अन्तर्वासना के सभी फैंस को नमस्कार। मेरी पहली कहानी सर ने मुझे कली से फूल बनाया को जो प्यार आप सबने दिया उसके लिए आप सब का आभार. आप सभी के बहुत सारे कमेंट्स और ईमेल प्राप्त हुए. आप सबके विचार जानकर मुझे बड़ी ख़ुशी हुई.
मैंने अपनी पूर्व की कहानी का लिंक दिया है, जो दोस्त मेरी जवानी से परिचित न हों, वे प्लीज़ मेरी इस लिंक को खोल कर मुझसे परिचित हो लें. तो मुझसे अब आप परिचित ही हो चुके होगे.
जैसे कि मैंने बताया था कि कैसे विशाल सर ने मेरी मस्त रसीली कुंवारी चूत को फाड़ कर मुझे कच्ची कली से फूल बना दिया था. विशाल सर से कई बार चुदने के बाद मेरी चुदास बढ़ती ही गई. मेरी कामुक जवानी को मर्द के लंड का चस्का लग चुका था. पहले मेरी इमेज एक अच्छी लड़की के रूप की थी.
पर कहते हैं ना इश्क और चोरी चोरी ज्यादा देर छुप नहीं पाते. इधर विशाल सर से कई बार चुदने के बाद मेरे जिस्म में तेज़ी से बदलाव आने लगे. मेरी छातियां और विकसित होने लगीं. लंड चूत में डलवाने के बाद से मेरी चाल भी बदल सी गई. सहेलियों को पता चल गया और उनके ज़रिये वहां खेलने वाले लड़कों को भी मेरे बारे में पता चल गया.
मैं ग्राउंड पर जाती, तो लड़के मुझे वासना भरी नज़रों से देखने लगे. पहले पहले मुझे बहुत शर्म सी आती, पर धीरे धीरे मेरी शर्म गायब होने लगी.
मेरे पीछे से कोई कहता कि गीता रानी मुझमें क्या कमी है, कभी मौका तो दे दो … हाय क्या मस्त माल लग रही हो.
अब उनकी बातें सुनकर मुझे मज़ा आने लगा. अपनी खूबसूरत जवानी पर नाज़ होने लगा.
अब मैं जब भी लड़कों के करीब से निकलती, तो सर झुकाने के बजाए क़ातिल नज़रों से उन्हें देख मुस्कुरा कर गांड मटकाती निकल जाती. शाम को बिना शर्म किए साइकिल स्टैंड की तरफ जाकर विशाल सर से मिलती और खूब चुम्मा चाटी करवाती.
एक दिन विशाल सर कॉलेज नहीं आए, न ही शाम को ग्राउंड आए. ऐसे कुछ दिन और बीत गए, विशाल सर ने कॉलेज आना बंद कर दिया. मेरा वासना के मारे बुरा हाल था. मैं गेम में आती और जब सहेलियां अंधेरे में अपने आशिकों से लिपट रही होतीं, तो मेरी चूत में खुजली मचने लगती.
एक दिन मुझे पता चला कि विशाल सर ने किसी दूसरे कॉलेज में बदली करवा ली है. मुझे बहुत गुस्सा आया कि मेरी जवानी में आग लगा कर मेरी जवानी से खेलने के बाद उन्होंने मुझसे मुँह मोड़ लिया. रात को विशाल सर के लंड को याद कर करके मैं अपनी चूत को रगड़ती, अपने रसीले चूचों को अपने हाथों से मसलती.
फिर मैंने सोच लिया कि क्या वही एक मर्द रह गया है क्या इस दुनिया में, अभी तो मेरी जवानी चढ़ी है, अभी तो इसने और उफान पकड़ना है. कई लड़के मुझ पर मरते थे. उनमें से एक था दिलावर. उसका नाम तो सुभाष सिंह था, पर सब उसको दिलावर कहते थे. वो मुझसे सीनियर था औऱ लड़कों की हॉकी टीम का चोटी का खिलाड़ी था, पर वो एक नंबर का हरामी था. कई लड़कियों का रस चख चुका था.
दिलावर कुछ दिनों ने मेरे पीछे भी लगा था, उसको मालूम था कि मेरी चूत इन दिनों प्यासी है. उसको ये भी मालूम था कि विशाल सर अब नहीं हैं और वो मेरी जवानी का रस चखने की फिराक में था.
अगले दिन से मैंने भी दिलावर को लाइन देनी शुरू कर दी. दिलावर मेरे करीब आने लगा. वो किसी ना किसी बहाने मुझसे बात करता. एक दिन में औऱ मेरी साथी ख़िलाड़नें ड्रैग फ्लिक की प्रैक्टिस कर रही थीं. उस वक्त थोड़ा थोड़ा अंधेरा हो रहा था. बस हम सभी मैदान छोड़ने ही वाली थीं कि दिलावर हमारी तरफ आया. वो हमको ड्रैग फ्लिक सिखाने के बहाने मेरे करीब आ गया. उसने पता नहीं क्या इशारा किया कि सभी लड़कियां बोलीं ‘ओके गीता … सुबह मिलेंगे.’ ये कह कर वे सब वहां से निकल गईं.
दिलावर मेरे पीछे खड़ा होकर बोला- गीता, ऐसे स्टिक पकड़ा करो.
उसने मेरे पीछे से हाथ आगे लिया और स्टिक सैट की. मैं एक तरह से अभी दिलावर की बांहों में थी. उसके लंड वाला एरिया मेरी गांड से घिसने लगा था.
मेरे हाथों पर हाथ रखकर उसने कहा- गीता तुम बहुत खूबसूरत हो, क्या मैं तुमसे दोस्ती कर सकता हूं.
उसने एक तरह से बहाने से मुझे बांहों में भर रखा था. उसके होंठ मेरी गर्दन के बहुत करीब थे. उसकी सांसों को महसूस कर सकती थी.
दिलावर- बोलो गीता.
मैंने चुप्पी तोड़ी और धीरे से कहा- कोई देख लेगा … छोड़िये.
उसने मेरी गर्दन पर होंठ रगड़ते हुए कहा- मेरी रानी, आस-पास कोई भी नहीं है.
उसके होंठ लगते मेरा बदन कांप सा गया, जिस्म में हलचल सी होने लगी, मुँह से मीठी सीत्कार निकल गई.
जिसे सुन वो समझ गया कि मैं भी गर्म सी होने लगी हूं. उसने स्टिक छोड़ी और मेरी कलाई पकड़ कर मैदान से बाहर ले गया. वहां एक दरख़्त के पीछे ले जाकर उसने मुझे कसकर बांहों में भर लिया. फिर उस दरख्त के तने से मुझे लगाकर मेरे होंठ में होंठ लगा दिए.
मैं अभी कुछ सम्भलती कि तभी उसने अपना एक हाथ मेरी टी-शर्ट में घुसा कर मेरे चुचों को दबा दिया. मेरी टी-शर्ट उठाई और नीचे बैठ मेरी नाभि को चूम लिया. उसकी इस हरकत ने मुझे पागल कर दिया. उसने मेरी ब्रा को साइड कर मेरी चूची को मुँह में भर लिया. उसने मेरी चूची चूसते हुए मेरे निप्पल पर अपनी ज़ुबान फेरी, तो मैं आंखें मूंद कर उसके बालों में हाथ फेरने लगी और मीठी मीठी सिसकारियां भरने लगी.
वो खड़ा हुआ और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. मेरी चूत भी अब पानी छोड़ने लगी थी. पर मैं खुद पर काबू कर झटके से उससे अलग हुई और किट उठा कर वहां से उसको तड़फता छोड़ भाग आई.
घर आकर मैं रह रह कर दिलावर की हरकतों को याद कर रोमांचित होती रही.
अगले दिन शाम को गेम के बाद दिलावर को आते देख वहां से जल्दी से साईकल स्टैंड की तरफ चल पड़ी. मैं साइकिल पर किट रख कर निकलने लगी, तभी दिलावर आया और बोला- गीता रानी इतना मत तड़पाओ.
उसने मुझे रोक दिया और साइकिल एक तरफ लगा कर मुझे बांहों में भर लिया और मुझे चूमने लगा.
मैंने कहा- डियर मैं लेट हो जाऊँगी.
उसने कहा- आज थोड़ा सा वक्त मुझे दे दो.
उसने चूमते चूमते मेरा हाथ अपने लंड पर टिका दिया. मैंने हाथ पीछे करने की कोशिश की, तो उसने मुझे चूमते हुए लंड बाहर निकाल दिया. उसका मूसल लंड देख कर मेरी चूत में आग सी लग गई. दिलावर का लंड विशाल सर से भी बड़ा लंड था.
वो लंड हिलाते हुए बोला- जान, एक बार तो इसको प्यार करती जाओ.
मैंने- डियर, यह सही जगह नहीं है, पकड़े जाएंगे.
वो बोला- डरो मत, मेरे होते हुए कुछ नहीं होगा.
मैं- नहीं … मुझे यहां ऐसा नहीं करना.
वो बोला- ज्यादा नहीं … बस एक बार इसको प्यार तो करो.
उसके ज़ोर देने पर मैंने उसके लंड को पकड़ लिया.
वो बोला- तुम बैठ जाओ. मैं इधर उधर का ख्याल रखता हूं.
मैंने बैठ कर उसके लंड पर ज़ुबान फेरी, तो वो पागल हो गया. उसने मेरे सर को दबाया और लंड मुँह में घुसा दिया. उसका लंड चूसते ही मुझे मज़ा आने लगा. वो जोश में आता गया और खड़ा होकर मेरा लोवर उतारने लगा.
मैंने उसको रोक दिया- नहीं जान, यहां नहीं.
वो बोला- ठीक है मेरी गीता रानी … तो फिर कहाँ?
मैं- यह तुम देखो दिलावर.
वो बोला- चार दिन बाद टूर्नामेंट शुरू हो रहा है, कुछ मैच शाम को भी हुआ करेंगे. तुम भी तो जाओगी उसमें?
मैंने कहा- हां, वहां तो हम सब जाएंगे ही.
वो बोला- तो फिर ठीक है, मैं वहां इंतज़ाम कर दूंगा.
मैं- ठीक है मेरे राजा … पर सेफ जगह देखना.
मैं लंड चूस कर घर चली गई. पूरी रात दिलावर के लंड का स्वाद मेरे मुँह में महसूस होता रहा था. मैंने अपनी चूत को रगड़ रगड़ पानी निकाल कर खुद को शांत किया.
अगले दिन मैं फिर दिलावर से मिली और हल्का फुल्का प्यार करके हम अलग हो गए.
दिलावर मेरी चूत के लिए … और मैं उसके लंड के लिए तड़प रही थी. ऐसे करते करते दिन निकले और चार दिन बाद हम लोग अमृतसर के एक कॉलेज में गए. कॉलेज के एक साइड के कुछ कमरे लड़कियों को और दूसरी तरफ के कमरे लड़कों के लिए तैयार थे. उनमें हम लोग रुके.
शाम को मैच खेलने के बाद सभी कमरों की तरफ चल पड़े. दिलावर और मैं साईड में होकर चलने लगे.
दिलावर बोला- गीता रानी, रात को मंजू के साथ तैयार रहना, उसके पास फ़ोन है. मैं उस पर कॉल कर दूँगा.
सर्दियों की रात थी, खाना खा कर सभी सो गए. तभी दिलावर की कॉल आई.
मंजू बोली- उठ गीता जल्दी … और चल चुपके से.
हम दोनों निकली. मैं उसके साथ चलने लगी. उसको प्लान का पता था.
अंधेरे का फायदा उठा हम दोनों सहेलियां मैदान वाले गेट से कॉलेज से बाहर निकल आई जहां दिलावर और मंजू का आशिक युवराज खड़े थे.
हम सभी थोड़ा आगे गए, जहाँ एक कार खड़ी थी. दिलावर बोला- इसमें बैठ जाओ.
एक कोई तीसरा लड़का कार चलाने लगा और दस मिनट बाद हम एक घर पर पहुंच गए.
उस लड़के ने दरवाजा खोला और हम सभी अन्दर आ गए.
दिलावर बोला- यह प्रिंस है, हमारा दोस्त है, यह इसका घर है.
सभी बैठ गए.
युवराज बोला- प्रिंस, मूड बनवा दे यार … सर्दी भी है.
प्रिंस मुझे और मंजू को गौर से देखता हुआ बोला- बिल्कुल … क्यों नहीं.
उसने व्हिस्की की बोतल निकाली और पांच गिलास लेकर आया.
मैंने कहा- मेरा गिलास मत रखना.
मंजू बोली- ओह गीता … कम ऑन यार.
सभी के ज़ोर देने पर मैंने भी एक पैग लगा लिया और दिलावर मेरे पास बैठ गई. युवराज और मंजू भी आस पास बैठ गए.
प्रिंस बोला- मेरा क्या होगा?
वो मुस्कुराते हुए पैग पीने लगा.
मेरा तो सर घूमने लगा. दिलावर ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और चूमने लगा. उधर मंजू और युवी भी लग गए.
प्रिंस बोला- तुम लोग कमरों में जा सकते हो.
दिलावर और मैं दोनों एक कमरे में चले गए. कमरे में जाते ही दिलावर ने मुझे बांहों में भरकर मुझे खूब चूमा. उसने मेरा अपर उतार फेंका, काली ब्रा में कैद मेरी जवानी को देख उसका लोअर तम्बू बन गया. उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और अपने कपड़े उतार मेरे ऊपर आकर मेरी ब्रा भी उतार फेंकी.
मैंने उसके लंड को पकड़ लिया. दारू का नशा चढ़ गया था और दूसरी प्यासी चूत की खुजली भी बढ़ गई थी, जिसको कई दिनों से लंड की ज़रूरत थी.
उसने मेरी पैंटी में हाथ घुसाया और मेरी चूत को छुआ, मैं चुदास से तड़पने लगी.
दिलावर बोला- कितनी कोमल चूत है तेरी.
तभी प्रिंस ने दरवाजा खोल दिया. मैंने उसकी तरफ देखा तो बोला- सॉरी सॉरी … मैं तो पैग देने आया था.
दिलावर बोला- कोई बात नहीं … आओ उधर.
उसने दिलावर को पैग पकड़ाया.
नशे की वजह से मैंने भी शर्म त्याग दी थी. दिलावर ने उसके सामने मेरी चड्डी उतार दी.
प्रिंस मेरी चूत देख कर बोला- उफ्फ अमेज़िंग.
दिलावर ने मेरे होंठों पर गिलास लगा दिया. मुझे पिला कर वो अपना पैग गटक गया.
फिर प्रिंस के सामने ही दिलावर मेरी चूत पर होंठ रख कर बोला- दारू के बाद मुँह करारा हो गया.
प्रिंस हमें देखता हुआ अपना लंड खुजलाते हुए बोला- दिलावर, मेरी बारी कब आएगी?
मैंने हैरानी से उसको देखा और बोली- यह सब क्या है?
मेरा सर घूम रहा था.
दिलावर ने चूत चाटते हुए कहा- जान अब उसका घर है, तुम भी कौन सा पहली बार चुद रही हो. ये तो तुम्हारे लिए एक और मजा ही है.
मुझे भी कोई परेशानी नहीं थी. कौन सा मुझे दिलावर से इश्क करना था. मुझे तो लंड से मतलब था. मैं बेफिक्र हो गई.
उसने मेरी चूत को इतनी ज़ोर से चाटा कि मैं सब भूल गई. मैं चूतड़ उठा उठा चूत चटवाने लगी. प्रिंस ने लंड निकाल मेरे होंठों पर रख दिया. पहले पहल मैंने थोड़ा विरोध किया, पर उस हालत में थी, जहां से मेरा विरोध बेकार था.
वासना की आग में मैं जल रही थी. मैंने प्रिंस के लंड को आखिरकार अपने मुँह में भर ही लिया और लंड चूसने लगी. कुछ देर चूत चूसने के बाद दिलावर ने उठकर लंड मेरे मुँह में डाल दिया औऱ प्रिंस ने पहले लंड मेरी चूत पर रख कर रगड़ा.
तभी मंजू युवी भी नंगे इसी कमरे में आ गए.
मंजू बोली- वाओ … दो दो लंड से खेल रही हो … मेरी लाड़ो.
प्रिंस के लंड को पकड़ कर मंजू बोली- अमेज़िंग पाइप!
प्रिंस ने मंजू की चूची दबाते हुए लंड को मेरी चूत में डालना शुरू किया. मैं उसके बड़े लंड को झेलने लगी. उसका पूरा लंड मेरी चूत में घुस गया. फिर मैं दिलावर के लंड को चूसती हुई प्रिंस के लंड के वार के मजे लेने लगी. उधर युवी ने मंजू की चूत में लंड घुसेड़ दिया.
दस मिनट बाद मैं झड़ने के करीब थी, नीचे से चूतड़ उठा उठा चुदवाते हुए मैं झड़ने लगी और मेरी चूत की गर्मी से कुछ देर बाद प्रिंस ने चूत में पिचकारी मार दी. हम दोनों ने एक दूसरे को कसते हुए लिपट कर चरम सीमा को पूरा एन्जॉय किया.
फिर उसने लंड निकाल मेरे मुँह में घुसा दिया, जिसको मैंने चाट चाट साफ कर दिया.
अब दिलावर ने आकर मेरी चूत पर लंड टिका दिया. उसने ज़ोर से झटका मारा और मुझे चोदने लगा.
दिलावर लंड ठोकते हुए बोला- प्रिंस, तुमने चूत गीली करके ढीली कर दी है.
मैं हंस पड़ी और मैंने अपनी टांगें कस लीं.
दिलावर बोला- ऐसे नहीं गीता … तुम घोड़ी बन जाओ.
मैं राजी थी.
उसने मुझे झटके में पलटा और में भी चुदास कुतिया की तरह गांड उसके सामने करके घोड़ी बन गई.
उसने लंड मेरी गांड पर टिकाया, तो मैंने कहा- यह क्या?
वो बोला- तुझे नया अनुभव देता हूँ.
उसने थूक से लंड गीला करके ज़ोर से झटका दे दिया. मेरी गांड फट गई और मैं चीख उठी- उइ आह … निकालो प्लीज़ … उम्म्ह… अहह… हय… याह…
पर उस दरिंदे ने रहम नहीं किया और मेरी गांड को ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा. कुछ देर बाद मुझे भी मज़ा आने लगा. मैं अपनी चूत के दाने को रगड़ने लगी और साथ गांड चुदवाती गई.
उस रात उस घर में सुबह 4 बजे तक बेशरमी से चुदाई का तांडव चला. एक रंडी की तरह तीनों ने मुझे और मंजू को बारी बारी से चोदा और अंधेरे में सुबह वापस कॉलेज पहुंच गए.
यह थी मेरी पहली बार मदमस्त गांड चुदाई की कहानी. जल्दी ही मैं अपनी अगली चुदाई की कहानी आपके सामने रखूंगी. तब तक लंड हिला लेना … बाय.