यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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उस दिन जो कुछ हुआ उससे मुझे इतना तो पक्का हो गया था कि स्नेहा को फील तो अच्छा लगा और उसके कुछ भी करने के ना रोकने से ये भी पता चल गया था कि बहुत ही जल्द अब चूत-चुदाई के लिए भी मिल जाएगी।
मैंने घर लौटने के कुछ देर बाद स्नेहा को कॉल किया मगर मेरे दो बार फ़ोन करने से भी उसने बात नहीं की तो मुझे लगा कि कहीं उसे बुरा तो नहीं लगा जो कुछ भी सिनेमा हॉल में हुआ। मगर उसे देखकर तो ऐसा नहीं लगा था।
फिर शाम को करीब 7 बजे बाद स्नेहा का फ़ोन आया, मैंने फ़ोन उठाया।
स्नेहा- सॉरी बेबी, मैं आकर सो गई थी जब आपने कॉल किया, सॉरी सॉरी।
मैं- सॉरी कहने जैसा कुछ नहीं किया तुमने, बात नहीं होने से मुझे लगा कि शायद होस्टल जाकर आज जो भी हुआ कहीं तुम उसे गलत फील न करने लग जाओ।
स्नेहा- अरे, गलत क्या फील करती बल्कि जो फील किया उससे अच्छी फीलिंग आज तक कभी फील नहीं हुआ। वो सब छोड़ो, अब कब मिलेंगे हम?
मैं- क्यों, फिर करने का मन हो रहा है?
स्नेहा- क्यों, आपका मन नहीं हो रहा करने का?
मैं- मन तो इतना हो रहा है कि अगर तुम साथ होती तो कहीं में खुद पे कंट्रोल खोकर तुमसे सब कुछ कर न दूँ।
स्नेहा- अच्छा, जैसे मैं करने देती सब?
मैं- अगर ना करने देती आज हम वो कुछ नहीं कर पाते जो कुछ हुआ। अगर किसी के देखने का डर ना होता तो मैं वहीं सब कर लेता। मेरे लंड की हालत पता थी तुमको! वो इतना सख्त हुआ ही तुम्हारी चूत के लिए था।
स्नेहा- अंधेरे में कुछ सही से देख नहीं पाई मगर छूकर और फील करके जो भी लगा सब अच्छा लगा।
फिर बोली- वन ऑफ द बेस्ट फीलिंग आइ एवर हेड इन माइ लाइफ। (मेरे जीवन की सबसे अच्छे पलों में से थे वो पल!)
मेरा दिल अब स्नेहा को चोदने का था तो मैंने पूछ लिया- आगे कुछ करने का इरादा है।
स्नेहा- मम्मम … है भी और नहीं भी।
मैं- मतलब?
स्नेहा- है इसलिए क्योंकि सुना है कि उससे अच्छी कोई और फीलिंग नहीं है. दूसरी और नहीं इसलिए, एक तो डर लगता है कि कहीं कुछ हो न जाए, दर्द भी होता है और दूसरी बात, ऐसी कोई जगह नहीं जहां कोई देखे ना और कुछ कर सके।
मैं- कुछ होने का डर तो मत रहने दो, उन सबके लिए तो बहुत तरीके है, टेबलेट्स, कंडोम्स। और जगह तुम मुझ पर छोड़ दो, मैं इंतज़ाम कर लूंगा। तुम बस इतना बताओ, करना है कि नहीं?
स्नेहा- अगर कोई परेशानी नहीं होगी तो मैं तो आपकी ही हूँ। आज कुछ करने से नहीं रोका तो आगे भी नहीं रोकूंगी।
फिर थोड़ी बात करने के बाद वो ‘खाना खाकर बात करते हैं.’ बोलकर चली गई और बाद में रोज़ बात होती रही। अब दिल में स्नेहा की चुदाई की तड़प इतनी हो चुकी थी कि लंड स्नेहा को सोचकर ही खड़ा होने लगता था।
किसी बात का डर नहीं था मुझे, बस जगह का जुगाड़ करना था। फिर सोचा कि आफिस कब काम आएगा। मगर उसमें भी दिक्कत थी कि मैनेजर जब तक होगा तब तक कुछ नहीं हो पाएगा।
यहां मैं आपको बता दूं कि मेरे आफिस में मैं, मैनेजर और एक बंदा जो आफिस की देख-रेख करता था और उसे कमरा भी दिया था आफिस में ही रहने के लिए!
आफिस का बन्दा तो अपने गांव गया हुआ था अपने रिश्तेदार की शादी में, मगर दिक्कत थी मैनेजर।
फिर मुझे एक दिन सुबह मैंनेजर का फ़ोन आया कि आज वो नहीं आएगा तो चाहूं तो मैं चला जाऊं और न भी जाऊं तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।
मैंने कहा- ठीक है, मैं देख लूंगा।
मैंने मैनेजर का फ़ोन काटते ही सीधे स्नेहा को फ़ोन किया और मिलने का प्लान बनाया। मैंने उसे मॉल के बाहर मिलने के लिए बोला 2:30 बजे करीब जब उसकी क्लास का टाइम होता है। उसने बोला- ठीक है, मिलते हैं।
मैं टाइम पर पहुंच ही रहा था कि स्नेहा रास्ते में मिल गई। मैं बाइक से जा रहा था तो पता नहीं लगा। तो स्नेहा का कॉल आया तो मैंने बाइक रोककर फ़ोन उठाया तो बोली- वहीं रुको, मैं पीछे ही हूँ, आ रही हूं।
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो स्नेहा मुह में कपड़ा बांधे और कैसुअल ड्रेस के ऊपर अपने कोचिंग का जैकेट पहने आ रही थी। पास आकर बाइक में बैठी और मुझे पकड़कर ‘हाय’ बोली।
मैं सीधे रास्ते से ना जाकर, अलग रास्ते से होता हुआ आफिस पहुंचने से पहले स्नेहा को उतारा और बोला- जहां में जा रहा हूँ, 5-10 मिनट में वहां आ जाना।
स्नेहा 5-10 मिनट वहीं रुकी।
और मैंने आफिस का गेट खुला रखकर आफिस में जिस बिस्तर पर आफिस में रहने वाला बन्दा सोता था उसमें अपने साथ लाई हुई चादर बिछाई.
इतने में स्नेहा आ गयी और पूछने लगी- ये कौन सी जगह है?
मैंने दरवाज़ा बंद किया। आमतौर पर आफिस में होते हुए दरवाज़ा खुला ही रखता हूं।
मैं- यही है मेरा आफिस एंड यू आर वेलकम।
स्नेहा- अगर जगह का इंतज़ाम था तो इतने दिन रुके क्यों थे।
मैं- यहां सिर्फ मैं नहीं, मेरा मैनेजर भी काम करते हैं जो किस्मत से आज आया नहीं और आफिस में रहने वाला बन्दा है नहीं यहां, जिसका ये पलंग है।
कहकर उसे बिठाया।
स्नेहा- तो, क्या इरादा है।
मैं- वही जो तुम समझ रही हो।
स्नेहा- टाइम देखो, 3:15 हो गए। मुझे 5 बजे जाना है। और उठकर अपने कोचिंग का जैकेट उतार दिया।
अंदर से उसने सफेद लूज़ जालीदार टॉप में काली ब्रा और जीन्स पहना हुआ था। ऊपर से स्नेहा को देखकर मेरा बदन अकड़ा और उसे देखकर ‘हयययय …’ बोला और स्नेहा को गले लगा लिया। स्नेहा ने भी मुझे कसकर पकड़ लिया।
स्नेहा- कितने दिन हो गए ना हमें मिले?
मैं- जितना मैं तड़पा हूँ तुम नहीं जानती! और मिलते भी तो ज़्यादा कुछ कर नहीं पाते। यहां सब कुछ कर सकते है और किसी का कोई डर भी नहीं है, सिवाय मेरे।
स्नेहाहंसते हुए- सही है, डर और आपसे? बस थोड़ी घबराहट है।
मैं- घबराओ मत, कुछ नहीं होगा। तो शुरू करें?
बोलते हुए मैंने स्नेहा के टॉप को निकाल दिया।
अब स्नेहा ऊपर से सिर्फ ब्रा में खड़ी थी। उसकी ब्रा में कैद सफेद बूब्स देखकर मुझसे रहा नहीं गया और उसे धक्का देकर पलंग पर गिरा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। स्नेहा ने खुद को मुझे अपने ऊपर से हटा कर अपनी दायीं तरफ गिराया और धीमी आवाज़ में बोली- आराम से बेबी, आपकी ही हूँ, थोड़ा प्यार से प्लीज़।
मैं- क्या करूं, तुम लग ही इतनी सेक्सी रही हो!
स्नेहा- ‘हां, वो तो मैं हूँ’ कहते हुए मुझे आँख मार दी।
मैंने इशारे से स्नेहा को ब्रा उतारने को बोला तो स्नेहा उठी और उसने अपना एक हाथ दोनों बूब्स के कप्स पर रखा और दूसरा हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा की स्ट्रिप्स से हाथ निकाल कर अपने ब्रा से अपने बूब्स ढक लिए।
मैं भी उठ बैठा और स्नेहा के चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़कर उसे ‘किस’ करने को हुआ। ‘किस’ करने से पहले स्नेहा ने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने होंठ थोड़े खोल दिए।
मैंने उसे ‘किस’ ना करके उसके उस मदहोश करने वाले चेहरे को देखने लगा। स्नेहा की गर्म साँसें मेरे होंठों को छू रही थी। कुछ पल तक ‘किस’ ना हुआ तो स्नेहा ने अपनी आँखें खोली और मुझे उसके चेहरे को निहारता हुआ पाया तो शर्माकर मेरे गले लग गई और अपनी ब्रा को गिर जाने दिया।
मुझे भी यही चाहिए था। मैंने स्नेहा को खुद से अलग किया और उसे देखकर उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर ‘किस’ करने लगा। स्नेहा ने भी ‘किस’ में पूरा साथ दिया।
अब जो भी करना था, जल्दी करना था। मैंने समय न गवांते हुए स्नेहा को लिटा दिया और फिर ‘किस’ करने लगा। अब उसके गाल को ‘किस’ करते हुए में उसके गले को चूमने लगा जिससे स्नेहा को गुदगुदी के साथ मज़ा भी आ रहा था। मैंने कुछ देर तक स्नेहा के साथ मस्ती की और अब वो अपने गले को खुद ही ऊपर करके मुझे ‘किस’ करने में साथ दे रही थी। उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि स्नेहा को मजा आ रहा है।
अब मैं चूमते हुए थोड़ा नीचे हुआ और सीधे स्नेहा के बूब्स चाटते हुए ‘किस’ करने लगा, मैंने अभी स्नेहा के बूब्स के निप्पल को नहीं छुआ था। मस्त उभरे हुए बोबे थे उसके … इतने मुलायम थे उसके बूब्स कि मन तो हुआ कि खा जाऊं उन्हें।
स्नेहा मुझे अपने दोनों बूब्स को चाटते और चूमते हुए देख रही थी।
अब मैंने उसके एक बूब्स के चूचक को अपनी जीभ की नोक से चाटते हुए उस भूरे रंग के निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को दबाने लगा तो स्नेहा ने अपने बोबे दबवाते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मज़े से अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए मज़े लेने लगी। जब मैं जोर से चूसता तो स्नेहा ही ‘आह’ निकल जाती।
ऐसे ही कुछ देर में उसके दोनों बोबों को बारी-बारी से चाटता, चूमता, चूसता रहा। स्नेहा मस्ती में अपना सिर इधर-उधर किये मचल रही थी। इससे उसके बोबे और चूचियाँ पहले से ज़्यादा सख्त और उभर आई थीं।
फिर में स्नेहा के बदन को चाटते चूमते हुए मैं नीचे सरका और उसकी नाभि को किस किया। मैंने नाभि के चारों और हल्के से जीभ की नोक घुमाई जिससे स्नेहा मजे में ‘सश्शस … ‘सस्सस’ करने लगी।
अब मैं फिर ऊपर हुआ और स्नेहा के बूब्स में फिर चूसने लगा और हल्के हल्के हाथों से कमर में हाथ फेरने लगा जिसे स्नेहा अपनी आँखें बंद किए हुए पूरे मज़े ले रही थी। उसके चेहरे पर उसको जो आनंद मिल रहा था वो साफ झलक रहा था।
अब मैं हाथ फेरते हुए स्नेहा की जीन्स का बटन खोलने लगा जो मुझसे नहीं खुल रहा था। मैं उठा और उसकी जीन्स का बटन खोल और स्नेहा को देखा तो वो मुस्कुरा रही थी। मैंने फिर उसकी जीन्स उतार दी। स्नेहा की गोरी और चिकनी जांघें और उनके बीच चूत को छुपाये हुए उसकी हल्के गुलाबी रंग की पेंटी गजब ढा रही थी।
स्नेहा की पेंटी इतनी देर के मज़े से चूत की तरफ से गीली हो गयी थी। स्नेहा को देखते हुए उसकी पेंटी भी निकाल दी। अब स्नेहा पूरी नंगी लेटी थी मेरे सामने!
उसने इशारे से मुझे भी अपने कपड़े उतारने को बोला तो मैंने हाथ खड़े करके उसे ही उतारने को बोल दिया। स्नेहा ने धीरे-धीरे मेरी शर्ट के बटन खोलकर उसे निकाल दी। फिर मेरी बनियान को उतारा और घुटने के बल बैठकर मेरी छाती को चूमने लगी।
अब स्नेहा ने मेरी ट्राऊजर से बेल्ट खोल कर उसके बटन खोलने की कोशिश की मगर …
कहानी जारी रहेगी.
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