नमस्ते दोस्तों! मेरा नाम दीपक है. मैं अन्तर्वासना की हर सेक्स स्टोरी को बड़े चाव से पढ़ता हूँ। हिंदी सेक्स स्टोरी की इस विशाल साईट से लगभग 3 सालों से जुड़ा हुआ हूँ।
पहले बहुत दिनों तक अपनी बात लिखने से हिचकता रहा.. पर आज हिम्मत जुटा कर अपनी खुद की कहानी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।
मैं एक 19 साल का बलिष्ठ और फिट लड़का हूँ। मेरा कद 5 फीट 6 इंच और लंड का साइज़ लगभग 7 इंच है। मेरे पापा एक ठेकेदार हैं इसलिए वो हमेशा ही काम में लगे रहते हैं। उनका अधिकतर समय दिल्ली में ही बीतता है।
बात जब की है, जब मैं बोर्ड का एग्जाम पास करके अपने पापा के पास दिल्ली आया था।
मेरे पापा के पड़ोस में एक आंटी भी रहती थीं.. गोपनीयता के चलते मैं उनका नाम नहीं लिखना चाहता हूँ। वो हमेशा मुझे देखा करती थीं और मुझसे बात करने के लए बहाने ढूँढा करती थीं।
आंटी दिखने में तो भाभी ही थीं.. लेकिन शुरुआत से ही उनको मैं आंटी कहता आया हूँ इसलिए इधर भी मैं उनको आंटी के नाम से सम्बोधित करते हुए लिख रहा हूँ।
तो आंटी एक 26 साल की महिला हैं। चार साल पहले उनकी शादी हो चुकी थी, लेकिन उन्हें देख कर कोई यह नहीं बता सकता कि उनकी शादी हो चुकी है और दो बच्चे भी हैं।
आंटी का रंग बिल्कुल गोरा है, उनकी चुची ज़्यादा बड़ी नहीं हैं.. लेकिन बहुत ही सॉफ्ट और तनी हुई हैं।
आंटी की गांड तो बहुत ही मटकने वाली व लचीली है.. उनकी गांड की थिरकन तो इतनी मस्त है कि कोई भी आंटी के चूतड़ों का डांस देख कर ही झड़ जाए। यह समझ लो कि आंटी सेक्स की देवी थी.
कुछ दिनों बाद मुझे भी उनसे बातें करना अच्छा लगने लगा। हम लोग एक ही बिल्डिंग में रहते हैं तो गर्मियों में सारे लोग एक साथ ही छत पर सोते थे बिल्डिंग की छत काफ़ी बड़ी थी।
ऐसे ही बात करते-करते काफ़ी दिन गुजर गए। अब तक मेरा भी मन आंटी से सेक्स का होने लगा था। वो थीं ही इतनी सेक्सी माल कि मैं क्या उनकी फिगर देखकर कोई भी लंड उठा कर खड़ा हो सकता था। अब तो मैं आंटी की चुदाई के बारे में सोच कर मुठ भी मारने लगा था।
हमारी बिल्डिंग के सारे लोग छत पर ही कपड़े सूखने डालते थे। मैं हमेशा अपने कपड़ों के साथ आंटी के कपड़े भी छत से लेकर आ जाया करता था और उन्हीं के सामने उनकी ब्रा और पेंटी को घूर-घूर कर देखा करता था।
वो मुझे करता देख कर भी कुछ नहीं बोलती थीं, उल्टे मुस्कुरा देती थीं।
एक दिन मैंने आंटी से बोला- मुझे आपकी पेंटी चाहिए!
तो उन्होंने बड़े ही प्यार से पूछा- क्या करोगे इसका.. ये तो लड़कियों के पहनने की चीज़ है।
तो मैंने भी कह दिया- मुझे इसकी ज़रूरत है।
आंटी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा- जाओ.. और दुबारा अपनी शक्ल नहीं दिखाना।
मैंने सोचा शायद आंटी मजाक कर रही हैं, मैंने जबरिया लपक कर उनकी पेंटी उठाई और साथ में ब्रा भी लेकर चला गया।
फिर मैं बाथरूम में जाकर उनकी पेंटी को अपने लंड से चिपकाकर मुठ मारने लगा और उसी में झड़ भी गया। इसके बाद मैंने आंटी की पेंटी को अल्मारी में छुपाकर रख दिया।
अगले दिन सुबह आंटी कुछ गुस्से में दिख रही थीं। उन्होंने मुझे देखा और गुस्सा दिखाते हुए बोलीं- लाओ मेरी पेंटी कहाँ है?
उनके आज के रुख को देख कर मैं तो डर ही गया।
मैंने कुछ नहीं कहा तो आंटी फिर बोलीं- जाओ.. अभी लेकर आओ।
मैं सर हिलाता हुआ चला गया। बाद में आंटी की पेंटी लेकर उनके कमरे की तरफ आने लगा। फिर मैंने आव देखा ना ताव.. आंटी को पेंटी वापिस करने उनके कमरे में घुसता चला गया और उनके सामने माल से सनी हुई सूखी और सिकुड़ी सी पेंटी रख दी।
आंटी पेंटी देखते ही गुस्साते हुए बोलीं- ये क्या किया पेंटी के साथ?
मैं कुछ नहीं बोला और ऐसे ही खड़ा रहा।
उनके दुबारा पूछने पर मैंने धीरे से कहा- इसमें मुठ मारी थी।
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मेरे ऐसा बोलते ही वो हंस पड़ीं और बोलीं- मुठ मारने में मेरी पेंटी की क्या ज़रूरत थी?
तो मैंने कहा- मैं तो रोज आपके नाम की मुठ मारता हूँ। मैंने कई बार आपकी पेंटी चुरा-चुरा कर मुठ मारी है और कई बार जब आप कमरे में सो जाती थीं तो आपके खुले हुए और फैले हुए मम्मों को देखकर भी मुठ मारी है।
इस पर तो आंटी जोर जोर से हँसने लगीं और बोलीं- तू मुठ भी मारता है।
मैंने महसूस किया कि आज तो आंटी कुछ अलग ही तरह से व्यवहार कर रही थीं।
आंटी बोलीं- अच्छा बताओ मुठ कैसे मारते हैं.. जरा मेरे सामने मार के दिखाओ।
अब उनके सामने तो मेरा लंड भी खड़ा नहीं हो रहा था।
तो आंटी बोलीं- कोई नहीं बेटा.. इधर आओ मैं तेरा लंड खड़ा कर देती हूँ और मैं तुझे आज सिखाऊँगी भी कि मुठ और चुत कैसे मारते हैं।
यह कह कर आंटी ने जैसे ही मेरे लंड को छुआ.. लंड एकदम साँप की तरह फन उठाने लगा।
आंटी आँख मारते हुए बोलीं- देखा मेरे हाथ का जादू..!
अब तो आंटी मेरा लंड जो कि अब 7 इंच का हो चुका था.. उसको जोर-जोर से हिलाते और सहलाते हुए मुठ मार रही थीं। मेरा लंड अब झड़ने ही वाला था, मैंने आंटी से कहा- आंटी मेरा माल निकलने ही वाला है।
तो उन्होंने कहा- एक मिनट रुक..
बस उन्होंने मेरे तन्नाए हुए लंड को अपने मुँह में ले लिया और उसी पल लंड ने वीर्य छोड़ दिया। मेरा सारा माल आंटी ने अपने मुँह में ले लिया। इसके बाद आंटी ने धीरे-धीरे करके सारा माल मुँह से निकाल कर मेरी छाती पर मल दिया और फिर उसे चाटने लगीं।
आंटी तो बिल्कुल एक एक्सपर्ट सेक्स वर्कर की तरह लंड चूस और चाट रही थीं।
मुझे इतना मजा पहले कभी नहीं आया था। मैं तो किसी और ही दुनिया में अपने आपको महसूस कर रहा था। इस दिन केवल इतना ही हुआ क्योंकि मेरे पापा के आने का समय हो गया था। सो हम दोनों ने ये खेल यहीं ख़त्म कर दिया और रात को इसे पूरा करने की बात हो गई।
जब सारे लोग रात को खाना खाकर सोने चले गए और थोड़े ही देर में सब सो भी गए, तो आंटी मेरे पास आ गईं।
आंटी बोलीं- मुझे बाथरूम आई है.. मेरे साथ चल!
मैं समझ ही गया था कि आंटी का सेक्स का मन हो रहा है, मैं भी आंटी के साथ चला गया।
आंटी सीधे मुझे अपने कमरे में ले गईं। मुझे पता था कि मेरे पास ज़्यादा टाइम नहीं है.. मुझे डर भी लग रहा था कि कहीं अंकल या मेरे पापा ना जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी।
लेकिन इस सब में मुझे बहुत मजा भी आ रहा था। मुझे आज एक सेक्स की मूरत को चोदने का मौका मिल रहा था।
आंटी ने कहा- अब क्या खड़े ही रहोगे या मुझे चोदोगे भी?
मैं तो इसी का इंतजार कर रहा था, मैंने कहा- आंटी आपको चोदने ही तो आया हूँ.. अपने कपड़े तो उतारो!
आंटी बोलीं- आंटी मत बोला कर, जानू कह के बुला।
मैंने कहा- जानू.. कपड़े तो उतारो।
आंटी बोलीं- खुद ही उतार दे।
मैंने भी देर ना करते हुए धीरे-धीरे आंटी के सारे कपड़े निकाल दिए। कुछ ही पलों वो केवल एक पेंटी में खड़ी थीं। मैंने जैसे ही आंटी की पेंटी को उतारा.. मैं तो भौंचक्का ही रह गया। आंटी की चुत तो बालों से भरी पड़ी थी.. बिल्कुल भी नहीं दिख रही थी।
मैंने जैसे ही उनकी चुत पर हाथ रखा तो वो सिहर गईं, आंटी ने मुझे जकड़ लिया और गाली देने लगीं- चोद इस रंडी को मादरचोद.. चोद-चोद कर चूत फाड़ दे आज मेरी।
मेरे छूने से ही वो मदहोश होती जा रही थीं और गंदी-गंदी गालियाँ भी दे रही थीं ‘चोद भोसड़ी के.. साले चोद..’
उनकी इस तरह की गर्म बातें सुन कर मुझे भी जोश चढ़ रहा था। मैंने उन्हें चित्त लिटाया और लंड को आंटी की चूत में पेल दिया। आंटी की आवाज निकली ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उस रात मैंने आंटी को जी भर के कई मिनट तक चोदा। चुदाई करने के दौरान आंटी झड़ चुकी थीं।
इसके बाद हम दोनों अलग हुए और वापस छत पर आ कर सो गए।
मुझे आज भी वो रात याद है, उनकी वो जोश बढ़ाने वाली कामुक सीत्कारें.. गंदी गालियाँ और वो डर, जिससे मेरी भी गांड फटी जा रही थी कि कहीं पापा या अंकल ना आ जाएं।
उसके दो दिन बाद ही मैं दिल्ली से वापस आ गया। फिर मैं आंटी से 2 साल बाद मिला, लेकिन इस बार आंटी ने चुदवाया नहीं, मैंने भी ज़्यादा कुछ नहीं बोला।
तो दोस्तो.. कैसे लगी आपको मेरी और मेरी आंटी की चुदाई की कहानी.. मुझे मेल कीजिएगा।
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