यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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बस उस दिन के बाद अपने घर पर मेरा ये लगभग रोज का ही नियम बन गया कि मैं रात में बिस्तर में नंगी हो जाती और अपनी टांगें ऊपर उठा कर घुटने मोड़ लेती और एक उंगली से अपनी चूत का दाना या मोती सहलाती और चरम आनन्द पा कर सो जाती.
फिर मुझे सेक्स सम्बन्धी विषयों की जानकारी ढूँढना अच्छा लगने लगा. मैं अक्सर डिक्शनरी में योनि, लिंग, सम्भोग, स्तन, शब्दों के पर्यायवाची खोजती जिनसे मुझे एक सुखद अनुभूति मिलती. vagina, cunt, penis, clitoris, fucking, boobs, चूत, लंड, चुदाई, जैसे अश्लील शब्द मुझे अत्यंत प्रिय लगने लगे थे. मुझे लण्ड शब्द विशेष प्रिय लगता क्योंकि इस शब्द की साउंड में, ध्वनि में एक विशेष शक्ति का भाव निहित लगता था; फिर मैंने समझा कि जिन शब्दों के अंत में ण्ड, आधा ण और ड होता है वे शब्द अत्यंत प्रभावशाली और होते ही हैं जैसे लण्ड, दण्ड, प्रचण्ड, खण्ड, घमण्ड, ब्रह्माण्ड, मार्तण्ड इत्यादि. एक बात और मैं अपनी कॉपी में चूत का चित्र बनाती लण्ड का चित्र बनाती, कभी चूत में लण्ड घुसा हुआ चित्र बनाती और फिर उसे एकटक देखती रहती या वो कागज़ अपनी चूत में रगड़ने लगती.
मैं रात में अपनी चूत का मोती सहलाती और सिसकारियां भर कर झड़ जाती. बॉयफ्रेंड बनाने या किसी से चुदने की चाहत तो मन में थी पर इतनी हिम्मत नहीं आयी थी कि मैं कुछ कर पाती.
इन्ही सब बातों के बीच मैंने ग्यारहवीं पास कर ली और बारहवीं कक्षा में आ गयी. इस साल बोर्ड के एग्जाम होने थे तो पढ़ाई का दबाव भी बढ़ने लगा था, मैं हमेशा ही फर्स्ट डिवीज़न पास होती आई थी तो मुझे अपना स्टेटस मेंटेन करने की भी फ़िक्र थी; पर इस निगोड़ी चूत का क्या करूं जो मुझे परेशान किये रहती थी, मेरी अटेंशन को बुक्स से हटा कर बुर की ओर धकेलती रहती थी. मैं जब भी पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करती तो मन सेक्स की ओर भटक जाता और मेरी चूत चूने लग जाती, पैंटी गीली होने लगती. मन करता कि बस आँखें बंद करके लेट जाऊं और अपना क्लाईटोरिस या मोती सहला लूं और झड़ जाऊं.
दिन यूं ही बीतते रहे, जुलाई में स्कूल शुरू हुए थे. अब अक्टूबर आ गया था. अगले महीने दीपावली थी. फिर पांच छः महीने बाद मेरे इंटरमीडिएट बोर्ड के एग्जाम्स थे. इधर मैं पढ़ाई में कोंसनट्रेट कर ही नहीं पा रही थी ठीक से. कई बार मन में विचार आता कि क्या यह कोई रोग है कोई बीमारी है जो मेरी चूत को चैन नहीं लेने देती है.
उन्हीं दिनों मेरे चेहरे पर भद्दे भद्दे मुहांसे उग आये.
मैंने डॉली से पूछा कि इन मुहांसों का कोई इलाज बता!
तो वो बोली- ये किसी दवाई से ठीक नहीं होते, इनका इलाज तो सिर्फ किसी मर्द का लण्ड ही कर सकता है तेरी चूत को फाड़ कर.
उसका यह जवाब सुनकर मैं कसमसा कर रह गयी. अब मैं कोई मर्द कहां से लाऊं? मैं तो इन चक्करों में कभी पड़ी ही नहीं. लेकिन अपने चेहरे से ज्यादा चिंता तो मुझे अपने बोर्ड के एक्जाम्स की, अपना स्टेटस बरकरार रखने की थी.
उसी साल दिवाली के कुछ ही दिन पहले की बात है या यूं कह लो कि दशहरे के कुछ ही दिन बाद की बात है कि मेरी एक क्लासमेट अमृता के साथ दुर्घटना घट गयी.
पहले मैं अमृता के बारे में शार्ट में बता दूं; अमृता पैसे वाले बड़े बाप की घमण्डी टाइप की लड़की थी, उसके कामुक स्वभाव से भी हम सब स्टूडेंट्स परिचित थे. वो जब देखो तब सेक्स की ही बातें करती थी और अपने बॉयफ्रेंड को लेकर डींगें मारा करती थी. वो बड़ी बेशर्मी से कहती कि वो चुद चुकी है और कहती थी कि जो मज़ा इस कच्ची उम्र में चुदने का है वो ज़िन्दगी में फिर कभी नहीं आने वाला.
तो अमृता के साथ हुआ ये कि उसके बॉयफ्रेंड ने उसे कहीं मिलने के लिए बुलाया और चुपचाप अपने दो दोस्तों को और बुला लिया और फिर उन तीनों ने उस बेचारी का सब जगह से वो हाल किया कि आप समझ ही सकते हैं. अमृता ने अपने बॉयफ्रेंड को प्रेमपत्र लिखे थे जिन्हें लेकर वो उसे धमकाता रहता था और मिलने के लिए बुलाता रहता था और वो और उसके दोस्त अमृता के बदन से खेलते रहते थे.
अंत में तंग आकर अमृता ने उन लोगों से मिलने जाना बंद कर दिया तो उसके बॉयफ्रेंड ने अमृता के प्रेम पत्र सबको दिखाने शुरू कर दिए. इससे अमृता की बहुत बदनामी हुई और उसने स्कूल आना ही बंद कर दिया.
फिर हमने सुना कि उसके पापा ने हमारे स्कूल से उसका नाम कटवा लिया और पैसों के दम पर अमृता का मिडटर्म एडमिशन किसी दूसरे शहर के स्कूल में करवा दिया.
ये सब देखने सुनने के बाद बॉयज की तरफ से मेरा मन खट्टा और भयभीत हो गया और मैं सभी लड़कों को डर और अविश्वास की नज़रों से देखने लगी और मन पक्का कर लिया कि मैं जीवन में कभी भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं बनाऊँगी और न ही कभी किसी लड़के से अन्तरंग दोस्ती करुँगी.
पर डॉली से मेरी दोस्ती चलती रही और मैं जब भी उसके घर जाती, हम दोनों उसके कमरे में बंद हो जाते और पूरे नंगे होकर एक दूसरे में अंगों से खेलते, चूत से चूत घिसते रगड़ते मुट्ठी में भर भर के भींचते.
हां, हमने इतना ख्याल जरूर रखा कि चूत के भीतर कभी कुछ नहीं घुसाया बस ऊपर ही ऊपर से मज़े लिए.
पर यह आनन्द कुछ ही देर का होता था; वापिस अपने घर आने के बाद एक दो दिन बाद मन फिर मचलने लगता.
इधर मेरे मुहांसे भी बढ़ रहे थे जिससे मुझे खुद अपना चेहरा देखने की इच्छा ही नहीं होती थी. मन इसी उधेड़बुन में रहता कि क्या करूं इन सेक्सी फीलिंग्स से मुक्ति मिले और मेरा मन पढ़ाई में लगे. मेरे दिल में आगे बढ़ने की बहुत इच्छा थी कि इंटरमीडिएट के बाद ग्रेजुएशन करना फिर किसी जॉब की तैय्यारी करना. मेरी मन पसंद जॉब तो एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज में जाना या फिर बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर बनना ही थी और अब तो लगता था कि अगर मेरा यही हाल रहा तो मैं शायद इन्टर भी पास नहीं कर पाऊँगी.
फिर मन में विचार आया कि किसी लेडी डॉक्टर को दिखा लेती हूं. इन्हीं सब बातों की सलाह करने के लिए मैं एक दिन डॉली के घर जा पहुंची और गंभीर होकर उसे अपना ये हाल बताया. मेरी आपबीती सुनकर डॉली हंस कर बोली- जो तेरे साथ हो रहा है वो तो सभी गर्ल्स के साथ होता ही है इस ऐज में, सभी लड़कियों को मुहांसे निकलते हैं और सभी की चूत में चुलबुली उठती है, ये सब नार्मल है और तू खामखां परेशान हो रही है.
“बट डॉली यार, तू मेरी बात समझ ठीक से, अरे मेरा दिमाग चौबीसों घंटे चूत में ही घुसा रहता है. बुक्स उठाती हूं तो पढ़ने में मन लगता ही नहीं है, किताब में क्या लिखा है
वो दिमाग में घुसता ही नहीं है बल्कि दिमाग बुर की तरफ डाइवर्ट हो जाता है.” मैंने जोर देकर कहा.
“सोनम रानी, फिर तो एक ही तरीका है कि तू किसी से जी भर के चार छः बार चुदवा ले. इसी से तुझे चैन मिलेगा.” डॉली मेरे गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली.
“वही तो प्रॉब्लम है यार, किसको ढूँढ के लाऊं इस काम के लिए. बहुत डर लगता है. तूने अमृता का किस्सा तो देख ही लिया है.” मैंने बुझे मन से कहा.
“ह्म्म्म … सोनम तू एक काम कर, किसी अंकल टाइप के आदमी को पटा ले.” डॉली गंभीर होकर बोली.
“अंकल टाइप आदमी के साथ?” मैंने हिचकिचाते हुए कहा.
“देख सोनम, अंकल लोग सेक्स के मामले में अनुभवी होते हैं, उन्हें सब पता होता है कि उनकी पार्टनर को पूरा मज़ा कैसे देना है और सबसे बड़ी बात कि अंकल लोग शादीशुदा होते हैं, इनकी अपनी फैमिली, अपनी इज्जत होती है सो इनसे किसी लड़की को कोई धोखा खाने की सम्भावना होती ही नहीं है.” डॉली पूरे आत्मविश्वास से बोली.
ह्म्म्म … बात अब मेरी समझ में कुछ कुछ आने लगी थी कि बॉयज की अपेक्षा मैच्योर आदमी के साथ सम्बन्ध बनाना ज्यादा सुरक्षित है.
“डॉली, तू तो ऐसे विश्वास से कह रही है जैसे तुझे किसी अंकल के साथ का अनुभव हो?” मैंने उसे मजाक में कहा.
“हां, है न … तभी तो अपने अनुभव से कह रही हूं.”
“वाओ, सच में डॉली?”
“हां मेरी प्यारी बन्नो, पर तुझे कसम है किसी से कह मत देना कहीं. मैं एक अंकल जी से चुद चुकी हूं और अभी भी हमारे सम्बन्ध हैं.”
“ओह, सच्ची? फिर तू मेरा भी काम तमाम करवा दे न?”
“नहीं सोनम, वे अंकल बहुत अच्छे हैं मैं उनसे ऐसी बात नहीं बोल सकती कि आप मेरी सहेली को भी फक करो, मेरे बारे में क्या सोचेंगे वो?” कहीं ऐसा न हो कि वे मुझसे भी किनारा कर लें, न बाबा न ऐसा मैं नहीं कर सकती.” डॉली मुझसे बोली.
“ओह, पर वो अंकल हैं कौन ये तो बता?”
“वो मैं नहीं बता सकती. अब तुझे जो करना है सो खुद कर, मैंने तुझे सही रास्ता दिखा दिया है बस!” डॉली ने बात ख़त्म की.
इस तरह डॉली ने मुझे एक सोल्यूशन तो दे ही दिया था. डॉली से विदा लेकर मैं उसकी बातों पर गहराई से विचार करती हुई घर आ गई और तय कर लिया कि अब मुझे क्या करना था.
उस रात मैं सोने के लिए लेटी तो आँखों में नींद नहीं थी; अब जैसे भी हो मुझे अपने इस पागलपन का इलाज खुद ही करना था और पढ़ाई में मन लगाना था.
किसी से चुदवाने का तो मैंने पक्का इरादा कर ही लिया था अब यक्ष प्रश्न मेरे सामने ये था कि मैं अपनी चूत दूं तो किसको दूं? किसी लौंडे लपाड़े के चक्कर में तो मैं आने वाली थी ही नहीं; इनकी हरकतें मुझे वैसे भी सख्त नापसंद थीं.
अब रही बात किन्हीं अंकल की तो मैंने अपने मोहल्ले में और आसपास रहने वालों को एक एक करके याद करना शुरू किया पर कोई ख़ास पिक्चर दिमाग में नहीं बनी, मतलब कोई अंकल जी ऐसे नहीं लगे मुझे जिनसे मैं चुदना चाहूं. सच बात तो ये कि मैं किसी को अपना कौमार्य समर्पित करूं तो वो कम से कम मेरे मन को अच्छा तो लगे, अब इतनी भी गयी गुजरी नहीं थी मैं कि किसी को भी अपनी बेदाग़ जवानी, अपनी सील बंद चूत यूं ही परोस दूं.
दो तीन ऐसे ही असमंजस में बीते पर मैं कोई निर्णय नहीं ले पाई.
कहानी जारी रहेगी.
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