यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
कुछ देर तक स्वाति भाभी की चूत का पानी मेरे लंड को भिगोता रहा. फिर धीरे धीरे उसके हाथ पैरो की पकड़ ढीली हो गयी।अपने सारे काम ज्वार को मेरे लण्ड पर उगलने के बाद वो निढाल सी हो गयी थी इसलिये धीरे धीरे मेरे लण्ड पर से नीचे उतरकर वो पास में ही रखे उस पटरे पर बैठ गयी और आराम से अपनी पीठ को दीवार से लगाकर अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगी।
मैं अभी भी वैसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी की तरफ देखता रहा। मगर उसका तो मुझ पर ध्यान ही नहीं था वो वैसे ही दीवार से टेक लगाकर लम्बी लम्बी व गहरी सांसें लेती रही।
मैं अब कुछ देर तो ऐसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी को देखता रहा। जब मुझे लगा कि वो अब सामान्य हो गयी है तो मैं भी नीचे उसके पास ही बैठ गया और उसके सिर को पकड़ कर फिर से उसके गालो को चूमना शुरु कर दिया।
“ऊह्ह … ओय्य … क्या कर रहा है … बस्स्स बस्स अब बहुत हो गया … त तुम … तुम जाओ अब यहां से!” स्वाति भाभी ने कसमसाते हुए कहा और दोनों हाथों से मुझे धकेलकर अपने से दूर हटा दिया।
मगर मैं कहां मानने वाला था ‘नहीई … तुम्हारा तो हो गया ना … मगर मेरा?’ कहते हुए मैंने अब फिर से उसे पकड़ लिया।
मेरा तन्नाया लण्ड अब भी पूरे जोश में था जो अब स्वाति भाभी के एक घुटने को छू रहा था।
“बस्स तो अब क्या है? मम्मीजी आने वाली हैं …” उसने मेरे लण्ड की तरफ देखते हुए कहा।
मेरे लण्ड को देखकर वो मेरी हालत समझ गयी इसलिये उसके चेहरे पर अब हल्की सी हंसी आ गयी।
“नहीं … मैं नहीं जाऊँगा।” मैंने उसे वैसे ही पकड़े पकड़े कहा और फिर से उसके एक गाल पर चूमने लगा।
“अच्छा … बस्स्स् तो रुको … अब…” कहते हुए स्वाति भाभी ने मुझे अपने से दूर हटाकर अपने एक हाथ से अब मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ‘उठो … खड़े हो जल्दी से …’ स्वाति भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे उठाने की कोशिश करते हुए कहा।
मैंने हैरानी से अब एक बार तो उसकी तरफ देखा फिर चुपचाप उठकर खड़ा हो गया। मेरा लण्ड अभी भी स्वाति भाभी के हाथ में ही था जिसे उसने अपनी मुट्ठी में भींचकर एक बार तो ऊपर नीचे हिलाकर देखा फिर अपने हाथ को आगे मेरे लण्ड के छोर पर लाकर धीरे से मेरे सुपारे की चमड़ी को पीछे की तरफ खिसका दिया।
अधूरे में ही रह जाने से मेरा लण्ड पहले ही गुस्से में था। अब जैसे ही उसने उसे जबरदस्ती ऊपर नीचे हिलाकर सुपारे की चमड़ी को पीछे किया गुस्से से तमतमाये मेरे लण्ड का टमाटर के जितना बड़ा और बिल्कुल लाल लाल सुपारा फुंकारकर ऐसे बाहर निकल आया जैसे अपने बिल में से किसे सांप ने अपना मुंह बाहर निकाला हो।
गुस्से से मेरे लण्ड का सुपारा पहले ही लाल था ऊपर से उस पर लगे स्वाति भाभी के चूत का रस की चिकनाई से वो और भी सुर्ख लाल होकर चमक सा रहा था।
एक हाथ में मेरे लण्ड को पकड़ कर स्वाति भाभी अब कुछ देर तो वैसे ही मेरे लण्ड को देखती रही फिर उसने अपने दूसरे हाथ से पास में रही रखी बाल्टी से अपनी हथेली में पानी लेकर मेरे लण्ड पर डालना शुरु कर दिया।
भाभी अपने एक हाथ से मेरे लण्ड पर पानी डालती फिर उसे अपने दूसरे हाथ से रगड़कर साफ करने लगी।
ऐसा उसने अब तीन चार बार किया जिससे मेरे लण्ड पर लगा उसका चूतरस तो साफ हो गया मगर गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी सुलग सा उठा।
स्वाति भाभी के मेरे लण्ड पर पानी डालने से मुझे राहत नहीं मिली थी बल्कि ठण्डे ठण्डे पानी के अहसास से गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी दहक सा उठा। उत्तेजना से गर्माये मेरे लण्ड पर पानी का ठण्डा ठण्डा अहसास बिल्कुल ऐसा ही था जैसे गर्म लाल हो रखे लोहे की पर किसी ने पानी डाल दिया हो।
जिस तरह गर्म लाल लोहे पर पानी डालने से वो ‘छी … छी …’ की सी आवाज के साथ झमझमा जाता है वैसे ही उत्तेजना की आग में गर्माया मेरस लण्ड ठण्डे ठण्डे पानी के अहसास से और भी सुलग सा गया।
मेरे लण्ड को अच्छे से साफ करके स्वाति भाभी ने अब एक बार तो अपनी गर्दन उठा कर मेरी तरफ देखा फिर धीरे से खिसक कर वो आगे हो गयी, साथ ही उसने थोड़ा सा उकसकर अपने एक हाथ से उस पटरे को भी अब आगे कर लिया और उस बैठे बैठे ही अपना पूरा मुंह खोलकर सीधा ही मेरे लण्ड को अपने मुंह ने भर लिया। उसके मुंह के नर्म नर्म व मखमली अहसास के कारण मेरे मुंह से अब मीठी सी एक ‘आह्ह …’ निकले बिना नहीं रह सकी और अपने आप ही मेरे दोनों हाथ उसके सिर पर आ गये।
स्वाति भाभी ने भी मेरे लण्ड को अब अपने होंठों के बीच दबाकर उसे धीरे धीरे चूसना शुरु कर दिया। उसने मेरे सुपारे के अग्र भाग से चूसना शुरु किया था मगर धीरे धीरे करके उसने मेरा पूरा सुपारा अपने मुंह में भर लिया और उसे अपने होंठों के बीच दबाकर जोरों से चूसने और चाटने लगी। उसके होंठों के साथ साथ उसकी गर्म लचीली जीभ भी मेरे सुपारे के साथ खेल रही थी जिससे अनायास ही मेरे मुंह से अब मीठी मीठी कराहें सुपाड़े निकलना शुरु हो गयी और मेरे दोनों हाथ अपने आप ही उसके सिर को सहलाने लगे।
स्वाति भाभी भी बिल्कुल किसी मंजे हुए कलाकार की तरह मेरे लण्ड को चूस व चाट रही थी। वो मेरे लण्ड को पहले तो पूरा बाहर निकालकर अपने होंठों को बिल्कुल किनारे पर लाती फिर उसे चूसते व चाटते हुए मेरे पूरे सुपारे को अपने मुंह में उतार लेती। साथ ही उसका एक हाथ जो मेरे लण्ड के बेस को पकड़े हुए था वो उसे भी आगे पिछे हिला हिलाकर मुझे पूरा सुख दे रही थी।
वो बिल्कुल एक निश्चित गति व चाल के साथ अपने हाथ, होंठ व जीभ को चला रही थी। उसके जीभ, होंठ व हाथ के समन्वय को देखकर लग रहा था कि उसे पहले से ही लण्ड चूसने का काफी अभ्यास रहा था।
खैर मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी। मैं तो जैसे बस अब आनन्द से हवा में ही उड़ रहा था और उसके होंठों व जीभ की हरकत के साथ साथ आनन्द के मारे आह्ह … ईश्श् आह्ह … की कराहें ले रहा था।
मेरे मुंह से आनन्द से निकलने वाली कराहों को सुनकर स्वाति भाभी का भी जोश अब बढ़ गया। उसने अपनी जुबान व होंठों को तेजी से मेरे लण्ड पर चलाना शुरु कर दिया। उसका दूसरा हाथ जो की अभी तक खाली था, उसने उसे भी अब पीछे ले जाकर मेरे नंगे नितम्बों को सहलाने में लगा दिया जिससे अब अपने आप ही मेरी कमर भी हरकत में आ गयी।
मैंने उसके सिर को पकड़कर अब अपने लण्ड को खुद ही उसके मुंह में अन्दर बाहर करके उसके नर्म नर्म होंठों के बीच घिसना शुरु कर दिया जिससे वो अब और भी जोश में आ गयी। उसने मेरे लण्ड को अब जितना वो अपने मुंह में ले सकती थी उतना अपने मुंह में उतार लिया और उसे अपने तालु व जीभ के बीच दबाकर जोरों से चूसना शुरु कर दिया।
इससे मेरी तो जैसे अब जान ही सूख गयी … मेरा चरम अब करीब आ गया था इसलिये मैंने भी अब अपने दोनों हाथों से स्वाति भाभी के सिर को पकड़कर जल्दी जल्दी और जोरों से उसके मुंह में अपने लण्ड को अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया।
अब कुछ देर तो वो ऐसे ही मेरे लण्ड को चूसती रही। फिर ना जाने उसके दिल में अब फिर से क्या आया कि उसने मेरे लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और
‘ओय्य्य … बस्स्स अब … मम्मी आने वाली है!” उसने मुझे अपने से दूर हटाते हुए कहा।
मैं बस चरम के बिल्कुल करीब ही था मगर इस तरह बीच में ही स्वाति भाभी के छोड़ देने से मैं तो जैसे आसमान में उड़ता हुआ अचानक जमीन पर आ गिरा था। उत्तेजना के वश मैंने अब फिर उसके सिर को पकड़कर अपने लण्ड पर दबाने की कोशिश की।
मगर ‘क्या … है? बस्स्स तो अब … मम्मी आने वाली है!” स्वाति भाभी ने अपना मुंह मेरे लण्ड से दूर हटाते हुए कहा।
स्वाति भाभी के इस तरह के व्यवहार से मुझे खीज सी हो रही थी इसलिये मैंने उसके सिर को पकड़कर अबकी बार थोड़ा जोरों से अपने लण्ड की तरफ दबा दिया। मगर
“ऊऊऊ … ह्ह्ह … नहीं होगा तेरा?” उसने मेरी तरफ देखकर शरारत से हंसते हुए कहा और पास में रखी बल्टी के कपड़ों को बाथरूम के फर्श पर गिरा लिया।
मैं तो सोच रहा था कि वो जानबूझकर मुझे तड़पाने के लिये ऐसा कर रही है मगर तभी वो उन कपड़ों को फर्श पर फैलाकर जल्दी उनके ऊपर लेट गयी और ‘जल्दी से कर ले अब … मम्मी आने वाली हैं!” उसने अपने दोनों घुटनो को मोड़कर अपनी जाँघों को फैलाते हुए कहा।
स्वाति भाभी को इस तरह से देखकर मैं तो बस उसे अब हैरानी से देखता ही रह गया, क्योंकि वो मुझे झटके पर झटके दे रही थी।
उसने ना ना करते हुए भी इस आधे पौने घण्टे में मुझसे क्या कुछ नहीं करवा लिया था … चुची चूसने से चूत चाटने तक, खड़े खड़े अपनी चुदाई से लेकर मेरा लण्ड चूसने तक और अब फिर से चुदाने के लिये तैयार हो गयी थी।
शायद मेरा लण्ड चूसते चूसते वो अब फिर से उत्तेजित हो गयी थी।
कसम से मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि स्वाति भाभी आज पहली बार में ही मुझसे इतना कुछ करवा लेगी।
मैं तो हैरानी से लगातार बस उसको देखे ही जा रहा था … मगर तभी ‘ओय्ये … जल्दी से कर ले अब … मम्मीजी आने वाली हैं!” स्वाति भाभी ने अपनी सास के आ जाने का मुझे अब फिर से डर दिखाते हुए कहा।
जिस आसन में स्वाति भाभी अब लेटी हुई थी वो मेरा सबसे पसन्दीदा आसन था इसलिये अब मैं भी देर ना करते हुए तुरन्त ही स्वाति भाभी पर टूट पड़ा। उसने भी अपनी जाँघों को पूरा खोलकर मुझे अब अपनी दोनों जाँघों के बीच में ले लिया और साथ ही अपने एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़कर अपनी सीधा ही भुखी चूत के मुंह पर लगा लिया।
अब जैसे ही मैं उसके ऊपर लेटा, एक बार में ही मेरा आधे से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में उतर गया और उसके मुंह से ‘आह्ह्ह्ह …’ की एक हल्की सी कराह निकल गयी।
स्वाति भाभी के ऊपर लेटकर मैंने भी अब पहले तो अपने आप को ठीक से व्यवस्थित किया। फिर जल्दी से अपनी कमर को उचकाकर एक जोर को धक्का लगा दिया। स्वाति भाभी तो पहले से तैयार थी उसकी चूत भी कामरस से लबालब थी। इसलिये अबकी बार लगभग मेरा पूरा ही लण्ड उसकी चूत में उतर गया।
स्वाति भाभी के मुंह से एक बार फिर से ‘आह्ह्ह्ह …’ की एक मीठी सी कराह निकल गयी।
यह कराह पीड़ा की नहीं थी बल्की आनन्द की कराह थी इसलिये स्वाति भाभी ने मुझे अब तुरन्त ही अपनी अपनी दोनों जाँघों के बीच जकड़ सा लिया और मेरे गाल पर प्यार से एक पप्पी देकर अपना एक हाथ मेरे सिर पर व दूसरा हाथ मेरी कमर पर रखकर मुझे जोरों से अपने आप से चिपका लिया।
मैंने भी अब एक बार तो उसके रसीले हो होंठों को प्यार से हल्का सा चूमा फिर तुरन्त ही अपनी कमर से धक्के लगाने शुरु कर दिये जिससे स्वाति भाभी के मुंह से अब ‘आह्ह्ह … ईईश्श्स …। आह्ह … ईईश्श्श … आह्ह …” की सिसकारियाँ फूटनी शुरु हो गयी।
वैसे मैंने शुरुआत तो धीमी ही की थी मगर मैं दो बार चरम के करीब पहुंचते पहुंचते बीच में ही रह गया था इसलिये जल्दी ही मेरी कमर ने अपनी गति पकड़ ली।
इस तरह तेजी से धक्के लगाने से एक बार शायद स्वाति भाभी को थोड़ी पीड़ा तो हुई मगर मैंने उसकी कोई परवाह नहीं की और उसी तेजी व ताकत से नंगी भाभी की चूत में धक्के लगाता रहा।
मेरे धक्के लगाने से स्वाति भाभी भी अब कुछ देर तो कराहती रही मगर फिर जल्दी ही उसकी चूत कामरस से भर गयी और उसने भी मेरा साथ देना शुरु कर दिया। उसकी कराहें भी अब आनन्द की सिसकारियों में बदल गयी और वो भी मेरे साथ साथ अब नीचे से जल्दी अपने कूल्हों को उचकाने लगी जिससे मेरा जोश अब और भी बढ़ गया।
स्वाति भाभी के बदन से उठकर मैं अब अपने हाथों बल हो गया और अपनी पूरी तेजी व ताकत से धक्के लगाने शुरु कर दिये।
स्वाति भाभी भी पूरी खेली खाई हुई थी, उसे पता था कि मैं जिस गति से बढ़ रहा हूँ, उस गति से मैं उससे पहले चरम पर पहुंच जांऊँगा इसलिये नीचे से धक्के लगाने में अब उसने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी।
अब जितनी तेजी से मैं धक्के लगा रहा था, उतनी ही तेजी से स्वाति भाभी भी नीचे से अपनी कमर को उचका उचका कर मेरा साथ दे रही थी।
मेरे और स्वाति भाभी के मुंह से कराहें और सिसकारियाँ तो निकल ही रही थी, हमारी इस घमासान धक्कमपेल से अब ‘पट्ट … पट्ट …’ और ‘फच्च … फच्च…’ की आवाजें भी निकलना शुरु हो गयी जिससे वो छोटा सा बाथरूम अब पट्ट।। पट्ट, फच्च… फच्च… की आवाज के साथ मेरी व स्वाति भाभी की सिसकारियों से गूंजने सा लगा था।
मगर हमें होश ही कहां था … जितना मैं अपनी मंजिल पर पहुचने की जल्दी में था, उससे भी कहीं ज्यादा अब स्वाति भाभी अपनी मंजिल को पाने के लिये उतावली हो रही थी।
हम दोनों में अपनी अपनी मंजिल को जल्दी से पाने की जैसे कोई अब प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी थी।
वैसे तो हल्की सर्दी का सा मौसम था मगर फिर भी हमारी इस धक्कमपेल से हम दोनों के खूब पसीने निकल आये और हमारी सांसें तो जैसे धौंकनी की तरह चल रही थी।
मगर फिर भी मैं और भाभी अपनी वासना की इस धक्कमपेल में लगे रहे।
और फिर कुछ ही देर बाद मेरा ज्वार अपने चरम पर जाकर स्वाति भाभी की चूत में किसी लावे की तरह फूट पड़ा। मैंने उसे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और रह रह कर उसकी चूत को अपने वीर्य से भरना शुरु कर दिया।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब अपनी मंजिल पर पहुंच गयी थी। वो तो जैसे मेरे ही चरम पर पहुंचने का इन्तजार कर रही थी। जैसे ही मेरे लण्ड से उसकी चूत में वीर्य की पिचकारियाँ निकलना शुरु हुई, उसने भी अपने हाथ पैरों को समेटकर मुझे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और अपनी चूत में ही मेरे लण्ड को दबोचकर उसे रह रह कर अपने प्रेमरस से नहलाना शुरु कर दिया।
अब कुछ देर तो मैं और स्वाति भाभी ऐसे ही एक दूसरे की बांहों में समाये पड़े रहे। फिर धीरे से स्वाति भाभी ने अपने दोनों हाथों से मुझे पीछे की तरफ धकेलकर अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया।
मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी से उतर कर अब खड़ा हो गया और अपने कपड़ों को सही से करके स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब उठकर खड़ी हो गयी जिससे मेर ध्यान अब सीधा ही उसकी जाँघों पर चला गया। भाभी की दूधिया सफेद गोरी चिकनी जांघें मेरे धक्कों की थाप खा खाकर चूत के पास से बिल्कुल लाल हो गयी थी।
खड़े होने से उसकी चूत में भरा हुआ मेरा वीर्य भी अब उसकी चूत से रिसकर उसकी जाँघों पर बह आया था।
मगर स्वाति भाभी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और खड़े होकर सीधा बाथरूम के दरवाजे के पास आ गयी।
“तेरे कपड़े तो भीग गये … अब घर कैसे जायेगा? तू अपने साथ साथ तुम मुझे भी मरवायेगा!” उसने मेरे कपड़ों की तरफ देखते हुए कहा।
जाहिर है जब बाथरूम में ये सब होगा तो कपड़े तो भीगने थे ही … मगर मुझे उसकी कोई परवाह नहीं थी।
“कुछ नहीं होगा, मैं सब देख लूंगा।” मैंने अब फिर से उसको पकड़कर उसके होंठों को चूमते हुए कहा।
“ऊऊह्ह … क्या है? जा अब तू … मम्मी आने वाली हैं!” उसने मुझे अपने से दूर करते हुए कहा और बाथरूम के दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर बाहर देखने लगी।
स्वाति भाभी ने पहले तो अपनी गर्दन निकालकर बाहर इधर उधर देखा कि कोई है तो नहीं, फिर ‘जाओ अब यहां से … और हां, वो सिलाई मशीन मेरे कमरे में मेज पर रखी हुई है!” उसने मुझे बाहर निकालते हुए कहा।
अब मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी के कमरे से सिलाई मशीन लेकर अपने घर आ गया।
अब एक बार मेरे और स्वाति भाभी के सम्बन्ध क्या बने, वो बनते ही चले गये। उसे जब भी मौका मिलता वो मुझे अपने घर बुला लेती या रात को छत पर ही हमारी मुलाकात हो जाती।
उसने सही ही कहा था कि अगले महीने पिंकी आयेगी।
स्वाति भाभी के साथ साथ अब पिंकी के साथ भी मेरे फिर से सम्बन्ध बन गये जो अभी तक चल रहे हैं।