यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
हेलो दोस्तों, मैं अपने सच्चे सेक्स अनुभव की कहानी का तीसरा भाग आप सबके लिए लाया हूँ.
मैंने अपने और मधुर के दुश्मनों को (अरे भाई कपड़ों को) परे हटा दिया और उसे बांहों में दबोच लिया। अब मधुर ने अपनी जांघें खोल दी और पप्पू को अपने हाथों से पकड़कर अपनी मुनिया के छेद पर रगड़ने लगी। मैंने एक जोर का धक्का मारकर उसका काम आसान कर दिया।
चूत तो वैसे ही प्रेमरस में भीगी हुई थी पप्पू महाराज गच्च से अंदर दाखिल हो गये। हम दोनों के होंठ आपस में चिपक गये। मुनिया के रसीले होंठों ने पप्पू को जोर से भींच लिया। मधुर आज पूरे शबाब और मधुर रंग में लग रही थी। आज तो वो मुझे हर तरह (सिवाय गांड के) खुश के देना चाहती थी।
मैंने उसके उरोजों को भींचते हुए उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया। आह … उंह और फच्च-फच्च का मधुर प्रेम संगीत सितार की तरह बजने लगा। मधुर हौले हौले अपने नितंबों को उठाकर मेरे धक्कों की ताल में अपना सुर और लय मिलाने लगी और फिर उसने अपने दोनों पैर ऊपर उठाकर मेरी कमर पर कस लिए।
चुदवाने के मामले में मधुर का कोई जवाब नहीं है। वह मर्द को कैसे रिझाया जाता है, बखूबी जानती है। उसकी चूत की अदाएँ, दीवारों को सिकोड़ना और मरोड़ना चुदाई के आनंद को दुगना कर देता है। आज भी उसकी चूत किसी 20-22 साल की नवयुवती की तरह ही है।
अन्दर बाहर होते मेरे लंड को जिस प्रकार वह अपनी चूत में भींच रही थी, मुझे लगता था कि मैं आज जल्दी झड़ जाऊँगा पर मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था। मैं आज मधुर को लंबे समय तक रगड़ने के मूड में था।
मेरे सपनों में तो जैसे गौरी ही बसी थी। सुबह जब मैंने उसकी बुर को हाथ में पकड़ा था तो मोटे मोटे पपोटों का थोड़ा अंदाज़ा तो हो ही गया था। उसकी केश राशि को देखकर तो कोई अनाड़ी भी अंदाज़ा लगा सकता है कि उसकी चूत पर किस प्रकार की मुलायम घुंघराली केशर क्यारी उगी होगी और बुर के दोनों फलक तो बिल्कुल गुलाबी संतरे की फाँकों के मानिंद होंगे।
बुर के ऊपर की मदनमणि (दाना) तो किशमिश के दाने के जितनी होगी और कामरस में डूबी उसकी बुर की फाँकों और पत्तियों के अंदर का नज़ारा देखकर तो आदमी के लिए अपने होश कायम रख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। काश कभी ऐसा हो जाए कि यह हसीन मुजसम्मा मेरी बांहों में आ जाए तो मैं इसके लिए पूरी कायनात ही लूटा दूँ।
मेरी यह खूबसूरत कल्पना मुझे मदहोश किए जा रही थी। कई बार मुझे एक शंका भी होती है इतनी खूबसूरत लड़की अपने कौमार्य को कैसे बचाकर रख पाई होगी? कहीं किसी ने रगड़ तो नहीं दिया होगा?
क्या पता कोई प्रेमगुरु फैज़ाबाद में ही … ओह … नो …
अचानक मधुर ने अपने दाँतों से मेरे होंठों को जोर से काटा तो मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया। और फिर मैंने दना-दन 5-7 धक्के जोर-जोर से लगा दिए।
मधुर आह … उइईईई ईईईईई … करने लगी। उसे लगा मैं अब अपना रस निकालने के मूड में हूँ।
“ओहो … थोड़ा धीरे करो … ओह … प्लीज … रुको … मत … मेरी जान … मेरे प्रेम!” उसने मेरे होंठों को एक बार फिर चूम लिया।
“प्रेम एक बार रुको प्लीज … ओह …”
“क्या हुआ?”
“एक बार बाहर निकालो, प्लीज जल्दी!”
मैं चाहता तो नहीं था पर मैं उसके ऊपर से हट गया। मधुर जल्दी से डॉगी स्टाइल में हो गयी। आप तो जानते ही हैं मुझे यह आसन कितना पसंद है। मधुर इस प्रकार से बहुत कम करवाती है पर इन दिनों में तो वह झड़ने के समय इसी आसान में रहना पसंद करती है। अब मैं भी उसके पीछे घुटनों के बल खड़ा होकर उसके गोल-गोल नितम्बों पर हाथ फिराने लगा।
मैंने थोड़ा नीचे होकर उसके नितंबों पर एक करारा चुंबन लिया तो मधुर के मुँह से सीत्कार सी निकल गयी। अब मैंने उसकी चूत की पंखुड़ियों को थोड़ा चौड़ा किया तो ज़ीरो वॉट के नाइट लैंप की रोशनी में उसकी चूत का कामरस में डूबा गुलाबी चीरा ऐसा लग रहा था जैसे किसी पहाड़ी से कोई बलखाती शहद की नदी निकल रही हो।
मैंने उसके मूलबंद (पेरिनियम- गुदा और चूत के बीच का 2-3 से.मी. का भाग) पर अपनी जीभ फिराई। औरतों का यह भाग बहुत संवेदनशील होता है।
मधुर की तो मीठी चीख सी निकल गयी ‘ईईई ईईईई ईईईईई ईई’
“जल्दी से डालो ना प्लीज?” कामोत्तेजना के शिखर पर पहुँची मधुर अपने नितंबों को थिरकाने लगी थी। उसने एक हाथ पीछे करके मेरे पप्पू पकड़कर मसलना चालू कर दिया।
अब देर करना तो ठीक नहीं था। मैं थोड़ा आगे सरककर अपने तातार (तन्नाया) लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया और एक जोर के झटके के साथ पूरा लंड उसकी पनियाई चूत में फिर से ठोक दिया।
“उईईईईई माआआ आआआ … ओहो … थोड़ा धीरे प्लीज?”
मैं अब कुछ सुनने के मूड में नहीं था। मैंने उसकी कमर कसकर पकड़ ली और दना-दन 5-6 धक्के लगा दिए। मधुर पहले तो थोड़ा हिनहिनाई फिर उसने अपना सिर तकिए पर रख दिया और अपनी जांघों को ढीला कर दिया और अपनी कमर और नितंबों को मेरे धक्कों के साथ आगे पीछे करने लगी।
सच कहूँ तो शादी के 8-10 साल बाद भी मधुर की चूत और गांड की लज्जत अभी भी बरकरार है। मैं मन ही मन गौरी और मधुर के नितंबों की तुलना कर रहा था। गौरी और मधुर के नितंबों में 19-20 का ही फर्क रहा होगा। पर गौरी के नितम्ब कसे हुए ज्यादा लगते हैं।
काश कभी ऐसा हो जाए कि गौरी के नग्न नितम्ब मेरी आँखों के सामने हों और मैं उनको जोर जोर से दबाकर मसलकर छूकर और चूम कर देख सकूँ। पहले उसके नितंबों पर 4-5 थप्पड़ लगाऊँ और फिर उसकी बुर और गांड के छेद पर अपनी जीभ फिरा दूँ तो उसकी दोनों ही सहेलियाँ (बुर और उसकी पड़ोसन) ईसस्स्स स्स्स्स्स कर उठे।
“क्या हुआ?”
मैं चौंका … शायद गौरी के ख्यालों में मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए थे। मैंने उसके दोनों नितंबों पर एक-एक थप्पड़ सा लगाया और एक जोर का धक्का फिर से लगाना चालू कर दिया।
“आह … उईईई … याआआ … आह …” करते हुए मधुर ने अपनी चूत की फाँकों को जोर से कसना चालू कर दिया। अब मैं 5-6 हल्के धक्कों के बाद एक धक्का जोर से लगा रहा था। मधुर मीठी सीत्कार कर रही थी और उसने अपनी चूत का संकोचन भी शुरू कर दिया था।
मुझे लगा वो अब झड़ने के करीब है।
मधुर के नितंबों की खाई के बीच बना वो जानलेवा छेद जैसे खुल और बंद हो रहा था। हालांकि अब यह छेद गुलाबी की जगह काला तो नहीं पड़ा पर थोड़ा सांवला जरूर हो गया है। पर उसकी कसावट वैसी की वैसी ही है।
मैंने अपने अंगूठे पर अपना थूक लगाकर उस छेद पर फिराना चालू कर दिया। मेरा मन तो उस छेड़ में अपना अंगूठा डालने का कर रहा था पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोक रखा था। मैं मधुर को नाराज़ नहीं करना चाहता था।
मैं एक हाथ से उसके एक उरोज की घुंडी को पकड़ कर मसलने और दूसरे हाथ से उसके नितंबों पर थपकी सी लगाने लगा। मधुर अपने नितंबों को मेरे धक्कों के साथ जोर-जोर से आगे पीछे करने लगी थी। वह आह … उईईई … या … की आवाज़ें निकालने लगी थी और अपनी चूत का संकोचन करने लगी थी।
मैंने उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और कसकर दो धक्के लगाए। उईईई ईईई माआअ … मधुर की रोमांच भरी सीत्कार निकली और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। अब वो कुछ ढीली पड़ने गयी। उसने अपने सिर को तकिए से लगा लिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब और खुल गये। वह जोर जोर से सांस लेने लगी।
मैं थोड़ी देर रूक गया।
“प्रेम निकाल दो … प्लीज अब रुको मत … मेरी तो कमर दर्द करने लग गयी.”
मुझे लगा 20-25 मिनट के इस घमासान से वह थक गयी है।
मेरा मूड और लंबा खींचने का था पर मधुर की हालत देखकर मैंने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और अगले 2 मिनट में मेरा भी कामरस उसकी चूत में निकलने लगा।
1 … 2 … 3 … 4 … पता नहीं कितनी फुहारें मेरे लंड ने छोड़ी. मुझे उनको गिनने की सुध कहाँ थी। हम दोनों तो आँखें बंद किये प्रकृति के इस अनूठे, अनमोल और नैसर्गिक आनंद को भोग कर जैसे मोक्ष को प्राप्त हो रहे थे।
मधुर ने अपनी मुनिया को जोर से सिकोड़ते हुए मेरे कामरस को जैसे चूसना शुरू कर दिया। मैं वीर्य स्खलन के बाद भी अपने लंड को उसकी चूत में डाले रहा। थोड़ी देर बाद मेरा लंड उसकी चूत से फिसलकर बाहर आ गया। मधुर थोड़ी देर उसी पॉज़ में अपने नितंबों को ऊपर किए रही।
वो मानती है कि ऐसा करने से वीर्य उसके गर्भाशय में चला जाएगा और उसके गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाएगी।
आमीन … (तथास्तु)
मैं जब बाथरूम में अपने लंड को धोकर कमरे में वापस आया तो मधुर सीधी होकर लेट चुकी थी। मैंने उसे एक बार फिर से बांहों में भर लिया और एक चुंबन उसके होंठों पर ले लिया।
“थैंक यू मधुर इतनी प्यारी चुदाई के लिए!”
“छी … !! कितना गंदा बोलते हो तुम?”
“अरे मेरी बुलबुल अब चुदाई को तो चुदाई ही बोलेंगे ना?”
“क्यों और नाम नहीं है क्या?”
“चलो तुम बता दो?”
“स … संभोग बोल सकते हो, प्रेम मिलन बोल सकते हो, रति क्रिया … संगम … बहुत से सुंदर नाम … हैं?”
“मेरी जान चुदाई में गंदा-गंदा बोलने का भी अपना ही मज़ा है.”
उसने तिरछी निगाहों से मुझे देखा।
“ओके कोई बात नहीं अब से चुदाई बोलना बंद … कसम से … पक्का!” मैंने हँसते हुए कहा।
“हुंह … हटो परे गंदे कहीं के …”
मैने हँसकर उसके उरोजों के बीच अपना सिर रख दिया। मधुर को अपने बूब्स चुसवाना बहुत पसंद है। स्त्री के जो अंग ज्यादा खूबसूरत होते हैं उनमें स्त्री की कामुकता छिपी होती है। मधुर के तो उरोज और नितम्ब बहुत ही कामुक और खूबसूरत हैं। मैं अक्सर चुदाई से पहले और चुदाई के दौरान भी उसके उरोजों को चूसता रहता हूँ पर इन दिनों में डॉगी स्टाइल के चक्कर में यह कम नहीं हो पाता है।
मैंने उसके एक उरोज को मुँह में भर लिया। मधुर एक हाथ की अंगुलियाँ मेरे सिर के बालों में फिराने लगी।
“ओह … दांत से मत काटो प्लीज!” मैं बीच बीच में उसके पूरे उरोज को मुँह में भरकर चूस रहा था कभी कभी उसके निप्पल को दाँतों से थोड़ा दबा भी रहा था। निप्पल तो फूलकर अब अंगूर के दाने जैसे हो चले थे।
“प्रेम बुरा ना मानो तो एक बात पूछूँ?”
“हाँ …”
“ये गौरी है ना?”
मैं चौंका … ??? हे भगवान क्या गौरी ने मधुर को कहीं सब कुछ बता तो नहीं दिया? मुझे यही डर सता रहा था। मैं तो सोच रहा था बात आई गयी हो गई होगी पर … मेरी किस्मत इतनी सिकंदर कैसे हो सकती है? लग गये लौड़े!!!
“ओह … दरअसल वो … वो …” मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था क्या बोलूं? मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। बस अब तो जैसे बम विस्फोट होने ही वाला है।
“प्रेम मैं चाहती हूँ क्यों ना हम गौरी को अपने यहाँ ही रख लें?”
“क … क्या मतलब??? … ओह मेरा मतलब … वो … ?” मैं हकला सा रहा था। मुझे तो उसकी बातों पर जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था।
“देखो … उसके यहाँ रहने से मुझे और तुम्हें कितना आराम हो जाएगा। मैं चाहती हूँ वो कुछ पढ़ लिख भी ले। वह 5-4 क्लास तक तो पढ़ी है, बहुत इंटेलिजेंट भी है और आगे पढ़ना भी चाहती है पर उसके घरवाले सभी निपट मूर्ख हैं। जल्दी ही किसी दिन कोई ऊंट, बैल या मोटा बकरा देखकर उसे किसी निरीह पशु की तरह उसके खूंटे से बाँध देंगे। मैं चाहती हूँ वह किसी तरह 10वीं क्लास पास कर ले। उसके बाद कोई भला लड़का देखकर उसकी शादी करवा देंगे। तुम क्या कहते हो?”
“ओह …”
“क्या हुआ?”
“म … म … मेरा मतलब है यह तो बहुत खूब … बहुत ही अच्छी बात है.”
“हाँ … अनार की तरह इस बेचारी का जीवन तो खराब नहीं होगा.”
“हाँ जान तुम बिलकुल सही कह रही हो।”
इस मधुर की बच्ची ने तो मुझे डरा ही दिया था। इन औरतों को किसी बात को घुमा फिराकर बताने में पता नहीं क्या मज़ा आता है?
अचानक मुझे लगा मेरी सारी चिंताएँ एक ही झटके में अपने आप दूर हो गयी हैं।
मैंने एक बार फिर से मधुर को अपनी बांहों में जकड़ लिया … अलबत्ता मेरे ख्यालों में फिर से गौरी का कमसिन बदन, सख्त उरोज और नितम्ब ही घूम रहे थे.
कहानी जारी रहेगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे.
[email protected]