यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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इस पोर्न स्टोरी में अब तक आपने पढ़ा कि मैं नम्रता को अपने घर की खिड़की से घोड़ी जैसी बना कर उसकी गांड में लंड पेल रहा था.
अब आगे:
नम्रता ने अपने हाथों को खिड़की से टिकाकर अपने जिस्म का वजन टिका दिया.
आह-आह, ऊ ऊ ओह-ओह.. की मादक आवाज के साथ अपनी गांड चुदवा रही थी. जैसे-जैसे मेरे धक्के मारने की स्पीड बढ़ती जा रही थी, मेरी जांघ और उसके कूल्हे के टकराने की थप-थप की आवाज मेरे उन्मादों को बढ़ा रही थी.
गांड चुदाई चालू थी.. साथ ही आह-आह, ओह-ओह, थप-थप की आवाज भी आपस में सुर ताल मिला रहे थे.
नम्रता बोली- शरद, मेरी गांड का बाजा तुमने अच्छे से बजा लिया, मेरी चूत भी तुम्हारे लंड के लिए मरी जा रही है. तब से अपनी चूत की आग को शांत करने के लिए खुद ही सहला रही हूं, अगर तुम अपना लंड की कृपा मेरी चूत पर भी कर दो, तो वो भी थोड़ी खुश हो जाएगी.
उसकी इस बात को सुनकर, मैंने लंड को उसकी गांड से बाहर निकाल कर नम्रता को गोद में उठाया और डायनिंग टेबिल पर लेटाते हुए उसके मम्मों को पीने लगा. फिर उसकी टांगों को अपनी गर्दन पर रखकर ढेर सारा थूक अपनी हथेली में लेकर उसकी चूत के मुहाने को अच्छे से गीला किया और लंड से थोड़ी देर तक उसकी चूत को सहलाता भी रहा. जब नम्रता को बर्दाश्त नहीं हुआ, तो उसने लंड को पकड़ा और थोड़ा आगे की तरफ खिसककर लंड को अन्दर ले लिया और अपनी कमर को चलाने लगी.
बस एक बार धक्का लगना क्या शुरू हुआ कि फट-फट, फक-फक की आवाज सुनाई पड़ने लगी. नम्रता भी आह-ओह के साथ अपने फांकों के अन्दर उंगली चलाती जा रही थी.
जब मैं उसकी गांड की चुदाई करने लगता था, तो वो अपनी पुत्तियों को मसलने लगती, या फिर उंगली चूत के अन्दर डालने लगती.
मेरा निकलने वाला था और मेरा गीला लंड मुझे बता चुका था कि नम्रता फारिग हो चुकी है.
मैंने नम्रता से कहा- मेरा निकलने वाला है, अन्दर निकालूँ या फिर?
नम्रता- नहीं अन्दर मत निकालो, मेरे मुँह को भी चोद दो और अपना स्वादिष्ट वीर्य मुझे पिला दो, फिर पता नहीं कब मौका मिले.
मैंने तुरन्त लंड बाहर निकाला, नम्रता टेबिल से नीचे उतरी और घुटने के बल बैठकर मेरे लंड को मुँह में लेकर उसकी चुदाई करने लगी. जैसे ही मेरे लंड ने माल छोड़ना शुरू किया, वो रूक गयी और मुँह के ही अन्दर लंड लिए हुए माल को लेने लगी. जब तक मेरे लंड का माल पूरा पी नहीं लिया, तब तक उसने लंड को मुँह से बाहर नहीं निकाला.
ढीला पड़ने पर जब लंड बाहर आ गया, तो सुपाड़े पर लगी हुई एक दो बूंद को उसने जीभ से चाट कर साफ कर दिया.
थोड़ी देर तक हम दोनों वहीं जमीन पर बैठ गए. इस बीच टाईम अपनी गति से बढ़ता जा रहा था, जब हमारी नजर टिक-टिक करती हुई घड़ी पर पड़ी, तो दोनों के ही चेहरे उदास हो गए. क्योंकि इन दो-तीन या ढाई दिन, जो भी आप लोग कहना चाहें एक-दूसरे के काफी करीब आ गए थे. हम दोनों के ही दिल कह रहे थे कि समय ठहर जाए, पर वो मानने वाला नहीं था.
खैर, नम्रता खड़ी हुई और अपनी साड़ी उतारने लगी.
मैंने कहा- ये क्या कर रही हो?
वो बोली- रात को मियां जी, जब मेरी चूत सूंघेगा, तो इसमें से तुम्हारी महक आएगी, जो मैं नहीं चाहती, इसलिए मैं नहाना चाहती हूँ.
मैं- हां तुम्हारी बात सही है, अपना प्यार हमें अपने पास ही रखना चाहिये, आओ चलो, दोनों साथ ही नहा लेते हैं.
फिर हम दोनों बाथरूम में घुस गए और दोनों अच्छे से रगड़-रगड़ के नहाये. उसके बाद नम्रता ने अच्छे से श्रृंगार किया. मैंने भी अपने हिसाब से अपने को तैयार किया.
एक बार फिर लोगों की नजर से बचते हुए हम मेरे घर से बाहर निकले. हमने रास्ते में एक अच्छे से रेस्टोरेन्ट में नाश्ता किया और फिर नम्र्ता को उसके घर छोड़ कर अपने घर आ गया.
काश नम्रता का परिवार भी एक दिन बाद आता, तो आज रात भी मेरे लंड को नम्रता की चूत चोदने का मजा मिल जाता. मैं अपने ख्यालों में ही खोया रहा कि मेरे फोन की घंटी बजी.
नम्रता का फोन था, बोली- शरद, क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं. अपने लंड को अपने हाथ में लेकर तुम्हें याद कर रहा हूं. तुमने कैसे फोन किया?
नम्रता- कुछ नहीं, तुम्हारी याद आ रही थी. अभी इन सबके आने में समय था, तो सोचा तुमसे फोन पर बातें करके मन को बहला लूं.
मैं- थैक्स यार, अच्छा याद है न तुम मुझे अपनी चुदाई का किस्सा सुनाओगी न. नम्रता- बिल्कुल मेरी जान, मुझे भी तो देखना है कि मेरा शेर, कैसे मेरी चूत मारता है.
मैं- अगर तुम्हारे शेर ने तुम्हारी चूत के साथ-साथ तुम्हारी गांड में भी लंड पेला तो?
नम्रता- मैं कोशिश करूँगी कि अभी कुछ दिन वो मेरी गांड में हाथ भी न लगाये, फिर भी अगर उसने मेरी गांड मारने का मन बना लिया, तो जो होगा देखा जाएगा.
इसी तरह मेरे और उसके बीच बातें चलती रही.
फिर वो बोली- अब फोन काट रही हूं लगता है, सभी लोग आ गए हैं.
ये कहकर उसने फोन काट दिया. मैं अपना ध्यान भटकाने के लिए टीवी देखने लगा.. पर समय जो थोड़ी देर पहले तक तेजी से भागा जा रहा था, उसकी गति अब काफी कम हो चुकी थी. फिर भी मैं कभी लेटता, तो कभी उठकर बैठ जाता, तो कभी बारजे में टहलने के लिए चला जाता. मुझे बड़ी मुश्किल से नींद आयी.
सुबह मेरी नींद अपने समय पर खुल गयी और घड़ी की तरफ देखते हुए मैं जल्दी जल्दी तैयार होने लगा, क्योंकि स्कूल में नम्रता से मुलाकत होगी.
मैं जल्दी-जल्दी स्कूल पहुंचा, लेकिन तब तक नम्रता स्कूल नहीं आयी थी, पर उसका मैसेज जरूर आ गया. जिसमें लिखा था कि मैं नहीं आ पाऊंगी, मैनेज करवा दीजिएगा.
मतलब आज बेमन से काम करना होगा. स्कूल की छुट्टी होने तक मैं अपना काम करता रहा और फिर घर आ कर सो गया.
करीब 7 बजे नींद खुली तो मेरी फैमिली के भी आने का समय हो चला था. मैं झटपट उठा, मार्केट गया, कल के लिए सब्जी वगैरह खरीद कर, होटल से सभी के लिए खाना ले आया. फिर स्टेशन की तरफ चल दिया. सभी लोग घर आ चुके थे. सब कुछ निपटा कर मेरी श्रीमती कमरे में आ गयी. वो नाईटी पहन कर मेरे सीने पर अपना सिर रख कर, उंगलियों के बीच मेरे सीने के बालों को फंसा कर मरोड़ने लगी.
फिर बोली- सुनिये!
मैं- हां बोलो क्या बात है?
बीवी- तुम्हारे बिना वहां मन नहीं लग रहा था.
इतना कहते ही उसने मेरे सीने में एक गहरा चुम्बन जड़ दिया.
दोस्तों, सामान्यत: मैं रात को घर में केवल लुंगी पहन कर ही सोता हूँ. पिछले 36 घंटे के बाद मेरे सीने में एक बार फिर से उंगली चली, तो स्वाभाविक रूप से मेरे लंड महराज फुदकना शुरू हो गए. इस बीच मेरी बीवी रेखा ने अपनी टांगें मेरी टांगों पर चढ़ा दीं.
अब मैं भी उसकी पीठ और चूतड़ को सहला रहा था. रेखा का हाथ मेरी छाती से फिसलता हुए नाभि के पास थोड़ी देर रूका और फिर लुंगी के अन्दर चला गया और मेरे फुदकते हुए लंड को ढूंढने लगा. जब उसके हाथ में मेरे फुदकता हुआ लंड पकड़ में आ गया, तो रेखा उसे उमेठने लगी और मेरे चूचुक को दांतों से काटने लगी. मेरा हाथ भी कहां रूकने वाला था, मैं रेखा की नाईटी उठाकर उसकी चूतड़ को सहलाते हुए उंगली उसकी दरारों के बीच चलाने लगा.
नम्रता ने मेरी लुंगी खोल दी और साथ ही साथ अपनी नाईटी भी उतार फेंकी. फिर थोड़ा ऊपर मेरे मुँह की तरफ खिसकते हुए अपने मम्मे को मेरे होंठों से टच कराने लगी. एक पल बाद दूर हटा दिया. फिर मम्मों को अपने हाथ में लेकर मेरे मुँह में निप्पल डालने लगी. मैं भी उसके निप्पल पर अपनी जीभ फेरता और होंठों के बीच ले लेता हुआ चूसने लगा.
इस क्रियाओं के बीच मेरा लंड एकदम से लोहे की राड की तरह से तन चुका था, मैंने रेखा को अपने नीचे लिया और उसके साथ फोरप्ले करने के लिए उसके निप्पल को मुँह में लेकर चूसने लगा. साथ ही उसकी चूत में हाथ फिराने लगा. लेकिन रेखा ने लंड पकड़ लिया और चूत के मुहाने से रगड़ने लगी और अपनी कमर उचकाकर लंड को अन्दर लेने का प्रयास करने लगी.
मेरे सामने उसकी चूत में लंड डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, सो मैंने भी अपने आपको उसकी तरफ पुश किया ताकि लंड आसानी से अन्दर चला जाए.
बस फिर क्या था, तने हुए लंड को होल को और खोदना था, सो लंड अपनी स्पीड से बुर चोदने लगा.
थोड़े समय के बाद मेरा लंड गीला होने लगा था, मतलब साफ था कि रेखा पानी छोड़ रही थी. फच-फच की आवाज तेज हो चुकी थी, मेरे धक्के के कारण रेखा का जिस्म हिल रहा था और साथ ही उसकी चुचियां भी हिल-डुल रही थीं.
रेखा से थोड़ी देर ज्यादा मेरी ट्रेन दौड़ी और फिर रेखा की चूत के ही अन्दर मेरे लंड ने उल्टी करनी शुरू कर दी.
जब लंड से पूरा माल निकल गया, तो मैं निढाल होकर रेखा के ही ऊपर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद लंड चूत के बाहर निकल गया और मैं रेखा के ऊपर से उतरकर बगल में लेट गया. मैंने आंखें मूंद लीं, पर रेखा ने करवट ली और एक बार फिर मेरी जांघ पर अपने पैर चढ़ा दिए.
थोड़ी देर तक तो वो मुझसे खूब कस कर चिपकी हुई थी, पर यही कोई पंद्रह-बीस मिनट बीते होंगे कि उसके उंगलियां एक बार फिर मेरे सीने के बालों से, मेरे निप्पल से खेलने लगीं. और तो और इस बार वो अपनी हथेलियों को मेरी जांघों पर कस कस कर रगड़ रही थी और लंड को उमेठ रही थी.
मैंने अपनी आंखें मूंदी रखीं और रेखा से पूछा कि क्या बात है.. आज बड़ा प्यार उमड़ रहा है मेरे ऊपर?
उसने एक हल्का सा मुक्का मेरे सीने पर ठोकते हुए कहा- आप बड़े वो हैं?
फिर वो शिथिल हो गयी, उसके शिथिल होने से मैं उसकी पीठ सहलाते हुए बोला- अरे नराज हो गयी क्या?
रेखा- अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.
इतना कहने के साथ ही रेखा ने एक बार फिर अपने होंठों का, अपनी उंगलियों का कमाल दिखाना शुरू कर दिया.
मैं जानता था कि रेखा खुलकर सेक्स नहीं करेगी, फिर भी वो जैसा प्यार कर रही थी, वो ही बहुत था. पर थोड़ा परिवर्तन था इस बार, वो मेरे लंड को पहले बड़ी मुश्किल से पकड़ती थी, लेकिन आज वो न सिर्फ मेरे लंड को पकड़ रही थी बल्कि सुपाड़े को अपने अंगूठे से अच्छे से रगड़ रही थी, बीच-बीच में मेरे अंडकोष से भी खेल रही थी. रेखा के साथ यह मेरा नया एक्सपीरिएंस था. सामान्यत: थोड़ा चूमा-चाटी के बाद.. वो भी उसके मम्मे और होंठ तक ही सीमित रहता था, फिर वो अपनी टांगें फैला देती थी और मैं अपने लंड को उसकी चूत में डालकर धक्के देना शुरू कर देता था. फिर उसके अन्दर ही मैं माल छोड़ देता था और फिर दोनों मियां बीवी करवट बदलकर सो जाते थे.
पर आज ऐसा कुछ नहीं था, इतनी देर में रेखा ने तो मेरे निप्पल को अच्छा खासा गीला कर दिया था और मेरे चूचुक भी तन गए थे.
यही नहीं रेखा भी अपने हाथों से अपनी चूची को पकड़कर मेरे मुँह में ठूंस रही थी.
बस मेरे मुँह से यही निकला- आज तो मजा आ गया.
मेरे इस शब्द ‘मजा आ गया..’ का असर रेखा को कर गया था. उसने मेरी तरफ नशीली आंखों से देखा, मुस्कुराई और फिर अपने होंठ को मेरे होंठों से चिपका दिए. मन भर कर उसने मेरे होंठों को चूसा.
फिर मेरे पूरे जिस्म को चूमते हुए नीचे की तरफ आयी और मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और मुठ मारने लगी. मैंने एक बार फिर अपनी आंखें बन्द कर लीं और जो भी कुछ रेखा मेरे साथ कर रही थी, उसी आनन्द में मैं सरोबार होने लगा. अचानक मुझे मेरे लंड पर कुछ गर्म भाप और गीलेपन का अहसास हुआ, जिससे मेरी आंखें खुल गईं. मैंने देखा तो रेखा मेरे लंड को अपने मुँह के अन्दर लिए हुए थे.
वाओ.. मेरी जान.. आज तुमने मैदान मार लिया. मैंने मन ही मन खुद से कहा और फिर रेखा से कहा- अगर तुम अपनी कमर मेरे तरफ घुमा दो, तो मैं भी तुम्हारे जन्नत का मजा ले लूं.
मेरे अचानक इस तरह बोलने से उसने झट से मेरे लंड को मुँह से बाहर निकाला और मुझे देखने लगी. दो मिनट तक वो कुछ सोचती रही. फिर उसने अपनी चूत का मुँह मेरे तरफ कर दिया. हम लोगों की पोजिशन 69 की हो गयी थी.
यह फोर प्ले बहुत ज्यादा लंबा नहीं खींचा, पर 3-4 मिनट के बाद ही रेखा मेरे ऊपर से उतर गयी और मेरी तरफ अपना मुँह करके मेरे ऊपर एक बार फिर लेट गयी. रेखा मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत से मिलाने लगी. फिर सीधे बैठते हुए उसने लंड को अपनी चूत के अन्दर गप्प से गपक लिया और फिर उछाल भरने लगी. रेखा जब तक उछाल भरती रही, जब तक कि एक बार फिर से मेरे लंड ने अपनी पिचकारी का मुँह उसकी चूत के अन्दर न खोल दिया.
फिर वो मेरे ऊपर तब तक लेटी रही, जब तक मेरा लंड चूत से बाहर नहीं आ गया उसके बाद वो मुझसे चिपककर सो गयी और सुबह नींद खुलने पर भी वो मुझसे नंगी ही चिपकी रही.
नींद खुलने के बाद जल्दी से उसने अलमारी से निकालकर पैन्टी-ब्रा, पेटीकोट ब्लाउज और साड़ी पहनी. अपने बालों को सही करते हुए मेरे गालों में एक प्यारी से पप्पी दी. इसके बाद वो कमरे से बाहर निकल गयी.
थोड़ी देर बाद मैं भी उठा और स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा. इधर रेखा भी आज अच्छे मूड में दिख रही थी और गुनगुनाते हुए अपने काम को अंजाम दे रही थी. जब भी उसकी नजर मुझसे मिलती, तो वो एक हल्की और प्यारी मुस्कान छोड़ देती.
फिर मैं तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गया. स्कूल पहुंचने पर मेरी नम्रता से मुलाकात हुई. उसने सबकी नजर बचाते हुए मुझे फ्लाईंग किस दी, वैसा ही जवाब मैंने भी दिया. हम दोनों अपने काम पर लग गए, क्योंकि हमारे मिलन को दो घंटे खाली मिले हुए थे. खैर काम निपटाते हुए वो समय भी आ गया, जब मैं और नम्रता दोनों ही एक दूसरे के आमने-सामने हुए.
हाय-हैलो के बाद मैंने झट से पूछा- कल नहीं आयी थी.. और कैसा रहा तुम्हारे आदमी का मिजाज.
नम्रता चहकते हुए बोली- बहुत अच्छा.. फिर थोड़ा रूककर और दार्शनिक अंदाज में बोली- कभी-कभी एक दूसरे को पाने के लिए कुछ दिन तक एक-दूसरे से दूर भी होना जरूरी होता है.
बात तो नम्रता बिल्कुल सही कह रही थी, क्योंकि भले ही तीन दिन ही सही, रेखा ने जो कल रात मेरे साथ किया था, वो भी बिछड़ने के बाद का मिलन था.
मैंने फिर पूछा- कल क्यों नहीं आयी?
नम्रता- कल मुझे राजेश अपने साथ घुमाने के लिए ले गए थे, दिन भर हम लोग मौज मस्ती करते रहे और चुदाई भी की.
मैंने नम्रता की बात काटते हुए पूछा- हां.. मगर..
पर नम्रता ने भी मेरी बात कट कर अपनी बात पूरी की- वो भी परसों पूरी रात और कल पूरी रात सोने नहीं दिया.
मैं फिर से बोला- अच्छा तुमने वो कपड़े पहने थे?
नम्रता- हां बता रही हूँ.
मेरी उत्सुक्ता बढ़ रही थी. जैसे मैंने नम्रता की बात सुनी ही नहीं.
फिर पूछ बैठा- यार, तुम्हारी गांड मारी?
नम्रता- अरे यार सुनो तो, मैं सब कुछ बताऊंगी. आने के बाद हम लोगों को बातें करते हुए काफी देर हो चुकी थी, करीब 2 बजे रात मैं सब काम निपटाकर कमरे में पहुंची, तो देखा महराज नंग धड़ंग, अपने लंड को हाथ में लिए मुठ मार रहे थे. मैं मुस्कुराती हुई बाथरूम में घुस गयी और तुम्हारी दी हुई नाईटी पहनकर बाहर आकर ड्रेसिंग टेबिल के पास थोड़ा झुककर अपने होंठों को लिपिस्टक से धीरे-धीरे सजाते हुए शीशे से अपने मर्द को देख रही थी. वो मुठ मारते हुए मेरी तरफ देख रहे थे.
मेरी ये हॉट पोर्न कहानी पर आपके मेल का स्वागत है.
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कहानी जारी है.