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करीब 10 साल पहले हमारे मुहल्ले में एक पंजाबी परिवार रहने के लिए आया. उस परिवार में वो खुद, उनकी पत्नी और एक बेटी थी. पंजाबन की उम्र लगभग 35 साल, कद 5 फुट 4 इंच, चूचियां 36 इंच, चूतड़ 40 इंच, रंग गोरा, मुस्कुराता चेहरा. कुल मिलाकर पहली नजर में मेरा दिल पंजाबन पर आ गया.
रात को खाना खाने के बाद मैं टहलने निकलता तो पंजाबन के घर के इर्दगिर्द टहलता ताकि दीदार हो जायें.
जब कभी पंजाबन से आंखें चार होतीं, वो मुंह घुमा लेती. धीरे धीरे 8 साल गुजर गए, पंजाबन ने मुझे घास नहीं डाली. इन 8 सालों में मैं बस इतना कर पाया कि मुझे उसका नाम पता चल गया और मैं मनजीत कौर मनजीत कौर बड़बड़ाते हुए मुठ मार लेता.
कुछ दिन पहले मनजीत की लड़की ने इण्टर पास कर लिया और नेशनल कॉलेज में बीकॉम में एडमिशन ले लिया.
मनजीत की लड़की का नाम गुरजीत था और गुरजीत 19 साल की हो चुकी थी. वो अपनी मां से कहीं अधिक हसीन निकली, वो प्रीति जिंटा जैसी दिखती थी.
मेरी नजर अब मनजीत को छोड़कर गुरजीत के पीछे लग गई. अब मैं गुरजीत को चोदने के सपने देखने लगा.
सपने उन्हीं के साकार होते हैं, जो देखते हैं.
जहां चाह वहां राह. एक दिन मैं व मेरी पत्नी कहीं से लौट रहे थे. प्रभात नगर चौराहे पर रेड लाइट दिखी तो मैंने कार रोक दी.
तभी मेरी नजर चौराहे के उस पार खड़ी मनजीत व गुरजीत पर पड़ी, वे टैम्पो के इन्तजार में खड़ी थीं. उस दिन बसों की हड़ताल थी, इसलिये टैम्पो भी मुश्किल से मिल रहे थे. मौके का फायदा उठाने के लिए मैंने अपनी पत्नी से कहा- देखो, ये मां बेटी तो हमारे मुहल्ले में रहती हैं ना?
मेरी पत्नी ने कहा- हां, ये मल्होत्रा अंकल के बगल में रहती हैं. बेचारी टैम्पो के इन्तजार में हैं, इनको बैठा लें क्या?
अंधा क्या चाहे, दो आंखें. मैंने कहा- बिठा लो, हम लोग घर ही तो जा रहे हैं.
इतने में ग्रीन लाइट हो गई और चौराहा पार करके हम उनके पास पहुंच गये. मेरी पत्नी के कहने पर मां बेटी कार में बैठ गईं.
पसीने से तरबतर मां बेटी को कार में बैठते ही सुकून मिला, यह उनका चेहरा बता रहा था.
रियर व्यू मिरर में मैं गुरजीत पर नजर रखे हुए था. चूंकि मैंने धूप का चश्मा पहन रखा था इसलिये मनजीत या गुरजीत मेरी हरकत पकड़ नहीं सकती थीं.
कुछ दूर जाने के बाद फ्रूट के ठेले खड़े थे, मैंने कार रोक कर पत्नी से कुछ फल खरीदने को कहा तो मेरी पत्नी कार से उतरकर फल खरीदने लगी.
मैंने मनजीत और गुरजीत से बातचीत शुरू कर दी और बताया कि नेशनल कॉलेज के सामने सिटी बैंक में मेरा एकाउंट है और मैं हफ्ते में तीन चार बार तो बैंक जाता ही हूँ.
मेरी पत्नी फल खरीद कर आ गई तो हम लोगों की बातचीत बंद हो गई और कुछ ही देर में हम घर पहुंच गये.
अगले दिन से मैंने नेशनल कॉलेज की छुट्टी के समय गेट के आसपास मंडराना शुरू कर दिया.
तीसरे दिन गुरजीत अन्दर से निकलते दिखाई दी.
वो प्रभात नगर चौराहे की ओर चल पड़ी तो मैं पीछे से पहुंचा और हॉर्न बजाकर गुरजीत को रोका व कहा- आओ बैठ जाओ, मैं घर की तरफ ही जा रहा हूँ.
गुरजीत ने कार का दरवाजा खोला और मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गई.
रास्ते में मैंने गुरजीत को समझाया कि तुम्हारी मम्मी बहुत स्वाभिमानी औरत हैं, वो किसी का अहसान नहीं लेतीं, उनको पता चला कि तुम मेरी कार में आई हो तो कहीं तुम्हें मना न कर दें, इसलिये अपनी मम्मी को मत बताना कि तुम कार से आई हो.
गुरजीत ने सिर हिला कर हां कर दी. मैंने उसके घर के मोड़ पर उसे ड्राप कर दिया. अब अक्सर ऐसा होने लगा. गुरजीत के 20 रुपये भी बचते थे और टैम्पो के धक्कों के बजाय एसी कार का सफर करती.
मैंने और गुरजीत ने मोबाइल नंबर शेयर कर लिए. अब हर रोज छुट्टी के बाद गुरजीत मुझे कॉल करके पूछती- अंकल, आ रहे हैं क्या?
धीरे धीरे एक महीना बीत गया, बरसात का मौसम शुरू हो गया. एक दिन जैसे ही गुरजीत कार में बैठी, मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.
मैंने कार शर्मा ढाबे की तरफ मोड़ दी. शर्मा के यहां पनीर के पकौड़े व चाय पीने के लिए लोग दूर दूर से आते थे. शर्मा ढाबे पर पहुंच कर मैंने चाय पकौड़े का ऑर्डर दिया. थोड़ी देर में चाय पकौड़े आ गये, हमने खाये, तब तक बारिश भी रुक गई और हम लोग घर पहुंच गए.
अब हर दूसरे चौथे दिन हम लोग जगह बदल बदल कर चाय, नाश्ता, डोसा, पिज्जा इंज्वॉय करने लगे.
एक दिन मैंने कहा- गुरजीत चलो किसी दिन सिनेमा देखने चलते हैं.
तो गुरजीत ने कहा- ज्यादा देर हो जायेगी?
नहीं, तुम इण्टरवल के बाद निकल आना. सिनेमा देखकर भी समय से घर पहुंच जाओगी.
सिनेमा देखने के लिए सोमवार का दिन तय हो गया. हम लोग सिनेमा देखने पहुंचे, टिकट खरीद कर हॉल में बैठ गये. मैंने कोक और पॉपकॉर्न का ऑर्डर कर दिया था. हम लोग सिनेमा देखते देखते पॉपकॉर्न खा रहे थे, कई बार हम दोनों के हाथ छू जाते.
पॉपकॉर्न खत्म हो गये तो मैंने गुरजीत का अपने हाथों में ले लिया और हौले हौले से सहलाने लगा. सिनेमा में रोमांटिक सीन चल रहे थे. गुरजीत ने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया.
मूवी खत्म होते होते मैंने गुरजीत के हाथों पर चुम्बन और जांघों पर हाथ फेरने के अलावा पैर के अंगूठे से उसके पैरों पर कुरेदा था.
सिनेमा खत्म होने के बाद हम लोग घर लौट आये. कार से उतरने से पहले गुरजीत मेरे गले लगी और किस कर गई.
अब मुझे सही समय और मौके की तलाश थी. वो मौका मुझे जल्दी ही मिल गया. हुआ यूं कि मेरी सास की तबियत अचानक खराब हुई और मेरी पत्नी एक सप्ताह के लिए मायके चली गई.
मैंने गुरजीत से फोन करके कहा- कल तुम कॉलेज के लिए निकलो तो मेरे घर आ जाना, मेरी पत्नी मायके गई है.
गुरजीत को फोन करने के बाद मैं अगले दिन की तैयारी करने लगा.
जिस दिन से गुरजीत ने मेरे साथ कार में आना जाना शुरू किया था, मैंने उसी दिन से रोज सुबह शाम शिलाजीत के दो कैप्सूल खाने शुरू कर दिये थे क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि 19 साल की गुरजीत की चूत चोदने में मेरा 50 साल का लण्ड कमजोर पड़ जाये.
रात को करीब एक बजे मेरे मोबाइल पर घंटी बजी, देखा तो गुरजीत की कॉल थी, बोली- आपने सुबह घर आने के लिए कहा है. मुझे बड़ा डर लग रहा है, कुछ गड़बड़ न हो जाये.
“कुछ गड़बड़ नहीं होगा, गुरजीत. घबराने की कोई बात नहीं, तुम आओ तो सही.”
अगले दिन गुरजीत कॉलेज जाने के लिए अपने घर से निकली और मेरे घर आ गई. गुरजीत ने लाल रंग का टॉप व प्रिन्टेड मिडी पहनी थी.
अन्दर आते ही बोली- आपका घर बहुत सुन्दर है.
“क्यों हम सुन्दर नहीं हैं क्या?”
“आप तो सुन्दर हैं ही. आप सुन्दर नहीं होते तो हम आपके दीवाने कैसे होते.”
“सुन्दर तो तुम हो गुरजीत, सुन्दरता की मूरत हो.”
इतना कहकर मैंने गुरजीत को गले लगा लिया.
गुरजीत भी नागिन की तरह मुझसे लिपट गई. गुरजीत को लेकर मैं बेडरूम में आ गया. बेडरूम में आते ही मैंने अपनी टी शर्ट उतार दी. गुरजीत की नजरें मेरे सीने के बाल देख रही थीं कि मैंने गुरजीत का टॉप उतार दिया.
गुरजीत को अपने सीने से लगाकर मैंने उसकी ब्रा के हुक खोल दिये.
बड़े संतरों के आकार की चूचियां जब मेरे सीने के बालों से रगड़ खाने लगीं तो बड़ी मादक आवाज में गुरजीत बोली- विजज … जजय.
मैंने गुरजीत को अपनी बांहों में जकड़ लिया.
गुरजीत की मिडी और पैन्टी उतार कर मैंने उसे पूरी तरह से नंगी कर दिया. संगमरमर की तरह तराशा हुआ गुरजीत का जिस्म देखकर मेरा लण्ड उछलने लगा.
मैंने गुरजीत को बेड पर लिटाया तो देखा कि उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं है. गुरजीत की चिकनी चूत पर हाथ फेरते हुए मैंने पूछा- ये शेव कब की?
“रात को 2 बजे. मुझे मालूम था कि सुबह मेरी मुनिया का उद्घाटन होना है इसलिये साफ सफाई जरूरी थी.”
“मुनिया? ये नाम कब रखा?”
“ये नाम कॉलेज की लड़कियों ने रखा है. कहती हैं, लड़कियों के पास मुनिया होती है और लड़कों के पास मुन्ना. और आपने अपना मुन्ना तो दिखाया नहीं?”
“मेरा मुन्ना भी देख लेना, गुरजीत कौर. पहले अपने संतरों का रस तो पीने दे.”
इतना कहकर मैंने गुरजीत की एक चूची अपने मुंह में ले ली. गुरजीत की चूची चूसते चूसते मैंने उसकी चूत सहलानी शुरू की. गुरजीत की चूत के लबों से खेलते खेलते मैंने अपनी ऊंगली उसकी चूत में डाली तो चिंहुक गई.
गुरजीत की चूत जब गीली होने लगी तो मैंने अपने अपना चेहरा गुरजीत की टांगों के बीच लाया और अपने होंठ गुरजीत की चूत के होंठों पर रख दिये. अपने दोनों हाथों में गुरजीत की चूचियां दबोच कर मैं उसकी चूत चाटने लगा.
मेरी नाक से निकल रही गर्म सांस गुरजीत के जिस्म में आग भर रही थी. गुरजीत की चूत चाटने से उसकी चूत गमकने लगी और उसने पानी छोड़ दिया.
अब मैं उठा और गुरजीत के बगल में लेटकर उसकी चूचियां चूसने लगा. मेरा लण्ड भी मूसल की तरह टाइट हो चुका था और गुरजीत की कुंवारी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था.
मैंने ड्रेसिंग टेबल से क्रीम की शीशी और कॉण्डोम का पैकेट निकाला और अपना लोअर उतार दिया. मेरे शरीर पर सिर्फ छोटा सा अण्डरवियर था.
69 की पोजीशन में लेटकर मैंने गुरजीत की चूत पर जीभ फेरना शुरू किया. कुछ ही पल गुजरे होंगे कि गुरजीत ने मेरे लण्ड पर हाथ फेरा, मेरा लण्ड अपनी मुठ्ठी में दबोचा और अंततः मेरा अण्डरवियर नीचे खिसका कर कैद से आजाद कर दिया.
अण्डरवियर से बाहर आते ही मेरा लण्ड काले नाग की तरह फुफकारने लगा. मेरे कहने पर गुरजीत मेरा लण्ड चूमने, चाटने व चूसने लगी.
मैं गुरजीत की चूत चाट रहा था और वो मेरा लण्ड चूस रही थी. गुरजीत की चुदाई का पूरा सीन सेट हो चुका था.
अपने लम्बे अनुभव में एक अध्याय और जोड़ने के लिए मैं उठा, अपना अण्डरवियर शरीर से अलग किया और ढेर सी क्रीम अपने लण्ड पर चुपड़ कर मैं गुरजीत की टांगों के बीच आ गया.
मुझे खुशी इस बात की थी कि गुरजीत चुदवाने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप में पूरी तरह से तैयार होकर आई थी.
गुरजीत के चूतड़ों के नीचे तकिया रखकर मैंने अपने लण्ड का सुपारा गुरजीत की चूत पर रगड़ना शुरू किया. कुछ देर तक गुरजीत की चूत के मुखद्वार की रगड़ाई करने के बाद मैंने गुरजीत की चूत के गुलाबी लबों को फैलाकर अपने लण्ड का सुपारा रख दिया.
गुरजीत की कमर पकड़कर मैंने अपने लण्ड को अन्दर धकेला तो टप्प की आवाज हुई और मेरे लण्ड का सुपारा गुरजीत की चूत के अन्दर हो गया, थोड़ा थोड़ा दबाते हुए मेरा आधा लण्ड गुरजीत की चूत में चला गया. मैंने धीरे धीरे अपना लण्ड अन्दर बाहर करते हुए गुरजीत से पूछा- एक बात बताओ गुरजीत, तुम्हारे मन में पहली बार कब आया कि मैं तुम्हें चोदना चाहता हूँ?
करीब तीन साल पहले.
मेरे लिए यह बड़ा चौंकाने वाला जवाब था. मैंने पूछा- तीन साल पहले क्यों और कैसे तुम्हारे मन में ऐसा आया?
अब गुरजीत का जवाब और भी अधिक चौंकाने वाला था, उसने बताया:
एक दिन रात में आप हमारे घर के सामने टहल रहे थे तो मेरे पापा ने मम्मी से पूछा- ये अक्सर यहां क्यों टहलता रहता है?
इस सवाल से मम्मी सकपका गई और बोली- मुझे क्या पता, क्यों टहलता रहता है.
पापा ने थोड़ा उखड़ कर कहा- वो तुमको चोदने के चक्कर में है, बड़ा रसिया टाइप का आदमी है, मैं जानता हूँ, बहुत बड़ा चोदू है.
मम्मी पापा के बीच हो रही बातचीत ने मेरे कान खड़े कर दिये.
मैंने मन में सोचा कि सरदार जी का दिमाग अपनी बुढ़िया तक ही सीमित है, वो अगर चोदने के चक्कर में होगा तो कच्ची कली चोदेगा, बुढ़िया में क्या रखा है. बस उस दिन से मैंने आपको अपनी कल्पना में बसा लिया.
गुरजीत की बातें सुनकर मेरा लण्ड और जोश में आ गया.
अपना लण्ड गुरजीत की चूत से बाहर निकाल कर मैंने उस पर कॉण्डोम चढ़ाया और फिर से गुरजीत की चूत में पेल दिया. आधा लण्ड गुरजीत की चूत में चला गया लेकिन आगे अवरोध था, बैरियर लगा हुआ था.
गुरजीत की कमर पकड़कर अपना लण्ड अन्दर बाहर करते करते एक बार मैंने जोर से ठोंका तो मेरा लण्ड गुरजीत की चूत की गहराई तक उतर गया. चूत की झिल्ली फटने से गुरजीत चिल्लाई, और ऐसा चिल्लाई कि अगर मैं उसके मुंह पर अपना मुंह न रखता तो आवाज घर से बाहर भी चली जाती.
चूत की झिल्ली फाड़कर गुरजीत को कली से फूल बना कर मेरा लण्ड रुका नहीं बल्कि पूरी शिद्दत से अपना काम करता रहा.
गुरजीत के दूध के गुलाबी निप्पल्स मैंने चूस चूस कर लाल कर दिये.
और मेरे लण्ड के प्रहार से बेहाल गुरजीत की चूत भी थक गई थी तभी तो गुरजीत बार बार कह रही थी- बस करो, विजय. अब बस करो.
लेकिन मैं क्या करूं, कैसे बस करुं? मेरा लण्ड पानी छोड़े तो.
मैंने गुरजीत से कहा कि पलटकर टाइग्रेस बन जाओ तो मेरा काम जल्दी हो जायेगा.
मेरे कहने पर गुरजीत पलटकर टाइग्रेस बन गई.
टाइग्रेस तो मैं लड़की का रुतबा बढ़ाने के लिए कहता हूं, दरअसल बनती तो कुतिया है, डॉगी स्टाइल में चुदने के लिए.
गुरजीत के टाइग्रेस बनते ही मैं उसके पीछे आकर घुटने के बल खड़ा हो गया और गुरजीत की चूत के मुहाने पर अपने लण्ड का सुपारा रखकर ठोंक दिया. इस पोजीशन में चूत टाइट हो जाती है जिससे चोदने का आनन्द बढ़ जाता है. गुरजीत की कमर पकड़कर जब मैंने चुदाई शुरू की तो वो भी जोश में आ गई और जवाबी धक्के मारने लगी.
दोनों ओर से जवाबी धक्का मुक्की से मेरे लण्ड का सुपारा फूलना शुरू हो गया. जैसे जैसे मेरे डिस्चार्ज का समय करीब आ रहा था मेरे लण्ड का सुपारा मोटा होता जा रहा था और मेरे लण्ड की तमाम नसें उभर कर फूल गईं. लण्ड इतना टाइट हो गया था कि अन्दर बाहर होना मुश्किल होने लगा.
मैंने आधा लण्ड बाहर निकाल कर उस पर क्रीम चुपड़ी और धकापेल करने लगा. एक समय ऐसा आया कि मैंने गुरजीत की कमर कसकर पकड़ ली और राजधानी एक्सप्रेस की रफ्तार से चोदने लगा, मेरे लण्ड से फव्वारा छूटा लेकिन राजधानी एक्सप्रेस रुकी नहीं.
वीर्य की एक एक बूंद निचुड़़ने तक लण्ड का अन्दर बाहर होना जारी रहा. इसके बाद कुछ देर तक हम दोनों निढाल होकर लेट गये.
इसके बाद हम लोगों ने खाना खाया और जल्दी ही हम लोग सेकेण्ड राउण्ड के लिए तैयार हो गये.
उस दिन मैंने गुरजीत को तीन बार चोदा. मेरी पत्नी के वापस लौटने तक यह क्रम चलता रहा. पत्नी के वापस लौटने पर मैंने अकेले रहने वाले एक मित्र के फ्लैट की चाभी ले ली और हमारा काम वहां चलता रहा. करीब तीन साल तक मैंने गुरजीत को रगड रगड़ कर चोदा. उसका ग्रेजुएशन होने के बाद कनाडा में रहने वाली उसकी मौसी आगे की पढ़ाई के लिए उसे अपने साथ कनाडा ले गई.
मेरी नजर अब फिर गुरजीत की मां मनजीत पर टिक गई, आखिर मेरा पहला प्यार तो वही थी.
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