बात उसी जगह की है जहां मैं पढ़ाता था. उस समय मैं स्कूल के हॉस्टल में ही रहता था लेकिन कई महीने बाद मैं अपनी बीवी को वहीं लेते आया और एक मकान किराए पर लिया.
जिस मकान में हमें रूम मिला उस मकान का मालिक उम्रदराज था और उसकी दो शादियां हो चुकी थी उसके पीछे की वजह थी कि उसकी पहली पत्नी से उसको पांच लड़कियां हुईं. उसे घर के वारिस की चिंता सताने लगी और इसलिए उसने दूसरी शादी कर ली.
उसकी दूसरी बीवी बहुत ही गोरी थी. उसको देख कर ऐसा लगता था कि उसका बदन केसर से धुला हुआ है. आप सोच सकते हैं कि उसका रंग कैसा होगा. उसकी बीवी के हर एक अंग में से जैसे रस टपकने को आमादा रहता था.
स्तनों का आकार ऐसा था कि ऐसा लगता था कि चूची नहीं फुटबॉल हों. स्तनों का आकार एकदम से चुस्त और टाइट था. वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थी मगर उसको देख कर बिल्कुल भी नहीं लगता था कि वह तीन बच्चों की मां है.
उस मकान मालिक को उसकी दूसरी बीवी से दो लड़कियां और एक लड़का हुआ था. जब उसको लड़का हो गया तो उसकी इच्छा भी पूरी हो गयी थी. जब उसकी बीवी ने एक लड़के को जन्म दिया था तब से ही उसने अपनी उस अप्सरा बीवी की चुदाई करना भी बंद कर दिया था.
इसी कारण से उसकी दूसरी बीवी चुदाई की आग में जैसे हर पल जलती थी. उसकी जवानी उसको चैन से बैठने नहीं देती थी. उसकी चाल और हाव भाव हर वक्त किसी मर्द के स्पर्श को अपनी ओर न्यौता देते रहते थे.
यहां पर संयोग वाली बात ये थी कि उसके बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते थे जिस स्कूल में मैं भी पढ़ाता था. यह संयोग मेरे लिये काफी फायदेमंद साबित हुआ जिसके कारण हम मेरा उस मकान मालिक की दूसरी बीवी बसंती से मिलना हो पाया.
बसंती के स्तनों का साइज़ 40 के लगभग था. उसकी कमर 28 की और उम्र केवल 26 वर्ष थी. उसको देख कर ऐसा लगता था कि स्वर्ग की कोई अप्सरा हो. उसकी चुदाई होने से पहले ही मेरा लंड उसकी चूत के सपने देखने लगा था.
उसके बारे में सोच कर मैं कई बार मुठ मार चुका था. कई बार उसको अपने ख्यालों में नंगी करके चोद चुका था. मगर कल्पना तो कल्पना ही होती है. मैं वास्तिवकता में उसकी चुदाई का आनंद लेना चाहता था.
मेरी बीवी भी उसके हुस्न की तारीफ किया करती थी. कई बार मेरी बीवी ने खुद अपने मुंह से कहा था- बसंती को देख कर लगता ही नहीं है कि ये तीन बच्चों की मां है.
मैं अपनी बीवी की बात से पूर्ण रूप से सहमत था. सच में ऐसा ही था. उसको देख कर कोई उसके बारे में अंदाजा नहीं लगा सकता था.
स्कूल से वापस आने के बाद मुझे अक्सर कपड़े फैलाने के लिए छत पर जाना होता था. मेरी दिनचर्या में ये मेरा ये सबसे पसंदीदा काम था. इस बहाने मैं बसंती को देख लिया करता था. उसकी एक झलक पाने के लिए मन बेताब रहता था.
जब उसका पति घर पर नहीं होता था तो वो भी मुझे मुस्करा कर जवाब देती थी. ऐसा होते होते उसके प्रति मेरा आकर्षण प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. उसकी चूत को अपने लंड से रगड़ने के लिए मैं व्याकुल सा रहता था. उसके स्तनों का रस निचोड़ने के लिए मेरे हाथ फड़फड़ाते रहते थे.
मगर मैं कुछ नहीं कर पा रहा था. बस मन मसोस कर रह जाता था.
एक दिन की बात है कि मैं दोपहर में कपड़े फैलाने के लिए छत पर गया हुआ था. उस दिन बसंती का पति शायद बाहर गया हुआ था. वो शाम तक ही वापस आता था. मैं कपड़े सुखाने में व्यस्त था.
तभी मुझे अहसास हुआ कि छत पर कोई और भी है. मैंने उत्सुकतावश पलट कर देखा तो पीछे सीढ़ियों में बसंती खड़ी हुई थी. वो मेरी ओर ही देख रही थी. उसकी नजर में एक अजीब सी कशिश थी.
दोस्तो, आप समझ सकते हो कि जवानी की आग कितनी तेज होती है. इसको रोक कर रख पाना मुश्किल होता है. कुछ ऐसा ही हाल बसंती का भी था. वो भी अपनी जवानी को किसी के हाथों में सौंपने के लिए जैसे तरस रही थी.
जब मेरी नजर उस पड़ी तो मेरी आंखों की पुतलियां बड़ी हो गयीं. मैंने देखा कि वो केवल नाइटी में खड़ी थी. इस पर भी उसने नीचे से ब्रा नहीं पहनी हुई थी. उसके स्तन एकदम से उठे हुए दिख रहे थे. उनको देख कर लग रहा था कि वो मुझे अपनी ओर बुला रहे हैं.
शायद बसंती वहां पर खड़ी होकर मेरे बारे में ही सोच रही थी, जिस कारण उसकी आंखों में वासना के लाल डोरे पड़ गए थे.
मैंने उसे आवाज दी. उसने मेरी आवाज को जैसे सुना ही नहीं. शायद वो किसी और दुनिया में खोई हुई थी जिस कारण बसंती मेरी आवाज़ नहीं सुन पाई.
जब मैं उसके नजदीक पहुंचा तो मेरा माथा ही ठनक गया. उसकी सांसें गर्म थीं और उसके निप्पल्स तन कर खड़े हो गए थे जो नजदीक आने पर मुझे साफ़ दिखाई पड़ रहे थे.
मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर हिलाया तो वो मुझे अपने सामने देख कर पहले तो हड़बड़ा गई लेकिन फिर अपने आप को संभालते हुए बोली- क्या?
मैंने बोला- भाभी आपकी तबीयत ठीक है ना? कुछ परेशानी तो नहीं है ना? अगर कोई परेशानी है तो बताइए मुझे.
मैं ये सब बोलते हुए बसंती के चूचों को अपनी आंखों से ही जैसे चूस रहा था. मेरा लन्ड भी कड़कड़ा कर टनक गया था जो मेरी पैंट के अंदर से साफ झलक रहा था.
बसंती बोली- नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं है.
मैं बोला- भाभी, आपकी आंखें बहुत कुछ बोल रही हैं. आप जो कुछ भी सोचते हैं वो सब आपकी आंखों में दिख जाता है. ये सिर्फ आप पर ही नहीं बल्कि सब पर लागू होता है.
भाभी मुझसे पूछ बैठी- तो आप बताओ मैं क्या सोच रही थी?
मैंने कहा- भाभी मैं अगर सच बोल दूं तो हो सकता है आप बुरा मान जाओ.
भाभी फिर बोली- नहीं मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूंगी आपकी बात का, आप बताओ तो सही कि मैं क्या सोच रही हूं?
तब मैं बसंती के एकदम नजदीक (इतना नजदीक कि उसके गोरे पहाड़ जैसे स्तन मेरे सीने से छू रहे थे और मेरा लंड टनटना रहा था उसकी चूत की चटनी बनाने के लिए) आकर बोला- भाभी आप ना एकदम से अप्सरा हो, जिसे देखकर ही कोई भी मचल जाएगा, आपके हुस्न की गर्मी में कोई भी पिघल जाएगा, इतना बवाल हुस्न है आपका.
भाभी मुस्कराते हुए बोली- सर जी, कहीं आप तो नहीं पिघल रहे हैं मेरे हुस्न की गर्मी में? मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे आपको अगर मैं थोड़ी सी भी इजाज़त दे दूं तो आप मेरे ऊपर बौछार कर देंगे अपने प्यार की.
बसंती ये बोल भी नहीं पाई थी पूरी तरह से और मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा जिसके कारण उसके स्तन मेरे सीने से आकर चिपक गए और बसंती ने अपने हाथ मेरी कमर पर रखकर उसे जकड़ लिया.
मैंने कहा- भाभी, मैं कौन सा ब्रह्मचारी हूं जो आपके मदभरे हुस्न के सामने ना पिघलूं. हालत तो मेरी भी ऐसी ही है कि आपके सामने आते ही बदन में जैसे आग जलने लगती है.
चूंकि बसंती भाभी एक जवान मर्द से चुदवाने की सोच रही थी, उसका पति बूढ़ा था और उसकी चूत प्यासी थी और उसका जिस्म एक मर्द के स्पर्श के लिए तड़प रहा था.
वो नखरे दिखाते हुए बोली- क्या कर रहे हैं? छोड़िए हमें. कोई देख लेगा तो क्या बोलेगा. छोड़िए सर जी हमें, नहीं तो आपकी बीवी को बता देंगे.
मैं जानता था कि बसंती ये सब नाटक करते हुए बोल रही थी. इसका अंदाजा मुझे उसकी हरकत से हो रहा था. वो एक तरफ तो अपने हाथ को मुझसे छुड़वाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी ओर नीचे ही नीचे अपनी चूत को मेरी पैंट में तने हुए लंड से टच करवा रही थी.
अब मेरे अंदर भी हवस का भूत सवार हो चुका था.
मैंने कहा- भाभी, अब आप बुरा मानो या अच्छा, आप के हुस्न का मैं दीवाना हो गया हूं. अब तो लगता है कि अभी के अभी इसी जगह सीढ़ी पर खड़े खड़े आपके इस मदमस्त हुस्न के सागर में डुबकी लगा दूं. कसम से आप भी कहोगे कि किस मर्द से पाला पड़ गया!
मेरी बातों से अब तक बसंती भाभी को ये अहसास हो गया था कि मेरे अंदर उसके हुस्न की आग भभक रही है. अगर वो थोड़ा लिफ्ट दे देगी तो मैं उसे यहीं पर खड़े खड़े ही चोद डालूंगा.
मगर वह दोपहर का वक़्त था और मेरी बीवी मुझे नीचे से आवाज भी देने लगी थी.
इस कारण बसंती मुझे धक्का देते हुए बोली- रुकिए आपकी बीवी से ये सारी बातें बताते हैं कि आप मेरे साथ छत पर क्या कर रहे थे.
इतना बोलकर वो दौड़ते हुए अपने रूम में घुस गई और दरवाजे को बंद कर लिया. मैं वहीं पर अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और दिमाग में तरह तरह की बातें आने लगीं जिस कारण मेरे सिर में दर्द होने लगा.
मैं कपड़े फैला कर नीचे जाने लगा और जैसे ही बसंती के दरवाजे के पास पहुंचा वो थोड़ा सा दरवाजा खोल कर बनावटी गुस्सा करते हुए धीरे से बोली- मैं आ रही हूं थोड़ी देर में नीचे आपकी बीवी को बताने.
इतना बोल कर भड़ाक से उसने दोबारा से अपने रूम का दरवाजा बंद कर लिया. मेरी हालत ‘काटो तो खून नहीं’ वाली हो गई. सीढ़ी से मैं उतरा ही था कि वो फिर आई और ऊपर से अपना गला खखारते हुए मेरी तरफ उंगली दिखाते हुए मुंह बनाने लगी.
मैं चुपचाप अपने रूम में चला गया और खाना खाकर बिस्तर पर लेट गया. मेरी बीवी भी आकर मेरे बगल में लेट गई. कुछ दिन तक मैं चुपचाप छत पर जाता था और कपड़े फैला कर वापस आ जाता था.
बसंती भाभी मुझे छत से देखती थी लेकिन मैं बिना कुछ बोले ही आ जाता था. वो रोज मुझे स्कूल आते जाते भी देखती थी लेकिन मेरे में हिम्मत नहीं होती थी कि उससे आंखें मिला पाऊं.
कुछ दिनों के बाद दुर्गा पूजा की छुट्टी होने वाली थी स्कूल में. घर से फ़ोन आया कि मैं वाइफ और अपने बेटे को घर पहुँचा दूँ. मैं स्कूल से एक दिन की छुट्टी लेकर वाइफ और बेटे को घर पहुँचाकर वापस आ गया.
चूंकि अब अकेला था मैं तो अब बीवी की कमी खलने लगी. बसंती के बारे में भी सोचता था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं होती थी. फिर एक दिन की बात है कि मैं स्कूल से आकर दोपहर में कपड़े धो रहा था.
मकान मालिक उस टाइम घर में नहीं था और इसी का फायदा उठाकर बसंती भाभी ब्लाउज और पेटीकोट पहने मेरे पास पहुँच गई और बोली- क्या हो रहा है सर, कपड़े धो रहे हैं क्या?
मैं पहले तो कुछ नहीं बोला और ना ही मैंने उसकी तरफ आँख उठाकर देखा.
उसने फिर से वही बात दोहराई. लेकिन मैं फिर भी चुप रहा. तब वो मेरे सामने आकर बैठ गई और बोली- गुस्सा हैं क्या सर जी? नहीं देखना है मेरी तरफ?
मैंने अपनी नज़र को थोड़ा सा ऊपर उठाकर देखा तो अवाक् रह गया. साली के आधे से ज्यादा स्तन उसके ब्लाउज से बाहर की ओर दिख रहे थे. आप यू समझें कि उसके ब्लाउज से केवल उसके स्तनों के निप्पल ही ढके हुए थे.
वो मेरे सामने अपने स्तनों को खुला रख कर मुझे आमंत्रण दे रही थी कि आ जाओ और अपनी इस बसंती के स्तनों को अपने हाथों से आटे की तरह गूंथ दो.
“कहां ध्यान है सर आपका? मैं आपसे कुछ बोल रही हूँ. थोड़ा ध्यान मेरी बात पर भी दीजिये.”
तब मैंने उसकी तरफ देखा और उसका हाथ पकड़ कर बोला- भाभी, उस दिन के लिए सॉरी. न जाने उस दिन मैंने आपको क्या क्या बोल दिया था.
भाभी बोली- माफ तो हम आपको कर देंगे लेकिन एक शर्त पर ही करेंगे. अगर आप चाहते हैं कि मैं आपको माफ कर दूं तो आज आप फिर से वही सब बोलिये जो उस दिन बोल रहे थे.
उसकी बात सुनकर मेरे अंदर कुछ हिम्मत आई और अब मैं समझ चुका था कि ये आज मेरे लंड के तले जरूर चुदेगी. साथ ही एक डर भी था कि अगर इसने मेरी बीवी को बता दिया तो लेने के देने न पड़ जायें.
फिर भी मैंने थोड़ा साहस किया और बोला- भाभी उस दिन के लिए सॉरी. मुझे नहीं पता क्या हो गया था उस दिन मुझे. मैंने आपके साथ गलत व्यवहार कर दिया. एक्चुअली आप इतनी कमसिन हो कि पता ही नहीं चलता है कि आप तीन बच्चों की माँ हो. इसी कारण मेरे से वो हरकत हो गयी. बुरा तो उस दिन आपको बहुत लगा होगा लेकिन इसमें मेरा क्या दोष भाभी… आप ही बताओ? आपकी सुंदरता और मस्त हुस्न मेरे होश उड़ा दिए थे जिस कारण ऐसा हो गया था और मैंने आपको पकड़ लिया था. प्लीज भाभी उस दिन वाली बात किसी को नहीं बताइयेगा और खासकर मेरी वाइफ को तो बिल्कुल नहीं बताना वरना मैं कहीं का नहीं रहूंगा.
बसंती मेरी बातों को सुनकर मुस्कराते हुए बोली- बड़े डरपोक हैं जी आप तो? और मैं आपके बारे में कुछ और ही सोच रही थी. खैर जाने दीजिए. आपकी वाइफ यहां नहीं है क्या?
मैंने कहा- नहीं भाभी, वो तो घर गई हुई है, क्यों? मैंने पूछा.
वो बोली- बस यूँ ही. बात एक्चुअली में यह है कि मेरे हस्बैंड भी बाहर गए हैं और मुझे चिकन खाने का मन कर रहा था तो सोचा आपको भी इन्वाइट कर लूं. आप क्यों अकेले खाना बनाएंगे? अगर आप मार्किट से चिकन लेते आइयेगा तो मुझे जाने की जरूरत नहीं पड़ती.
मैनें कहा- ठीक है भाभी, लेकिन शाम में लाना है ना?
उसका हां में जवाब आया. इस बातचीत के दौरान मेरी नज़र उसके स्तनों पर ही थी जिस कारण मेरा लंड अपने पूरे जोश में टनक रहा था मेरी पैंट के अंदर और जिसे शायद बसंती भी समझ चुकी थी.
वो मेरे अन्दर की आग को और भड़काने के लिए मेरे सामने ही झुक कर बैठ गई जिससे उसके गोरे और जवानी के जाम से भरे स्तन मेरी आंखों के सामने चोटियों की तरह खड़े होकर मुझे आमंत्रण दे रहे थे, दबोचने के लिए… मसलने के लिए!
मेरी नज़र बसंती के रसभरे गुदाज और गोरे स्तनों से हट नहीं रही थी.
वो बोली- कहां नज़र है आपकी? मैं यहाँ हूँ सर. मुझे ऐसा लग रहा है कि आप कहीं और घुसने की सोच रहे हैं. क्यों सही बोल रही हूं ना?
तब मैं बोला- भाभी जी, आप प्लीज यहां से जाइये नहीं तो मेरे से कुछ गलत हरकत हो जाएगी, अगर ऐसा हुआ तो फिर आप बुरा मान जाओगी. इसलिए आप अभी जाओ भाभी. प्लीज… बाद में मिलते हैं, ठीक है.
मेरे इतना बोलने से उसका चेहरा थोड़ा उतर सा गया लेकिन वो वहां से चली गई ये बोलते हुए कि शाम को चिकन लेते आइयेगा, मेरे से पैसे लेकर. किसी तरह से शाम हुई और मैं भाभी के पास गया पैसे लाने. दरवाज़े पर जब मैंने दस्तक दी तो भाभी उस वक्त शायद सोई हुई थी और दरवाज़ा खुला हुआ था. बच्चे नीचे खेल रहे थे.
अंदर से कोई आवाज नहीं आने पर मैं दरवाजा खोल कर अंदर चला गया कि देखें भाभी क्या कर रही है. आवाज लगाते लगाते मैं सीधा उसके बेडरूम में घुस गया. बेडरूम का नज़ारा देखकर तो मेरे होश ही उड़ गए.
भाभी जी मस्त होकर सो रही थी और उसकी चिकनी टांगों से उसका पेटीकोट जांघ तक चढ़ा हुआ था और उसके ब्लाउज का बटन खुले होने के कारण उसके गोरे व पुष्ट स्तन ब्लाउज के अंदर से ही कयामत ढहा रहे थे.
मेरा लंड उस नज़ारे को देखकर बहकने लगा और लोहे के सरिये के जैसा कड़क हो गया. मेरा मन उसे दबोच कर एक ही झटके में अपना 8 इंच लंबा लंड उसकी चूत में पेल देने का कर रहा था. किंतु साथ ही फिर डर भी लगा कि कहीं ये चिल्ला न दे और यह सोच कर अपने लंड को अपने हाथ से सहलाते हुए मैं भाभी को उठाने लगा.
एक बार उसने अंगड़ाई ली और कुछ बुदबुदाई. जब मुझे लगा कि ये ऐसे नहीं उठेगी तो हिम्मत करके मैंने उसकी गोरी व चिकनी बांहों पर हाथ रखकर जोर से हिलाया.
तब जाकर वो नींद से उठी और उठते ही बोली- काहे परेशान कर रहे हैं? सोने दीजिये न कम से कम चैन से. आपसे तो कुछ होता नहीं है. थोड़ी देर उछल कूद कर लिए और पलट कर सो गए. भगवान जाने कैसे ये बच्चे हो गए आपसे. न रात में चैन, न दिन में आराम.
वो नींद में शायद ये सोच रही थी कि उसका पति उसे उठा रहा है. तब मैं बोला- भाभी, ये मैं हूँ सर.
तब वह हड़बड़ा कर उठकर अंगड़ाई लेते हुए बोली- आप कब आये सर?
मैंने कहा- हो गयी लगभग 15 मिनट यहां आए हुए और तब से मैं आपको उठा रहा हूं.
मेरी नज़र उसके संतरों पर ही अटकी हुई थी जिसे बसंती भी भांप गई थी और इसी कारण उसने एक बार फिर से अपने दोनों हांथों को उठा कर जोरदार अंगड़ाई ली जिससे उसके स्तन एकदम तनकर खड़े हो गए थे.
उसके गुदाज स्तनों को देखते हुए मैं बोला- भाभी, बिस्तर छोड़ कर उठिये अन्यथा हम से कुछ हो जाएगा.
वो बोली- क्यों, क्या कीजियेगा? इरादा नेक है ना आपका?
तब मैं उसके बेड पर उसके बगल में बैठते हुए बोला- भाभी, आपके बच्चे नीचे खेल रहे हैं जिसके कारण हम अपने आप को कंट्रोल किये हुए हैं वरना अभी तक आप बोल्ड हो चुके होते.
मेरी ओर हैरानी से देख कर उसने कहा- सच्ची में क्या सर? है आपके अंदर इतना दम?
इतना बोल कर वह मेरी जांघ पर हाथ रखते हुए बिस्तर से नीचे उतरी और हंसते हुए बोली- आप क्या कीजियेगा. आप तो अपनी बीवी से डरते हैं.
उसकी इस तीखी बात ने मुझे अंदर तक जला दिया और मैंने बिस्तर से उठकर उसका दाहिना हाथ पकड़ा और उसे अपनी बांहों में दबोचा और बोला- भाभी, दम तो इतना है कि सारा रस निचोड़ लेंगे आपका एक जोरदार झटके में. मगर मुझे अभी चिकन लाना है, उसके पैसे लेने आया हूँ.
तब बसंती बोली- रुकिए देती हूं.
यह बोल कर वह उसी तरह पेटीकोट और ब्लाउज में ही उसी कमरे में रखी गोदरेज की अलमारी की तरफ गई और पैसे निकाल कर उसे अपने ब्लाउज के अंदर ठूसकर मेरी तरफ घूम कर बोली- ले लीजिए पैसे और जाकर चिकन लेते आइये.
मैंने पूछा- कहां है पैसे भाभी? जल्दी कीजिये न… देर हो जाएगी फिर. कल सुबह स्कूल भी जाना है मुझे.
बसंती ने अपने गुदाज स्तनों की तरफ अपनी उंगलियों से इशारे करते हुए कहा- पैसे यहाँ हैं. अपना दम दिखाइए और पैसे ले लीजिए.
मैंने कहा- क्या भाभी! आप भी ना हद करते हैं. मजाक मत कीजिये. दीजिये न पैसे. प्लीज़!
मुझे चिढ़ाते हुए वो बोली- बस यही दम है आपमें? बड़ा चले हैं मेरा रस निकालने!
यह बोल कर बसंती हँसने लगी. मुझे बड़ी चिढ़ लगी यह सुनकर और मैंने एक बार फिर उससे रिक्वेस्ट की पैसे देने के लिए लेकिन उस पर कोई फर्क नही पड़ा.
तब मैंने उसे धकेलते हुए उसकी छातियों को दीवार से सटाकर उसके बायें हाथ को मरोड़कर उसकी पीठ से चिपकाया और अपना दूसरा हाथ उसके ब्लाउज के अंदर घुसाकर उसके निप्पल को पकड़ कर जोर से मसल दिया और अपना लंड उसके चूतड़ों में सटा दिया.
मेरा लौड़ा जो पहले से ही टनटना रहा था उसके चूतड़ों की दरार में सट कर जैसे उसको खोलना चाह रहा था. ऐसा मन किया कि उसकी गांड में लंड पेल दूं यहीं पर, इतनी मस्त मुलायम और उठी हुई गांड थी उसकी. मगर मैंने किसी तरह से खुद को रोका.
उसकी गांड में लंड लगाए हुए ही मैंने उसकी चूचियों को दबाते हुए उसके ब्लाउज में से पैसे निकाल लिये और उसके उरोजों को हाथों से जोर से दबोचकर बोला- और दम देखना है या अहसास हो गया कि मेरे अंदर कितना दम है?
अब मैं उत्तेजित हो चुका था और अपने जलते हुए होंठों को मैंने बसंती की सुराही जैसी गर्दन पर रख दिया. उसकी गर्दन पर मैंने एक गर्म चुम्बन कर दिया. उधर बसंती के अंदर आग लग गयी थी. वह मादक सिसकारियां भरने लगी थी.
मैंने उसको वहीं पर छोड़ दिया और मुड़कर दरवाजे की ओर चला. बसंती ने पीछे से आकर मुझे पकड़ लिया.
मेरे सीने पर अपनी बांहों को कसते हुए उसने कहा- सर जी, अब जब आग लगायी है तो इस आग पर पानी भी डाल दीजिये. अगर आपने अभी इस आग पर पानी नहीं डाला तो मैं जलती और तड़पती ही रह जाऊंगी. प्लीज मुझे ऐसे तड़पते हुए छोड़ कर मत जाइये.
तब मैंने पलट कर उसके चूतड़ों को अपने हाथों से दबोचा और बोला- मेरी रानी, मैं कहीं नहीं जा रहा हूं. मगर अभी कुछ नहीं कर सकता हूं क्योंकि अगर तुम्हारे बच्चे आ गये तो तुम इससे भी ज्यादा तड़प कर रह जाओगी. रात को मैं तुम्हारे जवां जिस्म पर अपने चुम्बनों के ठंडे पानी की बरसात कर दूंगा. मैं तुम्हें रात भर सोने भी नहीं दूंगा. अभी तुम जाओ और रात को जागने के लिए तैयार हो जाओ. मैं सारी रात तुम्हें अपनी बांहों में रखूंगा. चाहे कपड़े पहने हुए रहना या फिर नंगी ही रहना. मर्जी तुम्हारी है.
फिर उसके रस भरे होंठों पर अपने होंठ रखकर उसे चूमते हुए उसके एक हाथ को अपने लंड पर रख दिया मैंने. पहले तो वो अपने हाथ को मेरे लंड से हटाने लगी. जब दूसरी बार मैंने दोबारा से उसके हाथ को पकड़ कर अपने लंड पर रखवाया तो वह मेरे लंड को मेरी पैंट के ऊपर से ही सहलाने लगी. उसके मुंह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं.
कुछ पल तक वो मेरे लंड को हाथ में भर कर उसका मजा लेती रही और फिर मैंने उसको अपने से अलग कर दिया.
मैंने कहा- तुम जाकर अब आराम करो, रात को तुम्हारे साथ बहुत कुछ होने वाला है.
इतना बोल कर मैं उसके कमरे से बाहर निकल गया. आधे घंटे के बाद मैं चिकन लेकर आ गया. मैंने घर आकर बसंती को आवाज दी तो उसके बच्चे कमरे से बाहर आये. उन्होंने मुझे नमस्ते किया और बोले- क्या बात है सर?
मैंने उनसे पूछा- तुम्हारी मां कहां पर है?
तब तक बसंती दरवाजे के पास आ गयी थी. उसने अपने बच्चों को अंदर भेज दिया. फिर वो मेरे नजदीक आकर खड़ी हो गयी.
अब मुझे किसी प्रकार का डर नहीं लग रहा था. मैंने सीधे ही उसके उभारों पर अपने हाथ रख कर सहलाते हुए कहा- चिकन थोड़ा तीखा बनाना क्योंकि मुझे तीखा ही पसंद है बिल्कुल तुम्हारी तीखी जवानी के जैसा. आज तो तुम्हारी जवानी का एक एक अंग दर्द करेगा और टूटेगा.
वो बोली- अभी तोड़ दीजिये ना सर… रात का इंतजार नहीं होगा अब. हम तो आपके लिए अब पागल से हो गये हैं. जब से आपके हथियार को हाथ में लेकर देखा है तब से ही नीचे जैसे भट्टी जल रही है. आपका हथियार तो बहुत तगड़ा है सर जी.
यह बोलकर बसंती मेरे लंड को पकड़़ कर जोर से भींचने लगी और चिकन लेकर हँसते हुए किचन में चली गई. मैं वापस अपने कमरे में आ गया और एक सिगरेट पी और सो गया.
लगभग शाम के 7 बजे के आसपास मेरी नींद खुली. मैंने बाथरुम जाकर स्नान किया और एक निक्कर व बनियान पहन कर बाहर टहलने चला गया.
थोड़ी देर बाद जब मैं वापस अपने कमरे में आया तो बसंती की बड़ी बेटी जो लगभग 7 साल की थी मेरे पास आई और बोली कि उसकी मम्मी मुझे बुला रही है.
मैंने उसे यह बोलकर वापस भेज दिया कि अपनी मम्मी को जाकर बोलना कि सर तैयार होकर आ रहे हैं.
फिर मैं फ्रेश होकर बनियान और निक्कर में ही उसके घर गया जो कि उसी मकान के पहले तल पर था.
पहुंच कर मैंने पूछा- भाभी आप मुझे बुला रहे थे क्या? बताइये क्या काम है?
यह सब पूछते हुए मैं किचन तक पहुंच चुका था.
बसंती ने एक झीनी सी नाइटी पहनी हुई थी. मैं बसंती के नजदीक पहुंच कर उसके चूतड़ों को दबाते हुए बोला- बन गया खाना भाभी जी? मुझे बहुत जोरों की भूख लगी हुई है.
बसंती हंसते हुए बोली – पाँच मिनट इंतजार कीजिए, एकदम गर्म खाना मिलेगा खाने के लिए आपको. आप तब तक बच्चों के साथ बैठिए और थोड़ा सब्र रखिए. सब्र का फल मीठा होता है सर. बच्चों को पहले खिलाने दीजिए. वो जब सो जाऐंगे तब हम दोनों खायेंगे, ठीक है?
मैंने हाँ में अपना सर हिला दिया और किचन से बाहर आ गया और उसके बच्चों के साथ बैठकर कार्टून देखने लगा जो कि बच्चे पहले से ही देख रहे थे. दस से पंद्रह मिनट के बाद बसंती आई और उसने अपने बच्चों को खाने के लिए आवाज दी.
तब तक उसने डाइनिंग टेबल पर खाना सजा दिया था. बच्चे भी तुरंत खाने के लिए जा पहुंचे और बसंती उनको खिलाने लगी. खाना खत्म होने के बाद बसंती ने सभी बच्चों को उनके रुम में ले जाकर सुला दिया.
उसके बाद वह मेरे पास आकर बैठ गई और बोली- खाना है या इसी तरह रहना है.
तब मेरे मुँह से निकला- अपने हसीन व मदमस्त यार के दरवाजे से मैं भूखा चला जाऊं यह तुम्हें शोभा नहीं देगा. रही बात खाने की तो मैं यहाँ सिर्फ चिकन खाने नहीं आया हूँ बल्कि कुछ स्पेशल भी खाना है और यह तुम्हें अच्छी तरह से मालूम है कि मेरा स्पेशल क्या है? क्यों?
बसंती नखरे दिखाते हुए अपने स्तनों को थोड़ा उभारते हुए बोली- नहीं, मुझे तो नहीं पता कि आपका स्पेशल खाना क्या है! अगर आपने पहले बताया होता स्पेशल खाने के बारे में तो आपके लिए अलग से इंतजाम कर देती.
उसका इतना बोलना था कि मैंने उसके एक स्तन को अपने हाथ से दबोच कर जोर से भींच दिया जिससे वह दर्द के कारण सिसकार उठी लेकिन मैंने उसके स्तन को मसलना नहीं छोड़ा और मसलते हुए उससे पूछा- अब बताओ तुम्हें पता है कि नहीं मेरे स्पेशल खाना के बारे में या और कुछ करके बताना पड़ेगा?
तब तक बसंती की आँखें वासना की आग में लाल हो गई थीं और वह कमरा जिसमें हम दोनों बैठे हुए थे बसंती की मादक सिसकारियों के कारण पूरी तरह से गर्म हो गया था. मैं उसके दोनों स्तनों को बारी-बारी से मसले जा रहा था.
तभी अचानक बसंती मेरा हाथ हटाते हुए बोली- रुक जाइए सर. पूरी रात बाकी है. आप अपना स्पेशल खाना तसल्ली से खा लीजिएगा. अभी बच्चे सोए भी नहीं होंगे. चलिए पहले खाना खाते हैं तब तक बच्चे भी सो जायेंगे.
उसके बाद उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे डाइनिंग टेबल की ओर ले गयी. वहां बैठा कर बोली- बैठिए, मैं खाना लगाती हूँ.
फिर वो ये कह कर किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद वह खाना लेकर आई और हम दोनों ने साथ में भोजन किया.
भोजन करने के बाद मैंने बसंती से कहा कि मैं छत पर जा रहा हूं.
मैं ऊपर चला गया और वहां जाकर देखा तो मौसम बहुत ही सुहावना था. मेरे मन में बार बार बसंती की चुदाई के खयाल आ रहे थे. मेरा 8 इंच का लंड पूरे शबाब पर था. मेरा लंड उस मादक मकान मालकिन को चोदने के लिए फड़फड़ा रहा था.
बार-बार मैं सीढ़ी के पास जाकर देख रहा था कि बसंती आ रही है या नहीं. लगभग 15 मिनट के बाद वो छत पर आई और थोड़ा नखरा दिखाते हुए बोली- छत पर क्यों बुलाये हो सर हमको? कुछ खास काम है क्या आपको?
मैंने उसको अपने पास आने के लिए इशारा किया और खुद मैं छत पर दीवार के सहारे बैठ गया. बसंती अपनी कमर को लचकाते हुए मेरे पास आई और मेरे बगल में बैठते हुए बोली- जी, अब बताइये क्या इरादा है?
उसके हाथ को पकड़कर मैंने उसको बांहों में लेते हुए कहा- खास बात यह है कि मुझे तेरे इस संगमरमरी जिस्म के रस के समंदर में डुबकी लगानी है. अब चाहे तो तुम खुद अपने आप को मेरे हवाले कर दो या फिर मैं तुम्हारे जवाँ जिस्म से सारे कपड़े उतारकर इसमें खुद ही डुबकी लगा लूँगा. बताओ, तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?
वह थोड़े नखरे दिखाते हुए मेरे लंड पर हाथ रखते हुए बोली- तैरना आता है आपको? बहुत गहराई है इस झील में, डूब जायेंगे आप. ये शब्द उसके मुँह से निकलने भर की देरी थी और मैंने उसके गुदाज व मांसल स्तनों को दबोचकर बसंती को वहीं छत के फर्श पर लिटाकर उसके उपर चढ़ गया.
उसके बाद उसकी नाइटी को उसकी मांसल जांघों तक उपर उठाकर उसकी चूत के अंदर अपनी दो उंगली घुसा दी जिससे वह तड़प उठी और सिसकार उठी. उसकी जवानी की आग एकदम से भड़क सी गयी. उसके मुंह से निकल गया- आह… आह…. उई… मां… आहह… हहह… मर जाऐंगे सर हम तो इस तरह.
पता नहीं कितने दिनों की प्यासी थी वो कि उसके बाद तो जैसे वह पागल सी हो गई. उसने मुझे अपने से अलग किया और मुझे नीचे लिटाकर मेरे निक्कर को मेरी टांगों से निकाल कर मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
उसने मुंह में लंड लिया तो मैं जैसे आनंद के गहरे सागर में उतर गया. धीरे धीरे करके बसंती ने मेरे पूरे लंड को जैसे अपने मुंह की गहराई में उतार लिया. ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने मेरे लंड को निगल ही लिया है.
वह लगातार मेरे लंड को चूसती रही. उसको दांतों से काटती रही. मुझे मजा भी आ रहा था और हल्का दर्द भी हो रहा था. करीबन 10 मिनट के बाद मैं तो झड़ने को हो गया.
मैंने कहा- बसंती, मेरा लंड अब बरसात करने वाला है.
वो बोली- इसी बारिश का इंतजार तो मैं कितने दिनों से कर रही हूं. कर दो बरसात सर जी.
थोड़े ही समय में मेरे लंड ने सारा वीर्य उसके मुँह में ही खाली कर दिया. वह मजे से मेरे लंड के सारे वीर्य को पी गई और फिर मेरे लंड को अपनी जीभ से चाटने लगी. फिर वह मेरे उपर आकर लेट गई.
मैंने उससे पूछा- मजा आया मेरे केले को खाकर या अभी भी आग बची हुई है तेरे जिस्म में?
वह मेरे गाल पर अपने दांत गड़ाते हुए बोली- अभी तो बात शुरू हुई है सर. पूरी रात खाऐंगे हम तो तुम्हारे केले को. बड़ा ही मजेदार और तगड़ा है तुम्हारा ये मोटा केला. जिस लंड के लिए मैं तड़प रही थी सालों से, वह आज जाकर मिला है, तो इतनी जल्दी हमारी आग कैसे मिट जाएगी?
हम दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी बारिश होने लगी.
मैंने कहा- चलो नीचे बिस्तर पर जाकर मजे लेते हैं.
वो बोली- कितना मस्त मौसम है. इस बारिश में ही तो चुदाई का असली मजा आयेगा सर.
वह मेरे से अलग हुई और उसने मेरी बनियान भी निकाल दी. उसके बाद उसने अपनी खुद की नाइटी भी अपने जिस्म से अलग करके एक ओर फेंक दी. अब हम दोनों ही मादरजात नंगे हो गये थे.
अब चुदाई का असली खेल शुरू होने वाला था.
बसंती ने जंगली बिल्ली की तरह मुझे काटना शुरू कर दिया. वो मुझे ऐसे नोंच रही थी जैसे खा ही जायेगी. मैं भी उसके जिस्म के हर एक अंग को ऐसे ही नोंच रहा था. उसको हर जगह से काट रहा था. उसके स्तनों को जोर जोर से मसल रहा था और वह मेरे जिस्म से बेल बन कर लिपट रही थी.
यह खेल लगभग 25 से 30 मिनट तक चलता रहा. फिर वह अचानक मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर आ गयी. उसने मेरी जांघों पर बैठ कर अपनी चूत पर मेरे लंड को लगा लिया और धीरे धीरे दबाव बनाने लगी.
जब उसकी चूत के अंदर मेरा पूरा लंड चला गया तब मैंने उसे नीचे लिटा लिया और उसकी एक टाँग को घुटने से मोड़ कर उठाया और फिर मैं अपना घोड़ा उसके सपाट मैदान में पूरी स्पीड से सरपट दौड़ाने लगा.
जहां तक मुझे लग रहा था कि मेरे मकान मालिक यानि कि उसके पति का लंड न तो ज्यादा लंबा था और न ही ज्यादा मोटा था. जिसके कारण उसको मेरा लंड लेने में दिक्कत हो रही थी. यहां तक की उसकी आंखों से पानी आने लगा था.
इस दर्द में भी उसके चेहरे पर लंड लेने का मजा अलग से दिखाई दे रहा था. वह अब लगातार बड़बड़ा रही थी- सर मुझे रंडी बना दो… इस तरह से मेरी चुदाई करो कि मैं खुश हो जाऊं. मैं बहुत दिनों से प्यासी हूं. मैं आपका लंड लेकर अपनी प्यास को मिटाना चाह रही हूं. आपका लंड ही मेरी चूत की आग को शांत कर सकता है. आह्ह … सर … चोद दो मुझे … जल्दी जल्दी चोदो.
मैंने उसकी चूत में लंड के धक्के लगाना शुरू कर दिया और मेरे लंड व उसकी चूत के मिलन से फच फच… थप-थप… फट-फट… की आवाज होने लगी. यह आवाज उस बारिश की रात में और भी ज्यादा मादकता भर रही थी.
15 मिनट तक हमारी चुदाई चलती रही. कभी मैं बसंती के ऊपर हो जाता था तो कभी बसंती मेरे ऊपर हो जाती थी. जब मुझे लगा कि मैं अब झड़ जाऊँगा तो बसंती से मैंने बोला- रानी मेरा पानी निकलने वाला है. तुम्हारी चूत के अंदर डाल दूँ क्या अपने माल को?
वह सिसकारते, कराहते हुए बोली- बहनचोऽऽद, आऽह… उसे फालतू में अंदर मत गिराना. उसे हम पीऐंगे. मेरा भी होने वाला है.
तब हम दोनों 69 की पोज में आ गए और फिर मेरे होंठ उसकी चूत की फाँकों के ऊपर लग गये और मेरा लंड उसके मुँह के अंदर चला गया.
फिर 4 से 5 मिनट बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए. थोड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे को चाटते रहे. आप सभी तो यह अच्छी तरह से जानते हैं कि एक अच्छी और मजेदार चुदाई के बाद थकावट हो जाती है और वही हुआ हम दोनों के साथ भी.
थक कर हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते रहे और चूमते रहे. मैं उसके स्तनों को सहलाता रहा और वह मेरे लंड से खेलते हुए वहीं छत पर सो गयी. एक घंटे बाद ठंड के कारण मेरी नींद खुली तो मैंने बसंती को उठाया और बोला- चलो यार नीचे. यहाँ ठंड लग रही है.
फिर हम दोनों अपने कपड़े उठा कर नीचे आए. कपड़े बसंती के रूम में एक तरफ फेंक कर बसंती से मैंने बोला- बसंती, चाय बना लो, चाय पीने का मन कर रहा है.
वह हाँ बोलकर उसी तरह नंगे बदन ही किचन में चली गई. मैं भी नंगे बदन ही बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर वापस बेडरूम आकर लेट गया और एक सिगरेट जलाकर पीने लगा.
थोड़ी देर के बाद बसंती चाय लेकर आई. चाय पीने के बाद वह बाथरूम में चली गई फ्रेश होने के लिये. तब तक मेरा लंड फिर से अपने पूरे उफान पर आ गया था यानि बसंती की चूत की चुदाई के लिए पूरी तरह से एक बार फिर से तैयार हो गया था.
बसंती मेरे लंड को देखकर बोली- बड़ा ही चोदू है तुम्हारा लंड सर जी.
यह बोलकर वह मेरे उपर आ गई और मेरे लंड से खेलने लगी. मैंने उससे पूछा- बसंती, कैसा लगा मेरा लंड? मजा आया मेरे लंड से चुदकर?
वह बोली- सर आज बहुत दिनों के बाद मेरी चूत की चुदाई हुई है एक तगड़े लंड से. आपको हम कभी भूल नहीं पाऐंगे सर. आज से हम आपके गुलाम हैं. आपको जब भी मन करे हमें चोदने के लिये बेहिचक यहाँ आकर मेरे कपड़े उतार कर हमारी चूत को बिना किसी रहम के चोद लीजिएगा.
उसके बाद उस रात मैने बसंती की चूत की चुदाई के साथ साथ उसकी गाँड भी मारी. उसने गांड मरवाने के लिए भी मना नहीं किया. अब वह पूरी तरह से रांड बन गई थी.
सुबह लगभग 5 बजे मैं कपड़े पहन कर अपने रूम पर आ गया. उसके बाद से जब भी मुझे मौका मिला मैं बसंती की चुदाई करता रहा और बसंती मेरे लंड से चुदती रही और चुद कर मजा लेती रही. उसकी चुदाई करके मैंने उसकी राण्ड बनने की इच्छा पूरी कर दी थी.