यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मेरी जवानी की वासना की कहानी के पिछले भाग में पढ़ा कि मेरा मनपसंद लंड मेरी चूत में था और…
वो बोला- नखरे मत कर, बाहर गाड़ी खड़ी है, चुपचाप चल के बैठ जा, समझी!
मैं मुँह सा बनाती, उन ऊंची एड़ी के सैंडलों पर धीरे धीरे उसके साथ चलने लगी। ऐसा लग रहा था कि मेरे चूतड़ निकर फाड़ के कभी भी बाहर आ सकते हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
चूतड़ मटकाती उसकी फारचूनर गाड़ी में आगे उसके साथ बैठ गयी और वो गाड़ी चलाने लगा।
उसकी बड़ी गाड़ी के शीशे काले थे, जिनमें से बाहर से अंदर कोई नहीं देख सकता था। बहुत बड़े घर का लौंडा था। जेड ब्लैक शीशों वाली गाड़ी को भी रास्ते में खड़े किसी पुलिस वाले ने हाथ न दिया।
कुछ देर के बाद उसने ठेके पर गाड़ी रोकी और बीयर की पेटी उठा लाया; 2 बोतलें खोल लीं, एक मुझे दे दी और एक खुद पीने लगा।
मैंने उसकी एक घूंट भरी तो मुझे उसका टेस्ट बिल्कुल अच्छा न लगा और उससे कहा- मैं नहीं पिऊंगी।
तभी उसने चिल्ला के कहा- साली बोतल फुद्दी में डालूंगा और गाँड में से निकालूंगा, चुपचाप पी ले।
उसकी रोबीली और भारी भरकम आवाज़ से मैं सहम गई और चुपचाप धीरे धीरे कड़वे घूंट भरने लगी। मुझे दारू से नशा नहीं हुआ था मगर जब मैंने बीयर की आधी बोतल ही पी तो, मेरा सर चकराने लगा। शायद दारू के ऊपर से बीयर ज़्यादा नशा कर देती है।
मैंने गाड़ी का शीशा खोला और आधी बोतल बीयर की बाहर सड़क पर फेंक दी। उसको इस बात पर बहुत गुस्सा आया और बोला- भेनचोद, नखरे करने लग गई है, रात को इतनी टिका के मारूँगा न कि नीचे से निकल निकल के भागेगी, याद रखना मेरी बात को!
मैं डर गई; 2 बार उससे चुद चुकी थी, मुझे पता था कि अगर ये बुरी पे उतर आया तो करेगा बहुत बुरी … और उसकी जकड़ से छूटा भी नहीं जा सकता था। दो बार उसने मारी तो मेरी बहुत टिका कर थी, लेकिन उसने मुझे इस तरह चौड़ा किया था कि उसका हलब्बी लंड सीधा मेरी फुद्दी में धुन्नी तक जाए और उसका टोपा भी अंदरूनी दीवारों में न लगें।
कुछ नए खिलाड़ियों ने मुझे कई बार दर्द भी दिया था क्योंकि उन्हें चोदना नहीं आता था और वो अपने लंड को टेढ़ी दिशा में धकेल कर घस्से मार देते थे, जिसके कारण मुझे दर्द हुआ था। लेकिन ऐसा सिर्फ 7-8 इंच से बड़े लौड़ों से होता है, इससे छोटे लौड़े आम तौर पर इस तरह की तकलीफ नहीं देते। मुझे यह बात बखूबी पता थी कि अगर वो मुझे दर्द देने पर आ गया तो ऐसी हरकत कर सकता है, जिससे चूत तो न फटेगी लेकिन अंदर सूज़न ज़रूर हो सकती है और जिस दौरान चुदने में वहुत तकलीफ होती है।
तो इसी डर के कारण उसको मनाने के लिए मैंने कान पकड़ कर सॉरी कहा और उससे हाथ से बोतल छीन कर पीने लगी और गाड़ी की गीतों वाली लीड उठा कर अपने फोन पर चमकीले का गाना लगा दिया। ये गाने बेहद रोमांटिक हैं और मेरे पंजाबी लड़के लड़कियां दोस्त उसे अच्छी तरह जानते हैं।
ये गाने सुन कर वो बहुत खुश हुआ और गुस्सा भूल गया। इस दौरान मैं उसकी आधी बीयर की बोतल पी गयी और और पूरी तरह टुन्न हो गयी। तभी उसने गाड़ी मेले के करीब लाकर पार्क कर दी।
कार के अंदर तो फिर हीटर चल रहा था और मुझे ठंड महसूस नहीं हुई लेकिन जब मैं कार से नीचे उतरी तो मुझे यूं महसूस हुआ जैसे बेहद ठंडी फ्रिज का दरवाजा खोल कर होता है। मैं नीचे उतर कर खड़ी हो गई और वो आया और मुझे एक बांह में लेकर धीरे धीरे चलते हुए मेला दिखाने लगा, यानि कि मेले में मेरे भरे और अधनंगे जिस्म की जबरदस्त नुमाइश करने लगा। शायद उसने मुझे इस तरह बाँह में इसलिए लिया था मैं कहीं नशे में टल्ली सैंडल्स के ऊपर से फिसल कर अपना पैर न तुड़वा लूं।
उस रात के मेले में औरतें बहुत कम थीं और ज़्यादातर मर्द ही थे। जिधर से वो मुझे लेकर गुज़रता, मेले के तमाम मर्दों और औरतों की निगाहें मुझ पर जम जातीं और खिंचती ही चली आती। एक तरह की भीड़ उमड़ कर हमारे पीछे पीछे चोरी चोरी घूमने लगी।
तभी वो एक जगह रुका और मुझसे बोला- तुम सामने उस ऊंची चूड़ियों वाली दुकान पे जाओ, मैं अपने दोस्तों को लेकर वहीं आता हूँ, और हां … धीरे-धीरे चलना, गिर मत जाना।
यह कह कर वो भीड़ में गायब हो गया।
वो दुकान वहां से कोई 60-70 कदम दूर थी और काफी ऊंची थी जिसके कारण भरी भीड़ में भी दूर से दिखाई दे रही थी। मैं उसकी हरकतों से हक्की बक्की बेहद ठंड महसूस करती हुई अपनी बांहों को हाथों से मसलती हुई उस दुकान की तरफ बढ़ी।
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रूपिन्दर कौर मेले में
मेरे चलने से पहले रास्ते के बीच में ज़्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन जैसे ही मैंने 8-10 कदम भरे, भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी कि चलना मुश्किल हो गया। मुझे अकेली देख कर भीड़ मुझ पर टूट पड़ी थी।
8-10 कदम और तो किसी ने मुझे टच करने की बजाए कोई खास हरकत नहीं की और आराम से इधर उधर चलते रहे। लेकिन जैसे जैसे मैं चलती गई, मैं उनमें घुटती गई। अब चलना बहुत मुश्किल हो गया था, मेरे आगे पीछे दाएं बाएं मर्द ही मर्द जमा हो गए।
मुझे पता था कि यह ढिल्लों की शरारत है, फिर भी मैं जैसे तैसे दुकान जी तरफ अपने शराबी कदम बढ़ाती रही। दुकान अभी 30 कदमों की दूरी पर दिखाई दे रही जब पीछे से कुछ हाथ आये और मेरी तरबूजी चूतड़ों की मुट्ठियाँ भरने लगे।
कुछ पलों बाद आगे से भी लड़ते झगड़ते हाथ आये और मेरी फुद्दी में उंगलियां डालने लगे। कुछ हाथ और आये और टीशर्ट के नीचे घुस कर मेरे मम्मे मसलने लगे। अचानक हुए इन हमलों से मैं बहुत घबरा गई और मुझे लगने लगा कि ये भीड़ तो मेरे कपड़े फाड़ कर मेरा काम कर देगी।
यह तो शुक्र था कि निकर बहुत ज़्यादा टाइट थी और बहुतों की घमासान कोशिशों के बाद भी किसी का हाथ अंदर नहीं सरक पाया। उन लोगों की इन हरकतों से मैं चंद मिनटों में ही गर्म हो गयी और मुझे वो हाथ चुभने बंद हो कर अच्छे लगने लगे। लेकिन नंगी और बेइज़्ज़ती से डर कर मैंने खुद को संभाला और अपनी फुद्दी और चूतड़ों से हाथ हटाते करते दुकान की तरफ बढ़ने लगी।
अभी दुकान बस 15 कदमों की दूरी पर थी कि पीछे से एक बड़ा हाथ बढ़ा और उसने मेरे ठीक नीचे अच्छी तरह सेट हो के एक मर्दाना झटके से मुझे उठा लिए और आगे बढ़ने लगा। मैं बहुत सहम गई कि अब तो मेरा काम तमाम होना और बेइज्जती पक्की है.
पर जब मैंने पीछे मुड़ के देखा तो मेरी जान में जान आ गयी क्योंकि वो कोई और नहीं ढिल्लों ही था।
मेरे मुंह से अपने आप निकला- ओह, ढिल्लों, मेरी जान, बचा लिया।
तभी ढिल्लों ने अपना रिवॉल्वर निकाल कर भीड़ को सिर्फ इतना कहा- चलो ओए, तितर बितर हो जाओ।
और भीड़ गिरती पड़ती बिखर गई और उसने मुझे नीचे उतार दिया।
इसके बाद वो मुझे उस दुकान पर के गया और पीछे आते अपने दोस्तों को हाथ उठा कर आवाज़ लगाई। वो तीनों जब हमारे पास आये तो मुझे देखते हो रह गए। सभी ने मुझसे अपने हाथ मिलाये और मेरा हालचाल पूछा।
उन तीनों में से दो तो लगभग ढिल्लों जितने ही लंबे थे और तीसरा उनसे छोटे कद का था, लेकिन उसका कद भी 6 फ़ीट के आसपास ही होगा।
तभी उनमें से एक जिसका नाम जग्गी था, ने मुझे देख ढिल्लों को कहा- इस बम्ब पटोले को कहाँ से ढूंढा? ऊपर से नीचे तक तराशी हुई है।
ढिल्लों ने उससे कहा- चुप कर साले, भाबी है तेरी … हां, मैंने इसे नहीं, इसने मुझे ढूंढा है, सोंह रब्ब दी, बड़ी लाटरी लग गयी इस बार तो।
तभी उसमें से छोटे कद वाले जिसका नाम गिल था (जनाब ये सब बदले हुए नाम हैं), ने मुझे अपना कोट उतार कर पहना दिया और बोला- ढिल्लों कमीने, नंगी को ही ले आता इससे तो, भैनचोद कुछ पहना तो देता, देख कैसे ठंड लग रही है इनको। और काम भी ये तेरा ही है साले हब्शी।
यह सुन कर ढिल्लों ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और कहा- तुम लोगों की नई भाभी को मेले को दिखाना था, दुनिया को जला रहा था, साले आज आधे घर जाकर मुठ्ठ मारेंगे।
वे ऐसे बेतकलुफ्फ होकर बातें करने लगे जैसे मैं कोई लड़का हूँ, मुझे थोड़ी शर्म महसूस हुई।
यह देख कर वो चुप हो गए और हम सब हल्की फुल्की बातें करते मेले में टहलने लगे। ढिल्लों के दोस्त किसी न किसी बहाने मुझे टच करते ही रहे और ढिल्लों से डबल मीनिंग बातें करते रहे।
तभी हम लोग एक चूड़ियों की दुकान पर रुके और ढिल्लों ने मुझे ना-नुकर करती हुई को भी एक लाल चूड़ा पहना दिया, ये उसने क्यों किया इसका जवाब उसने नहीं दिया और सिर्फ इतना बोला कि अच्छा लग रहा है।
1 घंटा घूमने के बाद हम वापिस गाड़ी की तरफ चले और ढिल्लों ने अपनी कार का दरवाज़ा खोल कर मुझे अंदर बिठा दिया और मैंने गिल को उसका कोट वापस लौटा दिया।
इसके बाद तो वो चारों 20-25 मिनट बीयर पीते हुए पता नहीं क्या बातें करते रहे।
इसके बाद ढिल्लों अकेला आया और कार चलाने लगा।
“तेरे रूम में ही चलना है कि कहीं और लेके चलूं?”
“जहां तेरी मर्ज़ी मुंडया, पर सवेरे 7 बजे तक रूम में ओके?”
उसने ‘ठीक है!’ कहा और गाड़ी चलाने लगा.
और 25-30 मिनट के बाद हम एक बड़े फ्लैट में थे; देखकर ही पता चलता था कि किसी शौकीन आदमी का फ्लैट है। दीवारों पर काफी हथियार टंगे हुए थे और फर्नीचर बेहद बेहद महँगा था।
तभी उसने मुझे फिर उठाया और एक कमरे में ले गया और दूर से ही एक बड़े बेड पर पटक दिया।
दोस्तो रूम देख कर मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं, बहुत ही महँगा फर्नीचर और बेड पूरा बड़ा और गिरते ही मैं गद्दों से दो बार उछली। मुझे अब पता था कि इन मखमली गद्दों पर चुदने का बहुत मज़ा आएगा।
वैसे तो मैं भी बहुत बड़े घर की हूँ, लेकिन ऐसे इम्पोर्टेड गद्दे मैंने आजतक नहीं देखे थे। गद्दे में मैं पूरी धंस कर लेट गयी और ढिल्लों ने फिर सही कोण बना का कर ट्राइपॉड और कैमरे फिट कर लिए।
ढिल्लों ने मुझे यकीन दिलाया था कि इसमें सिर्फ हमारा लंड और फुद्दी का खेल ही आएगा और चेहरे नहीं आएंगे।
और फिर मुझ से कड़क के बोला- चल नीचे उतर के बाथरूम जा और अपनी फुद्दी अच्छी तरह से धोकर आ।
मैंने निकर को वहीं कमरे में उतारने की बहुत कोशिश की मगर सब बेकार … और थक कर उससे कहा- ये निकर तो उतार दो जानू … बहुत टाइट है, उतर ही नहीं रही।
“भेनचोद तेरा पिछवाड़ा कितना बड़ा है साला, फंस गयी है और मैंने इतनी टाइट नहीं मंगवाई थी, तेरे साइज़ ही बड़ा निकला उम्मीद से भी।” यह कहकर उसने मुझे बेड पर फिर लिटाया और सांप की कुंज की तरह निकर उतार फेंकी.
और निकर उतारते ही तीन उंगलियां फुद्दी में पिरो दी और बहुत जोर जोर से पूरी निकाल के 3-4 बार अंदर बाहर कीं जैसे फुद्दी में से कुछ निकालना चाहता हो और अचानक मुझे छोड़ दिया। मैं उसके इस वार से हिल गयी, ये तो शुक्र था कि चूत पूरी तरह पनियायी हुई थी, वरना सारी फुद्दी छिल जाती।
मैं चुपचाप नीचे उतर गई और साथ अटैच बाथरूम में गर्म पानी से अपनी फुद्दी और बुंड अच्छी तरह से अंदर बाहर से धोयी।
जब बाहर निकली तो हब्शी ने आते ही बेड पर मेरी एक पटखनी लगाई और पूरी जीभ फुद्दी के अंदर धकेल दी और अपनी सबसे लंबी उंगली थूक लगा के बुंड में पिरो दी।
मैं पागल हो गयी और मेरी कमर अपने आप हिलने लगी। मेरी इस हरकत से उसको और जोश आ गया और वो और ज़ोर से मेरी फुद्दी पीने लगा। वो इस तरह मेरी चाट जैसे उसे पूरी भूख और प्यास लगी हो!
चटवायी तो मैंने बहुत है मगर इस तरह साली किसी ने डीक लगा कर नहीं पी थी।
5-7 मिनट लगे और उछल उछल के झड़ी लेकिन उसने मेरा वीर्य नहीं पिया और झड़ते वक़्त एकदम मुंह निकाल के हाथ का चप्पा (चार उंगलियाँ) चढ़ा दिया था। जब मैं झड़ी तो कमान की तरह टेढ़ी हो गयी थी।
इस 6-7 मिनट के छोटे से खेल के कारण ही मेरा मुंह सूखने लगा और मैं बुरी तरह हांफने लगी- हूं, हूँ, हूँ …
यह आवाज़ 3-4 मिनट तक मेरे मुंह से निकलती रही। सेक्स में इतना मंझा हुआ खिलाड़ी मैंने आज तक नहीं देखा था।
तभी वो मेरी तरफ हंसते हुए बोला- बड़े जोर नाल झड़दी एं, झोटीए (बड़े जोर के साथ झड़ती हो… भैंस जैसी), काम बहुत है तेरे अंदर, मुंह तो देख अपना, जैसे शेरनी के मुंह को खून लगा हो।
कहानी जारी रहेगी.
आपकी रूपिंदर कौर
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