चौराहे पर खड़ा दिल-13

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

चौराहे पर खड़ा दिल-12

चौराहे पर खड़ा दिल-14

कुंवारी लड़की चुदाई कहानी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपनी अनचुदी कामवाली को नंगी कर लिया था. अब मैंने उसे चोद कर कलि से फूल बनाना था. ये सब मैंने कैसे किया?

सानिया ने मेरे लंड को पहले तो होले से छूकर देखा और फिर उसे हाथ में लेकर दबाने लगी। मेरा लंड तो नाजुक अँगुलियों का स्पर्श पाते ही और भी ज्यादा खूंखार हो गया।
अब तो आगे का रास्ता बिल्कुल निष्कंटक लगने लगा था। अब तक मेरा एक हाथ हाउस मेड की बुर तक पहुँच गया था। सानिया ने थोड़ा आह … ऊंह … तो जरूर किया पर ज्यादा विरोध अब उसके बस में नहीं था। अब मैंने उसकी जांघें थोड़ी सी और फैला दी थी। मेरी शातिर अंगुलियाँ उसके चीरे पर ऊपर नीचे फिसलने लगी थी।

आह … गुनगुना सा अहसास … जैसे किसी शहद की भरी कटोरी में अंगुली चली गई हो। अब तो सानू जान जोर-जोर से मेरे लंड को सहलाने और मसलने लगी थी।

अब आगे की कुंवारी लड़की चुदाई कहानी:

मैं सोच रहा था अब निरोध लगाने का समय आ गया है।
“सानू … तुम कितनी खूबसूरत हो.” मैंने उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए कहा।
उसने कुछ नहीं बोला। वह तो आँखें बंद किए बस आ … ऊंह ही किए जा रही थी।

“सानू मेरी जान प्लीज … एक बार मेरे इसको (लंड) को अपने अनमोल खजाने पर रगड़ लेने दो प्लीज?”
“आह … नहीं … वो … वो … प्रीति … दीदी …” सानिया कसमसाकर मुझे दूर करने की कोशिश करने लगी थी।
“इस साली प्रीति की तो मा … की च … अब यह बीच में कहाँ से आ टपकी?”
“वो बोलती है …”

“ओह … क्या फरमाती है?”
“ऐसा करने से बच्चा ठहर जाता है?”
“अरे तुम भी निरी पूपड़ी हो ऊपर घिसने से कोई बच्चा थोड़े ही होता है.”
“नहीं … नहीं मुझे डर भी लगता है आप उसमें डालोगे तो उसमें बहुत दर्द भी होगा ना?”

हे लिंगदेव! तेरी लीला तो अपरम्पार है। मेरी यह सोनचिड़ी तो मेरे से भी बहुत आगे का सोचने लगी है। मैं तो सोच रहा था अपने लंड को उसकी बुर में डालने का क्या बहाना बनाऊँ पर भगवान् ने तो मुझे बिना मांगे ही सब कुछ देने की योजना जैसे पहले से ही बना रखी है।
“अरे मेरी जान! मैं अपनी महबूबा को दर्द थोड़े ही होने दूंगा और जहाँ तक बच्चा ठहरने की बात है मैं निरोध लगा लेता हूँ तो उससे बच्चा ठहरने का भी कोई डर नहीं होगा? ठीक है ना?”

अब मुझे याद आया मैं गौरी के लिए एक बार बढ़िया किस्म का खुशबूदार निरोध का पैकेट लेकर आया था जिसे गौरी के साथ तो यूज करने का मौक़ा ही मिला था पर लगता है आज जरूर उस निरोध की किस्मत भी चमक जायेगी।

“जान तुम एक मिनट रुको.” कहकर मैंने अपनी आलमारी से निरोध का पैकेट निकाल कर ले आया और जल्दी से अपने लंड पर चढ़ा लिया।

मेरा मन तो निरोध लगाने का बिल्कुल भी नहीं था पर शुरुवात में मैं कोई भी रिस्क नहीं ले सकता था। गौरी की बात अलग थी पर सानिया के साथ कोई गड़बड़ हो गई तो हम दोनों ही बेमौत ही मारे जायेंगे।

निरोध लगाकर मैंने अपने लंड को दोनों हाथों में छुपा सा लिया। मैं नहीं चाहता था कि मेरे फनफनाते हुए लंड को देखकर सानिया कहीं डर ही ना जाए और अगर ऐसा हुआ तो फिर यह कबूतरी दुबारा मेरे जाल में कतई नहीं फंसने वाली।

सानिया कनखियों से मेरे लंड को ही देखे जा रही थी। मेरा अंदाजा है वह पिछली दो रातों में जरूर उसने बहुत से सुनहरे सपने देखे होंगे और जरूर अपनी बुर को भी सहलाया तो जरूर होगा।

अब मैं उसकी बगल में लेट गया और अपनी एक जांघ उसकी जांघ के बीच फंसा ली।

“जान यह शर्ट भी निकाल दो ना? अब इसकी क्या जरूरत है? प्लीज!”

और फिर इससे पहले कि सानिया कोई हील हुज्जत करे मैंने उसकी शर्ट निकाल फेंकी। अब तो जैसे हुस्न का खजाना ही मेरे सामने बिछा पड़ा था।

मैंने थोड़ा सा उसके ऊपर आते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भर लिया और एक हाथ बढ़ाकर बेड की ड्रावर से क्रीम की ट्यूब निकाली और पहले तो अपने लंड पर लगाईं और बाद में ढेर सारी क्रीम अपनी अँगुलियों पर लगाकर सानिया की बुर पर भी लगा दी।

सानिया का सारा बदन रोमांच के मारे झनझनाने लगा था।

अब मैंने अपने लंड को पकड़ कर उसकी रसीली बुर के चीरे पर घिसना शुरू कर दिया।

सानिया की तो किलकारी ही निकल गई। मेरा लंड तो कुंवारी बुर का स्पर्श पाते ही झटके पर झटके खाने लगा था। मैं अपने लंड को भी घिसता जा रहा था और साथ साथ में उसके उरोजों को भी हौले-हौले मसल रहा था।

सानिया की बुर तो पहले से ही गीली थी. पर अब क्रीम लगाने के बाद तो और भी रपटीली हो चली थी। मन तो कर रहा था एक ही झटके में पूरा लंड उसकी बुर में उतार दूं पर मैंने अपने आप को रोके हुए था।

मैं जानता था बस 2-4 मिनट में मेरी सानूजान खुद अपने नितम्बों को उठाकर मेरा लंड अपने आप अपनी बुर में डालने का प्रयास करने लगेगी।

अब मैंने अपने एक हाथ सानिया के सिर के नीचे कर लिया और फिर कोहनियों के बल होकर उसके ऊपर आ गया। मैं नहीं चाहता था मेरा सारा भार उसके ऊपर पड़े।

सानिया तो अब रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम शिखर पर पहुँचकर आ … ऊं … करती जा रही थी। एक दो बार उसने अपने हाथों से मेरे लंड और अपनी बुर को टटोलने की कोशिश जरूर की पर अब तो वह अपनी मुट्ठियाँ भींचे अगले लम्हे का इंतज़ार कर रही थी।

“मेरी सानूजान … प्लीज अपनी जांघें थोड़ी चौड़ी कर लो … तुम्हें बहुत मज़ा आयेगा।”

सानिया ने एक मीठी सीत्कार करते हुए अपनी जांघें थोड़ी और खोल दी। अब मैंने अपने लंड से अपना हाथ हटा लिया था और अपने लंड को खुला छोड़ कर उसकी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था। उसकी बुर का दाना तो फूल कर अंगूर के दाने जैसा हो गया था।

जैसे ही मेरा लंड दाने तक पहुंचता उसकी हल्की सीत्कार निकल जाती और चीरे के बीच की कोमल पत्तियाँ तो मेरे लंड की रगड़ से रक्त संचार बढ़ जाने के कारण और भी मोटी हो गई थी। अब तो मेरा लंड उसपर फिसलने नहीं रपटने लगा था।

“आह … मुझे कुछ होने लगा है सर … मुझे चक्कर सा आ रहा है? आह … आईई इइइ …” कहते हुए सानिया का शरीर फिर से अकड़ने लगा और वह अपने नितम्ब उछालने लगी। मुझे लगता है उसका एक बार फिर से ओर्गास्म हो गया है।

मेरा एक हाथ तो उसके सिर के नीचे था और अब मैंने दूसरा हाथ नीचे कर के उसके नितम्बों को पकड़ लिया और फिर से उसके होंठों को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा।

इस बार मैं थोड़ा सा झुकते हुए अपने लंड को सानिया की बुर पर रगड़ा तो मेरा लंड उसकी बुर के छेद से टकराया और पहले तो थोड़ा सा मुड़ा फिर फिसल कर नीचे सरक गया।

सानिया की फिर से एक मीठी आह … निकल गई। मेरे लंड का अपने छेद से टकराना शायद सानिया को बहुत अच्छा लगा था। उसके मुंह से अब तो मीठी गूं … गूं … की आवाज भी निकलने लगी थी और अब तो वह अपने नितम्बों को भी हिलाने लगी थी।

दोस्तो! अब वह लम्हा आने वाला था जिसका मुझे और सानिया को ही नहीं आप सभी पाठकों और पाठिकाओं को भी पिछली कई रातों से इंतज़ार था।

इस बार जैसे ही मेरा लंड रपटते हुए नीचे की ओर आया मैंने थोड़ा सा और झुकते हुए एक धक्का सा लगाया तो मेरा लगभग 2 इंच लंड उसकी बुर के छेद को रोंदता हुआ अन्दर सरक गया।
हालांकि बुर पूरी कामरज से लबालब भरी थी और क्रीम भी लगी थी पर उसकी बुर का छेद इतना छोटा और कसा हुआ था कि सानिया की एक घुटी घुटी पूरे कमरे में गूँज उठी।

मैंने उसके होंठों को अपने मुंह में भर रखा था और एक हाथ से उसके सिर को और दूसरे हाथ से उसके नितम्बों को कस कर पकड़ रखा था। वरना तो उसकी चीख पड़ोसियों तक जरूर पहुँच जाती।
सानिया दर्द के मारे छटपटाने लगी थी पर मेरी गिरफ्त से निकल पाना उसके लिए संभव नहीं था। मैंने जोर से उसे अपनी बांहों में भींचे रखा। कुशल भंवरे ने अपना डंक मार दिया था और अब तो यह कलि फूल बनने की ओर अग्रसर हो चुकी थी।

सयाने कहते हैं ऐसी हालत में स्त्री पर रहम नहीं किया जाता। सानिया की जगह कोई खेली खाई औरत होती तो ऐसे समय रहम की गुंजाइश नहीं होती.

पर इस कमसिन बाला को इस प्रकार बेरहमी से नहीं चोदना मेरे जैसे शरीफ आदमी के लिए वाजिब नहीं था। मैं चुपचाप बिना कोई हरकत किए उसके ऊपर ऐसे ही बना रहा।

पिछले 3-4 दिनों में मेरे मन में यह ख्याल भी जरूर आया था कि मैं कमसिन लड़की के साथ नाइंसाफी सी कर रहा हूँ। मेरे जैसे सभ्य परिवार में रहने वाले सामाजिक व्यक्ति के लिए यह सब उचित नहीं है. पर हर बार मेरे मन ने इसे बेहूदा ख्याल बताते हुए कहा कि इस समय अब बेचारी उस मासूम बाला को अधर में छोड़ना अच्छी बात नहीं है।

दिल, दिमाग, मन और लंड सभी एक सुर में बोलने लग जाते हैं कि गुरु बस एक बार अंतिम बार इस कमसिन बाला को कलि से फूल बना डालो फिर यह सब धंधे सच में ही छोड़ देना।

मैंने अपने सर को एक झटका सा दिया और अपने ख्याल को एक बार फिर से तिलांजलि दे दी।

“बस … बस मेरी जान … मेरी महबूबा … बस अब अन्दर तो चला ही गया है अब ज्यादा दर्द नहीं होगा.” कहते हुए मैं उसके होंठों और गालों पर फिर से चुम्बन लेने लगा। जैसे ही मेरे मुंह में दबे उसके होंठ आजाद हुए एक जोर की चींख उसके गले से निकली।
“आह … मैं मर गई … अईईइइइ … बहुत दर्द हो रहा … प्लीज … सर … बाहर निकालो … आह … लगता है मेरी सु-सु फट गई है.” उसकी आँखों से आंसू निकल कर कनपटियों पर लुढ़क से आए थे।

मैंने एक कुशल भंवरे की तरह उन आंसुओं को मरकंद (मधु) की तरह अपनी जीभ से चाट लिया और फिर से उसे समझाते हुए कहा “मेरी जान आज तुमने मुझे अपने जीवन का बहुत अनमोल तोहफा दिया है मैं तुम्हारा यह उपकार और समर्पण अपनी जिन्दगी में कभी नहीं भूलूंगा और सदा तुम्हारा आभारी रहूंगा।”

“आह … आईईइ …”

“सानू मेरी जान इसके बदले अगर तुम मेरी जान भी मांग लोगी तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी उसे भी तुम्हारे ऊपर कुर्बान कर दूंगा।”

आज तो मैं पूरा देवदास ही बन गया था।
बेचारी सानूजान के लिए मेरे ये भारी भरकम शब्द पता नहीं कहाँ तक पल्ले पड़े!

पर एक बात तो तय थी सानिया अब थोड़ी संयत और नॉर्मल जरूर हो गई थी। उसने अपना एक हाथ नीचे करके मेरे लंड को टटोलने और अपनी बुर को संभालने की कोशिश भी की थी। शायद वह यह देखना चाहती थी कि कहीं मेरा लंड पूरा उसकी बुर में तो नहीं चला गया और कहीं उसकी बुर फट तो नहीं गई है।

पर मैं जिस प्रकार उसके ऊपर लेटा था और अपनी दोनों जांघें उसके नितम्बों के दोनों ओर कस रखी थी कि उसकी अंगुलियाँ का मेरे लंड और उसकी बुर तक पहुँचना मुमकिन नहीं था।

मेरा मकसद अब उसे थोड़ी देर और बातों में उलझाए हुए रखने का था ताकि वह अगले लम्हे के लिए तैयार हो जाए। अभी तो एक और बड़ी समस्या बाकी थी। मुझे लगता है उसकी सील (कौमार्य झिल्ली) अभी भी सही सलामत होगी। और उसके टूटने पर तो इसे और भी ज्यादा दर्द होने वाला है।

“सानू एक और बात है?”
“क … क्या?”
“मैंने कल मधुर से बात की थी?”
“यहाँ आने की?”
“हाँ”
“फिर?”
“उसने बताया कि वह अगले महीने आ जायेगी.”
“ओह … क्या तोते दीदी भी साथ आ जायेगी?”
“ना … मधुर अकेले ही आएगी।”

“ओल तोते दीदी?”
“मधुर के ताउजी की तबियत अभी ठीक नहीं हुयी है तो घर के काम के लिए गौरी अभी वहीं रुकेगी।”
“फिर तो ठीक है।” सानिया ने एक लम्बी राहत भरी साँस ली।
पता नहीं गौरी का मधुर के साथ में ना आना उसे क्यों अच्छा लगा था।

“वह बता रही थी कि गौरी तो अब कभी कभार बस मिलने के लिए ही आएगी. हम लोग अब सानिया को अपने यहाँ पक्के तौर ही रख लेंगे। वह इधर-उधर की बातें भी नहीं करती और घर का काम करने में वह गौरी से भी ज्यादा होशियार है।”
“सच्ची?”
“और नहीं तो क्या? तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा ना?”
“नहीं ऐसी बात नहीं है.”

“अब तो तुम खुश हो ना?”
“हओ!” सानिया पता नहीं किन सुनहरे सपनों में खो सी गई थी।

“सानूजान … मैंने तुम्हें इतनी अच्छी खुशखबरी सुनाई और तुमने तो कुछ बोला ही नहीं?”
“ओह … हाँ थैंक यू सल!” सानूजान तो कहते हुए अब शर्मा भी गई थी।

“सानू अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
“किच्च …”
“सानू … बस एक बार थोड़ा सा दर्द और होगा फिर देखना तुम्हें बहुत अच्छा लगने लगेगा.”
“कैसे?” उसने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए पूछा।
“मैं अपने इस प्रेम मिलन की बात कर रहा हूँ।”
“हट!”
“अच्छा तुम एक चुम्बन मेरे होंठों लो और फिर अपनी आँखें बंद करो.”

सानिया ने मेरे कहे मुताबिक़ किया तो मैंने भी पहले तो उसकी गालों पर चुम्बन लिया और फिर उसके अधरों को चूसने लगा।

दोस्तो! मेरा लंड तो बुर में फंसा ठुमके लगा रहा था जैसे कह रहा था गुरु प्लीज घुसेड़ा दो अन्दर जल्दी से।
मैं अपने लंड को अब ज्यादा नहीं तरसा सकता था।

मैंने अपने लंड को पहले तो थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर से अन्दर किया। मैंने ध्यान रखा कि अभी पूरा लंड अन्दर नहीं जाए।

सानिया थोड़ा कसमसाई तो जरूर पर इस बार उसने ज्यादा विरोध नहीं किया। 4-5 बार ऐसा करने से सानिया की बुर अब रंवा हो गई थी। उसे अब मेरे अन्दर बाहर होते लंड से ज्यादा दर्द या परेशानी नहीं हो रही थी। पर यह जरूर था कि मेरा लंड अब भी अन्दर फंस-फंस कर ही जा रहा था।

“सानू … मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … मैं तो कितने दिनों से मधुर को बोल रहा था कि गौरी की जगह सानिया को यहाँ रख लो। मेरे बहुत जोर देने के बाद अब जाकर उसने पक्की हामी भरी है।”
“हम्म”
“सानू जान थोड़ा सा और अन्दर डालूं क्या?”
“ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“क्या मेरी सानूजान मेरे लिए थोड़ा और दर्द सहन नहीं कर सकती?”
“ठीक है? पर … धीरे करना … बहुत दर्द हो रहा है.”
“हाँ … मेरा विश्वास करो मैं बहुत धीरे-धीरे आराम से करूंगा … तुम तो मेरी जान हो!”

दोस्तो! हमारी सानू जान शारीरिक रूप से तो पहले से ही तैयार थी अब तो वह मानसिक रूप से भी तैयार हो गई थी। अब मैंने धीरे से अपने लंड को आगे सरकाया पर मुझे लगा आगे कुछ अवरोध सा है। मैंने एक बार फिर से अपने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर से अन्दर किया।

जैसे ही मेरा लंड उसकी झिल्ली से टकराता मैं उसे फिर से बाहर खींच लेता। सानिया दम साधे अगले लम्हे का जैसे इंतज़ार कर रही थी। अब तो उसने उत्तेजना के मारे अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली थी और अपने नितम्बों को भी हिलाने लगी थी।

“सानू जान बस मेरी जान … थोड़ा सा दर्द और होगा बस … तुम तैयार हो ना?” कहकर मैंने उसे अपनी बांहों में भींच लिया तो सानिया ने जोर से अपने दांत भींच लिए। मुझे लगा डर के कारण उसकी बुर कुछ ज्यादा ही कस गई है। उसकी कसावट मेरे लंड के चारों ओर साफ़ महसूस की जा सकती थी।

मेरी कुंवारी लड़की चुदाई कहानी में आपको मजा आ रहा है ना!
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कुंवारी लड़की चुदाई कहानी जारी रहेगी.