे के संबंधों की नींव रखी जा चुकी थी.
उसके बाद हम तीनों मेरे कमरे में आ गए.
दीपिका मुझसे पूछने लगी- हम कब शिफ्ट कर सकते हैं?
मैंने कहा- आज से मकान आपका है, चाहें तो आज ही आ जाएं, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।
घोष बाबू बोले- लेकिन आज तो 22 तारीख है, किराया तो पहली तारीख से चालू होगा न?
मैंने कहा- घोष बाबू, किराया पहली से ही चालू होगा, मगर आप जब मर्जी चाहो शिफ्ट कर लो.
मैंने देखा कि मेरी इस बात से दीपिका खुश हो गई. उसने धीरे से कहा- थैंक्स, सर.
मैंने कहा- भाभी जी, आप मुझे सर की बजाए ‘राज’ कह सकती हैं.
दीपिका मुस्करा दी और बोली- ठीक है, आज से राज जी बोलूंगी.
घोष बाबू ने एक बार फिर बात छेड़ दी और बोले- अरे भई, शिफ्ट करना भी तो पूरी मुसीबत है, कौन सा आसान काम है? पूरा एक महीना लग जाता है सैटिंग करने में। कभी प्लम्बर, कभी इलेक्ट्रिशियन और न जाने क्या क्या चाहिये होगा.
दीपिका- वो तो सब कुछ मुझे ही करना है, आप तो चले जाएंगे ऑफिस में.
मैंने कहा- एक बार आप लोग अपना सामान यहाँ ले आइये, फिर मैं हेल्प कर दूँगा.
घोष बाबू ने मुझसे मेरा फोन नम्बर लिया और अपने फोन में सेव कर लिया.
जाते हुए बोले- ठीक है राज जी, हमने जब शिफ्ट करना होगा तब बता देंगे.
मैंने कहा- ठीक है.
वे जाने के लिए मुड़ गए. दीपिका ने दो तीन बार मुझे मुड़ कर देखा. मैंने हल्की सी स्माइल दी तो उसने भी हसरत भरी स्माइल देकर अपनी हथेली और उंगलियों को धीरे से नीचे करके बॉय कर दिया और वे लोग चले गए.
उसके चुपके से ये सब करने से या यूं कहें कि चोरी से बॉय करने के तरीके से मैं रोमांचित हो उठा और मेरे दिल में दीपिका को चोदने की इच्छा एकदम चार गुणा हो गई.
जब वो नीचे गए तो मैंने खिड़की से थोड़ा पर्दा हटा कर देखा तो दीपिका नजरें चुरा कर ऊपर की ओर ही देख रही थी. शायद मेरी आखिरी झलक पाने की इच्छा उसके मन में थी.
दीपिका की चूची और उसकी मोटी गुदाज जांघों के बारे में सोच सोच कर ही मेरे लंड से कुछ कामरस निकल आया था जिसने मेरी लोअर को अंदर से हल्का सा गीला कर दिया था. मेरा मन उसकी चूत मारने को कर गया लेकिन अभी तो हाथ का ही सहारा था.
बंगाली सेक्स कहानी आपको पसंद आ रही होगी. मुझे अपने संदेशों के जरिये अपनी राय और विचारों से अवगत करायें. मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है.