यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
इस कहानी के पिछले भाग में आप सब पढ़ ही चुके हैं कि सागर नाम का लड़का मुझसे मिलने आया था.
अब आगे:
मैं उसे कैंटीन में ले आई. अब मेरे पास कोई सोचने का समय नहीं था. जो कुछ भी बोलना था, उसे उसी समय कहना था.
मैंने उससे कहा- सुनिए सागर जी, अगर मैं आपकी जगह होती, तो मैं घर जाना बंद कर देती. मगर हर महीने उनको कुछ ना कुछ पैसे ज़रूर भेजती रहती क्योंकि वो एक आस लगा कर रखते हैं कि जैसे ही महीना बीतेगा, उन्हें घर के खर्चे के लिए पैसे मिल जाएगें.
उसने कहा- शुक्रिया … आपने मुझे अच्छा रास्ता दिखा दिया है. अब मैं भी घर नहीं जाऊंगा और हर महीने कुछ पैसे भेजता रहूँगा. अगर उन्होंने कुछ कहा, तो मैं कह दूँगा कि मैं अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर हर महीने आपको खर्चे के लिए पैसे भेजता रहता हूँ. मगर मैं नहीं चाहता कि आप मुझे किसी जानवर की तरह नीलाम कर दें. जब तक आपकी सोच इस तरह की रहेगी, मैं घर नहीं आनने वाला.
मैं उसका मुँह देखती रह गई और सोच रही थी कि यह आख़िर मुझसे ही क्यों यह सब पूछ रहा था. कहीं इसके दिल में भी तो वो ही घंटी नहीं बज रही है, जो मेरे दिल में इसके लिए बजा करती है.
जाने से पहले वो मुझसे बोला- पूनम जी, अगर आप बुरा ना मानें, तो एक बात कहूँ.
मैंने कहा- बिना संकोच के बोलिए.
उसने कहा- आपने मेरे दिल पर से बहुत बड़ा बोझ उतार दिया है. मैं नहीं समझ रहा था कि क्या करूँ. आपने मुझे सही रास्ता दिखाया है, जिससे घर वालों की तरफ़ मेरी जिम्मेदारी भी बनी रहे और मेरा आत्मसमान भी बना रहे. क्या आप शाम को मेरे साथ एक कप कॉफी पीना पसंद करेंगी.
मैंने कहा- मैंने तो बस आपको यही बताया है कि मैं क्या करती ऐसे माहौल में. खैर कॉफी का, जो आपने कहा है, मैं चाह कर भी इन्कार नहीं करूँगी.
वो मुस्कुरा कर धन्यवाद कहता हुआ चला गया.
शाम को हम लोग एक रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. कॉफी तो एक बहाना थी, असल बात तो एक दूसरे के बारे में जानने की इच्छा थी. कुछ उसने अपने बारे में बताया, कुछ मैंने बताया.
फिर एक दूसरे से बाय बाय करते हुए अपने अपने घर चले गए.
रात को सोने से कुछ पहले सागर का फोन आया और उसने कहा कि आज का दिन वो कभी नहीं भूलेगा … क्योंकि आज उसने एक नया और बहुत अच्छा दोस्त पाया है. अब अगर वो दोस्त चाहेगा, तो मैं यह दोस्ती नहीं छोड़ूँगा.
मैंने कहा- किस दोस्त की बात कर रहे हो?
जब कि मैं समझ भी रही थी कि उसका इशारा किस तरफ़ है.
उसने कहा- आपकी.
मैंने कहा- अगर आप मुझे सही में दोस्त समझते हैं, तो वक़्त आने पर परख लीजिएगा कि मैं दोस्ती किस तरह से निभाती हूँ. चाहे दिन अच्छे हों या बुरे.
उसने कहा- तब मैं आपको अपनी दोस्त समझ कर आपसे कोई भी बात कर सकता हूँ ना … आपको बुरा तो नहीं लगेगा.
मैंने कहा- जब दोस्त कहा है, तो फिर डरते क्यों हो. मैं भी दोस्ती निभाना जानती हूँ.
इस तरह से हमारा एक दूसरे से मिलना जुलना शुरू हो गया. ऑफिस में शिवानी ज़रूर कुछ ना कुछ कहा करती थी, मगर अकेले में ही, ना कि सबके सामने. सबके सामने वो पूरी अंजान बन कर रहा करती थी. जब भी मेरे बारे में कोई बात होती थी.
हां, वो मुझे अपने घर पर बुलाया करती थी और ब्लू फिल्म दिखलाया करती थी. मैं बहुत गर्म हो जाती थी. तब वो मेरे मम्मों को और मैं उसके मम्मों को दबाया करते और एक दूसरे की चूत का रस चूस चूस कर पिया करते थे. मगर मैंने उसे सागर के बारे में नहीं बताया था.
एक दिन मैं सागर के साथ किसी रेस्टोरेंट में बैठी थी और वो भी अपने दोस्त के साथ वहीं पर आ गई. उसने तो हम दोनों को देख लिया, मगर मैं नहीं देख पाई. क्योंकि मेरा मुँह किसी और तरफ था.
उसने अचानक से मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोला- मैडम जी यहां कहां पर? सागर जी आप भी यहां?
चूंकि सागर ऑफिस में काम से आता था इसलिए वो भी उसे जानती थी.
हम दोनों एक पल के लिए तो सकपका से गए.
उसने मजा लेते हुए आगे कहा- क्या मीटिंग्स अब रेस्टोरेंट्स में हुआ करेंगी?
मैंने कहा- नहीं शिवानी, ऐसी कोई बात नहीं. वो तो मैं घर जा रही थी, तो यह यहां मिल गए और कहने लगे कि एक कप कॉफी पीकर जाइएगा. इसलिए मैं यहां हूँ … वरना तुम तो जानती हो कि मैं ऑफिस के बाद सीधी घर पर ही जाती हूँ.
शिवानी ने मुझ आँख मारते हुए कहा- हां वो तो मैं जानती ही हूँ. हालांकि ऑफिस के बाद कई बार तुम अपनी सहेली के घर भी तो जाया करती हो. खैर तुम्हारा अपना मामला है … मुझे क्या.
फिर वो सागर की तरफ़ देखते हुए बोली- सागर जी … ज़रा ख्याल रखिएगा मेरी सहेली का … अभी इसकी शादी नहीं हुई है.
इतना कह कर बिना कोई जवाब सुने, वो वहां से चली गई.
उसके जाने के बाद सागर ने मुझसे कहा- यह कल सारे ऑफिस में बता कर तुमको कहीं बदनाम ना करे.
मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं होगी. वैसे तुम क्यों बदनामी से डरते हो. अगर दोस्ती की है तो निभाना भी जानो ना. क्या लोगों को देख कर दोस्ती छोड़ कर भागोगे.
उसने कहा- पूनम जी, कभी फिर से ऐसे बात मुँह से ना निकलना. सिर्फ़ आप ही हैं, जिससे मैं सभी तरह की बातें कर लेता हूँ क्योंकि मैं भी आपको अपना ही मानता हूँ.
मैंने पूछा- कहां तक अपना मानते हो? अभी शिवानी को देख कर तुम्हारी जैसे हवाइयां ही निकल गई थीं.
इस पर उसने एक हाथ मेरी जाँघों पर रख कर दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि मैं अब तुमको नहीं छोड़ सकता. क्या तुम मेरा जिंदगी भर का साथ निभाओगी?
मैंने कहा- यह तो सोचने की बात है. कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं कि आपने पूछा और मेरा जवाब हाज़िर हो गया.
वो कुछ उदास नज़रों से मेरी तरफ़ देख कर बोला- आप मुझे ग़लत समझ रही हैं. मैं शिवानी से नहीं डरता, जहां तक मेरी अपनी बात है. मैं तो सिर्फ़ आपके बारे में सोच कर डर रहा था कि अगर उसने कुछ कहा, तो तुम्हें कोई मुश्किल ना हो जाए.
जब उसने ‘आप’ से ‘तुम’ पर आते हुए मुझे ‘तुम्हें’ कहा तो मुझे वो बहुत अच्छा लगा. फिर हम लोग रेस्टोरेंट से बाहर निकले, तो दिन की रोशनी बहुत कम हो चुकी थी और जिस जगह से हम लोग गुजर रहे थे, वहां पर कोई आ जा नहीं रहा था.
तभी सागर ने मुझे अपने पास खींचते हुए मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- यह मेरे प्यार की निशानी तुम्हारे पास गिरवी है. जब भी तुम्हारा दिल करे, तो वापिस कर देना. अगर ना करना चाहो, तो मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा.
यह सब कुछ इतनी जल्दी से हो गया कि मुझे संभलने का कोई मौका भी नहीं मिला. तब तक सड़क पर कुछ लोग दिखने लग गए, जिससे कि दुबारा ऐसा कोई काम नहीं हो सकता था.
मैंने उसको ना कोई खुशी या किसी तरह का गुस्सा दिखाया और इस तरह से खुद को दिखाया कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
जब मैं घर पर वापिस आई, तो उसका फोन आ गया और बोलने लगा कि पूनम जी मैं बहक गया था, आप बुरा ना मानना … मुझे अपने किए पर बहुत अफ़सोस है. मैं आपसे माफी मांगता हूँ.
मैंने कहा- किस बात की माफी मांग रहे हो … और किस बात का अफ़सोस कर रहे हो?
उसने जवाब दिया कि जो मैंने आपके साथ रेस्टोरेंट से निकलने के बाद किया था.
मैंने कहा- क्या किया था … मुझे नहीं पता कि आप किस बात का ज़िक्र कर रहे हो?
यह सुन कर वो बोला- शायद मेरी ही ग़लती है कि मैंने आपसे फोन पर यह सब कहा.
मैं- हां अगर फोन करके ग़लती की है, तो मैं समझ सकती हूँ कि आप क्यों माफी मांग रहे हो. मगर आपने मुझे कोई पहली बार तो फोन किया नहीं है, कई बार कर चुके हो. फिर इस बात की माफी मेरी समझ से बाहर है.
उसने गुड नाइट कहते हुए फोन बंद कर दिया. मेरी हँसी रुक नहीं रही थी. क्योंकि जो काम उसने आज किया, वो तो मैं कई दिनों से इंतज़ार कर रही थी कि वो करे और गाड़ी आगे बढ़ने लगे.
दूसरे दिन उसकी ऑफिस में कोई मीटिंग थी और उसको शिवानी से ही काम था.
मीटिंग से पहले शिवानी मेरे पास आई और बोली- बोल डार्लिंग, कहूँ सागर से कि तुम्हें अपने लंड की सैर कराए. लड़का मस्त है, मेरा तो दिल उस पर कई बार आया था … मगर उसने कोई घास ही नहीं डाली.
मैंने कहा- तुम उससे कोई ऐसे बात नहीं करोगी, जिससे मेरे लिए कोई मुसीबत हो. अगर उसे कुछ मेरे साथ करना होगा, तो मैं उसे तभी करने दूँगी, जब वो पूरा और पक्का वायदा कर लेगा कि वो रास्ते में छोड़ कर नहीं जाएगा. इसलिए तुम अभी उससे कुछ ना कहना. जब कुछ होगा, तो मैं तुमको ही सबसे पहले बताऊंगी.
उसने कहा- जैसा मैडम का आदेश.
उसकी मीटिंग दोपहर तक चली, फिर उन दोनों ने ऑफिस की तरफ़ से लंच लिया. जब वो जाने लगा, तो मेरे पास से गुज़रते हुए बोला- शाम को मैं वहीं पर मिलूँगा.
वो यह सब इतनी धीरे से बोल कर गया था कि सिवा मेरे कोई और समझ नहीं पाया.
शाम को मैं फिर उससे मिली, तो इस बार उसने कोई माफी की बात नहीं की.
मैंने ही उससे पूछा- फिर शिवानी से मीटिंग कैसे रही? मेरा मतलब है कि उसने कुछ पूछा होगा ना कल के बारे में, जब हमें देखा था यहां पर?
वो बोला- मैं बहुत हैरान था क्योंकि उसने तो कोई जिक्र तक नहीं किया, जब कि मुझे पक्का विश्वास था कि वो ज़रूर पूछेगी. वो बहुत तेज लड़की है. उसने मुझे कई बार अपने साथ चलने के लिए कहा था, मगर मैं ही नहीं गया उसके साथ … वरना तुमसे कैसे मिल पाता. मेरी खुश किस्मती है कि मैंने उसका निमंत्रण स्वीकार नहीं किया.
अब ना तो वो किसी माफी की बात कर रहा था और ना ही किसी तरह से मुझसे बात करने में झिझक रहा था. उसके हाथ बार बार मेरी जांघों पर ना सिर्फ़ लगते थे … बल्कि ऊपर से नीचे घूम भी रहे थे. मैंने भी उसका कोई विरोध नहीं किया. न केवल मैंने उसे सब करने की पूरी आज़ादी दे दी … बल्कि मैंने अपनी दोनों टांगें भी किसी हद तक चौड़ी कर ली थीं ताकि अगर उसका हाथ मेरी चूत तक भी जाए तो जाने दूं. मगर उसकी हिम्मत वहां तक जाने की नहीं पड़ी. आज जब हम लोग वहां से निकलने लगे, तो उसने फिर से मुझ चूमा और मैंने भी उसका उत्तर चूम कर ही दिया. ताकि उसका हौसला कुछ और करने के लिए बढ़ जाए.
इस बात का बहुत असर होना शुरू हो गया. अब सागर ने मुझे पूनम जी कहना छोड़ दिया और सिर्फ पूनम बोलना शुरू कर दिया. मैं भी उसकी नज़दीकी पा कर बहुत खुश थी. मैं चाहती थी कि वो मुझसे वो सब कुछ करे, जो एक लड़का किसी लड़की से करता है. मगर वो शायद अभी कुछ झिझक रहा था.
मैंने सोचा क्यों ना इसको ज़्यादा खोलने के लिए शिवानी की सहायता ली जाए. फिर मैंने शिवानी से कहा- यार तुम सच ही कह रही थी, यह सागर तो बहुत रूखा सा इंसान है.
उसने कहा- अगर कहो तो मैं उसे इशारा करूँ कि वो तुमको दबा ले.
मैंने कहा- हां यार, दिल तो करता है मगर बदनामी से डर लगता है. फिर वो सोचेगा कि यह लड़की बहुत ही गंदे ख्यालों वाली है.
उसने कहा- वो तुम मुझ पर छोड़ो … उसे क्या और कैसे कहना है, वो मैं सब संभाल लूँगी और तुम्हारा नाम भी नहीं आएगा.
मैंने कहा- मैं तो नहीं चाहती कि तुम कुछ भी कहो, मगर मैं इस बारे में कुछ नहीं बोलूँगी.
उसने फिर एक दिन सागर को जब उसके साथ मीटिंग थी, तो बाद में कुछ कहा, जो उसने मुझको बाद में बताया था.
वो उससे बोली- सागर लगता है तुम काफ़ी बुद्धू हो. तुम पूनम को अपने हाथ से गंवाना चाहते हो क्या. मैं यह इसलिए कह रही हूँ कि मैंने तुम्हारी आंखों में उसके लिए कुछ खास देखा है. जब उसकी शादी किसी और से हो जाएगी, फिर हाथ मलते रहना. अगर उसके लिए दिल में सही में जगह है, तो उसको हाथ से ना जाने दो, वरना फिर नहीं मिलेगी.
उसने कहा- नहीं … मैं तो अब उसके बिना नहीं रह पाऊंगा.
शिवानी- फिर उसको अपना बना लो शादी से पहले ही … ताकि वो तुम्हारी ही बनी रहे. इसके लिए उससे एक बार बिना शादी के सुहागरात मना लो. वो इन्कार करेगी, यह भी मैं जानती हूँ मगर तुम मर्द हो और अपने मर्दानगी दिखा कर उसको एक बार अपने डंडे से अच्छी तरह से रगड़ कर रख दो. फिर तो तुम्हारे डंडे की हमेशा ही आस लगाएगी कि अब कब मिलेगा उसको.
वो हैरत से उसकी तरफ देखता रहा और बोला- क्यों मेरे सर के बाल खिंचवाना चाहती हो. अगर उसने कहीं किसी से शिकायत कर दी, तो मेरी नौकरी भी जाती रहेगी.
शिवानी ने कहा- नहीं जाएगी … बल्कि वो तुम्हारी पक्की हो जाएगी. अगर एक बार उसको इंजेक्शन लगा दिया न अपने डंडे का … वो फिर तुम्हारे डंडे की दीवानी बन जाएगी.
सागर- नहीं … यह नहीं हो सकेगा मुझसे.
शिवानी ने उसको समझाया कि देखो उसको पिक्चर के बहाने किसी ऐसे थियेटर में ले जाओ, जहां बस यही सब करने के लिए लड़के और लड़कियां ही जाते हैं. पिक्चर तो वहां पर बकवास सी लगी होती है. उसे ना तो कोई देखता है और न ही उसमें किसी का कोई ध्यान ही होता है. वहां जाकर उसके जिस्म से छेड़छाड़ करना, अगर वो कुछ नहीं कहे तो उसके कपड़ों के अन्दर भी हाथ मारना. फिर देखना उसका क्या असर होता है. मैं जहां तक समझती हूँ वो तुमको कुछ नहीं कहेगी. अगर एक दो बार हाथों को हटाए, तो भी तुम बार बार करना. फिर देखना मेरा कहना ठीक है या नहीं.
इसके बाद सागर वहां से चला गया.
आपको मेरी सेक्स कहानी कैसी लग रही है, इसको लेकर आप क्या सोचते हैं, प्लीज़ मुझे मेल जरूर करें.
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कहानी जारी है.