यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
साथियो, मैं महेश शायरा की प्रेम और सेक्स कहानी में आपको बता रहा था कि शायरा का पेट खराब था और मैं उससे पूछ रहा था कि कहीं उसे मासिक धर्म की वजह से तो पेट दर्द नहीं होने लगा था.
अब आगे:
वो- तुम्हें शर्म नहीं आती?
मैं- लो अब इसमें क्या शर्माना, हम 21 वीं सेंचुरी में रहते हैं, यहां तक कि पढ़े लिखे भी हैं.
वो- तो इसका मतलब ये तो नहीं कि ऐसी बात करो.
मैं- तुम तो गांवों की लड़की जैसी बात कर रही हो, तुम मैच्योर हो, जॉब करती हो, शादीशुदा हो, पढ़ी लिखी हो, अकेली बिंदास रहती हो … फिर सीधे सीधे बात करने में क्या बुरा है?
वो- फिर भी ऐसे तो कोई बात नहीं करता.
मैं- मतलब तुम्हें पीरियड आए हैं.
वो- तुम … तुम ना … अब मेरा सर खाना बंद करो और जाओ यहां से.
मैं- दोस्त तो होते ही है सर खाने को!
वो- तुमसे दोस्ती किए दो दिन नहीं हुए हैं और तुम तो ऐसे बात कर रहे हो, जैसे की मुझे सालों से जानते हो.
मैं- सॉरी … मुझे लगा था कि हम दोस्त हैं … इसलिए मैंने ऐसा बोल दिया.
मैंने ये मासूम सा बनते हुए कहा और छोटा चेहरा करके वहां से जाने लगा, जो कि शायरा को भी शायद अब बुरा लगा इसलिए उसने मुझे रोक लिया.
वो- मेरे कहने का ये मतलब नहीं था!
मैं- यार दोस्त, बस दोस्त होते हैं, दोस्ती में नया पुराना कुछ नहीं होता.
वो- पर लड़के लड़कियां तो होती हैं.
मैं- हम दोस्त हैं और दोस्ती में क्या लड़का … और क्या लड़की! दोस्त तो सब एक जैसे ही होते हैं. अगर तुम्हारी कोई लड़की दोस्त होती, तो तुम उसके साथ ये सब बात करती कि नहीं करती!
वो- मतलब तुम बिना पता लगाए जाओगे नहीं!
मैं- हां.
इस पर उसने एक लंबी सांस ली.
वो- हां मुझे महीना आया हुआ है इसलिए आज मैं नहीं आ सकती.
मैं- तो इसमें क्या है, ये तो हर महीने की बात है, पैड लगा लो … और चलो. या फिर पैड नहीं हैं?
मैंने ये बिंदास तरीके से बोल दिया, जिससे शायरा तो शर्म से पानी पानी ही हो गयी. उसने बस हां में गर्दन हिला दी.
शायरा के पास तो वो दो ही पैड बचे थे, जिनको उस दिन मैंने ममता जी को दे दिए थे. मैंने सोचा था कि बाद में लाकर रख दूंगा … मगर मैं भूल गया था. अब शायरा को भी कहां पता था कि उसके पैड हैं या नहीं. वो तो कोई चीज जब जरूरत होती है, तभी उसकी याद आई. वो तो शायद सोच रही थी कि उसके पास पैड बचे हुए हैं.
मैंने दिल में ही सोचा कि उन पैड को तो उस दिन मैंने ममता जी को दे दिया था. अब शायरा के पास अपनी चुत पर लगाने के लिए पैड तो थे नहीं. लगता है उसने अपनी चुत पर कपड़ा लगाया हुआ था.
मैं- अरे हां … वो तुम्हारे पास तो दो ही पैड थे, जिन्हें तो उस दिन उसने ले लिए थे.
मैंने ये बात वैसे तो धीरे से कही थी, पर इतना भी धीरे नहीं कि शायरा को सुनाई ना दे. मैंने जानबूझ कर थोड़ा जोर से कहा … ताकि शायरा मुझे उस दिन के लिए पकड़ ले.
वो- क्या?
मैं- क्क..क्क.. क.कुछ नहीं..!
वो- नहीं … नहीं … अभी तुमने कुछ कहा!
मैं- नहीं कुछ नहीं कहा.
वो- नहीं, अभी अभी तुमने कहा कि मेरे पैड उसने ले लिए. उसने किसने? और तुम्हें कैसे पता कि दो ही पैड थे, सच सच बताओ!
मैं जानबूझकर अब घबराने की एक्टिंग सी करने लगा और हकलाते हुए बोला- न्.न्.न.नहींई … ऐसा कुछ नहीं है.
वो- तुम सच बातते हो या नहीं?
मैं- व्.व.वो एक दिन मेरी एक दोस्त यहां आयी थी. उस दिन गर्मी ज्यादा थी और मेरे कमरे में तो बैठना भी मुश्किल था … इसलिए मैं उसे तुम्हारे एसी वाले कमरे में ले गया था.
शायरा मुझे अब घूरने लगी.
वो- क्या चल रहा है ये सब … और तुम्हें मेरे घर की चाबी कहां से मिली?
मैं- व. वो मुझे पता है कि तुम घर की चाबी कहां रखती हो.
वो- अभी तक कितनी लड़कियों को ला चुके हो?
मैं- कितनी क्या … बस एक को ही तो लाया था.
वो- है कौन वो … तेरी गर्लफ्रेंड?
मैं- नहीं गर्लफ्रेंड नहीं है, वैसे तुम शायद उसे जानती होगी. वो मेरे कॉलेज में हिन्दी की प्रोफेसर है ना ममता जी … वो आई थीं.
वो- तुमने अपने ही कॉलेज की प्रोफेसर को पटा लिया … और उसे घर पर भी ले आए. तुम तो बहुत फास्ट निकले.
मैं- आज कल तो ये सब चलता है, वैसे अभी नहीं पटाया … मैं उन्हें पहले से ही जानता था मगर इतने दिन से मिलने की कोई जगह ही नहीं मिल रही थी. तुम समझ रही हो ना!
वो- हां … हां … सब समझ रही हूँ.
इसके बाद उसने मन में ही धीमे स्वर में बड़बड़ाया- तभी उसकी जान ले ली.
मगर मैंने सुन लिया.
मैं- क्या?
वो- कुछ नहीं.
मैं- ठीक है, मैं अभी खरीद लाता हूँ. तुम बताओ कौन सा लाना है?
ये सुनकर एक बार शायरा फिर से चुप हो गयी.
मैं- वो तुम कौन सा पैड इस्तेमाल करती हो, मैं ला देता हूँ.
वो- रहने दो, मैं बाद में अपने आप ले आऊंगी.
मैं- तब तक क्या ऐसे ही रहोगी? पता है ना कपड़े से इन्फैक्शन हो सकता है.
मैंने ये कपड़े वाली बात जानबूझ कर कही थी, जिससे जिससे शायरा अब तो और भी शर्मा गयी.
वो- त्.त.तुम ना … सुधरोगे नहीं.
मैं- मैं बोल रहा हूँ ना … मैं ला देता हूँ. तुम बता तो दो, कौन सा लाना है!
शर्म से शायरा इस बार कुछ बोल नहीं पा रही थी … इसलिए शर्माते हुए कहने लगी- अब कोई भी ले आओ. पर मेरा सर मत खाओ.
मैं- ठीक है … मैं अभी आया.
मैं स्कूटी लेकर झट से बाजार आ गया और एक मेडीकल स्टोर से सैनेटरी पैड के एक साथ ही दस पैकेट खरीद लिए.
साथ ही पिछली बार वाली पेट दर्द की दवा भी खरीद ली और घर आ गया.
घर आकर मैंने शायरा को वो सैनेटरी पैड दिए तो वो उछल पड़ी- ये … ये क्या है!
मैं- सैनेटरी पैड हैं और क्या है?
शायरा को शर्म आ रही थी मगर फिर भी उसने कहा.
वो- मेरा मतलब है … इतने सारे क्यों लाये हो?
मैं- अरे तुम्हें फिर कभी दिक्कत ना हो इसलिए एक साथ ही ले आया.
वो- तुम … तुम पागल हो क्या?
मैं- लो … अब इसमें क्या पागलपन लगा?
वो- अरे तो … इतने सारे का मैं क्या करूंगी?
मैं- क्या करोगी मतलब! तुम्हारे ही तो यूज के हैं, यूज करती रहना.
वो- पर मैं ये वाले यूज नहीं करती हूँ.
मैं- अभी मैंने पूछा था तो बोली कि ‘कोई भी ले आओ..’ और अब बोल रही हो कि मैं ये यूज नहीं करती.
वो- अब तुम्हें कैसे बताऊं, तुम पीछे पड़ गए, तो वो मैंने ऐसे ही बोल दिया था.
मैं- तुम अभी बताओ मैं चेंज कर लाता हूँ. पर ये एक तो रख लो, नहीं तो कब तक कपड़ा लगा कर रखोगी. पता है ना कपड़े से इन्फैक्शन हो जाता है.
मैंने कपड़ा लगाने वाली बात जानबूझकर फिर से कही, जिससे शायरा फिर से शर्मा गयी और मेरी पीठ पर मुक्का मारते हुए बोली- तुम … तुम ना, बस अब चुप करो.
मैं- सही तो कह रहा हूँ … अब बाढ़ आएगी तो उसे रोकने के लिए कुछ ना कुछ तो लगाया ही होगा? वैसे भी तुम्हारे पास पैड तो है नहीं, इसलिए कपड़ा ही लगाया होगा. जोकि गंदा होने पर इन्फेक्शन कर सकता है. इसलिए बोल रहा हूँ.
वो- बस अब चुप करो, सच में बहुत कमीने हो तुम.
मैं- इसमें कमीना क्या हुआ, सच ही तो बोल रहा हूँ. नहीं तो लाओ मैं सारे चेंज कर लाता हूँ.
वो- अब रहने दो, पर मैं एक ही पैकट लूंगी.
शायरा को शर्म भी आ रही थी मगर फिर भी उसने अब एक पैकट ले लिया.
कुछ औरतें तो अपने पति से भी ऐसा सामान नहीं मंगवाती हैं और मैं तो उसके लिए अंजान था, फिर भी शायरा ने हिम्मत से काम लिया.
मैं- अब बाकी भी रख लो. कभी खत्म हो गए तो काम आ जाएंगे.
वो- नहीं तुम ले जाओ.
मैं- अब मैं इन्हें कहां ले जाऊं!
वो- वापस कर दो या तुम अपने पास रखो.
मैं- मैं क्या करूंगा … कोई देखेगा तो क्या कहेगा? और मैं इन्हें कहां लगाऊंगा.
शायरा इस पर हंसने लगी.
मैंने पहले ही जानबूझकर ऐसी बातें करके उसको खुल कर बात करने पर मज़बूर कर दिया था इसलिए उसकी सारी झिझक निकल गयी थी और वो अब आराम से बात कर रही थी.
वो- लगा लेना कहीं भी.
मैं- पर कहां?
वो- कहीं भी … या फिर तुम्हारी उस दोस्त को गिफ्ट कर देना.
मैं- ये भी कोई गिफ्ट देने की चीज है? अभी तुम अपने पास ही रखो, हां हो सकता है … कभी मेरे काम भी आ जाए.
वो- तुन्हारे काम … मतलब?
मैं- अरे कभी मेरी वो दोस्त यहां आए तो!
वो- मतलब तुम उसे फिर से यहां लाओगे!
मैं- ऐसा नहीं है … मगर फिर भी कभी जरूरत पड़ सकती है.
ममता जी को यहां लाने की बात से शायरा अब थोड़ा उखड़ सी गयी- कुछ भी हो, पर मेरे घर कभी नहीं लाना.
मैं- क्यों?
वो- क्यों क्या है? नहीं लाना … मतलब नहीं लाना. अपने कमरे पर लाना या फिर किसी होटल चले जाना.
मैं- यार मेरे कमरे पर तो बैठना भी मुश्किल होता है और होटल के लिए वो मना करती है. अब दोस्त के लिए इतना भी नहीं करोगी!
वो- बाकी सब ठीक है … पर ये नहीं.
मैं- अच्छा चलो ठीक है. अरे बातों बातों में मैं तो भूल ही गया, मैं तुम्हारे लिए ये उस दिन वाली टेबलेट भी लाया था.
वो- उस दिन वाली मतलब?
मैं- अरे जिस रात को तुम्हें पेटदर्द हुआ था ना … वही वाली.
वो- तुम … तुम्हें कैसे पता था कि उस रात मुझे इस वजह से ही पेट दर्द हुआ था?
मैं- उस दिन मैंने कचरे में तुम्हारा यूज किया हुआ सैनेटरी पैड देखा था.
वो- क्या?
मैं- हां, वो तुमने प्लास्टिक की थैली में डाला हुआ था मगर शायद किसी जानवर ने उस थैली को फाड़ दिया था.
शायरा अब फिर से शर्मा गयी मगर पहले जितना नहीं.
वो- तुम्हें कैसे पता वो मेरा था?
मैं- अब इस घर में दो ही तो औरतें हैं, एक तुम और दूसरी मकान मालकिन. अब मकान मालकिन को तो बुढ़ापे में महीना आने से रहा, बाकी रही तुम … तो वो तुम्हारा ही होगा ना?
मेरी इस वात पर शायरा एक बार तो शॉक्ड हो गयी और फिर हंसते हुए बोली- मैं बताती हूँ तुझे … तू रुक अभी … तू बहुत कमीना है.
वो मेरी तरफ आई.
मैंने भी हंसते हुए अब भागने की सी एक्टिंग की, मगर तब तक उसने मेरी पीठ पर फिर से एक मुक्का जड़ दिया.
मैं- आह्ह … अब मार भी क्यों रही हो?
वो- बकवास करेगा तो मार ही खाएगा ना?
मैं- इसमें क्या बकवास कर दी, तुमने पूछा, तो मैंने बता दिया.
वो- सच में तू बहुत कमीना है … अब जाओ यहां से.
मैं- अरे ऐसे कैसे जाऊं?
वो- तो अब क्या लात खाके जाओगे?
मैं- लात क्यों? इतनी मेहनत करवाई है तो कुछ इनाम तो बनता है.
वो- इनाम … इनाम किस बात का?
मैं- अरे तुम्हारे लिए पूरे बाजार का चक्कर लगा आया … अब नाश्ता तो करके ही जाऊंगा ना!
वो- अच्छा.
मैं- हाआआं.
वो- अब नाश्ता तो नहीं बनेगा … मुझे नहाना है, पर तुम चाहो तो लंच कर सकते हो?
मैं- और कॉलेज?
वो- वो तुम जानो.
मैं- और तुम … तुम बैंक नहीं जाओगी आज?
वो- मैंने तो छुट्टी ले ली.
मैं- ठीक है … तो फिर मैं भी आज कॉलेज नहीं जा रहा.
वो- क्यों?
मैं- तुम्हारे साथ लंच जो करना है.
वो- तुम ये लाईन मारना बन्द नहीं करोगे!
मैं- अरे … अगर गलती से तुम्हारी वो सहेलियां मिल गईं और उन्होंने कुछ पूछ लिया तो मैं क्या कहूंगा!
वो- तो … तो इसमें क्या है? उन्हें सच बता देना.
मैं- क्यों बताऊं. बैठे बिठाये मिली बीवी को खोना है क्या मुझे?
शायरा को मेरी बात एक बार तो समझ में नहीं आई.
पर जब समझ में आयी, तो वो शर्मा गयी.
और फिर हंसते हुए बोली- अच्छा … बड़ा आया बीवी वाला, तू रुक … मैं बताती हूँ तुझे!
ये कहते हुए वो फिर से मेरे पीछे आई मगर तब तक मैं बाहर भाग आया.
शायरा मेरे साथ रहने से अब अपना अकेलापन भूल गयी थी. उसको तो मेरा मज़ाक करना भी अब पसंद आ रहा था.
दो दिन में ही हम बेस्ट फ्रेंड बन गए थे.
मैं शायरा को मज़ाक मज़ाक में तो अब छेड़ने भी लग जाता … मगर वो बुरा नहीं मानती. मेरा अब तक का प्लान कामयाब हो गया था. बस मुझे धीरे धीरे उसके करीब आना था.
दोपहर में शायरा का बुलावा भी आ गया. शायरा से मिलने के लिए तो मैं जैसे तैयार ही बैठा था. सुबह नाश्ता नहीं किया था इसलिए शायरा ने खाना जल्दी ही बना लिया.
वैसे तो शायरा किसी को अपने घर नहीं बुलाती थी … लेकिन मेरे लिए अब कोई रोक-टोक नहीं थी. मुझे शायरा के लिए गिफ्ट लेकर जाना चाहिए था … लेकिन अचानक लंच का प्रोग्राम बना तो कुछ कर भी नहीं सकता था.
शायरा ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने के बाद मुझे बुलाया था. फिर भी मैं ज़्यादा से ज़्यादा समय शायरा के साथ रहना चाहता था.
मैं- खाने की खुशबू तो बहुत बढ़िया आ रही है.
वो- तुम फिर शुरू हो गए!
मैं- क्या करूं तुम्हें देखते ही बस तारीफ करने का दिल करता है.
वो- मतलब तुम्हारी तारीफ झूठी होती है?
मैं- ग़लत, अभी तो खाने की महक से मेरे मुँह में पानी आ रहा है.
वो- तो देर किस बात की है?
मैं- खाना लगा दो, आज तो उंगली भी खा लूंगा.
वो- किसकी, मेरी या अपनी?
मैं- उंगली नहीं, अगर खाना टेस्टी हुआ तो तुम्हारे हाथों को ही चूम लूंगा.
वो- तो फिर थप्पड़ खाने को भी तैयार रहना!
मैं- एक किस के लिए तो हज़ारों थप्पड़ खा लूंगा मैडम.
वो- ऐसी बातों से कितनों को पटाया है?
मैं उसकी इस बात पर उंगलियों पर गिनने लगा.
मैं- उम्म् … मेरी भाभी को, सुमन, रेखा भाभी, प्रिया, अनु, सुलेखा भाभी और तुम पट गईं तो तुम आख़िरी होगी.
वो- बच्चू … मैं शादीशुदा हूँ.
मैं- तो क्या हुआ, मुझे चल जाएगा. वैसे भी मैंने जितनी भी भाभियों को पटाया है, वो सब भी शादीशुदा ही थीं.
वो- अच्छा.
मैं- हां.
वो- और तुम्हारी ये टीचर … इसको कब पटाया … शादी से पहले या बाद में!
मैं- अरे … इसकी तो सील ही मैंने …
(तोड़ी थी)
मैं ये पूरा कहता, तब शायरा ने खाना डालते डालते ही चम्मच से मेरे हाथ पर मार दिया और चिहुंक गई.
“ओय् … बस चुप कर बदतमीज!”
मैं- आह मम्मी … अब क्यों मारा?
वो- कुछ तो शर्म कर ले!
शायरा ने शर्माते हुए कहा.
मैं- किससे? तुमसे, तुम तो दोस्त हो मेरी!
वो- तो दोस्त हूँ, तो कुछ भी बकते रहोगे!
मैं- बक कहां रहा हूँ. तुमने पूछा तो बता रहा हूँ.
वो- तुमसे तो बात करना ही बेकार है.
शायरा ने तब तक दो प्लेट में खाना लगा लिया था. आज खाने में पनीर की सब्जी थी, जो कि मेरी फेवरेट है. मेरा मनपसंद खाना देखते ही मेरे मुँह में सच में पानी आ गया था.
इसके आगे की सेक्स कहानी अगले भाग में लिखूंगा. आप मुझे मेल भेजना न भूलें.
कहानी जारी है.