यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
जब से मैं और पिंकी पकड़े गये थे तब से मैं उनके घर नहीं जाता था, मगर अब तो मैंने उनके घर भी जाना शुरु कर दिया। हालांकि पिंकी की मम्मी यानि स्वाति भाभी की सास मुझे अब भी पसंद नहीं करती थी. इसलिये मैं उनके घर तभी जाता था जब मेरे पास उनके घर जाने के लिये कोई ना कोई बहाना होता था।
स्वाति भाभी की सास मुझे अधिकतर घर के बाहर से ही काम पूछ कर चलता कर देती थी मगर फिर भी, मुझे जब भी उनके घर जाने का कोई मौका मिलता तो मैं उसे छोड़ता नहीं था।
अब ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह ही मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी के घर से सिलाई मशीन लाने के लिये कहा।
वैसे तो हमारे घर भी सिलाई मशीन थी मगर उस समय वो खराब थी इसलिये मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी के घर से सिलाई मशीन लाने के लिये कहा।
मैं तो अब रहता ही इस ताक में था कि कब मुझे स्वाति भाभी के घर जाने का मौका मिले और मैं उनके घर जा सकूं. जैसे मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी के घर से मशीन लाने को कहा मैं भी तुरन्त ही उनके घर चला गया।
मुझे पता था कि स्वाति भाभी की सास मुझे देखकर घर के बाहर से ही चलता कर देगी इसलिये मैंने उनके घर के बाहर से किसी को आवाज नहीं दी, बल्कि उनके घर के मुख्य दरवाजे को खोलकर अन्दर आ गया और ड्राईंगरूम के दरवाजे के पास आकर ‘भाभी … भाभी … स्वाति भाभी…’ मैंने सीधा ही स्वाति भाभी को आवाज लगाई.
मगर काफी आवाज देने पर भी किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
जब बाहर से किसी ने जवाब नहीं दिया तो मैंने अब उनके ड्राईंगरूम के दरवाजे थोड़ा धकेलकर देखा.
दरवाजा खुला हुआ ही था इसलिये मैं भी अब अन्दर आ गया, मगर अब अन्दर भी कोई नहीं था.
अक्सर तो स्वाति भाभी की सास मुझे ड्राईंगरूम में ही मिल जाती थी और वो मुझे वही से वापस कर देती थी मगर आज वो भी नजर नहीं आ रही थी।
‘भाभी …’
‘भाभी…’
‘स्वाति भाभी …’
उनके ड्राईंगरूम में आकर मैंने अब एक बार फिर से स्वाति भाभी को ही आवाज लगाई. तभी ‘कौन है?’ अन्दर से स्वाति भाभी की आवाज सुनाई दी।
वो आवाज शायद बाथरूम से आई थी।
“मैं हूँ महेश … वो मैं आपकी सिलाई मशीन लेने आया था.” कहते हुए मैं अब उनके ड्राईंगरूम से निकलकर उनके घर के अन्दर आ गया।
“कुछ देर रुक जाओ या फिर तुम बाद में आ जाना मैं अभी बाथरूम में हूँ!” स्वाति भाभी ने अन्दर से ही कहा।
स्वाति भाभी बाथरूम में थी इसलिये अब मैं भी बाथरूम के दरवाजे के पास आ गया जो स्वाति भाभी ने मुझसे बात करने के लिये अब हल्का सा खोल लिया था।
“कहां रखी है आप बता दो, मैं आंटी को बोलकर ले लेता हूँ!” मैंने फिर से कहा।
“अरे… वो मम्मी यहां नहीं हैं ना … घर पर मैं अकेली ही हूँ.”
“क्यों … आंटी कहां गयी?” मैंने चारों तरफ देखते हुए कहा.
स्वाति भाभी अब कुछ देर तो शांत रही फिर बोली- वो मम्मी तो गुड़िया (सपना भाभी की बेटी) को लेकर मन्दिर गयी हैं … और घर में मैं अकेली ही हूँ!
भाभी ने अब हल्का सा अपना चेहरा बाथरूम से बाहर निकालकर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
उसने इस बार ‘घर में मैं अकेली ही हूँ’ इस बात पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा था. साथ ही उनके चेहरे पर मुझे हल्की सी शरारती मुस्कान सी भी दिखाई दे रही थी जिससे मुझे अब झटका सा लगा क्योंकि यह तो शायद स्वाति भाभी की तरफ से मेरे लिये खुला ही इशारा था।
मैंने अब भी देर ना करते हुए सीधा ही बाथरूम के दरवाजे को पकड़ लिया और उसे खोलने के लिये अन्दर की तरफ धकेल दिया.
“ओय्…य … ये. ये. क्या कर रहे हो? हटो … हटो यहां से … बताया ना बाद में आना!” स्वाति भाभी ने तुरन्त दरवाजे को पकड़ते हुए कहा।
मगर मुझे पता था वो बस ये झूठमूठ का ही दिखावा कर रही है, इसलिये मेरे थोड़ा जोर से बाथरूम के दरवाजे को धकेलते ही उसने दरवाजे को छोड़ दिया जिसे मैं अब पूरा खोलकर बाथरूम में घुस गया।
अन्दर स्वाति भाभी बस लाल रंग के पेटीकोट और ब्लाउज में थी। वो पूरी भीगी हुई थी जिससे उसका ब्लाउज चूचियों पर बिल्कुल चिपका हुआ था और अन्दर पहनी हुई उनकी ब्रा साफ नजर आ रही थी।
वो शायद अभी नहाने नहीं लगी थी, बस कपड़े ही धुलाई कर रही थी जिससे लगभग वो सारी भीगी हुई थी।
बाथरूम में घुस कर मैंने उसे अब सीधा ही पकड़कर अपनी बांहों में भींच लिया.
“नहीं … छोड़ो … छोड़ो मुझे! ये क्या कर रहे हो … हटो … छोड़ो … छोड़ो मुझे.” करते हुए वो अब कसमसाने लगी. मगर मुझे हटाने का या खुद मुझसे दूर होने का प्रयास वो बिल्कुल भी कर रही थी। वो तो शायद चाहती ही यही थी इसलिये स्वाति भाभी को अपनी बांहों में भींचकर मैंने उसके ठण्डे ठण्डे होंठों से सीधा ही अब अपने गर्म और प्यासे होंठों को जोड़कर उसका मुंह भी बन्द कर दिया।
“उम्म्म्म … ह्ह्हु …” कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो अपनी गर्दन घुमाकर अपने होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर तब तक मैंने अपने दोनों हाथों से उसके सिर को पकड़ लिया जिससे वो बस कसमसाकर रह गयी।
वैसे तो भाभी के होंठ मुलायम थे मगर गीले होने के कारण ठण्डे और थोड़े सख्त हो रखे थे जिनको अपने मुंह में भरकर मैंने अब जोर से चूसना शुरु कर दिया.
स्वाति भाभी ने भी अब एक दो बार तो अपनी गर्दन व होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर फिर वो भी शांत हो गयी.
वो अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी इसलिये उसके होंठों के रस को चूसते चूसते मैं अपना एक हाथ अब धीरे से उसके पपीतों पर भी ले आया. मगर जैसे ही मैंने उन्हें पकड़ा स्वाति भाभी ने तुरन्त अपना एक हाथ मेरे हाथ पर रख दिया.
मगर अब मैं कहाँ रुकने वाला था, उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने उसकी एक चुची को भी अब अपनी पूरी हथेली में भर भरकर उसे जोर से मसलना शुरु कर दिया. नारीयल के जितनी बड़ी चुची थी भाभी की जो मेरी हथेली में पूरी समा भी नहीं रही थी. मगर एकदम गुदाज और स्पंज जैसी नर्म नर्म थी।
स्वाति भाभी भी अब मेरे हाथ को अपनी चूचियों पर से हटाने की कोशिश नहीं कर रही थी, वो वैसे ही मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर चुपचाप मुझसे अपनी चूचियाँ मसलवाने लगी।
उधर उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने अब धीरे से अपनी जीभ को भी अब उसके मुंह में घुसा दिया जिससे वो एक बार तो थोड़ा सा कुनकनाई मगर फिर अपने आप ही मुंह को खोलकर मेरी जीभ को अपने मुंह में अन्दर जाने का रास्ता दे दिया।
मैंने भी उसका मुंह खुलते ही अपनी जीभ को पूरा ही उसके गले तक उतार दिया और उसकी नर्म नर्म जीभ के साथ खेलते हुए उसके होंठों को चुभलाने लगा।
उसने शायद अभी अभी ब्रुश किया था क्योंकि उसके मुंह से अभी भी टुथपेस्ट(दन्तमंजन) की ठण्डी ठण्डी और मीठी मीठी महक आ रही थी। ब्रश करने से उसका मुंह अन्दर से ठण्डा तो था मगर थोड़ा शुष्क हो रहा था, जिसको गीला करने के लिये मैंने अब अपनी जीभ को एक बार वापस अपने मुंह में खींच लिया और उसे अपने थूक से सानकर फिर उसके मुंह में घुसा दिया जिससे एक बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं किया।
मैंने अपनी थूक लगी जीभ से पहले तो स्वाति भाभी का मुंह गीला किया फिर उसे खुद ही चाट भी लिया. ऐसा मैंने अब लगातार तीन चार बार किया जिससे पहले दो तीन बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर चौथी बार उसने खुद ही अपने होंठों से मेरी जीभ को दबा लिया और मेरी गीली जीभ अपने होंठों के बीच दबाकर धीरे धीरे चूसना शुरु कर दिया।
स्वाति भाभी भी अब मेरी जीभ को चूसने लगी थी मगर मेरी नजरे तो लाल रंग के ब्लाउज में कसी हुई उसकी कच्चे दूध सी सफेद और खरबूजे के जैसे बड़ी बड़ी चुचियों पर थी। उसके ब्लाउज का गला इतना गहरा भी नहीं था मगर फिर उसकी चूचियाँ उसमें से निकल कर ऐसे बाहर आ रही थी जैसे की उन्हें ब्लाउज में ठुंस ठुंसकर जबरदस्ती भर रखा हो।
उसकी दोनों चूचियाँ उस ब्लाउज में इतनी जोर से कसी हुई थी कि दोनों चूचियों के बीच बस एक पतली सी लाईन ही दिखाई दे रही थी। बाकियों की तो V आकार में गहरी घाटी सी होती है मगर स्वाति भाभी की चूचियाँ इतनी बड़ी थी कि दोनों चूचियों के बीच बिल्कुल भी जगह नहीं थी बस एक लाईन सी ही दिखाई दे रही थी।
कुछ देर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने के बाद मैं अब धीरे से अपने हाथ की उंगलियों को उसकी चूचियों की जो लाईन सी बनी हुई थी उसमें घुसाने की कोशिश करने लगा. मगर जैसे ही मैंने अपनी एक दो उंगलियां उसके ब्लाउज में घुसाई, उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से झटक दिया जिससे ‘टक् टक् …’ की आवाज के साथ उसके ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खुल गये और उसकी चूचियाँ ब्लाउज में से उभरकर ऐसे बाहर आ गयी जैसे की गर्म होने पर बर्तन में से दूध उफन कर बाहर आता है।
दरअसल स्वाति भाभी ने जो ब्लाउज पहना हुआ था उसमें टिच-बटन लगे हुए थे जो दबाने पर बन्द होते है और खींचने पर आसानी से खुल जाते हैं। मेरी दो उंगलियां उसके ब्लाउज में ऊपर से घुस गयी थी इसलिये अब जैसे ही स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को खींचा, झटके से उसके ब्लाउज के बटन खुल गये।
स्वाति भाभी ने अब तुरन्त ही मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग कर लिया और ‘ओय्य्य … ओह्ह …” कहते मेरी तरफ घूर घूर कर देखने लगी।
मगर मैंने तो कुछ किया ही नहीं था। वो तो उसके ही खिंचने से ब्लाउज के बटन खुले थे इसलिये हैरानी से मैं भी स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा. उसकी आँखों में शर्म के भाव तो थे ही साथ ही उत्तेजना के गुलाबी डोरे भी तैरते मुझे अब साफ नजर आ रहे थे।
अब जैसे ही उसकी नजर मेरी नजर से मिली, उसके चेहरे पर शर्म से हल्की सी मुसकान आ गयी और शर्माकर उसने अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।
स्वाति भाभी ने अब भी मेरा हाथ तो पकड़ा हुआ था मगर उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था इसलिये उसकी तरफ देखते देखते मैंने अब फिर से उसके ब्लाउज में अपने हाथ की उंगलियों को फंसा कर उसे जोर से खींच दिया जिससे उसके ब्लाउज के दो बटन और खुल गये।
सच में भाभी ने अपनी चूचियों को जबरदस्ती ही ब्लाउज में ठूंस कर भरा हुआ था क्योंकि अब जैसे ही उसके ब्लाउज के ऊपर के चार बटन खुले उसकी चुचियाँ ब्रा के साथ नीचे के दो बटन के ऊपर से ही उछलकर अपने आप ही उछलकर बाहर आ गयी।
उस ब्रा में भी उसकी चूचियाँ समा नहीं रही थी इसलिये उसके ब्लाउज के सारे बटन खोलकर मैंने उसकी ब्रा को भी अब नीचे से पकड़कर ऊपर खींच दिया… उसकी ब्रा को मैंने बस थोड़ा सा ही खींचा था मगर मेरे थोड़ा सा खींचते ही उसकी चूचियाँ अपने आप ही ब्रा की कैद से फड़फड़ा कर बाहर आ गयी और खुद के ही बोझ से थोड़ा नीचे होकर झूल गयी।
कच्चे दूध सी सफेद, बिल्कुल बेदाग और गोरी चिकनी चूचियाँ थी उसकी जो भीगने के कारण थोड़ी सख्त हो रही थी. उन पर खड़े हुए रोयें साफ नजर आ रहे थे। गहरे भूरे रंग के बड़े बड़े घेरे में उनके भूरे भूरे निप्पल सुपारी के जितने बड़े और इतने तने हुए थे कि उनको देखते ही मेरा गला सूख सा गया.
मुझसे सब्र नहीं हो रहा था इसलिये मैं अब सीधा ही उसकी चूचियों पर टूट पड़ा। मैंने उसकी एक चुची को पकड़ कर पहले तो उसे ऊपर ऊपर हल्के से चूमा, फिर उसके निप्पल को अपने मुंह में भरकर जोर से चूस लिया.
मगर जितनी तेजी व फुर्ती से मैंने उसके निप्पल को अपने मुंह में भरकर चूसा था, उतनी ही जल्दी मैंने उसके निप्पल को अपने मुंह से बाहर भी निकाल दिया क्योंकि जैसे ही मैंने उसकी चुची को चूसा, दूध की मोटी सी धार मेरे तालु से टकराई और मेरे सुखे मुंह को गीला करते हुए सीधा ही मेरे गले से नीचे उतर गयी।
चुची से इस तरह दूध निकल आने से मैं हड़बड़ा गया था इसलिये मैंने झट से अपना मुंह भाभी की चूची से हटा लिया और स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो भी मेरी तरफ ही देख रही जिससे उसे हंसी आ गयी।
उसने हंसते हुए अब एक बार तो मेरी आँखों में देखा फिर शर्माकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।
हल्का मीठा और मितैला सा स्वाद था भाभी के दूध का जो मुझे इतना अच्छा तो नहीं लगा था मगर फिर भी मेरे सूखे गले को उसने काफी राहत सी पहुंचाई।
स्वाति भाभी अब मेरी तरफ तो नहीं देख रही थी मगर मेरी हड़बड़ाहट पर वो अब भी हंस रही थी। उसको देखकर मुझे भी अब एक उत्तेजक सी शरारत सूझ गयी। मैंने ऊपर उसके चेहरे की तरफ देखते देखते अब फिर से उसकी चुची को अपने मुंह में भर लिया और उसे जोर से चूसकर थोड़े से दूध को अपने मुंह में इकट्ठा कर लिया।
थोड़ा सा दूध अपने मुंह में भरकर मैंने चुची को छोड़ दिया और ऊपर आकर अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया। उसको पता नहीं था कि मैंने अपने मुंह में दूध भरा हुआ है इसलिये उसने मेरा कोई विरोध नहीं किया।
मगर जैसे ही उसके होंठों को चूसने के बहाने मैंने अपने मुंह का दूध उसके मुंह में डाला उसकी बड़ी बड़ी आँखें और भी बड़ी हो गयी और ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ कहते हुए उसने तुरन्त ही अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग कर लिया। जिससे वो दूध उसके मुंह से निकलकर उसकी ठोड़ी पर बह आया।
कहानी जारी रहेगी.
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