यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
हमारे बीच चुम्बन का सिलसिला आम हो गया था। जब भी हम फ्री होते, हमें एकांत मिलता हमारे होंठ आपस में जुड़ जाते।
ऐसा कई दिन चला। हमारी प्यास बढ़ने लगी थी। अब तक रानी की भी फाइनल ईयर कम्पलीट हो गई थी। हमारे मिलने का एक सबसे बड़ा बहाना कम हो गया था। हालांकि उसके घर पे उसे कोई रोक टोक नहीं थी, खास कर मेरे पास आने से। उसके घर वालों से मेरे अच्छे सम्बन्ध बन चुके थे लेकिन फिर भी बिना काम के आना और सारा दिन रुकना बिना किसी बहाने से मुश्किल ही था।
हमने उसका हल निकाला, रानी ने एक कोर्स में एडमिशन लिया और साथ साथ अपने बैंकिंग की तैयारी करने लगी।
वक़्त अपनी रफ्तार से चल रहा था। हम प्यार भी धीरे धीरे हमारे किस होंठों से आगे बढ़ने लगा। होंठों के साथ गले, कानों के नीचे और न जाने कहाँ कहाँ!
गर्मियों के मौसम आ चुका था, शरीर पर कपड़े हल्के फुल्के ही होते थे। हम कपड़े उतारते तो नहीं थे लेकिन उठा लेते थे। हम इतने में ही खुश थे, आगे की ना तो हमें कोई चाहत थी और ना हम ने कोई कोशिश की।
एक दिन किसी हडताल की वजह से सारा शहर रुका हुआ था। स्कूल और कॉलेज में भी छुट्टी का माहौल था। उस दिन अकैडमी पर कोई नहीं था सिवा मेरे और रानी के। वैसे तो ऐसे मौके कई होते थे लेकिन चहल पहल लगी रहती थी। आज मौसम भी रोमांटिक था और किसी के आने का भी कोई चक्कर नहीं था।
थोड़ी देर तक हम बैठ कर पढ़ते रहे। वो मेरे सामने बैठी थी। हमारे बीच में टेबल थी। बीच बीच में हम एक दूसरे को छेड़ देते थे। मैं पैर के अंगूठे से उसकी पिंकी को दबा देता था और वो मेरे पप्पू को।
कुछ देर पढ़ने के बाद हम बोर हो गए और भूख भी लगी थी। मैं छोले भटूरे ले आया, हम दोनों ने एक दूसरे को खिलाया और खाया। खाते भी हम शरारतें कर रहे थे। कोई आये ना इसलिये मैंने मेन गेट को अंदर से लॉक कर दिया था।
तभी लाइट चली गई, ए सी बंद हो गया। जनरेटर मुझे चलाना नहीं आता था और स्टाफ छुट्टी पर था। इन्वर्टर पर सिर्फ पंखा चल सकता था। बेसमेंट होने की वजह से थोड़ी देर बाद घुटन सी होने लगी। गर्मी उफान पर थी। हम दोनों पसीने पसीने होने लगे थे। मैंने शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिये थे।
रानी बोली- लड़को का सही है। गर्मी लगी तो बटन खोल दो, शर्ट उतार दो चाहे! पर हम लड़कियां क्या करें?
मैंने कहा- आगे पीछे का तो मैं बता नहीं सकता, लेकिन इस वक़्त तुम भी खोल सकती हो। चाहो तो टॉप निकाल दो।
उसने मना कर दिया।
थोड़ी देर ऐसी ही बाते करते रहे। अब तक लाइट भी आ गई थी। मैंने रानी को अपनी गोद में बैठा लिया और हम चुम्बन करने लगे। किस करते करते मैं उसके वक्ष दबाने लगा। वो सिसकारियां
लेने लगी।
मैंने उससे पूछा- टॉप निकाल दूं क्या?
उसने मना कर दिया लेकिन टॉप ऊपर उठा कर और ब्रा के हुक खोल कर बूब्स को फ्री कर दिया।
रुई के गोले जैसे नर्म मुलायम उसके बूब्स मेरे हाथों में झूल रहे थे। मैं उन्हें मुंह में भर कर चूसने लगा। रानी की पीठ मैंने दीवार से लगा दी थी। वो सिसकारियां लेती हुई मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी।
कुछ देर बूब्स चूसने के बाद मैं फिर उसके होंठ चूसने लगा था। एक हाथ से मैं उस की पिंकी को पैन्ट के ऊपर से ही दबा रहा था।
रानी सिसकती हुई बोली- गुदगुदी हो रही है.
मैंने कहा- गुदगुदी ही तो करनी होती है। तुम्हें मजा आ रहा है या नहीं?
उसने कहा- बहुत मजा आ रहा है। ऐसे ही करते रहो.
मैंने अपना हाथ उसकी जीन्स में घुसा दिया और पैन्टी के ऊपर से ही पिंकी को मसलने लगा। रानी अपने होश खो रही थी। उसकी जीन टाइट होने की वजह से हाथों को ज्यादा मूवमेंट नहीं मिल रही थी तो मैंने उसे जीन्स खोलने के लिए पूछा। उसने सिसकारते हुए हामी भर दी, मैंने जीन्स को खोल कर उसके घुटनों तक सरका दी।
पैन्टी के अंदर पिंकी फूली हुई नजर आ रही थी और थोड़ा थोड़ा पानी भी छोड़ चुकी थी। मैंने नीचे बैठ कर पैन्टी के ऊपर से ही पिंकी को किस किया। फिर मैंने पैन्टी को भी नीचे सरका दिया। उस की पिंकी पर थोड़े थोड़े बाल थे।
मैंने कहा- आगे से पिंकी को हमेशा क्लीन शेव रखना!
मैं पिंकी को मसल रहा था और रानी की सिसकारियां बढ़ती जा रही थी। मैंने उसकी पिंकी को किस करना शुरू कर दिया। रानी एकदम से तड़प उठी। मैंने अपनी एक उंगली पिंकी में धीरे धीरे घुसा दी। उसके चेहरे पे हल्के से दर्द की लकीरें उभरने लगी। मैंने उंगली और ज्यादा नहीं घुसाई और खड़ा होकर रानी के होंठों को चूसने लगा।
कुछ मिनट तक उसकी पिंकी में उंगली करने से रानी डिस्चार्ज हो गई। उस के चेहरे पर सुकून था। हम दोनों की साँसें तेजी से चल रही थी।
मैंने कहा- तुम तो फ्री हो गई, मेरा कैसे होगा?
रानी बोली- मुझे क्या पता? आप ही जानो। मैं तो आप से ही सीख रही हूँ.
मैंने कहा- अच्छा मैं ही मिला था तुम्हें बुद्धू बनाने के लिए?
रानी बोली- अरे ऐसे तो मुझे पता है कि कैसे होता है? लेकिन सेक्स किये बिना आपका कैसे होगा वो मुझे नहीं पता.
मैंने कहा- तरीके तो कई होते हैं। जैसे कि या तो तुम पप्पू को मुंह में लेकर कुल्फी की तरह चूसो तब तक जब तक कि पप्पू फारिग ना हो जाये। या फिर तुम हाथ से करो या फिर मैं पप्पू को पिंकी के अंदर डालें बिना तुम्हारी जांघों के बीच रखूं और धक्के लगाऊं। तुम बताओ कौन सा तरीका तुम्हें सही लगता है? वैसे मेरा मन है कि तुम मुंह से करो.
रानी एक दम से बोली- नहीं! वो छी है.
मैंने कहा- छी नहीं होता, यही तो मजा देता है। मैंने भी तो किस्सी की थी ना तुम्हारी पिंकी को.
वो बोली- वो बात ठीक है लेकिन मेरा नहीं मन … और मुझे पता है आप मुझे फ़ोर्स नहीं करोगे.
मैंने कहा- तो फिर जैसे तुम्हें ठीक लगे वैसे कर दो.
उसने मुझे टेबल के सहारे बैठा दिया, खुद नीचे घुटनों के बल बैठ गई और पप्पू को अपने हाथों में पकड़ लिया और धीरे धीरे हाथों को आगे पीछे करने लगी। आनन्द के मारे मेरी आँखें बंद हो गई। उसके छोटे छोटे, नर्म नर्म हाथों में पप्पू फूला नहीं समा रहा था। एक हाथ से वो पप्पू को मसल रही थी और दूसरे हाथ से गोटियों के साथ खेल रही थी।
एकदम से मेरी आँख खुली क्योंकि रानी मेरे पप्पू को पप्पियाँ दे रही थी। उसका मन था मेरी इच्छा का करने का लेकिन पहली बार होने के कारण वो खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी। आज के लिए मेरे लिए इतना भी बहुत ज्यादा था।
वो थोड़ी देर तक ऐसे ही पप्पू के साथ खेलती रही, पप्पू के लिए इतनी खुशी संभालना मुश्किल हो गया था। मैंने उसे थोड़ा पीछे हटने के लिए कहा। मेरी सांसें तेज हो चुकी थी और एक झटके से पप्पू ने अपना पानी छोड़ दिया।
हम दोनों ही खुश थे और एक दूसरे को देखे जा रहे थे।
फिर मैंने उसे हग किया। कुछ देर तक हम बैठे रहे। वो मेरी गोदी में बैठी थी कुछ देर हम ऐसे ही प्यारी प्यारी बातें करते रहे। फिर वो घर चली गई।
थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं भी घर आ गया।
फिर आया एक ऐसा मौका जिससे हम दोनों ही शॉक्ड थे। समझ नहीं आ रहा था इस से हमें खुश होना चाहिए या उदास। रानी का बैंक में सिलेक्शन हो गया था। उसे बैंक के हैड क्वार्टर में रिपोर्ट करना था डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन और शायद 20 दिन की ट्रेनिंग थी। हैड क्वार्टर दो हजार किलोमीटर दूर था। अब शहर का नाम नहीं बताऊंगा मैं लेकिन एक हिंट देता हूँ। उस शहर के अपने नाम पे कोई जंक्शन नहीं है और उस स्टेशन पे कोई भी रेलगाड़ी कभी क्रॉस नहीं करती।
इस बात से हम दोनों ही सिहर उठे थे। एक दूसरे से दूर होने के ख्याल से ही हम कांप उठते थे। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। अब रानी की जॉब लगी थी, और रानी के पापा बहुत खुश थे। वे चाहते थे कि रानी ये जॉब करे। रानी मुझसे दूर नहीं होना चाहती थी लेकिन वो ये जॉब छोड़ कर अपने पापा का दिल भी नहीं दुखाना चाहती थी।
आखिरी फैसला उसने मुझ पे छोड़ा। मैंने भी भारी मन से उसे कहा कि वो ये जॉब जरूर करे। कहीं न कहीं मुझे पता था कि आज नहीं तो कल हमारा रिश्ता खत्म होना ही था। मुझे लगा यही सही समय है, मौका भी सही है। रानी के जाने के बाद मैं भी अपने काम और आगे की पढ़ाई पे ध्यान दे पाऊंगा। और रही बात प्यार की तो दूरियों से भी प्यार बढ़ता ही है।
आखिर एक दिन रानी जॉब जॉइन करने चली गई। वो जहाँ गई थी वो एक खूबसूरत शहर है लेकिन अफसोस कि वो शहर भी रानी को अपने हुस्न में बांध नहीं पाया। तीसरा दिन आते आते रानी का सब्र जवाब दे गया। वो मुश्किल से 5 बजे तक ट्रेनिंग अटेंड करती और वहाँ से आते ही मुझे फ़ोन करती थी। मैं भी सब कुछ छोड़कर उसके फ़ोन के इंतजार में बैठा रहता था।
दो दिन तक तो उसने मुझे बताया यहाँ गए, वहाँ गए, ये देखा, वो देखा, लेकिन तीसरे दिन रानी बात करते करते रोने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोली- मुझे नहीं रहना यहाँ, मुझे आपके पास आना है।
मैंने कहा- कुछ दिन की ही तो बात है, फिर तुझे वापस आना ही है यहाँ हम सबके पास.
वो बोली- नहीं, मुझे अभी आना है, मुझे आपकी गोदी में सोना है, आपकी पारी करनी है।
मुझे उसकी बातें सुन कर उस पे प्यार भी आ रहा था और खुद पे गुस्सा भी कि क्यों मैंने उसे खुद के इतने करीब आने दिया कि वो दूर ही ना जा सके।
खैर अब जो बीत गया उसे तो नहीं बदला जा सकता था। मैंने वर्तमान को संभाल कर भविष्य बदलने की सोची। जैसे तैसे कर के मैंने उसे अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के लिए मनाया। बदले में उसने मुझसे वादा लिया कि उसकी ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उस के सोने तक मुझे रोज उस के साथ फोन पर बात करनी पड़ेगी और ट्रेनिंग के बाद वो दो दिन एक्स्ट्रा वहाँ रुकेगी, मुझे वहाँ उसे घुमाने और उसे लेने जाना पड़ेगा।
पहली बात की तो मैंने हाँ भर दी लेकिन दूसरी की बात के लिए मेरी हाँ से ज्यादा उसके परिवार की परमिशन ज्यादा जरूरी थी।
उसने कहा कि वो बात अपने घर पे खुद करेगी।
मैं बोला- ठीक है।
अब अगले 10 दिन तक ऐसे ही चलता रहा। वो रोज शाम को ट्रेनिंग से आने के बाद मुझे कॉल करती और उसके सोने तक हम लोग बात करते।
यह वक़्त अक्टूबर नवंबर का रहा होगा।
एक दिन रानी के पापा का कॉल आया। उन्होंने मुझे कहा- तुम्हें रानी को लेने जाना है और टिकट बनवा लेना।
मैंने कहा- जी अंकल, ठीक है। जैसे आप कहें!
मैं थोड़ा हैरान था, थोड़ा परेशान भी। मैंने घर पे अकैडमी के काम से जाने का बहाना बनाया।
रानी की ट्रेनिंग के आखिरी दिन से एक दिन पहले मैं पहुँच गया। उस दिन शनिवार था। रानी की ट्रेनिंग रविवार को खत्म होनी थी और हमें सोमवार को दोपहर की फ्लाइट लेनी थी।
मेरे आने की खुशी में रानी से अपने ट्रेनर से बोल कर शनिवार और रविवार की छुट्टी ले ली। हालांकि वो मुझसे गुस्सा हुई कि दो दिन बाद की टिकट क्यों नहीं बनवाई।
मैंने कहा- किसी को भी शक हो गया तो गलत होगा। और वैसे भी मेरा घूमने का कोई मन नहीं, और तुम घूम चुकी हो।
खैर कोई बात नहीं। मेरे पहुँचने तक रानी ने हाफ डे की ट्रेनिंग अटेंड कर ली थी और वो छुट्टी लेकर आ गई।
कहानी जारी रहेगी.
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