यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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“सोनम बेटा, इसे एक बार चूस कर गीला तो कर दो; फिर देखना इसका कमाल!” अंकल जी ने मुझसे कहा.
“नहीं अंकल जी, मैं इसे मुंह में नहीं लूंगी … छीः …” मैंने कह दिया.
“चलो कोई बात नहीं गुड़िया रानी, जैसी तुम्हारी मर्जी!” अंकल जी बोले और मुझे बेड पर लिटा कर मुझसे लिपट गए.
“आह … अंकल जी!” मेरे मुंह से अपने आप निकल गया और मेरी बांहें उनके गले से लिपट गयीं. अपने नंगे जिस्म से अंकल जी का नंगा जिस्म महसूस करना बहुत ही अच्छा लग रहा था.
अंकल जी मेरे मम्में पकड़ कर मुझे चुम्बन देने लगे और मैं भी शरमाते हुए उनका साथ देने लगी.
“अंकल जी, प्लीज अब जल्दी करो जो करना हो तो … देखो दो बजने वाले हैं फिर मुझे घर जाना है.” मैंने घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा. पर सच बात तो यह थी कि मेरी उत्तेजना, मेरी चुदास मेरे लिए असहनीय हो गयी थी और मैं तड़प रही थी चुद जाने के लिए.
मेरी हालत समझ अंकल जी ने मुझे अच्छे से लिटा कर एक पिलो मेरी कमर के नीचे लगा दिया और मेरी नंगी गोरी जांघों को फैला कर उनके बीच में आके बैठ गए और अपना लण्ड मेरी चूत की दरार में ऊपर से नीचे तक; नीचे से ऊपर तक रगड़ने लगे. मेरी चूत ने पहला पहला लण्ड छू लिया था आनन्द के मारे मेरी आँखें मुंद गयीं.
अंकल जी ने आठ दस बार वैसे ही चूत पर अपना लण्ड घिसा और मेरी चूत का रस अपनी उंगली पर लेकर इससे अपना सुपारा चुपड़ लिया और उसे सही जगह पर लगा कर धकेला तो सुपारा थोड़ा सा चूत में घुसने में कामयाब हो गया.
पर मुझे दर्द होने लगा; इस दर्द को झेलने के लिए मैं पहले से ही तैयार थी क्योंकि मुझे पता था कि अंकल जी का मोटा लण्ड चूत में घुसेगा तो सील टूटेगी, सील टूटेगी तो पीड़ा होगी, दर्द भी होगा; वो सब मुझे ही सहन करना होगा.
अंकल जी ने दम साध कर लण्ड को चूत में धकेल दिया पर वो स्लिप मार गया; उन्होंने फिर से कोशिश की तो लण्ड मेरे योनिपटल से आ टकराया और मैं चीख पड़ी. अंकल जी ने तुरंत अपना लण्ड बाहर निकाल लिया.
मेरी सील टूटी नहीं थी पर पता नहीं क्यों इतनी तीव्र वेदना हुई कि मैं चीख पड़ी.
“सोनम बेटा, अब तू ही मेरे ऊपर आ जा और अपने हिसाब से कर जैसे तुझे ठीक लगे, क्योंकि मैं ताकत से घुसाऊंगा तो तुझे दुखेगा ही.” अंकल जी बोले और मेरे बगल में लेट गए.
मैं अंकल जी के ऊपर सवार हो गयी और उचक कर उनका लण्ड सही जगह पर लगाया और जोर लगा कर बैठने लगी. सुपारा तो जैसे तैसे फिसलता हुआ मेरी चूत में घुस गया; मैंने और जोर से लण्ड को चूत से दबाया तो फिर दर्द के मारे मेरी चीख निकल गयी और मैं उनके ऊपर से हट गयी.
“अंकल जी मेरे बस का नहीं है. ये आपका काम है आप ही जानो, जल्दी कर दो बस. मैं चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ गाऊं कुछ भी करूं आप मुझपे रहम मत करना बस!” मैंने कह दिया.
फिर अंकल जी बेड से उतर गये और साइड टेबल से हरे रंग की टीन की डिब्बी से खूब सारा तेल निकाल कर अपने लण्ड पर लगा लिया; मैंने पहचाना वो जैतून का तेल था जो बहुत ही चिकना होता है. फिर वो बेड के कोने पर जा खड़े हुए और मेरे पैर खींच कर मुझे एकदम कोने पर कर दिया और मेरी टांगें उठा कर मुझे पकड़ा दीं. मैंने अपने घुटनों के नीचे से हाथ डाल कर अपने पांव खूब अच्छी तरह से ऊपर उठा दिये और एक टॉवेल फोल्ड करके मेरी कमर के नीचे बिछा दी.
डर और आशंका के मारे मेरा बुरा हाल था जैसे किसी पेशेंट को ऑपरेशन थिएटर में जाने के पहले होता है.
अंकल जी ने पहले तो अपना लण्ड मेरी गांड के छेद पर चुभाया जिससे मुझे एक मस्त फीलिंग आई. फिर उन्होंने कुछ ही ऊपर चूत के छेद पर लण्ड टिका दिया और अपने जबड़े भींच कर मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा.
मैंने शर्म से आँखें फेर लीं और अपनी गर्दन दीवार की तरफ करके परे देखने लगी. फिर उन्होंने मेरे दोनों बूब्स कस के दबोच लिए और पूरी ताकत से लण्ड मेरी चूत में पिरो दिया.
“आई मम्मी रे … मर गयी … मैं!” मेरे मुंह से चीत्कार निकली जिसे दबाने का उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया. मेरी चूत फट चुकी थी और मुझे महसूस हो रहा था जैसे कोई मोटा गर्म गर्म डंडा चूत में घुस कर मेरे सीने तक फंसा हुआ हो.
मैंने बेडशीट अपनी मुट्ठियों में दबा ली और दर्द को सहन करने की कोशिश करने लगी.
फिर अंकल जी ने लण्ड को जरा सा पीछे खींचा और फिर पूरी ताकत से मेरी चूत में धकेल दिया, पीड़ा के मारे मैं छटपटा उठी और अंकल जी को परे धकेलने लगी और रो रो कर उन्हें हट जाने को कहने लगी.
पर मेरी बात अनसुनी करके अंकल जी ने फिर से दो तीन बार लण्ड को अन्दर बाहर किया और फिर से बाहर तक निकाल कर मेरे दोनों बूब्स दबोच कर एक धक्का और मार दिया. इस बार उनकी नुकीली झांटें मेरी चिकनी चूत से जा मिलीं और मैं चुभन और दर्द से बिलख उठी.
बस, इतना करने के बाद अंकल जी चुपचाप मेरे ऊपर लेट गए और मेरा सिर सहलाने लगे और मुझे चूमने लगे. मैं तो लगातार रोये जा रही थी. इसके अलावा मैं कर भी क्या सकती थी.
“बस बेटा, जो दर्द होना था हो गया … अब और नहीं होगा, चल अब चुप हो जा!” अंकल जी ने मुझे प्यार से सांत्वना दी जिससे मेरी रुलाई और जोर से फूट पड़ी. मुझे लग रहा था कि मेरी चूत में जैसे आग जल रही हो और किसी ने मेरे दोनों पैर फैला कर चीर डाले हों. मेरी सहेली डॉली ने बतलाया था कि जब सील टूटेगी तो थोड़ासा दर्द होता है पर ऐसा दर्द होगा इसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी.
रोते रोते मेरी हिचकी बंध गयी थी और अंकल जी लगातार मुझे प्यार से समझाए जा रहे थे- सोनम बेटा, बस अब चुप हो जा!
अंकल जी मेरा गाल चूम कर बोले उनका लण्ड मेरी चूत में किसी कांटे की तरह घुसा हुआ दर्द भरी चुभन दे रहा था.
“अंकल जी आप निर्दयी हो, दया ममता तो है ही नहीं आपके हृदय में!” मैं सुबकती हुई बोली.
“बस बेटा अब हो तो गया, तू तो मेरी बहादुर बिटिया रानी है न. चल अब चुप हो जा!” अंकल जी ने प्रेम से मुझे अपने सीने से लगा कर कहा.
“रहने दो ये दिखावा, आपने जरा भी ख्याल नहीं किया कि इतनी जोर जोर से करोगे तो मेरा क्या हाल होगा, बस आपने तो जैसे कोई दुश्मनी निकाल ली मुझसे!”
“नहीं बेटा, ऐसे नहीं कहते. तू तो अब मेरी जान है. देख बेटा, ये टाइम अब खुश होने का है. तू कली से फूल बन चुकी है लड़की से औरत बनाया है मैंने तुझे और तेरे स्वर्ग का द्वार हमेशा के लिए खुल गया है. बस अब जिंदगी भर चुदाई के मजे लूटना अब कभी कोई दर्द नहीं होगा तुझे!” अंकल जी ने मुझे समझाया.
मेरा दर्द अब सच में घटने लगा था तो मैंने अपने पैर हाथों से खोल कर फैला कर नीचे लटका लिए. जिससे मेरी चूत फिर से कस सी गयी और अंकल जी का लण्ड एक बार फिर मुझे दर्द भरी चुभन देने लगा तो मैंने फिर से अपने पैर ऊपर उठा कर बेड पर रख लिए जिससे मुझे कुछ राहत महसूस हुई.
मुझे आराम पड़ता देख अंकल जी ने आहिस्ता आहिस्ता मुझे चोदना शुरू किया. मेरी चूत का कसाव अब ढीला पड़ने लगा था. कुछ ही मिनट बाद अंकल जी का लण्ड आराम से सटासट अन्दर बाहर होने लगा और मेरा मन होने लगा कि मैं भी अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा के चुदाई का मज़ा लूं.
पर मैंने वो इरादा छोड़ दिया और चुपचाप चुदती रही.
अंकल जी बड़े एहतियात से धीरे धीरे मुझे चोद रहे थे कि कहीं मुझे दर्द न हो; उनका मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसता तो लगता कि चूत की मसल्स फैल रहीं है और जब लण्ड बाहर की तरफ निकलता तो लगता कि चूत की मसल्स लण्ड को जकड़ रहीं हैं जैसे उसे बाहर न देना चाहती हों.
मैं अपनी मम्मी की लाड़ली बिटिया, अपने पापा की परी मुहल्ले के अंकल से पूरी नंगी होकर चुद रही थी, अपना कौमार्य अपना सर्वस्व उन पर लुटा रही थी; उधर घर पर मेरी मम्मी सोच रही होंगी कि मैं स्कूल में पढ़ रही होऊँगी और रोज की तरह घर लौटने वाली होऊँगी. पर बुरा हो इस जवानी का इस निगोड़ी बुर का जो हमें इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर देती है. पर मैंने अपनी इस सोच को दिमाग से निकाला और आँख मूंदे दर्द का बहाना किये कराहती हुई सी इस पहली पहली चुदाई का भरपूर लुत्फ़, मज़ा उठा रही थी.
कुछ ही मिनट बाद मुझे लगा कि बस अब मैं आने वाली हूं तो मेरे शरीर से मेरा नियंत्रण हट गया और मेरी चूत अनचाहे ही उछल उछल कर अंकल का लण्ड लीलने लगी. सच कहूं तो मुझे अपनी उछलती चूत पर बहुत शर्म आ रही थी कि अंकल जी क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में कि ये कैसी लड़की है पहली चुदाई में ही चूत उठा उठा कर बेशर्मी से लण्ड खा रही रही है.
पर मैं क्या करती … जो हो रहा था वो अनैच्छिक था, उस पर मेरा कोई बस नहीं चल रहा था.
मुझे कमर उचकाते देख अंकल जी भी पुनः जोश से भर गए और मुझे जोर जोर से और स्पीड से चोदने लगे. अब मेरी चूत मस्त बज रही थी और फच फच फचाफाच फचाफाच आवाजें निकाल रही थी.
कुछ ही देर में मुझे अति आनन्द की अनुभूति की प्राप्ति हुई और मैं उनसे किसी जोंक की तरह लिपट गयी और अपनी लेग्स उनकी कमर में लपेट दीं और चिपट गयी उनसे.
अंकल जी अभी भी लगातार धक्के लगा रहे थे.
मैं उनसे चिपटी हुई थी तो मेरा बदन उनके साथ ही उठ रहा था बार बार और फिर मैंने महसूस किया कि उनका लण्ड फूल कर और मोटा और कठोर हो गया है. साथ ही मेरे भीतर उनके वीर्य की पिचकारियां छूटने लगीं.
अंकल जी का वीर्य अपनी चूत में फील करते ही मुझे एक बार फिर से उत्तेजना का ज्वार उठा और मैं फिर से झड़ गयी.
अंकल जी मुझसे चिपटे हुए कितनी ही देर तक लेटे रहे. इसी बीच मुझे एक और नया अनुभव हुआ कि मेरी चूत तेजी से सिकुड़ रही थी और फैल रही थी, इसकी मसल्स में रह रह कर संकुचन हो रहा था जैसे वो अंकल जी के लण्ड को दबा दबा कर उसमें से वीर्य निचोड़ रही हो. कुछ देर यूं ही होता रहा फिर मेरी चूत एकदम से सिकुड़ गयी और उसने उनके लण्ड को बाहर धकेल दिया.
अंकल जी का लण्ड निकलते ही मुझे फील हुआ कि मेरी चूत से कुछ एकदम से बह निकला है; मैंने चूत को हाथ से छू कर देखा तो गाढ़ा सफ़ेद लाल मिक्सचर सा बह रहा था. अंकल जी मेरी बगल से उठे और उन्होंने वो टॉवेल मेरे नीचे से निकाल ली, मैंने देखा उस पर खून फैला हुआ था.
“अब कैसा लग रहा है मेरी सोनम बिटिया को?” अंकल जी मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले.
“अंकल जी चूत दुख रही है अब!” मैंने जल्दबाजी में कह तो दिया पर मेरे मुंह से चूत शब्द निकलने से मैं शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी.
“सोनम बेटा, पहली बार तो ये सब होता ही है, वाशरूम में चलो, मैं तुम्हारी चूत को साफ करके इसकी गर्म पानी से सिकाई कर देता हूं, अभी पांच मिनट में तू एकदम ठीक हो जायेगी.”
फिर अंकल जी मुझे सहारा देकर वाशरूम ले गए और मुझे एक पट्टे पर बैठा कर गीजर के गुनगुने पानी से उन्होंने मेरी चूत धोई. मेरी चूत से खून और रज-वीर्य का संयुक्त मिश्रण बह रहा था जिसे उन्होंने अच्छे से साफ दिया और कुछ देर गुनगुने पानी से सिकाई करते रहे.
इससे मुझे बहुत आराम महसूस होने लगा.
फिर मुझे वापिस बेड पर लिटा दिया इसके बाद अंकल जी ने मुझे दर्द की कोई गोली दी और फिर वे नंगे ही किचन में जा कर कॉफ़ी बना के लाये और मुझे प्यार से पिलाई और मेरे बगल में लेट
गए और मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे सिर पर थपकी देने लगे जैसे मैं छोटी सी गुड़िया होऊं.
लगभग आधे घंटे बाद मैं एकदम स्वस्थ महसूस करने लगी. उसके बाद भी अंकल जी ने मुझे सहारा देकर कमरे में चार पांच चक्कर लगवाए, फिर मुझे कपड़े पहनाये और मेरी साइकिल बाहर निकाल दी और मैं चुपके से धीरे धीरे साइकिल चलाती अपने घर को निकल ली.
कहानी जारी रहेगी.
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