भाई के लंड की दीवानी

हाई फ्रेंड्स! मैं मोनिका मान हिमाचल की रहने वाली हूँ। मेरे स्तन 32 कमर 28 कूल्हे 36 के आकर के हैं। मैं ज्यादातर जीन्स और शर्ट पहनती हूँ। मेरा रंग गोरा और लड़कों की तरह छोटे बाल रखती हूँ। मेरे घर में मेरे पापा, माँ, भाई, मेरी बड़ी बहन निकिता और मैं। अब आपका वक्त बर्बाद ना करते हुए सीधे कहानी पर आते हैं।

मुझे पापा से मिले हुए दो साल से भी ज्यादा हो गए थे तो मैं पापा से मिलने दिल्ली जाना चाहती थी। मेरे भाई को किसी काम की वजह से कंपनी से छुट्टी नहीं मिली तो मुझे अकेली जाना पड़ा। मैं पहले कभी दिल्ली नहीं गयी थी तो मुझे घबराहट भी हो रही थी और दिल्ली देखने का मन भी हो रहा था।

तो मैंने दीदी को कॉल किया और उनको बोला- मैं दिल्ली आ रही हूँ, मुझे रिसीव करने आ जाना आई अस बी टी दिल्ली पर! और पापा को मत बताना कि मैं आ रही हूँ। क्योंकि मैं पापा को सरप्राइज़ देना चाहती थी।

मैं सुबह 3 बजे चली और शाम को 6 बजे पहुँची। जब पहली बार दिल्ली को देखा तो दिल किया कि वापिस चली जाऊँ। यहां का ट्रैफिक देख कर ही मैं पागल हो गयी थी। मैं थक गयी थी।
दिल्ली पहुँचते ही मैंने बहन को कॉल किया कि मैं आ गयी हूँ मुझे लेने आओ।

तभी दीदी आ गयी और मुझे मेट्रो ट्रेन से लेकर गयी। उस दिन मैं पहली बार मेट्रो ट्रेन का सफर कर रही थी। मेट्रो में बहुत भीड़ थी उस दिन और हम दोनों बहनें साथ साथ खड़ी हो गयी. तभी पीछे से एक लड़का मुझसे बिल्कुल चिपक गया भीड़ की वजह से। मेरे जीन्स में मेरे कूल्हों के उभार साफ दिखाई दे रहे थे।
तभी किसी ने अपना हाथ मेरे कूल्हों पर रख कर दबा दिया। मैं कसमसा कर रह गयी। मैं किसी को कुछ बोल भी नहीं सकती थी क्योंकि मैं यहां नई थी और दीदी को बताना भी अच्छा नहीं लगा। मैंने सोचा कि जो हो रहा है होने दो।

कुछ पल बाद ही मेरे कूल्हों पर कुछ चुभन सी महसूस हुई तब मुझे पता लगा कि वो मुझे उस लड़के का लण्ड चुभ रहा है। मैं भी उस पल का आनन्द लेने लगी। थोड़ी देर बाद जब भीड़ कम हुई तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा कि एक स्मार्ट सा लड़का खड़ा है मेरे पीछे जो ये हरकत कर रहा था।

जब हमारा स्टेशन आया तो हम दोनों बहनें उतर कर चल दी और वो लड़का भी हमारे साथ साथ चलने लगा। पापा का फ़्लैट डी ब्लॉक की सातवीं मंजिल पर था वो लड़का भी उसी सोसाइटी में घुस गया और सी ब्लाक में चला गया।

जब हम घर पहुंचे तो पापा की कॉल आई- निकिता, मैं बंगलोर जा रहा हूँ 7 से 10 तक के लिए।
मुझे अच्छा नहीं लगा लेकिन कर भी क्या सकती थी। वापस भी नहीं आ सकती और यहां भी रहने का दिल नहीं था।
खैर मैंने पापा से बात की और उनको बता दिया कि मैं भी दिल्ली ही हूँ। पापा खुश हुए और मुझे वापिस आकर मिलने को कहा।

मैंने बाथ लिया और कपड़े बदल कर बैडरूम में घुस गयी। तभी मुझे कुछ आवाज सुनाई दी. शायद दीदी किसी से बात कर रही थी. जब बाहर आकर देखा और बातें सुनी तो पता लगा कि दीदी अपने बोयफ़्रेंड से बात कर रही है और अपने बॉयफ्रेंड को बता रही है कि पापा एक सप्ताह के लिए बाहर गए हैं. लेकिन मेरी बहन घर पर ही रहेगी तो कैसे मिलेंगे।

तभी दीदी वहाँ से अंदर की तरफ आने लगी तो मैं वापस बैडरूम में जाकर लेट गयी।

कुछ देर बाद दीदी अपनी बातें खत्म कर के मेरे पास आई और बोली- मोनिका, खाना बाहर से मंगवाना है या यहीं बनाऊँ?
मैंने कहा- आपको कोई काम है तो बाहर से मंगवा लो, नहीं तो यहीं बना लेंगे।

निकिता ने खाना ऑर्डर कर दिया और फ़ोन पर बात करने लगी। कोई 15 मिनट बाद वही लड़का जो मेट्रो ट्रेन में मेरे साथ हरकत कर रहा था, खाना लेकर आया।
मुझे कुछ गड़बड़ लगी।
खैर हमने खाना खाया और मैं सोने के लिए बैडरूम में चली गयी।

मैं सोच रही थी कि दिल्ली के बारे में दीदी से ढेर सारी बातें पूछूंगी लेकिन दीदी अपने अलग बैडरूम में जा कर लेट गयी और फ़ोन पर बातें करने लगी। मैं जो सोच रही थी, उससे कहीं बहुत अलग विचार हो गए थे दीदी के। इसी सोच-विचार में और दिन भर की थकावट की वजह से मेरी आँख लग गयी।

सुबह 9 बजे मेरी आँख खुली तो देखा कि निकिता दीदी नहा धोकर कहीं जाने की तैयारी कर रही है।
मैंने पूछा- दीदी, आप कहीं जा रही हो?
तो दीदी ने कहा- मैं दोस्तों के साथ घूमने जा रही हूँ। शाम को 7 बजे तक आ जाऊँगी और हाँ तुम्हारे लिए खाना रखा है, खा लेना।
मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।

मैंने फ्रेश होकर बाथ लिया और नाश्ता किया। घर पर अकेली ही थी मैं, तो बोर हो रही थी। शाम को दीदी अपने साथ खाना लेकर आई और मुझे खाना देकर बोली- खाकर सो जाना।
मेरे साथ गैरों वाला बर्ताव हो रहा था।
इसी तरह मैंने दो दिन गुजारे।

अगले दिन जब सुबह उठी तो दीदी घर पर नहीं थी। मुझसे यहां रुका नहीं जा रहा था; मैं खुले पहाड़ों में रहने वाली … यहां की घुटन सहन नहीं हो रही थी। मैंने कपड़े पैक किये और बाथ लिया। वापस घर जाने की तैयारी की लेकिन मुझे रास्ता भी नहीं मालूम था। मैंने बुआ जी के लड़के संजय को कॉल किया और उनको सब बताया तो उन्होंने कहा- आप यहीं रुको, और मुझे अपने अपार्टमेंट का नाम बताओ, मैं खुद लेने आऊंगा आपको! क्योंकि मैं खुद दिल्ली में हूँ और आज शाम को घर जाऊंगा।

मैंने अड्रेस मेसेज किया और भाई 1 घण्टे में एड्रेस पर पहुंच गए। मैंने उनको अंदर बुलाया और पानी पिलाया। मैं चाय बनाने के लिए रसोई में गयी तो भाई भी मेरे साथ आ गए और घर के बारे में और निकिता दीदी के बारे में पूछा।
फिर हमने चाय पी और बातें करने लगे।

भाई ने बताया- मैं यहाँ किसी काम से आया हूँ और यहां होटल में ठहरा हूँ. अगर तुमको अभी चलना है तो अभी चलो, या फिर दोपहर बाद चलेंगे, तब तक मैं नहा लूंगा।
मैंने कहा- नहा लो।
तभी भाई बोले- दो महीने हो गए, आज मेरे साथ नहीं नहाओगी?
मैने हाँ कर दी क्योंकि इन दो महीनों मैं मैंने अपनी चूत को छुआ तक नहीं था, मेरा भी मन हो रहा था।

तो मैंने पहले पापा को कॉल किया- मैं वापस जा रही हूँ, यहां मेरा मन नहीं लगता। और संजय भाई जी आये हुए हैं, उनके साथ जा रही हूँ।
तब पापा ने अनुमति दी घर जाने की और संजय से बात की।

तभी भाई ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने सीने से चिपका लिया और मेरे माथे पर किस करते हुए बोला- चलो अब बाथरूम में!
मैं वहीं उनसे चिपके हुए खड़ी रही।
तब संजय ने मुझे अपनी बाँहों में उठाया और बाथरूम में ले गए। बाथरूम में मैंने एक एक करके संजय के सभी कपड़े उतार दिए और संजय ने भी मुझे बिल्कुल नंगी कर दिया।

मेरी चूत पर बाल थे तो संजय ने कहा- इनको साफ तो कर लेती?
मैंने कहा- भाई, आप कर दो।
तभी संजय ने कहा- चलो निकिता के रूम में … वहां शायद क्रीम मिल जाये।
दीदी के रूम में से क्रीम लेकर हम वापस बाथरूम में आ गए और भाई ने चूत को पानी में भिगो कर क्रीम लगा दी।

15 मिनट तक भाई मेरे होंठ चूसते रहे और मेरी चूचियाँ दबाते रहे। फिर भाई ने चूत से क्रीम को साफ किया जिससे मेरी झांट के बाल भी बिल्कुल साफ हो गए और एकदम से गुलाबी चूत भाई के सामने थी।
भाई ने मेरा मुख शॉवर की तरफ कर के थोड़ा आगे को झुक दिया और मेरे हाथों को दीवार से सटा दिया और मेरे पीछे आकर अपने लण्ड को मेरे कूल्हों के बीच में सटा कर शावर चला दिया।
भाई अपने हाथों को मेरी चूचियों पर रख कर सहलाने लगे। मेरी पीठ पर किस करते तो कभी मेरी गर्दन पर और जोर से चूचियों को मसलने लगे।

मैं सातवें आसमान पर थी। मैं शब्दों में बता नहीं सकती कि मुझे कितना मज़ा आ रहा था।

तभी भाई अपना लण्ड मेरी चूत और गांड पर रगड़ने लगे और अपने होंठों को मेरे कान के पास लाकर धीरे से बोले- यार मोनिका, डाल दूँ क्या?
मैं- हाँ भाई, डाल दो।
संजय- कहाँ?
मैं- जहां आपको अच्छा लगे।
संजय- मुझे ही अच्छा क्यों … तुमको भी तो अच्छा लगना चाहिए ना!
मैं- जहां आपको अच्छा लगे, वहां मुझे अच्छा लगेगा।

संजय ने धीरे से मेरी गांड पर लण्ड रख कर दबाव बनाया तो लण्ड का सुपारा अंदर चला गया।
मुझे बहुत दर्द हुआ मेरी आँखों से आंसू निकल आये।

तभी संजय ने मेरे दर्द को समझते हुए लण्ड बाहर निकाल लिया और मेरी चूत में डालने लगे. मुझे हल्का हल्का दर्द हुआ क्योंकि मुझे दो महीने हो गए थे सेक्स किये हुए।
हम दोनों बहन भाई शॉवर के नीचे कुछ देर यूँ ही खड़े रहे।

फिर भाई ने लण्ड बाहर निकल कर शावर बन्द किया और तौलिये से अपना और मेरा बदन साफ किया और मुझे नंगी ही बाँहों में भर कर बैडरूम में ले गए। मुझे बेड पर लेटा दिया और खुद बेड पर लेट गए और मुझे अपने ऊपर खींच लिया.

हम दोनों के होंठ आपस में मिल गए, मेरी मुलायम जीभ को उन्होंने अपने मुंह में लेकर चूसा। मैं तो और भी गर्म हो चली थी। अपने नंगे बदन को मैं भाई के नंगे बदन से रगड़ने लगी। भाई का पूरी तरह तना हुआ लम्बा और मोटा लण्ड किसी लोहे की रोड की तरह, मेरे पैरों के बीच में से मेरी गांड को छू रहा था। मैं अपनी दोनों कड़क चूचियां भाई की हल्के बालों वाली छाती पर रगड़ रही थी।

मैं भाई का लंड अपनी चिकनी चूत में लेने को बेक़रार थी। मैंने अपना हाथ नीचे कर के संजय के लंड को पकड़ कर अपनी चूत पर लगाया। उन के हाथ मेरे बदन पर घूमते हुए मेरी गोल गोल गांड पर पहुंचे और मेरी गांड को दबाया। उन की उँगलियाँ कई बार मेरी गांड के बीच की दरार में घूमी तो मैं और भी बेक़रार हो जाती।

भाई भी समझ चुके थे कि मैं जल्दी से जल्दी चुदवाना चाहती हूँ। उन्होंने मुझे थोड़ा ऊपर किया और मेरी चूची चूसने लगे। वो कुछ इस तरह से अपनी जीभ मेरी निप्पल पर घुमा रहे थे कि मैं तो पागल सी हो गई थी।
अब हम चुदाई करने की परफेक्ट पोजीशन में थे।

मैंने फिर से अपना हाथ नीचे किया और भाई के तने हुए लंड को पकड़ कर मेरी गीली चूत के दरवाजे पर रखा और अपनी गांड नीचे की और लंड पर बैठ गयी थी. मेरी चूत तो गीली थी इसलिए लंड पर दो तीन बार उठने बैठने की वजह से भाई का पूरे का पूरा लंड मेरी चूत के अन्दर चला गया। मजेदार चुदाई के लिए मैंने अपने दोनों हाथ पीछे कर के भाई की जाँघों पर रख लिए ताकि उनका लंड आराम से मेरी चूत में आ जा सके।

वो मेरी चूचियां मसल रहे थे और मैं उनके ऊपर उनका लंड अपनी चूत में लेकर चुदाई के लिए तैयार थी। चुदाई करने के पहले मैंने पोर्न फिल्मों की तरह भाई के लंड को अपनी चूत में पकड़े हुए अपनी गांड को थोड़ा ऊपर होकर गोल गोल घुमाया।
मैंने ऐसा पहली बार किया था और मुझे बड़ा मज़ा आया. मैं अपनी गांड गोल गोल घुमाती जा रही थी और उनका लंड मेरी चूत के अन्दर घूम रहा था। आप खुद समझ सकते हैं कि इसका क्या असर होता है।

भाई मेरा पूरा पूरा साथ दे रहे थे क्योंकि उनको भी मज़ा आ रहा था। अब मैं चुदवाना चाहती थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गांड ऊपर नीचे करनी शुरू की थी लेकिन मेरी रफ़्तार अपने आप बढ़ती गई। मैं अपनी चूत का धक्का नीचे लगा रही थी और भाई अपने लंड का धक्का अपनी गांड ऊपर करके मेरी चूत में लगा रहे थे। मैंने देखा कि मेरी दोनों चूचियां हर धक्के के साथ ऊपर नीचे हिल रही थी।

भाई के गरमागरम लंड के धक्के मेरी गर्म और गीली चूत में लग रहे थे और चुदाई का मधुर संगीत बजने लगा। मैं चुदवाती हुई अपनी मंजिल पर पहुँचने के करीब थी और मैं भी अपनी गांड हिला हिला कर आगे पीछे करके चुदाई में भाई का साथ दे रही थी।

कुछ देर ऐसे ही चुदवाते हुए मैंने भाई के लंड के सुपारे को अपनी चूत में मोटा होता महसूस किया तो मुझे पता चल गया कि भाई का लंड भी पानी बरसाने को तैयार है। मैं भी झड़ने के काफी पास थी और भाई भी मेरी चूत में जोर जोर से धक्के मारने गए.
और फिर मैं तो अपनी मंजिल तक पहुँच ही गयी।

भाई लगातार मुझे चोदते जा रहे थे। और अचानक उनके लंड ने अपना गर्म गर्म रस मेरी रसीली चूत में बरसना शुरू कर दिया। भाई का लंड नाच नाच कर मेरी चूत अपने रस से भर रहा था और मैंने मज़े के मारे अपनी गांड भींच करके उनके पानी बरसते हुए लंड को अपनी चूत में जकड़ लिया और भाई के ऊपर लेट गयी।
मेरी आँखें तो मजेदार चुदाई के कारण बंद सी हो रही थी.

हम कुछ देर वैसे ही पड़े रहे। करीब 15 मिनट बाद हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए। हम दोनों ने दोबारा बाथ लिया और कपड़े पहन कर सामान गाड़ी में रख दिया और घर को चल दिए।
रास्ते में भी हमने बहुत मज़ा लिया।

दिल्ली से वापस घर तक की घटना अगली कहानी में बताऊँगी।

दोस्तो, कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी, मुझे मेल जरूर करना।
धन्यवाद
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