यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
अब तक आपने मेरी इस सेक्स कहानी में पढ़ा कि शिवानी ने मुझे अपने घर बुला कर खुद की चुदाई का लाइव शो दिखाया था. बाद में मैं अपने घर आ गई थी. मैं घर आते ही अपने कमरे में एकदम नंगी होकर अपनी चूत से खेल रही थी कि तभी शिवानी का फोन आ गया.
अब आगे:
शिवानी- अब आई ना सीधे रास्ते पर. देख पूनम मेरी बात ध्यान से सुन. ये सारे रिश्ते जिनमें मां-बाप भी हैं. खासकर हमारे जैसे परिवारों के, सब किसी ना किसी मुसीबत में फँसे रहते हैं और उनको किसी और की तरफ़ देखने या सोचने की फ़ुर्सत ही नहीं मिलती. जैसे पेट के लिए भोजन बहुत ज़रूरी है, उसी तरह से चूत के लिए लंड भी ज़रूरी है. घरवाले तो जब तक तुम्हारी शादी ना हो जाए, इस ज़रूरत को समझते हुए भी नासमझ बने रहेंगे. मेरे साथ भी यही होता रहा है. ना कोई लड़का ढंग का मिलेगा और अगर मिला तो बहुत से दहेज मांगेगा, जो घर के लोग दे नहीं सकते हैं. मुझे अपनी शादी के लिए मुझे ही पैसे जमा करने हैं. अब कब होंगे, पता नहीं. इसलिए मैंने अपनी चुत का जुगाड़ कर लिया है. तू यह ना समझ कि यह काम सिर्फ़ मैं ही करती हूँ. रजनी, आयशा सुजाता, मरियम और मनोरमा सभी इस गाड़ी में सवारी कर रही हैं. बस फ़र्क यह है कि कोई कुछ कम बोलती है और कोई ज़्यादा. मैंने तेरे साथ दोस्ती बनाई है, इसलिए किसी से भी कोई बात नहीं कही है. मगर मैंने तुझे आज सब की सच्चाई बता दी है.
मैं उसकी बात को बड़े गौर से सुन रही थी. वो आगे बोलती ही जा रही थी:
और सुन … तेरी चुत में जो खुजली होती है, वो तो तेरी मां को पता होते हुए भी वो चुप ही रहती है. खुद तो वो रात को नंगी हो कर तुम्हारे बाप का लंड लेती है. देख यार बुरा ना मानना, मैं आज तुमसे खुल कर सच सच बोल रही हूँ. तुम चाहो तो छिप कर देख भी लेना तुम्हारी मां अपनी चूत में कितनी बार लंड लेती हैं. उनसे कभी यह तो नहीं सोचा जाता कि जब तक मेरी बेटी की चूत का पूरा इंतज़ाम ना हो जाए, मैं भी लंड नहीं लूँगी.
शिवानी यही है असली जिंदगी की कहानी. तू सोच … और निकल इन दकियानूसी ख्यालों से … और मज़े ले मेरी तरह या दूसरी बाकी लड़कियां ऑफिस वाली ले रही हैं.
जब शादी होगी, तब छोड़ देना यह सब … और तब उसी से मज़े लेना. मगर पता नहीं कब होगी. अगर इसी इंतज़ार में रहोगी, तो हो सकता है चुदाई की उमर भी निकल जाए. मैंने तो आज लगता है, कुछ ज़्यादा ही बोल दिया है. खैर बुरा ना मानना … मैंने तो तेरे साथ हमदर्दी की वजह से यह सब बोला है. चलो छोड़ो कल बात करेंगे.
वो तो फोन बंद कर के चली गई. मगर मेरी चुत में जो आग अभी अभी बुझी थी … उसे वो फिर से भड़का गई. मुझे नींद ही नहीं आ रही थी. रात को बारह बजे के आस पास मैं उठी और छत पर जाने लगी. तो साथ के कमरे से कुछ आवाजें आ रही थीं, जिसमें माँ बाप सोते थे.
मेरे कानों में शिवानी की बातें अब भी गूँज रही थीं. मैंने आज तक कभी कुछ भी सुनने या देखने की कोशिश नहीं की थी, मगर आज दिल ने कहा कि क्या शिवानी सच तो नहीं कह रही थी, ज़रा पता लगाना चाहिए. फिर दिल ने जोर से कहा कि छोड़ से शर्म … सुन जरा.
इसके बाद मैं मम्मी के दरवाजे के पास रुक गई और सुनने लगी. अन्दर से साफ साफ सुनाई पड़ रहा था. मेरी मां की आवाज़ आ रही थी और पता लग रहा था कि वो चुदाई में पूरी मस्त हुई पड़ी हैं.
माँ बोलती जा रही थीं- आज क्या हो गया … ज़रा ज़ोर से ज़ोर से लगाओ ना धक्के … आह आज क्या हो गया है. हां सुनो जी … अपना माल बाहर ही निकालना, कहीं यह ना हो जाए कि मैं फिर से किसी बच्चे की मां बन जाऊं वरना शिवानी को मुँह दिखाने भी मुश्किल होगा. वो सोचेगी कि माँ को चुदाई से फ़ुर्सत नहीं है. सच कहूँ तो मेरा चुदाई से दिल ही नहीं भरता … आह क्या करूँ …
माँ की इस तरह की आवाजें सुनकर आगे में नहीं सुन सकी और फिर से अपने कमरे में आ गई. मैंने फिर से उसी डिल्डो को चूत में डाल लिया. सारी रात यही सोचती रही कि शिवानी सच ही कह रही थी.
अगले दिन ऑफिस में शिवानी ने आँख मार कर कहा- कैसा लगा मेरे लाइव शो. मैंने कहा- क्या बताऊं … बहुत गर्म था.
उसने कहा- गर्म तो होना ही था. तू सच बता तुझे कल मेरे डिल्डो की ज़रूरत पड़ी ना. देख शर्मा नहीं, मैंने किसी से नहीं कहने वाली.
मैंने कहा- यार उसकी बात छोड़ … तू सच कह रही थी कि यहां सब अपने आपको ही देखते हैं. किसी को किसी और की चिंता नहीं है. और अगर है भी, तो उस अधिक अपनी है.
शिवानी ने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- यार तेरी बात मेरे दिल को छू गई और मैंने कल रात को अपनी मां को चुदाई करवाते हुए तो नहीं देखा … क्योंकि वो तो हो नहीं सकता था, मगर उनकी आवाज़ सुनी, जिससे पता लगा कि वो मस्त होकर चुदवा रही थीं. जब वो चुदवा रही होतीं हैं, तब उन्हें अपनी चूत के सिवा और कुछ नज़र भी नहीं आता.
मेरी बात सुन कर शिवानी ने कहा- यार जो कुछ मेरे साथ बीता है, मैं उसी के तजुर्बे से तुमको बता रही थी. मेरे घर पर तो दरवाजे में एक छोटा सा सुराख था, जिसका किसी को पता नहीं था. उसमें से झाँक कर मैंने सब कुछ देखा है और आवाजें भी पूरी सुनाई देती थीं. मां पूरी नंगी होकर कई आसनों में अपनी चुदाई करवाती थीं. वो पापा से बोला करती थीं कि कुछ खाया करो, वरना यह तुम्हारा लंड कहीं काम से ना चला जाए. पता नहीं क्या क्या मंगवा कर उनको खाने के लिए दिया करती थीं, जो मुझे जब मैं कॉलेज में चली गई थी, तब पता लगा. मेरी उमर शादी के लायक हो चुकी थी. मगर जब भी कोई रिश्ता आता था, तो यही कह कर इन्कार कर दिया जाता था कि अभी तो इस नौकरी करके कुछ पैसे जोड़ने हैं वरना लड़के वालों को क्या देंगे. मतलब कि मुझे ही अपनी चूत को अपने पति से चुदवाने की फीस जमा करनी है. तब मैंने सोच लिया था कि जो कुछ भी करना है, मैं खुद ही करूँगी. अब जब भी कोई लड़का, जो सच में मुझसे प्यार करता होगा, मैं उसी से शादी कर लूँगी. अब मुझे इस काम के लिए भी किसी की इज़ाज़त नहीं लेनी है.
फिर कुछ देर रुक कर बोली- देख पूनम तू मेरी मान, अपनी नौकरी से जो पैसे तुझे मिलते हैं, उसे अपने लिए जोड़ना शुरू कर दे. किसी को किसी चिंता नहीं. यही पैसे तेरे बाद में काम आएंगे. मान लो शादी के लिए तुमको लड़का अपनी पसंद का मिलता है और किसी तरह कम कोई पैसा या कोई चीज़ भी नहीं मांगता, तब भी तुमको शादी के बाद कई तरह की ज़रूरतें होंगी, जिसके लिए तुमको पैसा चाहिए होगा. तब कोई नहीं कहेगा कि पूनम ने इतना पैसा कमा कर घर पर दिया है. उसे हम लोगों को भी कुछ देना चाहिए. सब अपनी अपनी मजबूरी बताते जाएंगे.
मैं सब कुछ चुपचाप सुनती जा रही थी. इसके बाद वो बोली- सुन पूनम, जब तुमको भूख लगती है, तो खाना खाती है ना.
मैंने कहा- यह भी कोई पूछने की बात है.
वो बोली- बात है … इसी लिए पूछ रही हूँ.
मैंने कहा- हां खाती हूँ ना. अगर देर हो जाए तो गुस्सा भी आता है और होती भी हूँ.
शिवानी- ठीक उसी तरह से चूत की भूख का क्या करती है.
मैं कुछ नहीं बोल पाई.
तब उसने कहा- सुन मेरी बात … चूत की गर्मी को अपने अन्दर ना रहने दिया करो. वरना कोई बीमारी भी हो सकती है. चाहो तो किसी लेडी डॉक्टर से पूछ भी लेना. तुम जवान हो, खूबसूरत हो, तुम्हारे मम्मे मस्त हैं, कोई भी लड़का तुम पर मर मिटेगा. मगर शुरुआत तो तुमको ही करनी पड़ेगी ना. तुम लड़कों से मेलजोल बढ़ाना शुरू करो. अगर कोई अच्छा सा दिखे, तो उसको लिफ्ट भी देनी शुरू करो. फिर देखना तुम पर और तुम्हारी जवानी में भी निखार निकल आएगा.
शिवानी ने मुझसे फिर कहा- अगर तू चाहे, तो मैं कुछ लड़कों से तुझे मिलवा दूँगी, बाकी का काम तुझे खुद ही सम्भालना होगा.
मैंने उससे कहा- जी नहीं, मैं खुद ही अपना शिकार खुद करूँगी.
उसने कहा- जैसे तेरी मर्ज़ी. मगर मुझे बहुत खुशी होगी, जब तू अपने मन चाहे लंड से चुदेगी.
अब मैंने कुछ दिल में सोच लिया था, जिससे किसी को कुछ भी ना पता लगे. मुझे तो शिवानी पर भी कोई विश्वास नहीं था … क्योंकि अगर किसी दिन उसका दिल किया, तो सबके सामने सब कुछ उगल देगी.
हमारे ऑफिस में कई लोग दूसरी कम्पनियों के भी आते थे, जिनका काम हम लोगों से रहता था. कई बार उन लोगों से मुझे भी मीटिंग करनी पड़ती थी. उन लोगों में कई जवान लड़के भी थे और बहुत दिल को भाने वाले भी आते थे. मैंने सोचा क्यों ना उनमें से ही किसी के साथ अपना रिश्ता बनाया जाए. अब मैं यही विचार दिल में लेकर उन लड़कों से मीटिंग में सोचा करती थी.
उनमें से एक लड़का जिसका नाम सागर था, मुझे बहुत अच्छा लगता था. उसका बातचीत करने का ढंग भी बहुत बढ़िया था. अब मैं उसके बारे में कुछ ज़्यादा ही सोचने लगी.
कई बार मीटिंग में उसके ख्यालों में कुछ ज़्यादा ही खो जाती थी, जिससे वो मुझसे पूछता था कि क्या बात हो गई पूनम जी … कहां खो गई हैं आप. घर पर सब कुछ तो ठीक ठाक है ना.
मैं झट से अपने आपको संभालती और कह देती कि नहीं ऐसे कोई बात नहीं.
एक दिन मीटिंग में वो कुछ उदास सा लगा, तो मैंने उससे पूछा कि क्या बात है … आज कुछ उखड़े उखड़े लग रहे हो. अगर कोई ऐसी बात है, जो नहीं बताना चाहते, तो छोड़ो … वरना बताओ कि क्या हो गया. मैंने आज तक आपको इस तरह से नहीं देखा.
वो बोला- क्या बताऊं पूनम जी. मेरा जीना दुश्वार कर दिया है मेरे घर वालों ने. मेरी मां, मेरा दुख नहीं देख पाती हैं. उसका कारण यह है कि वो मेरी सौतेली मां हैं. उनकी तो बस मेरी कमाई पर ही नज़र रहती है. वो मेरी शादी अपने किसी भाई की लड़की से करवाना चाहती हैं. मैंने मना कर दिया, मगर अब मेरे पिता भी उन्हीं की भाषा बोल रहे हैं. वे कहते हैं कि तुझे क्या इसीलिए पाला पोसा था कि तू हमारा कहना ना माने. लड़की वाले बहुत अमीर हैं और वो तुमको कार और एक घर भी देंगे. मगर वो यह नहीं समझते कि वो लड़की पढ़ी लिखी नहीं है. मुझे पैसे से क्या लेना है. वो तो आज नहीं, तो कल मैं भी कमा लूँगा. ज़रूरी नहीं कि मैं आज ही कार खरीदूं या घर ले लूँ. कुछ सालों बाद यह भी खरीद ही लूंगा. मगर उनकी आंखों पर तो पट्टी बँधी है.
उसकी बात सुनकर अब मैं उससे कुछ कहने लायक नहीं थी. क्योंकि यह उसका पूरी तरह का निजी मामला था. फिर मैं उससे इतना भी नहीं खुली हुई थी कि उसकी निजी जिंदगी में किसी तरह की बात करूँ.
मैंने कहा- यह तो आपकी निजी प्राब्लम है … कोई क्या कह सकता है. इसका फैसला तो आप … या आपके घरवालों को ही लेना है.
तब सागर ने मुझसे कहा- बात तो आपकी सही है, मगर एक बात मैं आपसे पूछता हूँ. एक मिनट के लिए आप खुद को मेरी जगह महसूस कर लो और बताओ कि ऐसी स्थिति में आपका क्या फैसला होता?
मैंने कहा- मैं आपको इसका जवाब एकदम से नहीं दे सकती क्योंकि मैं जब तक खुद को ऐसे अनुभव में ना ले जाऊं, तब तक कुछ नहीं कह सकती.
सागर- ठीक है … आप कोशिश कीजिए अपने आपको मेरी जगह पर लाने के लिए और फिर विचार कीजिए कि आप किस नतीजे पर पहुंचेंगी.
मैं यह सोच रही थी कि यह बार बार मुझसे क्यों पूछना चाहता है. खैर मैंने कहा- ठीक है, एक दो दिनों बाद सोच कर बताती हूँ.
मैं घर आकर इस बात को भूल गई और अपने काम रोज़ की तरह से करने लगी. दो दिनों बाद सागर ऑफिस आया, जब कि आज उसका हमारे ऑफिस में कोई काम नहीं था.
मैंने उससे कहा- आज तो कोई मीटिंग नहीं है. बोलिए कोई खास काम आ पड़ा.
उसने कहा- जी नहीं, मैं तो आपसे मिलने आया हूँ और आपकी राय सुनने आया हूँ.
मैं हैरान हो गई कि कौन सा कंपनी का काम है, जिसका यह पूछ रहा है. मैंने सोचा हो सकता है कि मेरी किसी भूल की वजह से यह सब हो गया होगा.
मैंने उससे मीटिंग रूम में बैठने को कहा- आप बैठिए, मैं आती हूँ.
उसने कहा- मैं किसी कंपनी के काम से नहीं आया. मैं तो आपसे जो दो दिन पहले बात हुई थी, उसके बारे में सलाह लेने आया हूँ.
मैं- ओह … चलिए फिर कैंटीन में बैठ कर बात करते हैं.
आपको मेरी सेक्स कहानी कैसी लग रही है, इसको लेकर आप क्या सोचते हैं, प्लीज़ मुझे मेल जरूर करें.
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कहानी जारी है.