मेरी इस कहानी में आप सबका स्वागत है. मीता मेरी प्रेयसी प्रियतमा शरीके-हयात सब कुछ थी. उसकी शादी के पहले तक हम दोनों में जो सम्बन्ध था वो पति पत्नी से कम नहीं था और गरलफ्रेंड बॉयफ्रेंड के रिश्तों से काफी ऊपर था.
उसके कॉलेज पढ़ने के सालों में हमारा प्यार धीरे धीरे लेकिन बहुत मजबूती से परवान चढ़ा और दिन ब दिन साल दर साल हमारे रिश्ते में जो गर्मियां बढ़ी तो उन्होंने हर किनारे हर मर्यादा और हर बांध को तोड़ दिया.
हमारी आत्माएं, हमारे शरीर हमारे तन बदन एक दूसरे के गुलाम हो गए थे. हम एक दूसरे के शरीर की हसरतों को, अहसासों को शरीर की चाहत को मन की गहराई से बिना कहे समझने लगे थे. और यही वजह थी कि हमने अपने सम्बन्धों में प्यार के आनन्द को चरमोत्कर्ष के उस शिखर को हमेशा प्राप्त किया था जिसकी लोग मात्र कल्पना ही कर सकते हैं लेकिन सम्बन्धों में प्यार की गहराई की कमी की और आतुरता की वजह से प्राप्त नहीं कर सकते.
मेरे और मीता के बीच में जो सामाजिक दूरियां थी वो हम दोनों हमेशा जानते थे और इसी वजह से हमें पता था कि हमारा ये प्यारा सफर इस दकियानूसी समाज की छोटी सोच और ‘लड़की की शादी जल्दी कर देनी चाहिए वरना बिगड़ जाती है.’ के चलते ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला था. इसलिए हमने अपने रिश्ते के हर दिन हर पल को हमेशा जी भर कर जिया. कोई बन्धन, कोई रोड़ा हमारे रास्ते में कभी नहीं आया जो हमें एक दूसरे में समाने में रोक सके.
हम दोनों जब एक दूसरे के साथ होते थे तो समय रुक जाता था और वो भी हमारे साथ प्यार के आनन्द की गहराइयों को महसूस करता था. हमारे शरीर एक दूसरे की भाषा को इस कदर शिद्दत से समझने लगे थे कि हमारे मन को सिर्फ आनन्द और आहों कराहों और मादक सिसकारियों की आवाज ही सुनाई देती थी बस!
मेरी मीता बहुत खूबसूरत थी, चुटकी भर सिंदूर थोड़े से दही में मिलाकर जो रंग बनता था उस सुनहरे रंग से बनी मेरी गीता के शरीर के मादक कटाव और उतार चढ़ाव ने जो कातिलाना रूप अपनी जवानी में अख्तियार किया था उसे देखकर मुर्दों की बेजान नसें भी फड़क उठती. फिर जिंदा मोहल्ले के जवान तो उस देखकर सिर्फ आहें ही भर सकते थे क्योंकि ये अजीम-ओ-शान हुस्न सिर्फ मेरे हवाले ही था. और मेरी गीता ने बिना शर्त मुझे अपना ये हुस्न अपनी पूरी अदा के साथ सौम्पा था.
हमारी मुलाकात हमेशा मीता के उस एक कमरे और रसोई वाले घर में ही होती जहां वो अपनी पढ़ाई के दौरान अपनी सहेली के साथ शेयर में रहती थी.
शादी के बाद बार फोन पर बात करते वक़्त मैं बार बार उसे छेड़ दिया करता कुछ पुरानी बातों को याद करवा कर या फिर कभी उसे सेक्स से जुड़ी बातों में खीचकर तो नॉर्मली तो वह सेक्स सम्बन्धी बातों में थोड़ी रुचि लेती थी लेकिन वो भी जब हम एक दूसरे के शादी के बाद के समय की चर्चा करें तब तक … लेकिन ज्यों ही मैं हम दोनों के सम्बन्ध की बात करता तो स्त्रियोचित मर्यादा की वजह से थोड़ा कतराने लगती क्योंकि उसे पता था कि अगर इन बातों पर वो थोड़ा भी आगे बढ़ी तो मुझे आगे बढ़ने में देर न लगेगी और अब शादी के बाद हम दोनों चाहते तो जरूर थे कि फिर हम मिलें लेकिन सामाजिक मर्यादाएँ हम दोनों को ही उन रेखाओं को पार करने से रोके रखती थी. फिर भी फोन पर बात करने में मैं हमेशा अपनी मर्यादा लांघ ही लेता था और हम दोनों के बिताए अंतरंग पलों को उसे याद भी दिलाता और उसकी इच्छा भी जानने को आतुर होता था कि क्या वह भी शादी के बाद हम दोनों के मिलन के लिए आतुर है या नहीं.
और इसी को सुनिश्चित करने के लिए एक बार मैंने उससे ओरल सेक्स की इच्छा जाहिर की कि मैं उसके कामरस को फिर से अपनी जीभ से चूसना चाहता था और यह इच्छा मैंने बड़े ही प्रबल तरीक़े से मीता के सामने रखी थी. लेकिन हमेशा की तरह मीता इस बार भी नाराज हुई कि मैं शादी के बाद के हम दोनों के दूर रहने के वादे पर कायम नहीं रह पा रहा.
फिर मैंने उसकी इच्छा का सम्मान रखते हुए विषय को बदल दिया था.
हमारा मिलना जितना भी हुआ, उसके और मेरे अपने शहर में पढ़ाई के दौरान करीब तीन साल तक हुआ. हम दोनों उसके शहर में रेंट पर लिए रूम पर मिलते जिसमें वो अपनी सहेली के साथ शेयरिंग पर रहती थी.
मेरे पहुँचने का समय उसे पता होता और उससे पहले ही वो सलवार सूट उतरकर साड़ी पहन लेती जिसे वो अपनी गोल गहरी नाभि से काफी नीचे बांधती थी. जहां से मादक त्रिकोण की ढलान शुरू होती थी क्योंकि उसे पता था कि उसकी गोल गहरी नाभिकूप मेरी कमजोरी थी. और पतली और खमदार कमर के कटावों को देखकर मेरा खून कनपटी तक गर्म होकर उबलने लगता था जो तभी ठंडा होता था जब हम दोनों के शरीर एकाकर होकर प्यार की दरिया में डूबने लगते.
हाँ … मैं यहां पर यह मानने को तैयार हूं कि हमारा रिश्ता पहले शारीरिक आकर्षण से आगे बढ़ना शुरू हुआ था और हमारे शारीरिक मिलन ने दिन ब दिन हमारे सम्बन्धों को दिल की गहराइयों तक मजबूती प्रदान की थी.
मैं कमरे में घुसते ही अपनी मीता की गोल गहरी नाभि कूप में अपनी उंगली डाल कर चलाने लगता और दोनों मादक उभारों को हाथों से दबाकर चूसने लगता था. और कुछ ही देर बाद हम दोनों के शरीर के सारे कपड़े हमारे बदनों से दूर कहीं पड़े होते और हम दोनों के उत्तेजित बदन एक दूसरे के अहसासों को संतुष्ट कर कहीं खुद को तलाश रहे होते.
मीता की गोल गहरी नाभिकूप को देखकर मैं खुद को रोक नहीं पाता तो उसको नाजुक खमदार कमर को हाथों से थामकर ज्यों ही गहरी नाभिकूप पर अपने होंठ रखता और एक गहरा चुम्बन अंकित करता तो उसकी पतली कमर कमान की तरह तन जाती और एक लम्बी मादक सीत्कार उसके होंठों से खारिज होती तो मेरी वासना आनन्द के अलग ही आसमान में गोते लगाती.
और फिर उसके पूरे शरीर पर मादक उभारों पर अपने होंठों की छाप छोड़कर दोनों उभारों को हाथों में थामकर धीरे से त्रिकोण की गहराइयों पर अपनी जीभ को घुमाकर आनन्द रस की तलाश करता और इस कोशिश के दौरान मीता के मदभरे त्रिकोण से रस की बारिश होने लगती और मीता के होंठों से मादक कराहें रुकने का नाम न लेती.
फिर मैं अपने घोड़े को रेस में उतारने के लिए दोनों उभारों को लगाम की तरह थामता और धीरे से मीता की पनियायी रसभरी चुत में अपने लन्ड को जैसे ही छुआता तो मीता सिसक उठती थी और जैसे ही लन्ड में चुत के किनारों में अपना छल्ला फंसाना होता तो वह आनन्द की अधिकता से अपनी आँखें बंद कर लेती और तभी मैं अपने होंठों को दबाकर अपने लन्ड की चुत की अटल गहराइयों में उतार देता और हम दोनों के होंठों से मदभरी सीत्कार फूट पड़ती और फिर तो खेल चल निकलता.
नीचे से मीता अपने कूल्हे उठाकर मेरा लन्ड अपनी चुत की गहराइयों तक ले जाती और मैं जोरदार शॉट से और अंदर तक अपने लन्ड को गाड़ देता और मीता के होंठों से आहों और सिसकारियों का जो सिलसिला शुरू होता, वो अंत में एक दूसरे को जिताकर ही खत्म होता.
यह खेल हम दोनों का तब तक चला जब तक मीता की शादी न हो गयी. लेकिन हम दोनों को एक दूसरे की आदत हो गयी थी और हमें इस सबसे बाहर आना था तो हम दोनों ने शादी के एक दिन पहले मिलने का फैसला किया कि कुछ निर्णय लेकर हम दोनों एक नए रास्ते पर निकलेंगे.
उस दिन मीता शादी की खरीददारी के लिये शहर आयी हुई थी तो अपने उसी कमरे पर रुकी थी जो कि हमारे मिलने का एक ठिकाना था.
मैं घर पहुँचा और कॉलबेल बजायी. दरवाजा मीता ने ही खोला और मुझे देख वो कातिल लेकिन एक अधूरी प्यास वाली मुस्कान के साथ मुस्कुराई- आओ अंदर!
कहकर उसने मुझे अंदर बुलाया और फिर किचन से ट्रे पर एक ग्लास पानी भरकर लाई और मेरे सामने खड़ी हो गयी.
लेकिन क्योंकि तब तक मैं सोफे पर बैठ चुका था तो मेरी नज़र सीधे उसकी पतली खमदार कमर चिकने पेट और अधखुली साड़ी में से झांकती रसीली गहरी नाभिकूप पर पड़ी. यह नाभिकूप मेरी कमजोरी थी और मैं फिर आज इसके सामने हार गया. शिल्पा शेट्टी की मादक नाभि से भी ज्यादा मादक और नशीली और मुंह खोले लहरदार मछली की भांति नाभि का मुंह भी खुला हुआ था जो मुझे उसे चूमने को फिर उकसाने लगा.
और फिर पानी तो मैंने किनारे रखा और कमर के कटावों पर अपने हाथ को रखकर होंठों पर अपने जलते होंठ रख दिये और गहरी और गोल नाभि में अपनी उंगली डाल कर सहला दी और रसभरे होंठों को एक गहरा चुम्बन अंकित कर दिया.
“रुको न … तुम तो आते ही शुरू हो गए? बस यही काम रह गया क्या मुझसे? सिर्फ चोदियेगा ही … या कुछ बातें भी करेंगे हम?”
“बातें तो हो जाएगी लेकिन पहले यह आग तो बुझे मीता जी!” यह कहकर मैंने दोनों उभारों को कस कर थाम लिया और नीचे झुकने लगा.
मेरे हाथों ने साड़ी को तब तक निकल फेंका था और हम जंगलियों जैसे एक दूसरे में समाने को आतुर हो गाए थे. और फिर मैं झुका और कमर को हाथों से थामकर मीता की गहरी नाभि पर एक गहरा चुम्बन अंकित कर दिया.
“आआआह … इस्सससी ई!” गहरी और मदभरी सीत्कार न चाहते हुए भी मीता के होंठों से फूट पड़ी और उसने अपने हाथों से मेरा सर जोर से अपने चिकने पेट से कसकर चिपका लिया और इसी के साथ मेरे पूरे होंठ गहरी नाभिकूप में जा समाया और मेरी जीभ और होंठों ने नाभितल को चूसना और चाटना शुरू कर दिया.
नाभि पर प्यार पर इस तरह का मेरा ये अनूठा ही तरीका था जो मीता को कामातुर कर देता और न चाहते हुए भी वो बिस्तर पर मेरी अंकशायिनी बनने को आतुर हो जाती थी- उफ़्फ़ … इस्सस्स … आआआह … सीईईईई! बस करो जान!
कहते हुए मीता धीरे से घूम गयी पीछे की ओर और मेरे होंठ भी इसी के साथ पतली खमदार चिकनी कमर को चूमते हुए पीठ और मादक पिछवाड़े पर आ टिके.
अब मैंने अपने हाथ सामने गहरी नाभि को सहलाते हुए साये की डोरी को तलाशा और उसे खींच दिया. साया भरभरा कर नीचे की ओर फिसल पड़ा और अब मेरे होंठ चिकने चूतड़ों पर थे और हाथ पतली कमर को सहलाते हुए नाभिकूप को उंगलियों की सहायता से चोद रहे थे. मेरी उंगली लन्ड की तरह नाभि के भीतर से बाहर तक चोट कर रही थी.
“उफ़्फ़ … आआआह … रहने दो यार … न करो ये सब अब!” कहकर सिसकारी भरती हुई मीता मुझसे एक हाथ दूर जा कर खड़ी हो गयी.
“क्या हुआ … नाराज हो गयी क्या तुम? सॉरी यार … तुम्हें देखकर खुद को कभी भी रोक नहीं पाता!”
“नहीं, सॉरी न कहो! मगर अब ये सब गलत होगा न? तुम्ही बोलो?” मीता उसी अवस्था में मेरे पास आकर सोफे पर बैठती हुई बोली.
“अब तुम इस तरह मेरे पास बैठोगी तो तुम्हें क्या लगता है कि कब तक मैं शांत बैठ पाऊंगा? बोलो?”
“अहाहा … काबू रखो खुद पर … समझे!”
जैसे मीता आज मुझे चैलेंज कर रही थी कि ‘मैं तो यूं ही बैठूँगी और देखती हूँ कब तक कंट्रोल करते हो खुद को!’
बस फिर मैंने भी खेलने की आज ठान ही ली थी.
“आज जो करोगे सब ऊपर ऊपर से ही … अंदर कुछ नहीं!”
“ठीक है मीत, जब तक तुम खुद न बोलोगी, हम खूंटा नहीं गाड़ेंगे!”
इतना कहकर मैंने मीता की कमर के कटावों को हाथों में थामकर उसके होंठों को चूम लिया और उसे गोदी में उठाकर पलंग पर ले आया.
“अरे ये चीटिंग है … पलंग पर क्यों ले आये मुझे? मतलब नहीं मानोगे?” मीता बनावटी नाराजगी से बोली.
“अरे मैं तुम्हारी इज़ाज़त के बिना कुछ न करूँगा बस!”
“हाँ, फिर ठीक है!” कहकर उसने मेरे गले में अपनी बांहें डाल दी और मैंने भी दोनों उभारों को ब्लाउज के ऊपर से दबाकर किनारों से खुले उरोजों की घाटी पे अपने होंठ रख दिये.
“इसस्स … उफ्फ्फ … आआह!”
उरोजों को किनारों से सहलाते हुए मैंने अपने होंठों को एक स्तन की गुलाबी नोक पर रखा और अपने दांतों से उन्हें कुरेदने लगा और इसी वक्त मेरा दूसरा हाथ दूसरे उरोज को हल्के हल्के मसलने लगा था.
उफ्फ … क्या आनन्द था! मेरी मीता के यौवनकलश आज भी सम्पूर्ण गोलाई के साथ गुब्बारे के सदृश कठोर और मुलायम दोनों गुणों के साथ मेरे जेहन में छा गए थे.
और फिर दोनों उभारों को थामकर मैं मसलने लगा.
“उफ्फ इसीई … आआह! धीरे करो न … दुखता है! रुको … ये पहले ही दर्द करते हैं!”
मैंने मीता की आँखों में आँखें डालकर शरारती मुस्कान बिखेरी.
“अच्छा … तो अब आपके ईमान मुझे ठीक नहीं लग रहे! मेरी साड़ी आपने उतार ही दी है और मेरी चूत को भी ना के बराबर के कपड़ों का ही सहारा है. और आपका लन्ड लगातार मेरी चूत के दरवाजों को तलाशता हुआ ही लग रहा है.”
“लेकिन आज न तो आपका लन्ड कामयाब हो पायेगा … न ही मेरी चूत उसे अपने भीतर समाने देगी! देख लेना … आप चाहे मुझे कितना ही जला लें! मेरी वासना की आग को आप कितना भी भड़का दो पर आज न चुदूँगी मैं आपसे! देख लेना!” मीता ने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मटकाते हुए मुझे चैलेंज किया.
लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दिया जा रहा है.
क्रमशः
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