यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्ते दोस्तों ! आपकी पसंदीदा कहानी का चौथा भाग लेकर में फिर से हाजिर हूँ.
भाभी ने मुझे अपनी चुत पर से तो हटा दिया मगर मुझे अपने से दूर हटाने का या खुद मुझसे दूर होने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया। उसकी निगाहे शायद अब मेरे लोवर में तम्बू पर थी इसलिये मैंने भी अब जल्दी से लोवर के साथ साथ अपने अण्डरवियर को भी खींचकर उसे घुटनों तक उतार लिया।
लोवर व अण्डरवियर के नीचे होते ही अब जैसे ही तनतनाता हुआ मेरा मुसल लण्ड फुंकार कर बाहर आया उसे देखकर स्वाति भाभी एक बार तो हांफ सी गयी और ‘य ऐ … ये … तू … क्या कर रहा है … हट … बस्स्स हट अब!’ कहते हुए वो अपने दोनों हाथों को ऐसे ही मेरे सीने पर मार मारकर झूठमूठ मुझे हटाने की कोशिश सी करने लगी। मगर उसके हाथों की मार में जान बिल्कुल भी नहीं थी।
वो मुंह से तो मुझे मना कर रही थी मगर उसकी निगाहें मेरे तन्नाये लण्ड पर ही जमी हुई थी। मेरे तमतमाते लण्ड को आँखें फाड़ फाड़कर वो ऐसे देख रही थी जैसे उसे अभी ही खा जायेगी। उसकी आँखों में वासना के साथ साथ मुझे एक चमक भी दिखाई दे रही जो शायद उसकी आँखों में अभी अभी मेरे लण्ड को देखकर आई थी।
अपने लोवर को नीचे करके मैंने अब फिर से स्वाति भाभी को पकड़ लिया और यहां वहां उसकी गर्दन, गाल और होंठों पर बेतहाशा चूमते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया।
स्वाति भाभी की लम्बाई मेरे से थोड़ी कम है और हम दोनों ही सीधा खड़े हुए थे इसलिये मेरा उत्तेजित लण्ड उसकी नाभि पर लग गया था जो उसके नर्म मुलायम ठण्डे ठण्डे पेट के अहसास से अब तो और भी ताव में आ गया।
मेरे इस तरह चूमने चाटने से स्वाति भाभी अब भी मुंह से तो ‘इश्श्श … ओय्य्य … हट … छोड़ … छोड़ मुझे…’ बड़बड़ाते हुए हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मुझे हटाने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं कर रही थी।
वो हल्का हल्का कसमसाकर अब धीरे धीरे एक बगल की तरफ खिसकती जा रही थी मगर मैं कहां रुकने वाला था मैं भी उसे चूमते हुए उसके साथ साथ ही खिसकता रहा.
इसी तरह धीरे धीरे खिसकते हुए स्वाति भाभी अब बगल में ही रखे पटरे पर चढ़ गयी, मैं तो उसके पीछे पीछे था ही और उससे लिपटा भी हुआ था. अब जैसे ही स्वाति भाभी उस पटरे पर खड़ी हुई मेरा लण्ड सीधा ही नीचे उसकी चुत पर लग गया.
‘ओ तेरी …’ मेरे तो ये अब समझ में आया कि स्वाति भाभी इस तरफ क्यों खिसक रही थी। शायद उसे पता था कि पटरे पर खड़े होने से मेरा लण्ड उसकी चुत पर लग जायेगा।
स्वाति भाभी की इस चालाकी को देखकर मैं तो दंग सा ही रह गया क्योंकि मैंने तो ये सोचा ही नहीं था। मैं तो ये सोच रह था कि स्वाति भाभी को नीचे फर्श पर लेटाकर आराम से पेलूंगा मगर स्वाति भाभी ने तो ये नया ही तरीका सुझा दिया था।
खैर स्वाति भाभी के उस पटरे पर चढ़ते ही मैंने भी अब एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़कर सीधा उसकी चुत की फांकों के बीच लगा दिया जो उसके कामरस और मेरे मुंह की लार से बिल्कुल भीगी हुई थी।
“ईईश्श्श्स … ओय्य … बस्स्स … बस्स्स अब मम्मी … आने वाली होगी!” स्वाति भाभी एक मीठी सी आह भरती हुई बड़बड़ायी।
मगर मुझे अब होश ही कहाँ था … अपने लण्ड को उसकी चुत पर लगा कर मैंने पहले तो एक दो बार उसे चुत की फांकों पर घिसा, फिर अपने घुटनों को मोड़कर थोड़ा सा नीचे हो गया और अपने लण्ड को उसकी चुत के प्रवेशद्वार पर लगा कर धीरे से अपने घुटनों को सीधा करते हुए खड़ा हो गया.
अब जैसे मैं सीधा खड़ा हुआ, मेरा लण्ड भाभी की चुत के मुंह में किसी हुक की तरफ से फंसकर एक चौथाई के करीब उस मखमली गहराई में उतर गया जिससे स्वाति भाभी ‘ओह्ह य्य्य्य … ईईश्श्श … आआह्ह्ह …’ कहते हुए अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डालकर मुझसे चिपट सी गयी और अपना एक पैर ऊपर हवा में उठाकर अपनी जांघ को मेरी कमर तक चढ़ा दिया.
स्वाति भाभी को सहारा देने के लिये अब मैंने भी अपने एक हाथ से उसके पैर को पकड़ लिया.
मगर जैसे ही मैंने उसके एक पैर को पकड़ा… ‘ओय्य्य … क्या कर रहा है … म्म … मैं गिर जाऊँगी!’ कहते हुए उसने मेरे गले में डाली हुई बांहों पर जोर देकर अपना दूसरा पैर भी ऊपर हवा में उठा लिया जिससे लगभग अब मेरा आधे से भी ज्यादा लण्ड उसकी चुत की गहराई में उतर गया।
“आह्ह्ह … क्या कर रहा है … गिरायेगा क्या?” स्वाति भाभी ने अब कराहते हुए कहा और मेरी गर्दन के सहारे ऊपर हवा में झूल सी गयी।
मुझे नहीं पता था कि स्वाति भाभी ने अपने पैर किस लिये उठाये थे? और ये सब वो क्या … और क्यों कर रही थी? मगर फिर भी उसको सहारा देने के लिये मैंने अपने दूसरे हाथ से अब उसका दूसरा पैर भी पकड़ लिया.
मगर जैसे ही मैंने उसके दूसरे पैर को सहारा दिया, वो अपनी बांहों को मेरे गले में और पैरों को मेरी कमर में फंसाकर मुझसे जोर सी चिपक गयी जिससे उसकी चुत लगभग अब मेरा पूरा ही लण्ड निगल गयी।
स्वाति भाभी बस दिखावे के लिये ही कह रही थी ‘मैं गिर जाऊंगी… मैं गिर जाऊँगी …’ मगर उसका असली मकसद तो मुझे अब समझ में आया जब उसने ‘गिर जाऊँगी … गिर जाऊँगी …’ करते करते ही अपनी चुत में मेरे पूरे लण्ड को निगल लिया।
उसने ना ना बोलकर भी सबकुछ खुद ही कर लिया था। उसकी यह चतुराई देखकर मैं तो उसे बस आँखें फाड़ फाड़ कर देखता ही रह गया था जो मेरे पूरे लण्ड को अब किसी खूंटे की तरह अपनी चुत में फंसाकर उस पर लटकी हुई थी।
मैं लगातर स्वाति भाभी के चेहरे को ही देखे जा रहा था.
मगर तभी ‘ओय्य्य … क्या कर रहा है … गिरायेगा क्या मुझे?” उसने मेरी तरफ देखते हुए अब फिर से कहा और मुझसे और भी जोरों से चिपक गयी।
मैंने भी अब तुरन्त ही उसकी जाँघों को छोड़कर अपने दोनों हाथों से उसके कूल्हों को थाम लिया जिससे मेरा लण्ड अब जड़ तक उसकी चुत में उतर गया।
मैं तो उसकी तरफ देख रहा था, अब जैसे ही स्वाति भाभी की नजर मेरी नजर से मिली, उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान सी आ गयी। उसने एक बार तो मेरी नजर से नजर मिलाई, फिर अगले ही पल ‘क्या कर रहा है … बस अब … मुझे गिरायेगा क्या?’ स्वाति भाभी ने अपना मुंह दूसरी तरफ करके कहा साथ ही उसने अपने कूल्हों को हल्की जुम्बिश देकर मुझे आगे का भी रास्ता दिखा दिया.
अब इतना बेवकूफ तो मैं भी नहीं था जो इतना भी ना समझ सकूँ।
हालांकि इस तरह से चुदाई करने का ये मेरा पहला अवसर था मगर अब आगे क्या करना है ये तो मुझे भी अच्छी तरह समझ आ गया था।
उसके दोनों कूल्हों को पकड़कर मैंने उसे अब धीरे धीरे ऊपर नीचे हिलाना शुरु कर दिया जिससे मेरा लण्ड अब उसकी चुत में अन्दर बाहर होने लगा और स्वाति भाभी के मुंह से ‘आह्ह … ईश्श्श् … ईश्श्स … आह्ह् … ईश्श्श …’ की हल्की हक्की सिसकारियां फूटनी शुरु हो गयी।
आनन्द से स्वाति भाभी ने भी अब अपनी आँखें बन्द कर ली थी और अपनी गर्दन को पीछे की तरफ मोड़कर वो मुंह से हल्की हल्की सिसकारियां सी निकाल रही थी। सिसकारियां भरने के लिये उसका मुंह थोड़ा सा खुला हुआ था और उसके टमाटर से लाल लाल होंठ अपने आप ही खुल और बन्द हो रहे थे जो मुझे इतने कामुक और उत्तेजक लग रहा थे कि बस पूछो मत!
मेरा दिल तो कर रहा था कि अभी ही उसके रसीले होंठों को अपने मुंह में भर लूं … मगर उसने अपनी गर्दन नीचे की तरफ की हुई थी इसलिये उसके होंठ मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्बों को पकड़ा हुआ था जिससे मेरे दोनों हाथ भी व्यस्त थे मगर फिर भी मैंने अपने प्यासे होंठों को अब उसकी दूधिया सफेद गोरी चिकनी गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन पर से धीरे धीरे चूमते चाटते हुए उसकी ठोड़ी तक आ गया।
स्वाति भाभी के होंठ तो मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे इसलिये मैंने अब उसकी ठोड़ी को ही पीना शुरु कर दिया.
मगर जैसे ही मैंने उसकी ठोड़ी को चूसना शुरु किया … स्वाति भाभी ने शायद मेरे दिल की बात जान ली और तुरन्त ही अपनी गर्दन को सीधा करके उसने खुद ही मेरे होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया।
मैंने भी अब उसके होंठों को तुरन्त ही अपने मुंह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसना शुरु कर दिया।
अबकी बार स्वाति भाभी ने भी मेरा साथ दिया। उसने खुद ही मेरे ऊपर के एक होंठ को अपने मुंह में भर लिया और मेरे साथ साथ उसे जोरों से चूसने लगी। अब कुछ देर तो ऐसे हमारे होंठों की चुसाई चलती रही फिर धीरे धीरे हमारी जीभ ने भी एक दूसरे के मुंह में जाकर कुश्ती सी लड़ना शुरु कर दिया जिसमें भी स्वाति भाभी अब मेरा पूरा साथ देने लगी।
मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी क्योंकि नीचे से मेरे लण्ड को स्वाति भाभी की चुत चूस रही थी, ऊपर से भी मुझे उसके नर्म रसीले होंठों और जीभ का स्वाद मिलने लगा था जिससे आनन्द के वश अब अपने आप ही मेरे हाथों की हरकत तेज हो गयी।
मैंने स्वाति भाभी को अब थोड़ा जोरों से हिलाना शुरु कर दिया था जिससे उसकी सिसकारियां भी अब और तेज हो गयी. मेरे साथ साथ वो भी अब धीरे धीरे उचक उचककर अपनी चुत की मखमली दीवारों को मेरे लण्ड पर घिसने लगी।
स्वाति भाभी ने मेरी गर्दन में बांहें डाली ही हुई थी, उनके सहारे अब वो भी धीरे धीरे अपने कूल्हों को उचकाने लगी थी जिससे उसकी चुत की फांकें … फांकें क्या … उसकी पूरी की पूरी चुत ही मेरे लण्ड के पास की चमड़ी और मेरे झांटों पर रगड़ खाने लगी … जिसने मेरा आनन्द अब और भी दोगुना कर दिया।
भाभी की चुत की मखमली दीवारें तो मेरे लण्ड की मालिश कर ही रही थी, उसके उचक उचककर धक्के लगाने से अब उसकी चुत की मखमली फांकें भी मेरे लण्ड के आस पास की जगह की तसल्ली से मालिश करने लगी।
मैं तो स्वाति भाभी को धीरे धीरे ही हिला रहा था मगर स्वाति भाभी शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी क्योंकि उसकी गति अब अपने आप ही बढ़ती जा रही थी। मैं तो अपने चरम के आधे भी नहीं पहुंचा था मगर स्वाति भाभी को देखकर लग रहा था कि उसका चरम शायद अब करीब ही आ गया था।
स्वाति भाभी की इस जल्दी को देखकर मुझे अब ये डर लगने लगा था कि कहीं स्वाति भाभी ने जिस तरह मुझे अपनी चुत को चाटते चाटते बीच में ही हटा दिया था वैसे ही कहीं उसका काम हो जाने के बाद वो मुझे प्यासा ही ना छोड़ दे … इसलिये मैंने अब स्वाति भाभी को हिलाने की गति को थोड़ा कम कर दिया।
मगर वो तो मुझसे भी तेज थी क्योंकि अब जैसे ही मैंने अपनी गति को कम किया … उसने तुरन्त ही अब खुद कमान सम्भाल ली। मेरी गर्दन को पकड़कर उसने अब खुद ही मेरे लण्ड पर उछल उछलकर धक्के लगाने शुरु कर दिये.
स्वाति भाभी को देखकर लग रहा था कि वो पूरी खेली खाई हुई थी। मैंने काफी लड़कियों व औरतों के साथ सम्बन्ध बनाये थे मगर इस तरह से और इस आसन(पोजिशन) में तो मैं आज पहली बार ही चुदाई कर रहा था।
भाभी को देखकर मुझे अब प्रिया की याद आ गयी। प्रिया भी स्वाति भाभी के जैसी ही थी मगर स्वाति भाभी अपनी उम्र के हिसाब से उससे दो कदम आगे थी। स्वाति भाभी की हरकत से लग रहा था कि आगे चलकर वो मुझे बहुत मजे देने वाली है।
खैर अब तो मैं भी कुछ नहीं कर सकता था इसलिये मैंने जैसा चल रहा था, वैसे ही चलने दिया और उसे अपने लण्ड पर वैसे ही उछलते रहने दिया। जिससे धीरे धीरे स्वाति भाभी की गति और सिसकारियां और भी तेज हो गयी।
वो बाथरूम छोटा था इसलिये उसकी सिसकारियाँ कुछ ज्यादा ही जोर से ही गुंज रही थी मगर स्वाति भाभी को शायद अब होश ही नहीं था।
वो वैसे ही जोरों से सिसकारियाँ भरते हुए मेरे लण्ड पर फुदकती रही जिससे कुछ ही देर बाद अचानक उसका बदन अकड़ सा गया और मुंह से ‘आह्ह … ईश्श्श … ईश्श्श … आह्ह … ईश्श्श …’ की किलकारियाँ सी मारते हुए वो जोरों से मुझसे लिपट गयी। साथ ही उसकी चुत भी मेरे लण्ड पर कस गयी और रह रह कर मेरे लण्ड को अपने प्रेमरस से नहलाना शुरु कर दिया।
मैंने भी उसे अब कसकर भींच लिया और उसके रस स्खलन में उसका पूरा साथ दिया।
कहानी जारी रहेगी.
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