अस्पताल में भाभी की चूत का रस निकाला

मैं औरंगाबाद, महाराष्ट्र का रहने वाला हूँ और एक अच्छे सुदृढ़ शरीर का मालिक हूँ. मेरी हाइट 5’10” है और शाकाहारी होने के बावज़ूद मेरा शरीर गठिला और किसी भी भाभी के योनि प्रदेश में आग लगाने के लिए काफी है.

यह हॉस्पिटल सेक्स विद भाभी की घटना मेरे दूर के ममेरे भाई की पत्नी के साथ घटित हुई थी.
भाई भले ही दूर का रिश्ता रखता था पर हम उम्र होने के कारण और एक ही गाँव में रहने के कारण हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी.
हमारी शादियां भी आगे पीछे ही हुई और हमने हनीमून भी साथ में ही मनाया.

इस भाई की पत्नी का नाम था रचना.
सांवली सलोनी सी सूरत, अच्छे नैन नक्श और उसके चेहरे की सबसे खूबसूरत बात थी उसके कामुक होंठ.

मुस्कान भी ऐसा ग़ज़ब थी कि मेरे मन के तार झनझना उठते.
मेरा लंड कसमसा जाता और शरीर का रोम रोम सिहर उठता.
उसको अपने बाहों में भर लेने की तमन्ना फनफना उठती.

मेरी पत्नी और उसमें बहुत अच्छी दोस्ती हो जाने के कारण मैं ऐसा कुछ कर नहीं सकता था और हमारा रिश्ता भी होने के कारण मैं ये बात अपने भाई को पता चलने से डरता भी था.

मैं अब काम के सिलसिले में शहर आ गया और धीरे धीरे काम में व्यस्त होता चला गया.

इधर पत्नी के साथ मेरा सेक्स जारी था और प्रकृति ने अपना काम करते हुए मेरा और उधर मेरे भाई का परिवार भी बढ़ा दिया था.

अचानक एक दिन एक दुखी कर देने वाली घटना हुई.
मेरा यह भाई विनीत (उसका बदला हुआ नाम) शराब के नशे में एक गाड़ी से टकरा गया.

बीते दिनों उसे बीवी पर बेवजह शक करने की और ठीक से सेक्स ना कर पाने के कारण चिढ़ में शराब की लत लग गई थी.
रचना ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की तब भी बात नहीं बनी.

मैं एक बार गाँव के एक कार्यक्रम में उसे मिला.
शाम में हम दोनों बाहर खाना खाने गए तब मैंने बात छेड़ी- विनीत, तू शराब क्यों पीने लगा है इतनी? क्या बात है? क्या तुझे रचना की भी फिक्र नहीं है?
विनीत शराब के नशे में था, मेरे मुँह से अपनी पत्नी का नाम सुन कर जैसे उस पर बिजली गिरी- हाँ हाँ बड़ी फिक्र हो रही है तुझे उसकी … मालूम है मुझे कैसे घूरता है तू उसको! पता नहीं क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच!

यह सुन कर मुझे काटो तो खून नहीं.
हालांकि मैं रचना को देखता तो था पर नैन चोदन से उसके शरीर को छूने की बस ख्वाहिश रखता था.

कभी जब बीवी साथ ना हो तब उसके नाम की मुठ मारता था और कभी खुद की बीवी को चोदते वक़्त रचना की कल्पना कर लिया करता था.

पर इस इल्ज़ाम से मैं तिलमिला गया.
मैंने भी उसे गालियां दी कहा- हराम के जने, मुझ पर शक करता है, अपने भाई पर? अपनी शक्ल मत दिखाना मुझे दुबारा.
और मैं वहां से चल दिया.

पर दोस्तो, आप यह बात महसूस करते ही होंगे कि जो काम आपको अवांछित लगता है कोई उस बात का जिक्र आपसे कर दे तो आप का मन फिर उसी तरफ जाने लगता है. आप फिर से वही बात सोचने लग जाते हैं.

अब दिन रात रचना का ख्याल मेरे मन में आने लगा.
मैं कैसे उसको चोद रहा हू, वह कैसे मेरे नीचे दबी पड़ी है और कैसे कराह रही है.
बस यही बातें मेरे मन में आने लगी.

‘अब मेरे भाई को उसके लगाए गलत आरोप पर मज़ा चखा दूँ.’ यह बात मेरे मन में बस गई.

और मेरे इंतजार की घड़ी समाप्त हुई.
हमारा मिलन हुआ लेकिन बुरी परिस्थितियों में!

मेरा और विनीत का झगड़ा होने के 3-4 दिन के बाद ही रचना का फोन आया.
मुझसे कहासुनी होने के बाद विनीत ने ज्यादा शराब पी ली थी और दो दिन वहां के डॉक्टर के पास एडमिट करने पर भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ा था.

रचना उसे मेरे शहर के एक बड़े दवाखाने में ले कर आयी थी और एडमिट कराने की कोशिश कर रही थी.

मैं सिहर उठा.
मेरा कितना भी झगड़ा हुआ हो, था तो वो मेरा भाई ही!
मैं तुरंत वहां पहुंचा.

बाकी सारी औपचारिकताएं करने के बाद विनीत को रूम में ले जाने के लिए ले गए.

मैंने कहा- डॉक्टर साहब, आप इन्हें स्पेशल कमरे में ही रखें. जो भी खर्चा है मैं दे दूँगा.
रचना मेरे पास देख रही थी.

फिर शाम हुई.
इस अस्पताल में नीचे ही कैन्टीन थी.
विनीत सो रहा था.

मैंने रचना से कहा- आओ कुछ खा लेते हैं. फिर मैं घर से रात का दूध वगैरा लेकर आता हूँ.

फिर हम कैन्टीन के तरफ गए.
रचना गुमसुम ही थी.
“क्या हुआ, इतना परेशान क्यों हो रही हो? सब ठीक हो जाएगा.”

कैन्टीन में मैंने साथ में बैठ कर पूरा हाल जाना.

विनीत के बड़बोलेपन से परिवार के बाकी सब सदस्य नाराज हो गए थे. उसकी शराब की आदत ने उसका परिवार बिखर ही गया था. बिजनेस में भी नुकसान उठाना पड़ रहा था. चाचाजी के लड़के ने भागीदारी के दुकान से पैसे देना बंद कर दिया था.

“मैं देखता हूँ सब ठीक हो जाएगा.” ये कह कर मैंने उसके हाथ पर हाथ रख दिया- रचना, अब इन बुरे दिनों को याद मत करो. उसके साथ बिताए अच्छे दिन के बारे में सोचो.

मुझे लगा कि वह अपना हाथ छुड़ा लेगी.
पर उसने हाथ वैसे ही रहने दिया.

वह मेरे कंधे पर सर रख के रोने लगी.
मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा.
उस वक़्त मेरे मन में कोई भी दुष्ट विचार नहीं था.

अचानक उसने उसका दूसरा हाथ मेरे जांघों पर रख दिया.
मेरा लंड तन गया. शायद उसे भी मेरी नजदीकी की जरूरत थी.

हम कुछ देर वहां वैसे ही बैठे रहे.

फिर हम उठे और मैंने उसको बाय किया.
रात में रोगी के पास किसी पुरुष का होना जरूरी था.

“मैं घर से कपड़े ले कर आता हूँ. साथ में और कुछ लाना है क्या ये बता देना.”
“नहीं सम्राट, मैं अकेली रुक जाती हूँ. सुबह जल्दी आ जाना.”

पर मैंने भाई की खराब हालत देख कर वैसा करना उचित नहीं समझा.

रात को पत्नी भी मेरे साथ आयी.
उसने रचना को घर चलने की जिद की पर रचना वहीं रुकना चाहती थी.

फिर थोड़ी देर बाद पत्नी चली गई.

मैंने कहा- रचना, इस कमरे में एक ही बेड है. मैं बाहर बरामदे में सो जाता हूँ.
कमरे के बाहर बरामदे में कुर्सियां और सोफ़े रखे हुए थे.

ग्यारह बजे मैं कमरे के बाहर रखे सोफ़े पर सोने की कोशिश करने लगा.
रचना को गुड नाइट कह कर और उसकी आँखों में झांककर मैंने उसे एक हल्की सी आंख मारी.

मुझे नींद नहीं आ रही थी.

तो मैं सोफ़े पर लेटे लेटे अन्तर्वासना की साइट खोली और एक कहानी पढ़ने लगा.
यहां की कहानियां हमें दुनिया भुला देती है.

बरामदा एक कोने में होने की वज़ह से रूम अटेंडेंट दूसरे कोने में था.
दिसंबर की ठंड से बचने के लिए मैंने चादर ओढ़ ली और कहानी पढ़ने लगा.

तभी कमरे से रचना बाहर आयी.
मैंने पूछा- क्या हुआ, नींद नहीं आ रही है क्या?
उसने हाँ में सिर हिलाया.

“बैठ जाओ यहां थोड़ी देर.”
उसने कमरे में झांका; विनीत सो रहा था.

रचना मेरे पास बैठ गयी.

रात के बारह बज रहे थे. आजू बाजू के कमरे खाली होने की वज़ह से सिर्फ भेड़े हुए थे.
अंधेरा होने की वज़ह से कोई हलचल नजर नहीं आ रही थी.

वह बोली- थोड़ा नीचे खिसको, मैं थोड़ी देर बैठती हूँ.
मैं थोड़ा सरक गया.
रचना मेरे पास सट कर बैठ गयी.

उसके घुटने मेरे सिर के पास थे.
मैंने थोड़े हाथ ऊपर किए तो अनायास उसके छाती से मेरे हाथ टकराए.

मैंने हाथ वहीं रहने दिए.
उसके धड़कते दिल को मैं महसूस करने लगा.
मैंने उसके गोद में अपना सिर रख दिया.

वह थोड़ा झुकी.
उसकी छाती के उभार अब मेरे चेहरे को छू रहे थे.
मैंने उसके गर्दन को मेरी तरफ हाथ से खींचा और उसके लरजते होंठों पर अपने होंठ टिका दिए.

उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे होंठों को ऐसे चूसने लगी जैसे कोई गोली चूस रहा हो.
मैंने भी उसके होंठ अपने मुँह में ले लिए और बेतहाशा रसपान करने लगा.

अपनी जीभ मैंने उसके मुँह में घुसा दी और उसने भी जीभ को चूसना शुरू किया.

अब हम दोनों गर्म होने लगे.
मैंने धीरे धीरे उसकी छाती पर हाथ घुमाना शुरू किया, उसके भरे भरे आम जैसे गोले मेरे जैसे मर्द के हाथों दबने लगे.

तब मैंने अपना मुँह उल्टा किया और उसकी चूत को सूंघने की कोशिश करने लगा.
कस्तूरी के जैसी मदमाती सुगंध ली मैंने उसकी चूत की!

उसकी चूत मेरे लंड से मिलने को बेताब हो रही थी.

मैंने उसकी सलवार नीचे खिसकाने की कोशिश की.
वह थोड़ा ऊपर उठी तो उसकी सलवार नीचे सरक गई.

मैंने उसके पैंटी में हाथ डाला और उसके चूत के दाने को रगड़ दिया.
उधर उसके भी हाथ मेरे लोअर में लंड को खोज रहे थे.

अब मैंने उसको लेटने के लिए कहा और मैं उठ कर बैठ गया.

ठंडी हवा बदन में सिहरन पैदा कर रही थी और इस लड़की की चुदाई का ख्याल शरीर में गर्मी ला रहा था.

वह अब सोफ़े पे लेट गई और मैं उसका सिर गोदी में ले कर बैठा.

मेरा लंड तो जैसे उसके कान में घुस रहा था.
उसने मेरे लोअर के अगले हिस्से को टटोला और सांप को बाहर निकाला.
उसके गर्म होंठों से उसने मेरे लंड को अपने मुँह में लिया.
ऐसे सुड़क सुडक कर वो उसे चूसने लगी जैसे जन्मों की प्यासी हो.

मैं उसके चूसने का आनंद लेने लगा.
मेरी आंखें नशे में चूर हो रही थी और वह लपलपाती जीभ से मेरे लंड को खाए जा रही थी.
मैंने सोचा पता नहीं कबसे लंड का स्वाद नहीं चखा उसने.

अब मैं उसकी प्यासी चूत में अपने लंड को डालने के लिए बेताब हो रहा था.
मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड से उसे दूर किया.

मैं उठ कर जायजा लेने लगा कि कहाँ पर रचना की चूत मारी जाए.
एक कमरा जो खाली नजर आ रहा था, उसका दरवाजा मैंने धकेला तो वह खुल गया.

देखा तो कमरा खाली था.
अमूमन रोगी के लिए कमरे तैयार रखे जाते है और लॉन्ड्री भी साफ़ होती है.

मैं कमरा का अंदर से देख कर जायजा लिया और रचना को बाहर से उठा के अंदर ले गया.
अब हमारी प्यास बुझाने की बारी थी.

अंदर जाते ही मैंने उसके सारे कपड़े निकाल डाले और उसपर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा.
बरसों की प्यास बुझानी थी जो उसकी ललक मेरे मन में थी.

उसे भी मेरी गरज तो थी ही … वह उठी और मेरी बाहों में अपने आप को सौम्प दिया.
रचना मेरे होंठों को चूमने लगी और अपने दूध के लोटों को मेरी छाती पर दबाने लगी.

मैंने भी उसके नितंबों को सहलाना शुरू किया.
उसकी पानीदार हुई चूत को मेरी उँगलियों से छेड़ना शुरू किया.

अब वह झुकी और फिर से मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी.
उसे शायद मेरा लंड भा गया था.

पर और भी जरूरी था उसके चूत की आग को बुझाना!
मैंने उसके मुँह से अपने लंड को निकाला उसे घोड़ी बना के लपक के पेल दिया.

उसकी तो चीख निकल गई- मेरे दिल के सम्राट, कहाँ थे अब तक!

कुछ देर में ही वह बहक गई- अब मेरी जान ही ले लोगे क्या भोसड़ी के? आज मैं भी तो देखूँ तेरे लंड का दम … आह आ आ … आह … हाय हाय … मार ही डाला रे लंड वाले ने!

ऐसा कह कह कर वह मुझे उकसा रही थी और मैं भी घचाघच उसे पेल रहा था.

हॉस्पिटल सेक्स विद भाभी का यह दौर करीब 20 मिनट तक चला.
रचना की मुनिया ने पानी छोड़ दिया था और अब मेरे झटके उसे बर्दाश्त नहीं हो रहे थे.

मैं उसे अब भी पीना चाहता था पर उसकी आँखों का दर्द देख कर मैंने भी अपने शरीर को कड़क किया और उसकी चूत में पानी छोड़ दिया.

कुछ देर वैसे ही निढाल पड़े रहने के बाद मैं उठ कर बाहर सोफ़े पे चुपचाप जाकर लेट गया.

रचना भी अपने कपड़े ठीक कर के कमरे से बाहर निकली मेरे पास आ कर तृप्ति के भाव से मुझे चूमा और अंदर चली गयी.
लेकिन जाते जाते चुदाई का वायदा ले कर ही.