यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए।
मैंने उसके होंठों और गालों को चूम लिया। मैं धीरे-धीरे उसके बदन को सहलाने लगा। गौरी की आँखों में सुनहरे सपनों के साथ लाल डोरे से तैरने लगे थे। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और दिल की धड़कन सुनाई देने लगी थी।
“गौरी प्लीज अब इन कपड़ों को उतार दो.”
“मुझे शल्म आती है पहले लाईट बंद करो.”
मैंने उठकर लाईट बंद कर दी और जीरो वाट का हल्का बल्ब जला दिया और फिर गौरी के पास आ बैठा।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो.” कहकर मैंने गौरी को फिर से अपनी बांहों में भर लिया और फिर उसके लरजते अधरों पर अपने होंठ रख दिए।
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नर्म मुलायम होंठ शहद की तरह मीठे लग रहे थे।
मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को मसलना और दबाना चालू कर दिया और उसके होंठों की फांकों को मुंह में लेकर चूसने लगा।
हम दोनों 5-6 मिनट तक इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे और फिर मैंने उसकी नाइटी की डोरी खींच दी।
गौरी ने ज्यादा ना नुकुर नहीं की।
और फिर मैंने धीरे-धीरे उसके पेंटी भी उतार दी।
गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा था … उसकी खूबसूरती देखकर तो किसी की भी आँखें ही चौंधियाँ जायें।
मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और गौरी को अपनी बांहों में भर लिया। मेरा लंड 90 डिग्री में जंग लड़ने को मुस्तैद किसी सिपाही की तरह खड़ा जैसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपने होंठ उसके अधरों से लगा दिए और फिर उसके पूरे बदन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
उसके होंठ काँप से रहे थे और पूरा शरीर लरजने लगा था। गौरी की अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।
मैंने उसके पेट और नाभि पर चुम्बन लिया और फिर हौले-हौले अपनी जीभ उसकी सु-सु तक ले गया।
गौरी की रोमांच के मारे चीख सी निकल गई; उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
मैंने अपने होंठ उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों पर लगा दी। शायद गौरी ने आज कोई खुशबू वाली क्रीम लगाईं होगी तभी तो उसके कौमार्य और उस क्रीम के मिलीजुली भीनी-भीनी खुशबू मेरे नथुनों में समा गई।
फिर मैंने कई चुम्बन उसकी जाँघों पर लिये और फिर नीचे घुटनों और पिंडलियों पर भी अपनी जीभ फिराने लगा। गौरी तो रोमांच में डूबी इस प्रकार छटपटा रही रही जैसे कोई मछली बिना जल के तड़फ रही हो।
मेरे चुम्बन और गर्म साँसों का आभास पाते ही उसका सारा शरीर तरंगित सा होकर झनझना उठा था।
अब मैंने फिर से उसकी जाँघों को चूमते हुए जैसे ही अपनी जीभ उसकी सु-सु की फांकों पर लगाईं तो गौरी की जांघें अपने आप खुलने सी लगी और उसका रति रस बहने लगा था।
“सल … मुझे तुछ हो लहा है … आह … मैं मल जाउंगी सल … तुच्छ करो … प्लीज … आह … आह … ईईईई ईईईई …”
अब मैं गौरी के ऊपर आ गया और अँगुलियों से धीरे से उसके सु-सु को टटोला। सु-सु तो रतिरस से जैसे लबालब भरी थी। मैंने अपने एक अंगुली उसकी सु-सु के चीरे पर फिराई और फिर हौले से अपनी अंगुली थोड़ी अन्दर डालने की कोशिश की।
गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा- आआअ … ईईईईई … मैं मल जाउंगी सल … आह!
“गौरी मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … मुझे तो अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरी प्रियतमा आज मेरी बांहों में है.”
“ईईईईई …”
“गौरी क्या तुम हमारे इस प्रथम मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेले साजन … अब तुछ मत पूछो, जो तलना है जल्दी करो … आह …” कह कर गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और मुझे जोर से भींच सा लिया।
“गौरी एक मिनट रुको मैं निरोध लगा लेता हूँ.” मैंने बेड के ड्रावर से निरोध निकाला और अपने लंड पर लगाने लगा।
गौरी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मेरे साजन इसे लहने दो … मैं अपने इस प्रथम मिलन के अहसास और आनन्द को बिना तिसी अड़चन और अवरोध के महसूस तरना चाहती हूँ।
कह कर गौरी ने शर्मा कर अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिए।
मैंने हाथ में पकड़ा निरोध फेंक दिया और गौरी के ऊपर आ गया- गौरी, अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो?
“तोई बात नहीं … मैं पिल्स ले लूंगी.”
अब गौरी ने तकिये के पास रखा सफ़ेद रंग का तौलिया अपनी कमर और नितम्बों के नीचे बिछा लिया। अब मैंने फिर से गौरी के ऊपर आ गया और एक हाथ उसके सिर के नीचे लगाकर उसके सिर को थोड़ा ऊपर उठाया और इसके अधरों को अपने मुंह में लेकर चूमने लगा।
मेरा खड़ा लंड उसकी सु-सु पर रगड़ खाने लगा। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर अपने लंड का सुपारे को उसकी फांकों पर फिराया। एक गुनगुना सा अहसास पाते ही लंड जोर-जोर से ठुमके लगाने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी फांकों के बीच में फिराना चालू किया तो गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी; उसकी जांघें अब स्वतः ही खुलने लगी थी।
“गौरी मेरी जान … क्या तुम अपने इस मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेरे साजन अब तुछ मत पूछो … आह …”
मैंने पास रखी क्रीम की डिब्बी से थोड़ी सी क्रीम अपने सुपारे पर लगाईं और थोड़ी सी क्रीम अँगुलियों पर लगाकर गौरी की सु-सु की फांकों और चीरे पर लगा दी। अब मैंने उसकी सु-सु का छेद टटोला और उसकी फांकों को अंगूठे और अँगुलियों से थोड़ा सा चौड़ा किया धीरे से अपना सुपारा उसके छेद पर टिका दिया।
गौरी का ही नहीं मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा था।
जब लंड छेद पर अच्छी तरह सेट हो गया तो मैंने अपना दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे से उसकी कमर को पकड़ लिया और धीरे से एक धक्का लगाया। अब मेरा सुपारा उस स्वर्ग के दरवाजे के अन्दर दाखिल होने लगा।
“आह … धीरे … प्लीज … आह …” ऐसे लगा जैसे गौरी की आवाज डूब सी रही है। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।
अब पता नहीं यह किसी डर के कारण था या रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के कारण था।
गौरी कुछ कसमसाने सी लगी थी। मैंने गौरी की कमर को जोर से पकड़ लिया। मैं जानता था उसके कौमार्य की झिल्ली अब टूटने वाली है तो गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर होगा और वह कहीं इधर-उधर होकर मेरा काम ना खराब कर दे, मैंने उसे और जोर से अपनी बांहों में भींच लिया।
“गौरी मेरी जान, आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बनने वाली हो … प्रेम के इस पायदान पर तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मेरे लिए प्लीज … अपने इस प्रेम के लिए थोड़ा सा कष्ट सह लेना.”
“आह … मेरे साजन … मेरे प्रेम … ईईईईइ … ” गौरी इस समय रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी।
मैंने उसके होंठों को पूरा अपने मुंह में भर लिया और फिर एक और धक्के के साथ मेरा लंड किसी कुशल अनुभवी शिकारी की तरह सरसराता हुआ उसकी सु-सु की गहराई में उतरने लगा।
गौरी की दर्द के मारे चीख सी निकलने लगी पर मैंने उसके होंठों को मुंह में दबा रखा था तो केवल गूं-गूं की आवाज ही निकल रही थी।
गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा होगा वह कसमसाने सी लगी थी पर मेरी गिरफ्त से निकल पाना अब उसके लिए कहाँ संभव था। मेरे लंड के एक और धक्के ने कौमार्य की सारी हदें पार करते हुए (फाड़ते हुए) अपनी मंजिल ए मक़सूद को पा लिया। गौरी दर्द के मारे छटपटाने सी लगी थी।
गौरी ने किसी तरह अपना मुंह थोड़ा घुमाया तो उसके होंठ मेरे मुंह से बाहर निकल गए और गौरी की एक हल्की सी चीख निकल गई- आआआ आआईईईई ईईईइ …
“बस मेरी जान … जो होना था हो गया … चिंता मत करो … यह दर्द अब मीठे अहसास में बदलने वाला है।” मैंने अब भी गौरी को अपनी बांहों में जोर से जकड़ रखा था।
गौरी अपने नितम्बों और कमर को हिलाने की कोशिश करने लगी थी पर मेरी गिरफ्त से अब वह निकल नहीं सकती थी। यह मन का नहीं तन का विरोध था। भंवरे ने अपना डंक उसकी कोमल पंखुड़ियों पर मार दिया था और शिकारी ने अपना लक्ष्य भेदन कर दिया था।
अब तो बस एक कोमल सा अहसास गौरी के पूरे शरीर में भरने लगा था। कलि अब खिलकर फूल बन गई थी और भंवरे को अपनी पंखुड़ियों में कैद किये अपना यौवन मधु पिलाने को आतुर हो रही थी।
उसके सु-सु की पंखुड़ियां ऐसे फ़ैल गई जैसे किसी तितली ने अपने पंख फैला दिए हों। उसकी सारी देह में कोई मीठा सा जहर भरने लगा था और एक मीठी कसक और जलन के साथ वह प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने जा रही थी।
उसका सारा शरीर झनझना उठा था। आज वह एक पूर्ण समर्पिता बन चुकी थी।
मुझे लगा कुछ गर्म-गर्म सा स्त्राव मेरे लंड के चारों ओर बहने लगा है। उसके गालों पर कुछ बूँद आसुओं की ढलक आई थी।
आप सभी तो बहुत बड़े अनुभवी हैं इन सब बातों को जानते हैं कि यह कौमार्य की झिल्ली फटने से निकलने वाला खून था। गौरी ने अपना अक्षत कौमार्य मुझे सौम्प दिया था।
दर्द के अहसास को दबाये गौरी मेरी चौड़ी छाती के नीचे दबी मेरी बगलों से आती मरदाना गंध में जैसे डूब सी गई थी। आप तो जाने होंगे पुरुष की बगलों से आती पौरुष गंध स्त्री को कामातुर बना देती है और यही हाल पुरुष का भी होता है अपनी प्रियतमा की बगलों से आती कौमार्य की तीखी गंध उसे मतवाला सा बना देती है और सम्भोग के लिए प्रेरित करती है।
“गौरी मेरी प्रियतमा तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद …” कह कर मैंने उसके गालों पर आई शबनम जैसी आंसुओं की बूंदों को चूम लिया। गौरी के शरीर में एक मीठी सनसनाहट सी दौड़ गई।
“ओह … मैं मल जाऊँगी … बाहल निकालो … प्लीज” गौरी की आवाज थोड़ी मंद सी थी। मुझे लगा उसका दर्द अब असहनीय नहीं रहा है और मेरा पप्पू अपनी मंजिल पाकर अन्दर अच्छे से समायोजित हो गया है।
“गौरी बस … अब दर्द ख़त्म हो जाएगा और तुम्हें हमारा यह मिलन वो सुखद अहसास देगा जिसे तुम अपने जीवन पर्यंत याद रखोगी। गौरी मेरी स्मृतियों में भी तुम्हारा यह समर्पण ताउम्र समाया रहेगा। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मेरी प्रियतमा।”
मैंने हौले-हौले उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया। गौरी का दर्द अब कुछ कम होने लगा था। अब मैंने गौरी के उरोज की फुनगी (कंगूरा) को अपने मुंह में भर लिया और पहले तो उसे चूसा और बाद में उसे दांतों के बीच लेकर दबा दिया।
गौरी की तो एक मीठी किलकारी ही निकल गयी।
मैं उसे लगातार चूमे जा रहा था। कभी एक उरोज को मुंह में भर लेता और दूसरे को हौले से मसलता और फिर दूसरे को मुंह में लेकर चूसने लग जाता।
गौरी ने एक हाथ मेरी पीठ पर रख लिया और दूसरे हाथ की अंगुलियाँ मेरे सिर पर फिराने लगी थी।
“गौरी अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
गौरी अब क्या बोलती? ऐसी स्थिति में शब्द मौन हो जाते हैं और कई बार व्यक्ति चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता। जुबान साथ नहीं देती पर आँखें, धड़कता दिल और कांपते होंठ सब कुछ तो बयान कर देते हैं।
गौरी ने अचानक मेरा सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और जोर से मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर अपने दांतों से काट लिया। यह उसके स्वीकृति और समर्पण की मौन अभिव्यक्ति थी।
अब मैंने अपने कूल्हे थोड़े से ऊपर किये और अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकला तो गौरी ने मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। उसने इशारों में मुझे हिलने से मना किया। एक हल्के धक्के के साथ लंड फिर से अन्दर समा गया।
गौरी की एक मीठी आह … सी निकल गई।
थोड़ी देर मैं इसी प्रकार बिना कोई बेजा हरकत किये अपने लंड को अन्दर डाले रहा। लंड तो अन्दर ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। अब तो गौरी की सु-सु भी उस अनजान घुसपैठिये से परिचित हो गई लगती थी तभी तो उसने भी संकोचन चालू कर दिया था।
इस नैसर्गिक आनन्द को शब्दों में कहाँ बयान करना कहाँ संभव है। यह प्रकृति का वह आनन्द है जिसे प्राणीमात्र ही नहीं देवता भी भोगने के लिए तरसते हैं। इस दुनिया में प्रेम मिलन से आनन्ददायी कोई दूसरी क्रिया तो हो ही नहीं सकती।
गौरी अब कुछ संयत हो चुकी थी। मैंने उसके गालों और होंठों को फिर से चूमना चालू कर दिया था। जैसे ही मैंने उसके होंठों को मुंह में भरने की कोशिश की तो गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा घुमा लिया तो उसका कान मेरे होंठों के पास आ गया। कानों में पहनी बालियाँ जैसे मुझे ललचा रही थी। मैंने उसके कान की लोब को बाली सहित अपने मुंह में भर लिया और उसे चुभलाने लगा। बीच-बीच में उसे अपने दांतों से काटने भी लगा।
अब तो गौरी रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी। उसने अपने नितम्ब भी उचकाने शुरू कर दिए थे। उसके हिलते नितम्ब और कांपते होंठ यह इशारा कर रहे थे कि अब इसी तरह चुप मत रहो।
मैंने अब हौले-हौले अपने पप्पू को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया था। गौरी पहले तो थोड़ा कसमसाई पर बाद में वह भी सहयोग करने लगी। उसका दर्द अब ख़त्म तो नहीं हुआ था पर लगता है असहनीय नहीं रहा तभी तो वह भी अपने नितम्ब उचकाकर मेरा साथ देने लगी थी। उसकी अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी। अब उसने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्बों को लयबद्ध तरीके से हिलाना चालू कर दिया था और अपनी जाँघों को थोड़ा और खोलकर अपने पैर ऊपर उठा लिए थे।
ऐसा करने से मेरा पप्पू तो और भी खूंखार हो गया और अन्दर तक पैंठ जमाने लगा था। गौरी की सु-सु की कसावट और मखमली अहसास से सराबोर हुआ मेरा पप्पू तो आज मस्त होकर हिलौरें ही मारने लगा था। अब तो पूरे कमरे में सु-सु और पप्पू के मिलन का मधुर संगीत गूंजने लगा था।
मुझे हैरानी हो रही थी गौरी का यह प्रथम मिलन था पर ऐसा कतयी नहीं लग रहा था कि बिलकुल अनाड़ी या नवसिखिया है। मुझे लगता है उसने यू-ट्यूब पर इन सब चीजों को जरूर देखा होगा। यह भी संभव है मधुर ने इसे अपने मधुर मिलन की सारी बातों को रस ले लेकर बताया हो? कुछ भी हुआ हो पर मेरे लिए तो यह अतिरिक्त बोनस की तरह था।
गौरी अब पूर्ण सहयोग करने लगी थी। अब तो उसने अपनी सु-सु का संकोचन भी शुरू कर दिया था।
“गौरी तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?”
“हट … !!”
“प्लीज बताओ ना?” कहते हुए मैंने एक धक्का जोर से लगा दिया।
“आईईई ईइच्च्च … ”
“आपने तो मुझे बिल्तुल बेशल्म बना दिया.”
“अरे मेरी जान इसमें शर्म की क्या बात है यह तो भगवान् का एक पवित्र और और नैसर्गिक कार्य है हम तो बस एक माध्यम हैं. इस मिलन की वेला में लाज और शर्म का पर्दा हटा रहने दो, बस उस आनन्द को महसूस करो.”
हमें अब तक कोई 20 मिनट तो जरूर हो गए थे। मैंने अपने धक्कों की गति अब बढ़ा दी थी। गौरी अब मीठी सीत्कारें करने लगी थी मुझे लगता था जिस प्रकार गौरी अपनी सु-सु का संकोचन कर रही थी और मेरे लंड को अन्दर उमेठ रही थी, उसका ओर्गास्म होने वाला है।
मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं जिस प्रकार धक्के लगा रहा था जैसे मैं गौरी मेरे लिए कतई नई नहीं है। साधारणतया प्रथम मिलन के समय अपनी प्रियतमा का बहुत ख़याल रखा जाता है पर पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन बिना किसी रहम के और जोर-जोर से धक्के लगाने को मुझे उकसा सा रहा था।
गौरी आआह … उईईइ … करने लगी थी।
अचानक गौरी की साँसें बहुत तेज हो गई और उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में कस लिया। उसने अपनी जांघें भींच लीं और मेरे लंड को अपनी सु-सु में ऐसे कस लिया जैसे कोई बिल्ली किसी चूहे की गर्दन पकड़ लेती है।
ईईईईईईईई … गौरी की किलकारी भरी चीख पूरे कमरे में गूँज गई। गौरी का शरीर इतनी जोर से अकड़ने लगा और उसने अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली। और उसके साथ ही चट-चट की आवाज के साथ उसकी कलाइयों में पहनी चूड़ियाँ चटक गई। और फिर वह किसी कटी पतंग की तरह हिचकोले खाती लम्बी-लम्बी साँसें लेती ढीली पड़ती चली गई।
मैंने सिर पर हाथ फिराना चालू कर दिया और उसके गालों और माथे पर चुम्बन लेने लगा। लगता है गौरी ने अपने जीवन का प्रथम लैंगिक ओर्गास्म पा लिया था।
थोड़ी देर बाद में गौरी संयत सी हो गई थी। इस समर्पण के बाद अब वह आँखें बंद किये सुनहरे सपनो में खोई इस मिलन के आनन्द को महसूस कर रही थी। जैसे-जैसे मैं उसके गालों, होंठों गले और उरोजों को चूमता उसका सारा शरीर तरंगित सा हो जाता।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। अब तो गौरी भी बिना झिझके मेरे धक्कों का प्रत्युत्तर अपने नितम्बों को उचका कर देने लगी थी। इस समय वह आनन्द के उस झूले पर सवार थी जिसकी हर पींग साथ वह आनन्द की नई ऊंचाइयां छू रही थी। उसका गदराया बदन मेरे नीचे दबा बिछा पड़ा था। मेरी हर छुवन, घर्षण और धक्का उसे हर बार रोमांच से भर रहा था।
मैंने अब थोड़ा ऊपर होकर अपने लंड को उसके सु-सु के योनि मुकुट (मदन मणि) से रगड़ना चालू कर दिया था। मेरे ऐसा रगदने से गौरी की मदन मणि फूल कर मूंगफली के दाने जितनी बड़ी हो गई थी।
अब तो गौरी का सारा बदन ही थिरकने लगा था। उसने अपने दोनों पैर उठाकर मेरी कमर पर कस लिए थे और आह … ऊंह … की आवाजों के साथ जैसे आसमान में उड़ने लगी थी जैसे कह रही हो ‘मेरे साजन मुझे बादलों के उस पार ले चलो जहां हमा दोनों के अलावा दूसरा कोई नहीं हो।’
मैंने अब उसके उठे हुए नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया और धक्कों की गति कुछ बढ़ा दी थी। साथ ही उसके अमृत कलशों को मसलने लगा था। कभी उसके शिखरों (चूचुक) को मसलते कभी उन्हें मुंह में लेकर चूमते हुए कभी कभी दांतों से दबा रहा था।
अब मुझे भी लगने लगा था कि प्रेम की अंतिम आहुति डालने का समय आ गया है। मेरा पूरा शरीर तरंगित सा होने लगा था और लिंग में भारीपन सा आने लगा था। मेरी आँखों में जैसे सतरंगी सितारे से जगमगाने लगे थे।
मेरे हर धक्के साथ गौरी के पैरों में पहनी पायल तो किसी कोयलिया की तरह रुनझुन ही करने लगी थी। लयबद्ध धक्कों के साथ पायल झंकार सुनकर मैं उसे जोर-जोर से चूमने और धक्के लगाने लगा था।
मेरे ऐसा करने से गौरी का रोमांच और स्पंदन अब अपने चरम पर पहुँच गया था। मुझे लगा उसकी साँसें एक बार फिर से तेज होने लगी हैं और फिर से पूरी देह अकड़ने लगी है। मुझे लगा एक बार फिर से गौरी को ओर्गाश्म होने वाला है। मैं चाहता था इस बार हम दोनों एक साथ स्खलित होकर इस आनद को भोगें।
मैंने गौरी के होंठों को अपने मुंह में कस लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। मेरी साँसें भी तेज हो गई थी और पूरे बदन में पसीना सा आने लगा था।
“गौरी मेरी जान … मेरा भी अब निकलने वाला है … मेरी प्रियतमा … आज मैं तुम्हें अपनी पूर्ण समर्पिता बनाकर धन्य हो जाऊँगा … आह … मेरी सिमरन … मेरी गौरी …”
“हाँ मेले साजन … मेले प्रेम … मैं तो कब की आपके इस प्रेम की प्यासी थी … आह … मेले शलील में उबाल सा आ रहा है मेरे … सा … जा … न्नन्न … आह … ईईईईई …”
प्रेम रस में डूबी गौरी की मीठी सीत्कार निकले लगी थी और फिर से उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया।
और फिर मेरे लंड ने पता नहीं कितनी फुहारें उसकी सु-सु में निकाल दी।
अब मैं उसे हर धक्के के साथ जोर-जोर से चूमे जा रहा था और गौरी भी आँखें बंद किये तरंगित हुई इस आनन्द को भोग रही थी। सच है इस प्रेम मिलन से बड़ा कोई सुख और आनन्द तो हो ही नहीं सकता। मैं ही नहीं शायद गौरी भी यही चाह रही होगी कि हम दोनों इस असीम आनन्द को आयुपर्यंत इसी प्रकार भोगते ही चले जाएँ।
“मेरी प्रियतमा … मेरी सिमरन … मेरी गौरी … आह … मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ!”
“मेरी जान आह … या …” कहते हुए गौरी ने मुझे अपनी बांहों में भींच लिया। वह कितनी देर प्रकृति से लड़ती, उसका भी एक बार फिर से रति रस छूट गया। और उसी के साथ ही बरसों की तपती प्यासी धरती को जैसे बारिस की पहली फुहार मिल जाए, कोई सरिता किसी सागर से मिल जाए, किसी चातक को पूनम का चाँद मिल जाए या फिर किसी पपिहरे को पी मिल जाए मेरा वीर्य और गौरी का कमरज एक साथ निकल गया।
गौरी ने अपनी सु-सु का संकोचन करना शुरू कर दिया था जैसे इस अमृत की हर बूँद को ही सोख लेगी। अचानक उसकी सारी देह हल्की हो उठी और उसके पैर धड़ाम से नीचे गिर पड़े।
मैंने 2-3 अंतिम धक्के लगाए और फिर गौरी को कस कर अपनी बांहों में भर कर उसके ऊपर ऊपर लेट गया।
गौरी की आंखें अब भी बंद थी। मेरी बांहों में लिपटी पूर्ण तृप्ति के साथ जोर-जोर से साँसें ले रही थी।
3-4 मिनट इसी प्रकार मैं उसके ऊपर लेटा रहा। अब मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर निकलने लगा।
“उईईईईइ … मेला सु-सु निकल रहा है … प्लीज …”
मुझे हंसी सी आ गई।
लगता है गौरी जिसे सु-सु (पेशाब) समझ रही थी वह मेरे वीर्य, उसके कामरज और कौमार्य झिल्ली के फटने से निकला रक्त का मिश्रण बाहर निकालने लगा होगा।
मैं गौरी के ऊपर से हट गया। अब गौरी उठकर बैठ गई और अपनी सु-सु को देखने लगी। उसमें से तो प्रेम रस बह निकला था और गौरी की जाँघों और महारानी के छेद तक फ़ैल गया था।
अब गौरी की नज़र उस सफ़ेद तौलिये पर गई जिसे उसने अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। वह तो 5-6 इंच के व्यास में पूरा गीला हो गया था और वीर्य और उसकी योनि से निकले रक्त से सराबोर हो गया था।
गौरी ने हैरानी से उस तौलिये को देखा और फिर अपनी सु-सु की फांकों को देखा। फांकें तो अब सूजकर और भी मोटी-मोटी लगने लगी थी।
मैं टकटकी लगाए उसकी सु-सु को ही देखे जा रहा था जिसमें अब भी प्रेम रस निकल रहा था।
मुझे अपनी ओर निहारते हुए देख कर गौरी ने झट से वह तौलिया उठाया और अपनी जाँघों और सु-सु पर डाल लिया।
मैंने एक बार फिर से उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा तो गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का दिया और वह तौलिया और अपनी नाइटी उठाकर बाथरूम में भाग गई।
अथ श्री योनि भेदन सोपान इति!!!
कथानक की अनुवादिका और प्रेषिका की ओर से चंद शब्द :
प्रेमगुरु के चाहने वाले प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
आप सभी इस लम्बी कहानी को धैर्य पूर्वक पढ़ा और सराहा उसके लिए मैं (स्लिम सीमा) आपका हृदय से आभार प्रकट करती हूँ। मैंने कहानी के शुरू में आपको बताया था कि यह कहानी प्रेमगुरु के मेल्स और नोट्स पर आधारित है और कई भागों में प्रकाश्य है।
मुझे खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि कुछ अल्प बुद्धि और यौन विकृत मानसिकता वाले पाठकों ने इस कहानी की लम्बाई को लेकर और गौरी-प्रेम मिलन में देरी के लिए लेखक को बहुत ही अपशब्द और फूहड़ भाषा का प्रयोग करते हुए मेल्स किये हैं।
मैंने देखा है प्रेमगुरु ने अपनी सभी कहानियों में सेक्स और प्रेम को बहुत सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है और कहीं भी फूहड़ भाषा या अमर्यादित क्रिया को नहीं बताया है. यही उनकी लेखन कला को सुन्दरतम बनाती है।
मुझे खेद है इस कहानी के अभी 3-4 भाग और बाकी थे जिनमें गौरी के साथ गुदा मैथुन, उसके भाभी और भैया की सुहागरात और संजीवनी बूटी के साथ कुछ प्रेम के प्रसंग दिखाए जाने वाले थे। इसके साथ ही अंत में मधुर की संदिग्ध भूमिका पर भी प्रकाश डाला जाना था पर अब मैंने फैसला किया है कि यह कहानी विकृत मानसिकता और अल्प बुद्धि वाले पाठकों के लिए नहीं है जिन्हें केवल फूहड़ सेक्स ही पसंद आता है।
अलविदा मित्रो!
आप सभी अपनी कीमती राय इस कहानी पर लिखेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी।
धन्यवाद और क्षमा याचना के साथ-
आप सभी की स्लिम सीमा (प्रेमगुरु की एक प्रशंसिका)
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