दोस्तो, मैं राज एक बार फिर से अपने छोटे भाई की बीवी के साथ हुई चुदाई की कहानी में आपका स्वागत करता हूँ.
उस बात के दस दिन बाद मुझे छोटे भाई का सुबह आठ बजे फोन आया कि आज शाम का खाना उसके यहां होगा.
मैंने हां कर दी.
वैसे मेरी और ज्योति की बात फोन पर होती रहती थी.
मुझे खुद भी ज्योति को चोदने का मन कर रहा था.
दोपहर के दो बजे ज्योति का भी फोन आया- शाम को कितने बजे आओगे?
मैंने कहा- आने पर गिफ्ट क्या मिलेगा?
उसने कहा- जो चाहो.
मैंने कहा- ना तो नहीं करोगी?
इस पर वो बोली- क्या चाहिए?
मैं बोला कि ब्रा और पैंटी और वो भी तुम मुझे अपने पति के सामने दोगी.
वो बोली- पागल हो गए हो क्या … उसके सामने मैं तुम्हें अपनी ब्रा पैंटी कैसे दूंगी … अकेले में दे दूंगी.
मैंने हंस कर कहा- डार्लिंग अकेले में तो ये सब करना आसान है. मजा तो तब आता है, जब सबके सामने आंखों में धूल झौंक कर इजहारे मुहब्बत करोगी.
उसने कहा- अच्छा जी … मतलब तुम अपनी लैला को सूली पर लटका हुआ देखना चाहते हो?
मैंने कहा- डार्लिंग, मुझे मालूम है कि मेरी लैला इतनी हिम्मत वाली है कि वो मेरी बात को न केवल पूरा करेगी बल्कि मुझसे अपनी गांड मरवा कर भी दिखाएगी.
वो हंसने लगी और बोली- मान गए … बड़े हरामी किस्म की चीज हो तुम. मेरी ब्रा पैंटी तक तो बात ठीक थी. मगर अब मुझसे मेरी गांड मारने की बात भी इतनी आसानी से कह दी.
मैंने कहा- हां यार ज्योति … उस दिन तुम्हारी गांड मारने का बड़ा दिल कर रहा था. मैंने मन बना लिया है कि आज तुम्हारे घर आकर तुम्हारी गांड जरूर मारूंगा.
वो भी मस्ती में थी तो बोली- चलो आ जाओ मेरी जान … गांड मारने की कामना भी पूरी कर दूंगी.
मैंने कहा- क्या आनन्द ने भी पीछे का स्वाद चख लिया है?
ज्योति ने कहा- उससे आगे का किला ही तो मुश्किल से फतह होता है. पीछे की बात तो छोड़ो.
मैंने कहा- तुम्हें मालूम है न कि पीछे से मजा लेना कितना दर्द देता है?
ज्योति बोली- हां मालूम है.
मैंने कहा- कैसे मालूम है?
वो बोली- अब पूरी कथा फोन पर ही सुन लोगे … या आकर भी कुछ बात करोगे?
मैंने कहा- क्यों अभी बात करने में कुछ दिक्क्त है क्या?
वो बोली- नहीं, अभी तो एकदम फ्री बैठी हूँ. आनन्द भी अभी तक नहीं आया है.
मैंने कहा- क्यों, वो कहां चला गया है?
वो बोली- मैंने उसे किसी सामान के लिए बाहर भेजा है.
मैंने कहा- ये तुमने सही बात बताई है. जब मैं आऊंगा, तब क्या तुम उसे किसी काम के लिए एक घंटा के लिए बाहर भेज सकोगी?
वो बोली- क्यों तुम्हें तबला बजाने में एक घंटा लगेगा क्या?
मैं हंस दिया कि गांड मारने को तबला बजाने की कह रही है.
मैंने कहा- तबला तो तब बजेगा, जब तुम पहले बांसुरी बजा लोगी.
वो भी हंस गई कि मैं बांसुरी बजाने की बात मतलब लंड चूसने की बात कर रहा हूँ.
मैंने उसे फिर से याद दिलाया कि अब दो काम हो गए. एक गांड मरवाना और दूसरा आनन्द के सामने ब्रा पैंटी देना.
मेरी बात पर पहले तो उसने ना किया लेकिन मेरे काफी बोलने पर हां बोल दिया.
मैंने कहा- साथ में मैं तुम्हारी पीछे से भी लूंगा … और हां मुझे मलाई भी चाटनी है.
इस पर वो हंसी और बोली- समय मिला तो वो सब भी मिलेगा. क्या तुम्हारा जी अभी तक नहीं भरा?
इस तरह से हम दोनों ने आधा घंटा रोमांटिक बात की.
फिर मैं सोचने लगा कि ज्योति सबके सामने मुझे ब्रा पैंटी कैसे देगी … और पीछे से लेने की बात तो भूल ही जाऊं, तो ठीक रहेगा. चलो खैर … मिल तो लेंगे ही.
यह सोच कर मैं शाम का इन्तजार करने लगा.
मैं अपने घर जाकर रात के जाने की तैयारी की.
फिर आठ बजे पहुंच गया.
मैं पहले आनन्द से मिला और उसी समय ज्योति को देखा.
वो पानी लेकर आयी.
मैंने उसे आंख मारी.
जिस पर उसने भी आंख मारकर मेरा जवाब दिया.
अब वो हाल-चाल और समाचार पूछने लगी.
फिर आनन्द और मैं क्रिकेट मैच देखने लगे.
अचानक ज्योति ने आनन्द को बुलाया.
आनन्द दो मिनट बाद आया और बोला- राज तू बैठ कर मैच देख, मैं कुछ देर में मार्किट से आता हूँ.
आनन्द के जाते ही ज्योति सीधा बाहर आई और दरवाजा लॉक करके खिड़की से आनन्द को जाते हुए देखने लगी.
उसके बाद ज्योति सीधा किचन की ओर चल दी. मैं भी उसके पीछे किचन की ओर चला गया.
मैंने कहा- लाओ, मैं खाना बनवाने में तुम्हारी मदद कर दूँ.
ज्योति बोली- खाना तो कब का बन गया.
मैं ज्योति की ओर बढ़ा तो उसने मुझे रोका और कहा- बस मेरे मेकअप का ध्यान रखना और पीछे की तुम जैसे चाहे ले लो.
वो घूमकर खड़ी हो गई. उसने बालों का जूड़ा बना रखा था. ग्रीन साड़ी और ब्लाउज़ में पीछे से एक पतली सी पट्टी … ऊपर से एक लेस बंधी थी.
मैं उसको पीछे से पकड़कर बोला- आज की सारी प्लानिंग तुम्हारी थी ना?
इस पर वो बोली- हां … लेकिन तुम्हारी शर्तों ने मुझे कुछ ज्यादा ही परेशान कर दिया.
इस पर मैं बोला- परेशान तो तुम्हें अब होना है.
मैंने अपना लंड निकाला और साड़ी के ऊपर से ही पीछे से रगड़ने लगा.
वो बोली- डाल भी लो अब!
मैंने पीछे से उसकी साड़ी उठाकर उसकी पैंटी नीचे की और उसकी गांड पर चमाट लगा दी.
इस पर वो पलटकर मुझे देखने लगी और बोली- ये क्या कर रहे हो?
मैंने अपना लंड उसकी गांड में सैट करके एक तगड़ा स्ट्रोक लगा दिया.
ज्योति की आंखों से आंसू आ गए.
वो मुझे रुकने के लिए बोल रही थी पर मैंने अपना काम जारी रखा.
मैं बीच में रुका और उसकी पीठ पर किस की बौछार कर दी.
उसके कान को भी हल्का सा बाइट किया.
इससे आगे उसने मुझे रोक दिया.
मैं फिर से अपने काम में लग गया और पंद्रह बीस झटकों के बाद जोर से उसके मम्मों को दबाते हुए उसकी गांड में ही झड़ गया.
मैं वहीं किचन की पट्टी पर ही उसके ऊपर निढाल हो गया.
दो तीन मिनट तक उसकी पीठ को किस करता रहा और दोनों हाथों से उसके मम्मों को दबाता रहा.
जेठ बहू चुदाई के बाद हम दोनों अलग हुए, अपने अपने कपड़े ठीक किए.
उसने कहा- तुम हॉल में बैठो, मैं फ्रेश होकर आती हूँ.
मैं हॉल में बैठ गया सोफे पर, ज्योति भी फ्रेश होकर मेरे बगल में आकर बैठ गई.
मैं उसे पीठ पर गर्दन पर किस करते हुए उससे बातचीत कर रहा था.
मैंने कहा- अभी मलाई चाटना बाकी है.
वो बोली कि रोका किसने है.
ये सुनकर सोफे पर ही मैंने उसकी साड़ी ऊपर की और अपने होंठों से उसके पैरों को सहलाते हुए उसकी पैंटी तक पहुंच गया.
उसकी पैंटी को एक हाथ से साइड करके उसकी चुत चाटने लगा.
बीच बीच में मैं उसकी चुत के दाने को खींच कर चूस लेता, तो वो तिलमिला जाती.
आखिर दो मिनट बाद ही उसने अपना रस छोड़ दिया, जिसे मैं पूरा चाट गया.
फिर उसने मुझे दूर कर दिया.
मैंने बाथरूम में जाकर खुद को साफ़ किया और बाहर हॉल में सोफे पर आकर बैठ गया.
मैं उससे पूछने लगा- कैसा लगा?
इस पर उसने कंटीली मुस्कान के साथ कहा- बड़े वो हो गए हो तुम!
मैंने कहा- अब ब्रा और पैंटी आनन्द के सामने कैसे दोगी?
उसने कहा- देखते जाओ. ये तो मेरे दाएं हाथ का कमाल है.
इतने में दरवाजा नॉक हुआ, ज्योति उठी और नॉर्मल होकर दरवाजा खोलने चली गई.
मैं भी नॉर्मल हो गया. आनन्द अन्दर आया, फिर हम लोग बात करने में व्यस्त हो गए थे.
नौ बजे खाने के लिए ज्योति ने हमें बुलाया.
मैंने देखा तो उधर सिर्फ तीन कुर्सियां थीं.
एक में आनन्द बैठ गया; दूसरी में ज्योति बैठ गई.
ज्योति के बगल में एक कुर्सी बची थी, जिस पर मैं बैठ गया.
सब लोग बैठ गए थे.
ये कैंडल लाईट डिनर था, तो लाईट ज्यादा नहीं थी.
ज्योति ने एक कैंडल भी जलाई थी बस!
हम तीनों ने खाना शुरू किया.
तभी ज्योति ने आनन्द की नज़र बचाते हुए पहला निवाला मेरी थाली में रख दिया और मेरी ओर देखकर मुस्कुरा दी.
मैंने भी जल्दी उठाकर खा लिया.
हम तीनों लोग बातचीत करते हुए खाने में व्यस्त थे.
तभी ज्योति ने अपना पैर मेरे पैरों पर रख दिया और मुझे छेड़ने लगी.
मैंने भी स्टार्ट करते हुए अपना बांए हाथ से उसकी कमर पर चुटकी ले ली.
इस पर उसने मेरे पैरों को ज़ोर से दबाया. हमारा ये खेल मस्ती से चल रहा था.
अब मैं ज्योति की पूरी कमर पर हाथ फेरने लगा था.
उसके चेहरे के भाव से लग रहा था कि उसे भी मज़ा आ रहा है.
आगे मैंने उसके पैरों पर हाथ रखा और धीरे से सहलाने लगा.
वो खाना खाते हुए अपने होंठों को बीच बीच में दबा लेती.
मैंने धीरे से उसकी साड़ी को उठाना शुरू कर दिया.
यह सब नॉर्मल तरीके से खाना खाते हुए हो रहा था और आनन्द को पता भी नहीं चल रहा था.
जब ज्योति की साड़ी घुटने के ऊपर तक आ गई तो मैंने पहले उसके पैरों को सहलाया. फिर और साड़ी के अन्दर हाथ डालकर उसकी पैंटी को एक तरफ से खींचना चालू किया.
एक तरफ से तो मैंने पैंटी को खींच लिया था, लेकिन उसके बैठे होने के कारण पूरा नहीं खींच पा रहा था.
अब मैं क्या करता.
मैंने ज्योति की तरफ देखा तो वो मुस्कुराती हुई बात कर रही थी.
एक बार उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराकर आंख मारते हुए मुझे ग्रीन सिग्नल दे दिया.
इस बार वो हल्का सा अपनी सीट से उठी.
मैं समझ गया और मैंने झट से उसकी पैंटी को हिप्स से अलग करके खींच लिया.
फिर मैं धीरे धीरे उसकी पैंटी को घुटने तक भी ले आया.
आगे मैंने घुटने से पैंटी नीचे की और अपने पैरों के सहारे पूरी पैंटी उसकी नीचे कर दी.
अब ज्योति ने खुद ही अपनी पैंटी पैरों से अलग कर दी.
मैंने भी चम्मच नीचे गिराई और उसकी पैंटी उठाकर अपनी जेब में रख ली.
मैं फिर से उसकी नंगी कमर को सहलाने लगा जिसका पूरा मज़ा ज्योति ले रही थी.
हमने खाना खाया और सोफे पर बैठकर बात करने लगे.
अब मेरे निकलने का समय आ गया था.
निकलते वक्त ज्योति ने मुझे स्वीट्स का टिफिन दे दिया जिसमें उसकी ब्रा थी.
जब मैंने अपने घर जाकर टिफिन खोल कर देखा तब मुझे समझ आया.
क्योंकि ज्योति मुझे बार बार ब्लाउज पर हाथ रखकर इशारा कर रही थी.
तो दोस्तो, ऐसा था मेरा ज्योति के साथ डिनर और गांड चुदाई की कहानी का मजा.