गुलाब की तीन पंखुड़ियां-34

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-33

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-35

कहानी की इस कड़ी में आपका स्वागत है दोस्तों …

भाभी ने अपने दोनों हाथ भैया की पीठ पर कस लिए और अपने टांगें भी और ज्यादा फैला दी। भैया ने उसके होंठों को चूमते हए धक्के लगाने शुरू कर दिए। भाभी ने अपनी आँखें बंद कर ली थी।
“साली छिनाल है एक नंबर की। पहले कितने नखरे कर रही थी अब देखो कैसे मज़े ले लेकर चुदवा रही है.” अंगूर दीदी अपनी धुन में अपनी सु-सु को सहलाती जा रही थी और साथ में धीमे-धीमे बड़बड़ाती भी जा रही थी।

मैंने ध्यान दिया भैया जब भी जोर का धक्का लगाते तो फिच्च की सी आवाज आती और उसके साथ ही भाभी की एक मीठी आह सी निकलती। थोड़ी देर इसी प्रकार धक्कमपेल करने के बाद भैया थोड़े से ऊपर उठ गए और अपने लंड को भाभी की चूत से बाहर निकालने लगे।
“क्या हुआ?” भाभी ने उनकी कमर पकड़ कर नितम्बों को अपने ओर दबाते हुए पूछा।
“एक मिनट रुक.” कहकर भैया ने अपना लंड बाहर निकाल लिया। भाभी तो उनको रोकती ही रह गई।

फिर उन्होंने अपने लंड की ओर गौर से देखा। लंड पर हल्का चिपचिपा सा लेप लगा था। अब उन्होंने भाभी की बुर की ओर ध्यान से देखा। भाभी ने अपनी बुर पर हाथ रख लिया शायद उन्हें शर्म आ रही थी।
“ओह क्या हुआ? रुक क्यों गए?” भाभी ने पूछा।
“अपुन एक बात सोचेला हे?”
“क … क्या?” भाभी ने घबराते हुए पूछा।
“ये साला तेरी चूत से खून तो निकला इच नहीं? क्या चक्कर पड़ेला … बाप?”
“म … मुझे क्या पता?” भाभी की तो जैसे हवा ही खराब हो गई थी। उनके चहरे पर जैसे हवाइयां सी उड़ने लगी थी।

“अपुन को ऐड़ा समझा क्या? जरूर कोई ना कोई लोचा होएंगा? सच्ची बोल पेले से सील टूटेली थी ना?”
भाभी उठकर बैठ गई। वह कुछ नहीं बोली और उन्होंने अपनी मुंडी झुका ली।

“अब चुप काएको होएली है जल्दी जवाब दे नई तो अपुन का भेजा सटक जायेंगा?” भैया ने थोड़ा कड़क लहजे में पूछा।
“मुझे माफ़ कर दो … गलती हो गई थी.” भाभी की आवाज ऐसे काँप सी रही थी जैसे अभी रोने लगेगी।
“साला अपुन पेले इच सोचेला था इतना कटीला आइटम अभी तक खालिश केसे रह गएला?”
“किसके साथ किएला था?”
“वो … वो … हमारे पड़ोस में?”

“कौन था?”
“मेरी एक सहेली के भाई ने एक बार मेरे साथ जबरदस्ती किया था तो सील टूर गई।” और फिर सच में भाभी की आँखों से आंसू निकलने लगे थे।
“एक बात और बता?”
भाभी ने प्रश्नवाचक निगाहों से भैया की ओर देखा।
“वो तेरा पिछवाड़े का गेम तो नई बजाया ना?”
“किच्च” भाभी ने कातर नज़रों से भैया की ओर देखा और फिर मरियल सी आवाज में बोली- सच्ची बोलती उसमें कभी नहीं करवाया।
“हम्म …”

“प्लीज मुझे माफ़ कर दो … मैं आपके पैर पकड़ती हूँ.” भाभी ने रोते-रोते फिर मिन्नत की।
“हम्म …” भैया कुछ सोचने लगे थे।
थोड़ी देर बाद भैया बोले- देख मेरी पपोटी … अब सील तो दुबारा जुड़ नई सकेला अब तो बस एक इच इलाज़ हो सकता है?
“क्या?” भाभी ने आशा भरी नज़रों से भैया की ओर देखा।

“देख अपुन अब तेरी गूपड़ी (पिछवाड़ा) की सील तोड़कर मन को तसल्ली दे लेंगा। बोल तेरे को मंजूर?”
“ओह … पर उसमें तो बहुत दर्द होता है?”
“अब दर्द होएंगा के नई होएंगा अपुन नई जानता, तेरे को शर्त मंजूर हो तो बोल नई तो तेरे को अभी इच तेरे बाप के घर भेज देंगा।”
“ओह …” कह कर भाभी कुछ सोचने लगी।

उनकी हालत तो इस प्रकार हो रही थी जैसे बिना आर.सी. के उनका भारी रकम का चालान काट दिया हो जिसकी भरपाई अब उनके लिए कतई संभव नहीं थी।
थोड़ी देर बाद भाभी के मुंह से मरियल सी आवाज निकली- ठीक है.

“अपुन का एक और शर्त है?”
“अ … और क … क्या?” भाभी ने सकपकाते हुए पूछा।
“वो प्रीति है ना? तुम्हारी छोटी बहन?”
“हओ?”
“अपुन का दिल उस पर आ गएला है। अपुन की शादी वाले दिन उसने गज़ब का डांस किएला था। कित्ता मस्त कमर और पिछवाड़ा है साली का। अपुन उसी दिन सोच लिएला था कि इसका बी एकबार गेम जरूर बजाने का।”
“पर वो इसके लिए कैसे मानेगी?”
“ये … इच तो अपुन बोलता है … उसको मनाने का जिम्मा तेरा!”
“वो … वो … ” भाभी कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।

शायद वह सोच रही थी किसी तरह यह मामला हाल फिलहाल यहीं सुलझ जाए और घरवालों तक बात ना पहुंचे तो ठीक है।
“तू बोलेंगी तो वो नक्की मान जायेंगी.”
“ठीक है मैं कोशिश करुँगी.” कहकर भाभी ने फिर से अपना सिर झुका लिया। वह कुछ सोचे जा रही थी।

अब दीदी ने मेरी ओर देखकर फुसफुसाते हुए ग़मगीन लहजे में बोली- साली ने सारा मज़ा किरकिरा ही कर दिया। पता नहीं कहाँ-कहाँ ठुकवा कर आई है।
“दीदी एक बात पूछूं?” मैंने डरते डरते कहा।
“हाँ बोल?”
“पहली बार में सील टूटने पर सबको खून निकलता है क्या?”
“हाँ अगर शादी होने तक कुंवारी है तभी निकलता है। अगर सुहागरात को बिना खून खराबे (रक्तपात) के युद्ध समाप्त हो जाता है तो…. समझ लेना चाहिये कि ये देश पहले से ही आजाद हो चुका है।” कहकर अंगूर दीदी हंसने लगी।

मेरी प्रबल इच्छा हो रही थी अंगूर दीदी से उसकी सुहागरात के बारे में पूछूं पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी।
फिर मैंने डरते-डरते पूछा- दीदी, आपको तो पहली रात में बहुत खून निकला होगा?
“चुप! तू मार खाएगी अब!” कहकर दीदी फिर हंसने लगी थी और फिर एक आह सी भरते हुए उदास हो गई।
पता नहीं क्या बात थी।

अब हमने फिर से कमरे के अन्दर झाँका।
“चल मेरी रानी अब थोड़ा पलट जा … अपने पीओके का नजारा बी दिखा दे.”
“प्लीज मुझे बहुत डर लग रहा है … इसमें करने से बहुत दर्द होता है. आज-आज रहने दो इसमें कल कर लेना.” भाभी ने फिर मिन्नत की।
“ना … धारा 370 तो आज ही हटाने को माँगता.”
“ओह … मैं तो मर ही जाऊंगी. इसमें बहुत दर्द होता है.”

“देख … ग़ालिब चचा ने बी बोला हे गांड मरवाने से कोई नई मरता ग़ालिब, बस चलने का अंदाज़ बदल जाता है.”
“मैं वही तो बोल रही हूँ मेरे से तो दर्द के मारे चला ही नहीं जाएगा.”

“तेरे को कैसे मालूम कि इसमें बहुत दर्द होएंगा? बोल?”
“वो … वो.. हमारे पड़ोस में मेरी एक सहेली के पति ने एक बार उसके साथ पीछे से किया था.”

“तो? क्या वो मर गई थी?”
“उसने बताया कि उसे बहुत दर्द हुआ था और फिर 2-3 दिन उससे तो चला ही नहीं गया था।”
“वो कोई फत्तू (अनाड़ी) रहा होएंगा अपुन इस मामले में पूरा एक्सपर्ट है।”
“क … कैसे?”
“अपुन इधर था तब बी दो-तीन छोकरे लोग की गांड मारेला था और एक आंटी की बी पूपड़ी और गूपड़ी दोनों तसल्ली से बजाएला था और फिर मुंबई में बी एक चिकनी का आगे और पीछे से कई बार अपुन का गेम बजायेला है।”

“मुंबई में कौन थी?”
“वो हमारी चाल के पास में रेहती थी। वो रोज अपुन की ओर देखकर इशारे किया करती थी। एक दिन उसका बाथरूम का वाटर टैंक खराब था तो अपुन को ठीक करने को बुलाया था। जब टैंक ठीक हो गया तो उसने नल चलाकर चेक किया। गलती से शॉवर चालू हो गया तो मेरे और उस चिकनी के कपड़े भीग गए। फिर वो चिकनी बोली तेरे तो कपड़े भीग गए तू नहा ले। अपुन नहाने लगा तो अपुन का सिकंदर खड़ा हो गया। वो चिकनी उधर इच खड़ी होके अपुन को देखेली थी। वो बोली तेरा हथियार तो बहुत बड़ा लगता है रे, तेरी बीवी तो मस्त हो जायेंगी। ऐसा करके बोली और फिर उसने अपुन के सिकंदर को हाथ में पकड़ लिया.”

इतना कहकर भैया रुक गए। अब तो उनका सिकंदर जोर-जोर से उछलकूद मचाने लगा था।
“फिर क्या हुआ?” भाभी ने पूछा।
“अरे … होने को क्या था वहीं इच साली का गेम बजा डाला। बाप … क्या मस्त पूपड़ी थी अपुन को भोत मज़ा आया। उसने खुश होकर अपुन को पहनने को नए कपड़े दिए, एक हज़ार रुपया बी दिया और नाश्ता बी करवाया.”

“और … वो … पीछे से कब किया?”
“हा … हा … उसके बाद उस चिकनी को कई बार और बजाया। एक दिन अपुन उससे बोला तेरा पिछवाड़ा बड़ा मस्त लगेला है। अपना इसमें करने का मन होएला है तो वो बोली इसमें बड़ा दर्द होता है मेरे राजा तू आगे ही कर लिया कर। अपुन ने आगे करने से मना कर दिया तब वो चिकनी पीछे से करवाने को राजी हुई। उसने पेले तो उसने अपुन का जी भर के चूसा और फिर सिकंदर का खूब तेल मालिश किया और अपनी गूपड़ी (गांड) में बी क्रीम और तेल लगाया। फिर अपुन ने उसको मोरनी बना के उसका पिछवाड़ा बजाया। उसको पेले तो थोड़ा दर्द तो हुआ पर बाद में उसे बी बहोत मज़ा आया।”

“तो फिर उसी के पास रह जाते यहाँ क्यों आये?” भाभी थोड़ा नाराज़ सी होकर बोली।
“अरे मेरी जान फिर तू मेरे को केसे मिलती? सच में तू बहुत खूबसूरत है। पेली बार देखते इच अपुन का दिल तेरे पे आ गयेला था।”

भाभी गुमसुम हुई पता नहीं किन ख्यालों में डूबी थी। पर मैं जरूर यह सोच रही थी इस समाज में पुरुष और स्त्री के लिए अलग-अलग मानदंड क्यों बनाए हुए हैं? पुरुष अपनी मर्जी के अनुसार शादी से पहले और शादी के बाद भी किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है पर स्त्री अगर गलती से या अनजाने में भी किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना ले तो सारा दोष स्त्री पर ही क्यों आता है?

“ए स्याणी अब ज्यास्ती सोचने का नई जल्दी फेसला करने का … क्या?”
“ओह … पर आराम से तो करोगे ना? मुझे बड़ा डर लग रहा है.” भाभी ने सच में डरते हुए मिन्नत की।
“तेरे को बोला ना … अपुन इस मामले का एक्सपर्ट है … और आज तक कोई बी चूत और गांड मरवाने से नहीं मरा। में तेरे को प्रॉमिस देता आराम से करेगा बस …”
“वो … वो … क्रीम और तेल लगा लेना प्लीज …”
“फिकर नई करने का अपुन सब देख लेंगा … बस अब तू पलट जा.”

“वाह … जिओ मेरे राजा भैया … साली को बिना तेल लगाए ही पेल दे बड़े नखरे दिखा रही है.” अंगूर दीदी ने बड़ी देर के बाद चुप्पी तोड़ी।

सच में मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार पीछे से भी करता है क्या!
बचपन में लड़कों के बारे में तो जरूर सुना था कि लड़के आपस में कई बार एक दूसरे की गांड मार लेते हैं पर मेरे लिए पति-पत्नी द्वारा किया जाने वाला यह काम नितांत नया और विस्मित करने वाला था।

मेरा मन अंगूर दीदी से पूछने का हो रहा था कि कभी जीजू ने उनके साथ इस प्रकार किया है क्या? पर मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी। मैंने बात नोटिस की है कि जब भी जीजू का जिक्र आता है अंगूर दीदी को बिलकुल अच्छा नहीं लगता और वह गुस्सा हो जाती है। पता नहीं क्यों?

कहानी जारी रहेगी.
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