यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मेरी कच्ची जवानी की कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि इंग्लिश के पेपर में नकल करते हुए पकड़े जाने पर मैं फंस गई. एग्जामिनर मेरा यू.एम.सी. बनाना चाहता था. अगर यू.एम.सी बन जाता तो मैं तीन साल तक एग्जाम नहीं दे पाती. इसलिए डर के कारण बात को संभालने के लिए प्रिन्सिपल मैडम के ऑफिस में पहुंच गई और वहां पर मेरी तलाशी की बात मैडम ने कह दी.
अब आगे …
उनकी बातों से मुझे अहसास होने लगा था कि सर की नज़र मेरी कच्ची जवानी पर है और मैडम भी उनके साथ मिली हुई है.
“अब तलाशी तो लेनी ही पड़ेगी … समझ रही हो ना?” सर ने मेरी आँखों में देख कर कहा।
मेरा टाइम निकला जा रहा था और उन्हें मस्ती सूझ रही थी. मैं कुछ नहीं बोली, सिर्फ़ सिर झुका लिया अपना.
“बोलो, जवाब दो! या मैं यू.एम.सी. बना दूँ? सर ने कहा।
“जी … मेरे पास दो और हैं. मैं निकाल कर आ जाती हूँ अभी” मैंने कसमसा कर कहा।
“निकालो, जो कुछ है एक मिनट में निकाल दो यहीं!” सर ने कहा।
मैं एक पल के लिए हिचकिचाई और फिर कुछ सोच कर तिरछी हुई और ऊपर से अपनी स्कर्ट में हाथ डाल लिया. वो अब भी मेरी ओर ही देख रहे थे. मैंने और अंदर हाथ ले जाकर पर्चियाँ निकालीं और उनको पकड़ा दी.
“हम्म” अपनी नाक के पास ले जाकर सर मेरे सामने ही पर्चियों को सूँघने लगे. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल हो गया. कुछ देर बाद वह फिर मुझे घूरने लगे.
“और निकालो?” सर ने ज़ोर देकर कहा।
“जी … और नहीं है एक भी अब मेरे पास!” मैंने जवाब दिया।
“तुम कुछ भी कहोगी और मैं विश्वास कर लूँगा? तलाशी तो देनी ही पड़ेगी तुम्हें!” उन्होंने बनावटी से गुस्से से मुझे घूरा.
“मगर सर … आधा टाइम पहले ही निकल चुका है पेपर का!” मैंने डरते डरते कहा।
“आज के पेपर को तो भूल ही जाओ. सिर्फ़ ये दुआ करो कि तुम्हारे तीन साल बच जायें. समझी?” उन्होंने गुर्राकर कहा।
“सर प्लीज़ …” मैंने सहम कर उनकी आँखों में देखा. वह एकटक मुझे ही घूरे जा रहा था.
“तुम समझ रही हो या नहीं? तलाशी तो तुम्हें देनी ही पड़ेगी अगर तुम यू.एम.सी. से बचना चाहती हो तो … तुम्हारी मर्ज़ी है. कहो तो यू.एम.सी. बना दूं?” सर ने इस बार एक-एक शब्द को जैसे चबा कर कहा।
“जी …”
मुझे उनको तलाशी देने में कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसी तलाशी तो स्कूल के टीचर जाने कितनी ही बार ले चुके थे. बातों-बातों में सिर्फ़ मुझे टाइम की चिंता हो रही थी.
“क्या जी-जी लगा रखा है? मैंने तो अब तुम पर ही छोड़ दिया है. तुम्हीं बोलो क्या करूँ? तलाशी लूँ या यू.एम.सी. बनाऊँ?”
“जी … तलाशी ले लीजिये … पर प्लीज़ … केस मत बनाना!” मैंने याचना सी करते हुए कहा।
“वो तो मैं तलाशी लेने के बाद सोचूँगा. इधर आ जाओ. मेरे पास …” सर ने मुझे दूसरी ओर बुलाया.
मैं टेबल के साथ-साथ चलकर सर के पास जाकर खड़ी हो गयी. मेरा चेहरा ये सोच कर ही लाल हो गया था कि अब वह तलाशी के बहाने जाने कहाँ-कहाँ हाथ लगायेंगे. वह मुझे यूँ घूर रहे थे मानो कच्चा ही चबा जाने के मूड में हों. थोड़ा हिचकने के बाद उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिया
“अब भी सोच लो. मैं तलाशी लूँगा तो अच्छे से लूँगा. फिर ये मत कहना कि यहाँ हाथ मत लगाओ. वहाँ हाथ मत लगाओ. तुम्हारे पास अब भी मौका है. बीच में अगर टोका तो मैं तुरंत यू.एम.सी. बना दूँगा.”
“जी … मैं कुछ नहीं बोलूँगी. पर आप प्लीज़ केस मत बनाना …” मैं अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी.
“ठीक है … मैं देखता हूँ.”
कहकर वो मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगे.
“एक बात तो है …” उन्होंने बात अधूरी छोड़ दी और मेरे नितंबों की दरार टटोलने लगे.
मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी मचने लगी. अब मुझे पूरा यकीन हो चला था कि तलाशी सिर्फ़ एक बहाना है मेरे बदन से खेलने के लिए.
मेरी तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ.” उन्होंने कहा।
मैं उसकी तरफ घूम गयी. मेरी अधपकी हुई सी गोल-गोल मस्त चूचियाँ अब कुर्सी पर बैठे हुए सर की आँखों से कुछ ही उपर थी और उनके होंठों से कुछ ही दूर.
“एक बात सच-सच बताओगी तो मैं तुम्हे माफ़ कर दूँगा!” सर ने मेरी शॉर्ट स्कर्ट में से हाथ निकालते हुए कहा.
“जी …” मैंने आँखें बंद करके कहा।
“तुम्हें पता है न कि ये लेटर वाली पर्ची किसने दी है तुम्हें?” उन्होंने मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाला और मेरे चिकने पेट पर हाथ फेरने लगे.
मैं सिहर उठी. उनके खुरदरे मोटे हाथ का स्पर्श मुझे अपने पेट पर बहुत कामुक अहसास दे रहा था. मैंने आह सी भरकर जवाब दिया- नहीं सर, भगवान की कसम …
“चलो कोई बात नहीं … जवानी में ये सब तो होता ही है. इस उम्र में मज़े नहीं लिए तो कब लोगी? ठीक कह रहा हूँ ना?” उसने बोलते-बोलते दूसरा हाथ मेरी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे घुटनों से थोड़ा ऊपर मेरी जाँघ को कसकर पकड़ लिया.
“जी … प्लीज़ … जल्दी कर लीजिये ना!” मैंने उनसे प्रार्थना की।
“मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मैं तो इसीलिए धीरे कर रहा हूँ ताकि तुम्हें शर्म ना आए. ऐसा करने से तुम गर्म हो रही होगी ना? सर ने कहा और अपना हाथ एकदम ऊपर चढ़ा कर कच्छी के ऊपर से ही मेरे मांसल नितंबों में से एक को मसल दिया.
“आआअहह..” मेरे मुँह से एकदम तेज साँस निकली. उत्तेजना के मारे मेरा बदन अकड़ने सा लगा था.
“कैसा लग रहा है? मतलब कोई दिक्कत तो नहीं है ना?” उन्होंने नितंब पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करते हुए कहा।
“जी … नहीं…” मैंने जवाब दिया … मेरी टाँगें काँपने सी लगी थी. यूँ लग रहा था जैसे ज़्यादा देर खड़ी नहीं रह पाऊंगी.
“अच्छा लग रहा है ना?” उन्होंने दूसरे नितंब पर हाथ फेरते हुए पूछा।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और थोड़ी आगे होकर उनके और पास आ गयी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. सिर्फ़ पेपर की चिंता थी.
अगले ही पल वो अपनी औकात पर आ ही गए. मेरे नितंब को अपनी हथेली में दबोचे हुए दूसरे हाथ को वो धीरे-धीरे पेट से ऊपर ले जाने लगे.
“तुम गजब की हसीन और चिकनी हो. तुम्हारे जैसी लड़की तो मैंने आज तक देखी भी नहीं. तुम चिंता मत करो. तुम्हारा हर पेपर अब अच्छा होगा. मैं गारंटी देता हूँ. बस तुम थोड़ा सा मुझे खुश कर दो. मैं तुम्हारी ऐश कर दूँगा यहाँ”
“पर … आज का पेपर सर?” मैंने कसमसाते हुए कहा।
“ओह्हो … मैं कह तो रहा हूँ … तुम्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं अब. आज तुम्हें पेपर के बाद एक घंटा दे दूँगा और किसी अच्छे बच्चे का पेपर भी तुम्हारे सामने रख दूँगा. बस अब तुम पेपर की बात भूल जाओ थोड़ी देर” उन्होंने कहा और मेरी कच्छी के अंदर हथेली डाल कर मेरी चूत की दरार को उंगलियों से कुरेदने लगे.
मन को मिली शांति और तन को मिली इस गुदगुदी से मैं मचल सी उठी. एक बार मैंने अपनी ऐड़ियां उठाईं और आगे हो गयी. अब उसके चेहरे और मेरी चूचियों के बीच 2 इंच का ही फासला रहा होगा.
“आह्ह … थैंक्स सर!”
“हाय … कितनी गर्म-गर्म है तू. मेरी किस्मत में ही थी तू. तभी मुझे लव लेटर वाली पर्ची हाथ लगी. वरना तो मैं सपने में भी नही सोच पाता कि यहाँ स्कूल में मुझे तुझ जैसी लौंडिया मिल सकती है. मज़ा आ रहा है ना?” उनकी भी साँसें उखड़ने लगीं थी.
“जी … आप जी भर कर तलाशी ले लो. बहुत मज़ा आ रहा है!” मैंने भी सिसकारी सी लेकर कहा।
मेरे लाइन देते ही उन्होंने झट से अपना हाथ ऊपर चढ़ा कर मेरे छोटे से उरोज को पकड़ लिया. मेरी गरदाई हुई चूचियाँ हाथ में आते ही वह मचल उठा.
“वाह क्या चीज़ बनाई है बनाने वाले ने. तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं. सेब के जैसी, दिल कर रहा है खा जाऊँ इन्हें!” वह मेरे उरोज के निप्पल को छेड़ते हुए बोले. वो भी अकड़ से गये थे.
मैं अपनी प्रशंसा सुनकर बाग-बाग हो गयी. थोड़ा इतराते हुए मैंने आँखें खोल कर उनको देखा और मुस्करा दी.
उन्होंने अपना हाथ निकाल कर मेरी कच्छी को थोड़ा नीचे सरका दिया. गर्म हो चुकी मेरी योनि ठंडी हवा लगते ही ठिठुर सी उठी. अगले ही पल वो अपनी एक उंगली को मेरी योनि की फांकों के बीच ले गये और ऊपर नीचे करते हुए उसका छेद ढूँढने लगे.
मैं दहक उठी. मेरी योनि ने रस बहाना शुरू कर दिया. उतावलेपन और उत्तेजना में मैंने ‘सर’ का सिर पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर अपनी चूचियों में दबा लिया. इसी दौरान उसकी एक उंगली मेरी योनि में उतर गयी. मैं उछल सी पड़ी. मगर योनि ने उसको जल्दी ही अपने अंदर एडजस्ट कर लिया.
“बहुत टाइट है तेरी ‘बुर’ तो. पहले कभी किया नहीं ऐसा लगता है!” उन्होंने कहकर और मेरी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल दिए. मेरी मस्ताई हुई गोरी चूचियाँ टपाक से ऊपर की तरफ से छलक सी आईं.
मेरी कमीज़ में घुसे हुए उनके हाथ से उन्होंने एक चूची को और ऊपर खिसका दिया और चूची पर जड़े मोती जैसे गुलाबी दाने को शर्ट से बाहर निकाल लिया. उसको देखते ही वह पागल से हो गये- वाह … इसको कहते हैं चूचक … कितना प्यारा और रसीला है.
आगे वह कुछ नहीं बोले. अपने होंठों में उन्होंने मेरे टाइट निप्पल को दबा लिया था और किसी बच्चे की तरह उसको चूसने लगे.
मैं घिघिया उठी. बुरा हाल हो रहा था. उन्होंने अपनी उंगली बाहर निकाली और फिर से अंदर सरका दी. इतना मज़ा आ रहा था कि बयान नहीं कर सकती. मेरे होश उड़े जा रहे थे. मैं सब कुछ भूल चुकी थी. ये भी कि मैं यहाँ पेपर देने आई हूँ.
उनकी उंगली अब सटासट अंदर बाहर हो रही थी. मैंने अपनी जांघों को और खोल दिया था और जमकर सिसकारियाँ लेते हुए आँखें बंद किए आनंद में डूबी रही. वह भी पागलों की भाँति उंगली से रेलम पेल करते हुए लगातार मेरे निप्पल को चूस रहे थे. जैसे ही मेरा इस बार रस निकला मैंने अपनी जांघें ज़ोर से भींच ली.
“बस … सर … और नहीं … अब सहन नहीं होता मुझसे …”
वह तुरंत हट गये और जल्दबाज़ी सी करते हुए बोले- “ठीक है … जल्दी नीचे बैठ जाओ …”
मैं पूरी तरह उनका मतलब नहीं समझी मगर जैसे ही उन्होंने कहा. मैंने अपनी कच्छी ठीक करके शर्ट के बटन बंद किए और नीचे बैठ कर उनकी आँखों में देखने लगी.
उन्होंने झट से अपनी पैंट की ज़िप खोल कर अपना लंड मेरी आँखों के सामने निकाल दिया.
“लो! इसको पकड़ कर आगे-पीछे करो!”
हाथ में लेने पर उसका लंड मुझे सुन्दर जितना ही लंबा और मोटा लगा. मैंने खुशी-खुशी उसको हिलाना शुरू कर दिया.
“जब मैं कहूँ ‘आया …’ अपना मुँह खोल देना!” उन्होंने सिसकते हुए कहा।
मुझे मम्मी और सुन्दर वाला सीन याद आ गया- मुझे पीना है क्या सर?
“अरे वाह … मेरी जान … तू तो बड़ी समझदार है। आया … हां … जल्दी-जल्दी कर” उनकी साँसें उखड़ी हुई थीं.
करीब 2 मिनट के बाद ही वह कुर्सी से सरक कर आगे की ओर झुक गये.
“हाँ … आआआ … ले … मुँह खोल …”
मैंने अपना मुँह पूरा खोल कर उनके लिंग के सामने कर दिया. उन्होंने झट से अपना सुपाड़ा मेरे मुँह में फँसाया और मेरा सर पकड़ लिया.
“आआआ … आया … आया”
सुन्दर के मुक़ाबले रस ज़्यादा नहीं निकला था, पर जितना भी था मैंने उसकी एक-एक बूँद को अपने गले से नीचे उतार लिया. जब तक उन्होंने अपना लिंग बाहर नहीं निकाला. मेरे गुलाबी रसीले होंठ उसके सुपाड़े को अपनी गिरफ़्त में जकड़े रहे. स्वाद मुझे कुछ खास अच्छा नहीं लगा. लेकिन कुछ खास बुरा भी नहीं था.
कुछ देर यूँ ही झटके खाने के बाद उसका लिंग अपने आप ही मेरे होंठों से बाहर निकल आया. उसको अंदर करके उन्होंने अपनी ज़िप बंद की और अपना मोबाइल निकाल कर फोन मिलाया और बोला- आ जाओ मैडम!
तू इस गाँव की नहीं है ना?” उसने प्यार से पूछा।
“जी नहीं!” मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया.
“कौन आया है तेरे साथ?”
“जी कोई नहीं. अपनी सहेली के साथ आई हूँ!” मैंने जवाब दिया.
“वेरी गुड … ऐसा करना … पेपर के बाद यहीं रहकर सारा पेपर कर लेना … तुझे तो मैं 2 घंटे भी दे दूँगा … तू तो बड़े काम की चीज़ है यार … अपनी सहेली को जाने के लिए बोल देना. तुझे मैं अपने आप छोड़ आया करूँगा. ठीक है ना?”
“जी!” मैंने सहमति में सिर हिलाया.
तभी मैडम दरवाजा खोल कर अंदर आ गयी।
“तलाशी दी या नहीं?” उसने अजीब से ढंग से सर को देखा और मुस्कराने लगी.
“ये तो कमाल की लड़की है. बहुत प्यारी है. ये तो सब कुछ दे देगी. तुम देखना” सर ने मैडम की ओर आँख मारी और फिर मेरी तरफ देख कर बोले-
“जा! कर ले आराम से पेपर और पेपर टाइम के बाद सीधे यहीं आ जाना. मैं निकाल कर दे दूँगा तुझे वापस. आराम से सारा पेपर करना. और ये ले … तेरी पर्ची … इसमें से लिख लेना तब तक … मैं तुम्हारी क्लास में कहलवा देता हूँ … तुझे कोई नहीं रोकेगा अब नकल करने से!” कहकर उन्होंने मेरे गाल थपथपा दिए.
मैं खुश होकर बाहर निकली तो पीऊन मुझे अजीब सी नज़रों से घूर रहा था. पर मैंने परवाह नहीं की और अपने रूम में आ गयी.
“क्या हुआ?” क्लास में टीचर ने पूछा.
“कुछ नहीं सर. मान गये वो.” मैंने कहा और अपनी सीट पर बैठ गयी. अब आधा घंटा ही बचा था एग्जाम ख़त्म होने में.
तभी सर ऑफिस से बाहर निकल आए. उन्होंने इधर-उधर देखा. सभी जा चुके थे. हमारे अलावा सिर्फ़ पिऊन ही ऑफिस के बाहर बैठा था.
सर अंदर गये और थोड़ी देर बाद मैडम बाहर निकली- किशन! बाकी कमरों को ताला लगाकर तुम चले जाओ. हमें अभी टाइम लगेगा.
“ठीक है मैडम!” चपरासी ने कहा और चाबी उठा कर कमरे बंद करने लगा.
“हम्म … पर पेपर तो मेरा भी अच्छा नहीं हुआ … चल चलते हैं घर … रास्ते में बात करेंगे.” पिंकी ने मायूस होकर कहा।
“ऐसा कर … तू जा, मैं थोड़ी देर बाद आऊँगी”.
मैं लगे हाथों बाकी बचे पेपर को भी निपटा देना चाहती थी.
“पर क्यूँ? यहाँ क्या करेगी तू?” उसने आँखें सिकोड कर पूछा।
“वो … मेरा टाइम खराब हो गया था ना … इसीलिए सर मुझे अब थोड़ा सा टाइम देंगे.” मैंने उसको आधा सच बता दिया.
“पर तू किसी को बोलना मत … सर के ऊपर बात आ जाएगी नहीं तो!”
“अच्छा!” पिंकी खुश होकर बोली- “ये तो अच्छी बात है … कोई बात नहीं … मैं तेरा इंतजार कर लेती हूँ यहीं … तेरे साथ ही चलूंगी!”
मैं उसको भेजने के लिए बहाना सोच ही रही थी कि सर एक बार फिर बाहर आ गये. बाहर आकर मेरी ओर मुस्करा कर देखा और इशारे से अपनी ओर बुलाया.
“तू जा यार … मैं आ जाऊंगी … एक मिनट … सर बुला रहे हैं.” मैंने पिंकी से कहा और बिना उसका जवाब लिए सर के पास चली गयी. पिंकी वहीं खड़ी रही.
सर ने अपने होंठों पर जीभ फिराई और पिंकी की ओर देख कर धीरे से बोले- इसको तो भेज दिया होता. अपने साथ क्यूँ चिपका रखा है?
“मैंने कहा है सर … पर वो कह रही है कि मेरे साथ ही जाएगी … अब बाकी बच्चे भी जा चुके हैं … मैं उसको फिर से बोल कर देखती हूँ.” मैंने नज़रें झुका कर जवाब दिया.
“हम्म … कौन है वो? तेरी क्या लगती है?” सर की आवाज़ में बड़ी मिठास थी अब.
“जी … मेरी सहेली है … बहुत अच्छी.” मैंने उसकी नज़रों में देखा, वह पिंकी को ही घूर रहा था.
“किसी को कुछ बता तो नहीं देगी ना?” सर ने मेरी चूचियों को घूरते हुए पूछा.
यहाँ मेरी ग़लती रह गयी. मैंने समझा कि सर का ये सवाल एग्जाम टाइम के बाद मुझे पेपर करने देने के बारे में है. वैसे भी मैं यही समझ रही थी कि उनको जो कुछ करना था. वो कर चुके हैं.
“नही सर! वो तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है … किसी को कुछ नहीं बताएगी.”
मैं कहने के बाद सर की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी. वो चुपचाप खड़े पिंकी की ओर देखते हुए कुछ सोचते रहे.
“सर!” मैंने उन्हें टोक दिया।
“हम्म?” वो अब भी मेरे पास खड़े हुए लगातार पिंकी की ओर ही देख रहे थे.
“वो … मैं … कह रही थी कि उसका भी पेपर खराब हुआ है … अगर आप …” मैं बीच में ही रुक गयी, ये सोच कर कि समझ तो गये ही होंगे।
“चल ठीक है. बुला लो. पर देख लो. तुम्हारे भरोसे पर कर रहा हूँ. कहीं बाद में …” सर की बात को मैंने खुश होकर बीच में ही काट दिया।
“जी … वो किसी को कुछ नहीं बताएगी … बुला लाऊँ उसको?” मैं खुश होकर बोली।
“हां … ऑफिस में लेकर आ जाओ!” सर ने कहा और अंदर चले गये.
कच्ची जवानी की कहानी अगले भाग में जारी है.
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