गुलाब की तीन पंखुड़ियां-5

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

नमस्कार दोस्तों, अब आप इस सेक्सी कहानी के पांचवें भाग का आनंद लीजिये.

साली नौकरी भी जिन्दगी के लिए फजीता ही है। यह अजित नारायण (मेरा बॉस) भोंसले नहीं भोसड़ीवाला लगता है। साला एक नंबर का हरामी है। पिछले 4 सालों से कोई पदोन्नति (प्रमोशन) ही नहीं कर रहा है। आज मैं इससे हिसाब चुकता कर ही लेता हूँ। मैं इंतज़ार कर रहा था कि कब वह आए और मैं उसे बात करूँ।

आज भोंसले ऑफिस में थोड़ी देरी से आया था। मैं उसके कॅबिन में जाने की सोच ही रहा था कि चपरासी ने आकर बताया कि बॉस बुला रहे हैं।
“गुड मॉर्निंग सर!” मैंने कॅबिन में घुसते हुए कहा।
“आओ प्रेम बैठो, तुमसे कुछ बात करनी है.”

बात तो मुझे भी करनी थी पर चलो पहले इसकी सुन लेते हैं मैंने कहा- जी बोलें?
“प्रेम एक खुशखबर है?”
“क … क्या?”
“प्रेम मेरा ट्रांसफर पुणे हो रहा है। दरअसल मैंने ही इसके लिए HRD से रिक्वेस्ट की थी।”
“हूं …”

भोंसले आज बड़ा खुश नज़र आ रहा था वरना तो हर समय उसके चेहरा राऊडी राठोड़ ही बना रहता है।
“वो दरअसल पारू को पुणे में मेडिकल में सीट मिल गयी है.” वह अपनी लड़की (पारुल) के बारे में बात कर रहा था। पारो नाम की यह फुलझड़ी पता नहीं कैसी होगी पर उसका नाम सुनकर तो मुझे लगा मैं इसके लिए देवदास बन जाऊँ तो मज़ा आ जाए।

मुझे विचारों में खोया देखकर भोंसले बोला- क्या सोचने लगे प्रेम?मेरी बीवी ने घर में एक नयी कामवाली रखी.
“क … कुछ नहीं सर … आपको बहुत-बहुत बधाई हो सर!”
“थैंक यू प्रेम!”
“सर, यहाँ अब कौन आएगा?”
“यह तो पता नहीं … पर प्रेम मैंने तुम्हारे नाम की सिफारिश कर दी है। प्रमोशन के साथ इनक्रिमेंट भी मिलेगा। मुझे लगता है 2-3 दिन में कन्फर्मेशन का मेल आ जाएगा.”
“थैंक यू सर!”

“प्रेम! लेकिन तुम्हें 3 महीने की ट्रेनिंग पर पहले बंगलूरू हो जाना होगा.”
“ओह?”
“क्या हुआ? कोई दिक्कत?”
“नो सर! ऐसी कोई बात नहीं है पर ट्रेनिंग पर जाना कब होगा?”
“देखो अगर अभी प्लान कर सकते हो तो हफ्ते दस दिन में प्लान कर लो, वरना दीपावली के बाद जा सकते हो। मैं सोचता हूँ अभी आगे त्योहारों का सीज़न आ रहा है तुम्हें अपने टार्गेट्स बहुत अच्छे से पूरे कर लेने चाहिएं। मेरे ख्याल से दीपावली के आसपास ठीक रहेगा?”
“ठीक है सर!”
“प्रेम अभी स्टाफ से इस बारे में कोई बात मत करना। कल सन्डे है तुम घर पर आ जाना वहीं डिटेल डिस्कस करेंगे.”
“ओके सर.”
“ओके गुडलक!”

मैं कॅबिन से बाहर आ गया। भेनचोद यह किस्मत भी जैसे लौड़े हाथ में ही लिए फिरती है। एक हाथ से कुछ देती है दूसरे हाथ से छीन लेती है। एक तरफ प्रमोशन की खुशी है दूसरी तरफ तीन महीने के लिए बाहर जाना होगा। गौरी को किसी तरह अपने जाल में फंसाने के लिए पूरा प्लान बनाया था। चिड़िया दाना चुगने के लिए छटपटाने लगी है और अब अगर ऐसे में बंगलूरू जाना पड़ा तो सब किया धरा गुड़ गोबर हो जाएगा। लग गये लौड़े!!!

शाम को घर जाते समय मैं यह सोच रहा था कि मधुर को इस बारे में कैसे बताऊँ?
जब घर पहुँचा तो गौरी ने दरवाजा खोला। मधुर कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।

मैं सोफे पर बैठ गया; गौरी पानी लेकर आ गयी।
आज गौरी ने हल्के सलेटी रंग का पाजामा और टॉप पहन रखा था। लगता है उसने आज फिर से अंदर ब्रा नहीं पहनी है। मेरी नज़र उसके गोल-गोल रस भरे सिंदूरी आमों के निप्पल पर पड़ी जो मटर के दाने जितने तो जरूर होंगे।

“वो मधुर नहीं दिख रही?”
“मैडम पड़ोस में गुप्ताजी ते यहाँ गयी हैं.”
“कुछ बताकर गयी?”
“हओ … गुप्ताजी ती बेटी ती सगाई हुई है तो उनते यहाँ लेडीज संगीत में गई हैं.”
“ओह … कब तक लौटेंगी?”
“एत घंटे ता बोला है.”
“हम्म” मैं सोच रहा था मधुर तो गीत और डांस का आज कोई मौका नहीं छोड़ने वाली।

“आपते लिए चाय बनाऊँ?”
“ना … थोड़ी देर रूककर पीते हैं.”
‘हओ’ कहकर गौरी रसोई में जाने लगी।

उसका टॉप उसके नितंबों से थोड़ा सा ऊपर था। पाजामा थोड़ा तंग था इसलिए उन कसी हुई दोनों गोलाइयों के बीच की दरार में धंसा हुआ सा था। इसे देखकर तो मेरा लंड फड़फड़ाने ही लगा।
आइलाआआआ …
उसने शायद अंदर पैंटी भी नहीं पहनी थी। इसे किसी तरह बहाने से बातों में लगाकर पास बैठा लूँ तो सु-सु की पूरी रूपरेखा बड़े आराम से देखी जा सकती है।

मैंने उसे टोका- वो तुम्हारी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?
“ठीत है.”
“हूँ! आज क्या पढ़ाया मैडम ने?” पढ़ाई करते समय गौरी मधुर को मैडम ही बोलती है तो मैंने भी मधुर के लिए मैडम ही बोला था।
“आज तो मैडम ने मैथ्स पढ़ाया.”

“समझ आया या नहीं?” मैंने हँसते हुए पूछा।
“किच्च …”
“क्यों?”
“बड़ा मुश्तिल लगता है?”
“अरे दिल लगाकर करो तो कोई काम मुश्किल नहीं लगता?”
“मुझे टेबल याद नहीं लहते तो दीदी बड़ा गुस्सा होती हैं.”

“तो एक काम किया कर?”
“त्या?”
“तुम रोज़ कॉफी पिया करो” मैंने कुछ संजीदा (गंभीर) लहजे में कहा।
“उससे त्या होगा?”
“इससे तुम्हारी याददास्त बहुत तेज हो जाएगी.”
“अच्छा?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा कहीं मैं उसे ऊल्लू तो नहीं बना रहा।
“हाँ भई सच में। अच्छा वो सुबह कॉफी पीने के बाद तुम्हारी सु-सु में कोई जलन तो नहीं हुई ना?” मैंने हँसते हुए पूछा।
“हट … तैसी बात तलते हो?” गौरी तो अब गुलज़ार ही हो गयी।
इस्स्स … उसके शर्माने की अदा तो मेरे कलेजे का जैसे चीरहरण ही कर लिया।

मुझे लगा गौरी शर्माकर रसोई में भाग जाएगी। वह वहीं खड़ी रही। उसे मेरी इन बातों का उसे कतई बुरा नहीं लग रहा था और मैं भी तो उसे बातों में लगाए रखना चाहता था। मैंने बात का विषय बदलने के लिहाज़ से पूछा- गौरी तुमने तो बताया ही नहीं?
“हट!”
“क्या हट?”
“मुझे ऐसी बातों से शलम आती है?”
“अरे बाबा मैं तुम्हारी सु-सु की नहीं … कोई और बात पूछ रहा हूँ?”
“त्या?” उसने आश्चर्य से मेरी और देखा।
“वो मधुर के साथ तुम उस दिन बाज़ार गयी थी तो क्या-क्या खरीदा?”
“ओह … अच्छा वो …?”
“हाँ?
“तपड़े और तिताबें खरीदे” (कपड़े और किताबें खरीदे)
“क्या-क्या लिया पूरी बात बताओ ना?”
“दो सूट, एक जीन पैंट-टॉप, जूते, चप्पल औल दो जुलाब जोड़ी, त्लीम, बैंगल्स, एत लंगीन चश्मा औल एत पायल ती जोड़ी।

कमाल है? मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी साली कंजूस मधुमक्खी एक पुराना फटा कपड़ा किसी को नहीं देती गौरी के ऊपर इस तरह मेहरबान कैसे हो गयी है?

“अरे वाह! तुम्हारे तो मज़े हो गये? लगता है मधु तुम्हारे ऊपर बहुत ही मेहरबान हो गयी है?”
“हाँ, दीदी मुझे बहुत प्याल तलती हैं.” गौरी हँसने लगी थी।
“हाँ, यह तो मुझे भी मालूम है.”

“पता है दीदी त्या बोलती है?” उसने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए कहा।
“क्या?” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
“वो बोलती हैं : मेरा बस चले तो जिंदगी भर तुम्हें यहीं रख लूँ.”

मैं तो इस फ़िकरे का मतलब कई देर तक ही नहीं अलबत्ता कई दिनों तक बाद में भी सोचता रहा।

“गौरी देखो मधुर ने तुम्हें इतने चीजें और कपड़े दिलवाए और तुमने तो हमें पहनकर भी नहीं दिखाए?” मैंने उलाहना देते हुए कहा।
“वो सब मैं दीदी ते जनम दिन पल पहनूँगी.”
“ओह … पर उसमें तो एक महीना बाकी है.”
“हओ”

“गौरी वैसे जीन पैंट और टॉप में तुम बहुत खूबसूरत लगोगी.” गौरी के चहरे पर लंबी मुस्कान फ़ैल गयी।
“तुम ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ देखती हो ना?”
“हओ … वो तो मैं तभी मिस नहीं कलती हूँ? आपने त्यों पूछा?”
“उसमें भिड़े की जो लड़की है ना? पता नहीं क्या नाम है?”
“उसता नाम सोनू है.” गौरी जल्दी से बोल पड़ी।

“पता है उसे देखकर मेरा मन क्या करता है?”
“त्या?”
“इसको खूँटी से लटकाकर इसकी टांगें पकड़कर खींच कर लम्बा थोड़ा लम्बा कर दूं?”
“हा.. हा … हा … वो बेचाली तो मल ही जायेगी?”
“अरे नहीं यह थोड़ी लम्बी होकर बिल्कुल तुम्हारी तरह बहुत ही खूबसूरत लगेगी.”

सोनू के साथ अपनी तुलना सुनकर गौरी को शायद अच्छा लगा रहा था इसीलिए वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

“एक बात और भी है?”
गौरी अपनी सुन्दरता के ख्यालों मे डूबी हुयी थी। वह कुछ बोली तो नहीं पर उसने रसीली मुस्कान के साथ मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।
“गौरी सच कहता हूँ तुम अगर जीन पैंट पहन लो तो बिल्कुल वैसी ही खूबसूरत लगोगी.”

ईसस्स्स … अब तो गौरी जैसे रूपगर्विता ही बन गयी थी वह मंद-मंद मुस्कुराए जा रही थी। उसके चहरे पर जैसे लाली सी बिखर गयी थी। उसकी तेज होती साँसों के साथ उसके ऊपर नीचे होते उरोजों को देख कर उसके दिल की धड़कन का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता था।

उसने कुछ सोचते हुए कहा- आपतो एत बात बताऊं?
“क्या?”
“आप दीदी से तो नहीं तहोगे ना?”
“किच्च …” मैंने भी गौरी के अंदाज़ में ना करने के अंदाज़ में अपनी जीभ से ‘किच्च’ की आवाज़ निकालते हुए कहा “देखो! तुम भी हमारी सारी बातें मधुर को थोड़े ही बताती तो फिर मैं भला कैसे बता सकता हूँ? बोलो?”
“फिल ठीत है.”

वो थोड़ा सा रुकी और फिर कुछ सोचते हुए बोली- दीदी ने तल मुझे साड़ी पहनना सिखाया था.
गौरी अब थोड़ा लजा सी रही थी।
“ओए होये … क्या बात है? जरूर लाल रंग की होगी?”
“आपतो तैसे पता? दीदी ने बताया?”
“अरे नहीं! मैंने तो अंदाज़ा ही लगाया है?”
“हूँ”
“गौरी तुम तो उसमें बहुत ही खूबसूरत लगी होगी?”

“हओ … पता है दीदी ने त्या बोला?”
“क्या?”
वो बोली- ‘तुम तो इस साड़ी में पूरी दुल्हन सी लग रही हो.’ फिर उन्होने मेले गालों पल ताजल ता टीता लगाते हुए तहा ‘गौरी तुम बहुत ही मासूम और सुंदर हो तिसी ती नज़र ना लग जाए!’

“हाँ गौरी, यह बात तो सोलह आने सच है। तुम सुंदर ही नहीं बहुत हसीन और खूबसूरत भी हो.” बेचारी गौरी के पास अब रूपगर्विता मुस्कान के सिवा और क्या बचा था।

मैंने बातों का सिलसिला जारी रखते हुए कहा- गौरी, तुमने कोई सैल्फी ली या नहीं?
“मेले पास मोबाइल थोड़े ही है तैसे लेती? हाँ दीदी ने अपने साथ मेली 4-5 सैल्फी जलूल ली थी.”
“हूँ” ये साली मधुर भी कई बातें बताती ही नहीं है।

अचानक मेरे दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया ऐसे आया जैसे किसी हसीन कन्या को देखकर लंड उछलकर कच्छे में खड़ा हो कर सलाम बोलने लग जाता है। क्यों ना गौरी को कोई पुराना मोबाइल दे दिया जाए। फिर तो मैं उसे अपनी सैल्फी लेना और वाट्स-एप्प चलाना भी सिखा दूंगा। फिर तो मज़े से वह और भी बहुत कुछ देख और दिखा सकती है। मैंने और मधुर ने पिछले साल 4जी सेट ले लिया था तो पुराने मोबाइल तो बेकार ही पड़े हैं। चलो आज रात को किसी बहाने से मधुर को बोलता हूँ गौरी को कोई पुराना मोबाइल दे दे।

“गौरी एक बात तो है?”
“त्या?”
“तुम्हारी शादी जिसके साथ होगी वो कितना भाग्यशाली होगा. लगता है उसने इस जन्म में या पिछले जन्म में जरूर लाख मोती दान किए होंगे.” कहकर मैं हँसने लगा।
अब गौरी भी जोर-जोर से हँसने लगी थी। मैं यही तो चाहता था कि उसे अपनी खूबसूरती पर नाज़ हो जाए।
गौरी असमंजस भरी निगाहों से मुझे ताकती रही। उसे कोई जवाब जैसे सूझ ही नहीं रहा था।

“पता नहीं वह भाग्यशाली कौन होगा? काश हमारी भी किस्मत ऐसी होती?”
“तैसी?”
“तुम्हारे जैसी?”
गौरी कुछ नहीं बोली। वो कुछ सोचने लगी थी। पता नहीं गौरी को कुछ समझ आया या नहीं पर इतना तो तय है उसे मेरी इन बातों से कतई बुरा नहीं लग रहा था अलबत्ता वो मेरे साथ और बातें करने के लिए बेजार (उत्सुक) नज़र आ रही थी।

“पल दीदी तो खुद इतनी सुन्दल हैं। आप भी तो बड़ी तिस्मत वाले हो? फिल आप ऐसा त्यों बोलते हो?” गौरी ने अचानक कई सवाल कर दिए थे। साली दिखने में लॉल लगती है पर इन मामलों में पूरी एलीबाई है। कोई बात नहीं देखते हैं।
“हाँ … मधुर भी तुम्हारी तरह सुंदर तो है।”
“दीदी ने आपते बाले में भी एत बात बताई थी.” उसने रहस्यमय ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।

जिस अंदाज़ में वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी मुझे लगा कहीं मधुर ने कुछ गड़बड़ तो नहीं कर दी? मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था।
हे भगवान! कहीं फिर से लौड़े तो नहीं लग गये?
“क … क्या बताया?” मैंने हकलाते से पूछा।
मेरी इस हालत पर अब गौरी मज़े ले रही थी।

इतने में गेट पर मधुर के आने की आहट सुनाई दी। गौरी दौड़कर रसोई में भाग गयी और मैं जल्दी से कपड़े बदलने बाथरूम में। भेनचोद ये मधुमक्खी (मधुर) भी खलनायक की तरह हमेशा गलत मौके पर ही एंट्री मारती है।

मधुर आज खुश नज़र आ रही थी। मुझे लगता है आज मधुर ने खूब ठुमके लगाए होंगे। खुले बाल और लाल रंग की नाभिदर्शना साड़ी … उफफ्फ … पता नहीं गौरी को यही साड़ी पहनाई थी या कोई दूसरी पर कुछ भी कहो मधुर इस समय बाजीराव की मस्तानी ही लग रही थी। मधुर रसोई में घुस गयी। वो शायद गौरी को रात के खाने के बारे में समझा रही थी।

मैं हाथ मुँह धोकर कपड़े बदलकर बाहर आकर टीवी देखने लगा। आज शनिवार था तो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ तो आने वाला था नहीं मैं कॉमेडी शो देखने लग गया।

यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे.
[email protected]