गुलाब की तीन पंखुड़ियां-12

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-11

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-13

नमस्ते दोस्तों, मेरी कहानी के इस भाग में आपका स्वागत है. अब कहानी एक रोमांचक दौर में है. मस्ती मैं पढ़िए ..

“जिन खूबसूरत लड़कियों की ठोड़ी या होंठों के ऊपर तिल होता है उनके गुप्तांगों के आस-पास या जांघ पर भी तिल जरूर होता है।” मैंने हंसते हुए कहा।
कोई और मौक़ा होता तो गौरी जरूर शर्मा कर रसोई या अपने कमरे में भाग जाती पर आज वो थोड़ा शर्माते हुए भी वही बैठी रही।

मैंने अपनी बात चालू रखी- जिस स्त्री के गुप्तांगों के पास दायीं ओर तिल हो तो वह राजा अथवा उच्चाधिकारी की पत्नी होती हैं जिसका पुत्र भी आगे चलकर अच्छा पद प्राप्त करता है।

“सच्ची? आप झूठ तो नहीं बोल रहे ना?”
“किच्च! तुम्हारी कसम मैं सच बोल रहा हूँ। अगर तुम्हें यकीन ना हो तो तुम यू ट्यूब पर देख लेना उसमें तो हर प्रश्न का सही उत्तर मिल जाता है।”
“अच्छा?”
“हाँ पर कोई ऐसे-वैसे सवाल मत सर्च कर लेना?” मैंने हँसते हुए कहा।
“हट!” गौरी फिर शर्मा गई।
“अच्छा और कहाँ हैं?”
“मेले दायें दूद्दू (उरोज) पर भी एक तिल है।” उसने शर्माते हुए बताया।
“हे भगवान्!”
“अब त्या हुआ?” गौरी ने चौंक कर पूछा।
“ऐसा लगता है भगवान् ने तुम्हारा भाग्य खुद फुर्सत में अपने हाथों से लिखा है। अब तुम यकीन करो या ना करो पर यह बात सोलह आने सच है।”
“हुम्म” गौरी को अब भी पूरा यकीन तो नहीं हो रहा था पर मेरी प्रस्तुति इस प्रकार की थी कि उसे ना चाहते हुए भी यकीन करना पड़ रहा था।

“अच्छा गौरी एक काम करो?”
“त्या?”
“पर… छोड़ो तुमसे नहीं हो सकेगा?”
“त्या? प्लीज बताओ ना?”
“भई मैं बता तो सकता हूँ पर तुम्हें शर्म बहुत आती है? इसीलिए कहता हूँ तुम नहीं कर पाओगी? रहने दो.” मैंने उसकी उत्सुकता और बढ़ा दी।
“नहीं मैं तल लुंगी आप बताओ”
“शरमाओगी तो नहीं ना?”
“किच्च”
“अच्छा खाओ मेरी कसम?”
“तिस बात ते लिए?”
“कि तुम शरमाओगी नहीं और जैसा मैं बोलूंगा करोगी?” मैंने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
“थीत है।”
“देखो अब शर्माना मत? तुमने मेरी कसम खाई है?”
“हओ”

“वो… जो… तुम्हारे दूद्दू पर तिल है ना?”
“हओ?”
“वो मुझे एक बार दिखाओ … ताकि मैं तिल की सही स्थिति सकूं और फिर तुम्हें उसका सटीक रहस्य बता सकूं।”
“हट!”
“देखो मैंने बोला था ना तुम से नहीं होगा.”
“ओह… पल उसमें तो मुझे बड़ी शल्म आयगी?”

“इसमें शर्म की क्या बात है? क्या तुम कपड़े बदलते समय या नहाते समय इनको नंगा नहीं करती?”
“पल बाथलूम में कोई देखने वाला थोड़े ही होता है?”
“क्यों? वहाँ मक्खी, मच्छर, छिपकली या तिलचट्टे तो देख ही लेते हैं?”
“हा… हां… वो… कोई आदमी थोड़े ही होते हैं?”
“अच्छा जी! दूसरे भले ही कोई देख लें पर दुश्मनी तो हमसे ही लगती है?”
“इसमें दुश्मनी ती त्या बात है?”
“और क्या? एक तरफ दोस्त कहती हो, दोस्त की कसम भी खाती हो और फिर बात भी नहीं मानती?

“वो… वो…” गौरी असमंजस में थी। उसे तिल का रहस्य भी जानना था पर शर्म भी महसूस कर रही थी। मेरा जाल इतना सटीक था कि अब उससे बचकर निकलना गौरी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
“तुम यह सोच रही हो ना इसके लिए दूद्दू (बूब्स) को नंगा करना होगा?”
“हओ?”
“तुम एक काम करो?
“?” गौरी ने मेरी ओर प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा।
“तुम यह टॉप उतार देना और अपने दूद्दू के कंगूरों को ढक लेना बस। फिर तो शर्म नहीं आएगी ना?”

गौरी कुछ सोचे जा रही थी। उसका का संशय अब भी बरकरार था।
“तुम शायद यह सोच रही हो कि कपड़े उतार कर नंगा होने से पाप भी लगेगा?”
“हओ” गौरी ने कातर (असहाय) नज़रों से मेरी ओर ताका।

“देखो! मधुर ने इसीलिए तो तुम्हारे पैर पर काला धागा बांधा है कि सारे कपड़े उतारने के बाद भी पाप ना लगे? और तुम्हें तो सिर्फ टॉप उतार कर केवल बूब्स पर बना तिल ही दिखाना है तो फिर पाप लगने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.”
“पल…?” गौरी मेरे प्रस्ताव को स्वीकारने के बारे सोचने लगी थी।
“देखो कोई जबरदस्ती तो है नहीं। चलो… जाने दो। मैं जानता था तुम शर्म का बहाना जरूर बनाओगी?” मैंने ठंडी सांस लेते हुए मायूस लहजे में कहा।
“नहीं… बहाने वाली बात नहीं है?”
“और क्या बात हो सकती है?”
“वो… वो…?”

“ठीक है भई! हमारी किस्मत और औकात तो अब कीड़े, मकोड़े और मच्छरों से भी गई बीती हो गई है।”
“आप ऐसा त्यों बोलते हो?”
“हम तो चलो गैर ठहरे … पर तुम तो अपनी गुरु की बात भी नहीं मानती?”
“तौन गुलू?” (कौन गुरु?)
“तुम मधुर को अपनी दीदी और गुरु मानती हो ना?”
“हओ”

“मधुर ने भी तुम्हें कई बार समझाया है ना कि ज्यादा शर्म नहीं करनी चाहिए?”
“हओ”
“और तुम अपने गुरु की बात मानने से इनकार कर रही हो? पता है ऐसे आदमी के साथ क्या होता है?”
“त्या होता है?”
“वो मरने के बाद भूत बन जाता है।”
“नहीं… आप मज़ात तल लहे हैं?”
“नहीं मैं बिलकुल सच बोल रहा हूँ।”
“पल मैं तो आदमी थोड़े ही हूँ मैं तो लड़ती (लड़की) हूँ?”
“तो फिर तुम भूत की जगह भूतनी बन जाओगी या फिर उलटे पैरों वाली चुड़ैल!” मैंने हँसते हुए कहा।

“ओहो… आपने फिल मुझे फंसा लिया?”
“तुम्हारी मर्ज़ी। तुम्हें उलटे पैरों वाली भूतनी बनाना है तो कोई बात नहीं मत दिखाओ? मेरा क्या है तुम्हें भूतनी या चुड़ैल बनकर उलटे पाँव चलने में बहुत मज़ा आएगा?”
“हे माता रानी! … आपने मुझे तहां फंसा दिया।” गौरी अब हाँ… ना… के फेर में उलझ गई थी। अब उसके लिए मेरी बात मान लेने के अलावा कोई और रास्ता ही कहाँ बचा था।

“ओह … पल … आपतो ऑफिस में देल हो जायेगी मैं बाद में दिखा दूंगी … प्लीज!” गौरी बेबस (कातर) नज़रों से मेरी ओर ऐसे देख रही थी जैसे कोई मासूम हिरनी जाल में फंसने के बाद शिकारी को देख रही हो या फिर कोई निरीह जानवर हलाल होने से पहले कसाई की ओर देखता है।

“अरे तुम ऑफिस की चिंता मत करो. मैं आज वैसे भी ऑफिस में लेट जाऊँगा।”
“ओह… त्या आप बिना टॉप उतारे नहीं देख सतते? … प्लीज उपल से ही देख लो?” गौरी ने बचने का अंतिम प्रयास किया।
“बिना टॉप उतारे तिल दिखेगा कैसे और और बिना दिखे सही अंदाज़ा कैसे होगा?”
“ओह…” उसका चेहरा रोने जैसा हो गया था। उसकी कनपटियों और माथे पर हल्का पसीना सा आने लगा था। उसके साँसें भी बहुत तेज हो चली थी और छाती का ऊपर नीचे होता उभार किसी नदी में हिचकोले खाती नाव की तरह हो रहा था।

“गौरी! प्लीज दिखा दो ना बस एक बार… प्लीज… क्या तुम्हें ज़रा भी दया नहीं आती? कितनी कठोर हृदय बन गई हो?”
गौरी थोड़ी देर कुछ सोचती सी रही और फिर बाद में उसने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा “अच्छा आप आँखें बंद कलो” गौरी ने आखिर हार मान ही ली।
मैंने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह झट से अपनी दोनों आँखें बंद कर ली।

अथ श्री वक्षस्थल: दर्शनम् तृतीय सोपान शुभारंभ!!
दोस्तो! दिल थाम के रखिये अब आलिंगन और चुम्बन के बाद वक्षस्थल के दर्शन और चूसन का तीसरा सोपान शुरू होने वाला है…

गौरी ने धीरे-धीरे अपना टॉप उतारना शुरू किया।

मैंने अपनी आँख हल्की सी खोली…

सबसे पहले उसकी भूरी पैंट में कैद कमर और नितम्बों के ऊपर उसका पेट और नाभि नज़र आई। मेरा लंड तो जैसे बिगडैल बच्चे (उद्दंड बालक) की तरह बेकाबू ही हो गया था। बार-बार ठुमके लगा-लगा कर नाचने लगा था। इतना सख्त हो गया था कि मुझे लगने लगा कहीं इसका सुपारा फट ही ना जाए।

मेरी साँसें तो जैसे बेकाबू सी होने लगी, कानों में सांय सांय सी होने लगी और दिल इस कदर जो-जोर से धड़क रहा था कि मुझे तो वहम सा होने लगा कि कहीं मेरे दिल की धड़कनें मेरा साथ ही ना छोड़ दें।

हे भगवान्! क्या कमाल की कारीगरी की है तुमने? पतली कमर और उभरे से पेडू के ऊपर गोल गहरी नाभि और उसके ऊपर एक जोड़ी गुलाबी नारंगियाँ। दो रुपये के सिक्के जितना कत्थई रंग का एरोला और ठीक उनके बीच में किसमिस के दाने जितने गुलाबी कंगूरे। कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह ऐसे खड़े हो गए थे जैसे किसी खजाने का रक्षक किसी घुसपैठिये की आशंका में सतर्क हो जाता है। और दायें उरोज के कंगूरे के एक इंच के फासले पर किसी सौतन की तरह एक काला सा तिल जिसे तिल के बजाये कातिल कहना ज्यादा मुनासिब (उपयुक्त) होगा।

गौरी ने अपना टॉप उतार कर पास के सोफे पर रख दिया। उसके शर्म के मारे अपनी दोनों हथेलियाँ अपनी बंद आँखों पर रख ली। याल्लाह … उसकी कांख में तो बाल तो क्या एक रोयां भी नहीं था। साफ़ सुथरी मुलायम चिकनी रोम विहीन कांख। लगता है सरकार का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ हर जगह सफलता पूर्वक काम कर रहा है।

उसके कुंवारे अनछुए कौमार्य की निकलती तीखी गंध किसी को भी मतवाला कर दे। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और मैं तो बस उसकी साँसों के साथ उसके उरोजों के उतार चढ़ाव में ही जैसे खो सा गया।
एक कमसिन अक्षत कौमार्य लगभग अर्धनग्न अवस्था में मेरे आगोश में बैठा जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रहा हो।

उफ्फ… पसलियों पर से सुंदर गोल उठान लिए हुए एक जोड़ी सुडौल रस कूप जिनके अग्र भाग में गुलाबी रंग के पेंसिल की नोक की तरह कंगूरे ऐसे लग रहे थे जैसे गुस्से में नाक फुलाए हों। दोनों गोल पहाड़ियों के बीच की चौड़ी सुरम्य घाटी तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई बलखाती नदी अभी इनके बीच से बाद निकलेगी।

मैं तो बस इसे मंत्रमुग्ध होकर देखता ही रह गया। मुझे तो अपनी किस्मत पर जैसे रश्क होने लगा। मैं सच कहता हूँ मुझे तो ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी सिमरन ही साक्षात मेरे सामने आ गई है और कह रही है ‘ऐसे क्या देख रहे हो? इन्हें प्रेम नहीं करोगे?’

गौरी लाज से सिमटी मेरी बगल में बैठी थी। उसकी आँखें अब भी बंद थी। उसके मासूम चेहरे को देख कर एक पल के लिए तो मेरे मन में ख्याल आया कहीं मैं यह सब गलत तो नहीं कर रहा? पर मेरे सभी साथी (आँखें, हाथ, नाक, होंठ, लंड, दिल, दिमाग) भला मेरी अब कहाँ सुनने वाले थे। और फिर दूसरे ही पल मेरा यह ख्याल हवा के झोंके की मानिंद फिजा में काफूर (गुम) हो गया।

मैंने एक हाथ उसके सिर के पीछे किया और दूसरे हाथ से उसके एक उरोज को बस हौले से स्पर्श कर दिया। एक नाज़ुक और रेशमी अहसास से मैं सराबोर हो गया। स्पंज की तरह कोमल गोल तरासे हुए उरोज… उफ्फ्फ्फ़… गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी। उसका शरीर हल्का सा कांपा और बंद होंठ लरजने से लगे। उसकी साँसें बहुत तेज हो गई और उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली। उसके उरोजों के कंगूरे (घुन्डियाँ) किसी नादान और शरारती बच्चे की तरह कभी अपना सिर ऊपर उठाते कभी झुक से जाते। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि पंखे की आवाज के बावजूद भी मैं साफ़ सुन सकता था। एक सरसों के दाने के बराबर वो कातिल तिल ठीक ऐसा ही था जैसा उसकी ठोड़ी पर बना था।

याल्लाह … उसकी सु-सु के गुलाबी पपोटों के पास भी ऐसा ही तिल कितना हसीन और कातिल होगा यह सोचकर ही मेरा लंड तो किलकारियाँ ही मारने लगा। मेरे कानों में सीटियाँ सी बजने लगी। यह उत्तेजना की चरम सीमा थी जिसे बर्दाश्त करना अब मेरे बस में नहीं था। मैंने इतनी उत्तेजना तो अपनी सुहागरात में भी अनुभव नहीं की थी। मैंने गौरी के दूसरे उरोज के कंगूरे पर अपनी अंगुलियाँ फिराई। गौरी के शरीर ने एक झटका सा खाया। मैंने धीरे से आगे बढ़ कर अपनी जीभ उसके दायें उरोज के कंगूरे पर रख दी।

मेरी गीली नर्म जीभ का स्पर्श पाते ही उत्तेजना के मारे गौरी की हल्की चीख सी निकल गई- ईईईईईईई… यह चीख दर्द भरी नहीं थी बल्कि आनंद से भरी थी। गौरी का शरीर कुछ अकड़ सा गया और उसने मेरी तरफ घुमते हुए मेरा सिर अपनी छाती से भींच लिया। उसके बेकाबू होती साँसें मेरे सिर पर महसूस होने लगी थी। अब मैंने उसके एक उरोज को अपने मुंह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाईं- सल … मुझे कुछ हो लहा है … आआईईई… मैं… मल जाउंगी सल! मैंने अपना दायाँ हाथ उसके नितम्बों पर फिराया। हे भगवान! पैंट में कसे हुए उसके नितम्ब तो लगता था आज और भी ज्यादा कठोर और भारी हो गए हैं। गौरी उत्तेजना के मारे उछलने सी लगी थी। वह लगभग मेरी गोद में आ गई थी।

मैंने अपना हाथ उसकी नंगी पीठ और कमर पर फिराया और फिर दूसरे उरोज को अपने हाथ में पकड़कर हौले से दबाया। और फिर मैंने एक उरोज के चूचुक (कंगूरे) को अपने मुंह में लेकर पहले तो चूसा और फिर उसके अग्रभाग को हौले से अपने दांतों से दबाया। मेरे ऐसा करने से गौरी ने और जोर से मुझे भींच लिया। मेरे जीवन के ये स्वर्णिम पल थे। पिछले 1 महीने से जिस कमसिन सौंदर्य को पाने की मैंने कामना और कल्पना की थी आज वो हसीन ख्वाब जैसे हकीकत बनने जा रहा था। रुई के नर्म फोहे जैसे नर्म मुलायम गुदाज़ गोल नारंगियों जैसे रसकूपों के अहसास ने मेरी उत्तेजना को अपने चरम पर पहुंचा दिया था। मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं किसी भी तरह गौरी को आज ही और अभी पूर्णरूप से पा लेना चाहता था।

गौरी के बदन ने एक झटका सा खाया और उसने अचानक मुझे अपनी बांहों से थोड़ा अलग किया और थोड़ा नीचे होकर मेरे होंठों को बेतहाशा चूमने लगी। संतरे की फांकों जैसे रसीले होंठों का यह रेशमी स्पर्श अब मेरे होंठों के लिए अनजाना कहाँ था। गौरी की साँसें उखड़ने सी लगी थी और उसके मुंह से पहले तो गूं … गूं … की आवाज सी निकली और फिर एक मीठी किलकारी के साथ वह मेरी बांहों में झूल गई और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। शायद उसने अपने जीवन का प्रथम सुन्दरतम ओर्गस्म (परम कामोत्तेजना का आनंद) प्राप्त कर लिया था।

मैंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके होंठों, गालों, गले, उरोजों और उनके बीच की घाटी पर बेतहासा चुम्बन लेने शुरू कर दिए। और फिर … जैसे ही मैंने उसके नितम्बों और जाँघों के संधि स्थल पर हाथ फिराने की कोशिश की … अचानक मेरी आँखों के तारे से चमकने लगे और मुझे अपने लिंग में भारी तनाव और भारीपन सा महसूस होने लगा। जैसे एक लावे का सैलाब (गुबार) सा मेरे शरीर में उठने लगा है और फिर… पिछले 15 दिनों से आजादी की जंग लड़ता हिन्दुस्तान आजाद हो गया। मेरा बहादुर वीरगति को प्राप्त हो गया।

गौरी अचानक मेरी बांहों से अलग होकर अपना टॉप उठाते हुए बाथरूम की ओर भाग गई। मेरी हालत राहुल गांधी की तरह हो गई थी जैसे मैं भी अमेठी की तरह चुनाव हार गया हूँ। इसे कहते हैं खड़े लंड पे धोखा। दोस्ती! आज तो लौड़े लगे नहीं बल्कि पूरे ही झड़ गए थे। पर मुझे अपनी इस हार का कोई गम नहीं था क्योंकि वायनाड तो अभी बाकी था। और फिर मैं भी अशांत और बुझे मन से नहीं बल्कि एक नई आशा और विश्वास के साथ कपड़े बदलने बाथरूम में चला गया। अथ श्री वक्षस्थल: दर्शनम् सोपान इति!! कहानी जारी रहेगी. [email protected]