यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
आपने अब तक की मेरी इस ग्रुप सेक्स कहानी में पढ़ा था कि मैंने परमीत की दीदी के साथ लेस्बो का मजा ले लिया था. इसके बाद मैं परमीत और मनु वाले कमरे में आ गई, जिधर दीदी भी आ गईं और हम चारों ही अब ग्रुप लेस्बो का खेल खेलने में जुट गए.
मैं परमीत के साथ लग गई और दीदी ने मनु को अपने साथ खींच लिया.
परमीत ने मेरे सर को पकड़ कर मेरे मुँह में अपनी जीभ को डाल दिया और हम चूमाचाटी के चरम सुख को पाने का प्रयास करने लगे. चुंबन का दौर शुरू के साथ ही हम दोनों में एक दूसरे के हर अंग को नाप लेने का प्रयत्न भी होने लगा.
अब आगे:
तभी परमीत मुझसे थोड़ा अलग हुई और उसने मुझे पांव की उंगलियों से चूमना और चाटना शुरू कर दिया. इधर मैं सेक्स के नए नए पैतरों का जीवंत अहसास करते हुए आंखें मूंदे लेटी थी, उधर दीदी और मनु भी एक दूसरे के ऊपर उल्टे होकर एक दूसरे की चूत चाट रहे थे. मनु के पैरों की दिशा मेरे सर की ओर ही थी.
दीदी मेरे नजदीक ही थीं. वो उसकी चूत चाटते हुए कह रही थीं- हां परमीत, आज इस कुतिया गीत को पूरी की पूरी खा जा, साली क्या जवानी है … इसके हर अंग से यौवन का रस टपक रहा है.
अपनी तारीफ सुनकर मैं और मचलने लगी और परमीत ने भी दीदी की बातों के बाद अपनी हरकतों में तेजी ला दी.
परमीत मुझे चाटते हुए जब चूत तक पहुंची, तो उसने चूत में पूरा मुँह लगा दिया. उसके मुँह की गर्म सांसों के कारण मैं एकदम से तड़प उठी. पर अब मेरे अन्दर की शर्म की जगह सिर्फ और सिर्फ वासना थी, इसलिए मैंने भी जल्दी से थोड़ी करवट ले ली और पास लेटी मनु की चूत को चाटना चाहा. दीदी ने भी मुझे थोड़ी जगह दे दी.
मुझे मनु की चूत की खुशबू ने पागल सा बना दिया. शायद मनु ने पहले स्खलन के बाद चूत नहीं धोई थी. मैंने उसकी चूत पर नीचे से ऊपर तक जीभ फिराई. मनु एकदम से तड़प उठी. उसकी चूत के स्वाद ने मुझे एक नया अनुभव दे दिया, क्योंकि कसैला सा स्वाद तो दीदी की चूत का भी था, पर कसैले के साथ खट्टापन भी मिला होता है, ये मैंने मनु की चूत को चाटकर जाना.
मनु की चूत की दीवारें दीदी की चूत के मुकाबले आपस में थोड़ी चिपकी हुई सी थीं और कामोत्तेजना कि वजह से चूत का सांस लेना स्पष्ट नजर आ रहा था.
हम सब एक दूसरे को उत्तेजित करने में लगे थे. चार खूबसूरत जवान लड़कियों का एक साथ ऐसा उन्माद भरा खेल … सचमुच वो पल लाजवाब था.
परमीत ने मेरी चूत को जी भरके चाट लेने के बाद मेरे जिस्म के हर हिस्से को चूमा और चाटा और फिर मेरे उरोजों से अपने उरोजों को भिड़ा कर रगड़ने लगी. परमीत अपनी हर हरकत के साथ वासना की राह पर आगे तो बढ़ ही रही थी, साथ ही अपने साथ मुझे भी वासना के शिखर पर खींच रही थी.
मैं मन ही मन सोच रही थी कि परमीत मेरी चुदाई कब करेगी … और इसी सोच के साथ मैं छटपटाने लगी. शायद परमीत ने मेरी चाहत को समझ लिया और मेरे ऊपर ही वो जांघों तक सरक कर बैठ गई. उसने पास रखे डिल्डो को उठाया और उसे मेरी वासना से तड़प रही गीली चूत के दाने पर रगड़ने लगी.
इधर मेरी तड़प हर पल बेकाबू हो रही थी और उधर दीदी भी मनु के ऊपर से उठकर उसके नीचे चली गईं. दीदी ने अपने साथ बड़ा वाला डिल्डो ला रखा था. उन्होंने उसे मनु की चूत के दाने पर रगड़ना शुरू कर दिया. मनु भी छटपटा कर हाथ पैर मारने लगी.
वो ‘आहह उउउहह..’ करते हुए चुदाई की भीख मांगने लगी.
मैंने भी परमीत से कहा- आंह … अब चोद भी दे कुतिया … और कितना तड़पाएगी.
इतना सुनते ही दोनों बहनों ने एक दूसरे को आंख मारी और दोनों ने एक ही साथ हमारे कामरस से सराबोर चूतों में झटके से डिल्डो पेल दिए. हम दोनों चीख पड़े, हम दोनों ही एकदम से ऐसे बेरहम हमले के लिए तैयार नहीं थे. हमें लगा था कि हमारी चुदाई प्यार से की जाएगी.
मनु की चूत मे जाने वाला डिल्डो मोटा था, इसलिए उसकी चीख और दर्द भी ज्यादा थी. मैंने भी चूत में केले के अलावा कुछ नही डाला था, इसलिए मैं भी दर्द के मारे छपपटाने और कराहने लगी.
जबकि अभी दोनों के ही चूत में आधा-आधा ही डिल्डो घुसा था, तब ये हालत थी.
परमीत ने मेरी चूत में दोमुँहे लंड को डालकर कुछ देर शांत रखा और जब मैं सामान्य हो गई, तो उसने डिल्डो को हरकत में लाना प्रारंभ कर दिया.
मैं हल्के दर्द और असीमित आनन्द के अनोखे अनुभव को आंखें बंद करके हमेशा के लिए समेट लेने का प्रयास करने लगी.
लेकिन तभी मनु की दोबारा जोरदार चीख से मेरी तंद्रा भंग हुई. दीदी ने मनु की चूत में डिल्डो जड़ तक घुसा दिया था. मनु दर्द के मारे अचेत हुए जैसी हो गई थी. वो अपनी बची खुची ताकत समेट कर डिल्डो निकाल कर आजाद करने की दीदी से मांग करने लगी. पर दीदी भी कोई दुश्मन तो थी नहीं, वो जानती थी कि कुछ ही पल में मनु खुद उछल उछल कर चूत में डिल्डो लेने लगेगी.
दीदी ने कुछ देर हरकत रोक दी और मनु को सहलाने लगी. मनु की कमर मेरे सर की ओर ही थी. उसकी चूत में फंसा डिल्डो बहुत आकर्षक लग रहा था और चूत से रिसता लहू कौमार्य के चीरहरण की गवाही दे रहा था.
दीदी ने मनु को सहलाते हुए कहा- शाबाश मेरी गुड़िया रानी, तुम तो बहुत बहादुर हो … पूरा डिल्डो गटक लिया, देखना अब कितना मजा आएगा … बस थोड़ा और साहस करो और साथ दो.
ये कहते हुए दीदी उसके उरोजों को दबाने सहलाने लगीं, निप्पलों से खेलने लगीं. सचमुच कुछ ही पलों बाद मनु दीदी का साथ देने लगी.
दीदी ने आहिस्ते और नियमित गति से दोबारा चुदाई को आरंभ कर दिया. अब मनु की मादक सिसकारियों से पूरा कमरा ही वासना से सराबोर हो उठा था.
इस वासना के भंवर से भला हम दोनों कैसे बच सकते थे. परमीत ने भी डिल्डो का दूसरा सिरा अपनी चूत में सैट किया और मुझे चोदने लगी. परमीत ऊपर से धक्के देती थी, तो मैं नीचे से जोर लगाती थी. हमारी शारिरीक हरकत लयबद्ध हो चुकी थी.
‘आहह उहहह … इस बार मुझे बहुत मजा आ रहा है … चोद और चोद … और डाल.’
बस ऐसे ही हजारों शब्द मेरे मुँह से निकल रहे थे.
उधर दीदी ने चुदाई की स्पीड बढ़ा दी थी और मनु परमानंद के सागर में गोते लगा रही थी. उसकी चूत में अन्दर बाहर होता विशालकाय डिल्डो सचमुच लाजवाब नजर आ रहा था. मेरे मन में भी उसकी कामना होने लगी.
मनु बेचारी नई जवानी लिए दीदी के अनुभवी हाथों और मोटे डिल्डो के सामने कब तक टिक पाती. मनु की आवाज कंपकंपाने लगी, उसके बदन की सिहरन स्पष्ट होने लगी. तो दीदी ने भी लंड को चूत में घपाघप पेलना शुरू कर दिया. मनु ने बिस्तर को हाथों में भींच लिया और दांतों से होंठों को काटते हुए सांप की भांति ऐंठने लगी. उसने दीदी के हाथों को पकड़ लिया. दीदी ने भी चूत में डिल्डो पूरा उतारके रोक कर रख दिया … ताकि मनु का स्खलन अच्छे से हो सके.
उसकी हालत देख कर मैं और परमीत भी तेजी से चुदाई करने लगे, पर एक ही डिल्डो एक समय में दोनों को शांत करने में नाकाफी था.
अपनी चुत का अमृत कलश पूरा छलका लेने के पश्चात मनु बेजान होकर पड़ी रही. शायद आंखें बंद करके वो अपनी इस चुदाई की स्मृतियों को सहेजने में लगी थी. दीदी ने भी उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा था.
दीदी उठकर मेरे पास आ गईं. हमारी चुदाई देखकर उनके होंठों मे एक मधुर मुस्कान आ गई. दीदी ने झुककर मुझे लिपलॉक किस किया और ऐसे ही कुछ देर रहने के बाद उठ कर मेरे होंठों पर मनु के कामरस से भीगा डिल्डो रगड़ने लगीं. मैं भी बेसब्री से डिल्डो को मुँह में लेने का प्रयास करने लगी, जबकि डिल्डो के सुपाड़े से ही मेरा मुँह भर जा रहा था.
दीदी ने मेरी बेचैनी को भांप लिया और परमीत को मेरे ऊपर से हटने और डिल्डो निकालने को कहा. परमीत ने जब डिल्डो निकाला, तो पक्क की एक आवाज आई … और मेरा दिल धक से हो गया.
दीदी ने परमीत को और नीचे सरका कर घोड़ी बना दिया और मोटा वाला डिल्डो हाथ में दे दिया. दीदी पतला लेकिन लंबा वाला डिल्डो लेकर परमीत के पीछे चली गईं.
अब पोजीशन ऐसी थी कि हम तीनों एक क्रम में हो गए थे. दीदी ने बेरहमी से परमीत की चूत में गहराई तक डिल्डो उतार दिया और परमीत, जो अब तक मेरी चूत के दाने पर दानवाकार डिल्डो को रगड़ रही थी, उसे मेरी चूत में बड़ी बेरहमी से पेल दिया. डिल्डो मेरी चूत में आधे से ज्यादा घुस गया और दर्द के मारे मेरे मुँह से भयानक चीख निकल पड़ी, मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. अभी-अभी जवान हुई मेरी फूल सी चूत में मानो परमीत ने चाकू से चीरा लगा दिया था.
मेरी आवाज सुनकर मनु हड़बड़ा कर उठ बैठी और मेरे पास आ गई. उसने मेरे शरीर को सहलाते हुए मेरा दर्द कम करना चाहा. फिर मेरे सर को अपनी गोद में लेकर पुचकारने लगी. मैं परमीत की पकड़ से छूटने का प्रयत्न करने लगी, पर नाकाम रही.
तब मनु ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- बस गीत रानी थोड़ा सा और बर्दाश्त कर ले … फिर जो आनन्द आएगा, वो जीवन भर नहीं भूलेगी.
मैंने कराहते हुए कहा- उई … आह … नहीं लेना मुझे कोई आनन्द वानन्द … छोड़ो मुझे..
इस पर परमीत ने कहा- कमीनी चुदाई भी करवानी है और गांड भी फट रही है. इसे ही तो कहते हैं चुदाई.
मैंने प्रतिउत्तर में मरी सी आवाज में कहा- तो अभी तक हम चुदाई ही तो कर रहे थे ना..??
मेरी मासूम आवाज पर सब हंस पड़े और परमीत कहने लगी- नहीं जानेमन, वो तो सिर्फ बच्चों का खेल था … जवानी का खेल हो और दर्द ना हो तो मजा ही क्या!
उसकी बातों से सभी सहमत और अवगत थे … क्योंकि दीदी तो पुरानी खिलाड़ी थी हीं और परमीत ने कल रात मजा चख लिया था. मनु ने अभी थोड़े देर पहले ही आनन्द और जवानी की परिभाषा सीखी थी, इस पाठ्यक्रम में मेरी जानकारी कमजोर थी, जो अब दुरुस्त होने वाली थी. क्योंकि मैं उनकी बातों में उलझकर अपना दर्द भूलकर कमर से हरकत करने लगी थी.
इसे भांप कर परमीत ने डिल्डो को थोड़ा बाहर खींचा और पूरा जोर लगा कर चूत की गहराईयों में तब तक पेला, जब तक डिल्डो में बना कृत्रिम अंडकोश मेरे शानदार गोरे मांसल नितंबों से ना टकरा गया.
लंड अन्दर लेते ही मैं फिर एक बार चीख पड़ी. मेरी आंखों से अश्रुधार प्रवाहित होने लगी. मुझे देखकर मनु की आंखें भी भर आई थीं, पर स्पष्ट हो रहा था कि वे खुशी के आंसू थे. उसने अपना हाथ मेरी चूत और पेट के बीच वाले हिस्से पर रखकर सहलाया और ऊंगलियों को आगे ले जाकर चूत के दाने को सहलाने लगी. साथ ही वो झुककर मेरे निप्पल को चूसने लगी.
मनु के इन सारे उपक्रमों ने मुझे दर्द की चुभन से दूर कर दिया और जल्द ही मैं अनोखे अविस्मरणीय आनन्द की ओर अग्रसर होने लगी.
उधर दीदी परमीत को लगभग पूरे डिल्डो से घपाघप चोदे जा रही थी और इधर परमीत ने मुझे काबू में जानकर बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया था.
मुझे थोड़ी तकलीफ अभी भी हो रही थी, पर साथ में मिलने वाले अलौकिक आनन्द के सम्मुख थोड़ा-मोड़ा दर्द क्या मायने रखता है. तो मैंने भी मजा लेना शुरू कर दिया और खुद से कमर उछालने लगी.
परमीत खुद मदहोश हुए जा रही थी और इसलिए उसने स्पीड को किसी रेल की भांति तेज कर दी.
मैं ‘आहहह उहहह …’ करने लगी. हम सभी चुदाई में दुनिया भूल गए थे. अब बदन में कंपकंपी और स्वर में लहर की बारी मेरी थी. तूफान शांत होने के पहले और बेकाबू हो रहा था. मैंने आंखें बंद कर लीं और अपने दोनों उरोजों को थाम कर पूरी ताकत से दबाने लगी. मैंने पूरी ताकत से कमर को ऊपर उठा दिया और स्वयं चरम सुख पाकर अमृत रस की पतली धार को परमीत के चेहरे तक बहा दिया.
परमीत भी स्खलन के करीब थी, तो उससे मेरी और चुदाई नही हो पा रही थी. इस बात को मनु ने भांप लिया था. उसने डिल्डो खुद थाम लिया और चूत पर रगड़ते हुए मुझे अंतिम क्षण तक सुख पहुंचाती रही.
उधर परमीत ने वासना के कगार पर पहुंच कर आहहह उहहह की आवाज करते हुए अपने चेहरे और कंधों को बिस्तर की ओर झुका लिया, जिससे उसकी चूत दीदी के सामने और उभर कर सामने आ गई. दीदी अब और बेरहम हो गई थीं. दीदी ने डिल्डो को जितना पकड़ा था, सिर्फ उतना ही बाहर बाकी रह गया था, उसके अलावा पूरा डिल्डो परमीत की चूत ने आसानी से गटक लिया था.
इस वक्त दीदी की घपाघप चुदाई से परमीत बिस्तर पर और गड़ने लगी. फिर ‘इइस्स्स … आहहह..’ की आवाज करते हुए एक ओर लुढ़क गई.
तब तक दीदी भी चुदाई के लिए बहुत बेचैन हो चुकी थीं और वो हमारे बगल में लेट कर बड़ा डिल्डो डालने के लिए कहने लगीं. दीदी की ख्वाईश मनु ने पूरी की. मैं परमीत की चूत को सहलाते हुए उसे चरम सुख की शांति प्रदान करने का प्रयास करने लगी.
दीदी की फैली हुई गीली चूत पर डिल्डो रख कर मनु ने जमकर चुदाई प्रारंभ कर दी.
दीदी सिसकने लगीं … वो ‘आहहह उहहह..’ करने लगीं, अपने ही उरोजों को नोंचने लगीं, निप्पलों को उमेठने लगीं.
मैंने भी परमीत को शांत जानकर दीदी के पास जाना सही समझा और दीदी के भारी उरोज, जो किसी को भी आकर्षित कर सकते थे, उन्हें थामना चाहा.
दीदी के पूरे बदन का अहसास बहुत ही कामुक और लाजवाब था. दीदी पहले से ही चरम सुख के करीब थीं … और मनु की ताबड़तोड़ चुदाई साथ में मेरे सहयोग ने दीदी को जल्द ही मंजिल पर पहुंचा दिया.
दीदी अकड़ने लगीं और गालियां भी बकने लगीं, जो अब तक की चुदाई में पहली बार हो रहा था.
दीदी- चोद कुतिया … चोद फाड़ डाल मेरी चूत को … आहह अरे और तेज चोदो ना रे मादरचोदियों … मेरी चूत का भोसड़ा बना दो…
उनकी इन गालियों से अब मनु और मुझे भी जोश आ गया. हमने दीदी की दोहरी चुदाई की सोची और मैं बिस्तर से उठकर पतले डिल्डो में क्रीम लगा लाई. दीदी शायद समझ गई थीं कि मैं क्या करने वाली हूँ और वो इस चीज के लिए तैयार भी थीं.
फिर मैं दीदी के पैरों की तरफ मुँह करके उसके पेट पर बैठ गई और मनु नीचे सरक गई. मैंने बड़ा डिल्डो खुद पकड़ कर चूत में डालना जारी रखा और मनु को पतला डिल्डो गांड में डालने के लिए कहा.
मनु ने बात मान कर दीदी की गांड के छेद में ऊंगली घुमाकर देखा, तो शायद उसे डिल्डो के जाने लायक जगह का अनुमान हो गया. उसने अगले ही पल डिल्डो को दीदी की गांड की छेद में पेल दिया.
दीदी हल्की चीख के साथ डिल्डो को आराम से झेल गईं … मतलब साफ था कि दीदी की गांड भी बजी हुई थी.
अब दीदी को बहुत ज्यादा मजा आने लगा. चूंकि वो पहले भी एक बार झड़ चुकी थीं, इसलिए अभी टिकी हुई थीं. अन्यथा ऐसी चुदाई तो से तो पल में पानी आ जाता.
अब हम दोनों ही बहुत तेजी से दीदी को चोदने लगे और दीदी भी उसी तेजी से हमें गालियां बकने लगीं- आहह उउहह चोदो रे हरामजादियों साली रंडियों … आज तो मजा ही आ गया … वाहह ईईस्स स्सेस और और और तेज …
दीदी अकड़ने लगीं और उन्होंने जोश में आकर मेरी कमर को पकड़ लिया. फिर उसी जोश में दीदी ने अपने नाखून भी मेरी कमर में गड़ा दिए.
दीदी की तड़प समझकर हमने स्पीड और बढ़ा दी, पर दीदी की चूत पर श्वेत मोतियों को देखकर हमने स्पीड नियमित गति से कम करना शुरू कर दिया. मनु ने तो मेरे डिल्डो निकालने के बाद दीदी की चूत पर मुँह भी लगा दिया. शायद वो आज के सत्संग का प्रसाद लेना चाहती थी.
मनु ने बहुत सा कामरस रूपी प्रसाद मुँह में भर लिया और मेरे पास आकर मुँह मे किस करने लगी, जिससे मुझे भी प्रसाद प्राप्त हो गया. उसने बारी बारी से परमीत और दीदी के साथ भी ऐसा ही किया. उसके बाद हम सभी के अन्दर संतुष्टि के भाव थे.
दीदी और परमीत पहले ही बिस्तर में लेटे थे. फिर मैं दीदी और परमीत के बीच लेट गई और मनु दीदी के बगल में चिपक कर लेट गई. हम चिपक कर लेटे थे, इसलिए एक ही बिस्तर में सोते भी बन गया और नींद कब लगी, पता ही नहीं चला.
सुबह जब मेरी नींद खुली, तो देखा कि दीदी उठकर घरेलू कपड़े पहनकर चाय बना रही थीं. घड़ी पर नजर पड़ी, तो सात बज चुके थे और हम तीनों सहेलियां ऐसे ही पड़ी थीं.
मैंने दोनों को जल्दी से जगाया. फिर मनु और मैं घर जाने के लायक ढंग से व्यवस्थित हो गए. एक दौर विदाई में चुम्बनों का चला और धन्यवाद देने का चला. हम चारों ही अप्सरायें इस मिलन से बहुत खुश थे, हम ऐसे पल फिर गुजारने का वादा करके घर लौट आए.
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