अन्तर्वासना के सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार. माफी चाहता हूं कि इस कहानी को लाने में मुझे बहुत देर हो गयी. पर अनन्तः आप लोगो का प्यार, आपकी चाहत मुझे वापस खींच ही लायी।
आपने मेरी पिछली कहानी पढ़ी
लंड बना सफ़र में हमसफ़र
आप लोगों ने इसे बहुत प्यार दिया. इसके लिये मैं आपका बहुत आभारी हूँ।
अन्तर्वासना की मदद से मुझे बहुत से नए मित्र मिले, उनमें से ही एक थी सुरभि।
सुरभि जी अन्तर्वासना की नियमित पाठिका हैं. और जब इनकी मुझसे अच्छी दोस्ती हो गयी तब इन्होंने अपने जीवन के कुछ पलों को मेरे साथ साझा करना चाहा. यह उन्ही के जीवन की घटना है जो मेरे माध्यम से प्रकाशित हो रही है. पर उन्ही की जुबानी।
आइये अब आगे की कहानी सुनते हैं सुरभि जी के शब्दों में:
नमस्कार और सब खैरियत?
मैं आपकी सुरभि पांडेय, उम्र वही जो चाह आज के नवयुवकों की यानि कि 29 वर्ष।
मेरे बारे में बस इतना जान लीजिए कि मेरा अपना तो पता नहीं पर लड़कों की नजर में मैं पूरी जन्नत थी। उसकी वजह थी मेरा शरीर!
मेरा बदन पूरा भरा हुआ गुदगुदा बदन है. जो भी मुझे देखे, बस अपने बिस्तर पर लिटाने का ख्वाब देख ले। मेरे बदन के दो सबसे आकर्षक हिस्से है पहला मेरे स्तन, जो 34C के आकार के हैं. और इतनी चुदाई के बाद भी ढीले नहीं पड़े हैं.
और दूसरा सबसे आकर्षित करने वाला भाग है मेरी जाँघें.
पता नहीं … मेरी जांघों में ऐसी क्या बात है … पर आज तक जितनों से भी चुदी हूं सब मेरी जाँघों से लिपटे रहते हैं और सब मेरी मोटी और ऊपर की ओर उठी हुई जाँघों की प्रशंसा जरूर करते हैं।
मैंने अपनी जवानी में 20 वर्ष की उम्र तक कभी भी चुदाई का मौका नहीं छोड़ा। यहां तक कि मैं एक बार अर्धवार्षिक परीक्षा में पास होने के लिए 52 वर्षीय हेमन्त सर का लंड चूस कर माल पी गयी थी.
पर उसके बाद कभी मैंने उन्हें लिफ्ट नहीं दी क्योंकि मेरे पीछे लड़कों की फौज थी और नए व मोटे लंड की कोई कमी नहीं थी.
लेकिन शादी के बाद ये सब कम होता चला गया. मेरा जीवन काफी बदल गया था।
मेरे पति एम आर हैं जो बदन से खूब हट्टे कट्टे हैं और सिर्फ बदन से ही नहीं, उनके लिंग का साइज भी 8 इंच है और सबसे बड़ी बात वो चुदाई के बहुत शौकीन भी हैं।
उनसे शादी के बाद मैंने वो सारे चुदाई के आसन भी सीखे, जो शादी से पहले कभी किये सुने भी नहीं थे। हम पूरी रात में 3 से 4 बार सेक्स करते। मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी।
मुझे तो मनचाहा पति मिल गया था जो मेरी गांड और चूत के छेद में कोई अंतर नहीं समझता था। वो जितना प्यार मेरी चूत से करते, उससे भी कहीं ज्यादा प्यार वो मेरी गांड को देते।
दोनों को ही अपने लन्ड व जीभ से भरपूर प्यार करते।
जबसे मेरी शादी हुई थी उनकी चुदाई पाकर मैं और गदराए गुलाब की तरह खिल गयी थी। मेरे निप्पल पहले से मोटे व बड़े हो गए थे। आखिर हों भी क्यों न … पूरी रात छोटे बच्चों की तरह उसे चूसते रहते।
खैर हमारी प्यार भरी जिंदगी खूब मजे से चल रही थी.
पर शादी के लगभग एक वर्ष बाद उनका तबादला लखनऊ हो गया। मैंने उनसे मुझे साथ ले जाने की बात की पर उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि मां पिताजी के साथ कौन रहेगा, उनका ख्याल कौन रखेगा और मैं हर शनिवार को तो आऊंगा।
शुरू में तो वो अपने वादे पर कायम रहे, पर धीरे धीरे वो महीने में एक बार आने लगे। वो जब भी आते हम रात को सोते नहीं, पूरी रात में 4 से 5 बार सेक्स करते. पर पूरे महीने की आग एक रात में थोड़ी न मिटती है।
फिर धीरे धीरे उनका आना और कम होता गया। एक बार वो लगातार 3 महीने घर नहीं आये, मैं फ़ोन पर उनसे बात कर उंगली कर लेती. खाली समय में अन्तर्वासना पढ़ कर चूत में 3 से 4 उंगलियाँ सुपुर्द कर देती. पर उंगली य बैंगन कभी लन्ड की जगह नहीं ले सकते।
जब वो 3 महीने घर नहीं आये, उसी दौरान एक ऐसा वाकया हुआ जिसे याद करके मैं आज भी रोमांचित य उत्तेजित हो जाती हूँ. मेरी कहानी उसी घटना के बारे में है।
उस दिन पिताजी और माताजी को दर्शन के लिए चित्रकूट निकलना था. तो मैंने जल्दी से सारी पैकिंग कर दी. खाना आज सुबह ही बना दिया था।
11 बजे तक मां पिताजी खा पीकर ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े। अब उन्हें अगले दिन आना था।
मैं भी खा पीकर 12 बजे दोपहर तक बिस्तर पर आ गयी।
आज मेरे मन में अजीब सी हलचल हो रही थी, सुबह से ही चूत ने अपना मौसम बना लिया था। मेरे मन में अब बस एक बात थी कि पतिदेव के पास फ़ोन करूँगी और खूब सारी गंदी बातें करके चूत में उंगली करूँगी. पर आज उनका भी दिमाग खराब था, मेरे 10 फ़ोन के बावजूद उन्होंने कॉल नहीं रिसीव की।
मुझे गुस्सा आ गया था, पर क्या करती।
मैं रसोई से एक मूली ले आयी और अन्तर्वासना पर गंदी चुदाई की कहानियां पढ़ने लगी। पढ़ते पढ़ते कब सिसकारी लेते हुए मैंने चूत में मूली पेवस्त कर ली मुझे पता ही नहीं चला. हवस पूरी तरह मुझ पर हावी थी.
ऐसे करते करते ही मैं तेज सिसकारी लेते हुए बिस्तर पर झड़ गयी।
कुछ देर ऐसे ही निढाल पड़ी रही फिर भीगी हुई मूली को चूसते हुए बाथरूम की तरफ चल दी. पूरे शरीर में गर्मी का अहसास हो रहा था।
बाथरूम में फ्रेश होकर मैंने चेंज किया, एक ढीली मैक्सी डाली और बाहर आई।
घड़ी में देखा तो 2 बजने को थे।
मैं बोर हो रही थी तो बाहर बालकॉनी में आई तो देखा कि पास के सभी छोटे बच्चे एक फटे पुराने कपड़े पहने हुए पागल को मार रहे थे।
मैंने उन बच्चों को डांटा तो वे भाग गए और वो पागल मेरे घर के नीचे आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
मुझे उस पर बहुत दया आयी, मैं नीचे गयी, उसे वहीं बैठने का इशारा किया।
उसने बताया कि उसे भूख लगी है।
खाना अभी भी बचा हुआ था तो मैं अंदर से खाना ले आयी।
मैं उसे खाना दे ही रही थी कि तभी मेरी नजर उसके फटे हुए पैंट से लटकते हुए लन्ड पर गयी, मैं तो सिहर गयी। उसका सोता हुआ लन्ड भी 6 इंच से ज्यादा ही था। मेरा गला ही सूख गया। मैं उसे बिना खाना दिए, खाना वहीं छोड़कर घर की तरफ लपकी।
मुझे नहीं पता कि मैंने ऐसा क्यों किया, पर उस वक्त मुझे यही सूझा।
मैं लगभग 5 मिनट अंदर ही रही, फिर मैं बाहर निकली ये देखने कि वो गया या अभी है।
वो वैसा ही बैठा था, उसने खाना भी नहीं लिया था।
मैंने उसके चेहरे को देखते हुए पूछा- खाना नहीं है क्या?
उसने फिर अपने हाथ फैला दिए।
मैं उसके थोड़ा पास गई, बर्तन से खाना निकाल कर पत्तल पर रखा। मेरी नजर उसके मोटे लन्ड पर ही रुक जा रही थी। उसका लन्ड मेरे पति से काफी बड़ा था।
मेरे अंदर झुरझुरी सी हो रही थी, मैं ये मौका खोना नहीं चाहती थी। मैंने सोचा अगर इसे चोदना नहीं भी आता होगा तो कम से कम इतना मोटा लन्ड अपने जीवन में चूस तो लूँगी।
अन्तर्वासना की सारी कहानियां मेरे दिमाग में घूम रही थी।
मैंने अपने आस पास देखा, एक दो छोटे बच्चों के अलावा कोई नहीं था। मेरी अन्तर्वासना ने कहा कि इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
मैंने उसके खाने की थाली उठा ली और कहा- अंदर बैठकर खाओ, यहां धूप है।
वो बिना कुछ बोले उठ गया और पीछे पीछे आ गया। वो खाना खाने लगा.
वो खाना खा रहा था और मैं आगे का प्लान बना रही थी कि कैसे इसके लन्ड को मुँह में लेकर चूस सकूँ।
मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए उससे कहा- आज कुछ ज्यादा ही गर्मी है.
उसने सिर्फ हाँ में सिर हिला दिया।
मुझे मेरा प्लान बेकार होता दिख रहा था. पर मैंने भी ठान लिया था कि किसी भी कीमत पर ये मौका जाने नहीं दूंगी।
मैंने कहा कि मुझे तो बहुत गर्मी लग रही है,मैं ये उतार देती हूं.
ऐसा कहते हुए मैंने सिर के ऊपर से मैक्सी निकाल दी।
बहुत हिम्मत दिखाई थी मैंने … अब मैं सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में थी उसके सामने।
मेरे 34″ की चूचियों ने अच्छे अच्छे को हिला दिया था, ये कैसे बच पाता। मुझे उसके लन्ड में थोड़ी हरकत महसूस हुई। मुझे थोड़ी खुशी मिली.
पर मेरी खुशी तुरन्त गम में तब्दील होने लगी जब वो खाना खत्म करके बाहर की तरफ जाने लगा।
एक पल के लिए मुझे लगा कि सब खत्म!
मैं उस हाल में थी कि बाहर भी नहीं जा सकती थी। मैंने उसे वहीं से आवाज दी कि कपड़े लोगे? साहब के कपड़े।
उसके कदम ठिठक गए।
मैंने उसे अंदर आने का इशारा किया, वो फिर आ गया।
अब मेरा प्लान तैयार था।
मैं तुरंत अलमारी से 2 अच्छे कपड़े ले आयी और उसके सामने रख दिये।
मैंने उससे कहा- ये साहब के कपड़े हैं. इन्हें ऐसे नहीं पहनना, पहले नहा लो। ठंडा पानी है, नहा लो फिर पहनो।
वो बस देख रहा था.
मैंने हिम्मत करके उसका हाथ पकड़ा और बाथरूम की तरफ ले गयी. मैं खुद शॉवर ऑन कर दिया और उससे कपड़े उतारने को बोला।
मैं जल्दी से मेन गेट की तरफ गयी और उसे अंदर से बंद किया और वापस उसके पास आ गयी।
अब तक वह शर्ट उतार चुका था पर पैंट पर हाथ भी नहीं लगाया था। मैं झुक कर घुटनों के बल उसके पास बैठ गयी। मेरी नाक उसके पैंट की चैन के पास थी. पैंट के ऊपर से ही उसके लन्ड की बदबू मेरे नथुनों में घुसी जा रही थी। उसके चेहरे की तरफ देखते हुए मैंने उसके पैंट की बटन खोल दी, पैंट तुरन्त पांव में आ गिरी।
उसकी फ़टी हुई चड्डी में से उसके लन्ड के आगे का हिस्सा बाहर निकला हुआ था। मैंने जल्दबाजी नहीं की, उसे नहाने का इशारा किया.
वो शॉवर के नीचे आ गया।
अब उसके भीगी हुई चड्डी में उसका मोटा सांड सा लण्ड चिपका हुआ था। मौका देखकर मैंने भी अपनी ब्रा उतार दी और अपने 34 के चूचों को आजाद कर दिया. और धीरे धीरे मैं भी शावर के नीचे आ गयी।
मेरे हिलते हुए विशालकाय चूचों ने उसके लन्ड की हालत खराब कर दी थी। उसका मूसल जैसा लन्ड बाहर आने को तड़प रहा था। जब मैंने उसके हाथ अपने चूचियों पर रखे तो वो मचल पड़ा। उसने बिना कुछ बोले पूरी ताकत से मेरी चूचियों को भींचना शुरू कर दिया।
उसके हाथों की सख्ती से तो मैं पागल हो गयी, मैं तेजी से सीत्कार लेने लगी। मेरी चूत में चीटियों का झुंड रेंगने लगा था।
मैंने समय न गंवाते हुए तुरन्त पेटीकोट को शरीर से अलग किया और उसका सिर पकड़ कर पैंटी के ऊपर से ही अपनी जाँघों के बीच में दबा दिया।
वो पागल बहुत ही मंझा हुआ खिलाड़ी था, शायद वह चूत के चक्कर में ही पागल हुआ होगा। उसने अपनी नुकीली जीभ निकाल कर पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को कुरेदने लगा। उस ठंडे पानी में खड़ी होकर भी मैं आग की तरह गर्म थी।
मैंने पैंटी को नीचे खिसका दिया. अब वो पूरी तरह से मेरी चूत का रसास्वादन कर रहा था और मैं पूरी ताकत से उसका चेहरा अपनी चूत में दबा रही थी। आखिरकार मेरे सब्र का बांध टूटा और मैं अपनी चूचुकों को बुरी तरह मसलते हुए उसके चेहरे पर गर्म लावा की धार छोड़ दी.
वो अब भी चूत छोड़ने को राजी नहीं था, वो चूत के रस की एक एक बूंद को चाट गया। मैं निढाल होकर बाथरूम में किनारे की ओर बैठ गयी।
उसने अब रंग दिखाना शुरू किया था, उसने अपना अंडरवियर नीचे कर दिया.
बाप रे बाप … ऐसा लग रहा था जैसे किसी इंसान को गधे का लन्ड दे दिया गया हो. खड़े होने पर उसके लन्ड का साइज 9 इंच था। उसका लन्ड किसी गुस्साए नाग की तरह फुफकार मार रहा था।
उसका लन्ड देखकर ही मेरे होश उड़ गये थे.
फिर मैं घुटनों के बल चलती हुई उसके लन्ड के पास आई और बगल में रखा हुआ साबुन लेकर उसके लन्ड पर रगड़ने लगी. उसके लन्ड को अच्छी तरह से धोने के बाद मैंने उसे पीछे गांड से पकड़ा और लन्ड के टोपे को अपने होंठों में जकड़ा और धीरे धीरे उसके मूसल लन्ड पर अपनी जीभ फिराने लगी।
मैं भी पुरानी रंडी थी, मर्द को काबू में करना जानती थी। मैंने उसके लन्ड को मुठ्ठी में लिया और उसके आंड पर जीभ फिराने लगी।
उसकी आंखें बंद होती चली गयी।
मैंने उसके पूरे आंड को मुँह में समा लिया और रसगुल्ले की तरह चूसने लगी. जादू तो तब हुआ जब मैंने उसके लन्ड को मुठियाते हुए एक उंगली उसके गांड के छेद पर लगा दी।
उसने मेरी मुट्ठी में ही लन्ड की स्पीड दुगुनी कर दी। इसी तरह मैं उसका लन्ड चूसती रही.
बमुश्किल मैं उसका आधा लन्ड ही मुख में ले पा रही थी. आधा लंड ही मेरे गले तक जा रहा था।
लगभग 10 मिनट की लन्ड चुसाई के बाद वो तूफान की तरह फट पड़ा। ऐसा लग रहा था जैसे वर्षों से उसका माल न छूटा हो.
मेरे पूरे मुंह नाक और होंठों पर उसका गाढ़ा माल था। उसका माल से सना हुआ लन्ड, जिसकी नसें फूली हुई थी और भी डरावना लग रहा था।
मैंने अपने फ़ोन से उसके लन्ड की कुछ तस्वीरें ली, फिर उसके लन्ड को अच्छी तरह से धुलवा कर उसे बाहर ले आयी और उसे अपने पति के कपड़े दिए पहनने के लिये.
उसे रूम में लाकर बेड पर बैठाया और फ़ोन देखा तो पतिदेव के 15 मिस्ड कॉल्स पड़ी थी।
मैंने पहले मां बाऊजी को कॉल किया क्योंकि मेरे दिमाग में रात का सीन साफ था, मैं इस मौके का पूरा फायदा लेना चाहती थी।
माँ ने तो साफ कह दिया कि वो अब कल दोपहर से पहले नहीं आ सकेंगी।
अब मैंने पति देव को कॉल किया तो उन्होंने पहले बात न करने के लिए क्षमा माँगी और उन्होंने हिदायत दी कि घर का दरवाजा अंदर से बंद रखूं।
मैंने कहा- आप चिंता न करें, वो दोपहर से बंद कर रखा है मैंने।
उनसे बात करके मैंने उन्हें तसल्ली दी कि मैं पूरी तरह सुरक्षित हूँ, फिर फ़ोन रख दिया।
अब मेरा रास्ता क्लियर था, तभी दरवाजे की घंटी बजी, मैं बुरी तरह डर गई।
मैंने जल्दी से अपने लण्डधारी यार को बाथरूम में छिपाया फिर कपड़े सही करते हुए गेट पर गयी।
गेट पर देखा तो पड़ोस वाली आंटी की बेटी मिष्टी खड़ी थी, उसे फावड़ा चाहिए था। मैंने उसे फावड़ा लाकर दिया और फिर गेट लॉक कर दिया और वापस अपने यार के पास पहुंची।
उन कपड़ों में वह मुझे मेरे पति परमेश्वर ही दिखाई पड़ रहा था। मैंने उसे होंठों पर एक जोरदार किस दी. बदले में उसने मेरी गांड को दबा दिया. मैं मुस्करा दी.
मुझे पता था कि मेरी आज की रात में कुछ खास होगा।
इन सब हरकतों में कब 6 बज गए पता ही नहीं चला। मैं उसे किस देकर किचन की ओर बढ़ गयी. अब समय था कुछ बनाने का।
उससे मैंने चाय के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया और मेरी चूचियों की तरफ इशारा किया।
मैंने जवाब दिया कि जल्दी क्या है आज तो रात अपनी है.
ऐसा कहकर मैं किचन में आ गयी और गैस ऑन करके दूध रख दिया.
पर मेरे आशिक़ को तो जैसे चैन ही नहीं था, उसने पीछे से आकर मेरे स्तनों पर हमला बोल दिया, उन्हें दबाने लगा। वो मेरी गर्दन पर चूमने लगा।
अपनी गांड पर गर्म लन्ड का एहसास पाकर मैं भी आपा खोने लगी। मैं गैस पर रखे दूध को भूल गयी.
अरे जब अपना खुद का दूध उबाल पर हो तो गैस पर रखा दूध किसे याद रहता है।
वो मेरे दूधों से मैक्सी के ऊपर से ही खेल रहा था। उसके दोनों हाथ दूध से फिसलते हुए मेरी उठी हुई गोल गांड पर आकर रुक गए. वो मेरी गांड को किसी नर्म आटे की तरह गूँथने लगा। मेरी गांड से खेलते हुए वह बीच बीच में मेरे निप्पल्स मरोड़ देता, मेरी तो जान ही निकल जाती पर उसी सिसकारी में सेक्स का सारा मजा होता है।
मेरी गांड से खेलते हुए उसने मैक्सी को पीछे से ऊपर उठा दिया और मेरी गदरायी हुई नर्म गांड को कसी हुई गुलाबी पैंटी के ऊपर से ही चूमने लगा. फिर उसने मुझे कमर से पकड़ कर 90° डिग्री पर झुका दिया। मैं झुक गयी, मेरे हाथ किचन की रेलिंग पर आ गये।
उसने मेरी पैंटी को गांड से अलग कर दिया और उसे नीचे की ओर खिसका दिया। अब मेरी गोल, गोरी व उठी हुई गांड उसकी आँखों के सामने नंगी थी। मेरी गांड को देखकर वो पागल हो गया, उसने मेरी गांड पर चुम्मियों की बौछार कर दी। मेरी पूरी गांड को चूमने लगा।
चूमते हुए वो मेरी गांड के दोनों हिस्सों के बीच की दरार में अपनी जीभ फिराने लगा और घाटी में थूक की लड़ी बहा दी जो दरार से बहते हुए गांड के छेद पर जा रही थी।
मैं बस आंख बंद करके मन्द मन्द सिसकारी लेते हुए मजे लूट रही थी।
घाटी में थूकते हुए उसी घाटी के सहारे वो गांड के छेद तक पहुंच गया और अपनी जीभ गांड के छेद पर टिका दी।
गजब का एहसास होता है जब कोई गांड के छेद पर अपनी जीभ लगाकर उसे कुरेदता है.
और वो तो मेरी थूक से लथपथ गांड को ऐसे चाट रहा था मानो किसी जन्मों के भूखे को मीठी खीर मिल गयी हो।
वो पूरी शिद्दत से गांड के छेद को चूस रहा था.
कुछ देर चाटने के बाद उसने अपने लण्ड को पैंट से आजाद किया और मुझे घुमाकर मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने जल्दी से अपनी जीभ उसके लण्ड के टोपे पर लगा दी और उस पर जीभ फिराने लगी।
उसने लण्ड मेरे मुंह में डालना शुरू कर दिया, मैं समझ गयी। मैंने जल्दी से थूककर उसका लण्ड गीला किया।
उसने मुझे वापस उसी अवस्था में झुका दिया 90 डिग्री पर और खुद घुटनों के बल आ गया और एक बार फिर से मेरी गांड के छेद को चूमते हुए उस पर थूकने लगा.
मेरी गांड को फिर से गीला करके वह उठा और अपने गीले लण्ड को मेरी गांड के छेद पर टिका दिया। उसके लण्ड के आगे का हिस्सा मेरी गांड पर किसी गर्म लोहे के छूने का अहसास दे रहा था। मैं अपने निप्पलों को धीरे धीरे दबा रही थी और मैंने अपनी आंखें बंद कर रखी थी।
उसने मेरा हाथ चूचियों से हटाया और अपने हाथों से निप्पल को मरोड़ते हुए एक जोरदार शॉट मारा.
उसका लगभग 4 इंच लण्ड एक बार में अंदर चला गया, मैं दर्द से चिहुंक गयी. पर उसके मजबूत हाथों ने मुझे पकड़ रखा था, मेरी आँखों से आंसुओं की धार निकल गयी.
लगभग 2 मिनट तक मेरी चूचियों से खेलने के बाद उसने दूसरा शॉट मारा. इस बार उसका आधा लण्ड मेरी गांड में समा गया. वो मेरी चूचियों को मींजता रहा. जब मुझे थोड़ा आराम मिला तो उसने अपनी कमर को हिलाना शुरू किया.
वैसे तो मैं बहुत चुदी थी और मेरी गांड भी खूब चली थी. पर इसका लन्ड किसी गधे के माफिक था जो किसी को भी रुला सकता था.
पर ऐसा लण्ड किसी किसी किस्मत वाली को ही नसीब होता है।
वो धीरे धीरे अपनी कमर की रफ्तार बढ़ा रहा था. अब मुझे भी मजा आ रहा था और मुझे भी किस्मत से मिले इस लण्डधारी के लण्ड का पूरा स्वाद लेना था तो मैं भी अपनी कमर हिलाने लगी. और धीमे धीमे पीछे को तरफ धकेलने लगी।
कुछ ही देर बाद उसका पूरा लन्ड मेरी गांड में अंदर बाहर होने लगा। अब मुझे बहुत मजा आने लगा था. उसने अपने लण्ड की स्पीड बहुत तेज कर दी. मैंने भी अपनी कमर की स्पीड बढ़ा दी।
वो जितनी तेजी से धक्के देता, मैं उतनी ही तेजी से गांड को पीछे की तरफ धक्का देती।
दोनों की इस धक्का मुक्की ने किचन को छप थप, छप थप, छप थप की आवाजों से मग्न कर दिया था।
उसका मोटा लन्ड मुझे बहुत मजे दे रहा था। वो मेरी गांड के मजे ले रहा था पर मेरी एक उंगली मेरी चूत के चक्कर काट रही थी. मेरी चूत से उबलती हुई पानी की धार मेरी मोटी जाँघों से होकर नीचे फ़र्श तक जा रही थी।
मैं बीच बीच में चूत से उंगली निकाल कर अपने मुख में लेकर पानी का स्वाद ले लेती। इन्ही सब के दरम्यान लगभग 10 मिनट बाद उसने अपने धक्कों की स्पीड बहुत ही तेज कर दी और जोर जोर से आहें भरने लगा।
अब मैं समझ गयी कि उसका माल निकलने वाला है.
मैंने झट से दांव बदला और लण्ड को गांड से अलग करके झट से अपने मुख में भर लिया।
अगले ही पल 5 से 7 झटकों के बाद उसके लण्ड ने गर्म पिचकारी छोड़ दी और उसका सारा गर्म लावा मेरे मुंह के अलावा मेरे होंठों पर आ गिरा। मैंने उसके वीर्य की एक एक बूंद को चाट कर साफ कर दिया।
चूंकि अब रात हो गयी थी तो अब खाना बनाने का वक्त आ गया था.
पर अब मेरे पैर कांप रहे थे, मैं सीधे बैडरूम में गयी और बिस्तर पर पड़ गयी. मेरी सांसें तेज चल रही थी।
कुछ ही पल बाद वो बैडरूम में दाखिल हुआ और मेरे बगल आकर लेट गया. हम दोनों ने कसकर एक दूसरे को बांहों में जकड़ा और होंठों को एक कर दिया. फिर बहुत देर तक हम एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे.
और इसी बीच मुझे कब नींद आ गयी, पता ही नहीं चला।
मेरी नींद 2 घंटे बाद खुली तो देखा कि वो अभी भी मेरे बगल सो रहा था।
घड़ी में देखा तो 9 बज रहे थे।
मैं धीरे से उठी और बाथरूम की तरफ गयी। बाथरूम में फ्रेश होकर बाहर आई, कपड़े सही करके बाल बांधे।
बैडरूम से जाकर फ़ोन लिया तो पापा व पतिदेव दोनों के फ़ोन आये थे। मैंने पति को फ़ोन लगाया तो उधर से उन्होंने सवाल किया कि कितनी बार फ़ोन किया कहाँ थी?
मैंने बात सम्हालते हुए जवाब दिया कि किचन में खाना बना रही थी, फ़ोन बैडरूम में था।
उन्होंने कहा- ठीक है, तुम घर पर अकेली हो इसलिए पड़ोस की सरिता आंटी को बोल दिया है, वो आती ही होंगी, रात में वो तुम्हारे पास ही रहेंगी।
मेरे तो होश ही उड़ गये थे। मैंने कितना प्लान किया था रात को लेकर … मेरी चूत तो अभी भी सूखी ही थी. पर इन्होंने तो सारे प्लान पर पानी फेर दिया था।
वो उधर से हेलो हेलो बोल रहे थे.
मैंने ‘ठीक है’ कहकर फोन रख दिया।
मैंने जल्दी से उसको नींद से उठाया और बाहर जाने को बोला. उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। मैंने उसे जल्दबाजी में पूरी बात समझायी. पर उसका भी जाने का मन नहीं हो रहा था।
मैं सोचने लगी, आखिरकार एक खुरापाती विचार ने मेरे दिमाग में जन्म लिया।
आगे की कहानी जल्द ही पता चलेगी आपको!
अपना प्यार यूं ही बनाये रहिएगा, अपनी पसंद व शिकायतों का जिक्र आप कर सकते हैं मेरी इमेल आईडी [email protected] पर।