यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्ते दोस्तों ! आपकी पसंदीदा कहानी का तीसरा भाग लेकर में फिर से हाजिर हूँ.
अपने मुंह को मेरे होंठों से अलग करके ‘क्या … है …’ कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो फिर से मेरी आँखों में देखा … फिर हंसकर अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया।
मगर तब तक मैंने उसके सिर को पकड़ लिया और फिर से उसके होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। उसके होंठों को चूसते हुए मैंने उसकी ठोड़ी और होंठों पर लगे हुए दूध को चाट चाट कर अब खुद ही साफ कर दिया जिसका उसने अब इतना विरोध नहीं किया।
वो अब भी अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग नहीं किया।
स्वाति भाभी के होंठों को चूसते हुए मैंने अपना एक हाथ अब भाभी की चूत की तरफ भी बढ़ा दिया था. मगर जैसे ही मैंने उसकी मुनिया को छुआ, ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ की आवाज निकालकर उसने तुरन्त अब मेरे हाथ को पकड़ लिया और मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग करके ‘ओय य … क्या कर रहे हो? बस्स्स अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मुझे अपने से दूर करते हुए कहा।
स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को तो पकड़ लिया था मगर उसकी पकड़ बहुत ही हल्की थी। उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था, वो बस ऊपर ऊपर से ही मेरे हाथ को पकड़े हुए थी इसलिये उसके पकड़ने के बावजूद भी मैंने एक दो बार तो भाभी की चुत को सहला ही दिया.
उसने नीचे पेंटी पहनी हुई थी इसलिये मैंने भी बस एक दो बार ही उसकी चुत के फूले हुए उभार को सहलाकर देखा. फिर अपने हाथ को उसकी बगल में ले जाकर सीधा ही उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया.
मगर नाड़ा खुलने के बाद भी स्वाति भाभी का पेटीकोट निकला नहीं क्योंकि एक तो उसने अपने कूल्हों को दीवार के साथ लगा रखा था और दूसरा भीगने के कारण उसका पेटीकोट उसकी जांघों और कूल्हों से बिल्कुल चिपका हुआ था।
स्वाति भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खोलकर अब मैंने ही अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उसे धीरे से उसके कूल्हों से नीचे कर दिया। स्वाति भाभी अब भी मेरे हाथ को पकड़े हुए थी मगर मुझे रोकने का या अपने पेटीकोट को पकड़ने का वो बिल्कुल भी प्रयास नहीं कर रही थी।
मैंने बस पेटीकोट को उसके कूल्हों से ही निकाला, बाकी तो वो अब भीगने के के कारण खुद के ही भार से नीचे उसके पैरों में गिर गया और स्वाति भाभी बस नीले रंग की एक पेंटी में रह गयी।
अब जैसे ही स्वाति भाभी का पेटीकोट निचे गिरा … ‘ओयय … बस्स्स … बस अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मेरी तरफ देखते हुए कहा मगर अपने पेटीकोट को उठाने का या अपने नंगेपन को ढकने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया।
वो तो शायद चाह ही यही रही थी मगर शर्म के कारण ऐसे ही दिखावे के लिये ये सब बोल रही थी।
भाभी के पेटीकोट को निकालकर मैं अब नीचे अपने पंजों के बल बैठ गया और अपने दोनों हाथ उसकी पेंटी के किनारों में फंसाकर उसे सीधा ही नीचे उसके घुटनों तक खींच दिया.
मुझे बस एक झलक ही भाभी की गोरी चिकनी चुत की मिली थी कि ‘ओहय … क्या कर रहे हो … बस्स्स अब … बहुत हो गया … मम्मीईई … मम्मी आने वाली हैं.’ उसने हल्का सा कसमसाकर दोनों हाथों से अपनी चुत को छुपाते हुए कहा।
मगर अब मैं कहां रुकने वाला था, मैंने अपने दोनों हाथों से उसके हाथों को पकड़कर चुत पर से हटा दिया.
‘ओय्य … बस्स्स्स … बस्स्स अब …’ उसने फिर से कसमसाते हुए कहा.
मगर अब फिर से अपनी चुत को छुपाने की कोशिश नहीं की, बस चुपचाप खड़ी हो गयी।
स्वाति भाभी की गोरी चिकनी और फूली हुई चुत अब मेरे सामने थी जिस पर बस छोटे ही बाल थे मगर काफी गहरे और घने थे। पाव रोटी की तरह फूली हुई उसकी गोरी चिकनी चुत इतनी कमसिन और हसीन थी कि कुछ देर तक तो मैं टकटकी लगाये बस उसे देखता ही रह गया.
भाभी की चुत चूचियों से भी ज्यादा गोरी सफेद और बिल्कुल बेदाग थी। चुत की फांकें थोड़ी सी फैली हुई थी जिससे चुत के अन्दर का गुलाबी भाग मुझे साफ नजर आ रहा था, और गोरी चिकनी फांकों के बीच हल्का सा दिखाई देता चुत का गुलाबी दाना तो ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी चुत अपनी जीभ निकालकर मुझे चिढा रही हो।
स्वाति भाभी की चुत को देखकर मैं तो जैसे अब पागल ही हो गया। मैंने उसकी गोरी चिकनी चुत व उसकी मांसल भरी हुई जाँघों को पागलों की तरह बेतहाशा यहाँ वहां चूमना शुरु कर दिया जिससे वो मचल सी गयी और ‘ईईई … श्श्श्श … बस्स्स …’ कहते हुए दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया।
मैं भाभी की चुत को नहीं चूम रहा था, बस चुत के फूले हुए उभार को और चुत के चारों तरफ उसकी जाँघों पर ही चूमे जा रहा था। मेरे होंठ एक जगह ठहर ही नहीं रहे थे इसलिये स्वाति भाभी ने मेरे सिर को पकड़कर अब थोड़ा सा कसमसाते हुए अपनी चुत को सीधा ही मेरे मुंह पर लगा दिया मगर उसने दिखावा ऐसा किया जैसे कि वो मुझे हटाना चाह रही थी.
मगर मैंने ही उसकी चुत पर अपने होंठों को लगा दिया हो।
मुझे थोड़ा अचरज सा हुआ इसलिये अपना सिर उठाकर मैंने स्वाति भाभी की तरफ देखा, वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी। शर्म से उसके गाल लाल हो रखे थे और चेहरे पर हल्की मुसकान सी थी। हम दोनों की नजरें अब एक बार तो मिली मगर अगले ही पल उसने शर्मा कर फिर से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
एक नजर स्वाति भाभी की तरफ देखकर मैंने उसके पैरों में फंसी पेंटी को खींचकर अब उसके पैरों से पूरा ही निकाल कर अलग कर दिया जिसमें स्वाति भाभी ने ‘ओय्य्य … बस्स्स … क्या कर रहा है … छोड़ मुझे …’ कहते हुए थोड़ा सा नखरा तो दिखाया मगर साथ ही अपने पैरों को उठाकर पेंटी को निकालने में मेरा साथ भी दिया।
भाभी की पेंटी को निकालकर मैं अब दोनों हाथों से उसके पैरों को खोलकर उसके दोनों पैरों के बीच बैठ गया जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया और अपनी टांगों को चौड़ा करके सीधी खड़ी हो गयी। नीचे फर्श पर पानी था जिससे मेरा लोवर भीग गया था मगर मुझे उसकी तो फिक्र ही कहाँ थी।
भाभी की नंगी टांगों के बीच बैठे बैठे पहले तो मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चूत की नाजुक पंखुड़ियों को थोड़ा सा फैला दिया, फिर धीरे से अपने होंठों को उसकी चुत के अन्दर के लाल गुलाबी भाग पर रख दिया.
‘उफ्फ्फ … कितनी गर्म चूत थी भाभी की …’ मुझे तो लगा जैसे मेरे होंठ जल ही ना जायें। भीगने के कारण उसकी चुत बाहर से तो ठण्डी थी मगर अन्दर से किसी भट्ठी की तरह एकदम सुलग सी रही थी जिसको चूमकर ऐसा लग रहा था मानो मेरे होंठ जल ही जायेंगे।
मैंने अब पहले तो एक बार उसकी चुत को अपने होंठों से चूमा फिर धीरे से अपनी जीभ निकालकर चुत के अन्दर के लाल गुलाभी भाग को पूरा चाट लिया। एकदम खारा और कैसेला स्वाद था उसकी चुत का मगर उस समय तो वो मुझे रसमलाई से कम नहीं लगी।
मैंने उसकी चुत को एक बार चाटकर उसकी फांकों के अन्दर के गुलाबी भाग को अब जोर से चूस भी लिया जिससे स्वाति भाभी ‘ईईई … श्श्श्स … आह्ह्ह …” कहते हुए अपने पंजों के जोर पर ऊपर की तरफ उकसकर थोड़ा सा पीछे सरक गयी।
मैंने भी अब अपने एक हाथ को पीछे उसके नितम्बों पर ले जाकर उसे फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
मगर अब जैसे ही मैंने स्वाति भाभी को अपनी तरफ खींचा ‘ओय्य्य … क्क्या … क्या कर रहा है? छोड़ … छोड़ मुझे …’ कहते हुए भाभी ने अपना एक पैर धीरे से उठाकर मेरे कन्धे से सटा दिया जिसको पकड़कर मैंने उसे अब अपने कंधे की तरफ खींच लिया।
मैंने उसके पैर को बस थोड़ा सा ही खींचा था मगर ‘आह्ह … ओय्य्य … क्या कर रहा है? मैं गिर जाऊँगी!’ का दिखावा सा करते हुए उसने अपना पैर अब मेरे कन्धे पर ही चढ़ा दिया जिससे उसकी चुत की खुली हुई फांकें सीधा ही मेरे होंठों से चिपक गयी।
स्वाति भाभी बस दिखावे के लिये ही नखरा कर रही थी नहीं तो हर एक काम तो वो खुद अपने आप ही कर रही थी साथ ही मुझे भी आगे के लिये राह दिखा रही थी।
खैर मैंने भी अब अपने होंठों को उसकी चुत की फांकों के बीच घुसा दिया और अपनी पूरी जीभ निकालकर उसकी चुत की नर्म नर्म व गर्म फांकों को चाटना और चूसना शुरु कर दिया जिससे स्वाति भाभी अब जोर से सिसक उठी।
उसने मेरे सिर को पकड़ा हुआ था जिससे उसने अब मेरी जीभ के साथ साथ खुद ही अपनी कमर को हिला हिलाकर अपनी चुत को जोर से मेरे मुंह पर रगड़ना शुरु कर दिया।
उसकी चुत पहले ही कामरस से लबालब थी मगर अब तो जैसे उसने कामरस की बारिश सी करनी शुरु कर दी जिसे मैं भी चाट चाटकर और चूस चूसकर पीने लगा।
कुछ देर तो वो ऐसे ही अपनी चुत का रस मुझे पिलाती रही फिर ना जाने उसके दिल में क्या आया, उसने अपने पैर को मेरे कंधे पर से उतारकर नीचे कर लिया और थोड़ा सा पीछे होकर अपनी चुत को भी मेरे होंठों से दूर हटा लिया.
स्वाति भाभी के इस तरह पीछे हो जाने से मेरी हालत अब बिल्कुल वैसी हो गयी जैसे किसी छोटे बच्चे के मुंह से उसकी पसंदीदा चीज खाते खाते अचानक उससे वो चीज छीन ली हो.
मैंने अपनी गर्दन उठाकर अब एक बार तो स्वाति भाभी की तरफ देखा फिर अगले ही पल उसके पीछे पीछे अपने घुटनों के बल सरक कर मैंने उसकी दोनों जाँघों को अपनी बांहों में भर लिया और अपने होंठों को फिर से उसकी चुत की फांकों से जोड़ दिया.
“ओय्य्य्य … क्या कर रहा है… हट … हट छोड़ … छोड़ मुझे!” कहते हुए उसने अब दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़कर मुझे ऊपर खींच लिया।
स्वाति भाभी के इस तरह के व्यवहार से मुझे खीज तो हुई मगर बाल खींचने से मुझे दर्द भी हो रहा था इसलिये मैं उसकी जाँघों के बीच से उठकर सीधा खड़ा हो गया और मायूस सा चेहरा बना के स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो अब भी वैसे ही खड़ी हुई थी।
कहानी जारी रहेगी.
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