यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
शायरा को अपने नंगेपन का अहसास हुआ तो वो तुरन्त उठकर बैठ गयी. उसने हाथ पैरों से अपना नंगा बदन छुपाया और अपने कपड़ों को ढूँढने लगी जो इधर उधर बिखरे पड़े थे.
दोस्तो, मैं महेश आपको अपनी सेक्स कहानी में चुदाई का मजा दे रहा था.
अब तक आपने पढ़ा था कि मैं शायरा की चुत चोद रहा था और कुछ सोच भी रहा था.
अब आगे:
चुदाई के बाद मैं शायरा को क्या कहूँगा, उसका सामना कैसे करूंगा, इसकी मुझे अब कोई फिक्र नहीं थी.
बस मैं धक्के मार मार कर अपने जीवन को सफल कर रहा था.
शायरा को भी अब मजा आने लगा था इसलिए वो भी अब आंखें बन्द करके मेरे धक्कों को महसूस कर रही थी और अपने दिलो दिमाग़ में इस चुदाई को फिट करने की कोशिश रही थी.
मजा आने से उसकी चुत में भी अब पानी भर आया था, जिससे अपने आप ही धीरे धीरे उसके कूल्हों ने भी अब नीचे से हल्की हल्की जुम्बिश सी करनी शुरू कर दी.
मैं भी उसके हर एक धक्के को महसूस करना चाहता था. मैं ऐसा क्यों कर रहा था … मुझे नहीं पता था, पर हर एक धक्के के साथ मुझे एक अलग ही आनन्द मिल रहा था. इसलिए मैं बड़े ही प्यार से शायरा की चुदाई कर रहा था.
शायरा भी मेरे साथ साथ अपने कूल्हों को ऊपर उचका उचका कर मेरा साथ दे रही थी.
साथ ही उसके मुँह से अब सिसकारियां भी निकालने लगी थीं.
मगर वो खुलकर सिसकारियां नहीं ले पा रही थी.
वो मुझसे शर्मा रही थी … इसलिए बस बीच बीच में कभी कभी ‘आहह … आहह ..’ ही कर रही थी.
ना तो अब शायरा को जल्दी थी …
और ना ही मुझे कोई जल्दी थी.
ना शायरा मुझसे अलग होना चाह रही थी …
और ना ही मैं उसे अपने से अलग होने देना चाह रहा था.
आज मुझे क्या हुआ था कुछ समझ नहीं रहा था.
सुबह तो मैं भगवान से दुआ कर रहा था कि आज का दिन जल्दी निकल जाए.
मगर अब मैं हर एक सेकेंड को जीना चाह रहा था. सुबह मैं सोच रहा था कि शायरा आज मुझसे दूर रहे मगर अब शायरा को छोड़ने का मन नहीं हो रहा था.
मैं शायरा को हर एक धक्के का मज़ा दे रहा था, तो अपने हर एक धक्का का मजा भी ले रहा था.
वो पूरा कमरा हमारी चुदाई के संगीत से गूंज रहा था. पर वो संगीत कब से बज रहा था, ये ना तो शायरा को पता था और ना ही मुझे पता था.
इसी बीच शायरा चरम पर पहुंच गयी और उसकी चुत ने पानी छोड़ दिया.
मगर अभी तक मैंने अपने दिमाग़ को चुदाई से दूर ही रखा हुआ था.
मैं बस धीरे धीरे धक्के मारकर दिल से ही शायरा की चुदाई को फील कर रहा था.
शायरा का रस्खलन होते ही मैंने अब उसके पैरों को थोड़ा और फैला दिया और थोड़ा तेजी से धक्के मारने लगा, पर इतनी भी तेजी से भी नहीं, जितना दूसरों के साथ मारता था.
मैं जितनी गति के साथ दूसरों के साथ धक्के मारता था … उससे कई गुना कम गति से मैं शायरा की चूत में धक्के मार रहा था.
शायरा ने ज़्यादातर समय अपनी आंखें बंद रखी थीं, पर शायरा बीच बीच में अपनी आंखें खोल कर मुझे धक्के मारते हुए देख कर फिर से अपनी आंखें बंद कर लेती.
इसी बीच शायरा ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया.
मेरी भी मंजिल अब करीब ही थी.
इस लंबी चुदाई में मुझे भी लग रहा था कि मेरा भी होने वाला है. इसलिए अब मुझे अपनी धक्के मारने की गति बढ़ा देनी चाहिये, पर इसके लिए मेरा दिल मुझे इसकी इजाज़त नहीं दे रहा था. क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि शायरा को दर्द हो.
शायरा की चुदाई मैं दिल से कर रहा था. अगर दिल की जगह मैं दिमाग़ से चुदाई कर रहा होता … तो अभी तक मैंने गति बढ़ा दी होती और मेरा वीर्य शायरा की चूत में होता.
मगर शायरा की चुदाई मैं दिल से कर रहा था इसलिए आखिरी धक्के भी मैं बड़े ही प्यार के साथ धीरे धीरे ही मार रहा था.
वैसे तो मेरा दिल आख़री के धक्के धीरे धीरे मारने में मेरी बहुत मदद कर रहा था.
मगर फिर भी मेरे अन्तिम के कुछ धक्कों की गति थोड़ी बढ़ ही गयी, जिससे शायद शायरा को भी अब अहसास हो गया कि मेरा भी काम होने वाला है.
इसलिए आखिर के कुछ धक्कों में शायरा भी अपने कूल्हों को उचका उचका कर मेरा साथ देने लगी.
फिर वो समय भी आ गया, जिसका मैं कब से इंतज़ार कर रहा था.
अचानक मेरे पूरे बदन में ज्वार की एक लहर सी उठी और वो लहर पूरे बदन में दौड़ते हुए मेरे लंड पर आ थमी.
इससे अपने आप ही मेरी गिरफ्त शायरा के बदन पर कस गयी.
अब जो लहर मेरे लंड पर आ रुकी थी, वो किसी ज्वार भाटे की तरह शायरा की चुत में ऐसी फटी कि मेरे लंड से वीर्य की तेज धार किसी पिचकारी की तरह रह रह कर शायरा की चुत में निकलने लगी और शायरा के बदन पर मेरी गिरफ्त बढ़ती चली गयी.
मैं काफी देर से अपने आपको रोके हुए था … इसलिए मेरा ये वीर्यपात अब इतना उग्र व भीष्ण हुआ कि मेरे लंड से निकलने वाला ज्वार शायद सीधे शायरा के गर्भाशय से ही टकराने लगा.
क्योंकि जैसे ही मेरे लंड ने वीर्य उगलना शुरू किया, शायरा ने तुरन्त अपनी आंखें खोल लीं और जैसे जैसे मेरे लंड से वीर्य निकलता गया, वैसे वैसे ही मेरे गर्म गर्म वीर्य को अपने गर्भाशय पर महसूस करके उसकी आंखें बड़ी होती चली गईं.
मैं झड़ने के बाद शायरा को तब तक अपनी बांहों में कस कर भींचे रहा, जब तक की मेरे लंड ने अपना सारा ज्वार उसकी चुत में उगल नहीं दिया.
फिर मैं खुद भी शायरा के ऊपर ही ढेर होकर गिर गया.
शायरा ने भी फिर से अपनी आंखें बन्द कर लीं और इस कभी ना भूल पाने वाले मिलन में कहीं खो सी गयी.
क्योंकि शायरा को मैंने आज वो सुख दिया था, जिसका उसको ना जाने कब से इंतज़ार था.
आज उसके चेहरे पर वो ख़ुशी दिख रही थी … जिसके लिए वो ना जाने कब से तरस रही थी.
मैं भी इस मिलन को कभी नहीं भुला सकता क्योंकि इस मिलन से शायरा और मैं एक हो गए थे.
इस मिलन से ना हमारे दिल एक हुए बल्कि हमारी आत्मा भी एक हो गयी थी.
शायरा और मेरे बीच प्यार का अब एक नया रिश्ता जुड़ गया था.
इस मिलन से शायरा अब मेरी हो गयी थी और मैं शायरा का हो गया था.
उसके साथ प्यार करके जो सुकून मुझे आज मिला था, उसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था.
शायरा की चुत में मैंने जो वीर्य डाला था, उससे वो अभी तक मेरे प्यार को फील कर रही थी.
उसकी चूत में मेरा वीर्य जा चुका था, जिससे मैंने उसके तन मन और दिल पर अपना नाम लिख दिया था.
शायरा होश में थी या नहीं, ये नहीं पता … पर उसके चेहरे के भावों से लग रहा था कि वो खुश थी.
वैसे शायरा की चूत इतनी टाइट होगी, मैंने भी ये सोचा नहीं था.
शायरा के हज़्बेंड ने उसके साथ कभी सेक्स किया भी था या नहीं … मुझे अब इस बात पर ही डाउट हो रहा था.
क्योंकि शायरा के अन्दर अभी तक एक औरत की प्यास जिंदा थी.
पर आज मेरे वीर्य ने उसकी प्यास बुझा दी थी.
मैं ऐसे ही काफी देर तक शायरा के ऊपर पड़ा रहा और शायरा आंखें बन्द किए चुपचाप मेरे नीचे लेटी रही.
पता नहीं शायरा होश में नहीं थी या जानबूझकर ऐसे ही लेटी हुई थी, ये तो मुझे नहीं पता.
शायरा को उठाने के लिए मैंने उसे अब एक दो बार आवाज देकर देखा. पर शायरा ने कोई हरकत नहीं की.
जब शायरा आवाज देने से नहीं उठी, तो मैंने अपने हाथ से उसके गालों को थपथपाकर उसे जगाया.
जिससे शायरा ने भी अपनी आंख खोल दीं और मेरी तरफ देखने लगी.
शायरा- ये नहीं होना चाहिए था.
मैं- क्या?
शायरा ने जो कहा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था.
शायरा- हमें ये सब नहीं करना चाहिए था.
मैं- हम दोनों प्यार करते हैं.
वो- प्यार?
मैं- तुम प्यार नहीं करती मुझसे?
वो- पर हमें ये सब नहीं करना चाहिए था.
मैं- पर तुम ही तो मेरा साथ दे रही थीं.
वो- हां … पर मैं होश में नहीं थी.
मैं- इसका मतलब ये जो सब हुआ, इसमें तुम्हारी मर्ज़ी नहीं थी?
वो- हां थी, पर हमें ये नहीं करना चाहिए था.
मैं- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ … फिर भी नहीं!
वो- नहीं.
मैं- पर क्यों?
वो- क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ.
मैं- तो क्या हुआ?
वो- पर ये ग़लत है.
मैं- तुम दुनिया वालों की वजह ऐसा बोल रही हो?
वो- नहीं, मैं हम दोनों के लिए ऐसा बोल रही हूँ. इससे हम दोनों की ही बदनामी होगी.
मैं- पर मैं तुम्हें बदनाम होने नहीं दूँगा.
वो- बदनाम तो मैं हो गयी हूँ खुद अपनी ही नज़रों में.
मैं- ऐसा क्यों कह रही हो, तुम भी तो मुझसे प्यार करती हो न!
वो- वो मुझे नहीं पता.
मैं- तुम्हें नहीं पता … तो तुमने अपना ये हाल ऐसा क्यों बना कर रखा है?
वो- मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मुझे क्या हो रहा?
मैं- ये प्यार है … जो तुम मुझसे करती हो. देखो मेरे दूर जाते ही तुम्हारा ये क्या हाल हो गया … और सच में मैं अगर तुमसे दूर हो गया … तो क्या होगा?
वो- तुम नहीं थे, तब भी तो मैं जी रही थी!
मैं- हां, तब जी रही थी … पर अब मेरे बिना जीकर तो दिखाओ!
वो- हां, नहीं जी सकती तुम्हारे बिना … तो क्या करूं?
मैं- मेरे साथ प्यार करो.
वो- नहीं कर सकती.
मैं- तुम मुझसे प्यार नहीं करती?
वो- मुझे नहीं पता.
मैं- हां या ना में जवाब दो?
वो- मैंने कहा ना, मुझे नहीं पता!
मैं- तुम क्यों खुद से लड़ रही हो, जो दिल में है … उसे ज़ुबान पर क्यों नहीं लातीं?
वो- मैं एक औरत हूँ.
मैं- हां, एक प्यासी औरत, जो सेक्स, खुशी, हंसी, प्यार सबकी प्यासी है.
वो- रहने दो, मुझे मैं जैसी हूँ.
मैं- ठीक है तो जैसा तुम चाहो, पर मैं तुम्हें हमेशा प्यार करता रहूँगा.
वो- तुम समझ क्यों नहीं रहे हो? मैं ये सब नहीं कर सकती.
मैं- ये मेरी हवस नहीं, ये मेरा प्यार है.
वो- पर फिर भी ये मुमकिन नहीं है.
मैं- तुम मत प्यार करो, पर मैं तुम्हें प्यार करता रहूँगा.
वो- तुम समझ क्यों नहीं रहे, ये हम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा.
मैं- मुझे मत बताओ कि क्या अच्छा होगा और क्या नहीं, तुम प्यार नहीं करती … तो मत करो, पर मुझे प्यार करने से तुम नहीं रोक सकतीं.
वो- पर क्यों?
मैं- क्योंकि प्यार करने की कोई वजह नहीं होती और मैंने ये तुमसे दूर रह कर देख लिया. तुम, तुम भी तो नहीं जी पा रही थीं मेरे बिना. ऐसे तो हम बस तड़फते रहेंगे. और मैं तुम्हें ऐसे देवदासी की तरह नहीं देख सकता इसलिए मैं तुमसे प्यार करता रहूंगा … और हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा.
वो- पर मैं ये सब नहीं कर सकती.
मैं- प्यार नहीं कर सकती … तो फिर से दोस्त तो बन सकती हो. मैं तुम्हारे प्रेमी की तरह रहूँगा और तुम मुझे दोस्त की तरह समझो, अब दोस्त तो बना ही सकती हो ना!
वो- दोस्ती तो तुमने पहले भी की थी.
मैं- पर अब मैं वादा करता हूँ इस बार दोस्ती की लिमिट टूटने नहीं दूँगा. आज से हम फिर से दोस्त बन रहे हैं और इस पर मैं अब कुछ नहीं सुनना चाहता.
मैं- हम दोस्त है और दोस्त रहेंगे. हां पर, दिल में तुम्हारे लिए प्यार कभी भी कम नहीं होगा. एक प्रेमी तुम्हारी हां का इंतज़ार हमेशा करता रहेगा.
शायरा मेरी बात सुनकर अब शॉक्ड हो गयी.
वो कुछ कहना चाहती थी पर उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे.
उसको शायद सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिये था. अभी जो कुछ भी हुआ, वो सब अचानक और भावना के वश हुआ था. पर इतना बड़ा फ़ैसला लेने से पहले शायद उसे टाइम चाहिये था.
शायरा से बात करके मुझे निराशा हुई, क्योंकि शायरा ने मेरे प्यार को ठुकरा दिया था.
पर मैंने भी अब सोच लिया कि प्यार नहीं सही, हम दोस्त तो बने रह ही सकते हैं.
दोस्त बन कर ही सही, कम से कम इस बहाने मैं शायरा को थोड़ी बहुत ख़ुशियां तो दे ही सकता हूँ.
और हो सकता है इस बहाने कभी ना कभी उसके दिल में मैं अपने प्यार की ज्योत भी जला दूँ.
मैं अभी भी शायरा के ऊपर ही लेटा हुआ था और मेरा लंड अभी भी उसकी चुत की गर्मी ले रहा था.
मेरा शायरा पर से उठने का दिल तो नहीं था … मगर फिर भी.
मैं- मैं अब उठ जाता हूँ, नहीं तो तुम ऐसे ही पहले तो मेरे प्यार से इनकार करती रहोगी और फिर मुझे पकड़कर मेरे साथ सेक्स करना शुरू कर दोगी, इससे अच्छा है मैं उठ ही जाता हूँ.
ये कहते हुए मैं शायरा के ऊपर से उठ गया और अपने कपड़े पहनने शुरू कर दिए.
पर शायरा अभी तक मुझे ही देखे जा रही थी.
शायद वो सोच रही थी कि मैंने उसके साथ सब कुछ कर भी लिया.
अब इसका इल्जाम भी उसी पर लगा रहा हूँ या फिर ये सोच रही थी कि मैं जब उसके साथ ये सब कर रहा था, तो उसने मुझे रोका क्यों नहीं.
मैं- अब देखती मत रहो, उठो और अपने कपड़े पहन लो. हर कोई मेरे जैसा शरीफ नहीं होता. मेरी जगह कोई और होता, तो तुम्हें ऐसे ही इतनी जल्दी नहीं छोड़ता … और पता नहीं अभी भी तुम्हारे साथ क्या क्या कर रहा होता.
अचानक मेरी टोन अब बदल गयी, जिससे शायद शायरा को भी अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वो तुरन्त उठकर बैठ गयी.
उसने हाथ पैरों को सिकोड़कर अपने नंगे बदन को छुपा लिया और अपने कपड़ों को ढूँढने लगी, जो सब इधर उधर बिखरे पड़े थे.
उसकी साड़ी बेड के नीचे पड़ी थी, तो ब्लाउज और ब्रा दरवाजे के पास पड़े थे, पेटीकोट बेड पर एक कोने में पड़ा था, तो पैंटी किसी दूसरे कोने पर पड़ी थी.
मैं- तुम आराम से अपने कपड़े पहन लो, मैं बाहर जाता हूँ.
ये कहकर मैं अब शायरा के बेडरूम से बाहर आ गया … पर शायरा शायद अब फिर से सोचने लगी कि मैंने उसका सब कुछ देख भी लिया और कर भी लिया.
फिर ये सब क्या नया नाटक कर रहा हूँ.
खैर … कुछ देर बाद शायरा भी कपड़े पहन कर बाहर आ गई. मैं चुपचाप सोफे पर बैठा हुआ था. उसने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर सीधे बाथरूम में घुस गयी.
वो शायद फ्रेश होने चली गयी थी.
फ्रेश होना भी जरूरी था क्योंकि चुत में मेरा वीर्य भरा हुआ था. उसे साफ नहीं करेगी तो चुत चिपचिप ही करती रहेगी.
फ्रेश होकर शायरा अब बाहर आई, तो उसने अपने कपड़े भी बदल लिए थे. पीले रंग के सूट और सफेद सलवार में वो अब पहले से काफी ठीक ही लग रही थी.
उसके चेहरे पर अब भी टेन्शन सी दिख रही थी … इसलिए मैंने माहौल को हल्का करने की सोची.
शायरा की चुत चुदाई हो चुकी थी मगर अब मेरे दिमाग में उसको लेकर बहुत कुछ चल रहा था. उसे मैं आगे लिखूंगा.
आपके मेल के इंतजार में महेश.
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कहानी जारी है.