यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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आपने अब तक की मेरी इस दीदी का बुर चोदन सेक्स कहानी में पढ़ा था कि मेरी दीदी से साकेत भैया अपना चक्कर चलाने लगे थे और उन्होंने एक अपनी बहन के हाथों मेरी दीदी के पास अपना प्रेम पत्र भेज दिया था … साकेत भैया ने मुझे भी दो चॉकलेट दी थीं और कहा था कि मैं एक चॉकलेट अपनी प्रिया दीदी को दे दूँ.
अब आगे:
हम लोगों का खेल खत्म हो गया और मैं घर चला गया … घर जाकर मैं दीदी को ढूंढने लगा, पर वो कहीं नहीं मिली … तो मैं भागता हुआ मम्मी के कमरे में गया … मम्मी कुछ काम कर रही थीं.
मैं- मम्मी दीदी कहां है?
मम्मी- छत पर होगी शायद.
मैं भागता हुआ छत पर गया.
मैंने देखा कि दीदी एक कोने बैठ कर कुछ सोच रही थी.
मैं- दीदी क्या हुआ. … क्या सोच रही हो?
दीदी- कुछ नहीं.
मैं- मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ.
दीदी- क्या?
मैंने अपने पॉकेट से चॉकलेट निकाल कर दीदी के तरफ बढ़ाई … तो दीदी ने मुझसे पूछा- कहां से लाए?
मैं- मैं तुम्हारे लिए खरीद कर लाया हूं.
दीदी- झूठ मत बोलो.
मैं- सच में तुम्हारी कसम.
दीदी- तुम्हारे पास इतने पैसे आए कहां से?
मैं- थे मेरे पास … मम्मी ने दिए थे और पापा ने दिए थे … वो सारे पैसे रखे थे.
दीदी- तुम झूठ बोल रहे हो. … सच सच बताओ वरना मैं मम्मी को बोलने जाती हूं … जब तुम्हें मम्मी डांटेंगी ना. … तब बताओगे.
मैं दीदी का हाथ पकड़ते हुए बोला- अरे दीदी सुनो तो सही.
दीदी रुक गई.
मैं- जब मैं खेल रहा था ना. … तो साकेत भैया आए थे. … उन्होंने मुझे दी थी.
दीदी- वो … … तो तुम खाओ ना … मुझे क्यों दे रहे हो?
मैं- अरे उन्होंने मुझे दो चॉकलेट दिए थे … एक मेरे लिए और एक तुम्हारे लिए … मैंने अपना खा लिया. … तुम्हारा तुम्हें देने आया था.
दीदी- अच्छा … मम्मी को ये सब मत बोलना.
मैं- क्यों? कितने अच्छे तो हैं वो.
दीदी- ऐसे ही. … मम्मी नाराज होंगी और तुम्हें डांटेंगी भी.
मैं- अब क्यों डांटेंगी … अभी तो बोली नहीं बताओगे, तो मम्मी डांटेंगी … अब कहती हो कि बताओगे तो डांटेंगी.
दीदी- मम्मी तुम्हें नहीं. … मुझे डांटेंगी.
मैं- ठीक है नहीं बोलूंगा.
मैंने देखा दीदी बहुत परेशान थी, तो मैंने बोला- दीदी एक बात पूछूं?
दीदी- पूछो.
मैं- तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो?
दीदी- कुछ नहीं. … बस ऐसे ही.
इतने में ही श्वेता दीदी मेरे घर आ गई.
मम्मी- अरे श्वेता क्या बात है. … कभी कभी तो एकदम से गायब हो जाती हो. … और आजकल दो दो तीन तीन बार आती हो.
श्वेता दीदी- हां आंटी, घर में मन नहीं लगता है … यहां आ जाते हैं, तो कुछ पढ़ाई भी कर लेते हैं और कुछ बातें भी. … तो टाइम पास हो जाता है.
मम्मी- अच्छा है. … मन लगा कर पढ़ो … अगले साल बोर्ड का एग्जाम भी देना है.
श्वेता दीदी- हां आंटी. … इसीलिए तो आ जाती हूं ताकि साथ में मिलकर अपना प्रॉब्लम सॉल्व कर लें … आंटी प्रिया है कहां … दिखाई नहीं दे रही है?
मम्मी- अच्छा है. … ऐसे ही मेहनत करती रहो … दोनों भाई बहन छत पर होंगे.
श्वेता दीदी छत पर आ गई और हम लोग के साथ ही बैठ गई.
श्वेता दीदी- क्या हुआ प्रिया, बहुत उदास बैठी हो.
दीदी- कुछ नहीं बस ऐसे ही … तुम कॉपी किताब क्यों लेकर आई हो?
श्वेता दीदी- अरे कुछ नहीं ऐसे ही … क्या हुआ … तुमने उनके लैटर का जवाब दिया या नहीं?
दीदी कुछ देर चुप रही.
श्वेता दीदी- क्या हुआ … कुछ तो बोलो.
दीदी- क्या जवाब दूँ, वो उम्र में हमसे कितने बड़े हैं … मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.
श्वेता दीदी- अरे प्रिया प्यार में उम्र का कोई मायने नहीं होता है. … बस प्यार सच्चा होना चाहिए और वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं … उन्होंने मुझसे वादा किया है कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखेंगे.
दीदी- लेकिन अगर मम्मी पापा को पता चल गया तो?
श्वेता दीदी- वो तुम हम पर छोड़ दो. … तुम तो ये बताओ कि तुम उनके लैटर का जवाब कब दोगी?
दीदी- मुझे सोचने का समय दो.
श्वेता दीदी- कल?
दीदी- नहीं … परसों.
श्वेता दीदी- ठीक है … परसों पक्का?
दीदी- हां.
श्वेता दीदी चली गई.
अगले दिन दोपहर का समय था … मम्मी अपने कमरे में सोई थीं, मैं दीदी के साथ उनके कमरे में पढ़ाई कर रहा था.
दीदी- अर्णव मुझे अब नींद आ रही है, मैं सोऊंगी … तुम भी अपने कमरे में जाकर सो जाओ … बाकी पढ़ाई शाम में कर लेंगे.
मैं- ठीक है.
मैं अपने कमरे में चला आया.
तभी दीदी के कमरे का दरवाजा बंद करने की आवाज आई … मैं समझ गया कि कुछ तो है … मैं जल्दी से पलंग पर कुर्सी रखकर होल से अन्दर झांकने लगा … दीदी कुछ लिख रही थी … कुछ देर लिखने के बाद उस पन्ने को कॉपी से फाड़ लिया और उसे मोड़ कर एक किताब में डाल दिया … कुछ देर बाद वो सो गई और मैं भी अपने कमरे में सो गया.
शाम को दीदी कोचिंग चली गई … मैं जल्दी से उनके कमरे में गया और उनकी किताब से उस कागज को निकाल कर पढ़ने लगा.
‘मैंने जब से आपका लैटर पढ़ा है, तब से अभी तक मैं बहुत परेशान हूं … मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं आपके सवाल का क्या जवाब दूँ … हां बोलूं या ना … श्वेता मेरी बचपन की सहेली है … वो मुझे अच्छी तरह समझती और जानती हैं … मेरे हां बोलने से भी परेशानी है. … और ना बोलने से भी … अगर ना बोली, तो श्वेता मुझसे नाराज़ हो जाएगी और हां बोलने पर अगर मम्मी को पता चल गया, तो घर में बहुत परेशानी हो जाएगी … मेरी पढ़ाई भी बंद हो जाएगी … श्वेता से भी रिश्ता खत्म हो जाएगा … आप क्या चाहते हैं … मैंने अपनी प्रॉब्लम आपको बता दी … आगे आपकी मर्जी.’
मैंने लैटर पढ़ कर वहीं रख दिया और खेलने चला गया … तभी दीदी और श्वेता दीदी को कोचिंग से आते देखा और मैं भी उनके साथ आने लगा.
श्वेता दीदी- अरे अर्णव, यहां क्या कर रहे थे.
मैं- मैं यहां खेलने आया था.
दीदी- खेल लिए.
मैं- हां.
हम लोग वापस में बात करते हुए घर आ गए और साथ में श्वेता दीदी भी आ गई … घर आने के बाद श्वेता दीदी मम्मी से बात करने लगी … और दीदी अपने कमरे की तरफ चली गई … मैं भी उनके पीछे पीछे कमरे में चला गया … दीदी ने अपने किताब से उस लैटर को निकाला और कॉपी में डाल कर श्वेता दीदी को देने चली गई.
श्वेता दीदी जाने लगी और बोली- ठीक है … मैं सुबह कॉपी पहुंचा दूंगी.
दीदी- ठीक.
वो चली गई.
अगली सुबह लगभग दस बज रहे होंगे, श्वेता दीदी मेरे घर आई … वो अपने हाथ में वहीं कॉपी लिए हुए थी, जो दीदी ने कल श्वेता दीदी को दी थी … मेरी दीदी और मम्मी थोड़ा जल्दी में थीं. … क्योंकि मम्मी की तबियत कुछ खराब थी, तो उन्हें डाक्टर के पास जाना था … इसलिए दीदी जल्दी से कॉपी को अपने बेड के नीचे रख लिया और चली गई.
श्वेता दीदी- आंटी कहीं जा रही हैं क्या?
मम्मी- हां श्वेता. … डॉक्टर के पास जा रही हूँ.
श्वेता दीदी- अच्छा प्रिया … मैं जाती हूं बाद में आऊंगी.
दीदी- ठीक है.
श्वेता दीदी चली गई … मम्मी और दीदी भी जाने लगीं.
मम्मी- अर्णव बेटा घर में ही रहना. … हम लोग एक घंटे में वापस आ जाएंगे.
मैं- ठीक है मम्मी.
मम्मी- दरवाजा बंद कर लेना.
मैं- ठीक.
वे लोग चले गए … मैंने दरवाजा बंद कर लिया और दीदी के कमरे में चला गया … मैं लैटर निकाल कर पढ़ने लगा.
‘प्रिया मैं तुम्हारी परेशानी को समझ सकता हूं … लेकिन मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि मेरी वजह से तुम्हें कभी कोई परेशानी नहीं होगी … हमारे बीच जो कुछ भी होगा, वो तुम्हारे, हमारे और श्वेता के बीच ही रहेगा … तुम्हारे मम्मी और पापा को कभी नहीं पता चलेगा. … और रही बात अर्णव की. … तो वो तो अभी छोटा है, उसे कुछ समझ नहीं आएगा … तुम मेरा भरोसा करो … मेरी वजह से तुम्हें कभी कोई परेशानी नहीं होगी … आगे तुम्हारी मर्जी. … आई लव यू प्रिया..’
मैंने लैटर को वहीं रख दिया और अपने कमरे में आ कर सो गया.
कुछ देर बाद बाहर से मम्मी की आवाज़ आई … मैं आंखें मींसता हुआ दरवाजे की तरफ गया और दरवाजा खोला … मैंने देखा मम्मी और दीदी वापस आ गई थीं.
मम्मी- सो रहे थे क्या?
मैं- हां नींद आ गई थी.
मैं फिर अपने कमरे में गया और सो गया … मम्मी ने भी दवा खाई और अपने कमरे में सोने चली गईं.
मैं फिर उसी तरह दीदी के कमरे में झांकने लगा … दीदी ने उस लैटर को निकाला और पढ़ने लगी … फिर एक पन्ने पर कुछ लिख कर बेड के नीचे रख कर सो गई.
कुछ देर बाद मम्मी मुझे जगाने आईं- अर्णव उठो … खाना खा लो, बहुत समय हो गया है.
मैंने उठ कर हाथ मुँह धोया और हम सभी लोग खाना खाने लगे.
खाना खाने के बाद मम्मी ने दीदी से बोलीं- प्रिया, ये सामान आंटी को दे आओ … अर्णव को भी साथ में लेते जाना.
मैं- मम्मी मैं नहीं जाऊंगा.
दीदी- रहने दो मम्मी मैं दे आऊंगी.
मम्मी- ठीक है चली जाओ.
फिर दीदी चली गई … मैं फिर दीदी के कमरे में गया और दीदी का लिखा उस पत्र को पढ़ने लगा.
‘मुझे आप पर, श्वेता पर. … पूरा यकीन है, पर फिर भी मुझे डर लगता है … लेकिन हमारे बीच जो भी है, वो हम तीनों के सिवा किसी को पता ना चले … नहीं तो हमारे साथ जो कुछ भी होगा, वो बहुत बुरा होगा … आई लव यू.’
कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा … एक दिन मैं, दीदी और श्वेता दीदी बाजार गए थे … बाजार में साकेत भैया भी थे. … शायद ये पहले से प्लान था … हम लोग एक होटल में गए और टेबल पर बैठ गए … एक तरफ मैं और श्वेता दीदी और दूसरी तरफ दीदी और साकेत भैया …
वेटर ऑडर लेने आया- सर क्या लाएं?
साकेत भैया ने मेरी दीदी से पूछा- क्या लोगी?
दीदी कुछ नहीं बोली.
श्वेता- अरे बोलो न. … शर्मा क्यों रही हो?
दीदी कुछ नहीं बोली.
साकेत भैया- कुछ तो बोलो.
दीदी- जो आप की इच्छा हो.
साकेत भैया- यहां हम तुम्हारे लिए आए हैं. … इसलिए तुम जो बोलोगी, वही आएगा.
दीदी अपना सर नीचे झुकाए बैठी रही … वो कुछ नहीं बोली … मैंने देखा दीदी का चेहरा पूरा लाल हो गया था … उस समय दीदी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि अब मैं सोचता हूं. … काश साकेत भैया की जगह मैं होता, तो कितना मजा आता.
श्वेता दीदी- तुम्हारी दीदी तो कुछ नहीं बोल रही … तुम बताओ … तुम क्या खाओगे?
साकेत भैया- हां अर्णव. … तुम बोलो तुम क्या लोगे.
मैं झट से बोला- मिठाई और कोल्डड्रिंक.
साकेत भैया- चलो अच्छा है.
फिर उन्होंने मिठाई और कोल्डड्रिंक का ऑर्डर किया.
थोड़ी देर बाद सभी के लिए मिठाई और कोल्ड ड्रिंक आ गई … हम लोग खाने लगे … साकेत भैया दीदी के साथ बातें भी कर रहे थे.
साकेत भैया- बहुत खूबसूरत लग रही हो.
दीदी ने अपना सर नीचे झुका लिया.
साकेत भैया- क्या हुआ. … कुछ तो बोलो.
दीदी- क्या?
साकेत भैया- तुम अपना मोबाइल नंबर दो.
दीदी- मेरे पास मोबाइल नहीं है.
साकेत भैया- श्वेता तो बोल रही थी कि तुम्हारे पास मोबाइल है.
श्वेता दीदी- मोबाइल आंटी रखती हैं … प्रिया नहीं रखती है.
साकेत भैया- तो मेरा नंबर ले लो, जब तुम्हें मौका मिले, तब तुम मुझे मिस कॉल कर देना.
दीदी- नहीं, आपको जो भी कहना हो लैटर में लिख कर दे दीजिएगा … मैं वापस उसका जवाब दे दूंगी.
साकेत भैया- तुम जवाब देने में बहुत समय लगाती हो.
दीदी- अब नहीं ज्यादा समय नहीं लगेगा.
इस समय मेरी दीदी लाल कलर का सूट और लैगीज पहने हुए थी … लैगीज जांघ से बिल्कुल चिपकी हुई थी … वो इतनी ज्यादा चिपकी थी कि उनकी पैंटी के कट्स उनकी लैगीज के ऊपर से दिखाई दे रहे थे …
फिर मैंने देखा कि साकेत भैया दीदी की जांघ को सहला रहे थे और दीदी बार बार उनके हाथ को हटा रही थी … कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा … वो बार बार जांघों पर अपना हाथ रगड़ रहे थे … दीदी बार बार उनके हाथ को हटा रही थी … कुछ देर बाद दीदी शांत हो गई. … और साकेत भैया का हाथ दीदी के दोनों पैरों के बीच उनकी बुर पर आ गया था … वो धीरे धीरे अपनी उंगली दीदी की बुर पर रगड़ रहे … जैसे जैसे वो रगड़ रहे थे, दीदी का चेहरा वैसे वैसे लाल होते जा रहा था … पता नहीं क्यों ये सब देख कर मेरा लंड बिल्कुल टाईट हो गया था … मुझे बहुत मजा आ रहा था.
फिर अचानक से दीदी ने उनका हाथ वहां से वापस खींचा और वो बोली- श्वेता अब चलो. … बहुत देर हो गई है.
श्वेता दीदी- हां चलो.
साकेत भैया- ठीक है तुम लोग जाओ, मैं अभी आता हूं.
हम लोग वहां से निकल गए और मार्केट से कुछ सामान खरीद कर घर आने लगे.
मेरी दीदी से साकेत भैया का चक्कर कैसे फिट हुआ और मेरी दीदी का बुर चोदन कैसे हुआ. इस सबको मैं पूरे विस्तार से लिखता रहूँगा … ये सेक्स कहानी कई भागों में आपको पढ़ने को मिलेगी … मेरी इस सेक्स कहानी के लिए आपके मेल की प्रतीक्षा रहेगी.
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कहानी जारी है.