नमस्ते दोस्तों, मेरी ये कहानी जरूर आपको भरपूर मजा देगी.
“हाय नन्दिनी, कैसी हो?”
रात के कोई ग्यारह बज रहे थे, नन्दिनी सोने की तैयारी कर रही थी। सुबह जल्दी उठना था। नीट की कोचिंग साढ़े छह बजे से प्रारम्भ हो जाती है। लेकिन व्हाट्सएप पर आए इस मेसेज ने नन्दिनी के पूरे शरीर में सिरहन उत्पन्न कर दी। नन्दिनी का एक हाथ अपनी चूत पर पहुँच गया और उसे धीरे धीरे सहलाने लगा। दूसरा हाथ बूब्स पर चला गया और बारी बारी से दोनों बूब्स को मसलने लगा।
मेसेज धर्मेन्द्र जी का था। अरे बाबा वही धर्मेन्द्र जी, जिनसे आप मेरी पहली कहानी
थेंक यू धर्मेन्द्र जी
में मिले थे।
वाह … सलोना बांका नौजवान। चरित्र ऐसा उज्ज्वल की सामने नंगी खड़ी हसीन लड़की के चुदाई के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। मेरी जिद पर ऊपर ऊपर से कुछ किया और फिर प्यार से समझाकर मुझे घर भेज दिया था। आप पढ़ो ना उस कहानी को। तब आप जान पाओगे कि धर्मेन्द्र जी किस चीज का नाम है।
आज चार पाँच माह बाद अचानक धर्मेन्द्र जी का मेसेज … नन्दिनी मस्त हो गई. वह ड्रेसिंग टेबल के सामने गई, दर्पण में खुद को देखा। बाल खोल रखे थे, उन्हें एक दो बार हवा में घुमाया और ठुमका लगाया अपनी बड़ी सी गांड मटकाई और अपने आप से बोली- धन्य भाग हमारे जो आप मोबाइल में पधारे।
“मैं मस्त हूँ।” नन्दिनी ने अपनी आदत के अनुसार जवाब दिया।
वो अपनी कहानी के हजारों चाहने वालों को यही जवाब देती है, जब कोई भी उससे पूछता है।
पूछने वाले भी रसगुल्ले की तरह मीठी बोली बोलते हैं- कैसी हो स्वीटहार्ट? कैसी हो रानी? कैसी हो जान? कैसी हो मेरी पानी पूरी? और भी न जाने क्या क्या … ये लड़के भी ना।
अगला मेसेज आते ही नन्दिनी अपने पाठकों की बांहों से निकलकर धर्मेन्द्र का मेसेज पढ़ने लगी- तुमसे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है।
नेकी और पूछ पूछ!
नन्दिनी तो खुद मरी जा रही थी धर्मेन्द्र के साथ के लिए … उससे चुदने के लिए, उसने तुरंत जवाब दिया- जरूर मिलिये। कब मिलना है?
धर्मेन्द्र का मेसेज- आज!! अभी!!
नन्दिनी- अभी!? इतनी रात में? नहीं आ सकती मिलने! कल पक्का … जहां कहो, जब कहो आ जाऊँगी!
धर्मेन्द्र- नहीं नन्दिनी डियर, आज ही मिलूंगा। नहीं रह पाऊँगा यार, आज की रात दम निकल जायेगा। मेरे लंड की नसें फट जायेगी। तुम्हें आने की जरूरत नहीं है। मैं खुद आ रहा हूँ। तुम अपनी छत पर आ जाओ। मैं तुम्हारे घर के पास वाले घर की छत पर हूँ। मेरा दोस्त रहता हैं वहाँ पर।
नन्दिनी नाच उठी। वाह धर्मेन्द्र … क्या मेंगो बार जैसा लंड है यार तुम्हारा।
नन्दिनी का आलीशान मकान तीन मंज़िला था। नीचे एडवोकेट मॉम का ऑफिस था और डॉक्टर पापा भी वहीं एक भाग में प्रेक्टिस करते थे। दूसरी मंजिल पर किचन, हाल, मॉम-डेड का बेडरूम और गेस्ट रूम थे। तीसरी मंजिल पर दो बेडरूम बने थे, जिनमें से एक में नन्दिनी रहती थी।
पूरे घर में सन्नाटा था। नन्दिनी ने गाउन हटाया और ब्रा को फिर से पहना। गाउन डालकर वो दबे पाँव छत पर पहुँच गई। टावर का दरवाजा खोलते ही सामने खड़े धर्मेन्द्र ने बांहें फैला दी। बिना एक पल की देरी किए नन्दिनी धर्मेन्द्र से चिपट गई। दोनों की बाहें कसती जा रही थीं।
नन्दिनी ने कहा- और ताकत लगाओ, तोड़ दो मेरे सारी हड्डियाँ।
धर्मेन्द्र की पीठ पर एक छोटा बेग टंगा हुआ था।
हट्टे कट्टे धर्मेन्द्र ने नन्दिनी की गोद में उठाया और सीढ़ियाँ उतरते हुये उसके कमरे में ले गया। नन्दिनी ने अपने आपको धर्मेन्द्र से आजाद किया और तेजी से जाकर पहले छत का दरवाजा बंद किया और फिर अपने कमरे को लॉक किया।
आज नन्दिनी को धर्मेन्द्र जी पूरे बदले हुये लग रहे थे, उनकी सांसें तेज थी, आँखों में लालिमा थी। पैन्ट की चेन वाला भाग फूला हुआ था और लंड ऊपर नीचे हो रहा था। लंड के हल्के हल्के झटके महसूस हो रहे थे। मतलब कि मेंगो बार भी तैयार और मेंगो बार का मालिक भी तैयार।
धर्मेन्द्र- तुम चुदाई का अनुभव लेना चाहती थी ना? ले लिया अनुभव?
नन्दिनी- नहीं लिया, मगर लंड लेने की इच्छा अब भी है।
धर्मेन्द्र- मेरा लंड लोगी?
नन्दिनी- हाँ जरूर, सारी ज़िंदगी ले सकती हूँ आपका लंड तो … दिन रात ले सकती हूँ आपका लंड तो।
धर्मेन्द्र- सच!! तुम्हें इतना पसंद है मेरा लंड?
नन्दिनी- हाँ, मुझे आपका लंड बहुत पसंद है और उससे भी ज्यादा आप पसंद हो.
धर्मेन्द्र- तो आज अपनी हर हसरत पूरी कर लो और मुझे भी कर लेने दो। जिस दिन तुम पहली बार मिली थी उस दिन से मेरे दिल दिमाग में बस गई हो नन्दा।
नन्दिनी- अरे! तो आपने कहा क्यों नहीं? आपके लिए तो मैं अपने घर से ही नंगी होकर दौड़ लगाते हुये आपके घर तक आ जाती। आप तो जानम हो, आप रियल मर्द हो।
धर्मेन्द्र- मेरे संस्कार मुझे रोके रहे नन्दा। मगर आज लंड के आगे संस्कारों ने हार मान ली। आज सुबह से बस तुम और तुम्हारी ही दिखाई दे रही है। बहुत लड़ा मैं अपने आप से। इसी बीच ओशो की किताब हाथ लग गई। उन्होंने लिखा है ‘पाखंड मत करो। सेक्स एक सामान्य घटना है, मन को मत मारो।’ बस फिर रह नहीं पाया।
नन्दिनी- सच लिखा है ओशो ने। जैसे हम पेट की आग बुझाने के लिए भोजन करते हैं, वैसे ही लंड और चूत की प्यास बुझाने के लिए सेक्स की व्यवस्था प्रकृति ने कर रखी है। आओ! जो मन हो वो करो! जहां मन हो वहाँ करो! आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, मेरी इस कमसिन जिस्म का हर अंग आपके लिए है।
धर्मेन्द्र ने अपना बेग खोला, उसमें गुलाब के फूल थे। उसकी पत्तियाँ नन्दिनी के बेड पर बिखेरते हुये बोले- आओ, सुहागरात मनायें।
माहौल पूरा रोमांटिक हो गया था। धर्मेन्द्र ने बेग से मिठाई का पेकेट निकाला और बेड पर बैठ गया। नन्दिनी को अपनी गोद में बैठाया, अपने हाथ से मिठाई के एक पीस का आधा भाग नन्दिनी के मुंह में रखा और आधे भाग को अपने मुंह में रख दिया। दोनों मिठाई का आनन्द लेते हुये लिप किसिंग करने लगे। एक पीस मिठाई खाने में पाँच मिनिट लग गए। मिठाई कौन कमबख्त खा रहा था.
धर्मेन्द्र के कपड़े अब उसे तकलीफ दे रहे थे। जींस के अंदर मेंगो बार संभल नहीं रहा था। उधर नन्दिनी भी बेचैनी की चरम सीमा पर थी। धर्मेन्द्र ने नन्दिनी का गाउन उतार दिया। वाह! जैसे किसी निपुण मूर्तिकार ने संगमरमर से तराशकर सुंदरता की साक्षात प्रतिमा गढ़ रखी हो। नन्दिनी के शरीर पर केवल दो कपड़े थे। गहरे नीले रंग की ब्रा और पैन्टी उसके गोरे शरीर पर खूब जम रही थी। गहरे नीले आसमान में जैसे पूनम का चाँद चमकता है ठीक वैसे ही।
धर्मेन्द्र सम्मोहित हो गया।
नन्दिनी ने धर्मेन्द्र के चेक्स के हल्के कत्थई शर्ट के बटन खोले, बनियान उतारी। ऐसा लगा जैसे सामने रितिक रोशन खड़ा हो … शानदार शरीर।
नन्दिनी ने अपना चेहरा धर्मेन्द्र के सीने से लगा दिया। काले घने बालों से सजा धर्मेन्द्र का सीना ठीक वैसा ही था जैसा कोई स्त्री अपने पति या पुरुष साथी में चाहती है। जींस के बटन को खोलकर नन्दिनी कुछ देर मेंगो बार को ऊपर से सहलाती रही और धर्मेन्द्र की आह आह का मजा लेती रही।
फिर चेन खोलकर जींस को शरीर से जुदा कर दिया। दो कदम पीछे हटी और जी भरकर देखने लगी। संयोग से धर्मेन्द्र की अंडरवियर का रंग भी नीला ही था। हल्का नीला। जींस की पहरेदारी से मुक्त होते ही धर्मेद्र का लंड अपने आकार के साथ दिखाई देने लगा। पूरे ज़ोर शोर से वह ऊपर नीचे हो रहा था। नन्दिनी के लिए वह नया नहीं था, पहले देख चुकी थी। कोई सात इंच का मोटा ताजा लंड।
धर्मेन्द्र ने नन्दिनी के और नन्दिनी ने धर्मेन्द्र के अंगवस्त्रों को अलग किया। अब दोनों प्राकृतिक अवस्था में थे और बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे।
नन्दिनी- अब देर मत करो प्लीज … और आज बिना चोदे छोड़ मत देना। नहीं तो मैं मर जाऊँगी।
धर्मेन्द्र ने नन्दिनी को बेड पर लिटाया और बोला- आज तो अगर तुम मना भी करोगी तो मैं नहीं मानूँगा।
नन्दिनी- तो आओ फिर!
धर्मेन्द्र ने पहले नन्दिनी के माथे को चूमा, फिर आँखों को, फिर गालों को, फिर होठों को! फिर गर्दन को और फिर बूब्स पर आकर थम गया। उसने अपनी प्रेयसी के उरोज धीरे धीरे सहलाये। ताकत बढ़ाई, एक हाथ से के बोबे को दबाते हुये दूसरे को चूसने लगा। जैसा कि आप सब जानते ही हो नन्दिनी के बूब्स का आकार 34″ है। धर्मेन्द्र को मजा आना स्वाभाविक था। दोनों कलमी आम दस मिनट तक धर्मेन्द्र को रोके रहे। मगर वास्तविक मंजिल तो करीब सवा फीट नीचे थी … सुनहरे बालों वाली चूत।
पहले धर्मेन्द्र ने चूत के आसपास के इलाके पर ताबड़तोड़ किस किए। नन्दिनी को दोपहर के सूर्य की तरह गर्म कर दिया।
नन्दिनी ने धर्मेन्द्र का मुंह चूत पर रख दिया और बोली- सीधे टार्गेट पर हमला करो।
धर्मेन्द्र चूत पर नीचे से ऊपर की तरफ जुबान फिराने लगे। बीच बीच में छेद में घुसा भी देते। नन्दिनी की चीत्कार निकलने लगी। जैसे पूरे कमरे में वायलिन का मधुर संगीत गूंज रहा हो।
आधे घंटे की चूत चटाई ने नन्दिनी को बेकाबू कर दिया। नन्दिनी तेजी से उठी और घुटनों के बल फर्श पर बैठ गई। धर्मेन्द्र उसके सामने जाकर खड़े हो गए। नन्दिनी अपना मुंह खोल दिया और दोनों हाथ धर्मेन्द्र के मजबूत कूल्हों पर रख दिये। धर्मेन्द्र ने अपना लंड नन्दिनी के मुंह में डाल दिया। वो उसे बहुत प्यार से चूसने लगी। गले तक अंदर ले जाती और फिर बाहर लाती। वो अपनी आँखों से धर्मेन्द्र की आँखों में देखती भी जाती। चारों आँखें थोड़ी देर मुस्कुराती और फिर इस परम सुख की अनुभूति करने के लिए बंद हो जाती। पंद्रह मिनट मेंगो बार का मजा लेने के बाद नन्दिनी उठी और बेड पर जाकर लेट गई।
धर्मेन्द्र समझ गए कि अब विलंब नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने लंड को नन्दिनी की चूत पर सेट किया और धीरे से धक्का लगाया। नन्दिनी की आह निकलने लगी, वाकई नन्दिनी सील पेक थी। धर्मेन्द्र के अगले धक्के के साथ ही नन्दिनी कसमसाने लगी। उसने धर्मेन्द्र की पीठ पर नाखून गड़ाकर एहसास कराया कि वह उस दर्द को सहने के लिए तैयार है जो दुनिया के सबसे हसीन सुख का कारण है।
धर्मेन्द्र ने तीसरे झटके के साथ ही अपनी सात इंची कटार नन्दिनी की म्यान में डाल दी और अपने होठों में नन्दिनी के मुंह को भरकर उसकी चीख़ों को खा गया।
कुछ क्षणों तक धर्मेन्द्र धीरे धीरे अंदर बाहर करता रहा। जैसे ही नन्दिनी साथ देने लगी उसने अपनी गति बढ़ा दी। दो बदन एक हो गए। कब बीस मिनट निकल गए पता ही नहीं चला।
नन्दिनी की चूत खून और पानी दोनों छोड़ चुकी थी। सील टूट गई थी। तृप्ति ने नन्दिनी को पहले अकड़ाया और फिर ढीला कर दिया। वह पूरे समर्पण के साथ लेटी रही। दस बारह झटके के बाद ही धर्मेन्द्र ने वीर्यपात कर दिया। नन्दिनी की चूत हल्के गुनगुने सफ़ेद गाढ़े पदार्थ से भर गई। यही वह पदार्थ है जिसने सृष्टि की रचना की है। अमृत की तरह जीवन देने वाला।
इसके बाद आया कुछ क्षणों का विराम। दोनों थम गए, धर्मेन्द्र नन्दिनी के ऊपर लेटा रहा।
नन्दिनी- थेंकयू धर्मेन्द्र जी इस हसीन रात के लिए!
धर्मेन्द्र- थेंक्स नन्दिनी जी!
दोनों हंस पड़े।
यह हंसी उस संतुष्टि की सूचक थी जो स्त्री को पुरुष के साथ से और पुरुष को स्त्री के साथ से मिलती है। अगर चुदाई के बाद स्त्री के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाये तो समझ जाना कि उसको एक सच्चा मर्द मिला है।
धर्मेन्द्र- नन्दा!!
नन्दिनी- हाँ धर्मू!
धर्मेन्द्र- तुमने कहा था ना कि मेरे तीनों छेद तुम्हारे हैं।
नन्दिनी- हाँ!
धर्मेन्द्र- तो दो छेद तो ले चुका हूँ। एक बाकी है।
नन्दिनी- तो उसे क्यों छोड़ रहे हो?
धमेन्द्र- सच?
नन्दिनी- मुच।
फिर दोनों हंस पड़े।
धर्मेन्द्र के कहने पर नन्दिनी घोड़ी बन चुकी थी। धर्मेन्द्र ने झोले में से क्रीम निकाला और नन्दिनी की गांड के छेद पर धीरे धीरे लगाने लगा। बीच बीच में थोड़ी सी उंगली भी कर देता। नन्दिनी हंस देती।
नन्दिनी- धरमू!! खोल दो अब यह दरवाजा भी!
धर्मेन्द्र- जो हुकुम नन्दा रानी!
अगले ही पल धर्मेन्द्र ने अपना काम प्रारम्भ कर दिया। हल्की हल्की चीख़ों के बीच नन्दिनी ने अपनी 38″ की विशाल गांड में धर्मेन्द्र का पूरा लंड फंसवा लिया।
थोड़ी ही देर बाद मशीन चालू हो गई पट … पट … पट … पट! पट … पट … पट! पट … पट … पट … पट … पट … पट!
नन्दिनी- और ज़ोर से प्लीज मार डालो … फाड़ डालो।
“पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट … पट”
नन्दिनी!! नन्दिनी!!
ज़ोर ज़ोर से आवाज आई और किसी ने दरवाजा खटखटाया.
नन्दिनी ने धीरे से कहा- छिप जाओ धरमू, शायद मॉम है।
“नन्दिनी! नन्दिनी!! अरे उठना नहीं है क्या?”
नन्दिनी ने आँखें खोली, उसका पूरा शरीर पसीने पसीने हो रहा था।
अचानक वह मुस्कुरा दी।
खिड़की में से सूरज की रोशनी आ रही थी।
उसने एक हाथ अपनी चूत पर रखा तो थोड़ा गीलापन महसूस हुआ मगर पैन्टी अपनी जगह थी। गाउन अपनी जगह था।
ओहो! तो ये ख्वाब था। धर्मेन्द्र जी सपने मे आकर चोद गये। गांड मार गये और मेंगो बार चूसा गये।
“उठ गई हूँ मम्मी, आज कोचिंग देर से जाना है।”
बस फिर क्या … आपकी नन्दिनी एक बार फिर बच गई। सील इंटेक्ट है।
मेरी कामुक कथा आपको कैसी लगी, जरूर लिखना। मैं जवाब देने की कोशिश करूंगी। मुझे [email protected] पर मेल करके बताना कि मेरी कहानियाँ आपको कैसी लगी।