यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
विधाता की रचना के सबसे नायाब दो प्रजाति नर और मादा को संदीप साहू का नमस्कार!
यह कहानी अपने अंदर बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है; नियमित पठन और रहस्यों को समझने का प्रयत्न करने से ही अंतिम कड़ियों में असीम आनन्द उठाया जा सकेगा.
खुशी और संदीप यानि मैं डिजिटल रिश्ते से बाहर निकल कर वास्तविक रिश्ते की ओर अग्रसर हैं. पर कुसुम के साथ अब भी मेरा संबंध डिजिटल सेक्स का ही है.
अब देखते हैं आगे क्या होता है.
कुसुम ने खुशी नाम को बहुत पसंद किया और कहा- यह नाम तो बहुत ही अच्छा है, तुम्हें ये नाम कैसे सूझा?
मैंने जवाब में कहा- मैंने सोचा जो मुझे खुशी दे उसे खुशी कहना ठीक होगा।
फिर कुसुम ने इधर-उधर की बातों को छोड़कर सेक्स चैट पर फोकस किया और शांत होकर गुडनाइट बोलकर सो गई।
किसी किसी दिन को अगर छोड़ दे, तो कुसुम से मेरी नियमित चैट ही होती थी. पर खुशी का मैसेज शादी के बीस दिन पहले ही आया।
खुशी ने पहले हेलो कहा. फिर शादी कार्ड की पी.डी.एफ भेज दी. मेरी उम्मीद से ज्यादा ऊंचा कार्ड लग रहा था.
मैंने कार्ड भेजने के लिए धन्यवाद दिया और कार्ड को बहुत बारीकी से पढ़ने लगा.
कार्ड का एक पेज अंग्रेजी में था तो दूसरा पेज हिन्दी में … शायद आजकल ये भी ट्रेंड में है।
शादी के कार्ड में संबंधित फर्म का कॉलम देखकर ये समझ आ गया था कि खुशी का परिवार सरिया और संबंधित कारोबार से जुडा़ था. और वैभव का परिवार सेनेटरी और सीमेंट के बिजनेस से जुड़ा हुआ था।
मैं कार्ड ही देख रहा था कि खुशी का मैसेज आया. उसमें लिखा था- मैं और वैभव चाहते हैं कि तुम पार्टी वाले दिन के तीन दिन पहले ही आ जाओ, तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं?
मैंने कहा- मैं घर पर बात करके देखता हूँ।
खुशी ने कहा- क्या यार, तुम अब भाव खा रहे हो. मैंने तुमसे कबसे कह रखा था कि फरवरी में तैयार रहना. और तुम हो कि आज पीछे हट रहे हो।
उसका मुझ पर हक जताना अच्छा लगा. इसलिए मैं भी हक जताने लगा- तुम तो इतने दिन से गायब थी. आज अचानक कह रही हो तो सोचना तो पड़ेगा ना!
खुशी ने फिर कहा- मैं शादी की तैयारियों में व्यस्त हो चुकी हूँ. इसलिए बात नहीं कर पाती. उसके लिए सॉरी. पर तुम्हारे पास ना कहने लायक कोई कारण नहीं है।
मैंने भी हार मानकर भाव खाना बंद किया और कहा- अच्छा बाबा, ठीक है, मैं आ रहा हूँ!
तो उसने कहा- वाह … ये हुई ना बात! चलो अब बताओ किस नाम से टिकट बुक करवाऊं? और कहां से कराना है? अकेले ही आ रहे हो या फैमिली के साथ आओगे?
मैंने कहा- टिकट मैं करवा लूंगा, तुम चिंता मत करो, मैं अकेले ही आऊंगा, फैमिली साथ लाना फिलहाल संभव नहीं है।
खुशी ने कहा- ठीक है अकेले आना चाहते हो तो अकेले ही आओ, तुम्हारा स्वागत है। पर टिकट मैं ही करवाऊंगी, और तुम डरो नहीं संदीप, हम तुम्हें संदीप ही कहकर बुलाएंगे. सिर्फ टिकट के लिए नाम पता बता दो।
मैंने कहा- तुमसे अब क्या डरना, मेरा असली नाम ही संदीप है. मैं तुम्हें आधार कार्ड की फोटोकॉपी भेज देता हूँ. और मेरी सीट रायपुर से बुक करवानी होगी।
खुशी ने कहा- तुम्हें इंदौर आना है. वैसे हम मुंबई में रहते हैं. पर मेरा पैतृक निवास इंदौर में है. और मेरी बूढ़ी दादी की इच्छा है कि मेरी डोली घर से ही उठे. पर सबने अच्छे अरेंजमेंट का हवाला देकर इंदौर के ही होटल से शादी के लिए दादी को मना लिया है. लड़के वालों को भी इंदौर बुलाया जा रहा है।
खुशी ने आगे लिखा- मैं तुम्हारी टिकट बुक करा के तुम्हारे पास भेज दूंगी. और ये तुम मेरा नम्बर भी रख लो. पर ज्यादा जरूरी हो तभी कॉल करना. क्योंकि शादी तक मेरा फोन किस किस के पास रहेगा, कुछ पता नहीं. और जब तुम इंदौर पहुंचोगे, तब तुम्हें लेने गाड़ी पहुंच जायेगी. बाकी और किसी चीज की तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है।
उसका मोबाइल नम्बर मिलते ही मैं बावला सा हो गया. उसने मुझ पर इतना भरोसा किया मेरे लिए यही बहुत था.
मैंने कहा- थैंक्स! अब तो तुम्हारी शादी में जरूर आऊंगा.
साथ ही मैंने अपने आधारकार्ड की फोटोकॉपी और मोबाइल नं. भेज दी.
और कहा- तुम जब भी चाहो मुझे कॉल कर सकती हो।
उसने कहा- हाँ मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. पर ये तो बताओ तुम मुझे उपहार क्या दोगे?
मैं उसकी इस बात से हड़बड़ा गया. उतने ऊंचे घराने की लड़की को भला मैं क्या उपहार दे सकता था।
फिर भी मैंने बात जितने के लिए कहा- तुम क्या चाहती हो, कहो तो सही! धरती अंबर तारे सितारे जो कहोगी तुम्हारे कदमों में बिछा दूंगा।
खुशी ने कहा- तुमने कह दिया संदीप तो मुझे सबकुछ मिल गया. और तुम मेरे पास आ रहे हो यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है. फिर भी मुझे तुमसे कुछ अलग और ख़ास उपहार चाहिए।
मैंने फिर कहा- तो तुम कहो तो सही, तुम्हारे लिए तो मेरी जान हाजिर है।
खुशी ने कहा- मुझे तुम्हारी जान नहीं चाहिए, बस तुम्हारा लिंग चाहिए।
उसकी बातों ने मुझे रोमांचित कर दिया और मैंने खुश होते हुए लेकिन थोड़ा भाव खाते हुए हंसते हुए लिखा- हा हा हा हा … मेरा लिंग तो तुम्हारा ही है. लेकिन अगर तुम मुझे नहीं सिर्फ मेरे लिंग को बुलाना चाहती हो तो मैं उसे ही काट कर भेज देता हूँ।
खुशी का जवाब भी मजाकिया अंदाज में आया- ठीक है, फिर गोलियों सहित काट कर भेजना।
फिर तुरंत एक और मैसेज आया- यार मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, मुझे सच में तुम्हारा लिंग चाहिए।
मैंने भी जवाब दिया- मैं भी मजाक नहीं कर रहा हूँ, मेरा ये लिंग तुम्हारा ही है. तुम इसे जैसे चाहो इस्तेमाल कर सकती हो. इसके लिए मुझे पूछने की भी जरूरत नहीं है. पर तुम्हारी शादी है, तुम सोच लो कि क्या करना है और क्या होगा।
खुशी ने फिर कहा- तुम सचमुच बुद्धू हो, अरे यार तुम्हारा लिंग मुझे अपने लिए नहीं अपनी सहेलियों के लिए चाहिए. तुम अपना लिंग देकर मेरी दो सहेलियों को संतुष्ट कर दो. बोलो तुम अपना लिंग दोगे ना?
अब मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी. यार जिसके साथ मैं दिल लगाने लगा था, उसने मुझे सिर्फ जिगोलो समझा!
वैसे सामान्य स्थिति में मैं हसीनाओं से शारीरिक संबंध के ऐसे प्रस्ताव पर सारे जहान की खुशियाँ पा लेता हूँ।
पर मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं खुश होऊं या दुखी!
मैंने सोचा हो सकता है खुशी मझे आजमा रही हो?
खैर मेरी आँखों में आँसू तैर आये, और मैंने जवाब दिया- खुशी, तुम मुझे गलत समझ रही हो! मैं तुम्हारी शादी में नहीं आ रहा हूँ, मुझे माफ करना।
खुशी ने फिर कहा- संदीप, तुमने ही तो अभी कहा कि मेरा लिंग तुम्हारा ही है, तुम जैसा चाहो इस्तेमाल करो, फिर अब क्या हुआ? और मैंने तुम्हें ऐसी बात करके दुखी किया, इसके लिए मुझे माफ कर दो. लेकिन मुझे गलत समझने से पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो।
उसकी बात का कोई खास जवाब मेरे पास नहीं था, मैंने कहा- ठीक है कहो।
खुशी ने कहा- तुमने किसी और से संबंध बनाने के लिए सीधे सीधे मना करके मेरा दिल जीत लिया, पर आज के समय में प्यार और सेक्स दो अलग-अलग चीजें हो गई हैं. और तुम तो अन्तर्वासना से जुड़े व्यक्ति हो. तुम इस चीज से परहेज कैसे कर सकते हो, और इसके अलावा भी कुछ बातें हैं।
मैंने जवाब दिया- मुझे जिगोलो जैसे काम से कोई परहेज नहीं है. मुझे जो भी बुलायेगी मैं वहां खुश होकर जाऊंगा. पर खुशी तुम्हारी बात अलग है, तुमसे मेरा दिल का रिश्ता हो गया है. तुम खुद ही मुझे किसी और के पास जाने को कहोगी तो मुझे बर्दाश्त नहीं होगा. और तुम किसी और वजह की बात कह रही थी?
तो खुशी ने कहा- संदीप, मैं तुम्हें अपने करीब पाना चाहती हूँ. और उसके लिए मुझे ये खेल रचना पड़ा. मेरा मंगेतर वैभव मेरी एक सहेली को भोगना चाहता है. और मैं जानती हूँ कि हम जिस सोसायटी में रहते हैं वो भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। पर मैंने वैभव को कहा कि मेरी सहेली संदीप की बहुत बड़ी फैन है, वो हमारी शादी में शामिल रहेगी उसे हमारी शादी का उपहार समझकर संदीप का लिंग दे देते हैं. तो मेरी सहेली का जिस्म भी तुम्हें शादी के उपहार के तौर पर मिल जायेगा।
और सच में मेरी सहेली ने ही तुम्हारी कहानी मुझे भेजी थी. वो तुम्हारी बहुत बड़ी फैन है. उसने मुझे बार-बार कहा है कि शादी पर मैं तुम्हें बुलाऊं. मुझे इन बातों में कोई परेशानी भी नहीं दिखी.
एक सच्चाई और भी है कि मैं इसी बहाने अपने मंगेतर की जानकारी में भी तुम्हारे पास रह सकती हूँ, तुम्हें देख सकती हूँ तुम्हें महसूस कर सकती हूँ।
अब मेरे पास खुश होने के बहुत से कारण थे. मैंने चहकते हुए मैसेज किया- ठीक है, तुम्हें जैसा अच्छा लगे वो करो, पर मेरे दिल में हमेशा तुम ही रहोगी।
यार सच तो ये है कि खुशी का प्यार तो मिल ही रहा था. और उस पर बोनस मिल रहा है तो मुझे हर्ज ही क्या है. ऐसे भी ज्यादा अमीर घरों में सेक्स संबंध कौन किससे रखता है, इसका तो अता-पता भी नहीं रहता।
मेरी सहमति पाकर खुशी और भी ज्यादा खुश हो गई, उसने ‘आई लव यू’ संदीप! तुम बहुत अच्छे हो, टिकट बनने के बाद मिलती हूँ, अभी कुछ दिन व्यस्त रहूंगी.
कहकर फोन रख दिया।
आज मैं सोचने पर विवश हो गया कि खुशी मुझसे सचमुच प्यार करती है या मुझे अपने मतलब के लिए फांस रही है? फिर मैंने सोचा कि चलो ठीक ही है, सुंदर हसीनाओं का शरीर मुझे उपहार में मिल रहा है. मुझे इसे खुशी के प्यार का उपहार समझ कर ग्रहण कर लेना चाहिए।
अब तक बहुत सी बातें स्पष्ट हो चुकी थी. और कुछ बातें अभी भी अनसुलझी रहस्य थी.
लेकिन अब मैंने किसी भी विषय पर ज्यादा सोचने के बजाए शादी पर फोकस किया. आखिर ये मेरी जानेमन की शादी थी, चाहे बहाना कुछ भी हो मुझे अपनी खुशी के करीब आने का मौका मिल रहा था.
और खुशी ने भी तो यही कहा था।
मैंने दूसरा दिन कुछ चीजों की तैयारी में गुजारा. और रात को मैंने कुसुम से बात की. एक वो ही तो थी जिससे मैं अपने दिल की बातें शेयर करता था।
कुसुम ने मुझे बहुत सारे सेक्स संबंधों के आफर के लिए बधाई दी. और खुशी के साथ बात आगे बढ़े इसके लिए बेस्ट आफ लक कहा.
फिर हमने जमकर सेक्स चैट किया।
तब कुसुम ने विदा लेने से पहले कहा- कभी मैं भी तुम्हें मिलने बुलाऊंगी तो आओगे ना??
मैंने हाँ कहा. नहीं का तो सवाल ही नहीं था.
फिर कुसुम ने कहा कि वो भी एक महीने बात नहीं कर पायेगी, कुछ जरूरी काम में व्यस्त रहेगी और आने के बाद पूरी कहानी सुनेगी.
मैंने हाँ कहा और हमने फोन रख दिया।
दो दिन बाद खुशी का मैसेज आया. उसने टिकट भेज दिया था, टिकट रेलवे की फस्ट क्लास एसी सुपरफास्ट का था.
साथ में सॉरी लिखकर कहा गया था कि उस डेट पर फ्लाइट की टिकट नहीं हो पाई।
मैंने ‘कोई बात नहीं, यही बहुत है.’ लिखकर जवाब दिया, अब उसे क्या बताता कि मुझे तो नार्मल रिजर्वेशन में भी चल जाता।
कहानी जारी रहेगी.
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