नमस्ते दोस्तों! मेरी लिखी कहानी पढ़ कर मेरे एक मित्र ने मुझे अपनी कहानी लिख भेजी।
उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जहाँ काम करते हुये उसे अपने सेठ की बीवी की काम क्षुधा को शांत करना पड़ा। तो आप भी पढ़िये, इसे मैंने कुछ अपने हिसाब से मसाला डाल कर लिखा है, मगर असल घटनाएँ बिल्कुल वैसे ही लिखी हैं।
मित्रो, मेरा नाम सुमन है, इस वक़्त मेरी उम्र 30 साल है, शादी हो चुकी है, बच्चे हैं।
मैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर अक्सर कहानियाँ पढ़ता हूँ। ऐसे ही जब मैंने कहानी पढ़ी, तो मुझे अपनी जवानी के दिनों की एक घटना याद आ गई, तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी अपनी आपबीती आप सब को बताऊँ।
बात तब की है, जब मैं सिर्फ 20-21 साल का था, बी ए का आखिरी साल था। घर में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी, थोड़ा बहुत गाँव के पट्ठों के साथ पहलवानी में भी हाथ आज़मा लेता था, मगर मैं पहलवान नहीं था। बस शौकिया कभी कभी अखाड़े में जा कर थोड़ा बहुत कुश्ती कर लेता था।
अब पहलवानों से पंगा लोगे तो बदन तो आपका खुद ब खुद निखर जाता है। देखने अच्छा बलिष्ठ था। रंग शुरू से ही सांवला है। जितनी ताकत बदन में थी, उस से ज़्यादा ताकत लौड़े में थी, अब भी है, मगर अब सिर्फ बीवी के लिए है, किसी बाहर वाली के लिए नहीं।
तो सुबह शहर कॉलेज में पढ़ने चले जाना, शाम को गाँव वापिस आ जाना… कॉलेज में भी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं बनी, बस यूं ही आवारा हरेक के पीछे घूमते रहते थे।
दिल तो बहुत करता था, कोई अपनी सहेली हो और साली को खूब पेलें। मगर हो तब न!
ऐसे में ही एक दिन, मेरा एक पुराना मित्र मुझसे मिला, हाल चाल पूछा, फिर उसने बताया कि उसकी नौकरी लग गई है, दुबई में, वो जा रहा है।
मैंने भी उससे कह दिया- भाई मेरे लिए भी कोई नौकरी ढूंढ दे, मैं यहीं शहर में ही बस जाऊंगा।
तो उसने कहा- जहाँ मैं नौकरी करता था, वहाँ लगवा दूँ?
मैंने बिना कुछ सोचे समझे कह दिया- लगवा दे!
वो बोला- देख, मैं तुझे पहले बता दूँ, तू अपना है, मैं जहाँ काम करता था, वहाँ की सेठानी बहुत चुदक्कड़ है, मैं पिछले दो साल से उसकी चूत मार रहा हूँ। अब मेरी जॉब लग गई है, मैं छोड़ के जा रहा हूँ, तो उसने मुझसे कहा है के अपनी जगह कोई अच्छा सा बंदा लगवा कर जा, अब तू मिल गया है, बोल अगर काम करेगा तो? काम का काम, और फुद्दी फ्राई फ्री में!
मेरे तो जैसे ज़मीन पे पाँव न लग रहे हों, मैंने झट से हाँ कर दी।
अगले दिन शाम को वो मुझे अपनी सेठानी से मिलाने ले गया। मैं जाते जाते सोच रहा था, मोटी सी काली, बदशक्ल सी सेठानी होगी, काले काले मोटे मोटे बोबे होंगे, गंदी सी चूत होगी मगर चढ़ती जवानी इन सब बातों की परवाह कब करती है।
मैं तो यह भी सोच रहा था कि अगर उसने मुझे चूत चाटने को कहा, तो मैं चाट भी जाऊंगा।
थोड़ी ही देर में हम एक बड़े सारे बंगले के अंदर गए। नौकर को कहलवा भेजा, हमें घर के पीछे की तरफ भेजा गया।
बहुत बड़ा घर था। पीछे गए तो घर के पीछे एक और छोटा सा मकान। हम उस में गए, अंदर कमरे में गए, तो बड़ी सारी लाइब्रेरी थी, उसी में बड़े सारे मेज़ के पीछे एक औरत बैठी थी, गोरा दूध सा रंग, सुंदर नयन नक्श, कंधे तक कटे हुये बाल, गुलाबी साड़ी में लिपटी वो बड़ी सारी कुर्सी पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी।
हमें देखा तो थोड़ा ठीक हो कर बैठ गई- कहो राम दयाल?
मेरा दोस्त बोला- मैडम जी, आपने कहा था न कि अपनी जगह कोई बंदा लगवा कर जाऊँ। यह सुमन है, मेरे ही गाँव का है, बहुत ही ईमानदार और भोला है। बस आप इसे काम पे रख लो।
मैं चुपचाप खड़ा उनकी बातों से बेपरवाह सिर्फ सेठानी जी को ही देख रहा था। मैंने सोचा, ये सेठानी जी हैं। इतनी गोरी, इतनी सुंदर… मुझे तो अगर ये सिर्फ अपनी चूत चाटने के काम पे भी रख ले तो मैं इंकार न करूँ। बिल्कुल चिकनी गोरी बांहें, अगर बांहों की वेक्सिंग करवा रखी है, तो पक्का टाँगों की वेक्सिंग भी करवा रखी होगी। और अगर टाँगें भी इसकी बाजुओं जितनी चिकनी होंगी, तो यकीनन इसकी चूत पर भी एक भी बाल नहीं होगा, वो भी एकदम इसके चेहरे की तरह गोरी और चिकनी होगी।
मैंने देखा, उसके बोबे भी अच्छे थे, गोल और भारी, थोड़े लटके हुये से थे, अब लगभग 45 साल की तो होगी वो और इस उम्र में तने हुये बोबे कहाँ होते हैं। मगर जैसे भी थे, अच्छे थे।
मुझे तो सेठानी जी पसंद आ गई थी, अब बात थी, उनके मुझे पसंद करने की… मगर सेठानी जी ने वहीं कह दिया- ठीक है राम दयाल, इसको काम पे रख लो और सारा काम समझा दो अच्छे से!
अच्छे से पर सेठानी जी कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया।
हम दोनों वापिस आ गए।
राम दयाल बोला- ले भाई, इसकी गांड गुलामी करनी है तुझे!
मैंने कहा- मस्त माल है भाई!
वो मुझे एक बड़े सारे गोदाम में ले गया- इस गोदाम का इंचार्ज होगा तू… यहाँ से ही सारे घर का, फैक्ट्री का, अनाज, राशन और बाकी सामान जाता है। जो भी आदमी जो भी सामान लेकर जाएगा, तू उसे इस रजिस्टर में चढ़ाएगा, उसके साईन लेगा, और सारे सामान की गिनती पूरी रखेगा। सेठानी जी कभी कभी सामान की चेकिंग करने आती हैं। जिस दिन वो आएंगी, उस दिन वो अपना तेल पानी भी तुझसे बदलवा कर जाएंगी। इसलिए तैयार रहना… पर तेरी नौकरी पक्की तब होगी जब वो तेरी जवानी की दीवानी हो जाएंगी। अब सारा दारोमदार तेरी ताकत पर ही है।
मैंने कहा- ताकत बहुत है भाई, तेरी सेठानी की तो मैं सारी रात रेल चला सकता हूँ, वो बस मौका दे एक बार, निहाल कर दूँगा उसे!
दो चार दिन में मुझे सारा काम राम दयाल ने समझा दिया, मैंने काम शुरू कर दिया।
पहले गोदाम में जाता, वहाँ से कॉलेज और कॉलेज से फिर वहीं आ जाता।
काम कोई खास नहीं था, बस वहाँ से कहीं और नहीं जा सकता था।
मैं तो सेठानी जी की बाट जोह रहा था कि कब वो आयें और कब मुझे उस सुंदर औरत को चोदने का मौका मिले।
एक दिन दोपहर के 3 बजे के करीब मैं बैठ पढ़ रहा था कि तभी बाहर कार के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी।
मैं उठ कर गया, देखा ड्राइवर के साथ सेठानी जी चली आ रही थी।
गोदाम में एक छोटा सा ऑफिस भी बना हुआ था, जिसकी चाबी सेठानी जी के ही पास थी। उन्होंने वो ऑफिस खोला और मुझे सारे हिसाब किताब लाने को कहा।
ड्राइवर को बोला कि वो दो घंटे बाद आए।
वो चला गया।
मेरे मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि आज इसको चोदूँगा।
गहरे पीले रंग की साड़ी में वो गजब की लग रही थी। स्लीवलेस ब्लाउज़, गोरी चिकनी बाजू, जिन्हें मैं अपनी जीभ से चाटने की सोच रहा था। ब्लाउज़ के गहरे गले में से झांक रही उनकी छोटी सी वक्ष रेखा, बार बार मेरा ध्यान अपनी और आकर्षित कर रही थी।
वो सारा हिसाब किताब खुद पढ़ रही थी। करीब करीब 15-20 मिनट में ही उन्होंने सारा रिकार्ड चेक कर लिया, फिर मुझे से बोली- और क्या करते हो?
मैंने कहा- जी दिन में पढ़ता हूँ, रात को यही सो जाता हूँ।
इसके इलावा और भी बहुत सी औपचारिक बातें उन्होंने मुझे पूछी, मैं जवाब देता गया।
फिर वो बोली- कॉलेज में पढ़ते हो, कोई गर्ल फ्रेंड है क्या?
मैंने शरमा कर ना में सर हिला दिया।
फिर वो बोली- अगर गर्ल फ्रेंड नहीं है तो फिर रात को नींद आ जाती है?
‘अररे बेटा…’ मैंने सोचा- ये तो लाईन पकड़ रही है।
मैंने कहा- जी नींद तो बहुत आती है, मगर देर से आती है।
वो मुसकुराई, उठी और मुझे अपने पीछे आने को कहा।
मैं उनके पीछे पीछे चल पड़ा।
पीली साड़ी में अपने गोल गोल चूतड़ मटकाती वो गोदाम में पीछे की ओर चली गई, जहाँ गेहूं, चावल, और ना जाने क्या क्या बोरों में भर के रखा था। जहाँ सिर्फ दो दो बोरों की ढेरी थी, वो उसके पास जाकर रुकी और एक बोरे पर बैठ गई।
मैं उनके सामने जा खड़ा हुआ।
‘वो जो बोरे हैं न, उनको यहाँ नीचे ला कर रखो!’ वो बोली।
मैंने दोनों भारी बोरे नीचे रख दिये।
इसके बाद ‘ये बोरे वहाँ… वो बोरे यहाँ… पता नहीं क्यों बोरे इधर उधर करवाती रही।
मारे गर्मी के मैं तो पसीना पसीना हो गया।
गर्मी लगी तो मैंने अपनी कमीज़ उतार दी और पैन्ट भी, मैं सिर्फ कच्छे और बनियान में था। कच्छा भी मैं घर का बना पहनता हूँ, नाड़े वाला।
फिर सेठानी जी ने मुझे थोड़ा और ऊपर वाली बोरियाँ चेक करने को भेजा।
मन ही मन में मैं सोच रहा था कि मैं तो यहाँ ऊपर खड़ा हूँ, नीचे से ज़रूर सेठानी जी कच्छे की साइड में से मेरा लंड देख रही होगी।
मैंने एक दो बार नीचे सेठानी जी को देखा भी और बोरियाँ सेट करने के लिए उनसे पूछा भी। वो नीचे से मुझे देख देख कर बताती रही, इसे ऐसे रख दो, उसे वैसे रख दो। जब मैं नीचे उतरा तो पूरा पसीने से भीग चुका था, मेरी बनियान और कच्छा दोनों पसीने के कारण मेरे बदन से चिपक गए थे। अब तो मेरा लंड कच्छे से में साफ साफ देखा जा सकता था और सेठानी जी उसे ही देख रही थी।
मैं उन्हे देख रहा था, और वो मेरे कच्छे में कैद लंड को घूर रही थी।
मुझे लगा, यही सही वक़्त है, मगर मेरी इतनी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि मैं आगे बढ़ कर सेठानी जी को पकड़ लूँ।
हालांकि, राम दयाल ने मुझे साफ साफ कह दिया था- जिस सेठानी जी गोदाम चेक करने आएंगी, उस दिन तुझे देकर जायेंगी। पहले तुझे परखेगी, जांचेगी, फिर तुझे अपना सब कुछ सौंप देंगी।
मगर सेठानी जी ने अभी तक कोई इशारा ऐसा नहीं किया था, जिससे मुझे लगे कि वो चुदवाना चाहती हैं।
मैं खड़ा रहा।
वो बोली- कितनी पसीना निकला तेरा, तू तो पसीने से भीग गया!
मैंने कहा- जी हाँ!
और क्या कहता।
वो बोली- मेरा भी पसीना निकाल सकता है?
बस यही मैं उनके मुख से सुनना चाहता था।
वो फिर से बोली- लगता राम दयाल तुझे सारा काम ठीक से समझा कर नहीं गया?
मैंने कहा- नहीं जी, सब बताया था उसने!
तो वो बोली- तो अब किसका इंतज़ार कर रहा है, इतना दम खम है तो मुझे भी दिखा?
बस मैं आगे बढ़ा और आगे बढ़ कर मैंने सेठानी जी को अपनी बाहों में भर लिया।
‘हाय छी: … कितना गंदा है, पसीना पसीना, परे हट!’ वो बोली।
मगर मैं पीछे नहीं हटा, मैंने सेठानी जी को अपनी गोद में उठाया और पास में ही पड़े गेहूं के ढेर पे पटक दिया। गेहूं के दाने उनके कपड़ों में सर के बालों में और ना जाने कहाँ कहाँ घुस गए, जितनी देर में वो संभली मैंने अपना कच्छा और बनियान भी उतार दिया, बिल्कुल नंगा हो कर मैं अपना लंड हवा में लहराने लगा।
चढ़ती जवानी, जानदार जिस्म और सामने एक खूबसूरत औरत चुदवाने को पूरी तरह से तैयार… तो लंड को खड़ा होने में कितना वक़्त लगता है, 5 सेकंड में ही मेरा लंड पूरा तन गया। लम्बा काला भूत, सरसों के तेल से मालिश कर कर के पाला हुआ, मोटा काला सांड।
सेठानी जी तो मेरे लंड को देख कर आँख झपकना भी भूल गईं।
मैंने आगे बढ़ कर उनकी साड़ी ऊपर उठाई, अंदर हाथ डाल कर उनकी नन्ही सी चड्डी खींच कर उतारी और दूर फेंक दी।
न उन से पूछा, न कोई बात की, उनकी टाँगें चौड़ी की, और अपना लंड उनकी चूत पर रख कर अंदर को पेल दिया।
अब वो तो एक बाल बच्चेदार चुदी चुदाई औरत थी, उन को कौन सा दर्द होना था। घप्प से मेरे लंड का टोपा उन की चूत में गुम हो गया।
‘आह…’ सिर्फ इतना उनके मुख से निकला। मैं उन्हें अपनी ओर खींचता गया और अपना लंड उन की चूत में घुसाता गया।
उनको अपनी बाहों में जकड़ा और उठा कर गेहूं के ढेर पर और ऊपर रखा। जितना ऊपर मैं रखता, चुदाई के धक्कों से वो उतना नीचे फिसल आती।
कितनी देर ये खेल चलता रहा। मेरा जल्दी झड़ने का कोई इरादा नहीं था। मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ सेठानी की देर तक चुदाई करने का था ताकि वो मेरी ताकत के आगे धराशायी हो जाएँ।
और यही मैंने किया, अगले 25 मिनट में मैंने बिना खुद झड़े सेठानी जी को 2 बार स्खलित कर दिया, चोद चोद कर मैंने उनकी हालत खराब कर दी थी।
बाल बिखर गए, कपड़े अस्त व्यस्त…
हालांकि मैंने सिर्फ उनके ऊपर से ही बोबे दबाये थे, मैंने उनको ठीक से नंगी भी नहीं किया था।
दूसरी बार स्खलित होने के बाद उन्होंने मुझे रोका- रुक, सुमन रुक… थोड़ा सांस लेने दे। तू आदमी है या हैवान, कितनी ज़ोर से करता है, मेरा तो अंजर पंजर सब हिला के रख दिया!
मैंने रुक कर अपना लंड उनकी चूत से बाहर निकाल लिया, जो अब अब भी लोहे की रॉड की तरह सख्त था।
सेठानी जी ने उठ कर अपने कपड़े ठीक किए, फिर अपने पर्स में से फोन निकाला और अपने ड्राइवर को कहा- सुनो, मैं खुद आ जाऊँगी, तुम गाड़ी लेकर घर चले जाओ।
वो मेरे सामने बैठी थी, साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ, आँचल न होने की वजह से उनके बोबों की बड़ी सी वक्ष रेखा साफ दिख रही थी, जिसको ढकने की उनकी कोई इच्छा नहीं थी।
उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया।
मैं पास गया तो उन्होंने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और बोली- काश… तेरे सेठजी के पास भी ऐसा जबर्दस्त हथियार होता!
मैंने कहा- ये भी आपका ही है सेठानी जी!
उन्होंने मेरे लंड को अपनी ओर खींचा और जब मैं थोड़ा और पास आ गया तो उन्होंने मेरे लंड का टोपा अपने मुँह में ले लिया।
उस दिन मैंने पहली बार अपना लंड किसी से चुसवाया था। बहुत मज़ा आया मुझे…
धीरे धीरे करते वो मेरा आधे से ज़्यादा लंड अपने मुँह में ले गई। मुझे लग रहा था जैसे उनकी इच्छा थी कि मेरा पूरा लंड उनकी मुँह में घुस जाए। खूब गचल पचल करके उन्होंने मेरा लंड चूसा। थूक से नहला दिया उन्होंने मेरे लंड को… फिर मेरे आँड चाटे, मेरी पसीने से भीगी जांघें भी चाट गई।
मैंने उन्हें खड़ी किया और उनके होंठों को चूस डाला।
उन्होंने एक चांटा मुझे मारा- बदतमीज़!
वो बोली।
मुझे लगा कहीं बुरा तो नहीं मान गई मेरे चूमने का?
मगर मैंने परवाह नहीं की और उनकी साड़ी का पल्लू पकड़ के खींच डाला, एक सेकंड में उनकी सारी साड़ी खुल गई। जब साड़ी खुल गई तो ब्लाउज़ के हुक वो खुद ही खोलने लगी।
मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खोला, उन्होंने अपनी ब्रा उतार दिया। दूध से नहाई किसी परी जैसी गोरी, परी नहीं परी की माँ जैसी… बोबे थोड़े से ढलके हुये मगर बहुत सुंदर गोरे बेदाग, चिकने।
खैर सारा बदन ही उनका गोरा और बेदाग था।
मैंने उनको फिर से पकड़ा और अपनी ताकत से उल्टा कर घोड़ी बना दिया। घोड़ी बनते ही मैंने फिर से अपना लंड उनकी चूत में घुसेड़ दिया, ज़ोर से ज़बरदस्ती। उनके मुँह से एक जोरदार ‘आई’
निकला और वो नीचे को लेट गई।
वो पेट के बल लेटी थी, और मैं उनके ऊपर!
जब मैंने फिर से चुदाई शुरू की, तो ढेर से सरक सरक कर गेहूं हमारे ऊपर गिरती रही और मैं उने पूरी ताकत से चोदता रहा।
उनकी चूत पानी की नदी बहा रही थी और मेरे लंड की थाप जब उनकी गांड पर पड़ती तो ‘ठप… ठप, ठप… ठप’ की आवाज़ आ रही थी।
मैं चाहता था कि सेठानी जी मेरी चुदाई के ऐसी दीवानी हो जाए कि दोबारा किसी और को नौकरी पे ही न रखें।
बीच में चुदाई रुक जाने की वजह से से मेरा दम फिर से बरकरार हो गया था।
इस बार मेरी इच्छा सेठानी का पसीना निकालने की थी। जिस तरह मैं ऊपर से ठोक रहा था, वैसे ही वो नीचे से अपनी गांड उचका रही थी। 8 इंच का पूरा लंड सेठानी जी की चूत में बार बार अंदर बाहर आ जा रहा था। उनके दोनों बोबे मैंने पकड़ रखे थे, जिन्हें मैं बार बार कभी आराम से तो कभी ज़ोर दबा देता था।
सेठानी की मेहनत रंग ला रही थी। सम्पूर्ण काम आनन्द से उनकी सिसकारियाँ थमने का नाम नहीं ले रही थी। हर बार जब मैं अपना लंड उनकी चूत के अंदर डालता, वो ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करती।
जितनी मैंने स्पीड बढ़ाई, उतनी उनकी सिसकारियाँ बढ़ी। अपनी पूरी ताकत से वो भी मेरा साथ दे रही थी, और दो बार झड़ने के बाद वो भी जल्दी झड़ने वाली नहीं थी।
ये हमारा खेल कोई आधे घंटे से भी ज़्यादा चला। मैं और सेठानी दोनों पसीने से भीग चुके थे।
तब सेठानी बोली- जल्दी कर कुत्ते, मैं मरने वाली हूँ, बस एक मिनट और… और… और… आ…ह… मर गई…’ कह कर सेठानी जी शांत हो गई, मगर उनकी गांड अभी भी ऊपर को उचक रही थी। थोड़ी देर हिलने के बाद वो शांत हुई।
मेरी ताकत अब जवाब दे रही थी, तो मैंने भी ज़ोर ज़ोर से चुदाई करके अपना पानी गिरा दिया।
पानी क्या गिराया, जैसे कोई बाँध टूटा हो! इतनी पिचकारियाँ छूटी वीर्य की कि कितनी सारी गेहूं को गीला कर दिया।
सेठानी जी के पीठ और बालों तक में मेरे वीर्य की बूंदें जा गिरी।
पानी छूटते ही मैं भी बगल में गिर गया। कुछ देर हम दोनों वैसे ही नंग धड़ंग लेटे रहे। फिर हम दोनों उठे और अपने अपने कपड़े पहनने लगे। सेठानी जी ने अपने ब्रा की हुक मुझसे बंद कारवाई और पूछा- एक रात में कितनी बार चोद सकता है?
मैंने कहा- आप बताओ, मेरी तो कोई लिमिट नहीं है। मैं तो सारी रात चोद सकता हूँ।
वो बोली- तो ठीक है, किसी दिन रात को प्रोग्राम बनाते हैं।
चुत चुदाई के बाद सेठानी जी खुद को ठीक ठाक करके चली गई। मैं उस रात उस गेहूं के ढेर पर ही नंगा सो गया। उसके बाद मैंने वहाँ कई साल नौकरी की, जब तक मेरी शादी नहीं हो गई।
सेठानी जी ने मुझे कहा था- कभी कभी आते रहना!
मगर मैं फिर कभी नहीं गया, हाँ, अपने यार दोस्तों को भी मैंने वहाँ भेजा, नौकरी करने… पर कोई साल बाद, कोई छह महीने बाद ही नौकरी छोड़ कर आ गया।
अब भी कभी कभी सोचता हूँ, चाहे जितना पैसा हो, आराम हो, खुशी हो, मगर अगर पति या पत्नी एक दूसरे से सेक्स में खुश नहीं हैं, तो कोई ज़िंदगी नहीं।
[email protected]