एक अनोखा उपहार-20

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

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एक अनोखा उपहार-21

नमस्कार दोस्तो, आप सब ठीक होंगे. चलिए अपनी हिन्दी सेक्सी कहानिया आगे बढ़ाते हैं.पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि प्रतिभा मेरे साथ थी और उसने मुझे कैसे पाया, इसको लेकर बता रही थी.

अब आगे:

प्रतिभा- फिर वैभव ने वैसा ही किया और खुशी ने मुझसे वैभव को अपना जिस्म सौंपने की प्रार्थना की. जिसके बदले मैंने उससे तुम्हारा लंड मांग लिया. ये बात सुमन भी जान गई और उसने ही तो खुशी वैभव को मिलाया था. इसीलिए उसे भी तुम्हारे लंड के उपहार के लिए हां कह दिया गया.

मैंने- फिर?
प्रतिभा ने कहा- संदीप, हमने तो सिर्फ खेल रचा था, पर खुशी तुमसे बहुत प्यार करती है … और इस खेल के कारण मैंने अपनी सहेली को धोखा दिए बिना उसकी जिंदगी के दो अहम किरदारों से प्रेमालाप का रास्ता बना लिया.

मैंने कहा- प्रतिभा, खुशी के प्यार को मैंने खुद भी महसूस किया है और तुम्हारी बातें सुनकर अब और भी यकीन हो गया है. प्रतिभा, तुम मानो या ना मानो मैं भी खुशी से बेहद प्यार करता हूँ. पता नहीं मेरे इस प्रेम को दुनिया किस नजर से देखेगी, पर कुछ ही समय में खुशी मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है.

ऐसा कहते हुए मैंने बेचैन होकर खुशी से लिपट जाना चाहा … लेकिन इस वक्त मेरी बांहों में प्रतिभा थी. तो मैंने उस पर ही अपना सारा प्रेम उड़ेल दिया और प्रतिभा को एकाकार होने की चेष्टा से बांहों में और कस लिया.

प्रतिभा ने भी कहा- तुम भले ही खुशी को चाहते हो संदीप … और खुशी तुम्हें चाहती है. पर मैं भी तो तुम्हें चाहती हूँ, मुझे ये रात तुम्हारे नाम करनी है. संदीप आज तुम मुझको महका दो, मुझे बहका दो … मेरे ख्वाबों को हकीकत बना दो.

प्रतिभा की बात खत्म होते ही हम दोनों ने आंखें मूंद लीं और एक दूसरे को आलिंगन में कसने लगे. जगह जगह चूमने लगे.

हम दोनों की तन की तड़प शांत हो रही थी या भड़क रही थी, यह कहना मुश्किल था.

प्रतिभा बेहद खुशनुमा और यादगार चुदाई चाहती थी, इसलिए उसे मिलन की हड़बड़ी या जल्दबाजी नहीं थी. प्रतिभा के वार्तालाप करने के दौरान मैं उसके मखमली जिस्म पर हाथ फिरा रहा था.

उसका बदन चिकना था और हर अंग में कटाव था. सुडौलता और सुंदरता की धनी, रूप लावण्य का रस छलकाती हुई वो मेरी बांहों में सिमटी मेरी कामकला के प्रदर्शन की प्रतीक्षा करने लगी.

अब तक जज्बातों का दौर चल रहा था, पर अब देह भी तप चुकी थी. मैं प्रतिभा के रसीले होंठों से कामरस चूसने लगा और मेरे हाथ स्वतः ही उसके उन्नत नोकदार उरोजों को सहलाने लगे.

प्रतिभा बिन जल मछली की भांति मेरी बांहों में छटपटाने लगी, दो धधकते जिस्म के बीच वासना और उत्तेजना के द्वंद्व की शुरूआत हो चुकी थी.

उसने मेरे गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया और मेरे सर को खींच कर अपने उरोजों तक ले आई. ऐसे भी उसकी घाटियां लाजवाब थीं, उस पर उनसे प्रेम करने का ऐसा आमन्त्रण भला कैसे ठुकराया जा सकता था.

मैंने ब्रा से बाहर झांकते उसके गुंदाज उभार को जीभ से सहलाया और हाथों से उसकी गोलाई को पूरा नापते हुए ब्रा के अन्दर हाथ डाल दिया और उरोजों को बाहर निकाल लिया. उसके निप्पल बाहर आ गए … तने हुए गुलाबी निप्पल बाहर निकलकर मुझे मानो मुँह चिढ़ा रहे थे.

मैंने भी उन्हें उंगलियों के बीच दबा कर उमेठ दिया. प्रतिभा दर्द और मजे से दोहरी हो गई और दूसरे ही पल मैंने उसके एक कड़क निप्पल पर अपना मुँह लगा दिया.

प्रतिभा ‘ईस्स्स्स..’ करके रह गई. प्रतिभा की धारदार कातिल आंखों पर वासना के डोरे पड़े गए थे. फरवरी के महीने में भी सुंदर भाल पर पसीने की बूंदें उसका शृंगार कर रही थीं.
उसने अपनी उंगलियां मेरे बालों के जड़ में फंसा के कस रखी थी.

प्रतिभा के दिल धड़कनें धौंकनी की भांति बहुत तेज चल रही थीं. उसने अपने नाजुक होंठों को दांतों के बीच दबा लिया था. उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी करनी की सजा, वो अपने होंठों को दे रही हो.

वक्त ठहर सा गया था, उत्तेजना उफान पर थी और मेरा लंड अभी भी कपड़ों की कैद में था. वो आजादी के लिए फड़फड़ा रहा था और कह रहा था कि इस कामुक मिलन का साक्षी मुझे भी बना लो … मेरे बिना तुम्हें जन्नत नसीब ना होगी.

मैंने बेचैनी से प्रतिभा की नाईटी खोलनी चाही और उसने साथ भी दिया. इसी दौरान मैंने भी अपने संपूर्ण वस्त्रों को तन से जुदा कर दिया.

प्रतिभा पीले रंग की नाईटी के भीतर काले रंग का सैट वाला जालीदार ब्रा पेंटी पहन कर आई थी. उसके केश बिखर गए थे और आंखें लाल थीं. इस समय उसके होंठों पर लिपस्टिक नहीं थी, पर मेरे चूसने से वो लाल हो गई थी. उसके बदन का रोम रोम पुलकित होकर नाच रहा था.

मेरी नजर उस कामदेवी के रूप लावण्य को निगाहों में बसा लेने के लिए ठहर सी गई थीं. प्रतिभा की नजर मेरी सजीली गठीली काया को निहार कर मेरे लिंगदेव पर आकर ठहर गई थी. मेरे लिंगदेव उत्तेजना के कारण आसमान को ताक रहे थे.

लंड के ऊपर की त्वचा नीचे सरक चुकी थी और मेरा गुलाबी सुपारा चमक कर प्रतिभा की आंखें चौंधिया रहा था.

प्रतिभा का कामातुर मन काबू में ना रहा. उसने मेरा हाथ खींच कर मुझे लेटाया.
वो खुद झुक कर मेरे सात इंच से भी बड़े मोटे लंड को बिना हाथ में पकड़े सीधे मुँह में भरने का प्रयास करने लगी.

प्रतिभा ने लंड को आधा मुँह में ठूंस लिया और मैंने भी नीचे से कमर उचका दी. जिससे लंड प्रतिभा के तालू से जा टकराया. प्रतिभा लंड का प्रहार सह ना सकी और उसने लंड मुँह से बाहर निकाल दिया.

अब प्रतिभा मेरे लंड के सुपारे को ही चूसने चूमने लगी, लंड के नीचे गोलियों को सहलाने लगी.

फिर मैंने प्रतिभा के हमले से बेचैन होकर उसकी मांसल चूत को मुट्ठी में भींच लिया. प्रतिभा के मुँह से आहह की आवाज निकल गई.

अब मैंने पेंटी एक बाजू सरकाते हुए उसकी गोरी चिकनी कामरस से भीगी चूत को सीधे खा जाने का प्रयास किया. मेरी इस हरकत ने पहले से कामरस त्यागने को तैयार बैठी प्रतिभा को अमृत कलश छलकाने पर विवश कर दिया. मैंने भी अपना मुँह खोल कर अमृत बूंदों को ग्रहण कर लिया.

इस समय प्रतिभा ‘आहह उउस्स्स …’ करके हांफते हुए मेरे लंड को जोरों से हिला रही थी. उसके मुख से निकली ध्वनियां इतनी कामुक थीं कि वो कामदेव का रस भी लंड से बहा दें.

मेरे मुख से भी कामुक ध्वनियों का प्रस्फुटित होना स्वाभाविक था. मैं कोई कामदेव से भी बड़ा देव तो हूं नहीं … इसलिए मैंने भी अमृत कलश छल्का ही दिया, जिसे प्रतिभा ने बड़े चाव से ग्रहण कर लिया.

लंड से पिचकारी मारती धार निकली, जिसे प्रतिभा ने मुँह खोल कर सीधे अन्दर ले लिया और कुछ अमृत बूंदें जो बिखर गईं. उसे उसने बाद में चाट लिया.

इसके बाद प्रतिभा ने लंड को चूस कर उसकी आखिरी बूंद तक निचोड़ डाली. उसने चाट-चाट कर लंड व उसके आस-पास के क्षेत्र को पूरा साफ कर दिया. मैं तकिए पर सर टिकाए लेटा हुआ था. अब प्रतिभा ने लंड को छोड़ कर ऊपर सरक कर मेरे सीने पर सर रख लिया.

हम दोनों का प्रथम स्खलन हो चुका था और अब वक्त आफ्टर-प्ले का था.

आप सब आफ्टर-प्ले जानते हैं ना? लो कर लो बात … आफ्टर प्ले नहीं जाना, तो कुछ नहीं जाना. चुदाई से पहले एक दूसरे को गर्म करने की प्रक्रिया फोर-प्ले कहलाती है, वैसे ही चुदाई के बाद एक दूसरे से लिपट-चिपट कर प्यार दिखाना बातें करना, एक दूसरे का आभार जताना, अंगों को सहलाना या फिर दुबारा चुदाई के लिए मन बनाना, ये सब आफ्टर-प्ले कहलाता है.

एक स्त्री हमेशा ये सोचती है कि उसकी इज्जत पुरूष की नजर में तब तक है, जब तक कि पुरुष ने कामरस नहीं त्यागा हो. उसके बाद पुरुष का व्यवहार बदल जाता है … और ये बात सही भी है. इसलिए महिला को अंतिम संतुष्टि आफ्टर-प्ले के बाद ही मिलती है.

सेक्स के बाद महिला से मुँह फेर कर सो जाने वाले पुरुष श्रेष्ठ चुदाई के बावजूद महिला को संतुष्टि नहीं दे सकते हैं. इसलिए ध्यान रहे कि चुदाई के बाद महिला को और ज्यादा प्रेम की जरूरत होती है.

महिला इस समय अपनी सांसें सहेज रही होती है, अपनी अस्त व्यस्त हो चुकी आबरू को … और पुरुष की नजरों में अपने भरोसे को समेटने का प्रयास करती है. स्त्री चुदाई के बाद भी पवित्र सम्मानीय है. ये बातें वो पुरुष की नजरों में खोजती है … और उसकी बांहों में पनाह खोज कर खुद को सुरक्षित करना चाहती है.

मैंने भी स्खलन के बाद प्रतिभा को वही सुकून देना चाहा.

हालांकि अभी हमारी चुदाई प्रारंभ भी नहीं हुई थी, ये तो सिर्फ ट्रेलर था, पूरी पिक्चर बननी बाकी थी.

प्रतिभा मेरे सीने में सर रख कर चौड़ी छाती में उगे बालों को पुचकार रही थी. सीने पर हाथ फिराकर अपने प्रेम का लेपन कर रही थी. मेरे हाथ उसके मस्तक से होते हुए उसके गेसुओं को सहला रहे थे. उसके लालिम कपोलों को छूकर मेरा मन रोमांचित हो रहा था.

वहीं उसकी गुलाब की पंखुड़ियों से लब पर उंगलियों की हरकत स्वतः हो जाती थी. प्रतिभा भी इस समय उंगलियों को चूम कर मेरे प्यार के मधुरता पर मुहर लगा दे रही थी.

ऐसा उपक्रम कुछ लंबे समय तक चल गया. फिर धीरे-धीरे मैं उसके उरोजों तक हाथ पहुंचाने लगा. वहीं प्रतिभा मेरे निप्पलों पर उंगलियों से जादू करने लगी.

मेरा लंड जो अब तक अर्ध मूर्छित पड़ा था, वो फिर जोश में भर गया. अब मेरा तना हुआ विशाल लंड प्रतिभा को चुभने लगा.

प्रतिभा भी अब चुदाई के लिए तैयार हो रही थी.
उसने अपना हाथ मेरे लंड पर ले जाकर उसे सहलाते हुए अपना चेहरा उठाकर मेरी आंखों में देखा और मुस्कुरा दी.

उसने कहा- इसके लिए तो बहुतों की दीवानगी होगी!
मैंने भी मुस्कुरा कर प्रतिभा को खुद के ऊपर से उठाया और बिस्तर में बिठा कर उसकी चूत को मुट्ठी में भींच कर जवाब दिया- वो सब तुम छोड़ो … बस इतना जानो कि ये इस परी का दीवाना है, जिससे ये अब तक दूर है.
प्रतिभा ने कहा- ओ हां … बेचारे के साथ नाइंसाफी हो रही है.

ये कहते हुए प्रतिभा ने अपनी पैंटी निकाल फैंकी, साथ ही ब्रा से भी खुद को आजाद कर लिया.

गेहुंए रंग में चिकनी त्वचा और साफ सुडौल काया मुझे कामातुर कर गई. मैंने उसकी पतली कमर पर हाथ रख कर अपनी ओर खींचा और सबसे पहले उसकी सुराहीदार गर्दन पर चुंबन अंकित किया. फिर उसके शानदार उरोजों पर मुँह लगाते हुए हाथ पीछे ले जाकर मांसल उभरे नितम्बों को सहलाने लगा.

प्रतिभा मेरा पूरा साथ देने लगी … पर कुछ देर बाद उसने मुझ रोकते हुए कहा- तुम थोड़ा इंतजार करो, पहले मैं उससे बातें कर लूं!

मैं सोचने लगा कि ये इस वक्त किससे बात करेगी … पर दूसरे ही पल मुझ जवाब मिल गया. हम दोनों बिस्तर पर बैठे थे, तो अब प्रतिभा ने मुझे थोड़ा पैर फैलाने के लिए कहा. पैर फैलाने से मेरे लंड के सामने वो अपनी चूत को सैट करके खुद भी बैठ गई.

मैंने कहा- अगर तुम चुदाई शुरू करने वाली हो … तो क्या मैं कंडोम पहन लूं!
इस पर प्रतिभा ने मुस्कान बिखेरी और कहा- हाय रे मेरा चोदू बलम!

उसकी इस बात का मैं कोई मायने ना निकाल सका. और मैंने सब कुछ प्रतिभा पर छोड़ दिया.

उसके बाद उसने लंड को खुद ही हाथों में संभाला और अपनी चिकनी चूत पर घिसने लगी. मैंने तो आनन्दसागर में डूबकर आंखें मूंद लीं और उसकी कामुकता से लाल हो चुकी आंखें भी स्वतः मुंद गईं.

चूत में कामरस का रिसाव हो चुका था, जो लंड को चिकनाई प्रदान करने लगा था. मेरा मन काबू खोने लगा था. मैं अपनी कमर खुद आगे धकलने के लिए हल्की हलचल में आ चुका था. पर प्रतिभा ने इस आनन्द को यहीं विराम देते हुए मुझे पीछे की ओर धकेलते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और स्वयं मेरे लंड के ऊपर झुक गई. लंड पर एक प्यारा सा चुंबन करते हुए उसने कहा- कहो मेरे प्रियतम … तुम्हारी सखी तुम्हें कैसी लगी!

मैंने भी अपनी ताकत समेट कर लंड को झटका दिया और उसका प्रतिनिधित्व करते हुए जवाब दिया- सखी का जवाब नहीं … उसके रसीले चुंबन के लिए धन्यवाद.

फिर प्रतिभा ने मस्ती के साथ फिजा में अपनी हंसी बिखेरी और लंड को … और लंड प्रदेश को बार बार ताबड़तोड़ चुंबन देना शुरू कर दिया. इससे मैं गुदगुदी और मजे से सिहर उठा.

इस हिन्दी सेक्सी कहानिया में प्रतिभा के साथ गरम रासरंग को अगले भाग में पूरे विस्तार से लिखूंगा. आप मेल करते रहिए.
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हिन्दी सेक्सी कहानिया जारी है.