हाय दोस्तो, मैं अपनी भाई बहन की चुदाई कहानी का दूसरा भाग लाया हूं. इससे पहले के भाग
मस्तराम की कहानी पढ़ते छोटी बहन ने पकड़ा-1
में आपने पढ़ा कि मामा के घर ममेरी छोटी बहन शुभ्रा के साथ मेरा रोज झगड़ा होता था.
मगर जवानी की दहलीज पार होने के बाद मस्तराम की कहानियां मेरी दिनचर्या का हिस्सा हो गयी थीं. एक दिन मेरी ममेरी बहन शुभ्रा ने भी वो कहानियों की किताबें मेरे हाथ में देख लीं और उस दिन के बाद से हम दोनों एक दूसरे के राजदार हो गये.
एक रात को मामा और मामी की चुदाई देखते हुए मैंने शुभ्रा की गांड में लंड लगा दिया और उसको अपने रूम में नंगी कर लिया.
मैं बहन की चूत को चाटने लगा तो उसने मना कर दिया.
गुस्से में आकर मैं मुठ मारने लगा और बोला- मैं भी सो जाता हूं और तू भी सो जा.
मेरे चेहरे का रोष देखकर शुभ्रा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मैं तुम्हें प्यार में मायूस नहीं करना चाहती. लेकिन …
मैं- लेकिन-वेकिन कुछ नहीं! अगर खेलना है तो पूरा खेलो, नहीं तो रहने दो. मैं तुम्हारे जिस्म के एक-एक हिस्से को अपनी जुबान में, अपने दिल में और अपने दिमाग में महसूस करना चाहता हूँ.
कहते हुए एक बार फिर मैं मुठ मारने लगा।
शुभ्रा- ओके बाबा, अब तुम जैसा चाहो, वादा … मैं मना नहीं करूंगी.
मैं- पक्का अब नहीं रोकोगी?
शुभ्रा- नहीं रोकूंगी मेरे गोलू राजा.
कहते हुए उसने मेरे गाल को खूब जोर जोर से खींचा। मैं भी मौके का फायदा उठाते हुए तुरन्त ही उसकी जांघों के बीच में आ गया और अपनी उंगली उसकी चूत की फांकों के बीच चलाने लगा और उसकी पुतिया से खेलने लगा।
पुतिया से खेलते-खेलते मैं शुभ्रा की तरफ देख रहा था, अब शुभ्रा सिसकार रही थी, अपने होंठों को चबाये जा रही थी, चूची को दबाने लगी थी, जांघें उसकी फैल चुकी थीं. उन्माद में अब उसकी आँखें भी धीरे-धीरे बन्द होने लगी थी.
बस अब यही पल था कि मैंने शुभ्रा की पुतिया पर अपनी जीभ फिराना शुरू कर दिया था। हम्म! जैसे ही जीभ उसकी पुतिया में टच हुई कि एक कसैला सा स्वाद मेरी जीभ को लगा. तुरन्त ही जीभ दूर हट गयी. तुरन्त ही शुभ्रा की भी आंखें खुल गयी.
अपनी पुतिया को मसलते हुए मेरी तरफ उसने ऐसे देखा मानो पूछ रही हो कि क्या हुआ? क्यों अपनी जीभ हटा ली? मेरी पुतिया को अच्छा लग रहा है, चाटो, मेरी चूत को चाटो, वो अपनी चूत के दाने को रगड़ रही थी।
मैंने उसके हाथ को हटाते हुए फांकों के बीच अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी। मैं उसकी फांकों के किनारे-किनारे चाटता, बुर के ऊपर से चाटता, पुतिया को दांतों के बीच लेकर हौले से रगड़ता और जीभ उसकी चूत के अन्दर तक पेल देता।
शुभ्रा भी मेरी इन सभी हरकतों का जवाब सिसकारते हुए दे रही थी लेकिन मेरा लंड बिस्तर से रगड़ खा रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे लिये चादर ही किसी बुर से कम नहीं है और मैं शुभ्रा की चूत चाटने के साथ-साथ अपनी कमर उठा-उठाकर लंड को सेट कर रहा था.
मुझे लगने लगा कि मेरा लंड अगर ज्यादा देर तक चादर से रगड़ खाता रहा तो माल कभी भी निकल सकता है। मैं सीधा होकर शुभ्रा के बगल में बैठ गया.
शुभ्रा ने पूछ-क्या हुआ?
मैं बोला- अब तुम भी मेरा लंड चूसो.
वो बिना कुछ बोले मेरी जांघों के बीच बैठ गयी और लंड के सुपारे पर जैसे ही उसने अपनी जीभ चलायी, एक बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने हाथ से होंठों को पोंछते हुए बोली- छी: मुझे अच्छा नहीं लगा, कैसा नमकीन, खारा सा लग रहा है। मैं नहीं चाट सकती इसको।
मैंने शुभ्रा को अपनी जांघ के उपर बैठाया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला- देखो, शुरू में ऐसा लगता है. लेकिन यह भी एक नशा सा है. एक बार लगा कि बिना चूसे तुम्हें चुदवाने का मजा नहीं आयेगा। मैं बार-बार शुभ्रा के गालों को, होंठों को चूमते हुए लंड चूसने के लिये प्रेरित कर रहा था.
साथ ही शुभ्रा की चूत से निकलती हुई गर्माहट जो मेरी जांघों पर पड़ रही थी, उसका मजा ले रहा था और लगे हाथ शुभ्रा के कूल्हे को सहलाते हुए उसकी गांड को कोद भी रहा था. खैर बड़ा समझाने के बाद शुभ्रा तैयार हुई और लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी.
लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी क्योंकि मेरे लंड के बर्दाश्त करने की सीमा खत्म हो चुकी थी। दो-चार बार उसने लंड पर अपने होंठों को फेरा ही होगा कि लंड के अन्दर भरा हुआ वो ज्वालामुखी फटकर शुभ्रा के मुंह के अन्दर गिरने लगा.
न तो मुझे समझ में आ रहा था और न ही शुभ्रा को समझ में आ रहा था. हाँ जब तक हम दोनों कुछ समझते और संभलते तब तक लंड का पूरा माल शुभ्रा के मुंह के अन्दर, उसके पूरे चेहरे पर, उसकी चूचियों पर हर जगह मेरा सफेद लसलसेदार तरल पदार्थ (वीर्य) लग चुका था।
संभलने के बाद पहला शब्द ‘मादरचोद’ कहते हुए वो उठी और तेजी से बाथरूम की तरफ भागी और वाश बेसिन पर खड़े होकर उल्टी करने की कोशिश करने लगी. मैं भी उसके पीछे पीछे बाथरूम में हो लिया।
शुभ्रा वॉश बेसिन में झुकी हुई थी और मेरी बहन की गोल-गोल गांड का उभार मेरी तरफ था और उसकी गांड मुझे आकर्षित कर रही थी। मेरे हाथ बिना किसी देरी के शुभ्रा के कूल्हों को मसलने लगे. कूल्हों को दबाने और भीचने के कारण उसकी गांड की दरार खुल बन्द हो रही थी और उसकी हल्की ब्राउनिश कलर की गांड देखकर मेरी जीभ लपलपा रही थी.
फिर भी कंट्रोल करते हुए मैंने अपने अंगूठे को बहन की गांड के अन्दर डालते हुए कूल्हे पर दांत गड़ाना शुरू कर दिया। पर वो ब्राउनिश छेद मुझे बेचैन किये जा रहा था। शुभ्रा अब अपना सब दुख दर्द भूलकर उसी पोजिशन में खड़ी रही और स्स.. हम्म… आह… ऐसे शब्द बोलते हुए सिसकारती रही।
तभी मैंने अपनी जीभ को उस खुले छेद में लगाकर चलाना शुरू ही किया था कि वो अपनी गांड को हिलाने डुलाने लगी, मेरी जीभ की नोंक उसकी गांड के अन्दर थी.
वो सिसकारते हुए बोली- आह्ह … हरामी ऐसा करेगा तो मेरी जान न निकल जाये।
मैं- बहन की लौड़ी, मजा आ रहा है कि नहीं?
वो बोली- आह-आह, हाँ बहुत मजा आ रहा है, अजीब सी गुदगुदी हो रही है, ऐसा लग रहा है कि हजारों चींटियां रेंग रहीं हों। हम्म-हम्म … आह्ह … और करो।
फिर मैं उसकी पीठ से चिपक गया और उसकी चूची को भींचते हुए उसके कान को काट रहा था. गर्दन पर जीभ चला रहा था. जबकि शुभ्रा मेरे लंड को पकड़कर अपने चूतड़ों से रगड़ रही थी।
अगले ही पल मैंने शुभ्रा को पलटा और अपनी जीभ निकाल दी, शुभ्रा ने भी अपनी जीभ निकाल ली और मेरी जीभ से लड़ाने लगी।
जीभ लड़ाते हुए शुभ्रा बोली- तुम इतना सब कहां से सीखे?
मैं-बस सीख लिया, तुम बताओ कि तुमको मजा आया कि नहीं?
वो बोली- बहुत!
मैंने जीभ लड़ाना चालू रखा और साथ ही बहन की चूची को भी दबा रहा था। बहुत मजा आ रहा था।
तभी मैंने उसकी चूत को भींचते हुए कहा- अपनी चूत में मेरा लंड लोगी तो और मजा आयेगा।
वो बोली- तो मेरे राजा, देर किस बात की है? डाल दो अपना लंड मेरी चूत में।
मैं- तो उससे पहले उसी तरह का मजा तुम भी मुझे दो।
मेरे इतना कहने भर से ही शुभ्रा ने अपनी बांहें मेरी पीठ में फंसा दी और मेरे निप्पल पर बारी-बारी से अपनी जीभ चलाने लगी. वो बारी बारी से जीभ चलाती या फिर दांत से काट लेती। ऐसा करते-करते वो मेरे सीने, पेट और नाभि को चाटते-चाटते मेरे खड़े लंड पर अपनी जीभ फेरने लगी.
अब सिसकारने की बारी मेरी थी। शुभ्रा भी अब बिना किसी झिझक के मेरे लंड को अपने मुंह में भर रही थी और सुपारे को लॉलीपॉप समझ कर चूस रही थी। वो यहीं नहीं रुकी. मेरी जांघ को चाटते हुए मेरे आड़ू को भी मुंह के अन्दर भर लेती थी।
मुझे भी बहुत मजा आ रहा था। इतना करते करते मुझसे बोली- लाला, जरा घूम तो सही, मैं भी तो देखूं कि गांड में कैसा मजा होता है.
मैं घूम गया.
मेरे कूल्हे को जोर से काटते हुए बोली- मजा तो बहुत है।
तो मैं बोला- हाँ बहन की लौड़ी, अगली बार मैं तुझे बताऊंगा कि कितना मजा है। साली इतनी जोर से कहीं काटते हैं क्या?
शुभ्रा- सॉरी यार!
कहते हुए उसने मेरे कूल्हे को फैलाया और जैसे ही उसकी गीली जीभ मेरी गीली गांड से लगी तो मुंह से निकला- उफ्फ…
क्या बताऊं दोस्तो, पूरे जिस्म में जैसे 11000 किलोवॉट का करंट दौड़ने लगा.
खैर थोड़ी देर तक वो मेरी गांड को चाटने के बाद खड़ी हुई और बोली- अब ये चाटम चटाई बहुत हुई. अब चल, मेरी चूत में खुजली बहुत हो रही है।
मैं- हाँ यार, लंड मेरा भी बार-बार उछाले मार रहा है।
कहते हुए मैंने उसे गोद में उठाया और पलंग पर लेटाकर उसकी कमर के नीचे दो तकिया लगा दी. बहन की चिकनी चूत पाव रोटी की तरह उभर कर मेरे सामने आ गयी। कहानी में पढ़ा था कि चुदाई के समय क्या होता है और कितनी मस्ती आती है, लेकिन जब हकीकत सामने आयी तो पता चला कि चोदन कार्य जितना सरल दिखता है उतना ही कठिन होता है.
खैर मैंने शुभ्रा की टांगें पकड़ीं और लंड को बहन की चूत के मुहाने से लगाकर अन्दर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। तभी दो बातें एक साथ हुईं. एक तो मुझे लगा कि बहन की चूत, चूत नहीं बल्कि एक सुलगती अंगीठी है.
और दूसरा कई बार कोशिश की लेकिन चूत में लंड अन्दर नहीं जा रहा था।
मैं और शुभ्रा दोनों झल्लाने लगे थे और इसी झल्लाट में मैंने एक हाथ से अपना लंड पकड़ा और दूसरे हाथ से बहन की चूत के मुहाने पर उंगली फंसाकर थोड़ा सा खोल दिया और लंड को थोड़ी सी ताकत के साथ अन्दर की तरफ धकेल दिया।
लंड के आगे का भाग अन्दर घुसा ही था कि शुभ्रा चीख पड़ी, मैंने तुरन्त उसके मुंह पर अपनी हथेली रखकर उसके मुंह को पकड़ लिया और बोला- चिल्लाओ मत, नहीं तो मामा-मामी आ जायेंगे। घों-घों … गूं-गूं की आवाज के साथ वो मुझे पीछे की तरफ धकेल रही थी.
तभी शुभ्रा ने मेरे हाथ में जोर से चुटकी काट ली जिससे मेरा हाथ स्वत: ही उसके मुंह से हट गया। जैसे ही मैं उसके चुटकी काटने से बिलबिलाया और मेरा शरीर ढीला पड़ा तो शुभ्रा ने मुझे पीछे धकेल दिया। मैं लगभग गिरते पड़ते जमीन की तरफ लुढ़क गया।
वो तो अच्छा रहा कि मैंने अन्तिम समय पर अपने आपको संभाल लिया नहीं तो पास पड़ी टेबल से मेरा सर लड़ जाता. शुभ्रा भी मुझे इस तरह से गिरता हुए देखकर अपनी तरफ से मुझे सम्भालने की कोशिश करने लगी।
मैं वापस पलंग पर आ गया और शुभ्रा के बगल में लेटते हुए बोला- यार, मूवी में तो लंड बुर के अन्दर बड़ी आसानी से चला जाता है और यहां पर तो बार-बार लंड फिसल जा रहा है। चल कोई बात नहीं, हम लोग पहली बार कर रहे हैं शायद इसीलिए नहीं जा रहा.
शुभ्रा बोली- हम्म, चल एक बार फिर करते हैं.
कहते हुए उसने अपनी टांगें फैला लीं और अपनी बुर का मुंह को खोल दिया। मैं जांघों के बीच आकर उसकी लाल-लाल बुर पर एक बार फिर जीभ फेरने लगा.
वो बोली- भोसड़ी के! सारी रात बुर ही चाटेगा कि लंड भी चूत में डालेगा?
मैं- जानेमन बस तेरी चूत को तैयार कर रहा हूं.
शुभ्रा- चल अब, मेरी चूत तैयार है, आ अब।
घुटने के बल आकर मैंने लंड को मुहाने में लगाया और शुभ्रा से बोला- यार इस बार न तो चिल्लाना और न ही मुझे चिकोटी काटना।
शुभ्रा- चूतिये, डाल तो ले पहले अन्दर! फिर देखूंगी कि क्या करना है!
मैंने लंड को चूत पर फंसा दिया और एक जोर का झटका दिया. लंड कितना अंदर गया ये तो नहीं कह सकता लेकिन शुभ्रा ने कस कर पलंग के सिरहाने को पकड़ लिया. साथ ही अपने दांत भी पीसने लगी. उसका बदन पसीने से लथपथ होने लगा.
झुक कर मैंने उसके निप्पलों को बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया. बीच बीच में मैं उसकी ओर देख भी रहा था. जैसे ही मैंने उसके चेहरे को नॉर्मल देखा तो मैंने एक कस कर झटका दिया. इस बार मेरा अंडा उसकी चूत से टकरा गया.
लंड पर लसलसेपन का अहसास होने लगा.
इधर शुभ्रा के मुंह से निकला- मादरचोद!
कहते हुए एक बार फिर उसने अपने दांतों को भींचना शुरू किया और एक बार मैंने फिर से उसके निप्पल को मुंह में लेकर चूसना चालू किया. इस बार उसकी पसीने से भीगी कांख को सूघने के साथ ही मैं अपनी जीभ भी चला रहा था।
इसी बीच शुभ्रा अपनी कमर को हिलाने लगी। मैं समझा नहीं, लेकिन मैंने अपने लंड को हल्का सा बाहर निकाला और फिर तेज धक्के के साथ लंड को अन्दर कर दिया। इस बार उसके गले से हम्म.. की आवाज निकली लेकिन उसने दांत नहीं भींचे।
मैं इस बार फिर रुक गया और उसकी चूची को मुंह में भरने लगा.
तभी वो बोली- लाला, लंड को अन्दर बाहर करो।
बस फिर क्या था, धीरे-धीरे लंड अन्दर बाहर होने लगा और फिर अपने ही आप अन्दर बाहर होने में स्पीड आ गयी। बहन की चूत और मेरे लंड के मिलन से पैदा होने वाली मधुर आवाज- फच-फच छप की ध्वनि आना शुरू हो गयी.
शुभ्रा सिसकारने लगी- और जोर से … और जोर से … करो आह्ह … कर गोलू।
मेरा हौसला भी बढ़ता जा रहा था। फिर अचानक मुझे लगा कि मेरा जिस्म अकड़ने लगा और लंड में एक तेज खुजली सी महसूस होने लगी. तभी लंड से पिचकारी छूटी और फुहार सा कुछ छूटने लगा. मैं निढाल होकर शुभ्रा के ऊपर ही आ गया।
ऐसे एक भाई ने बहन को चोदा पहली बार!
कुछ एक या दो मिनट ही बीते थे कि मेरा लंड जो अभी तक तना हुआ था वो शिथिल होकर चूत से बाहर आ चुका था. मैं शुभ्रा के ऊपर से उठा और लंड की तरफ देखा तो लंड मे खून लगा था. बस इतना देखते ही मैं कब बेहोश हो गया पता ही नहीं चला.
थोड़ी देर बाद मुझे होश आया और पाया कि शुभ्रा मेरे ऊपर पानी के छींटे मार रही है।
वो मुझसे पूछने लगी- क्या हुआ?
मैं क्या बोलता? पर जब शुभ्रा पीछे ही पड़ गयी तो झूठ बोल दिया कि अचानक चक्कर आ गया था।
फिर शुभ्रा ने मुझे सहारा देकर अच्छे से लिटाया और फिर गीले कपड़े से मेरे लंड को साफ किया और फिर मेरे बगल में बैठकर वो मेरे बालों को सहला रही थी।
हम दोनो अभी भी नंगे ही थे। थोड़ी देर बाद शुभ्रा भी मेरे बगल में आकर मुझसे चिपक गयी और फिर हम दोनों ही एक-दूसरे के आगोश में सो गये। करीब सुबह के चार बजे शुभ्रा ने मुझे जगा कर मुझे मेरे कमरे में जाने के लिये कहा.
मैं उठा, अपने कपड़े लिये और कमरे में आ गया क्योंकि अब मामा-मामी के भी जागने का टाईम हो रहा था। सुबह जब मैं सोकर उठा तो पता चला कि शुभ्रा की तबियत ठीक नहीं है इसलिये वो पढ़ने भी नहीं जा रही. मैं उसके कमरे मे गया जहां पर शुभ्रा अकेली आंख बन्द किये हुए लेटी थी.
धीरे से मैंने शुभ्रा के माथे को सहलाया, उसने आंखें खोलीं तो मैंने पूछा- क्या बात है, सब ठीक तो है?
मुझे घूर कर देखते हुए बोली- मेरी बुर चोदने का मजा तुम्हें मिला और सजा मुझे मिल रही है.
मैं- क्यों क्या हुआ? मजा तो तुमको भी आ रहा था।
शुभ्रा- हाँ तब आ रहा था लेकिन पूरी रात मेरी चूत में जलन होती रही और पेशाब करने जब मैं उठी तो लंगड़ा रही थी तो डर के मारे मैं लेटी रही कि कहीं मम्मी ने पूछ लिया तो मैं क्या जवाब दूंगी, इसलिये तबियत खराब होने का बहाना बना दिया।
मेरी मानो तो तुम भी ऐसा ही करो. आज पढ़ने मत जाओ. कुछ देर के बाद पापा ऑफिस चले जायेंगे. मम्मी मौसी के यहां जाने वाली है, तो फिर मैं और तुम एक बार फिर मजा लेंगे।
मैं- साली, अभी बोल रही थी कि तेरी चूत में जलन हो रही है और उसके बाद तुझे मेरा लौड़ा भी अपनी चूत में चाहिए?
मैंने थोड़ा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।
शुभ्रा तो मुझसे एक कदम और आगे निकलते हुए बोली- बहनचोद, जब तुमने अपनी बहन को चोद ही लिया है तो अब नखरे क्यों मारता है?
फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए बोली- यार चूत के अन्दर जलन नहीं, मीठी-मीठी जलन हो रही है और तुम्हारा ये लंड ही तेरी बहन की चूत की जलन को मिटा सकता है।
मैं- ठीक है। मैं भी कुछ बहाना बना कर बोल देता हूं लेकिन मैं तुझे अभी नंगी देखना चाहता हूं।
वो बोली- ठीक है। मगर ध्यान रखना मम्मी इधर न आ रही हों।
कहकर वो उठी और मैक्सी को अपने जिस्म से अलग कर दिया। नीचे उसने कुछ भी नहीं पहना था। मैं जल्दी से उसके पास पहुंचा और उसके दोनों निप्पलों को एक-एक करके चूसा, चूत और गांड को चूमा और फिर जल्दी से अलग हो गया।
शुभ्रा ने भी जल्दी से मैक्सी को पहन लिया और पलंग पर लेटते हुए बोली- अब तुम्हारी बारी।
मैं खिड़की की तरफ झांकते हुए शुभ्रा के पलंग की तरफ आया, लोअर को नीचे किया और लंड को शुभ्रा के पास ले गया। शुभ्रा ने भी अपनी लपलपाती हुई जीभ से मेरे लंड और गांड दोनों को चूमा.
उसके बाद मैं लोअर को उपर करके बाहर निकल कर आया और मामी के पास रसोई में जाकर कॉलेज न जाने के लिये बोल दिया और मामी ने भी अपनी सहमति जता दी. वो बोली कि वो मौसी के पास जा रही है और मुझे उनको छोड़ने जाना है।
मैंने यह बात शुभ्रा को बताई तो बोली- चल कोई बात नहीं, अभी मम्मी नहाने जायेगी और फिर तैयार होगी तो कम से कम 30-40 मिनट तो लग ही जायेंगे, तब तक हम लोगों के पास मौका है।
तभी मामी की आवाज आयी- लल्ला, मैं नहाने जा रही हूं. तू भी तब तक तैयार हो जा।
बस इतना सुनना था कि शुभ्रा झट से उठी और उसने मेरे होंठों से होंठ चिपका लिये और मेरे होंठों को कस-कस कर चूसने लगी और साथ ही मेरे लंड को अपनी हथेली के बीच फंसाकर भींचने लगी. तभी मेरे हाथ भी स्वतः ही उसकी चूची को भींचने लगे।
थोड़ी देर तक वो ऐसा ही करती रही। जब शुभ्रा का मन रसपान करने से भर गया तो उसने जल्दी से अपनी मैक्सी को उतारा. मेरे सर को पकड़ा और अपने संतरे जैसी चूची पर ले जाकर टिका दिया। चिरौंजी जैसे निप्पल के दाने पर मैं अपनी जीभ चलाने लगा और अपने होंठों के बीच फंसाकर उसको पीने लगा.
शुभ्रा अपनी चूत के साथ खेलने में मग्न हो गयी। बीच में मौका पाकर मैंने भी अपने कपड़े उतार लिये और फिर घुटने के बल बैठ कर शुभ्रा की आग उगलती चूत पर अपनी गीली जीभ लगा दी।
उसके मुंह से शाआआ आआ … की एक आवाज आयी। चूत की फांकों के बीच मेरी जीभ चलने लगी और एक कसैला सा स्वाद मेरी जीभ को मिलने लगा। मैं उसकी पुतिया पर भी जीभ चला रहा था और साथ ही उसको दांतों से हल्का-हल्का सा काट रहा था।
तभी शुभ्रा ने मुझे हल्का सा धक्का दिया और मैं जमीन पर लेट गया और वो मेरे पैरों के बीच बैठकर मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी. पता नहीं कब मेरे हाथों ने उसके सिर को पकड़ लिया और उसके मुंह को लंड पर दबाने लगे. मैं नीचे से धक्का लगाने लगा.
शुभा गूं-गूं की आवाज करने लगी. मगर उसने मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश भी नहीं की. थोड़ी देर इस तरह करने के बाद मैं और शुभ्रा एक-दूसरे से अलग हुए और फिर पलंग पर शुभ्रा लेट गयी और अपनी टांगों को चौड़ा कर लिया. मैंने उसकी टांगों के बीच में पहुंचकर लंड को हाथ में लेकर बहन की चूत के मुहाने में टिका दिया और हल्का सा धक्का लगाया.
इस बार लंड बिना किसी आनाकानी के अन्दर चला गया। मेरा उत्साह और बढ़ गया और मैं लंड को बहन की चूत के अन्दर और धकेलने लगा. चूत लसलसा रही थी और मेरे लंड में खुजली हो रही थी. इधर शुभ्रा भी अपनी कमर को उचका कर लंड को चूत में मजे से अन्दर ले रही थी।
कुछ समय बाद ही धक्कों की गति में तेजी आ गयी। बीच-बीच में रुक-रुक कर फिर से चुदाई शुरू हो जाती थी और फिर अन्त में जो होना था वो होने लगा. मेरा शरीर अकड़ने लगा और लंड ने एक बार फिर धार को मेरी बहन की चूत में छोड़ दिया और मैं निढाल होकर शुभ्रा के ऊपर आ गया।
इस तरह एक भाई ने बहन को चोदा दूसरी बार!
तभी मामी की आवाज आयी- लल्ला तैयार हुआ कि नहीं?
मैं जल्दी से शुभ्रा के ऊपर से हटा और अपने कमरे में भागा और 10 मिनट में नहा धोकर बाहर आया।
शुभ्रा मुझे दरवाजे पर ही मुस्कुराते हुए मिली। फिर मैं मामी के साथ शुभ्रा की मौसी के यहां चला आया। उसके बाद जब भी मौका लगता या जब भी हमें एक दूसरे की जरूरत होती तो हम लोग खूब जम कर चुदम-चुदाई करते।
तो दोस्तो, मेरी कहानी ‘भाई ने बहन को चोदा’ कैसी लगी, मुझे अपने कमेंट्स में बताना न भूलें. अपने विचार मेरे साथ साझा करने के लिए आप मुझे मेल भी कर सकते हैं.
आप सभी के मेल के इंतजार में- आपका अपना शरद सक्सेना।
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