यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
अब तक की सेक्स स्टोरी में आपने पढ़ा था कि पद्मिनी के बापू ने रात को उसकी चूत में उंगली डाल कर चैक कर लिया था कि उसकी बेटी अभी कुंवारी है. फिर उसके चूतड़ों की दरार में अपना लंड रगड़ कर माल निकाल कर सो गया था.
अब आगे..
सुबह को यूँ तो हर रोज़ बापू पहले उठता है और चाय बना कर खेत जाने से पहले पद्मिनी को जगा कर जाता था और हर रोज़ उसको चाय देकर, जब वह जग जाए तब ही घर से निकलता था.
पद्मिनी उसके बाद नहाती थी और स्कूल के लिए तैयार होकर घर से निकलती थी. स्कूल जाते वक़्त बापू के खेत के पास से गुज़रती और घर की चाभी उसको देकर तब स्कूल जाती. हर रोज़ ऐसा चलता था.
मगर इस सुबह को जब पद्मिनी की आखें खुली तो देखा कि बापू उसको उठाने के लिए नहीं आया था और रात की गुज़री हुई सेक्स की लज्जत को सोचकर बापू से आँख मिलाने को शरमा रही थी. वो मन ही मन सोच रही थी कि कहीं बापू भी शायद उससे इसी लिए आँख नहीं मिला पाया और चुपचाप खेत चला गया होगा.
पद्मिनी उठी और कमरे से निकली, तो गुसलखाने में जाते वक़्त किचन के पास से गुज़रना पड़ता था. उसने देखा कि बापू किचन में बैठा रेडियो सुन रहा था, जो धीरे से बज रहा था.
जब बापू ने देखा कि पद्मिनी गुसलखाने में जा रही है, तो बापू जल्दी से उठकर उसकी तरफ आया और कहा- अरे जाग गयी मेरी गुड़िया.. कैसी रही रात?
पद्मिनी आँख मसलते हुई बोली- आज आप अभी तक यहीं हो बापू, खेत नहीं गए और अभी तक लुंगी में हो.. तैयार नहीं होना खेत जाने के लिए क्या?
तो बापू ने कहा कि आज थोड़ी देर से खेत जाऊंगा, आज मैं अपनी गुड़िया को स्कूल की यूनिफार्म में तैयार होते देखना चाहता हूँ.
पद्मिनी एक अंगड़ाई लेते हुए गुसलखाने में नहाने के लिए चली गयी. बापू से तो अब उसका यौवन नहीं देखा जा रहा था. रात को कैसे अपने लंड को उसने उसकी गांड के बीचों बीच रगड़ कर अपना पानी छोड़ा था. ये याद करके उसका लंड फिर से एकदम से खड़ा हो गया और अपनी लुंगी के नीचे उस ने लंड को सीधा किया.
गुसलखाने के पास खड़े होकर बापू से पद्मिनी को आवाज़ दी- मैं तब तक तेरे स्कूल की यूनिफार्म को इस्तरी कर देता हूँ बेटी.
पद्मिनी ने जवाब दिया- मैं इस्तरी कर चुकी हूँ बापू… कल रात आप कितने बजे वापस आए थे, मुझको नींद लग गयी थी. आपने मुझको जगाया क्यों नहीं?
उसने नहाते हुए कुछ ऊंची आवाज़ में नादान बनते हुए बापू से पूछा.
तो बाहर गुसलखाने के दरवाज़े के पास खड़े बापू ने जवाब दिया- क्या तुझको कुछ नहीं पता रात के बारे में?
पद्मिनी ने अपनी जीभ को दांतों में दबाते हुए भोली बनने की कोशिश करते हुए बोली- क्या कुछ नहीं पता रात के बारे में बापू? क्या हुआ था रात को? कुछ हुआ था क्या?
बापू ने कहा- नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही…
बापू पद्मिनी को कमरे में इंतज़ार करने को चला गया. वह देखना चाहता था कि पद्मिनी कैसे गुसलखाने से बाहर निकलेगी, क्या पहनकर आएगी और उसको कौन सा हिस्सा उसके जिस्म का दिखेगा. कुछ दस मिनट इंतज़ार के बाद पद्मिनी कमरे में आयी, तो सर के बालों को एक तौलिया में लपेटा हुआ था और पद्मिनी ने एक कुर्ता जैसा पहना हुआ था. ये कुर्ता ठीक उसके घुटनों पर तक ही आता था, मगर ये कुर्ता स्लीवलैस था और पद्मिनी पर काफी बड़ा लग रहा था. इस वजह से उसकी चूचियां साफ़ दिख रही थीं. एकदम गोल गोल नरम मुलायम, जैसे कि दो छोटे से सेब हों या ऐसा लगता था कि छोटे छोटे से बैलून हों, जिसमें थोड़ा पानी भर दिया गया हों. उसकी चूचियां ठीक वैसी ही नर्म दिख रही थीं. बापू खूब आखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था.
वैसे हर रोज़ तो पद्मिनी उसी ड्रेस को गुसलखाने से पहन कर निकलती थी, मगर उस वक़्त कभी भी बापू घर पर नहीं हुआ करता था.. तो पद्मिनी बेफिक्र रहती थी.. और वो इस वक्त अन्दर ब्रा भी नहीं पहनती थी. वो सिर्फ स्कूल की यूनिफार्म पहनने के वक़्त ही ब्रा पहनती थी.
बापू बिस्तर पर बैठ कर पद्मिनी को निहार रहा था.. उसको लग रहा था कि अपनी स्वर्गवासी पत्नी को जवान देख रहा है. वैसे ही वह भी उसी कमरे में अलमारी के आइने के सामने सजती संवरती थी. यहाँ पद्मिनी ने अपनी माँ की जगह ली हुई थी, जवान, कुंआरी, खूबसूरत.. बस समझो कि जानलेवा माल थी.
बापू से रहा नहीं गया और उसने कहा- तू कब इतनी खूबसूरत और जवान हो गयी, मुझको पता ही नहीं चला, इतने सालों से मेरे बगल में सोती है, तो और मैं आज तुझको ऐसे देख रहा हूँ. तू बिल्कुल अपनी माँ पर गयी है मेरी गुड़िया, तुझपे बहुत प्यार आ रहा है. ज़रा मेरी बाँहों में तो आजा मेरी प्यारी बिटिया.
यह सुनकर पद्मिनी को भी बापू पे बहुत प्यार आया. उसने जल्दी से अपनी कोमल बांहों का हार बापू के गले में डाल दिया और उसके सीने से चिपक गयी. बापू खड़े खड़े उसको बहुत ज़ोर से सीने से लगाते हुए उसके सर को चूम कर आहिस्ते आहिस्ते उसके गालों को चूमने लगा. जब बापू के गरम होंठ उसने अपने गले पर महसूस किए तो पद्मिनी ने सर को पीछे की तरफ करते हुए आँखों को बंद कर लिया. उधर बापू लुंगी के नीचे से अपने लंड को संभाल नहीं पा रहा था. वो कैसे भी पद्मिनी की जांघों के बीच, ड्रेस के ऊपर से ही रगड़ खा रहा था. पद्मिनी को भी बाप का लंड अच्छी तरह से महसूस हो रहा था.
पद्मिनी सच में अपने बापू से बहुत प्यार करती थी, ख़ास कर जब से उसकी माँ चल बसी थी. वो बिल्कुल एक पत्नी की तरह ही उसका ख्याल रखती थी. बापू के लिए वह वो सब करती थी, जो उसकी माँ किया करती थी.
पद्मिनी छोटी उम्र से अपने बापू के लिए सिवाए चुदाई के सब कुछ करती चली आ रही थी. बापू के कपड़े धोना, खाना पकाना, खाना परोसना और सब वह काम जो उसकी माँ बापू के लिए करती थी, वह सब पद्मिनी बहुत प्यार से करती थी. अब घर में और कोई तो था ही नहीं, न भाई न बहन, तो सारा प्यार सिर्फ बापू और पद्मिनी में ही बंटता जाता था. बापू भी पद्मिनी से बचपन से ही बेहद प्यार करता था. बापू ने उसको कभी भी बुरी नज़र से नहीं देखा था. वो हमेशा ही उसे एक छोटी बच्ची समझता था.
मगर जबसे बाप ने टीचर वाली बात सुनी और लोगों की बातें सुनी तो गौर से पद्मिनी को देखने के बाद, उसके प्यार ने किसी और प्यार का रुख ले लिया. प्यार तो था ही बहुत प्यार था.. मगर वह प्यार जो एक मर्द और औरत के बीच होता है, वैसा प्यार पद्मिनी के प्रति बापू के मन में उभरने लगा.
अब पद्मिनी के जिस्म का हर एक हिस्सा बापू को बेहद प्रिय लगने लगा और हर उस हिस्से को वह अपनाना चाहता था. बापू नहीं चाहता था कि उसके सिवाए कोई और मर्द उन मुलायम जिस्म के हिस्सों को छुए. बापू के दिल में यह सोचकर की एक जलन सी भी हो रही थी कि कोई और मर्द इतनी खूबसूरत जवान उसकी कुंवारी बेटी को छुए. उसने सोचा यह मेरी बेटी है, मेरी अपनी है, किसी और की नहीं हो सकती. मैंने पाल पोस कर बड़ा किया है, मेरे घर में रहती है, मेरी अपनी है, तो मेरे सिवाए कोई और क्यों इसको ले.
जैसे कि अगर मैं किसी फल का पेड़ को रोपूं, उसको सींच कर बड़ा करूँ और जब वह पेड़ फल देने लगे तो मेरे अलावा क्यों और कोई उस फल को खाए, मेरा है तो मैं खाऊँगा.. बापू के मन में ऐसे विचार आ रहे थे.
बापू पद्मिनी के गालों को चूमते हुए नीचे पहुँच गया और उसका मुँह पद्मिनी की मुलायम छाती पर पड़ा तो पद्मिनी ने ज़्यादा ज़ोर से बापू को जकड़ कर सिसकारियां लीं. खुद पद्मिनी ने अपनी कमर को थोड़ा सा ज़्यादा बापू के जिस्म से दबाया और बापू के लंड को अपने पेट के नीचे मोटा और तना हुआ महसूस किया. तब बापू ने अपनी कमर को हिलाया और अपने लंड से पद्मिनी के जांघों के बीच दो छोटे छोटे धक्के दिए. पद्मिनी ने आँख खोल कर बापू की आँखों में देखना चाहा तो देखा कि बापू की दोनों आँखें बंद थीं और वह पद्मिनी के जिस्म को भोगने जैसा मजा ले रहा था. उसका हाथ पद्मिनी के बाज़ुओं के नीचे से उसकी चूचियों को छूने की कोशिश कर रहा था.
तब अचानक पद्मिनी ने कहा- बापू बापू बस, मुझे स्कूल के लिए देर हो जाएगी.
अपने बापू की बांहों से रिहा होते ही अलमारी के पास से एक कँघी से अपने बालों में फेरने लगी.
पद्मिनी- आज आपने मुझको चाय नहीं दी.. मेरे लिए एक कप चाय ला दीजिये, तब तक मैं तैयार होती हूँ.
बापू चाय लेने रसोई में चला गया और जल्दी जल्दी पद्मिनी ने अपनी यूनिफार्म पहन ली. उसने अपनी छोटी साइज की ब्रा पहनी थी. बापू के सामने ब्रा पहनने में उसको शर्म आ रही थी. उसने अपनी सफ़ेद रंग की पेंटी भी पहन ली और वाइट ब्लाउज और डार्क ब्लू स्कर्ट जो स्कूल की यूनिफार्म थी.. वो भी पहन लिया. अब उसकी स्कर्ट तो घुटनों के ऊपर तक थी और घुटनों के ठीक ऊपर से जाँघ की शुरूवात से, वह रंग.. जो धीरे धीरे ज़्यादा गोरी दिखाई देता है, उन हिस्सों पर, साफ़ दिख रहे थे और पद्मिनी बहुत ही सेक्सी लग रही थी.
वैसे तो गाँव के सभी नौजवान लड़के पद्मिनी का रास्ते में इन्तजार करते थे, जब वह स्कूल जाती थी और वापस आती थी. सिर्फ जवान लड़के ही नहीं बल्कि सभी मर्द की नज़र पद्मिनी की जांघों पर और उसकी चाल पर ही होती थीं. उसकी खूबसूरती पर, उसकी लम्बे काले बालों पर, उसके उभरे हुए चूचों पर, उसकी थिरकती कमर पर, उसके जिस्म के हर एक हिस्से पर और उसकी अदाओं पर गहरी नजरें इस तरह से गड़ाते थे, मानो उसको समूचा निगल जाना चाहते हों. पद्मिनी में वह सब था, जो किसी भी मर्द, जवान से अधेड़ उम्र के चाचाओं तक को रिझा सके.
बापू चाय लेकर आया तो पद्मिनी आइने के सामने खड़ी आँखों में काजल लगा रही थी. उसने होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक भी लगायी थी और मेकअप करने के साथ ही परफ्यूम भी लगा लिया था. जिससे कमरा खुशबू से महक उठा था. बापू अपनी पद्मिनी को देख कर दीवाना हो गया.. वह उसको रोकना चाहता था, उसका दिल कर रहा था कि आज वो उसको स्कूल नहीं जाने दे और पूरा दिन उसके साथ कमरे में बिस्तर पर बिताए. वो सोच रहा था कि आज एक बार फिर से सुहागरात मनाये खुद अपनी बेटी के साथ.. बापू बिल्कुल दीवाना हो रहा था… उसका दिल पागल हो रहा था. उसे समझ में नहीं रहा था कि वो कैसे पद्मिनी से वो सब कहे, जो उसके दिल में था.
क्या समझेगी पद्मिनी.. क्या अपने पिता का प्यार स्वीकार करेगी? क्या एक पढ़ने जाने वाली लड़की पढ़ी लिखी ऐसे बेहूदा बात को मानेगी? बग़ावत कर बैठी तो?? क्या करेगा बापू तब? उसको हमेशा के लिए खो देगा.. बापू के समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी पद्मिनी के साथ बात की शुरूआत कैसे करे. पद्मिनी आइने में से ही बापू को देख कर थैंक्स कहने के लिए मुस्कुरा रही थी. उधर बापू पीछे से पद्मिनी के पीछे वाली जाँघ का हिस्सा देख रहा था और आइने में उसकी छाती की नाप ले रहा था.
जब पद्मिनी मुड़कर टेबल पर से चाय लेने जा रही थी तो बापू ने उसको फिर से बांहों में जकड़ कर किस किया और बिस्तर पर पद्मिनी को थामे हुए बैठने को कहा. जब बैठ गया तो पद्मिनी ने कहा- ओफ्फो बापू.. मुझको देर हो जाएगी, मैं चाय तो पी लूँ.
पद्मिनी ने ये कहते हुए अपने आपको अपने बाप की बाँहों से खुद को छुड़ा कर चाय की तरफ गयी और जल्दी से चाय का घूँट लिया. फिर वो अपने स्कूल बैग को उठाने वाली थी, तब बापू ने इशारे से उसको अपने गोद में बैठने को कहा.
पद्मिनी ने आसमान की तरफ अपनी आँखों को उठाकर कहा- उफ़ बापू, आप आज मुझको देर करवा ही छोड़ोगे आप, अब क्या है बापू.. आती हूँ.. बस थोड़ा सा ठीक?
तब पद्मिनी अपने बापू की गोद में बैठी और बापू ने एक हाथ को उसकी कंधों पर रखा और एक हाथ को पद्मिनी की जाँघ पर.. क्योंकि बैठने से तो जाँघ का ज़्यादा हिस्सा दिख रहा था. तो बापू ने हौले से अपने एक हाथ को पद्मिनी की जाँघ पर फेरते हुए सहलाया और पद्मिनी ने एक छोटी सी सिसकारी छोड़ी. फिर बापू धीरे धीरे अपने हाथ को स्कर्ट के नीचे डालता गया.
बापू तक़रीबन अपनी बेटी की पेंटी को छूने ही वाला था, मगर तभी पद्मिनी यह कहकर उठ खड़ी हुई- अब मुझको जाना चाहिए.. क्या आज आप खेत में नहीं जाओगे?
उसके एकदम से उठने के कारण बापू पद्मिनी के आगे घुटनों पर आ गया और जल्दी से उसकी कमर पर दोनों बाँहों को लपेटे हुए, कुछ कमर पर, बाँहों का कुछ हिस्सा पद्मिनी के चूतड़ों पर था. बापू का मुँह ठीक पद्मिनी की चूत पर मगर कपड़े के ऊपर आ गया था.
पद्मिनी पीठ पर स्कूल बैग लिए हुए बापू की उस अदा से अचानक झुक गयी और बापू के कंधों को पकड़ कर मीठी आवाज़ में बोली- आज क्या हो गया आपको बापू, मुझे स्कूल नहीं जाने दोगे क्या? छोड़िये मुझे, बस करो प्यार करना.. कितना दुलार करेंगे आज आप मेरे साथ?
बापू ने एक आशिक की तरह कहा- मैं तुमको बहुत चाहता हूँ मेरी गुड़िया, क्या तू अपने बापू को खुश करेगी?
पद्मिनी एक मुस्कान के साथ बोली- ओफ्फो बापू.. जब मुझे जल्दी है स्कूल जाने की, तभी आप को यह सब बातें करनी है क्या? हमेशा तो आप को खुश करती ही हूँ.. तो अब क्या बापू?
बापू घुटनों पर ही था और सर ऊपर उठाकर पद्मिनी से कहा- बस अपना यह स्कर्ट ऊपर उठाकर बापू को अन्दर की जाँघ और अपनी पेंटी दिखा दे, मैं बहुत खुश हो जाऊँगा.
पद्मिनी शरम और हल्के से गुस्से से लाल पीली होते हुए बोली- क्या??
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कहानी जारी है.