नमस्ते दोस्तों, आप सबकी तरह ही मैं भी अन्तर्वासना का बहुत बड़ा फैन हूँ. पहले अपना नाम आपको बता दूँ मैं सुनील गुप्ता हूँ. मुझे इधर लेखकों की आपबीती पढ़ कर लगता है कि ये एक ऐसा पटल है, जिसमें हर कोई अपनी बात को खुल कर रख सकता है. इसलिए आज मैंने भी सोचा कि मैं भी अपनी रियल सेक्स कहानी आपको सुनाऊं..
ये सेक्स कहानी क़रीब एक साल पहले की है. मेरे घर में मैं, मां और पिताजी ही हैं. मेरी उम्र उस समय 24 साल की थी. तब मुझे सेक्स का कोई अनुभव नहीं था. हां, जानता जरूर था और अधिक उत्तेजना होने पर खुद को मुठ मार कर शांत कर लेता था.
तब मैं ग्रेजुएशन कर चुका था और नौकरी के लिए प्रयत्न कर रहा था. तभी मेरे पड़ोस में एक परिवार का आगमन हुआ. उस परिवार में पति, पत्नी और एक तीन साल का बच्चा था. वैसे भी कालोनी में और भी कई भाभियां थीं, पर इन नई भाभी के सामने सबका हुस्न फ़ीका पड़ने जैसा लगा था.
चूंकि वो भाभी नई नई रहने आई थीं, तो उनसे जल्द ही काफी पारिवारिक मेल हो गया. मैं कभी कभी उनका सामान बाजार से भी ला देता. मुझे बाजार घूमने का मौका भी मिल जाता और भाभी को देखने का अवसर भी मिल जाता. उन मौकों पर कभी कभी मुझे भाभी को थोड़ा छूने का भी अवसर भी मिल जाता.
ऐसे ही एक महीना बीत गया और अब तक भाभी हमारे घर के सदस्यों के साथ भी घुल-मिल गई थीं.
अब कहानी आगे बढ़ाने से पहले मैं आपको भाभी के बारे में बताना चाहूँगा. भाभी शरीर में भरी पूरी थीं और उनका बदन काफी गदराया हुआ था. भाभी के सुडौल स्तन बहुत ही मनमोहक थे और थोड़े भारी थे. मुझे भाभी के बोबे और मटके जैसे चूतड़ों को निहारना बहुत अच्छा लगता था.
मेरी कमजोरी भी यही थी कि जरा से भाभी की चूचियां हिलीं या चूतड़ लचके, बस मैं उत्तेजित हो जाता था. फिर मुझे अपने लंड को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता था. पहला मौका मिलते ही मैं मुठ मार कर भाभी को अपनी कल्पनाओं में चोद लेता था.
इस सबके चलते मेरे तो लिए अब रोज का यही काम ही हो गया था. मैं भाभी को किसी न किसी बहाने निहारता ही रहता था. शायद भाभी को भी पता लग चुका था कि मैं उन्हें ही देखता रहता हूँ. उनकी तरफ से भी शायद मुझे उनके मस्त जिस्म को इस तरह से देखने का और भी ज्यादा अवसर मिलने लगा था, क्योंकि अब वो भी मुझे अपना गदराया हुआ बदन दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थीं.
मैं अब बस इसी फिराक में था कि कब भाभी को अपने नीचे ला सकूँ.
जिस वक्त मैं भाभी के मस्त मम्मों को निहारता या उनके मटकते हुए चूतड़ों को घूरता, तब शायद भाभी की तरफ से मिलने वाले ग्रीन सिग्नल भी यही बताते थे कि भाभी भी यही सब चाहती थीं.
अब तक मेरी और भाभी के बीच सिर्फ नजरों का एग्रीमेंट हुआ था … खुल कर इजहार नहीं हुआ था. पर हम दोनों के मन में डर था कि कहीं कोई देख न ले. यदि कोई हमारे इस रिश्ते को देख लेता, तो हम दोनों की इज्जत का फालूदा बन जाता.
भाभी को उनके पति से भय था, तो मुझे मेरे घर वालों का डर था कि अगर उन्हें पता लगा, तो मेरी खैर नहीं थी.
इसी उलझन में दो महीने निकल गए. हम दोनों अब देर तक बात भी करने लगे थे. हमारी बातों में कुछ ऐसे ही विषय रहते थे, जिनसे स्पष्ट होता था कि हम दोनों ही एक दूसरे के लिए जल रहे हैं … तड़प रहे हैं. हालांकि अभी तक हमारी बातें कभी सामान्य बातों से ऊपर जा ही नहीं पा रही थीं.
फिर एक दिन किस्मत चमकी या कह लो कि ऊपर वाले को हम दोनों पर दया आ गयी.
हुआ यूं कि बारिश के दिन थे. भाभी के घर पर भी ताला लगा हुआ था और घर में मैं भी बोर हो रहा था. मैंने अपनी बाइक उठायी और सोचा कि चलो मौसम का मजा लिया जाए. बारिश होने के पूरे आसार थे, तो मैं भी घर से निकल गया. अभी घर से निकले मुझे कुछ ही समय हुआ होगा कि बारिश शुरू हो गयी.
मैं बारिश का मजा लेता हुआ घूम ही रहा था कि तभी मैंने देखा कि भाभी भइया और उनका बच्चा सड़क पर खड़े भीग रहे थे.
मैंने भैया के पास जाकर पूछा, तो वो बोले- मेरी बाइक खराब हो गयी है. हम लोग ऑटो के लिए खड़े हैं. कोई ऑटो मिल जाए, तो घर जा सकें.
मैंने कहा कि आप मेरी बाइक ले जाओ, मैं यहां रुक जाता हूँ. आप भाभी और बच्चे को घर छोड़ आओ. बाद में आकर मुझे ले जाना.
लेकिन पता नहीं उन्होंने क्या सोचा और बोले- मैं बाइक को ठीक करवा कर ले आऊंगा, तुम इन दोनों को घर ले जाओ.
भूखे को क्या चाहिए … रोटी!
मैंने भी तुरंत हां बोल दिया और भाभी से बोला- ठीक है … भाभी आप बैठो.
भाभी भी अपनी गांड उठा कर झट से बाइक पर बैठ गईं.
मैंने मन में सोच लिया था कि आज आज तो कुछ आगे बढ़ा ही जाए.
घर अभी 5-6 किलोमीटर दूर था. बारिश भी हो रही थी. भाभी का एक हाथ पहले तो मेरा कंधे पर था, लेकिन फिर उन्होंने कमर से पकड़ लिया. आपको तो पता ही होगा कि आजकल कोई भी बाइक में पीछे कोई सपोर्टर नहीं लगता है. गिरने के डर से भाभी मेरी कमर को पकड़ कर बैठी थीं. मैं भी धीरे धीरे ही बाइक चला रहा था. उसी समय अचानक से मेरी बाइक एक गड्डे से निकली, तो भाभी एकदम से मेरे से सट गईं.
मुझे अपने कंधे पर उनके बड़े दूध की मुलायमियत का अहसास हुआ, तो मेरा लंड तन्ना गया.
फिर मैंने जानबूझ कर बाइके को गड्डे से निकालना शुरू कर दिया. भाभी के साथ उनका बच्चा हम दोनों के बीच में था. इस वजह से मुझे भाभी के बच्चे के ऊपर गुस्सा आ रहा था. साला बीच में बैठ गया था. पर मैं भी इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाला था.
मैंने भाभी का हाथ खींच कर कहा- भाभी, आप अच्छे से पकड़ो.
ये कहते हुए मैंने भाभी का हाथ अपने लंड पर रख दिया, जो जोश में फनफना रहा था.
शायद भाभी को मेरी इस हरकत की उम्मीद नहीं थी. उन्होंने झट से हाथ को पीछे कर लिया. हमारी इस क्रिया के दौरान बीच बैठा भाभी का बच्चा दबा जा रहा था.
फिर भाभी ने अपना हाथ दुबारा कंधे पर रख लिया, पर बोलीं कुछ नहीं. इससे मैं घबरा गया कि कहीं भाभी मेरी इस हरकत को भइया को न बता दें. इसके बाद मैंने भी आगे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं की.
जब हम घर पहुंचे, तो मैं सीधा अपने घर की तरफ जाने लगा. तभी पीछे से भाभी की आवाज आई- ज़रा रुको तो.
मैंने पीछे मुड़ कर देखा, मुझे लगा कि शायद भाभी मेरी उसी हरकत के बारे में कुछ कहेंगी.
पर भाभी ने कहा- पहले हमारे घर चलो, मैं चाय बनाने जा रही हूं, तुम चाय पी कर जाना.
मेरी मना करने की हिम्मत नहीं हुई. मैं भाभी के घर आ गया.
पहले तो भाभी ने मुझे तौलिया दिया- लो अपना सर पौंछ लो.
मैंने बिना कोई प्रतिवाद किए उनके हाथ से तौलिया ले ली और सर पौंछने लगा.
भाभी ने अन्दर जाकर चाय बनाने रखी और बाथरूम में कपड़े बदलने के लिए चली गईं.
जब वो कपड़े बदल कर निकलीं, मैं तो भाभी को देखता ही रह गया. उन्होंने रात में पहनी जाने वाली एक पारदर्शी मैक्सी पहन ली थी, जिसमें से उनका शरीर साफ़ दिख रहा था. भाभी ने अन्दर कुछ नहीं पहना था. उनकी चूचियों के निप्पल एकदम तने हुए थे, जो मैक्सी के ऊपर से साफ नुमाया हो रहे थे. नीचे भी मैक्सी के झीने कपड़े के कारण उनके चूतड़ों की गोलाई साफ़ साफ़ दिख रहे थे.
वो चाय लेकर आईं और झुक कर देने लगीं. उनकी उस मैक्सी के गहरे गले में से उनके मोटे मम्मे साफ दिख रहे थे. मैं भाभी के मस्त चूचे देखने लगा.
भाभी ने भी देख लिया कि मैं उनके मम्मे देख रहा हूँ. उन्होंने मुझे एक प्यारी सी चपत लगाते हुए कहा- क्या देखा जा रहा है?
मेरे में भी पता नहीं, किस हरामी की आत्मा घुस गई, मैंने भी बोल दिया- जो दिखाया जा रहा है … वही देख रहा हूँ.
मैंने बोल तो दिया था … पर मेरी गांड फट गई कि मैं ये क्या बोल गया.
तभी भाभी ने बोला- हम्म … अब समझी कि जो बाइक पर हुआ था, वो गलती से नहीं हुआ था … वो तुमने जानबूझ कर किया था. ये कहते हुए भाभी जी सामने वाले सोफे पर बैठ गईं.
मैंने उनकी इस बात के जबाव देने से बचने के लिए इधर उधर भाभी के बच्चे को ढूंढने की कोशिश की. जब मुझे वो नहीं दिखा, तो मैं उसी को ढूँढने की बात कहता हुआ उठा और भाभी के पास जाकर बैठ गया.
मैंने भाभी का एक हाथ हाथ में लिया और बोलने लगा- भाभी जी आप मेरी बात का बुरा मत मानना, मैंने जब से आप को देखा है, तब से ही मैं आपका दीवाना हो गया हूँ. मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ. मेरा कोई दिन ऐसा नहीं गया होगा, जब मैंने आपके बारे में न सोचा हो.
भाभी भी मेरी फिरकी लेने लगीं. वो बोलीं- तो मैं क्या करूँ? मैं तो तुम्हें इस तरह से नहीं देखती. मैंने तो तुम्हें एक अच्छा लड़का समझा था और बताओ तो तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो?
ये सब बोल कर भाभी चुप हो गईं. दो मिनट तक हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला.
तभी भाभी जोर से हंसने लगीं. भाभी की हंसने की देर थी कि मैंने समय न गंवाते हुए भाभी के होंठों पर होंठ रख दिए और उनको चूमने लगा. भाभी ने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया. अब हम दोनों एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में एक दूसरे को चूम चूस रहे थे. इसी चूमाचाटी में हम दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्था होने लगे. कभी भाभी मेरे नीचे, कभी मैं भाभी के नीचे.
भाभी की तरफ से हरी झंडी मिलते ही मेरे भी हाथ चलने शुरू हो गए. भाभी के जिन मम्मों को मैं इतने दिनों से देख रहा था, अब वे भाभी के वे मदमस्त मम्मे मेरे हाथ में आ गए थे.
पहले तो मैं भाभी के उरोजों को धीरे धीरे दबा रहा था. फिर थोड़ा दबाव दिया, तो भाभी को भी मजा आने लगा. भाभी की मादक सिसकारियां निकलना शुरू हो गयी थीं.
मैं भाभी के दोनों मम्मों को बारी बारी से दबा रहा था. मैंने देखा कि भाभी अपने एक हाथ से अपनी चूत को सहला रही थीं.
मैंने भाभी की मैक्सी उतारनी चाही, तो भाभी ने मना कर दिया. वे बोलीं कि अभी ऊपर ऊपर से ही कर लो. अभी तुम्हारे भैया आते ही होंगे.
उसी वक्त मुझे भाभी के बच्चे की याद आयी. मैंने भाभी से उसके बारे में पूछा, तो वो बोलीं- उसे नींद आ रही थी, तो उसे कमरे में सुला दिया है.
भाभी का इतना कहना था कि फिर से मैं शुरू हो गया. मैंने भाभी से कहा- भैया क्या इतनी जल्दी आ जाएंगे … और क्या आज भी मैं आपके घर से भूखा ही जाऊंगा?
उन्होंने हंसते हुए मेरा लंड पैन्ट से निकाला और मेरा खड़ा लंड देखते ही खुश हो गईं. भाभी बोलीं- अरे वाह … तेरा आइटम तो तेरे भैया से भी बड़ा और तगड़ा लग रहा है.
मैंने भाभी का सर अपने लंड की तरफ किया, तो भाभी ने भी देर न लगाते हुए मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया. भाभी लंड ऐसे चूसने लगीं, जैसे उनको कभी लंड मिला ही न हो. जिस तरह से भाभी मेरा लंड चूस और चाट रही थीं, उससे पता लग रहा था कि भाभी लंड चूसने में काफी अच्छी खिलाड़ी हैं.
कुछ ही देर में मैं भाभी के मुँह में ही झड़ गया और भाभी ने भी मेरा सारा का सारा माल लंड के ऊपर से साफ करके चाट लिया. भाभी ने लंड से निकली एक बूंद भी नीचे नहीं गिरने दी. लंड का रस चूसने के बाद भी उन्होंने लंड को नहीं छोड़ा था.
भाभी ने मेरे झड़े हुए लंड को लगातार चाटना जारी रखा. इससे हुआ ये कि थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा.
मैंने भाभी से कहा- भाभी अब मुझे आपकी चूत में झड़ना है.
भाभी बोलीं- तेरे से ज्यादा मुझे आग लगी हुई है … लेकिन अगर तेरे भैया आ गए, तो मज़ा बीच में अधूरा रह जाएगा. मैं इसी लिए बोल रही हूं कि अभी तुझे जो मिल रहा है, उसके मजे ले ले.
पर मैं कहां मनाने वाला था. मैंने भाभी से कहा कि आप एक बार फोन करके भैया की पोजीशन मालूम कर लो.
भाभी ने तुरंत फोन लगाया और भैया से पूछा कि आपकी गाड़ी सुधर गई. कितनी देर में घर आओगे?
भैया बोले- मुझे अभी कुछ देर लगेगी. तुम घर पहुंच गईं?
भाभी ने हां कहते हुए कहा- जब आप आने लगो, तो एक बार फोन कर देना. मुझे कुछ सामान मंगवाना है.
भैया ने ओके कह दिया.
मैंने फोन कटते ही भाभी को चूम लिया और कहा- वाह भाभी, तुम तो कमाल की चीज हो.
भाभी हंस दीं और मुझसे लिपट गईं.
अब मैंने भाभी को लिटाया और उनकी मैक्सी कमर से ऊपर कर दी. आह बिना पैन्टी के भाभी की मस्त चूत मेरी आंखों के सामने खुली हुई थी. एक गुलाब के फूल की पंखुरियों की तरह चुत की फांकें फूली हुई थीं. चुत भी एकदम साफ चकाचक थी. चुत पर झांट का एक भी बाल नहीं था.
भाभी की चिकनी चुत देखते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने होंठ सीधे भाभी की चूत पर लगा दिए. भाभी अब बस सिसकारियां लिए जा रही थीं.
मैंने समय न गंवाते हुए अपना फनफनाता हुआ लंड उनकी चूत के मुँह पर जैसे ही लगाया, नीचे से भाभी खुद गांड उठा कर धक्का लगाने लगीं. मैंने भी एक जोर का धक्का लगाया और मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर घुस गया.
भाभी ने अपने होंठों को दांतों से दबा रखा था. उनको लंड लेने में बहुत मज़ा आ रहा था. भाभी की चूत इतनी गर्म थी कि मेरा लंड अन्दर की गर्मी पाकर और भी मोटा हो गया था. मैंने दूसरा धक्का देते हुए अपना पूरा लंड भाभी की चूत में डाल दिया और धक्के मारने लगा.
नीचे से भाभी अपनी कमर ऊपर उठा रही थीं और मेरा साथ दे रही थीं.
पांच मिनट में ही भाभी ने मुझे कसकर जकड़ लिया और बोलीं- मेरा माल आने वाला है.
मैं धक्का मारता ही जा रहा था. मैंने सोचा कि भाभी झड़ने वाली हैं. मैं भी साथ में झड़ जाऊं.
मगर भाभी झड़ गई थीं. वे हांफते हुए बोलीं- आह बस करो.
मैंने कहा- मैं अभी नहीं झड़ा हूँ.
भाभी- तो जल्दी करो.
मैंने गति तेज़ कर दी और थोड़ी देर बाद मेरे लंड का रस भी भाभी की चूत में गिरने लगा था. मुझे बहुत मज़ा आया.
थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे. फिर दोनों अलग-अलग हुए. जैसे ही भाभी की चूत से मैंने अपना लंड निकाला, ढेर सारा वीर्य उनकी चूत से बाहर निकलने लगा. चूत से सफ़ेद-सफ़ेद रस बाहर निकलते देख, मुझे बहुत खुशी हुई.
तभी भैया का फोन आ गया और उन्होंने कहा- क्या लाने का कह रही थीं?
भाभी ने कहा- एक किलो आलू लेते आना … बाकी सामान मैं बाद में बता दूंगी, तो कल ले आना.
इसके बाद हम दोनों अलग हुए और एक दूसरे को साफ करने लगे. मुझे पता था कि भाभी के पति कभी भी आ सकते थे.
हमने जल्दी जल्दी एक दूसरे को संभाला और अपने अपने कपड़े ठीक करके बैठ गए. भाभी ने एक सलवार सूट पहन लिया. भाभी के चेहरे पर एक अलग ही खुशी झलक रही थी.
मैंने पूछा- भाभी अभी से इतना खुश हो गईं … अभी तो मैंने आपको अच्छी तरह चोदा भी नहीं है.
भाभी ने हंसते हुए कहा- फ़िल्म का ट्रेलर ऐसा है … तो पूरी फिल्म कितनी अच्छी होगी.
उनके ये बोलते ही हम दोनों हंसने लगे.
कुछ देर बाद भैया भी आ गए. फिर मैंने उनसे थोड़ी देर बात की … ताकि उन्हें कोई शक न हो. इसके बाद मैं अपने घर आ गया और भाभी को अच्छी तरह से चोदने का मौका ढूंढने लगा.
फिर जल्दी ही हमें एक मौका भी मिल गया. उस दिन भाभी की चुदाई की कहानी जरा विस्तार से लिखूँगा, तो आपको भी मजा आएगा. वो पूरी सेक्स कहानी मैं किसी और दिन बताऊंगा.
आपको मेरी यह सच्ची सेक्स कहानी कैसी लगी, मुझे मेल करें.
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