नमस्कार मित्रों, मेरा नाम अजय है. कॉलेज के दिनों में मैं और मेरा एक दोस्त फ्लैट में रहते थे.
वो उपिंदर, हट्टा कट्टा सरदार, चौड़ा सीना मज़बूत जांघें और शानदार बदन. मुझे वो अच्छा लगता था.
मैं हूँ तो लड़का पर … तब भी दिल से लड़की था. मुझे मर्दाना जिस्म देखना अच्छा लगता था. मेरा लंड है, खड़ा भी होता है, पर उसमें मुझे ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. मेरी छाती के उभार लड़कियों जैसे ज्यादा बड़े नहीं थे, पर फिर भी छोटी चुचियां थीं.
एक दिन…
मैं नहा रहा था. शावर में खड़ा था. दरवाज़ा बन्द करना भूल गया था. अचानक उपिंदर आया और मुझे पीछे से दबोच लिया.
‘यार तू तो मस्त चिकना माल है.’
उसके हाथ आगे आये, मेरी चुचियां पकड़ी और दबाने लगा.
‘तेरी चुचियां अच्छी हैं, थोड़ी छोटी हैं, पर चिंता न कर, रोज़ दबवाएगा मेरे से तो बड़ी हो जाएंगी.’
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं, पर अच्छा लग रहा था.
‘आज से तू मेरा दोस्त अजय नहीं’‘पर क्यों?’
‘आज से तू कामिनी, मेरी माशूका.’
उसने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे होंठ चूसने लगा. साथ में मेरे चूतड़ दबाने लगा. पानी गिर रहा था, हम भीग रहे थे. मैं नंगा वो अंडरवियर में.
‘चल बिस्तर पे. पहला प्रोग्राम वहीं पे करेंगे.’
‘तू चल मैं बदन पौंछ के आता हूँ.’
उसने फिर से मुझे बांहों में भरा और बोला- तू कामिनी है.. और कामिनी आता हूँ नहीं… कामिनी आती है.’
मैं मुस्कुरा दिया.
बिस्तर पे…
वो लेटा हुआ था. उसका अंडरवियर उतर चुका था. मांसल जांघों के बीच में तूफानी हथियार, शान से खड़ा हुआ उसका मस्ताना लंड.
मैं आकर्षित हो के बिस्तर की तरफ बढ़ा.
‘आ जा मेरी रानी आज तू पूरी तरह से मेरी बन जाएगी.’
मेरी नज़रें उस तने हुए लौड़े पे चिपकी हुई थीं. मैं बिस्तर पे चढ़ा, लंड को हाथ में पकड़ा, प्यार से सहलाया और मुँह में ले लिया. लंड चूसने लगा. मेरे होंठ उस पर फिसलने लगे. मर्दानी खुशबू और स्वाद से मैं मदहोश होने लगा. वो भी गरम हो गया, उसकी कमर हिलने लगी. उसका लंड मेरे मुँह में अन्दर बाहर होने लगा और फिर… मेरे प्रियतम का सफेद पानी मेरे होंठों के बीच में बरस गया.
फिर हम कॉलेज चले गए.
वापसी में वो मुझे बाजार ले गया.
रईस बाप का बेटा था. मुझे बिल्कुल गर्लफ्रैंड की तरह शॉपिंग करवाई. ब्रा पैंटी सलवार कमीज और कुछ मेकअप का सामान दिलाया. एक बोतल शराब की ले ली.
मैं बहुत खुश था.
घर आ के मैंने 2 पैग बनाए. हम पीने लगे. वो मेरे बदन को सहला रहा था.
थोड़ी पीने के बाद…
‘अब मैं नए कपड़े पहन के तैयार हो जाऊं?’
उसने मुझे बांहों में भरा एक चुम्मी ली मेरे होठों पर और बोला- आज से पहले किसी का लौड़ा चूसा था?
‘नहीं.’
उसने मेरे चूतड़ दबा कर पूछा- और इनके बीच में भी कुंवारी है?
मैंने कहा- हाँ सील बन्द.
वो बोला- फिर तू नए कपड़े कल से पहनना.
‘क्यों?’
‘क्योंकि आज तू नंगी रहेगी. अपने आशिक से सील तुड़वाएगी. आज मैं तेरी गांड का उद्घाटन करूँगा. चल उतार दे कपड़े.’
मैं नंगा हो गया.
वो भी.
हम बिस्तर पे आ गए. वो मुझे बांहों में भर के मेरी चुचियां चूसने, दबाने मसलने लगा. फिर फनफनाता हुआ लौड़ा मेरे मुँह में दे दिया. मैंने जी भर के लंड चूसा.
‘चल कामिनी अब घोड़ी बन जा.’
मैं बन गया. पैर फैला लिए.
उसने मेरी गांड पे क्रीम लगाई, उंगली घुसाई फिर लंड को निशाने पे रखा और पेल दिया.
‘आआआ … आआह..’
मेरे आशिक का मस्त लौड़ा मेरे चूतड़ों के बीच की गहराई में घुस गया. वो पेलने लगा.
मुझे कुछ देर दर्द हुआ पर गांड का कोरापन खत्म होते ही मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था. ऐसा लग रहा था कि मैं सच में लड़की हूँ और चुदवा रही हूँ.
उपिंदर के धक्के तेज़ हो गए. उसकी जांघें मेरे चूतड़ों से टकराने लगीं, लंड तेज़ी से अन्दर बाहर होने लगा और फिर उसने मेरे अन्दर पानी छोड़ दिया.
कितनी ही देर वो मेरे ऊपर लेटा रहा. फिर मैंने लौड़े को चाटा और हम सो गए.
उस दिन के बाद से मैं हर तरह से लड़की बन गयी. सोचती भी लड़कियों की तरह ही थी. बाहर जाते वक़्त पैंट कमीज पहननी पड़ती थी, वो अच्छा नहीं लगता था. घर में साड़ी, कभी सलवार कमीज कभी स्कर्ट और कभी जीन्स टॉप में रहती थी. किसी किसी दिन जब मेरे यार का मूड होता था तो सर्फ ब्रा और पैंटी में ही रहती थी. मैं अपने जिस्म की वैक्सिंग करती थी, लिपस्टिक नेल पोलिश पूरा मेकअप. रोज़ रात को प्रोग्राम होता था. कभी बिस्तर पे, कभी बाथरूम में, कभी रसोई में.
फिर एक दिन. शाम का समय था. दरवाज़े की घंटी बजी. उपिंदर ने खोला. और वहीं से ज़ोर से बोला- तेरी मम्मी आयी हैं.
मैं घबरा के बाथरूम में घुस गयी. वो दोनों कमरे में आ गए. मैं आवाज़ें सुनने लगी.
‘कैसी हैं आप?’
‘मैं अच्छी हूँ, तुम?’
‘मैं भी मज़े में हूँ.’
‘और अजय, वो कहाँ है?’
‘वो बाथरूम में है. मैं आपको कुछ दिखाता हूँ.’
फिर उसने शायद अपने फ़ोन में कुछ तस्वीरें दिखाईं.
‘ये … ये क्या?’
‘ये मेरी गर्लफ्रैंड है कामिनी.’
‘पर ये तो… ये तो…’
‘समझिए आंटी ये मुझे पूरा मज़ा देती है, सब तरह से.’
‘मतलब तुम दोनों…’
‘हाँ आंटी हम दोनों हर रोज़ सुहागरात मनाते हैं.’
‘तुम्हें ये पसंद है?’
उपिंदर का जवाब सुन के मैं चौंक गयी.
‘मुझे तो आप भी पसंद हैं.’
‘धत.. मेरी तो उमर हो गई.’
‘वैसे आपका नाम एकदम सही है, मालिनी.’
‘मतलब?’
मैंने झिरी में से बाहर झांका और देखा कि वे दोनों सोफे पे बैठे हुए थे. मम्मी थोड़ा सा उसके कंधे पे झुकी हुई थीं. उसने बड़े आराम से मम्मी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के उभार को प्यार से दबाया और कहा- आपके पास ये माल है तो नाम मालिनी ही होना चाहिए न.
मैं हैरान हो गयी कि मम्मी गुस्से नहीं हुई बल्कि मुस्कुरा के बोलीं- मेरे ये क्यों देख रहे हो, तुम्हारे पास तो एक गर्लफ्रैंड है न.
उपिंदर ने मेरी माँ को अपनी बांहों के घेरे में लिया- आप गलत कह रही हैं, मेरी एक गर्लफ्रैंड नहीं है, दो हैं.
उसने मेरी माँ के होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए. मैं ये सब देख देख के गरम हो गयी थी.
भरपूर चुम्बन के बाद उपिंदर ने मुझे बुलाया- बाहर आजा कामिनी.
मैं बाहर आयी.. सलवार कमीज में थी.
‘आज से तुम दोनों मेरी गर्लफ्रैंड हो’
मैं भी सोफे पे बैठ गयी.
उपिंदर के दोनों हाथ काम पे लग गए. एक मेरी चूची पे एक मेरी माँ की चूची पे.
‘कामिनी आज तो जश्न का दिन है.. जा 3 पैग बना के ला.’
‘पर मम्मी तो पीती नहीं.’
‘अरे आज से ये मेरा माल है. ये पीयेगी और मैं आज शराब के साथ माँ बेटी के शवाब का भोग लगाऊंगा.’
हम शराब पी रहे थे और उपिंदर हम दोनों के बदन से खेल रहा था, कभी चूमता, कभी होंठ चूसता, कभी जांघें, कभी चूतड़ मसलता.
नशा चढ़ गया था.
‘कामिनी, तू तो मेरी रखैल है न?’
‘नहीं मेरे साजन … आज से मैं और मम्मी दोनों तेरी चीज़ हैं.’
‘तू तो मेरे नीचे रोज़ लेटती है, आज मैं तेरी माँ की सवारी करूँगा. इसकी चूत में लंड पेलूँगा.’
‘ठीक है सैयां.’
‘वैसे मम्मी एक बात बताइये. आप चुदी तो हैं ही, तभी माँ बनी, पर आपने कभी गांड मरवाई है?’
‘नहीं बेटी, वो तो कभी नहीं किया.’
‘वाह कामिनी मज़ा आ जाएगा, आज तो तेरी माँ की सील बन्द गांड पेलूँगा. और मालिनी तू इसे हमेशा बेटी ही कहा कर.’
मेरी माँ मुस्कुरा दी.
‘अच्छा एक काम करते हैं. छत पे चलते हैं. चांदनी रात है खुले आसमान के नीचे रंगारंग प्रोग्राम करेंगे.’
छत पे जाने से पहले ही उसने मम्मी की साड़ी उतार दी.
छत पे…
उपिंदर बोला- कामिनी, मेरी नई रखैल को चुदाई के लिए तैयार कर.
‘मैं समझी नहीं?’
‘पहले अपनी मम्मी को पूरी नंगी कर. मैं भी देखूँ कपड़ों के नीचे माल कैसा है.’
मैंने मॉम का ब्लाउज पेटीकोट और फिर ब्रा पैंटी उतार दी.
‘वाह चिकनी जांघें, भरपूर चूतड़, बिना बालों की चूत और भरी भरी चुचियां. मज़ा आ जाएगा.’ उसने मेरी मॉम को पीछे से जकड़ लिया और चुचियां मसलने लगा.
‘कामिनी सामने बैठ के इसकी चूत चाट के गर्म कर.’
मैं शुरू हो गयी. मैंने अपनी मम्मी की चूत में जीभ घुसा दी. उनकी चूत पूरी गीली थी. एकदम तैयार चुदवाने के लिए. माँ आंखें बन्द कर के मस्त मज़े ले रही थीं.
फिर उपिंदर ने वहीं फर्श पे लिटाया, टांगें चौड़ी की और मम्मी की खुली भोसड़ी में अपना लौड़ा पेल दिया और चोदने लगा. उसने जम के करारे धक्के मारे. फिर बोला- रानी अब घोड़ी बन जा.
मम्मी ने पोजीशन ले ली. भरे भरे चूतड़ उठे हुए, खुले हुए.
‘कामिनी अब तेरी माँ की गांड का गृह प्रवेश होगा. चल दोनों की एक एक चुम्मी ले, मेरे हथियार की और मेरी नई रखैल की गहराई की भी ले.
मैंने तूफानी लौड़े को चूसा फिर माँ की गांड को चूमा. फिर अपने हाथ से पकड़ के लंड को चूतड़ों के बीच छेद में लगाया. ‘पेल दो मेरे आशिक, अब मालिनी कामिनी दोनों तुम्हारी.’
एक धुआंधार धक्का लगा.
मम्मी की दर्दनाक चीख खुले आसमान में गूँज गई- आआह.. मरी.. आआहहहह…. मेरी फट जाएगी.
लेकिन उपिंदर खिलाड़ी था, वो मम्मी की गांड में लंड पेलने लगा. चांदनी रात में मेरे सामने मेरी मम्मी की गांड मस्त हो कर मारी.
कुछ देर बाद वो मम्मी की गांड में ही झड़ गया.
सुबह मम्मी को जाना था. जाने से पहले उपिंदर ने बांहों में भरा, होंठ चूसे और पूछा- अब कब आएगी मेरी मालिनी?
‘जल्दी बहुत जल्दी.’
‘अब थोड़े दिनों में तुम दोनों का प्रोमोशन करवा दूंगा.’
मम्मी के जाने के बाद मैंने पूछा- प्रमोशन मतलब?
‘कल बताऊंगा.’
आगे क्या हुआ इसके लिए थोड़ा इंतज़ार कीजिएगा. अपने मेल जरूर भेजिए.
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कहानी का अगला भाग: दिल मिले और जिस्म की प्यास बुझी-2