एक अनोखा उपहार-16

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

एक अनोखा उपहार-15

एक अनोखा उपहार-17

हैलो साथियो, आप पढ़ रहे थे कि वैभव ने मुझे 6 जवान कालगर्ल्स के पास छोड़ दिया था और मैंने अनीता और भावना को अपने लंड के लिए चुन लिया था.
अनीता मस्ती से मेरे लंड को चूस रही थी.

अब आगे:

वातावरण इतनी जल्दी गर्म हो जाएगा, ये मैंने सोचा ही ना था. अब भावना की बेचैनी बढ़ी, तो वह थोड़ा रूक कर अपनी जींस उतारने लगी. उसी समय मैंने भी अपनी शर्ट और बनियान खोल दी और अनीता ने अपनी सलवार से आजादी पा ली.

दोनों हसीना ने सैट वाली ब्रा पेंटी पहनी थी और ब्रा पेंटी में उनका आकर्षण देखते ही बनता था.

अब अनीता ने मुझे बिस्तर के किनारे पैर नीचे लटका कर लेटने को कहा.
मैं वैसे ही हो गया.

भावना मेरे बगल में आ गई और मेरे पैरों की ओर झुककर मेरे लंड को चाटने लगी.

उधर अनीता बिस्तर के नीचे जाकर पैरों के बीच घुटने के बल बैठ गई और मेरी गोलियों को चाटते हुए अपने मुँह में भरने लगी.

मैं इस दोहरे हमले से बावला सा हो गया और भावना की कमर को अपने ऊपर खींचने लगा.

ये 69 की पोजीशन पर चूत चाटने का इशारा था जिसे भावना ने तुरंत समझ लिया. क्योंकि वो तो पहले से ही यही चाहती थी. पर वो अपनी मर्जी से ऐसा करने के लिए संकोच कर रही थी.

मैंने भावना की पेंटी एक तरफ सरका दी और पहले एक उंगली से नीचे से ऊपर तक सहलाया, फिर उसे जी भरके निहारा और आंखों को ठंडक पहुंचाई.

उसकी चूत साफ चिकनी थी, वो पूरी तैयारी के साथ आई थी. हल्की भूरी रंगत लिए फूली हुई चूत अभी भी ज्यादा बजी हुई नहीं लग रही थी. भावना की सांस लेती चूत पर मुझे बहुत ज्यादा प्यार आ गया. मैंने उस पर चुम्बन किया और फिर जीभ से सहलाने लगा.

पहले तो कुछ देर मैं उसके दाने को चाटता रहा, फिर जीभ को नोकदार करके उसकी चूत में उतारने लगा. वो तड़प गई. उसकी तड़प उसके लंड को चूसने के तरीके से स्पष्ट हो गया था.

भावना लंड को पूरा गटक जाने का असंभव प्रयास करने लगी. वो मेरे गुलाबी सुपारे को चाटती, चूसती और फिर लंड को जड़ तक गटक जाने का प्रयत्न करती. यही क्रम वो बार बार दोहरा रही थी.
उधर अनीता ने अपनी पूरी कला और अनुभव का नमूना, मेरी जंघाओं, गोलियों और नाभि पर दिखा दिया.

मैं बेचैन हुआ जा रहा था, पर मुझसे भी ज्यादा बेचैन भावना थी. उसे और इस तरह रहना पसंद नहीं आया. उसने अगले ही पल खड़े होकर पेंटी निकाल फैंकी और अकड़ कर मुँह चिढ़ाते लंड पर बैठ गई.

भावना के मुँह से ‘ईस्सस..’ की आवाज आई और पूरा लंड चूत में समा गया. भावना ने मजे से आंखें बंद कर लीं और कुछ देर वैसे ही बैठे रह कर उसने खुद को ब्रा के बंधन से आजाद करा लिया.

उसके उरोजों के शिखर पर भूरी चोटी तनी हुई थी जो उसकी उत्तेजना का परिचय दे रही थी. चूचुकों के घेराव की वृहदता भावना के परिपक्व होने की गाथा का बखान कर रहा था.

भावना के उरोज मुझे आकर्षित कर ही रहे थे. और भावना भी उन्हें मेरे अधरों पर अर्पित करने को बेचैन थी. भावना ने अपने उरोज मेरे अधरों पर टिकाए ही थे कि मेरी जीह्वा ने बाहर निकल कर उसे ऐसे चाटा, मानो घर का मुखिया घर के द्वार पर उसका स्वागत करने निकली हो.

और दूसरे ही पल मैं उसके मस्त कर देने वाले उरोज को मुँह में पूरा भर लेने का असफल प्रयास करने लगा.

अब तक भावना ने अपनी कमर को चलायमान कर दिया था. नियमित गति से लंड का चूत में फिसलना, मुझे जन्नत का सुख दे रहा था.

उधर अनीता ने मुझे एक नये अनुभव और आनन्द से परिचय करवाया. जब भावना ने चुदाई की कमान संभाल ली थी, तब वो चूत में घुसे लंड की जड़ और गोलियों पर अपनी जीभ चलाने लगी थी.

दो हसीनाएं एक प्यासी, एक अनुभवी, दोनों ने चुदाई का ऐसा मजा दिया कि मैं खुद को ही भूल गया. और जब मुझसे भी रहा ना गया, तो मैंने भी कमर उछाल कर भावना को नीचे से ही चोदना शुरू कर दिया.

अब भावना बेचारी कल की लौंडिया वासना के युद्ध को आखिर कब तक लड़ती. वो अपनी बेचैनी के चलते चुदाई की गति और तेज करने लगी, बड़बड़ाने लगी, अकड़ने लगी … और कुछ तेज धक्कों के साथ मेरे लंड पर ही अपना रस अर्पण करके मेरे ऊपर पसर गई.
मेरी छाती में उसके बोबे दबकर मुझे आनंदित करने लगे.

तभी अनीता ने भावना की गांड पर जोरों की चपत मारी. भावना चिहुंक उठी और ‘आउउच …’ कहते हुए अनीता को देखने लगी.

अनीता ने कहा- चल भाग कमीनी … जितनी जल्दी हो सके भाग जा … समझ ले कि धंधे में ग्राहक को खुश करना रंडी की जिम्मेदारी होती है और तू है कि खुद मजे लेकर पसर जाती है. अब चल उठ यहां से … सर जी को दबाए बैठी है कुतिया कहीं की.

अनीता की बात पर भावना ने सॉरी कहा. फिर मुझे भी सॉरी कहते हुए मेरे ऊपर से उतर गई.

मेरा लंड तो अभी भी सलामी दे रहा था और उस पर भावना का प्रेम रस लिपटा हुआ था, जिसे अनीता ने भावना को गाली देते हुए पौंछा और लंड को चूत में डालकर बैठने लगी.

मैंने तुरंत टोका- ऐसे ही तो नई लौंडिया ने भी चोदा मुझे … फिर तुम्हारे अनुभवी होने का क्या फायदा मिला मुझे?
अनीता ने कहा- अच्छा तो सर जी अनुभव देखना चाहते हैं!

ये कहते हुए उसने लंड को हाथ में पकड़ा और कमर थोड़ी ऊपर उठा कर लंड अपनी गांड में सैट करके बैठने लगी.

मेरे मोटे लंड को खुली गांड में लेना भी आसान ना था. अनीता ने दर्द के मारे आहह की आवाज निकाली, पर अपने अनुभव से अपनी कसी हुई गांड में आधा लंड लेने में कामयाब रही.

अनीता कुछ देर यूं ही लंड पर बैठी रही और मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोली- क्यों सर … अब तो संतुष्ट हैं ना?
मैंने कहा- मर्द की संतुष्टि पूछी नहीं जाती, लंड की अकड़न और लावे का विस्फोट ही उसकी संतुष्टि का परिचय देता है.

अनीता ने कहा- चलो ये भी देख लिया जाएगा, लेकिन पहले मैं अपनी गांड की गर्मी तो लंड को दिखा दूं!
और ये कहते हुए अनीता ने अपने होंठों को दांतों से काट लिया और लंड को गांड की अनंत गहराई तक उतार लिया.

मैं मजे के सागर में गोते लगाने लगा. मैं अनीता को छूना सहलाना चाह रहा था, पर अनीता की ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी, इसलिए मैंने उसे किसी भी तरह रोकना टोकना लाजिमी नहीं समझा.

लेकिन मेरी इच्छा पूर्ति के और भी उपाय थे. मैंने हॉल में बैठी काव्या को आवाज लगाई और जल्दी आने का निर्देश दिया.
काव्या कमरे में तो आ गई, पर मेरे पास आने में सकुचा रही थी.

इस पर मेरा दिमाग बिगड़ गया, मैंने चिल्लाते हुए कहा- मादरचोदी, धंधे पर आकर भी भाव खाती है … चल जल्दी कपड़े खोल कर पास आजा, नहीं तो गांड में झाड़ू घुसा कर भगा दूंगा.

काव्या भी डर के मारे जल्दी से पूरे कपड़े खोल कर आ गई. नई-नई जवान हुई काव्या का सौंदर्य और बदन की कसावट देखकर मैं सोचने लगा कि अगर मैंने काव्या को ना चखा होता, तो बाद में बहुत पछताता.

उसकी जवानी अभी-अभी खिली थी, चिकनी चूत भी ऐसे लग रही थी मानो कली का फूल बनना बाकी हो. उसके सुडौल स्तनों की कसावट बरबस ही आकर्षित कर रहे थे. पतली कमर की चिकनाई और और कसी हुई टांगें मेरी कामवासना को उद्वेलित कर रही थीं.

उसकी गठीली काया को मैंने आंखों से ही नापने का प्रयत्न किया, तो मुझे 32-26-32 का अनुमान लगा. उसके स्तन ऊपर की ओर उठ हुए से लग रहे थे. उसके किसी भी अंग में कोई दाग नहीं था, गोरी छरहरी सुकोमल काव्या की चूत मेरी किस्मत में ऐसे आ जाएगी, ये भला कौन जानता था.

मैंने उसे बड़ी बेचैनी में कहा- चल मर … ऊपर आकर चूत मेरे मुँह पर दे दे!
उसने मुझ आश्चर्य से देखा और कहा- सर आप मेरी वो … चाटेंगे?
मैंने कहा- इसमें इतना आश्चर्य क्यों कर रही हो … कभी किसी ने तुम्हारी चूत चाटी नहीं क्या?
उसने कहा- नहीं सर!

मुझे उस पर तरस भी आया और उसकी मासूमियत पर प्यार भी.

मैंने उससे कहा- कोई बात नहीं जानेमन … आ जाओ … मैं तुम्हें ये सुख दे देता हूँ.

अब काव्या ने डरते झिझकते मेरे चेहरे के दोनों ओर पैर रखा और मेरे मुँह पर अपनी गुलाबी चूत लगा दी. उसकी चूत पहले ही गीली हो चुकी थी, जो काव्या की मनोदशा का बखान कर रही थी.

काव्या की गुलाबी चूत के ऊपर छोटा सा खूबसूरत दाना मुझे आमंत्रित कर रहा था. उसकी चूत की फांकें आपस में सटी हुई थीं, पर पैर फैलाने की वजह से थोड़ी जगह बन गई थी. मैंने पहले तो चूत की चुम्मी ली, फिर उसकी दरार पर नीचे से ऊपर तक जीभ को एक गति से सरपट दौड़ा दी.

चूत पर मेरी जीभ की पहली हलचल ने ही काव्या के मुख से ‘ईस्स्स..’ की लंबी आवाज निकाल दी. मेरी जीभ की अनुभवी करामात ने काव्या को मदहोश ही कर दिया. काव्या ने अपने होंठों को दांतों से काट लिया और वो खुद के उरोजों को दबोचने लगी, साथ ही निप्पल को उमेठने लगी.

दूसरी तरफ अनीता की कसी हुई गांड में लंड की सरपट दौड़ जारी थी. मुझे दोहरा मजा आ रहा था, पर दोनों हसीना भी वासना के इस खेल का भरपूर आनन्द उठा रही थीं.

कुछ देर की चुदाई के बाद अनीता ने अपनी गांड से लंड निकाला और तुरंत ही चूत में समाहित करके कूदने लगी. उसकी तेजी भी ऐसी थी कि पूछो ही मत.

पर अनुभवी रांड होने के बावजूद भी वो ज्यादा देर टिक ना सकी. दरअसल चुदाई के मेरे निरंतर दौर की वजह से मेरा लंड जल्दी झड़ने से इन्कार कर रहा था और भावना के बाद अब अनीता को भी चुदाई और आनन्द का चरम सुख देकर भी वैसा ही अकड़ रहा था.

अनीता ने भी मेरे लंड पर अपने कामरस का अभिषेक किया और मुझ पर आच्छादित होने लगी, तो मैंने उसकी बांह पकड़ कर उसे बिस्तर पर ही एक ओर लुढ़का दिया.

फिर मैंने काव्या को अनीता के कामरस से सराबोर लंड को चूसने में लगा दिया. चूत चटवाते हुए बेचैन हो चुकी काव्या ने लंड को बड़ी सरगोशी के साथ चूसा.

काव्या नई लड़की थी, उसकी चूत पर मेरे हुनर ने उसे पूरी तरह अपने वश में कर रखा था.

अब मैं जितना खतरनाक तरीके से उसकी चूत चाटता था, वो भी मेरा जवाब उसी अंदाज में मेरा लंड चूस कर देती थी और नतीजा ये हुआ कि हम दोनों ही कुछ देर के द्वंद्व के बाद पिघल गए.

मेरा लावा काव्या के मुँह में और काव्या का लावा मेरे मुँह में फूट पड़ा. काव्या ने मेरा सारा रस पी लिया और मैंने उसका अमृत कलश अपने मुँह में खाली कर लिया.

अब वो उठकर किनारे हो गई और मुझे देखकर कृतज्ञता से धन्यवाद कहा. उसने क्यों धन्यवाद कहा, ये वही जाने.

मैं झटपट खुद को पौंछने लगा और कपड़े पहनने लगा.

उसी समय अनीता ने कहा- मान गए सर आपको … तीन रंडियों को एक साथ धूल चटा देना बच्चों का खेल नहीं है.
मैंने भी कहा- तभी तो लोग मुझ बुलाते हैं … ऐसी कामक्रीड़ा के लिए.

मुझे नहीं लगता कि वो मेरी बातों से कुछ भी समझ पाई होगी. पर मुझे क्या … मुझको तो अमृत कलश छलक जाने के बाद अपनी खुशी, पायल, प्रतिभा, सुमन प्राची नेहा और हीना की याद सताने लगी थी. आखिर मुझे हल्दी रस्म तक वहां पहुंचना भी तो था.

वैभव की बैचलर पार्टी और उसके लिए बुलाई गई रंडियों की चुदाई की साथ ही प्रतिभा दास से मिलने का समय भी नजदीक आता जा रहा था.

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कहानी जारी है.