मेरी और पिंकी की मस्तियाँ-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

मेरी और पिंकी की मस्तियाँ-2

मेरी और पिंकी की मस्तियाँ-4


उस रात छत पर पिंकी की चूत चाट कर उसे पूरा मजा देने के दो दिन बाद ही भाभी ने मुझे एक सुनहरा मौका दिला दिया।

आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबियत खराब रहती है और उन्हें हर महीने डॉक्टर से दिखाने के लिये दूसरे शहर जाना होता है, उस दिन भी मम्मी के इलाज के लिये मेरे मम्मी पापा शहर गये हुए थे और घर में सिर्फ मैं और मेरी भाभी ही थे।

दोपहर को जब पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर आई तो उस दिन मेरी भाभी ने भी बाजार में कुछ काम होने का बहाना बना लिया और मुझे व पिंकी को अपने आप ही पढ़ाई करने के लिये बोलकर बाजार के बहाने घर से बाहर चली गई।

भाभी के जाते ही सबसे पहले तो मैंने जल्दी से कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया जिससे पिंकी थोड़ा घबरा सी गई और ‘य..य..ये दरवाजा क्यों बन्द कर दिया… मैं भी अपने घर जा रही हूँ… मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…’
शर्माते व झिझकते हुए कहकर अपने घर जाने लगी।

पिंकी की घबराहट भी जायज ही थी क्योंकि उसे पता था कि अकेले में मैं उसके साथ क्या-क्या करने वाला हूँ, पिंकी अपने घर जाने के लिये मुड़ी ही थी कि मैंने उसे पकड़ लिया और हौले हौले से उसके गोरे मखमली गालों को चूमने लगा…

‘छोड़ मुझे… छोड़… छोड़… मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…’
पिंकी ना-नुकर तो कर रही मगर मैंने उसे खींचकर बिस्तर पर गिरा लिया और फिर से उसके गालों को चूमने लगा. पिंकी अपना सर इधर उधर हिलाकर मेरे चूम्बन से बचने की कोशिश करने लगी मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं।

हमारे बीच इतना कुछ हो जाने के बाद भी पिंकी काफी घबरा व शर्मा रही थी। पिंकी एक किशोरी थी जिसने इस यौवन सुख का नया नया स्वाद बस हल्का सा ही चखा था, मैं भी हर बार पिंकी को इस सुख के नये नये अनुभवों से परिचित करवा रहा था इसलिये उसका शर्माना व झिझकना जायज ही था।

पिंकी के गालों को चूमते हुए मैंने अपना हाथ भी उसकी टी-शर्ट में डाल दिया, टी-शर्ट के नीचे उसने बनियान पहन रखी थी और बनियान नीचे से उसके लोवर में दबी हुई‌ थी जिसको मैं ऊपर नहीं कर सका, इसलिये बनियान के ऊपर से ही पिंकी के नर्म मुलायम पेट को सहलाते हुए धीरे धीरे मैं उसके छोटे छोटे उरोजों की तरफ बढ़ने लगा जिससे पिंकी ‘नहीं नहीं… छोड़ ना… अ..ओय..य..
फिर कभी… आज नहीं…’ कहने लगी लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं और हल्के से उसके गाल पे फिर से चूम लिया।

‘हो गया अब… प्लीज… अब बस्स.. छोड़ ना …’ वो बुदबुदा रही थी लेकिन मैं कहाँ सुनने वाला था। मेरे होंठ उसके रसीले गालों का मजा ले रहे थे। मैं पहले तो हल्के हल्के चूम रहा था मगर अबकी बार धीरे से… बहुत धीरे से मैंने उसके गाल पर काट लिया.
‘नहीं नहीं… प्लीज कोई देख लेगा… निशान पड़ जाएगा तो घर वाले क्या कहेंगे… छोड़ ना… अब हो तो गया… बस्सस…’ पिंकी की आवाज में घबराहट और डर तो था लेकिन मुझे पता था उसे मजा आ रहा है और उसकी भी इच्छा हो रही थी।

मैंने उसके गालों को छोड़ा नहीं बल्कि हल्के से उसी जगह पे एक हल्का सा चुम्बन किया और… और फिर एक जोर दार चुम्बन से उसकी शरमाती लजाती पलकों को बंद कर दिया जिससे मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ…

मैं अपने होंठ उसके कानों की ओर ले आया और अपनी जीभ के कोने से उसके कान में सुरसुरी सी करने लगा, मेरे होंठों ने उसकी कानो की लौ पे एक हल्की सी चुम्मी ली जिससे वो सिहर सी गई।

तब तक मेरा हाथ की उंगलियाँ भी टहलते टहलते धीरे धीरे उसकी टी-शर्ट में उसके उरोजों तक पहुँच गई, पिंकी ने टी-शर्ट के नीचे जो बनियान पहन रखी थी वो उसके यौवन शिखरों छुपाने में नाकामयाब थी क्योंकि बनियान के ऊपरी किनारों से उसकी दोनों छोटी छोटी गोलाइयाँ बाहर दिख रही थी।

मेरी उंगलियाँ भी बस निप्पल के पास पहुँच कर ठिठक कर रुक गईं क्योंकि उसकी गोलाईयों में बिल्कुल भी उभार महसूस नहीं हो रहा था। मुझसे भी अब रहा नहीं गया और एक ही झटके में मैंने उसकी टी-शर्ट व बनियान दोनों को ही ऊपर खिसका दिया जिससे उसके छोटे छोटे उरोज निर्वस्त्र हो गये।

पिंकी के उरोजों को देखकर मैं चकित था क्योंकि उसके उरोजों को उरोज कहना गलत ही होगा, वो उरोज तो थे ही कहाँ… वो तो बस पिंकी जब सीधे खड़ी होती है तब ही कुछ उभार सा लगता है मगर लेटे हुए में तो पिंकी का सीना बिल्कुल सपाट लग रहा था और उसके छोट छोटे सुर्ख गुलाबी निप्पल तो ऐसे लग रहे थे जैसे की उसके गोरे सीने पर सिन्दूर से दो तिलक कर रखे हो।

‘नहीं… अ..ओय… ये क्या कर रहा है… बस्सस. छोड़…ना…’ पिंकी कहने लगी और अपनी टी-शर्ट व बनियान को फिर से सीधा करने की कोशिश लगी मगर मैंने उसके हाथों को पकड़ लिया और अब एक निप्पल मेरे उंगलियों के बीच में था… मैं उसे हल्के हल्के दबा रहा था, घुमा रहा था जिससे दोनों छोटे छोटे जोबन मारे जोश के पत्थर होने लगे।

मैं अब पिंकी पर झुक गया और मेरे होंठो ने उसके उभार के निचले हिस्से पे एक छोटी सी चुम्मी ले ली जिससे पत्ते की तरह पिंकी का पूरा बदन कंपकपा गया लेकिन मैं रुका नहीं, अब मेरे होंठ हल्के हल्के चुम्बन के पग धरते निप्पल के किनारे तक पहुँच गए, जीभ से मैंने बस निप्पल के बेस को छुआ तो वो उत्तेजना से एकदम कड़ा हो गया था। शायद वो सोच रही थी कि अब मैं उसे गप्प कर लूंगा, लेकिन मैं उसे तड़पाना चाहता था, मैं जीभ की लौ से बस उसे छू रहा था… छेड़ रहा था,
‘इईईई…श्श्श्शशश… अ…अआआ… ह्हहह… अ..ओय… क्या कर रहा है… छोड़ ना… प्लीज… कैसा हो रहा है… तु क्या क्या करता रहता है… तु बहोत बदमाश है… नहीं …न नन् ..बस्सस…’
पिंकी सिसक रही थीं उसकी देह इधर उधर हो रही थी, उसकी कच्ची गोलाइयों का रस पीकर मेरी भी आँखें आनन्द से अपने आप मुंदने लगी थीं। मैंने जीभ से एक बार इसके उत्तेजित निप्पल को ऊपर से नीचे तक जोर से चूस लिया ओर फिर उसके कानों के पास होंठ लगा कर हल्के से बोला- ऐ सुन.. मेरा मन कर रहा है… तुम्हारे इन जवानी के छोटे छोटे फूलों का रस पीने का… मेरे होंठ बहुत प्यासे हैं… तुम्हारे ये रस कूप बहुत ही रसीले हैं…’

‘ले तो रहा है…ओर क्या… अब.. बस्सस… बहुत हो गया… मुझे घर जाना है…’ हल्के से पिंकी बुदबुदाई।
‘नहीं मेरा मन कर रहा है और कस के इन उभारों को कस कस के…’ मैं बोला.

साथ में अब कस के मेरे हाथ उसके सीने को दबा रहे थे तो एक हाथ अब कस के उसके निप्पल को मसक रहा था जिससे उसके सीने पर मेरी उंगलियों के लाल निशान बनते जा रहे थे। पिंकी का रंग इतना गोरा था कि अगर उसे जोर से कोई छू भी ले तो निशान बन जाये… फिर मैं तो उसके सीने को जोर से रगड़ रहा था.

पिंकी अब चुप थी लेकिन उसकी देह से लग रहा था कि उसे भी मजा आ रहा है!

मैंने दोनों हाथों से अब कस क़स के उसके जोबन को मसलना शुरू कर दिया और फिर उसके कान में बोला- सुनो ना… एक बार तुम्हारे रसीले जोबन को चूम लूं… बस एक बार इन…इन ..चून्चियों का रस पान करा दो ना…
जिससे पिंकी शर्मा गई और कहने लगी- क्या बोल रहा है… प्लीज…ऐसे नहीं… मुझे शर्म आ रही है…’

मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था, अब मेरे होंठ सीधे उसके निप्पल पे थे, पहले तो मैंने हल्के से किस किया फिर उसे मुंह में भर के हल्के हल्के चूसने लगा जिससे पिंकी सिसकने लगी और अपने नितम्बों को पलंग पे रगड़ने लगी।
दूसरा निप्पल मेरी उंगलियों के बीच था.

मैंने हाथ को नीचे उसकी जांघों की ओर किया तो उसने दोनों जाँघों को कस के सिकोड़ लिया और अपने हाथ से मेरे जांघ पे रखे हाथ को हटाने की भी कोशिश करने लगी लेकिन मेरी उंगलियाँ भी कम नहीं थीं, घुटने से ऊपर एकदम जांघों के ऊपर तक… हल्के हल्के बार बार… सहलाने लगी।

मेरा उत्तेजित लिंग कपड़ों में से ही बार बार पिंकी जांघों से रगड़ रहा था… तभी मैंने उसके दायें हाथ को लंड से छुआ दिया मगर पिंकी ने झटके से हाथ हटा लिया जैसे कोई अंगारा छू लिया हो… लेकिन मैंने मजबूती से फिर अपने हाथ से उसके हाथ को पकड़ के रखा और कस के मुठी बंधवा दी, अबकी बार उसने नहीं छोड़ा।
कुछ देर तक तो उसने उसे पकड़े रखा मगर मगर मेरे उसके हाथ को छोड़ते ही पिंकी ने भी मेरे लिंग को फिर से छोड़ दिया।

मेरा एक हाथ जो उसकी जाँघों को प्यार से सहला रहा था उसी से एक बार सीधे मैंने उसकी योनि गुफा के पास हल्के से दबा दिया जिससे पिंकी का ध्यान बंट गया और मैंने झट से अपना हाथ उसके पायजामे व चड्डी के अन्दर घुसा दिया, पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश तो की मगर कामयाब नहीं हो सकी इसलिये उसने अपनी जाँघों को सिकोड़ लिया।
अब वो अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ वहाँ से हटाने की कोशिश में थी लेकिन ऐसा कहाँ होने वाला था. तभी मैंने उसकी योनि पर हल्के से चिकोटी भर दी जिससे वो उचक गई और उसकी जांघें जो कस के सिकुड़ी हुई थीं अब हल्के से खुलीं.
मैं तो इसी मौके के इंतज़ार में था, मैंने झट से अपना हाथ उसकी दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया, उसे शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए फिर से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की… लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी… सेंध लग चुकी थी.

और अबकी बार जो उसकी जांघें सिकुड़ी तो मेरी हथेली सीधे योनि के ऊपर थी।
‘ओय.. छोड़ो ना… वहाँ से हाथ हटा… प्लीज… बात मान… वहाँ नहीं …’ पिंकी बोल रही थीं.
‘कहाँ से… हाथ हटाऊं… साफ साफ बोल ना…’ मैंने कहा, जिससे पिंकी का चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया।

पिंकी की योनि भी उसके उरोजों की तरह बिल्कुल सपाट व चिकनी थी जिस पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल थे।
मैं पिंकी की योनि छेड़ रहा था, साथ में अब योनि के ऊपर का हाथ हल्के हल्के उसे दबाने लगा था। पिंकी की जांघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी और मेरे हाथ का दबाव मज़बूत… मेरा हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हल्की गीली हो रही थी, उसका असर भी पूरे बदन पर दिख रहा था। पिंकी का बदन हल्के हल्के कांप रहा था, आँखें बंद थी, रह रह के वो सिसकारियाँ भर रही थी।

मेरे होंठ अब कस कस के उसके निप्पल को चूस रहे थे। मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता कभी चाट लेता तो कभी चूस रहा था। एक हाथ निप्पल को सहला रहा था, मसल रहा था और दूसरा.. उसकी योनि को अब खुल के रगड़ रहा था, और इस तिहरे हमले का जो असर होना था वही हुआ!

उसकी जाँघों की पकड़ अब ढीली हो गई थी और बदन ने भी पूरी तरह समर्पण कर दिया था, मौके का फायदा उठा के मैंने एक झटके में उसके पायजामे (लोवर) व पेंटी को उतार दिया।
‘अअअ…आआआ… ओय… ओय… ये क्या कर रहा है… ऐसे नहीं… प्लीज… नहीं… नहीं… प्लीज…’ कह कर पिंकी ने उन्हें पकड़ने की कोशिश तो की मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी और उसकी पेंटी व पायजामा घुटनों से नीचे पहुँच गये थे।

मुझे बस एक हल्की सी झलक पिंकी की योनि की मिली ही थी कि तब तक पिंकी दोनों घुटने मोड़कर दूसरी तरफ घूम गई और अपनी पेंटी व पायजामे को फिर से पहनने की कोशिश करने लगी, मगर अब मैं कहाँ मानने वाला था.

मैंने पिंकी को फिर से सीधा करके पहले तो हाथों के जोर से उसके घुटनों को सीधा कर दिया और फिर उसकी एक टांग को थोड़ा सा फैला कर अपना एक घुटना उसकी टांगों के बीच घुसेड़ दिया, पिंकी कुछ समझे, इससे पहले मैं अपने दोनों पैरों को उसके पैरों के बीच घुसा कर उसके घुटनों के बीच आ गया… और मैंने जब धीरे धीरे अपने पैर फैलाए तो उसकी दोनों जांघें अपने आप खुलती चली गईं।

मुझे फिर से पिंकी की कुवांरी योनि की एक झलक मिली‌, की अबकी बार पिंकी ‌ने ‘ओय… ओय… ये क्या कर रहा है… नहीं…नहीं… प्लीज… नहीं… नहीं… प्लीज…’ कहकर फिर से दोनों हाथों से उसे छुपा लिया।

मेरे हाथ अब स्वतंत्र थे इसलिये मैंने अपने दोनों हाथों से पिंकी की हाथों को उसकी योनि पर से उठाकर अलग कर दिया और अब…पिंकी की छोटी सी गोरी चिकनी योनि मेरी नजरो के सामने थी जिसका इन्तजार मैं कब से कर रहा था।

पिंकी की योनि बिल्कुल ही छोटी सी थी मुश्किल से मेरी दो उंगलियों के जितनी, योनि की छोटी छोटी फांके एक दूसरे से बिल्कुल चिपकी हुई थी उनके बीच से योनि के अन्दर की लालिमा बस हल्की सी ही नजर आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी जाँघों के जोड़ पर छोटा सा कट लगाकर उसमें हल्का सा सिन्दूर भर रखा हो, जिस पर बिल्कुल भी उभार नहीं था बस हल्के से भुरे रंग के रोवे से ही दिखाई दे रहे थे और पिंकी की जांघें भी बिल्कुल पतली सी थी जिन पर बिल्कुल भी मांस नहीं था ऐसा लग रहा था जैसे बिल्कुल दुध सी सफेद व चिकनी लकड़ियाँ उसके बदन से जोड़ रखी हो।

मेरे ऐसे देखने से पिंकी का चेहरा शर्म से बिल्कुल लाल हो गया, उसने अपने हाथ छुड़वाकर एक बार फिर से अपनी योनि को छुपाने की कोशिश की, मगर जब कामयाब नहीं हो सकी तो उसने शर्म के मारे दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया और ‘ओय…अब छोड़ो ना… प्लीज… बहुत हो गया… अब बस भी कर ना… प्लीईईज… मुझे बहुत शर्म लग रही है’ कहने लगी.

मुझे पता था कि पिंकी को मेरी हरकतों से मजा आ रहा है इसलिये मैंने उसके लोवर व पेंटी को अब निकालकर अलग कर दिया और वापस उनकी योनि पर आ गया. मैंने अपने दोनों हाथों की उंगलियों से चुत की‌ दोनों फांकों को थोड़ा सा फैलाया तो चुत की अन्दर की लालिमा नजर आने लगी और उसके बीच एक सुर्ख गुलाबी रस से सराबोर बिल्कुल बंद सा सुराख दिखाई दिया, उसके ठीक ऊपर किशमिश के दाने के समान उनकी चूत का दाना दिखा जो फूला हुआ सा लग रहा था और धीरे धीरे हिल भी रहा था।

मैंने अपने अंगूठे से उसके दाने को हल्का सा बिल्कुल ही हल्का सा छुआ ही था कि
‘इईईई…श्श्श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहहह महेश्शश…’ की आवाज के साथ पिंकी जोर से सिसकार उठी और उसका पूरा बदन थरथरा सा गया।

पिंकी नीचे से अब बिल्कुल नंगी थी, वो मेरा विरोध तो नहीं कर रही थी मगर दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपाये अब भी यही दोहरा रही थी- ओय… अब बस भी कर ना… प्लीईईज… अब छोड़ भी दे… प्लीज… बहुत हो गया… अब बस कर… प्लीईईज… मुझे बहुत शर्म लग रही है’

कुछ देर पिंकी की उस कमसिन कुवांरी योनि का दीदार करने के बाद थोड़ा सा पीछे होकर मैंने अपना सिर उसकी जाँघों के बीच घुसा दिया जहाँ से उस किशोरी की कच्ची कली के समान छोटी सी योनि से कौमार्य की बहुत ही मादक महक फूट रही थी।

जैसे ही मेरे होंठों ने पिंकी की योनि को छुआ, पिंकी सिहर उठी, उसके पैर जोर से कंपकपा गये और उसने ‘इईईई…श्श्श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहहह…’ की एक मीठी सीत्कार सी भरके मेरे सिर को दोनों जाँघों के बीच दबा लिया, मगर अब मैं उसकी कमसिन कुंवारी योनि का स्वाद चखे बिना कहाँ मानने वाला था, मैंने उसकी जाँघों को फैला दिया और अपने होंठों को पिंकी की सुलगती कुँवारी योनि के होंठों पर रख दिया.

पिछली बार मैंने पिंकी को इस यौवनसुख का जो मजा दिया था, शायद उसे वो अभी तक भुला नहीं पाई थी, इसके आगे क्या होने वाला है यह उसे मालूम था इसलिये इस बार उसने अपनी जाँघों को भींचने की बजाय खुद ही पूरी तरह फैला दिया।

पहले तो मैंने पिंकी की योनि के होंठों पर हल्की सी चुम्मी की… फिर एक जोरदार चुम्बन और थोड़ी ही देर में मैं कस कस के उसे चूमने चाटने लगा, योनि और गुदा वाले छेद के बीच की जगह से शुरू कर के एकदम ऊपर तक, कभी छोटे छोटे और कभी कस के चुम्बन लेने लगा जिससे पिंकी किसी नागिन की तरह बल खाने लगी।

फिर मैंने अपनी जुबान भी चालू कर दी… उस कच्ची कली की कुँवारी योनि का क्या मस्त स्वाद था.. अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद…
मेरी लालची जीभ कुँवारी कच्ची योनि का रस चाटते चाटते अमृत कूप में घुस गई और पिंकी ‘उह्ह्ह्ह… आहाह्ह्ह.. ओह्ह्ह्ह … नहीं .ईई ई ईइ ..’ करके सिसकारियाँ भरने लगी, मेरी जीभ के साथ वो भी अब धीरे धीरे अपनी कमर को थिरकाने लगी।

पिंकी की योनि पहले ही काफी गीली हो चुकी थी मगर अब तो उसमें मानो बाढ़ सी आ गई जिससे मेरा मुँह भीग गया। मगर मैं कहाँ सब्र करने वाला था,‌ मेरी जीभ किसी लिंग से कम नहीं थी, मैं अपनी जीभ को कभी अन्दर, कभी बाहर घुमाने लगा तो, कभी गोल गोल योनिद्वार पर घुमाने लगा और साथ साथ मेरे होंठ कस कस के उसकी योनि की कोमल फांकों को चूस रहे थे जैसे कोई छोटा बच्चा रसीले आम को चूसे और उसके रस से उसका चेहरा तर बतर हो जाए लेकिन फिर भी वो बेपरवाह मजे लेता रहे चूसता रहे… बस ऐसा ही कुछ हाल मेरा भी था।

धीरे धीर मैंने अपनी जीभ की हरकत को तेज कर दिया जिससे पिंकी भी अपने कूल्हों को तेजी से हिलाने लगी। पिंकी की सिसकारियों से सारा कमरा गूंज रहा था, वो उत्तेजना के कारण मेरे सर को अपनी योनि पर बड़े जोर से दबा-दबा कर पागलों की तरह ‘ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्ह… ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्हहहह…’ करके चिल्लाने लगी जैसे वो मेरा समस्त मुँह अपनी योनि में ही समा लेगी।

पिंकी की जल्दबाजी देखकर मुझसे रहा नहीं गया इसलिये मैंने अपनी जीभ की हरकत को और अधिक तेज कर दिया जिसका परिणाम ये निकला कि कुछ ही देर बाद पिंकी की दोनों जाँघों मेरे सर पर कसती चली गई, उसने मेरे सिर को अपनी दोनों जाँघों के बीच पूरी ताकत से दबा लिया और बड़ी जोर से ‘इईईई…श्श्शशशशश… अआआआ…हहहह… इईई…श्श्शशश… अआआआ…हहहहह…’
चिल्लाते हुए अपनी योनि से ढेर सारा पानी मेरे चेहरे पर उगल दिया और निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई।

अब वो शांत हो गई थी, कुछ देर तक तो उसने ऐसे ही मेरे सिर को अपनी जांघों के बीच जकड़े रखा और बेसुध सी होकर ऐसे ही पड़ी रही, फिर धीरे धीरे उसकी जांघें स्वतः ही खुल गई।

मैं अब उसके चेहरे की ओर देख रहा था वो बिल्कुल शांत हो गई थी और लम्बी लम्बी सांसें ले रही‌ थी, सन्तुष्टि के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहे थे।

कुछ देर बाद पिंकी की जब तन्द्रा टूटी तो वो जल्दी से उठकर बैठ गई।
तभी एक बार बस उसकी नजर मेरी नजरों से मिली और फिर पिंकी ने शर्माकर दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया.

वो उठकर जाना चाहती थी मगर मैंने उसे फिर से दबोच लिया और उसकी गर्दन व गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

पिंकी कसमसाने लगी और ‘ओय… अब…बस्सस… बहुत हो गया… ह्हाँ…! प्लीज… छोड़ मुझे… अब जाने दे…’ कहते हुए अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर मैं कहाँ मानने वाला था अभी तक जो सुख मैंने उसको दिया था आज उसे सूद समेत वापस भी तो लेना था।

कहानी जारी रहेगी.
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